अटलजी की नकल करने वाले कई लोग नेता बन गए / जयप्रकाश चौकसे

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अटलजी की नकल करने वाले कई लोग नेता बन गए
प्रकाशन तिथि : 13 जून 2018


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अस्पताल में भर्ती हैं। वे लंबे अरसे से बीमार हैं। 93 वर्षीय अटलजी कुछ वर्ष पूर्व ही अपनी स्मृति खो चुके हैं और यह महज इत्तेफाक है कि 94 वर्षीय दिलीप कुमार भी कुछ वर्ष पूर्व ही अपनी स्मृति खो चुके हैं। अटलजी एवं दिलीप कुमार विगत दशक में बार-बार अस्पताल ले जाए जाते हैं और वे ऐसे इस्पात के बने हैं कि बुखार की भट्‌टी से कंचन सा निखर के बाहर आते हैं। दोनों में ही यह बात भी समान है कि वे अपने विचारों और कार्य में हमेशा मौलिक रहे हैं। एक की नकल करते हुए कुछ लोग नेता हो गए और दूसरे की नकल करते हुए अभिनेता बन गए। दोनों ही महान विचारकों में स्मृति का चला जाना उनके लिए कितना भयावह होगा। स्मृति का चला जाना जैसे स्याह बादलों का घिर आना है, परन्तु इन स्याह बादलों के बीच कभी-कभी स्मृति की बिजली भी कौंध जाती होगी, जैसे अमावस्या की रात कुछ जुगनू चमकते हों। क्या ऐसे किसी क्षण में दिलीप कुमार तीमारदारी करती हुई सायरा बानो को मधुबाला कहकर संबोधित करते होंगे। ज्ञातव्य है कि दिलीप कुमार ताउम्र मधुबाला से प्रेम करते रहे और सहकलाकार प्रेमनाथ की भ्रामक बातों में उलझकर उन्होंने मधुबाला को खो दिया। मधुबाला की मृत्यु का कारण उनके हृदय में एक सुराख होना बताया गया जिस कारण रक्त की मिलावट हो जाती थी। शरीर विज्ञान में इसे 'मशीन्स मरमर' कहते हैं।

भावना के मुहावरे में क्या हम मान लें कि अपने अनंत प्रेमी दिलीप कुमार की गलतफहमी के कारण मधुबाला के हृदय में यह सुराख बना होगा। प्रेम करने वालों को संदेह नहीं करना चाहिए। प्रेम के उजास में संदेह का अंधकार पैदा ही नहीं होता। मधुबाला की मृत्यु का समय उनके कॅरिअर की दोपहर बारह बजे की तरह था जब वे अपने तीव्रतम स्वरूप में जाहिर होने को थीं गोयाकि वे अनअभिव्यक्त कविता की तरह रहीं।

अटल बिहारी वाजपेयी गहन विचारक एवं ओजस्वी वक्ता रहे हैं। जब संसद में अटलजी बोलते थे तब नेहरू भी उनकी प्रशंसा करते थे। भारतीय संसद का वह स्वर्ण काल था जब राजनैतिक रूप से विरोधी एक-दूसरे का सम्मान करते थे। जब इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान की एक बांह तोड़ दी थी और बांग्लादेश का निर्माण किया तब अटलजी ने संसद में उन्हें मां दुर्गा का अवतार कहा था जबकि उनके अपने दल में उन्हें इसके लिए खेद अभिव्यक्त करना पड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी कवि हृदय व्यक्ति रहे हैं और उन्होंने कविताएं भी लिखी हैं। वाह क्या दौर था वह जब प्रधानमंत्री भी कविता का प्रवाह अपने लिखे गद्य में साधते थे और प्रतिपक्ष नेता भी कविताएं लिखता था। भारतीय संसद का वह काव्य खंड काल था। अटलजी जीवन में आनंद लेना और आनंद बांटने के आदर्श में यकीन करने वाले रहे हैं।

मात्र दो दिन पूर्व ही टेलीविजन पर दिखाया गया कि गुजरात के कुछ गांवों के लोगों ने मिलकर चंदा एकत्रित किया और स्वयं मजदूरी करके मात्र चालीस लाख रुपयों में चंद माह परिश्रम करके एक बांध बनाया जिसे बनाने का झूठा वादा सरकार एक दशक से कर रही है और प्रचार यह किया गया कि इसमें करोड़ों रुपयों का खर्च होगा। आज अटलजी अस्पताल में बिस्तर पर पड़े-पड़े अपने स्मृति के हिरण को झलक मात्र देखने को लालायित होंगे। याददाश्त खो जाने से अधिक त्रासद कुछ नहीं होता। कवि हृदय अटलजी के जीवन में प्रेम भी रहा है और वही उनका एकमात्र सीक्रेट एजेन्डा रहा जबकि आज के नेताओं का सीक्रेट एजेन्डा है लोगों को आपस में बांटों और राज करो। इस तरह अंग्रेजों की सियासत के तौर तरीके आज भी जारी हैं परन्तु अंतर यह है कि उन्होंने सड़कें बनाईं, डाक बंगले बनाए और विकास भी किया। यह जन-कल्याण के लिए नहीं वरन् अपने राज को टिकाए रखने के लिए किया गया।

याद आता है कि जब लंदन में विन्सटन चर्चिल की शवयात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया जा रहा था तब थोड़े-थोड़े अंतराल से विन्सटन चर्चिल के दिए गिए भाषणों का टेप भी बजाया जा रहा था। ऐसा आभास होता था कि मानो शव ही आपको पुन: सम्बोधित कर रहा है। मृत व्यक्ति की पूर्व में रिकॉर्डेड ध्वनि को सुनते हुए लगता था कि मृत्यु अभी तक विजयी नहीं हुई है। जीवन के वाक्य में मृत्यु की हैसियत मात्र एक अर्धविराम से अधिक कुछ नहीं है।