अपराध और दंड / अध्याय 1 / भाग 2 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव भीड़ का आदी नहीं था और जैसा कि हम कह चुके हैं, वह हर तरह की संगत से कतराता था, खास तौर पर इधर कुछ समय से। लेकिन इस वक्त अचानक उसे दूसरे लोगों की संगत की इच्छा हुई। लगता था उसके अंदर कोई नई बात पैदा हो रही है, और उसके साथ ही उसमें किसी के साथ होने की प्यास-सी जाग रही है। घोर उलझनों और उदासी भरी बेचैनी में पूरे एक महीने फँसे रहने के बाद वह इतना थक गया था कि वह किसी दूसरी दुनिया में चाहे कोई भी हो, एक पल के लिए सही, आराम करने के लिए तड़प रहा था। इस समय अपने चारों ओर की गंदगी के बावजूद, शराबखाने में बैठे रह कर उसे खुशी हो रही थी।

शराबखाने का मालिक किसी दूसरे कमरे में रहा होगा। लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह कुछ सीढ़ियाँ उतर कर बड़े कमरे में आता, और हर बार उसके बाकी शरीर से पहले उसके भड़कीले काले रंग के चमकदार लंबे जूते दिखाई देते जिनका ऊपरवाला लाल रंग का सिरा उसने पलट रखा था। उसने लंबा कोट और बुरी तरह चीकटदार काले रंग की साटन की वास्कट पहन रखी थी। उसने गुलूबंद नहीं पहना था, और पूरे चेहरे पर इतना तेल चुपड़ा हुआ था जैसे लोहे के ताले पर चुपड़ते हैं। काउंटर पर लगभग चौदह बरस का एक लड़का खड़ा था। उससे कुछ छोटा, एक और लड़का था जो जरूरत की चीजें ला कर देता था। काउंटर पर कुछ कटा हुआ खीरा था, सूखी काली डबल रोटी के कुछ टुकड़े थे और मछली के कुछ छोटे-छोटे कतले पड़े हुए थे, जिनसे बहुत बुरी बू आ रही थी। वहाँ बेहद घुटन थी और शराब के भभकों से हवा इस कदर बोझल थी कि ऐसे वातावरण में पाँच मिनट रहने से ही आदमी को नशा हो जाए।

कभी-कभी हमारी कुछ ऐसे अजनबियों से मुलाकात हो जाती है जिनमें हमें एक शब्द बातचीत के बिना भी पहले पल से ही दिलचस्पी पैदा हो जाती है। रस्कोलनिकोव पर उस आदमी ने भी कुछ ऐसा ही असर डाला जो उससे थोड़ी दूर बैठा हुआ था और देखने में रिटायर्ड क्लर्क लगता था। उस नौजवान ने बाद में अपने इस अनुभव की अकसर चर्चा की, और यहाँ तक कहता रहा कि वह मुलाकात किसी पूर्वबोध का परिणाम थी। वह बार-बार उस क्लर्क की ओर देखता रहा, कुछ तो यकीनन इसलिए कि वह क्लर्क लगातार उसे घूरे जा रहा था। स्पष्ट है कि वह उससे बातचीत करने के लिए उत्सुक था। वह क्लर्क कमरे के दूसरे लोगों को, शराबखाने के मालिक तक को, इस तरह देख रहा था, मानो वह उनके साथ का आदी हो चुका हो और उनसे उकता चुका हो। हैसियत और तहजीब के एतबार से उन्हें अपने से घटिया लोग समझने के कारण उसके मन में उनके प्रति कुछ तिरस्कार का भाव भी था, जिनके साथ बातचीत करना उसे बेकार लगता था। उस आदमी की उम्र पचास से ऊपर थी। गंजा सर, खिचड़ी बाल, दरमियाना कद, और गठा हुआ बदन। लगातार शराब पीने की वजह से उसका चेहरा फूल गया था और रंग कुछ पीला, कहीं-कहीं हरा भी पड़ गया था। पपोटे सूजे हुए थे जिनके अंदर से उसकी पैनी, गुलाबी आँखें ऐसे चमकती थीं जैसे छोटी-छोटी दरारों में से झाँक रही हों। लेकिन उसमें कोई बहुत अजीब बात भी थी। उसकी आँखों में ऐसी चमक थी जैसे वह किसी बात को बहुत गहराई से महसूस कर रहा हो। उनमें शायद चिंतन तथा प्रखर बुद्धि की झलक भी थी, लेकिन साथ ही उनमें पागलपन जैसी किसी चीज की चमक भी थी। वह एक बहुत पुराना, बेहद फटा हुआ, काले रंग का सूट के साथ का कोट पहने हुए था, जिसके एक को छोड़ कर सारे बटन टूटे हुए थे, और वह एक बटन उसने यूँ लगा रखा था; गोया इज्जतदार आदमी होने की इस आखिरी निशानी को सीने से लगाए रखना चाहता हो। मुड़ी-तुड़ी धब्बों और मैल के निशानों से भरी हुई कमीज का सामने का हिस्सा उसकी जीन की वास्कट के बाहर उभरा हुआ था। क्लर्कों की तरह उसकी भी दाढ़ी-मूँछें सफाचट थीं, लेकिन उसने इतने दिन से दाढ़ी नहीं बनाई थी कि ठोड़ी भूरे रंग के कड़े ब्रश जैसी लग रही थी। उसकी चाल-ढाल में भी कुछ ऐसी बात थी जिससे उसके इज्जतदार और अफसर समान होने का पता चलता था। लेकिन वह बेचैन था, बार-बार अपने बाल बिखेर लेता था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद, कोट की फटी हुई कुहनियों को धब्बेदार और चिपचिपी मेज पर टिका कर, अपना सर हाथों से पकड़ कर बेहद मायूसी से बैठ जाता था। आखिरकार उसने रस्कोलनिकोव की आँखों में आँखें डाल कर देखा, और ऊँची आवाज में सधे ढंग से बोला, 'जनाब, क्या मैं आपसे कुछ रस्मी बातचीत करने की जुरअत कर सकता हूँ आप अपने रखरखाव से बाइज्जत तो नहीं मालूम होते, लेकिन मेरा तजर्बा कहता है कि आप पढ़े-लिखे आदमी हैं और आपको शराब पीने की आदत नहीं है। मैंने तालीम को हमेशा इज्जत की नजर से देखा है, अगर उसके साथ सच्चे जज्बात भी हों, और इसके अलावा ओहदे के एतबार से मैं **टाइटुलर कौंसिलर हूँ।1 मार्मेलादोव-मेरा यही नाम है; टाइटुलर कौंसिलर। मैं क्या आपसे यह पूछने की गुस्ताखी कर सकता हूँ कि आप किसी सरकारी नौकरी में रह चुके हैं?'

    • (रूसी सरकारी सेवा की 14 श्रेणियों में से 9वीं श्रेणी का एक पद, इस तरह यह बहुत निचली श्रेणी का पद हुआ करता था। ये श्रेणियाँ 1722 में प्योत्र महान के काल में बनाई गई थीं।)


'जी नहीं, मैं पढ़ता हूँ,' नौजवान ने जवाब दिया; उसे बोलनेवाले की गढ़ी हुई शैली पर भी कुछ हैरत हो रही थी और कुछ इस बात पर भी कि उसे इस तरह सीधे-सीधे संबोधित किया गया था। अभी वह किसी इनसान की संगत की क्षणिक इच्छा महसूस कर रहा था, उसके बावजूद जब उससे बात की गई तो उसे फौरन अपनी आदत के मुताबिक अपने करीब आनेवाले या करीब आने की कोशिश करनेवाले एक अजनबी के प्रति वही चिड़चिड़ाहट और बेचैनी भरी अरुचि पैदा हुई।

'तो आप छात्र हैं, या पहले छात्र रह चुके हैं,' उस क्लर्क ने ऊँची आवाज में कहा, 'मैंने भी यही सोचा था! तजर्बा जनाब, यह सब तजर्बे की बात है,' यह कह कर उसने अपने आपको शाबाशी देते हुए माथे पर एक उँगली रख कर दबाई। 'आप छात्र रह चुके हैं या तालीम के किसी इदारे में जाते रहे हैं! अगर आप इजाजत दें...' - वह उठ कर खड़ा हो गया, लड़खड़ाया, अपना जग और गिलास उठाया, और नौजवान के पास आ कर बैठ गया, कुछ इस तरह कि उसके सामने नौजवान के चेहरे का बगली हिस्सा पड़ता था। वह शराब के नशे में चूर था, लेकिन बिना अटके हुए, बड़े भरोसे के साथ बोल रहा था। बस बीच-बीच में उसकी बात का तार टूट जाता था और उसे अपने शब्दों को खींच कर बोलना पड़ता था। वह रस्कोलनिकोव पर ऐसे नदीदों की तरह टूटा जैसे किसी आदमी से महीने भर से बात न की हो।

'जनाब,' उसने ऐसे दिखावे के भाव से बोलना शुरू किया, गोया प्रवचन कर रहा हो, 'गरीबी कोई बुराई नहीं है, यही सच बात है। लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि शराबी होना भी कोई अच्छी बात नहीं है, और यह बात उससे भी ज्यादा सच है। लेकिन कंगाल होना, जनाबे आली, कंगाल होना जरूर बुराई है। गरीबी में आप अपनी आत्मा की पैदाइशी बुनियादी नेकी बनाए रख सकते हैं, लेकिन कंगाली में कभी नहीं। कंगाल आदमी को डंडा ले कर समाज से खदेड़ा नहीं जाता, झाड़ू से बुहार कर बाहर फेंक दिया जाता है ताकि जितना ज्यादा हो सके, उसका अपमान हो। और यही ठीक भी है क्योंकि कंगाली में तो मैं खुद ही सबसे पहले अपना अपमान करने को तैयार रहूँगा। इसलिए जनाब, दारू की दुकान! जनाबे-आली, अभी एक महीना हुआ मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने मेरी बीवी को पीटा, और मेरी बीवी मुझसे बिलकुल अलग ही किस्म की चीज है! आप समझ रहे हैं न! अच्छा, मैं महज अपनी जानकारी के लिए आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ; आपने कभी नेवा नदी पर भूसे की नाव पर रात बसर की है?'

'जी नहीं, कभी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। 'इसका क्या मतलब है?'

'बात बस यह है कि वहाँ इस तरह सोते हुए मुझे पाँच रातें हो गईं...'

उसने अपना गिलास भरा, गटक गया, और सोच में डूब गया। सचमुच उसके कपड़ों से भूसे के टुकड़े चिपके हुए थे, और उसके बालों में भी उलझे हुए थे। लगता था पाँच दिन से उसने कपड़े नहीं बदले थे और न मुँह-हाथ धोया था। खास तौर पर उसके हाथ तो बहुत ही गंदे थे। हाथ मोटे और लाल रंग के थे और नाखून बिलकुल काले हो रहे थे।

लगता था उसकी बातचीत आम तौर पर दिलचस्पी तो जगा रही थी, लेकिन बहुत जोश वाली नहीं। काउंटर पर काम करनेवाले लड़के खी-खी करके हँसने लगे। शराबखाने का मालिक खास इस 'मसखरे बंदे' की बातें सुनने के इरादे से ऊपरवाले कमरे से उतर कर नीचे आ गया, और थोड़ी दूर बैठ कर अलसाए ढंग से लेकिन गरिमा के साथ जम्हाई लेने लगा। साफ लगता था कि मार्मेलादोव यहाँ की एक जानी-पहचानी हस्ती था, और बहुत मुमकिन था कि उसमें लच्छेदार भाषण की कमजोरी इस वजह से पैदा हुई हो कि उसे शराबखाने में अकसर, तरह-तरह के अजनबियों से बातचीत करने की आदत थी। कुछ शराबियों में यह आदत बढ़ते-बढ़ते एक जरूरत बन जाती है, खास तौर पर उन लोगों में जिन पर घर में कड़ी नजर रखी जाती है और जिनकी बहुत बेकद्री की जाती है। इसलिए दूसरे पीनेवालों के बीच बैठ कर वे अपनी हरकतों को सही ठहराने की और मुमकिन हो तो उनकी हमदर्दी हासिल करने की भी कोशिश करते हैं।

'मसखरा बंदा है यह भी!' शराबखाने के मालिक ने अपना फरमान सुनाया। 'आखिर तुम काम क्यों नहीं करते या अगर तुम किसी नौकरी से लगे हो तो अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हो?'

'जनाब, मैं अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हूँ!' मार्मेलादोव ने सिर्फ रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए अपनी बात जारी रखी, मानो वह सवाल उसी ने पूछा हो। 'मैं अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं हूँ? क्या यह सोच कर मेरा दिल नहीं दुखता कि मैं एक बेकार कीड़ा हूँ? एक महीना हुआ, मेरी बीवी को मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने अपने हाथों से पीटा था, और मैं शराब के नशे में धुत पड़ा था। तब क्या मुझे तकलीफ नहीं हुई थी? माफ करना, नौजवान, क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है... हुँह... मेरा मतलब है, तुम्हें कोई उम्मीद न होते हुए भी किसी से कर्ज के लिए फरियाद करनी पड़ी हो?'

'हाँ, हुआ है... लेकिन “कोई उम्मीद न होते हुए भी" से आपका क्या मतलब है?'

'हर मानी में कोई उम्मीद न होते हुए, जब तुम्हें पहले से मालूम हो कि तुम्हें कुछ मिलनेवाला नहीं है। गोया यूँ समझ लो, तुम्हें पूरे यकीन के साथ पहले से मालूम है कि यह आदमी, यह नामी-गिरामी शहरी, जिसकी लोग मिसाल देते हैं, किसी भी कीमत पर तुम्हें पैसा देनेवाला नहीं है। और सच तो यह है कि, मैं पूछता हूँ, वह क्यों पैसा दे। जाहिर है, वह जानता है कि मैं पैसा वापस नहीं करूँगा। तरस खा कर मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने, जो हर नए से नए विचार की खबर रखते हैं, अभी उसी दिन समझाया था कि आजकल साइंस तक ने तरस खाने पर पाबंदी लगा दी है, और यह कि अब इंग्लैंड में यही होता है, जहाँ राजनीतिक अर्थशास्त्र का बोलबाला है। आखिर क्यों, मैं पूछता हूँ, वह मुझे पैसा क्यों दे फिर भी मैं उसके पास जाने के लिए चल पड़ता हूँ हालाँकि मैं पहले से जानता हूँ कि वह देनेवाला नहीं है, और...'

'क्यों जाते हैं आप?' रस्कोलनिकोव ने बात काट कर पूछा।

'लेकिन जब किसी का कोई न हो, जब उसके पास जाने को कोई दूसरा ठिकाना न हो तो! इसलिए कि हर आदमी के पास जाने के लिए कोई ठिकाना तो होना चाहिए। इसलिए कि ऐसे वक्त भी आते हैं जब आदमी को कहीं न कहीं जाना पड़ता है! जब मेरी बेटी पहली बार पीला टिकट (वेश्यावृत्ति का लाइसेंस) ले कर बाहर निकली थी तो मुझे जाना पड़ा था... (क्योंकि मेरी बेटी सड़कगर्दी से रोजी कमाती है),' उसने यह आखिरी बात नौजवान की ओर कुछ बेचैनी से देखते हुए दबी जबान से जोड़ी। 'कोई बात नहीं जनाब, कोई बात नहीं!' जब काउंटर पर बैठे हुए दोनों लड़के ठहाका मार कर हँस पड़े और शराबखाने का मालिक भी मुस्कराने लगा तो जल्दी-जल्दी और अपने आपको जाहिर तौर पर सँभालते हुए उसने अपनी बात जारी रखी। 'कोई बात नहीं, मुझे उनके सर हिलाने से जरा भी उलझन नहीं होती; क्योंकि इसके बारे में हर आदमी सब कुछ जानता है, और जो कुछ अब तक ढका-छिपा था, वह भी खुल कर सामने आ चुका है। और मैं यह सब कुछ तिरस्कार के साथ नहीं, बल्कि विनम्रता से मानता हूँ। ऐसा ही सही! ऐसा ही सही! इनसान को देखो!' माफ करना, नौजवान तुम क्या ऐसा कर सकते हो... नहीं, मैं अपनी बात ज्यादा जोरदार तरीके से और ज्यादा साफ-साफ कहूँगा : क्या तुम ऐसा कर सकते हो नहीं, बल्कि क्या तुममें ऐसा करने की हिम्मत है कि मुझे देख कर दावे के साथ कह सको कि मैं सुअर नहीं हूँ?'

जवाब में नौजवान ने एक शब्द भी नहीं कहा।

'खैर,' भाषण करनेवाले ने कमरे में खी-खी की आवाज के दबने की राह देखने के बाद एक बार फिर ज्यादा सधी आवाज में पहले से भी ज्यादा मर्यादा के साथ अपनी बात शुरू की। 'खैर, ऐसा ही सही, मैं तो सुअर हूँ लेकिन वह रईसजादी है! मैं तो जानवर हूँ लेकिन कतेरीना इवोनाव्ना, मेरी धर्मपत्नी, पढ़ी-लिखी औरत है और एक अफसर की बेटी है। माना, मान लिया कि मैं लफंगा हूँ, लेकिन वह दिल की हीरा औरत है, उसके दिल में भावनाएँ हैं, पढ़ाई-लिखाई ने उसकी आत्मा को निखार दिया है! लेकिन फिर भी... काश, उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ दर्द होता! जनाब... जनाबे-आली, आप जानते हैं कि हर आदमी के पास कम-से-कम एक ठिकाना तो ऐसा होना ही चाहिए जहाँ लोगों के दिल में उसके लिए भी कुछ दर्द हो! लेकिन कतेरीना इवानोव्ना... हालाँकि वह बड़े दिल की औरत है, लेकिन उसमें इन्साफ नहीं है... लेकिन फिर भी मैं जानता हूँ कि जब वह मेरे बाल पकड़ कर घसीटती है तो तरस खा कर ही ऐसा करती है - क्योंकि नौजवान, मुझे एक बार फिर यह बात कहने में जरा भी शर्म नहीं आती, कि वह मेरे बाल पकड़ कर भी घसीटती है,' उसने एक बार फिर लोगों को खी-खी करके हँसते सुन कर फिर गरिमा के साथ ऐलान किया - 'लेकिन, हे मेरे भगवान, अगर वह एक बार भी... लेकिन नहीं! बेकार है यह सब कुछ और इसकी बात करने का भी कोई फायदा नहीं! इसलिए कि एक बार नहीं, कई बार मेरी तमन्ना पूरी हुई और कितनी ही बार उसके दिल में मेरा दर्द पैदा हुआ लेकिन... मेरा स्वभाव ही ऐसा है और मैं हूँ एक जन्मजात जानवर!'

'ठीक कहते हो!' शराबखाने के मालिक ने जम्हाई लेते हुए कहा।

मार्मेलादोव ने जोर से मेज पर मुक्का मारा।

'मेरा स्वभाव ही ऐसा है! आप जानते हैं जनाब, आपको मालूम है क्या कि शराब के लिए मैंने उसकी लंबी जुराबें तक बेच दीं उसके जूते नहीं - वह तो खैर कमोबेश इतनी बेजा बात न होती, लेकिन उसकी लंबी जुराबें मैंने शराब के लिए बेच दीं, उसकी जुराबें! उसकी पशमीने की शाल भी मैंने शराब के लिए बेच दी। वह उसे बहुत पहले तोहफे में मिली थी, उसकी अपनी चीज थी, मेरी नहीं थी। हम लोग ठिठुरते हुए एक ठंडे कमरे में रहते हैं और वह इस बार जाड़े में सर्दी खा गई और उसे खाँसी आने लगी है, साथ में खून भी आता है। हमारे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं और कतेरीना इवानोव्ना सबेरे से रात तक काम में जुती रहती है, झाड़ू-बुहारू करती है, सारे कपड़े वगैरह धोती है और बच्चों को नहलाती-धुलाती है, क्योंकि उसे बचपन से सफाई की आदत रही है। लेकिन उसका सीना कमजोर है और तपेदिक हो जाने का डर लगा रहता है, और मैं इस बात को महसूस करता हूँ। क्या आप यह सोचते हैं कि मैं इस बात का महसूस नहीं करता? मैं जितनी ज्यादा पीता हूँ, उतना ही ज्यादा इस बात को महसूस करता हूँ। पीता भी मैं इसीलिए हूँ। शराब में मैं हमदर्दी खोजता हूँ और चाहता हूँ कि मुझ पर कोई तरस खाए... मैं पीता इसलिए हूँ कि मुझे दोगुनी तकलीफ हो!' यह कह कर, गोया निराश हो कर उसने अपना सिर मेज पर टिका लिया।

'नौजवान,' उसने सर उठा कर फिर कहना शुरू किया, 'तुम्हारे चेहरे में मुझे अपनी तकलीफ की कुछ झलक दिखाई देती है। जब तुम अंदर आए, तभी मैंने इसकी झलक पा ली थी, और इसीलिए मैंने फौरन तुमसे बातें करने का सिलसिला छेड़ा था। तुम्हारे सामने अगर मैं अपनी जिंदगी की दास्तान खोल कर रखना चाहता हूँ तो इसलिए नहीं कि इन निठल्ले सुननेवालों के सामने अपनी हँसी उड़वाऊँ, जिन्हें यूँ भी सब कुछ मालूम है, बल्कि इसलिए कि मुझे ऐसे आदमी की तलाश है जिसके दिल में दूसरों का दर्द हो और जो पढ़ा-लिखा हो। तो मैं बता रहा था कि मेरी बीवी रईसों की बेटियों के उम्दा स्कूल की पढ़ी हुई है, और स्कूल छोड़ते वक्त उसने गवर्नर साहब के और दूसरी बड़ी-बड़ी हस्तियों के सामने शालवाला नाच पेश किया था, और उसे इनाम में सोने का एक मेडल और प्रशंसापत्र दिया गया था। मेडल... खैर, मेडल तो जाहिर है, बेच दिया गया था - बहुत पहले ही, हुँह... लेकिन वह प्रशंसापत्र अभी तक उसके संदूक में रखा है और अभी, बहुत दिन नहीं हुए, उसने मकान-मालकिन को वह दिखाया था। यूँ तो मकान-मालकिन से उसकी कभी नहीं बनी, लेकिन वह किसी न किसी को अपने पिछले कमालों के बारे में और बीते हुए सुख के दिनों के बारे में बताना चाहती है। इसके लिए मैं उसे बुरा नहीं कहता, उसे कोई दोष नहीं देता, क्योंकि उसके पास बीते हुए दिनों की इन यादों के अलावा बचा ही क्या है, बाकी सब तो मिट्टी में मिल चुका! जी हाँ, जी हाँ, बड़े दिल-गुर्दे वाली खानदानी औरत है, कभी किसी के आगे सर नहीं झुकाया, और जो जी में ठान लिया उसे पूरा करके छोड़ा। अपने हाथ से झाड़ू देती है और खाने को काली रोटी के अलावा कुछ होती भी नहीं, लेकिन मजाल है कि कोई उसके साथ बेइज्जती का सलूक कर दे। इसीलिए तो मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने उसके साथ जो बदतमीजी की, उसे वह अनदेखा करने को तैयार नहीं थी, और यही वजह है कि उन्होंने जब इस बात पर उसकी पिटाई की तो उसने चारपाई पकड़ ली... जो चोट लगी थी उसकी वजह से इतना नहीं, जितना इस वजह से कि उसकी भावनाओं को ठेस पहुँची थी। जब मैंने उससे शादी की थी, उस वक्त वह विधवा थी, तीन बच्चों की माँ और सभी नन्हे-मुन्ने। उसने अपने पति से, जो पैदल सेना में अफसर था, प्रेम करके शादी की थी, और बाप के घर से उसके साथ भागी थी। उसे बेहद लगाव था अपने पति से, लेकिन वह जुआ खेलने लगा, मुकद्दमे में फँस गया और उसी हालत में मरा भी। आखिर में वह उसे मारने-पीटने लगा था। हालाँकि वह भी जवाब में उसकी पिटाई करती थी, जिसका मेरे पास पक्का, लिखित सबूत है, लेकिन आज भी वह जब उसकी बात करती है तो उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं और वह हमेशा उसका हवाला दे कर मुझे ताने देती रहती है। और मुझे खुशी है, इस बात की खुशी है कि कल्पना में ही सही, वह अपने बारे में सोचती तो है कि वह कभी सुखी थी... तो उसके मरने के बाद वह दूर-दराज के एक बीहड़ इलाके में तीन बच्चों के साथ अकेली रह गई। इत्तफाक से उन दिनों मैं भी वहीं था, और वह ऐसी घोर गरीबी की हालत में थी कि मैं हर तरह के बहुत-से उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद अपने आपको इस लायक नहीं पाता कि उसका बयान कर सकूँ। उसके सभी रिश्तेदारों ने उससे एकदम नाता तोड़ लिया था। पर वह अपनी आन की पक्की थी, बेहद पक्की... और तब, जनाब तब मैंने... उस वक्त मेरी पहली बीवी मर चुकी थी और उससे एक चौदह साल की बेटी थी तो मैंने उसके सामने सुझाव रखा कि मुझसे शादी कर ले, क्योंकि मुझसे उसकी ऐसी दर्दनाक हालत नहीं देखी जाती थी। आप उसकी मुसीबतों का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वह, इतनी पढ़ी-लिखी, इतनी सलीकेमंद, सचमुच ऐसे ऊँचे खानदान की औरत, मेरी बीवी बनने को राजी हो गई! सचमुच राजी हो गई! रोते और सिसकते हुए, अपने हाथ मलते हुए उसने मुझसे शादी कर ली। क्योंकि उसके पास कोई और ठिकाना नहीं था! आप समझते हैं, जनाब, आप समझते हैं न कि क्या मतलब होता है इसका, जब आपके पास एकदम कोई ठिकाना न हो नहीं आप अभी यह बात नहीं समझते... तो पूरे एक साल तक मैं अपने सारे फर्ज ईमानदारी और वफादारी के साथ पूरे करता रहा, और इसे छुआ तक नहीं' (यह कह कर उसने उँगली से अपने जग को टिकटिकाया), 'क्योंकि मेरे दिल में भी दर्द है, भावनाएँ हैं। लेकिन यह सब करके भी मैं उसे खुश नहीं कर सका। और फिर मेरी नौकरी भी छूट गई, पर उसमें मेरा कोई कुसूर नहीं था बल्कि दफ्तर में ही कुछ हेर-फेर हो गए थे; और तब मैंने इसे छुआ! ...कुछ ही दिनों में डेढ़ साल हो जाएँगे उस बात को जब हम कई जगह भटकने के बाद, कितनी ही मुसीबतें झेलने के बाद अनगिनत स्मारकों से सजी इस शानदार राजधानी में पहुँचे थे। यहाँ मुझे एक नौकरी मिल भी गई। ...मिल भी गई और छूट भी गई। आप समझ रहे हैं इस बार नौकरी मेरी अपनी गलती से गई क्योंकि मेरी यह कमजोरी उभर आई थी... अब हमारे पास अमालिया फ्योदोरोव्ना लिप्पेवेख्सेल के यहाँ एक कमरे का एक हिस्सा है; पर मैं यह नहीं बता सकता कि कहाँ से हम अपनी गुजर-बसर करते हैं और कहाँ से अपना किराया भरते हैं। वहाँ हमारे अलावा और भी बहुत से लोग रहते हैं। गंदगी और बेतरतीबी, बिल्कुल भटियारखाने जैसा... जी हाँ... और इस बीच पहली बीवी से मेरी जो बेटी थी वह बड़ी हो गई, और जिस जमाने में मेरी बेटी बड़ी हो रही थी उस दौरान उसे अपनी सौतेली माँ के हाथों क्या-क्या सहना पड़ा, इसके बारे में मैं कुछ भी नहीं कहूँगा। कतेरीना इवानोव्ना दिल की बहुत बड़ी तो है, लेकिन उसका मिजाज बहुत तेज है, बेहद चिड़चिड़ा, और गुस्सा जैसे उसकी नाक पर रखा रहता है... जी हाँ! लेकिन कोई फायदा नहीं! इन सब बातों की चर्चा से! सोन्या को, जैसा कि आप सोच सकते हैं, कभी पढ़ना-लिखना नसीब नहीं हुआ। चार साल पहले मैंने उसे भूगोल और दुनिया का इतिहास पढ़ाने की कोशिश की थी लेकिन ये विषय मुझे खुद अच्छी तरह नहीं आते थे, हमारे पास ढंग की किताबें भी नहीं थीं, और जो थोड़ी-बहुत किताबें थीं भी... हुँह, बहरहाल अब तो वे भी नहीं रह गईं हमारे पास। सो हमारा पढ़ने-लिखने का सारा सिलसिला खत्म हो गया। हम फारस के बादशाह साइरस तक पहुँच कर उससे आगे नहीं बढ़ सके। जबसे वह जवान हो चली, उसने कुछ और रोमांटिक किस्म की किताबें पढ़ी हैं, और भी इधर हाल में उसने बड़ी दिलचस्पी से एक किताब पढ़ी है जो उसे मिस्टर लेबेजियातनिकोव के जरिए मिली थी, जार्ज लेबिस की 'शरीरक्रिया' - आप जानते तो होंगे इस किताब को ...उसने हमें उसके कुछ हिस्से सुनाए भी थे, तो बस यही है उसकी कुल पढ़ाई। और अब क्या मैं आपसे, जनाबे-आली, अपनी खातिर एक निजी किस्म का सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता हूँ क्या आप सोचते हैं कि कोई गरीब इज्जतदार लड़की ईमानदारी से काम करके काफी पैसा कमा सकती है अगर वह इज्जतदार है और उसमें कोई खास हुनर नहीं है, दिन-भर में पंद्रह टके नहीं कमा सकती, और इतना भी कमाएगी तब, जब वह अपने काम में पल भर को दम न ले! और बात इतनी ही नहीं है; इवान इवानोविच क्लापस्टाक ने, वही जो सिविल कौंसिलर हैं - आपने उनका नाम सुना तो होगा - उससे लिनेन की जो आधा दर्जन कमीजें बनवाई थीं, उनके पैसे आज तक उसे नहीं दिए, बल्कि उल्टे उसे झिड़क कर भगा दिया। उन्होंने बहुत पाँव पटके और उसे बहुत बुरा-भला कहा; बहाना यह बनाया कि कमीजों के कालर वैसे नहीं थे जैसे नमूने की कमीज में थे, और टेढ़े लगे थे। इधर छोटे-छोटे बच्चे भूखे थे... कतेरीना इवानोव्ना हाथ मलते हुए इधर से उधर टहल रही थी, गाल तमतमाए हुए, जैसा कि इस बीमारी में हमेशा हो जाता है। बोली, 'यहाँ हमारे मत्थे रहती है, खाती है, पीती है और गर्म कमरे का मजा भी लेती है; काम करते छाती फटती है।' और क्या मिलता है उसे खाने-पीने को जब कि नन्हे बच्चों को तीन-तीन दिन एक कौर नसीब नहीं होता! और उस वक्त मैं पड़ा हुआ था... उससे क्या होता है! मैं शराब के नशे में धुत था और मैंने सोन्या को बोलते सुना (बहुत फूल-सी बच्ची है, बहुत कोमल और धीमी आवाज है उसकी... सुनहरे बाल और चेहरा ऐसा पीला और दुबला-पतला कि पूछिए नहीं)। वह बोली, 'कतेरीना इवानोव्ना, क्या आप सचमुच मुझसे वही काम करवाना चाहती हैं और दार्या फ्रांत्सोव्ना जैसी बदचलन औरत, जिसे पुलिस अच्छी तरह जानती है, दो-तीन बार मकान-मालकिन के जरिए उसे घेरने की कोशिश कर चुकी थी। 'क्यों, हर्ज ही क्या है कतेरीना इवानोव्ना ने ताने से कहा, 'तुम कहाँ की ऐसी अनमोल रतन लिए हुए हो कि तुम्हें सहेज कर रखा जाए!' लेकिन उसे दोष न दीजिए, साहब, उसे दोष न दीजिए! जिस वक्त उसने यह बात कही थी उस वक्त वह आपे में नहीं थी। अपनी बीमारी की वजह से और भूखे बच्चों के रोने-बिलखने की वजह से उसके होश उस वक्त ठिकाने नहीं थे; उसने वह बात किसी और वजह से नहीं, बस उसे चोट पहुँचाने के लिए कही थी... क्योंकि कतेरीना इवोनाव्ना का ऐसा ही स्वभाव है और जब बच्चे रोने लगते हैं, चाहे वे भूख से क्यों न रो रहे हों, वह फौरन उन्हें धुन कर रख देती है। कोई छह बजे मैंने देखा कि सोन्या उठी, सर पर रूमाल बाँधा, कंधे पर बिना आस्तीन का कोट डाला और कमरे के बाहर चली गई। वह लगभग नौ बजे लौटी। सीधे कतेरीना इवानोव्ना के पास गई और चुपचाप उनके सामने मेज पर तीस रूबल रख दिए। उसने एक बात भी नहीं कही, उनकी ओर देखा तक नहीं, बस हमारी बड़ी-सी हरे रंग की जनाना शाल उठाई (हम लोगों के पास बस एक शाल है, जनाना) और उसे सिर तक ओढ़ कर, दीवार की तरफ मुँह करके चारपाई पर लेट गई। उसके छोटे-छोटे कंधे और उसका सारा शरीर काँपता रहा... और मैं वहीं पड़ा रहा, बिलकुल वैसे ही जैसे पहले पड़ा था... और तब मैंने देखा, ऐ नौजवान, कि कतेरीना इवानोव्ना उसी तरह चुपचाप सोन्या की छोटी-सी चारपाई के पास गई; सारी रात घुटनों के बल बैठी सोन्या के पाँव चूमती रही, किसी तरह वहाँ से उठने का नाम न लिया, और फिर दोनों एक-दूसरे की बाँहों में लिपट कर सो गईं... एक साथ... जी हाँ... और मैं... मैं शराब के नशे में धुत पड़ा रहा।'

मार्मेलादोव अचानक चुप हो गया, गोया उसकी आवाज जवाब दे गई हो। फिर उसने जल्दी-जल्दी अपना गिलास भरा, गटका और अपना गला साफ किया।

'तो उसी वक्त से साहब,' कुछ देर रुक कर उसने फिर कहना शुरू किया, 'उसी वक्त से, कुछ तो बदनसीबी के हालात पैदा हो जाने की वजह से और कुछ बुरा चाहनेवाले लोगों के कान भरने की वजह से - जिसमें दार्या फ्रांत्सोव्ना ने, इस बहाने की आड़ ले कर कि उसके साथ इज्जत का सलूक नहीं किया गया था, बहुत बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया - उसी वक्त से मेरी बेटी सोन्या सेम्योनोव्ना को मजबूर हो कर पीला टिकट लेना पड़ा और इस वजह से वह अब हमारे साथ नहीं रह सकती। हमारी मकान-मालकिन अमालिया फ्योदोनोव्ना इस बात को सुनने तक को तैयार नहीं है (हालाँकि पहले उसी ने दार्या फ्रांत्सोव्ना को बढ़ावा दिया था) और मिस्टर लेबेजियातनिकोव भी... हुँह... उनके और कतेरीना इवानोव्ना के बीच जो बखेड़ा हुआ था वह सारा सोन्या को ले कर हुआ। पहले तो वह खुद सोन्या पर डोरे डाल रहे थे पर फिर अचानक उन्हें अपनी मान-मर्यादा का बहुत खयाल पैदा हो गया। बोले, 'मेरे जैसा इतना पढ़ा-लिखा आदमी उस जैसी लड़की के साथ उसी घर में कैसे रह सकता है?' तो कतेरीना इवानोव्ना भला कब ऐसी बात बर्दाश्त करनेवाली थी; उसने डट कर उसकी तरफदारी की... तो सारा किस्सा यह था। सो अब सोन्या हमारे यहाँ आती भी है तो ज्यादातर अँधेरा हो जाने के बाद; कतेरीना इवानोव्ना को तसल्ली देती है और जो कुछ बन पड़ता है, दे जाती है... उसने कापरनाउमोव के यहाँ एक कमरा ले रखा है; उसी के यहाँ किराए पर रहती है। कापरनाउमोव एक दर्जी है, लँगड़ा है और हकलाता है, उसके परिवार के सभी लोग हकलाते हैं, और उसकी बीवी भी हकलाती है... वे सभी एक कमरे में रहते हैं, लेकिन सोन्या के पास अपना कमरा है, जो आड़ लगा कर अलग कर दिया गया है... हुँह... वे सब बहुत गरीब लोग हैं और सभी हकलाते हैं... जी हाँ। तो मैं सबेरे उठा, अपने फटे-पुराने कपड़े पहने, दोनों हाथ आसमान की तरफ उठा कर दुआ माँगी, और महामहिम इवान अफानासिविच के यहाँ जाने के लिए चल पड़ा। महामहिम इवाना अफानासिविच, उन्हें तो आप जानते होंगे नहीं जानते फिर तो आप सचमुच एक बहुत ही अच्छे आदमी को नहीं जानते। वे मोम हैं... भगवान जानता है, बिलकुल मोम; मोम की ही तरह पिघल भी जाते हैं! मेरी कहानी सुन कर उनकी आँखें डबडबा आईं। कहा, 'मार्मेलादोव, तुम पहले एक बार मेरी उम्मीदों पर पानी फेर चुके हो... मैं एक बार फिर तुम्हें रख लूँगा, खुद अपनी जिम्मेदारी पर' - यही शब्द थे उनके, 'याद रखना', उन्होंने कहा, 'और अब तुम जा सकते हो।' मैंने उनके पाँव की धूल को चूमा - मेरा मतलब है मन ही मन, क्योंकि सचमुच तो वे मुझे कभी ऐसा नहीं करने देते, क्योंकि वे राजनेता हैं और आधुनिक राजनीतिक और प्रगतिशील विचारों के आदमी हैं। मैं घर लौट आया और जब मैंने सबको बताया कि मैं नौकरी पर फिर बहाल कर दिया गया हूँ और मुझे तनख्वाह मिला करेगी, तो कसम से, कैसा जश्न हुआ...'

मार्मेलादोव एक बार फिर बहुत उत्तेजित हो कर रुक गया। उसी वक्त पहले से ही शराब पिए हुए लोगों की पूरी टोली सड़क पर से हंगामा मचाती हुई अंदर आ गई। शराबखाने के दरवाजे पर सात साल का एक लड़का किराए के आर्केरियन पर अपनी महीन आवाज में 'छोटा-छोटा झोंपड़ा' गा रहा था। सारा कमरा शोर से भर गया। शराबखाने का मालिक और छोकरे नए गाहकों में उलझ गए। मार्मेलादोव ने नए आनेवालों की ओर कोई ध्यान दिए बिना अपना किस्सा जारी रखा। लगता था अब तक वह बेहद कमजोर हो चुका है, लेकिन उस पर शराब का नशा जितना ही ज्यादा चढ़ता गया, वह उतनी ही ज्यादा बातें करने लगा। लगता था नौकरी पाने में उसे हाल ही में जो सफलता मिली थी, उसकी याद करके उसमें नई जान आ गई थी, और यह बात निश्चित रूप से उसके चेहरे पर एक तरह की चमक में झलक रही थी। रस्कोलनिकोव ध्यान से सुनता रहा।

'यह बात पाँच हफ्ते पहले की है, जनाब। जी हाँ... तो जैसे ही कतेरीना इवानोव्ना और सोन्या ने इसके बारे में सुना, दया हो ऊपरवाले की हम पर, ऐसा लगा कि मैं स्वर्ग में पहुँच गया हूँ। पहले होता यह था कि जानवर की तरह पड़े रहो, कुछ भी गालियों के अलावा नहीं मिलता था। अब वे दबे पाँव चलती थीं, बच्चों से चुप रहने को कहती थीं। उन्हें समझाती थीं : 'सेम्योन जखारोविच दफ्तर में काम करते-करते थक गए हैं, आराम कर रहे हैं, शिः!' मेरे काम पर जाने से पहले वे मेरे लिए कॉफी बनाती थीं और उसमें क्रीम डाल कर देती थीं! अब वे मेरे लिए कहीं से असली क्रीम लाने लगीं, सुन रहे हैं न आप और मेरी समझ में यह भी नहीं आता कि कहाँ से उन्होंने मेरे पहनने के लिए ढंग के कपड़ों के पैसे जुटाए - पूरे ग्यारह रूबल पचास कोपेक। जूते, बेहतरीन सूती कमीज का सामना, कोट-पतलून। उन्होंने हर चीज बहुत ठाठदार जुटाई थी, महज साढ़े ग्यारह रूबल में। पहले दिन मैं शाम को जरा जल्दी लौटा तो क्या देखता हूँ कि कतेरीना इवानोव्ना ने दो कोर्स का डिनर तैयार कर रखा है - सूप और मसालेदार गोश्त, और मूली की चटनी -हमने कभी ऐसे खाने की कल्पना भी उस वक्त तक नहीं की थी। उसके पास ढंग के कपड़े नहीं हैं... हैं ही नहीं, लेकिन वह ऐसी सजी-सँवरी जैसे किसी से मिलने जा रही हो। और ऐसा भी नहीं कि उसके पास इसका साज-सामान रहा हो, वह तो बिना किसी चीज के सज गई। उसने सलीके से अपने बाल बनाए, जैसा भी बन पड़ा एक साफ कालर लगाया, आस्तीनों के सिरे पर कफ लगाए, और आप देखते कि कैसी कायापलट हो गई थी उसकी। पहले से ज्यादा जवान, और ज्यादा खूबसूरत। मेरी प्यारी बच्ची सोन्या ने तो सिर्फ पैसे से मदद की थी। उसने कहा था, 'अभी मेरे लिए यहाँ बहुत ज्यादा आना-जाना और आप लोगों से मिलना ठीक नहीं रहेगा। बस कभी-कभी अँधेरा हो जाने के बाद, जब कोई देख न सके।' सुना आपने खाना खा कर मैं एक झपकी लेने के लिए लेटा, और फिर क्या हुआ जानते हैं आप अभी पिछले ही हफ्ते कतेरीना इवानोव्ना का हमारी मकान-मालकिन अमालिया फ्योदोरोव्ना से भयानक झगड़ा हुआ था, लेकिन उस वक्त वह उसे कॉफी पीने के लिए बुलाए बिना न रह सकी। दो घंटे तक वे दोनों बैठी आपस में खुसर-पुसर करती रहीं। 'अब सेम्योन जखारोविच की फिर नौकरी लग गई है और तनख्वाह मिलने लगी,' वह बोली, 'वह खुद महामाहिम के पास गए थे और महामहिम खुद इनसे मिलने बाहर आए; बाकी सब लोगों को वहीं बाहर बिठाए रख कर वह सेम्योन जखारोविच का हाथ पकड़ कर सबके सामने, उन्हें अपने कमरे में ले गए।' सुनते हैं, कुछ सुना आपने 'यकीनन', वे बोले, 'सेम्योन जखारोविच, तुम्हारी पिछली खिदमतों को देखते हुए, वे बोले, और उस नादानी की कमजोरी की तरफ तुम्हारे झुकाव के बावजूद, चूँकि तुम अब वादा करते हो और इसके अलावा चूँकि तुम्हारे बिना हमारा काम भी ठीक से नहीं चल रहा है' (सुना आपने, कुछ सुना!) 'इसलिए', वे बोले, 'एक शरीफ आदमी की तरह तुम जो वादा कर रहे हो, उस पर मैं यकीन करता हूँ।' और मैं, आपको यकीन दिलाता हूँ कि ये सारी बातें उसने अपने मन से गढ़ी थीं। सिर्फ मन की मौज में आ कर नहीं या सिर्फ डींग मारने के लिए नहीं। जी नहीं, उसे इन सारी बातों पर खुद यकीन है, उसे अपने हवाई महल बनाने में मजा आता है, मेरी बात मानिए, उसे सचमुच मजा आता है। तो मैं इसके लिए उसे दोष भी नहीं देता। जी नहीं, मैं उसे बिलकुल दोष नहीं देता! ...छह दिन हुए मैंने अपनी पहली तनख्वाह पूरी की पूरी ला कर उसे दी - पूरे तेईस रूबल चालीस कोपेक - तो उसने मुझे बड़े लाड़ से अपना गुड्डा कहा था। 'गुड्डू', उसने कहा था, 'मेरे अच्छे गुड्डू।' और जब हम दोनों अकेले थे तो आप समझते हैं न आप मुझे बहुत खूबसूरत नहीं कहेंगे, शौहर की हैसियत से भी आप मुझमें कोई खास खूबी नहीं सोचते होंगे, क्यों है, न यही बात खैर, उसने मेरे गाल पर चुटकी भरी और बोली, 'मेरे अच्छे गुड्डू!'

मार्मेलादोव बातें करते-करते रुक गया और मुस्कराने की कोशिश की, पर अचानक उसकी ठोड़ी फड़कने लगी। लेकिन उसने अपने को किसी तरह सँभाला। यह शराबखाना, उस आदमी की फटीचर हालत, भूसे की नाव पर पाँच रातें काटना, और शराब की बोतल गटक जाना, फिर भी अपनी बीवी और बच्चों के लिए ऐसा दर्द भरा प्यार कि सुननेवाला दंग रह जाए! रस्कोलनिकोव उसकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था लेकिन साथ ही उसे बेचैनी भी हो रही थी। उसे उलझन हो रही थी कि यहाँ आया ही क्यों।

'जनाब, आली जनाब,' मार्मेलादोव ने अपने आपको पूरी तरह सँभाल कर ऊँची आवाज में कहा। 'अरे, जनाब, यह सब शायद आपको भी हँसी की बात लगती हो, जैसे दूसरों को लगती है, और शायद आपको मेरी घरेलू जिंदगी की इन छोटी-छोटी, बेवकूफी भरी बातों की वजह से उलझन हो रही हो, लेकिन मेरे लिए यह हँसी की बात नहीं है। क्योंकि इन सारी बातों को मैं महसूस करता हूँ... तो अपनी जिंदगी का वह पूरा सुनहरा दिन जब मेरी जिंदगी स्वर्ग बन गई थी, और वह पूरी शाम मैंने यही सपने बुनने में काट दी थी कि किस तरह मैं हर चीज का बंदोबस्त करूँगा, किस तरह सब बच्चों को अच्छे कपड़े पहनाऊँगा, किस तरह अपनी बीवी को कुछ आराम का मौका दूँगा और किस तरह अपनी बेटी को बेइज्जती की जिंदगी से छुटकारा दिला कर एक बार फिर उसके परिवार के दिल में बसाऊँगा और इसी तरह की न जाने कितनी और बातें। ...बिलकुल समझ में आनेवाली बात है, जनाब! खैर, तो फिर हुआ यह,' (मार्मेलादोव अचानक जैसे चौंक पड़ा, उसने अपना सर ऊपर उठाया और सुननेवाले की आँखों में आँखें डाल कर उसे घूरने लगा), 'तो हुआ यह कि वे सारे सपने बुनने के बाद अगले ही दिन, यानी ठीक पाँच दिन पहले, रात को मैंने तिकड़म से चोरों की तरह, कतेरीना इवानोव्ना के पास से उसके संदूक की चाभी उड़ा ली; मेरी तनख्वाह में से जो कुछ बचा था वह निकाल लिया... कितना था, यह अब मुझे याद भी नहीं रहा। और अब मेरी हालत देखिए आप सब लोग देखिए! घर छोड़े आज मुझे पाँचवाँ दिन है, और वहाँ सब लोग मुझे खोज रहे होंगे, मेरी नौकरी खत्म हो चुकी होगी, और मेरा कोट-पतलून मिस्त्री पुल के पास एक शराबखाने में पड़ा है। उसके बदले में मैंने ये कपड़े लिए थे, जो मैंने इस वक्त पहन रखे हैं। ...और अब कुछ भी नहीं रह गया, सब कुछ खत्म हो चुका है!'

मार्मेलादोव ने मुक्के से जोर से अपना माथा पीटा, दाँत कस कर भींचे, आँखें बंद कर लीं और मेज पर कुहनियाँ टिका कर, उन पर अपना सारा बोझ डाल कर झुक गया। लेकिन एक ही मिनट बाद उसके चेहरे का रंग अचानक बदल गया। जान-बूझ कर मक्कारी करते हुए और कुछ बनावटी शेखी के अंदाज से उसने एक नजर रस्कोलनिकोव को देखा, हँसा, और बोला :

'आज सुबह मैं सोन्या से मिलने गया था। उससे तलब मिटाने के लिए कुछ पैसे माँगने गया था! ही-ही-ही!'

'दिए तो नहीं होंगे उसने,' नए आनेवालों में से एक आदमी जोर से बोला। उसने यह बात चिल्ला कर कही और ठहाका मार कर हँस पड़ा।

'यह बोतल तो खरीदी गई है उसी के पैसे से,' मार्मेलादोव ने सिर्फ रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहा। 'तीस कोपेक उसने अपने हाथ से मुझे दिए थे। ये आखिरी पैसे थे उसके, कल उसके पास इतने ही थे; मैंने अपनी आँखों देखा था। ...कुछ बोली नहीं, बस कुछ कहे बिना मेरी ओर देखा। ...इस तरह किसी को दोष दिए बिना इनसानों का मातम यहाँ, इस धरती पर नहीं, वहाँ ऊपर... किया जाता है। उन पर रोते हैं, लेकिन कोई दोष नहीं देते उन्हें! लेकिन उससे ज्यादा तकलीफ होती है; जब कोई दोष नहीं देता तो ज्यादा तकलीफ होती है। तीस कोपेक, जी हाँ! हो सकता है उसे उनकी जरूरत पड़े, क्यों आपका क्या खयाल है, जनाब उसे भी तो अब बड़े बनाव-सिंगार से रहना पड़ता है। पैसा लगता है इस सज-धज में, इस खास किस्म की सज-धज में, आप जानते ही होंगे समझ रहे हैं न आप और फिर, देखिए न, पाउडर-क्रीम का भी तो खर्च है। उसे तो सभी चीजों की जरूरत है; बढ़िया घेरेदार साया, कलफ लगा हुआ। जूतियाँ भी होनी चाहिए, सचमुच बाँकी जूतियाँ ताकि जब वह कीचड़ भरा गड्ढा पार करने को कदम उठाए तो सबकी नजरें उसके पाँव पर जम कर रह जाएँ। आप समझ रहे हैं न जनाब, आप जानते ही होंगे कि इस सारी सज-धज का मतलब क्या होता है। और एक मैं हूँ, उसका सगा बाप, कि उस पैसे में से भी तीस कोपेक शराब पीने के लिए मार लाया! और मैं वही शराब पी रहा हूँ! बल्कि पी चुका हूँ! बताइए, मुझ जैसे आदमी पर कौन तरस खाएगा, बोलिए आपको मुझे देख कर अफसोस होता है कि नहीं जनाब बताइए, आपको दुख होता है कि नहीं... ही-ही-ही।'

वह अपना गिलास फिर भर लेना चाहता था, लेकिन शराब बची ही नहीं थी। बोतल खाली थी।

'तुम पर कोई क्यों तरस खाए?' शराबखाने के मालिक ने फिर उसके पास आ कर, ऊँची आवाज में पूछा।

इसके बाद ठहाकेदार हँसी और ऊँची आवाज में गालियों का शोर सुनाई दिया। ये ठहाके और गालियाँ उन लोगों की थीं जो उसकी बातें सुन रहे थे और उनकी भी जिन्होंने कुछ भी नहीं सुना था, बल्कि नौकरी से निकाल दिए गए उस सरकारी क्लर्क को देख भर रहे थे।

'तरस खाए! मुझ पर कोई क्यों तरस खाए,' मार्मेलादोव अचानक अपना हाथ आगे बढ़ा कर खड़ा हो गया और भाषण देने लगा, गोया इसी सवाल की राह देख रहा था। 'मुझ पर कोई क्यों तरस खाए, आप कहते हैं जी हाँ! कोई वजह नहीं कि मुझ पर कोई तरस खाए! मुझ पर तरस नहीं खाया जाना चाहिए, मुझे तो फाँसी पर लटकाया जाना चाहिए, सूली चढ़ा देना चाहिए! मुझे सूली पर चढ़ा दो, ऐ इन्साफ करनेवालो, मुझे सूली पर चढ़ा दो लेकिन मुझ पर तरस खाओ! और फिर मैं सूली पर चढ़ने के लिए अपने आप चला जाऊँगा, क्योंकि मैं खुशी नहीं ढूँढ़ रहा हूँ, मुझे तो बस आँसुओं की और दर्द की तलाश है! क्या तुम यह बात समझते हो, तुम जो कि शराब बेचते हो, कि तुम्हारा यह अद्धा मुझे पीने में मीठा लगा इसकी तलछट में मुझे दर्द की तलाश थी, आँसुओं की और दर्द की, और सो मुझे मिल गया। सो मैंने उसे चखा। लेकिन मुझ पर तरस खाएगा वह ऊपरवाला जिसके दिल में हर इनसान के लिए रहम है, जिसने हर इनसान को और हर चीज को समझा है और वही एक इन्साफ करनेवाला भी है। वह उस दिन आएगा और पूछेगा : 'कहाँ है वह बेटी जिसने अपनी चिड़चिड़ी तपेदिक की मरीज सौतेली माँ के लिए, किसी और के नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए अपने आपको कुर्बान कर दिया कहाँ है वह बेटी जिसने एक गंदे शराबी की, अपने दुनियावी बाप की, दरिंदगी से जरा भी डरे बिना उस पर तरस खाया और वह कहेगा : 'मेरे पास आ! मैं एक बार तुझे माफ कर चुका हूँ... मैंने तुझे एक बार पहले भी माफ किया है। तेरे वे गुनाह बख्शे जाते हैं जिनकी कोई हद नहीं है, क्योंकि तूने बहुत प्यार किया है...' और वह मेरी सोन्या को माफ कर देगा, माफ कर देगा... मैं जानता हूँ... अभी जब मैं उसके पास था, मुझे दिल में ऐसा ही लग रहा था! और वह करेगा इन्साफ और कर देगा सबको माफ... अच्छों को भी और बुरों को भी, उन्हें भी जो समझदार हैं और उन्हें भी जो नादान हैं... और जब वह उन सबको निबटा चुका होगा तब हमें बुलाएगा। कहेगा : 'तुम भी आओ। आगे आओ, ऐ शराबियो, आगे आओ तुम लोग जो कि कमजोर हो, आगे आओ ऐ बेशर्म लोगो!' और हम सब आगे बढ़ेंगे, बिना किसी शर्म के, और जा कर उसके सामने खड़े हो जाएँगे। और वह हमसे कहेगा : 'सुअर हो तुम लोग, जानवरों के साँचे में ढले हुए हो, तुम्हारे ऊपर दरिंदगी की छाप है लेकिन आओ, तुम भी आओ!' और जो लोग अक्लमंद हैं, जो समझदार हैं वे कहेंगे : 'या खुदा, तू अपने पास क्यों इन लोगों को बुला रहा है?' और वह कहेगा : 'मैं इन्हें अपने पास इसलिए बुला रहा हूँ, ऐ अक्लवालो... मैं इन्हें इसलिए अपने पास बुला रहा हूँ, ऐ समझदारो कि इनमें से एक भी अपने आपको इसके लायक नहीं समझता था...' फिर वह हमारी ओर अपने हाथ बढ़ाएगा और हम उसके कदमों पर गिर पड़ेंगे... हम रोएँगे-गिड़गिड़ाएँगे... और हर बात हमारी समझ में आ जाएगी! उस वक्त हर बात हमारी समझ में आ जाएगी! ...सबकी समझ में आ जाएगी... कतेरीना इवानोव्ना समेत...

...ऐ मालिक, बना रहे तेरा राज।'

यह कह कर वह निढाल, एकदम बेबस हो कर, बेंच पर बैठ गया। उसने किसी की ओर नहीं देखा; उसे अपने इर्द-गिर्द की कोई खबर ही नहीं थी और वह गहरे सोच में डूबा हुआ था। उसके शब्दों का कुछ असर हुआ था। एक पल खामोशी रही, लेकिन थोड़ी ही देर में फिर ठहाके और गालियाँ सुनाई देने लगीं :

'यह इसकी अपनी समझ है!'

'बेवकूफी की बातें करता है!'

'हाकिम है न!' वगैरह-वगैरह!

'आइए चलें, साहब,' मार्मेलादोव ने अचानक अपना सर उठा कर रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहा। 'आप मुझे घर तक छोड़ देंगे, कोजेल का घर है, अहाते के अंदरवाला। बहुत देर हो चुकी है, अब मुझे कतेरीना इवानोव्ना के पास जाना ही चाहिए।'

रस्कोलनिकोव काफी पहले ही वहाँ से उठ जाना चाहता था और सचमुच उसकी मदद करना चाहता था। मार्मेलादोव की जबान से ज्यादा उसके कदम लड़खड़ा रहे थे और उसने अपना सारा बोझ उस नौजवान पर डाल रखा था। उन्हें कोई दो-तीन सौ कदम जाना था। जैसे-जैसे घर पास आता गया, उस शराबी के डर और बौखलाहट में इजाफा होता गया।

'अब मुझे कतेरीना इवानोव्ना का डर नहीं,' वह अपनी बेचैनी में बुदबुदाया, 'और न इस बात का कि वह मेरे बाल पकड़ कर खींचेगी। मेरे बालों की बिसात ही क्या! भाड़ में जाएँ मेरे बाल! मेरा तो यही कहना है! सच तो यह है कि अच्छा यही होगा, वह मेरे बाल खींचे। उससे मुझे डर नहीं लगता। ...मुझे डर लगता है उसकी आँखों से! ...जी हाँ, उसकी आँखों से... उसके गालों की तमतमाहट से भी डर लगता है... और उसके साँस लेने से भी। आपने कभी देखा है कि इस बीमारी में लोग किस तरह साँस लेते हैं, जब उन्हें तैश आता है मुझे बच्चों के रोने से भी डर लगता है... क्योंकि अगर सोन्या ने उनके लिए खाने को कुछ नहीं भेजा होगा... तो न जाने क्या हुआ होगा! पता नहीं क्या हुआ होगा! लेकिन पिटने से मैं बिलकुल नहीं डरता... मैं आपको यह बता दूँ, साहब, इस तरह की पिटाई से मुझे कोई दर्द नहीं होता, बल्कि मजा ही आता है। सच तो यह है कि उनके बिना मेरा काम ही न चले... इस तरह ज्यादा अच्छा रहता है। वह मुझे खूब मारे, इससे उसके दिल का बोझ हल्का हो जाता है... यही बेहतर है... वह रहा घर। कोजेल का घर, वही जो ताले-चाभी बनाता है... जर्मन है, खाता-पीता आदमी है। आप जनाब, आगे-आगे चलिए!'

अहाता पार करके वे तीसरी मंजिल पर चढ़ गए। जैसे-जैसे वे ऊपर चढ़ते गए, सीढ़ियों पर अँधेरा बढ़ता गया। लगभग ग्यारह बजे थे। हालाँकि पीतर्सबर्ग में गर्मियों में रात तो होती ही नहीं है, फिर भी सीढ़ियों के ऊपर काफी अँधेरा था।

सीढ़ियों के ऊपरी सिरे पर एक छोटा-सा गंदा दरवाजा पूरा खुला हुआ था। दरवाजे से ही सारा कमरा दिखाई देता था। कोई दस कदम लंबा कमरा जिसमें थोड़ा-सा टूटा-फूटा फर्नीचर था, एक छोटी-सी शमा जल रही थी। हर चीज इधर-उधर बिखरी पड़ी थी। तरह-तरह के फटे-पुराने कपड़े चारों ओर पड़े हुए थे, खास तौर पर बच्चों के पहनने के कपड़े। दूरवाले सिरे पर एक फटी हुई चादर लटकी हुई थी। उसके पीछे शायद चारपाई रही होगी। कमरे में दो कुर्सियों और एक सोफे के अलावा कुछ भी नहीं था। सोफे पर मोमजामा चढ़ा हुआ था जिसमें जगह-जगह छेद थे। उसके सामने पुराने ढंग की एक चाय की मेज थी। बेरंग-रौगन और बे-मेजपोश ही था। मेज के सिरे पर, लोहे के शमादान में एक सिसकती हुई शमा जल रही थी। लगता था उस परिवार के पास कमरे का एक हिस्सा नहीं, पूरा कमरा था लेकिन उनका कमरा एक तरह से आवाजाही का रास्ता था। दूसरे कमरों में, बल्कि कहना चाहिए उन दूसरे कबूतरखानों में, जिनमें अमालिया लिप्पेवेख्सेल का घर बँटा हुआ था, जाने का दरवाजा आधा खुला हुआ था और इधर से शोर-गुल, हू-हा और ठहाकों की आवाजें आ रही थीं। लोग वहाँ शायद ताश खेल रहे थे और चाय पी रहे थे। बीच-बीच में उधर से बहुत बेहूदा किस्म की बातें भी सुनाई दे जाती थीं।

रस्कोलनिकोव ने कतेरीना इवानोव्ना को फौरन पहचान लिया। वह जरा लंबे कद और छरहरे बदन की सुडौल औरत थी - बेहद दुबली-पतली, सूखी हुई। गहरे बादामी रंग के शानदार बाल और गालों पर तमतमाहट की लाली। दोनों हाथों से अपना सीना दबाए हुए, उस छोटे से कमरे के एक से दूसरे सिरे तक टहल रही थी। होठ सूखे हुए थे और साँस उखड़ी-उखड़ी चल रही थी। उसकी आँखें ऐसी चमक रही थीं जैसे बुखार में चमकती हैं और बड़ी कठोरता से आस-पास की चीजों पर जम कर उन्हें घूर रही थीं। शमा के आखिरी टुकड़े की झिलमिलाती रौशनी में उसके तपेदिक के मारे हुए उत्तेजित चेहरे को देख कर बड़ी तकलीफ होती थी। रस्कोलनिकोव के हिसाब से वह कोई तीस साल की रही होगी और यकीनन मार्मेलादोव से बहुत ऊपर कोई चीज लगती थी... उसने न उसकी आहट सुनी, न उन्हें अंदर आते देखा। लगता था वह विचारों में खोई हुई है, न कुछ सुन रही है न देख रही है। कमरे में घुटन थी लेकिन उसने खिड़की नहीं खोली थी। सीढ़ियों से बदबू आ रही थी लेकिन उसने सीढ़ियों की ओर जानेवाला दरवाजा बंद नहीं किया था। अंदरवाले कमरे से धुएँ के बादल इधर आ रहे थे। वह खाँसती रही लेकिन उसने दरवाजा बंद नहीं किया। सबसे छोटी बच्ची, एक छह बरस की लड़की, फर्श पर गठरी बनी, सोफे से सर टिकाए सो रही थी। एक लड़का, जो उम्र में उससे साल भर बड़ा होगा, एक कोने में खड़ा थरथर काँप रहा था और रो रहा था। शायद उसे अभी-अभी मार पड़ी थी। उसके पास ही कोई नौ साल की लंबी-सी सींक जैसी पतली लड़की खड़ी थी। वह एक महीन-सी फटी हुई कमीज पहने थी और अपने खुले हुए कंधों पर उसने एक बेहद पुराना, जनाना ऊनी लबादा डाल रखा था। यह कोई दो साल पहले बना होगा और मुश्किल से उसके घुटनों तक पहुँचता था। उसकी लकड़ी जैसी सूखी हुई एक बाँह अपने भाई की गर्दन में पड़ी हुई थी। वह उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी और बहला-फुसला रही थी कि और न रोए। साथ ही वह अपनी बड़ी-बड़ी, काली आँखों से, जो उसके भयभीत दुबले-पतले चेहरे पर और भी बड़ी लगती थीं, आतंकित हो कर अपनी माँ को देख रही थी। मार्मेलादोव दरवाजे के अंदर नहीं घुसा बल्कि चौखट पर ही घुटनों के बल गिर पड़ा, और रस्कोलनिकोव को आगे कर दिया। औरत एक अजनबी को सामने खड़ा पा कर ठिठक गई और निरीह भाव से उसके सामने खड़ी हो गई। एक पल बाद वह सँभली और सोच में पड़ गई कि वह आदमी वहाँ क्यों आया होगा। लेकिन स्पष्ट रूप से वह इसी नतीजे पर पहुँची कि उसे बगलवाले कमरे में जाना होगा और उसके कमरे से हो कर ही वह वहाँ जा सकता था। यह सझ कर उसकी ओर और अधिक ध्यान दिए बिना वह बाहरवाला दरवाजा बंद करने उधर बढ़ी और चौखट पर अपने पति को घुटनों के बल बैठा देख कर अचानक चीख पड़ी।

'आहा!' वह जुनून से पागल हो कर चीखी, 'आ गया वापस! पापी! पिशाच! ...कहाँ है पैसा? जेब में क्या है, दिखा! और कपड़े भी वे नहीं हैं! कहाँ गए कपड़े कहाँ है पैसा बोल!'

इतना कह कर वह तलाशी लेने के लिए उस पर टूट पड़ी। मार्मेलादोव ने भीगी बिल्ली की तरह जरा भी चूँ-चपड़ किए बिना, दोनों हाथ ऊपर उठा दिए ताकि उसे तलाशी लेने में कोई कठिनाई न हो। उसके पास एक दमड़ी भी नहीं थी।

'कहाँ है पैसा?' उसने चीख कर पूछा। 'हे भगवान, सारा-का-सारा पी तो नहीं गया संदूक में चाँदी के बारह रूबल बचे थे!' यह कह कर उसने मार्मेलादोव को बाल पकड़ कर झिंझोड़ा और उसे कमरे में खींच लाई। मार्मेलादोव ने खुद घुटनों के बल रेंग कर उसकी इस कोशिश में मदद की।

'इसी से राहत मिलती है मुझे! इससे मुझे कोई तकलीफ नहीं होती, बल्कि यह मेरे लिए बड़ी रा-ह-त की बा-त है, जना-ब' वह चिल्ला कर बोलता रहा। उसे बाल पकड़ कर झिंझोड़ा जा रहा था और एक बार तो उसने खुद अपना माथा जमीन पर दे पटका। फर्श पर सोई बच्ची जाग पड़ी और रोने लगी। कोने में खड़ा लड़का भी धीरज खो बैठा और बेहद सहम कर, चिल्लाता हुआ अपनी बहन से चिपट गया, मानो उसे कोई दौरा पड़ा हो। बड़ी बेटी पत्ते की तरह काँप रही थी।

'सारा पी गया! यह सारा-का-सारा पी गया!' बेचारी औरत घोर निराशा में रो-रो कर चिल्लाने लगी, 'कपड़े भी सब चले गए! और ये सब भूखे हैं, भूख से बेहाल!' अपने हाथ मल-मल कर उसने बच्चों की तरफ इशारा किया। 'अरे, लानत है ऐसी जिंदगी पर! और आपको, आपको भी शर्म नहीं आती,' यह कह कर वह अचानक रस्कोलनिकोव की ओर मुड़ी, 'सीधे शराबखाने से चले आ रहे हैं! तो आप भी इनके साथ पी रहे थे? पी रहे थे न! निकल जाइए यहाँ से!'

नौजवान एक भी शब्द बोले बिना, जल्दी से वहाँ से खिसक जाने को तैयार हुआ। इतने में किसी ने अंदरवाला दरवाजा पूरा खोल दिया था और उसमें से कौतूहल भरे चेहरे झाँकने लगे। मुँह में पाइप और सिगरेटें लगाए हुए भोंडे बदसूरत चेहरे, टोपियाँ पहने हुए सर दरवाजे पर आ कर जमा हो गए और तमाशा देखने लगे। अंदर कमरे में कुछ आकृतियाँ दिखाई दे रही थीं जिनके शर्मनाक हद तक थोड़े कपड़े थे; कुछ के हाथों में ताश के पत्ते थे। उस वक्त उन लोगों को खासतौर पर मजा आया जब मार्मेलादोव के बाल पकड़ कर उसे घसीटा जा रहा था और वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि इसमें उसे बड़ी राहत मिल रही थी। कुछ लोग तो कमरे में भी आ गए। आखिरकार एक तीखी भयानक आवाज सुनाई दी। यह आवाज खुद अमालिया लिप्पेवेख्सेल की थी जो धक्के दे कर लोगों के बीच से रास्ता बनाती हुई, अपने ढंग से व्यवस्था कायम करने की कोशिश करने के लिए आगे आ रही थी। वह उस बेचारी औरत को सौवीं बार डराने-धमकाने के लिए भद्दी-भद्दी गालियाँ दे रही थी और अगले ही दिन कमरा खाली कर देने का हुक्म दे रही थी। बाहर जाते-जाते रस्कोलनिकोव ने अपनी जेब में हाथ डाला और शराबखाने में दाम चुकाने के बाद रूबल में से जो रेजगारी मिली थी, उसमें से जितनी भी हाथ में आई, वह निकाल कर उसने सबकी आँख बचा कर खिड़की पर रख दी। बाद में, सीढ़ियाँ उतरते हुए उसकी नीयत बदली और वह वापस जाने का इरादा करने लगा।

'मैंने भी कितनी बड़ी बेवकूफी की है,' उसने मन में सोचा, 'उन्हें तो सोन्या का सहारा है पर मुझे तो खुद पैसों की जरूरत है।' लेकिन यह सोच कर कि अब वे पैसे वापस लेना नामुमकिन होगा, और वह यूँ भी उन्हें वापस न लेता, उसने झटके के साथ हवा में अपना हाथ घुमा कर इस विचार को अपने दिमाग से निकाल दिया और अपने घर वापस चला गया। 'सोन्या को क्रीम-पाउडर की भी तो जरूरत है,' उसने सड़क पर चलते-चलते कहा, और बड़ी तल्खी से हँसा, 'ऐसी सज-धज में पैसा लगता है... हुँह! और कौन जाने आज सोन्या के पास भी फूटी कौड़ी न हो, क्योंकि बड़ा शिकार फाँसने में... सोने की खान खोदने में हमेशा बहुत जोखिम रहता है... तब तो मेरे पैसों के बिना उनके पेट में कल एक दाना भी नहीं जाएगा। सोन्या जिंदाबाद! क्या सोने की खान हाथ लग गई है उनके! और वे भी उसका पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं! जी हाँ, पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं ये लोग उसका! वे इस बात पर बहुत रो-धो चुके और अब उन्हें इसकी आदत पड़ गई है। आदमी ठहरा बदमाश, उसे तो हर चीज की आदत पड़ जाती है।'

'पर अगर मेरा ऐसा सोचना गलत हुआ तो?' एक पल तक सोचने के बाद वह अचानक चीख पड़ा। 'अगर आदमी, मेरा मतलब है आम आदमी, इनसान की पूरी नस्ल, बदमाश न हो तो... बाकी सब कुछ हमारे अपने मन का खोट है, बनावटी है और कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। ऐसा ही होना भी चाहिए!'