अपराध और दंड / अध्याय 1 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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अगले दिन सुबह वह देर से उठा। उखड़ी-उखड़ी नींद के सबब उसमें कोई ताजगी नहीं आई थी। आँख खुलने पर वह झुँझलाया हुआ, चिड़चिड़ा और बदमिजाज हो रहा था और उसने अपने कमरे को बड़ी नफरत के साथ देखा। बहुत छोटा-सा, दड़बे जैसा कमरा, जिसकी लंबाई मुश्किल से छह कदम की रही होगी। हर तरफ कंगाली बरस रही थी। दीवारों पर धूल से अटा पीला कागज जगह-जगह से उखड़ने लगा था। कमरे की ऊँचाई भी इतनी कम थी कि औसत-कद आदमी को भी उलझन होती थी, हर वक्त यही डर लगा रहता था कि सर न जाने कब छत से टकरा जाए। जैसा कमरा था वैसा ही फर्नीचर भी था : तीन पुरानी कुर्सियाँ जिनकी चूलें हिल गई थीं; कोने में एक रँगी हुई मेज जिस पर कुछ कापियाँ और कुछ किताबें पड़ी थीं। उन पर धूल की मोटी परत जम गई थी जिससे पता चलता था कि उन्हें एक अरसे से किसी ने हाथ नहीं लगाया था। लगभग एक पूरी दीवार के सहारे एक बड़ा-सा बदसूरत सोफा पड़ा था जिसने आधे कमरे की जगह घेर रखी थी। किसी जमाने में उस पर छींट का कपड़ा मढ़ा गया था जो अब तार-तार हो चुका था, और अब वही सोफा रस्कोलनिकोव के लिए पलँग का काम देता था। अकसर वह कपड़े बदले बिना, चादर ओढ़े या बिछाए बगैर ही, छात्रोंवाला पुराना ओवरकोट लपेटे एक छोटे-से तकिए पर सिर रख कर सो जाता था, और उसे और ऊँचा करने के लिए उसके नीचे ओढ़ने-बिछाने के सारे मैले और साफ कपड़ों का ढेर लगा लेता था। सोफे के सामने एक छोटी-सी मेज पड़ी थी।

कंगाली और बदहाली के मामले में इससे नीची किसी सतह तक पहुँचना मुश्किल था, लेकिन इस वक्त रस्कोलनिकोव के दिमाग की जो हालत थी, उसमें उसे यह सब एकदम ठीक लगता था। उसने अपने आपको सबसे एकदम काट लिया था, जैसे कछुआ अपने खोल में सिमट जाता है; और जो नौकरानी उसकी सेवा-टहल करती थी और कभी-कभी कमरे में झाँक लेती थी, उसे भी देखते ही वह झुँझलाहट से तिलमिला उठता था। उसकी हालत उन सनकी लोगों जैसी हो रही थी जिनका ध्यान पूरी तरह किसी एक ही चीज पर लगा रहता है। उसकी मकान-मालकिन ने पिछले पंद्रह दिन से उसे खाना भिजवाना बंद कर दिया था, और अभी तक उसने इसके बारे में बात करने की सोची भी नहीं थी, हालाँकि उसे खाना खाए बिना ही रह जाना पड़ता था। नस्तास्या, जो खाना भी पकाती थी और मालकिन की अकेली नौकरानी थी, किराएदार की इस मनोदशा से काफी खुश थी। उसने उसके कमरे में झाड़ू देना, उसे ठीक-ठाक करना भी बंद कर दिया था। अब वह भूले-भटके, कभी आठवें-दसवें दिन उसके कमरे में झाड़ू ले कर आ जाती थी। उस दिन उसी ने उसे जगाया था।

'उठो। अभी तक सो रहे हो!' उसने पुकार कर उससे कहा। 'नौ बज चुके हैं। चाय लाई हूँ, एक प्याली पी लो। बहुत भूखे होगे!'

रस्कोलनिकोव ने चौंक कर आँखें खोली और नस्तास्या को पहचाना।

'चाय मकान-मालकिन ने भेजी है?' उसने धीरे से पूछा और बीमारों जैसी सूरत लिए हुए उठ कर सोफे पर बैठ गया।

'वो बड़ी आईं भेजनेवाली!'

उसने अपनी चिटकी हुई, हलकी और बासी चाय से भरी हुई चायदानी उसके सामने सजा दी और श कर के दो पीले डले रख दिए।

'ये ले नस्तास्या,' उसने अपनी जेब के अंदर टटोलते हुए (क्योंकि वह सारे कपड़े पहने हुए ही सो गया था) कुछ रेजगारी निकाली और बोला, 'जरा भाग कर मुझे एक डबलरोटी ला दे। और देखना, मिले तो कसाई के यहाँ से थोड़ी-सी सॉसेज भी लेती आना, वो जो सबसे सस्ती हो।'

'रोटी तो मैं अभी लाए देती हूँ, लेकिन सॉसेज की बजाय थोड़ा-सा बंदगोभी का शोरबा क्यों नहीं पी लेते बहुत बढ़िया शोरबा है, कल का। मैंने बचा कर रखा था लेकिन कल तुम देर से आए। सचमुच अच्छा शोरबा है।'

जब शोरबा आ गया और वह उसे पीने लगा तो नस्तास्या उसकी बगल में सोफे पर बैठ गई और बातें करने लगी। वह देहात की किसान औरत थी और बड़ी बातूनी थी।

'प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना पुलिस में तुम्हारी शिकायत करनेवाली हैं,' वह बोली।

उसने अजीब-सा टेढ़ा-मेढ़ा मुँह बनाया।

'पुलिस में क्यों, चाहती क्या है?'

'आप पैसा उन्हें देते नहीं और कमरा भी खाली नहीं करते। क्या चाहिए उन्हें, यह तो साफ है।'

'शैतान ले जाए उसे, यही चीज तो मेरे पास नहीं है,' वह दाँत पीस कर बुदबुदाया। 'नहीं, आजकल मेरे लिए यह मुमकिन ही नहीं है... वह भी बिलकुल बेवकूफ है,' उसने जोर से कहा। 'मैं आज ही जा कर उससे बात करूँगा।'

'बेवकूफ तो वह हैं, बेवकूफ जैसे मैं हूँ। लेकिन तुम अगर समझदार हो तो यहाँ पुराने बोरे की तरह पड़े क्यों रहते हो, फालतू? पहले तो तुम बाहर जाया करते थे। कहते थे बच्चों को पढ़ाने जाते हो। लेकिन अब क्यों कुछ नहीं करते?'

'कर रहा हूँ...' रस्कोलनिकोव ने उदासी से सकुचाते हुए कहना शुरू किया।

'क्या कर रहे हो?'

'काम...'

'कैसा काम?'

'मैं सोच रहा हूँ,' उसने कुछ देर रुक कर गंभीरता से जवाब दिया।

नस्तास्या हँसी से लोट-पोट हो गई। उसे हँसने की आदत थी और उसे कोई बात बहुत मजेदार लगती थी तो वह कोई आवाज निकाले बिना हँस पड़ती थी। उसका सारा बदन इतनी बुरी तरह काँपने और हिलने लगता था कि वह बेहाल हो जाती थी।

'और इसी सोचने के काम से तुमने बहुत पैसा कमाया है?' आखिरकार उसने किसी तरह बड़ी मुश्किल से कहा।

'ढंग के जूते भी न हों तो कोई कैसे पढ़ाने जाए और मैं इस काम से तंग आ चुका हूँ।'

'अपनी रोजी-रोटी से झगड़ा मोल मत लो।'

'पढ़ाने का पैसा भी तो कितना कम देते हैं। कोई चंद सिक्के ले कर करे तो क्या?' उसने झिझकते हुए जवाब दिया, मानो अपने ही विचारों का जवाब दे रहा हो।

'तो तुम चाहते हो कि एक बार में ही कहीं से छप्पर फाड़ कर दौलत मिल जाए।'

उसने नस्तास्या को अजीब ढंग से देखा।

'हाँ, मैं दौलत चाहता हूँ,' उसने कुछ देर रुक कर सधी आवाज में जवाब दिया।

'ऐसी बातें न करो, मुझे तुमसे डर लगने लगता है! अच्छा तो रोटी ला दूँ?'

'जैसी तुम्हारी मर्जी।'

'अरे हाँ, मैं तो भूल ही गई थी। कल जब तुम बाहर गए हुए थे, तुम्हारी एक चिट्ठी आई थी।'

'चिट्ठी मेरे लिए! किसकी?'

'सो मैं नहीं जानती। डाकिए को मैंने अपने पल्ले से तीन कोपेक दिए थे। लौटा दोगे न?'

'भगवान के लिए, वह चिट्ठी तो ला कर दो,' रस्कोलनिकोव बड़ी ब्रेसब्री से चिल्लाया। 'हे भगवान!'

एक पल में चिट्ठी ला कर उसे दे दी गई। तो यह बात थी : उसकी माँ ने भेजी थी, र. प्रांत से। उसका चेहरा चिट्ठी लेते ही पीला पड़ गया। एक जमाना हो गया था कि उसके पास कोई चिट्ठी नहीं आई थी। लेकिन अचानक एक और भावना उसके दिल में तीर की तरह चुभी।

'नस्तास्या, भगवान के लिए तुम जाओ। ये रहे तुम्हारे तीन कोपेक, लेकिन अब फौरन यहाँ से चली जाओ!'

खत उसके हाथों में काँप रहा था। उसे वह नस्तास्या के सामने नहीं खोलना चाहता था। वह चाहता था कि उस खत के साथ उसे अकेला छोड़ दिया जाए। नस्तास्या गई तो उसने झट से खत को होठों से लगा कर चूमा; फिर देर तक पता देखता रहा-छोटे-छोटे तिरछे अक्षरों की लिखावट, इतनी प्यारी और इतनी परिचित, उस माँ की जिसने कभी उसे पढ़ना-लिखना सिखाया था। वह झिझकता रहा; लगता था किसी बात से डर रहा हो। आखिरकार उसने खत खोला। बहुत मोटा भारी-भरकम खत था, दो औंस से ज्यादा ही रहा होगा। बहुत छोटे-छोटे अक्षरों की लिखाई में पूरे दो पन्ने भरे हुए थे।

'मेरे प्यारे रोद्या!'1 उसकी माँ ने लिखा था। 'दो महीने चिट्ठी के जरिए तुमसे बात किए हुए हो गए, जिसका मुझे बड़ा दुख है। रात-रात नींद नहीं आती, पड़े-पड़े सोचती रहती हूँ। लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि इस चुप्पी के लिए तुम मुझे दोष नहीं दोगे; क्योंकि मैं लाचार थी। तुम जानते हो, मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ। हम लोगों को, दूनिया को और मुझे, एक तुम्हारा ही सहारा रह गया है; तुम्हीं हम लोगों के सब कुछ हो, हमारी सारी आस-उम्मीद, हमारा अकेला आसरा। मुझे यह सुन कर कितना दुख हुआ कि कुछ महीने पहले तुमने यूनिवर्सिटी छोड़ दी, क्योंकि तुम्हारे पास साधन नहीं थे और तुम्हारे ट्यूशन और दूसरे काम भी तुमसे छूट गए थे। साल में मुझे पेंशन के एक सौ बीस रूबल मिलते हैं; उनमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ मैंने चार महीने पहले तुम्हें पंद्रह रूबल जो भेजे थे वह भी, तुम तो जानते ही हो, मैंने अपनी पेंशन की जमानत पर इस शहर के एक सौदागर अफनासी इवानोविच बाखरूशिन से उधार लिए थे। वह एक नेकदिल आदमी है और तुम्हारे बाप से उसकी दोस्ती भी थी। लेकिन उसे पेंशन वसूल करने का अधिकार दे देने के बाद कर्ज चुकने तक मुझे इंतजार करना पड़ा और वह अब जा कर चुका है। इसीलिए मैं इतने दिनों तुम्हें कुछ नहीं भेज सकी। लेकिन भगवान की दया से अब मैं समझती हूँ, मैं तुम्हें कुछ और भेज सकूँगी। और सच पूछो तो हमें अब अपने भाग्य को सराहना चाहिए, जिसका पूरा हाल मैं तुम्हें अभी बता देना चाहती हूँ। पहली बात तो यह है, प्यारे रोद्या, क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी बहन पिछले छह हफ्ते से मेरे साथ ही रह रही है और अब हमें आगे भी कभी अलग नहीं होना पड़ेगा। उसके सारे कष्ट भगवान की कृपा से दूर हो गए हैं, लेकिन मैं तुम्हें सारी बात सिलसिलेवार बता दूँ ताकि तुम्हें मालूम हो जाए कि यह सब कुछ कैसे हुआ, जिसे हमने अभी तक तुमसे छिपाए रखा। दो महीने पहले तुमने लिखा था कि तुमने किसी से सुना था स्विद्रिगाइलोव के यहाँ दूनिया को बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ रही थीं। तब मुझसे सारी बात बताने को कहा था

1. रस्कोलनिकोव के प्रथम नाम रोदियोन का संक्षेप।

...पर जवाब में मैं तुम्हें भला क्या लिखती अगर तुम्हें सारी बात मैं सच लिख देती तो मुझे खूब मालूम है कि तुम सब कुछ छोड़-छाड़ कर हमारे पास चले आते, चाहे तुम्हें पैदल ही क्यों न आना पड़ता। मैं तुम्हारा स्वभाव और तुम्हारी भावनाएँ खूब जानती हूँ, सो तुम अपनी बहन का अपमान बर्दाश्त न कर पाते। मैं भी परेशान थी बेहद, लेकिन कर ही क्या सकती थी इसके अलावा, तब तक सारी बात मुझे भी नहीं मालूम थी। सारा मामला अगर इतना उलझ गया था तो इसीलिए कि दूनिया1 ने जब उनके परिवार में बच्चों की देखभाल करने का काम सँभाला था तो उसे पेशगी सौ रूबल मिले थे, कि हर महीने उसकी तनख्वाह में से कुछ-कुछ कटता रहेगा। इसलिए जब तक कर्जा चुक न जाता, उसका नौकरी छोड़ना नामुमकिन था। जब रकम (मेरे कलेजे के टुकड़े रोद्या, अब मैं यह सारी बात तुम्हें खोल कर बता सकती हूँ) उसने खास तौर पर तुम्हें साठ रूबल भेजने के लिए ली थी, जिसकी तुम्हें सख्त जरूरत थी और जो तुम्हें पिछले साल हमसे मिली थी। तब तुम्हें हमने धोखे में रखा था, और लिख दिया था कि यह रकम दूनिया की बचत में से भेजी जा रही है। लेकिन बात ऐसी नहीं थी, और अब मैं इसके बारे में सब कुछ बता रही हूँ क्योंकि भगवान की दया से हालत अचानक सुधर गई है, और इसलिए भी कि तुमको मालूम हो जाए कि दूनिया तुमको कितना प्यार करती है और उसने कितना बड़ा दिल पाया है। शुरू में मि. स्विद्रिगाइलोव सचमुच उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करते थे और खाने की मेज पर उसका अपमान करनेवाली मजाक उड़ानेवाली बातें करते थे... लेकिन मैं उन सब तकलीफदेह बातों के ब्यौरे में नहीं जाना चाहती क्योंकि अब जबकि सब कुछ खत्म हो गया है, तुम बेकार में परेशानी में क्यों पड़ो। मतलब यह कि मि. स्विद्रिगाइलोव की पत्नी मार्फा पेत्रोव्ना की और बाकी सारे परिवार की नेकी के बावजूद और उदारता के व्यवहार के बावजूद दूनिया को बहुत कठिन दिन काटने पड़ रहे थे, खास तौर पर तब जब मि. स्विद्रिगाइलोव अपनी पुरानी फौजी आदतों के शिकार हो जाते थे और उन पर शराब सवारी गाँठने लगती थी। और जानते हो, बाद में इस सारे किस्से की क्या असलियत मालूम हुई तुम क्या यकीन करोगे कि उस दीवाने के दिल में शुरू से ही दूनिया के लिए बहुत गहरा लगाव पैदा हो गया था, लेकिन रुखार्ई और तिरस्कार का रवैया अपना कर उसने उस पर पर्दा डाले रखा। शायद अपनी उम्र को देखते हुए, और यह सोच कर कि वह कई बच्चों का बाप था, उसे खुद अपने हवाई मंसूबों पर शर्म आई होगी और वह अपने आपको धिक्कारने लगा होगा।

1. दूनिया या दुनेच्का - अण्दोत्या का घरेलू नाम।

इसलिए वह दूनिया से नाराज रहने लगा था। या यह भी हो सकता है कि उसे उम्मीद रही हो कि इस तरह का रुखाई और तिरस्कार का रवैया अपना कर वह सच्चाई को दूसरों से छिपा लेगा। लेकिन उसे अपने पर आखिरकार काबू नहीं रहा और उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई कि दूनिया के सामने उसने बिलकुल खुला, बेहद शर्मनाक सुझाव रखा, उसे हर तरह के लालच दिए और इसके अलावा यहाँ तक वादा किया कि वह सब कुछ त्याग देगा और उसे ले कर अपनी किसी दूसरी जागीर में या जरूरत पड़ी तो विदेश भी चला जाएगा। तुम तो अंदाजा लगा सकते हो कि तब दूनिया पर क्या बीती होगी! उसके लिए अपनी नौकरी फौरन छोड़ देना - नामुमकिन था, सिर्फ कर्ज की रकम की वजह से नहीं, बल्कि इस खयाल से भी कि मार्फा पेत्रोव्ना की भावनाओं को ठेस न पहुँचे। तब उनके दिल में फौरन शक पैदा हो जाता और उस हालत में दूनिया परिवार में कलह का कारण बन जाती। फिर दूनिया की बेहद बदनामी भी होती और इससे बचने का कोई रास्ता न होता। और भी बहुत-सी बातें थीं जिनकी वजह से अगले छह हफ्तों तक दूनिया के लिए उस मनहूस घर से अपना पिंड छुड़ाने की कोई उम्मीद नहीं थी। तुम तो दूनिया को जानते ही हो कि वह कितनी होशियार और इरादे की पक्की है। दूनिया बहुत कुछ बर्दाश्त कर सकती है और उसमें कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने कदम जमाए रखने का हौसला है। उसने इस सारे मामले के बारे में तो मुझे भी नहीं लिखा, हालाँकि हम लोग अकसर ही एक-दूसरे को खत लिखा करते थे। सारा मुआमला अचानक ऐसे खत्म हो गया कि इस बारे में किसी ने कभी सोचा भी नहीं था। मार्फा पेत्रोव्ना ने इत्तफाक से बाग में अपने पति को दूनिया से मिन्नतें करते सुन लिया और उसका दूसरा ही मतलब लगा कर सारा दोष दूनिया के सर मढ़ दिया कि इस सारे किस्से की जड़ वही है। दोनों के बीच वहीं बाग में तू-तू मैं-मैं हुई। मार्फा पेत्रोव्ना ने तो दूनिया के एक हाथ भी जड़ दिया, उसकी कोई बात भी सुनने से इनकार कर दिया और घंटे भर तक उस पर चीखती रही, और उसके बाद हुक्म दिया कि दूनिया को फौरन एक मामूली किसान के छकड़े पर बिठा कर मेरे पास भिजवा दिया जाए। उसका सारा सामान, सारे कपड़े-लत्ते ज्यों के त्यों, तह किए बिना या बाँधे बिना उसी गाड़ी में फेंक दिए गए। फिर उसी बीच जोर का पानी भी बरसा और ठुकराई, दुतकारी गई दूनिया को एक किसान के साथ खुले छकड़े में बैठ कर पूरे सत्रह वेर्स्ता 1 पार करके शहर आना पड़ा। अब तुम्हीं सोचो, दो महीने पहले तुमने मुझे जो खत भेजा था, मैं उसका क्या जबाव देती और भला क्या लिखती मैं बिलकुल लाचार थी। सच बात तुम्हें लिख नहीं सकती थी क्योंकि तुम्हें बहुत दुख होता, तुम अपमान महसूस करते, तुम्हें बहुत गुस्सा आता, लेकिन तुम कर

1. लंबाई का एक रूसी माप, 1060 मीटर के बराबर।

क्या लेते। शायद बस अपने आपको तबाह कर लेते। और फिर यह बात भी तो थी कि दूनिया ऐसा कभी होने न देती; और यह मैं नहीं कर सकती थी कि जब मेरा अपना दिल इतना दुखी था तो अपना खत इधर-उधर की छोटी-मोटी बातों से भर देती। शहर में महीने भर इस कांड की चर्चा चलती रही। नौबत यहाँ तक पहुँच गई कि लोग जिस तिरस्कार से हमें देखते थे, आपस में कानाफूसी करते थे, यहाँ तक कि जोर-जोर से हमारे ऊपर फिकरे कसते थे, उसकी वजह से दूनिया की और मेरी गिरजाघर जाने तक की हिम्मत न होती थी। जान-पहचान के सब लोग हमसे कतराने लगे थे, सड़क पर मिल जाते तो सलाम तक न करते, और मुझे पता चला कि कुछ दुकानदार और क्लर्क हमारे घर के दरवाजे पर तारकोल पोत कर बहुत बेहूदा ढंग से हमारा अपमान करने की सोच रहे थे, जिसका नतीजा यह हुआ कि मकान-मालिक हमसे घर खाली करने को कहने लगा। यह सब कुछ था मार्फा पेत्रोव्ना का किया-धरा; उन्होंने दूनिया को जी भर कर बदनाम किया और घर-घर जा कर उस पर कीचड़ उछाली। वे पास-पड़ोस के सारे लोगों को जानती हैं। उस महीने वे बार-बार शहर आती रहीं, और चूँकि वह कुछ बातूनी भी हैं और उन्हें अपने परिवार के मामलों के बारे में प्रपंच करने का और खास तौर पर हर ऐरे-गैरे से अपने पति की शिकायत करने का शौक है, जो बहुत ही गलत बात है, इसलिए थोड़े ही दिनों में उन्होंने यह किस्सा शहर में ही नहीं बल्कि आसपास, पूरे जिले में भी फैला दिया। मैं तो इन सब बातों की वजह से बीमार पड़ गई, लेकिन दूनिया यह सब कुछ मुझसे बेहतर ढंग से झेल गई; तुम देखते तो सही कि उसने सब कैसे सहा और कैसे मुझे तसल्ली देती रही, ढाढ़स बँधाती रही! वह तो बिलकुल फरिश्ता है! लेकिन भगवान की दया से बहुत जल्द हमारी सारी विपदा दूर हो गई। मि. स्विद्रिगोइलोव के होश ठिकाने आ गए; उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ, और शायद दूनिया की हालत पर तरस खा कर, उन्होंने उसके निर्दोष होने का पूरा और पक्का सबूत मार्फा पेत्रोव्ना के सामने रख दिया। वह सबूत एक खत था, जो बाग में मार्फा पेत्रोव्ना से मुठभेड़ होने से पहले दूनिया ने तंग आ कर मि. स्विद्रिगाइलोव को लिखा था। इस खत में, जो उसके चले आने के बाद उन्हीं के पास रह गया था, उसने निजी तौर पर कोई सफाई देने और उनसे चोरी-छिपे मिलने से साफ इनकार कर दिया था, जिसके लिए वह उसकी बड़ी मिन्नतें कर रहे थे। उसने, उस खत में बहुत ताव और गुस्से में आ कर, उन्हें मार्फा पेत्रोव्ना के साथ उनके नीच व्यवहार के लिए बहुत लताड़ा था, और उन्हें याद दिलाया था कि वह कई बच्चों के बाप थे और परिवार के मुखिया थे, और यह कि एक बेबस-लाचार लड़की को, जो पहले से ही काफी दुखी थी, इस तरह सताना और दुखी करना कितनी बड़ी दुष्टता थी। सचमुच, मेरे प्यारे रोद्या, उस खत के एक-एक अक्षर से ऐसे नेकी टपकती थी, उसकी एक-एक बात दिल को इस तरह छूती थी कि जब मैंने उसे पढ़ा तो मैं फूट-फूट कर रो पड़ी; अब भी जब मैं उसे पढ़ती हूँ तो आँखों में आँसू छलक आते हैं। इसके अलावा नौकरों की गवाही से भी दूनिया का सारा कलंक धुल गया। मि. स्विद्रिगाइलोव जितना सोचते थे, उससे कहीं ज्यादा उन लोगों ने देखा था और जानते थे जैसा कि नौकरों के साथ अकसर होता है। मार्फा पेत्रोव्ना बिलकुल दंग रह गईं और जैसा कि हमसे उन्होंने खुद कहा, 'एक बार फिर उनका दिल बैठ गया', लेकिन उन्हें दूनिया के निर्दोष होने का पूरा यकीन आ गया था। अगले ही दिन, जो इतवार था, वे सीधे गिरजाघर गईं और घुटने टेक कर आँखों में आँसू भर कर उन्होंने माता मरियम से प्रार्थना की कि वह उन्हें इतनी शक्ति दें कि वे इस नई परीक्षा को झेल सकें और अपना कर्तव्य निभा सकें। फिर वे गिरजाघर से सीधे हमारे पास आईं, हमें सारा किस्सा सुनाया, फूट-फूट कर रोईं, और अपने किए पर पछताते हुए उन्होंने दूनिया को गले से लगाया और उससे माफी माँगी। उसी दिन सबेरे जरा भी देर किए बिना, वे शहर के एक-एक घर में आँसू बहाती हुई गईं, और बड़ी प्रशंसा भरे शब्दों में उन्होंने सबको दूनिया के निर्दोष होने की बात, उसकी भावनाओं और उसके आचरण की शुद्धता पर जोर दे कर समझाया। फिर इससे भी बड़ी बात यह हुई कि उन्होंने मि. स्विद्रिगाइलोव के नाम दूनिया का लिखा हुआ खत सबको दिखाया और पढ़ कर सुनाया और उन्हें उस खत की नकल कर लेने की भी इजाजत दे दी, जिसकी मेरी राय में कोई जरूरत नहीं थी। इस तरह वे कई दिनों तक अपनी गाड़ी पर सारे शहर में घूमती रहीं, क्योंकि कुछ लोगों ने इस बात का बुरा माना था कि वह पहले दूसरों के यहाँ क्यों गईं। इस तरह सबको अपनी बारी के आने का इंतजार करना पड़ा, जिसका नतीजा यह हुआ कि हर घर में पहुँचने से पहले ही से उनकी राह देखी जाती थी, हर आदमी को मालूम होता था कि फलाँ-फलाँ दिन मार्फा पेत्रोव्ना फलाँ-फलाँ जगह वह खत पढ़ कर सुनाएँगी, और हर बार लोग भी जो खुद अपने घरों पर और दूसरे लोगों के घरों पर कई-कई बार पहले भी उस खत को सुन चुके थे। मेरी राय में इन सब बातों में बहुत कुछ एक बड़ी हद तक, ऐसा था जिसकी कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन मार्फा पेत्रोव्ना का स्वभाव ही ऐसा है। बहरहाल वे फिर से दूनिया की नेकनामी पूरी तरह कायम करने में कामयाब रहीं। इस कांड की सारी बदनामी कभी न मिटनेवाले कलंक की तरह उनके पति के मत्थे मढ़ दी गई; अकेले उन्हीं को सारा दोष दिया गया, यहाँ तक कि मुझे उन पर सचमुच तरस आने लगा। लोग सचमुच उस दीवाने के साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती बरत रहे थे। दूनिया को फौरन कई परिवारों में पढ़ाने के लिए बुलावा आया लेकिन उसने इनकार कर दिया। लोग अचानक उसे बड़ी इज्जत की नजरों से देखने लगे और मानना होगा कि इन्हीं सब बातों की वजह से वह घटना हुई जिसने हमारे पूरे भाग्य को पलट दिया। प्यारे रोद्या, मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि एक आदमी दूनिया से ब्याह करना चाहता है और उसने भी यह शादी करने की हामी भर दी है। मैं तुम्हें जल्दी से इस सारे मामले के बारे में बता दूँ... यूँ तो सब कुछ तुम्हारी राय लिए बिना तय किया गया है, लेकिन मैं समझती हूँ कि तुम इस बात पर मुझसे या अपनी बहन से खफा नहीं होगे, क्योंकि बात यह है कि हम लोग ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते थे और तुम्हारा जवाब आने तक अपना फैसला टाल नहीं सकते थे। फिर तुम भी तो यहाँ मौजूद रहे बिना सारी बातों को परख नहीं सकते थे। असल में यह सब कुछ ऐसे हुआ। यह प्योत्र पेत्रोविच लूजिन कोर्ट कौंसिलर1 के ओहदे पर हैं और मार्फा पेत्रोव्ना के दूर के रिश्तेदार हैं, जो इन दोनों की जोड़ी मिलाने में बहुत सक्रिय रही हैं। सिलसिला शुरू यहाँ से हुआ कि लूजिन ने हम लोगों से जान-पहचान पैदा करने की इच्छा प्रकट की। उनका बड़े अच्छे ढंग से स्वागत किया गया, उन्होंने हम लोगों के साथ कॉफी पी, और अगले ही दिन उन्होंने हमें एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने बड़ी शिष्टता से शादी का पैगाम दिया और प्रार्थना की कि इसके बारे में जल्द ही पक्का जवाब दिया जाए। वे बहुत व्यस्त आदमी हैं और जल्दी से जल्दी पीतर्सबर्ग लौट जाना चाहते हैं, इसलिए उनके वास्ते एक-एक पल बहुत कीमती है। जाहिर है, शुरू-शुरू में तो हमें बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि यह सब कुछ इतनी जल्दी और ऐसे ढंग से हुआ कि उसका हमें गुमान भी नहीं था। हम लोगों ने दिन भर इसके बारे में सोच-विचार किया और बातें कीं। वे बहुत खाते-पीते, भरोसे के आदमी हैं; ओहदों पर लगे हुए हैं और बहुत काफी दौलत जमा कर चुके हैं। यह सच है कि उनकी उम्र पैंतालीस साल है, लेकिन सूरत-शक्ल काफी अच्छी है। औरतें उन्हें अब भी आकर्षक समझ सकती हैं; और वे बहुत ही शरीफ और देखने-सुनने में अच्छे आदमी हैं; अलबत्ता इतना जरूर है कि थोड़ा-सा उदास और कुछ घमंडी लगते हैं। लेकिन हो सकता है कि शायद पहली नजर में ही ऐसे लगते हों। और प्यारे रोद्या, जब पीतर्सबर्ग में उनसे मुलाकात हो, जो जल्दी ही होनी चाहिए, तो अगर उनकी कोई बात अच्छी न लगे तो उनके बारे में बहुत जल्दी में और सख्ती के साथ किसी राय पर पहुँचने से सावधान रहना, जैसी कि तुम्हारी आदत है। मैं यह तुम्हें पहले से जताए देती हूँ, हालाँकि मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे ऊपर उनका अच्छा ही असर पड़ेगा। इसके अलावा किसी आदमी को समझने के लिए जरूरी है कि हम सोच-विचार से काम लें और उसके बारे में पहले से कोई राय या गलत धारणाएँ बना लेने के खिलाफ सावधान रहें, क्योंकि बाद में उन्हें सुधारने और दूर करने में बहुत कठिनाई होती है। फिर बहुत-सी दूसरी बातों से भी यह पता चलता है कि प्योत्र पेत्रोविच बहुत ही भले आदमी हैं। पहली ही मुलाकात में उन्होंने हमें बताया कि वे अच्छे

1. श्रेणीक्रम में सातवीं श्रेणी का अधिकारी।

आचार-व्यवहार के आदमी हैं, लेकिन इसके साथ ही, जैसा कि उन्होंने हमें बताया, कई बातों में वह 'हमारी सबसे उभरती हुई पीढ़ी की' आस्थाओं से सहमत हैं और हर तरह के पूर्वाग्रह के विरोधी हैं। उन्होंने और भी बहुत-सी बातें बताईं, क्योंकि वे जरा से घमंडी हैं और चाहते हैं कि उनकी बात सुनी जाए, लेकिन यह कोई ऐसी बुराई नहीं है। मेरी समझ में तो ज्यादा कुछ आया नहीं, लेकिन दूनिया ने मुझे बताया कि वे बहुत पढ़े-लिखे आदमी तो नहीं हैं लेकिन होशियार हैं और स्वभाव तो जानते ही हो। वह अपने इरादे की पक्की, समझदार, धीरज रखनेवाली और उदार लड़की है लेकिन उसका दिल बड़ा भावुक है; इतना मैं जानती हूँ। यह सच है कि कोई खास प्यार-मुहब्बत न इसकी तरफ से है और न उनकी तरफ से, लेकिन दूनिया समझदार लड़की है, दिल उसका फरिश्तों जैसा है, अपने पति को खुश रखना वह अपना कर्तव्य समझेगी और वे भी उसे सुखी रखने को अपनी जिम्मेदारी समझेंगे। इसमें शक करने की कोई वजह नहीं है, हालाँकि यह सही है कि यह सारा मुआमला बहुत जल्दी में तय किया गया है। इसके अलावा वे बहुत समझदार आदमी हैं और यकीनन वे खुद यह समझ लेंगे कि दूनिया उनके साथ जितनी ज्यादा सुखी रहेगी उतना ही ज्यादा उनके भी सुखी रहने का भरोसा रहेगा। जहाँ तक स्वभाव की कुछ खराबियों का, कुछ आदतों का और कुछ बातों पर मतभेद का सवाल है, वे सुखी से सुखी विवाहित जीवन में भी होते ही होते हैं। तो दूनिया ने कहा है कि जहाँ तक इन सब बातों का सवाल है, उसे अपने ऊपर पूरा भरोसा है, इन बातों के बारे में परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, यह कि वह बहुत कुछ बर्दाश्त करने को तैयार है, बशर्ते आगे भी उनका संबंध ईमानदारी और इन्साफ पर कायम रह सके। मिसाल के लिए, शुरू-शुरू में वे मुझे भी कुछ अक्खड़ मालूम हुए, लेकिन यह भी तो हो सकता था कि वे साफ बात कहनेवाले आदमी हों, और दरअसल बात थी भी यही। जैसे, दूनिया की रजामंदी मिलने के बाद जब वे दूसरी बार हमारे यहाँ आए तो बातचीत के दौरान उन्होंने साफ कहा कि दूनिया से जान-पहचान होने से पहले ही उन्होंने अपने मन में ठान ली थी कि दहेज लिए बिना वे किसी ऐसी लड़की से ब्याह करेंगे जो चाल-चलन की अच्छी हो, और सबसे बढ़ कर यह कि जिसने गरीबी के दिन देखे हों क्योंकि, जैसा कि उन्होंने समझाया, किसी आदमी को अपनी बीवी का मोहताज नहीं होना चाहिए, बल्कि अच्छा यही है कि औरत अपने पति को अपना उपकारी समझे। मैं यह भी बता दूँ कि जिस तरह मैंने कही है, उससे कहीं ज्यादा नमी और शिष्टता से उन्होंने यह बात कही थी। उनके शब्द तो मैं भूल गई हूँ; मुझे बस उनका मतलब याद रह गया है। इसके अलावा जाहिर है कि उन्होंने यह बात किसी खास मंसूबे के तहत नहीं कही थी बल्कि यह बातचीत के दौरान सहज भाव से उनके मुँह से निकल गई थी, जिसकी वजह से बाद में उन्होंने अपनी बात को ठीक करने और सुधारने की कोशिश की, यूँ फिर भी मुझे वह बात कुछ अक्खड़पन से कही हुई लगी और बाद में मैंने दूनिया से कहा भी। लेकिन दूनिया परेशान हो गई और उसने जवाब दिया कि 'आदमी की कथनी उसकी करनी नहीं होती' और यह बात सच भी है। अपना मन पक्का करने से पहले रात-भर दूनिया सोई नहीं। यह सोच कर कि मैं सो गई हूँ, वह बिस्तर से उठी और रात-भर कमरे में इधर-से-उधर टहलती रही; आखिरकार प्रतिमा के सामने घुटने टेक कर बैठ गई, बड़ी देर तक तन्मय हो कर प्रार्थना करती रही और सुबह उसने मुझे बताया कि उसने फैसला कर लिया है।

'मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि प्योत्र पेत्रोविच जल्दी ही पीतर्सबर्ग के लिए रवाना होनेवाले हैं, जहाँ उनका बहुत बड़ा कारोबार है और जहाँ वे वकालत का दफ्तर खोलना चाहते हैं। कई साल से वकालत कर रहे हैं और अभी कुछ दिन पहले बहुत बड़ा मुकद्दमा जीत चुके हैं। उन्हें पीतर्सबर्ग में इसलिए भी रहना है कि सेनेट के सामने उनके एक बहुत अहम मुकद्दमे की सुनवाई है। इसलिए, प्यारे रोद्या, हर तरह से वे तुम्हारे काम आ सकते हैं। दूनिया और मैं, दोनों यही समझते हैं कि तुम आज ही से अपनी रोजी कमाना शुरू कर सकते हो और यह समझ सकते हो कि तुम्हारा भविष्य तय और पक्का हो चुका है। काश, ऐसा ही हो। इससे इतना फायदा होगा कि हम इसे दैवी वरदान समझ सकते हैं। दूनिया तो हरदम इसी के सपने देखती रहती है। हम लोगों ने हिम्मत करके प्योत्र पेत्रोविच से इसकी चर्चा छेड़ी भी। उन्होंने जवाब देने में बहुत सोच-विचार से काम लिया और कहा कि उनका काम सेक्रेटरी के बिना तो चल नहीं सकता, और यह कि किसी गैर को पैसा देने से बेहतर तो यही है कि अपने किसी रिश्तेदार की तनख्वाह बाँध दी जाए, अगर वह उस काम के लिए योग्य हो (जैसे तुम्हारे योग्य होने में कोई शक हो सकता है!), लेकिन उन्हें यह शंका जरूर थी कि यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के बाद तुम्हारे पास दफ्तर में काम करने के लिए समय भी बचेगा या नहीं। बात फिलहाल यहीं पर खत्म हो गई है लेकिन दूनिया अब और किसी बारे में सोचती भी नहीं। पिछले कुछ दिनों से उस पर जैसे कोई जुनून सवार है, और उसने इस बात की एक पूरी योजना बना ली है कि आखिर में तुम प्योत्र पेत्रोविच के वकालत के धंधे में उनके सहयोगी ही नहीं बल्कि साझेदार भी बन जाओ, यह तो अच्छा ही है कि तुम कानून पढ़ रहे हो। रोद्या, मैं इसमें पूरी तरह उससे सहमत हूँ, और समझती हूँ कि उन्हें पूरा करना बिलकुल मुमकिन है। सो प्योत्र पेत्रोविच की गोलमोल बातों के बावजूद, जो इस वक्त बहुत स्वाभाविक बात है। (क्योंकि वे तुम्हें जानते तक नहीं हैं), दूनिया को पूरा भरोसा है कि अपने होनेवाले पति पर अपने अच्छे प्रभाव बूते पर वह यह सब कुछ हासिल कर लेगी; वह इसी की आस लगाए बैठी है। जाहिर है, हम लोगों ने इतनी सावधानी तो बरती ही है कि आगे कि इन योजनाओं के बारे में, और खास तौर पर उनके कारोबार में तुम्हारे साझेदार बनने के बारे में, हमने प्योत्र पेत्रोविच से कोई चर्चा नहीं की है। वह बहुत व्यवहारकुशल आदमी हैं और हो सकता है कि इसके बारे में कोई उत्साह न दिखाएँ; उन्हें ये सारी बातें हो सकता है केवल कोरी कल्पनाएँ लगें। हमें इसकी कितनी उम्मीद है कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई का खर्च उठाने में वे हमारी मदद करेंगे। इसके बारे में न तो दूनिया ने उनसे एक शब्द कहा है और न मैंने। इसकी चर्चा हम लोगों ने सबसे पहले तो इसलिए नहीं की कि आगे चल कर यह सब अपने आप हो जाएगा, और वे कोई लंबी-चौड़ी बात किए बिना खुद ही अपनी तरफ से इसका सुझाव रखेंगे (भला वे दूनिया की इतनी-सी बात को टाल ही कैसे सकते हैं!), इसलिए तुम खुद अपनी कोशिश से आसानी से दफ्तर में उनका दाहिना हाथ बन जाओगे, और तुम्हें उनकी यह मदद खैरात में नहीं मिलेगी बल्कि अपने काम के बदले, वह तुम्हारी अपनी कमाई होगी। दूनिया सारा बंदोबस्त इसी तरह से करना चाहती है और मैं उससे पूरी तरह सहमत हूँ। फिर हमने अपनी योजनाओं के बारे में एक दूसरी वजह से भी बात नहीं की। इसलिए कि मैं खास तौर पर यह चाहती थी कि जब तुम पहली बार उनसे मिलो तो बराबरी की हैसियत से मिलो। जब दूनिया ने बड़े जोश के साथ तुम्हारे बारे में उनसे बात की, तो उन्होंने जवाब दिया कि कोई आदमी खुद किसी को करीब से देखे बिना उसके बारे में कोई राय नहीं कायम कर सकता, और यह कि वे तुमसे जान-पहचान हो जाने के बाद खुद अपनी राय बनाना चाहेंगे। मेरे अनमोल रोद्या, मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि कुछ वजहों से (जिनका प्योत्र पेत्रोविच से कोई संबंध नहीं है और जो महज मेरी निजी, बूढ़ी औरतोंवाली सनक है) शायद बेहतर यही हो कि शादी के बाद मैं उन लोगों के साथ रहने की बजाय अलग अकेली ही रहूँ। मुझे पूरा विश्वास है, वह इतनी उदारता और शिष्टता दिखाएँगे कि मुझे न्योता दें और अनुरोध करें कि मैं आगे भी अपनी बेटी के साथ ही रहूँ; और अगर उन्होंने अभी तक इसके बारे में कुछ नहीं कहा है, तो उसकी वजह यही है कि यह तो एक मानी हुई बात समझ ली गई है। लेकिन मैं तो खुद मना कर दूँगी। मैंने जिंदगी में कितनी ही बार देखा है कि लोगों की शादी के बाद सास से नहीं निभती है। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी को जरा भी तकलीफ हो, और अपनी खातिर भी मैं यही चाहूँगी कि जब तक मुझे अपनी रोटी का एक टुकड़ा नसीब है, और तुम्हारी और दुनेच्का जैसी औलादें हैं, तब तक मैं अपने बूते पर ही खड़ी रहूँ, किसी पर बोझ न बनूँ। अगर हो सका तो मैं तुम्हारे दोनों के पास ही कहीं आ कर बस जाऊँगी क्योंकि, प्यारे रोद्या, सबसे बड़ी खुश-खबरी तो मैंने अपने खत के आखिरी हिस्से के लिए बचा रखी है। मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हें बता दूँ कि शायद बहुत जल्द ही हम सब फिर एक जगह इकट्ठे हों और लगभग तीन साल की जुदाई के बाद फिर एक-दूसरे से गले मिलें! यह पक्के तौर पर तय हो गया है कि दूनिया और मैं दोनों पीतर्सबर्ग जाएँगे। यह तो मुझे मालूम नहीं कि कब, लेकिन बहुत जल्दी ही जाएँगे; शायद एक हफ्ते के अंदर। इसका दारोमदार प्योत्र पेत्रोविच पर है; उन्हें जब पीतर्सबर्ग में सारी बातों का पता लगाने की फुरसत मिलेगी, तब वही तय करके हमें खबर कर देंगे। खुद अपनी सुविधा के लिए वे बहुत उत्सुक हैं कि जितनी जल्दी हो सके, यह रस्म पूरी कर दी जाए, अगर मुमकिन हो तो देवी के व्रत1 से पहले ही, और अगर इतनी जल्दी तैयारी न हो सके, तो उसके फौरन बाद। अपने कलेजे से तुम्हें लगा कर कितनी खुशी मुझे होगी! तुमसे मिलने की खुशी की बात सोच कर ही दूनिया का दिल बल्लियों उछल रहा है; एक दिन तो उसने मजाक में यहाँ तक कहा कि वह सिर्फ इसके लिए ही प्योत्र पेत्रोविच से ब्याह करने को तैयार है। बिलकुल फरिश्ता है! वह अभी तुम्हें कुछ नहीं लिख रही है, लेकिन उसने मुझसे बस इतना लिखने को कहा है कि उसे तुम्हें इतनी बातें, इतनी ढेर सारी बातें बतानी हैं कि वह अभी कुछ भी नहीं लिख रही है। कुछ लाइनों में तो वह तुम्हें कुछ बता नहीं सकेगी, और इससे उसका जी बेचैन ही होगा। उसने मुझसे कहा है कि उसकी ओर से मैं तुम्हें बहुत सारा प्यार और ढेरों चुंबन भेज दूँ। हालाँकि हम लोगों की मुलाकात जल्द ही होगी लेकिन एक-दो दिन में मैं तुम्हें जितना पैसा भी हो सका, भेज दूँगी। अब चूँकि सबको मालूम हो गया है कि दूनिया की शादी प्योत्र पेत्रोविच से होनेवाली है, मेरी साख अचानक बढ़ गई है और मैं जानती हूँ कि अफानासी इवानोविच अब मेरी पेंशन की जमानत पर पचहत्तर रूबल के लिए भी मुझ पर भरोसा कर लेगा और इस तरह मैं तुम्हें पच्चीस या तीस रूबल भी भेज सकूँगी। भेजती तो मैं वैसे इससे भी ज्यादा, लेकिन मुझे सफर के खर्च की चिंता है। प्योत्र पेत्रोविच ने हमारे सफर के खर्च का कुछ हिस्सा अपने जिम्मे ले लिया है, मतलब यह कि हमारा सामान और बड़ा संदूक पहुँचवाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है (जो उनकी जान-पहचान के किसी आदमी के हाथ पहुँचवा दिया जाएगा), फिर भी पीतर्सबर्ग पहुँचने पर थोड़े-बहुत खर्च का बंदोबस्त तो हमें करना ही पड़ेगा, क्योंकि कम-से-कम पहले कुछ दिनों में तो ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमारे पास एक कौड़ी भी न हो। वैसे हमने-दूनिया ने और मैंने-पाई-पाई हिसाब लगा लिया है, और इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इस सफर में खर्च बहुत ज्यादा नहीं होगा। हमारे यहाँ से रेलवे स्टेशन की दूरी कुल नब्बे वेर्स्त कि है और हमने यहाँ जान-पहचान के एक गाड़ीवान से सब कुछ तय कर लिया है ताकि वह तैयार रहे; और वहाँ से मैं और दूनिया बड़े आराम से तीसरे दर्जे में सफर कर सकते हैं। इसलिए मुमकिन है कि मैं तुम्हें पच्चीस नहीं बल्कि तीस रूबल भेजूँ। बस काफी हो गया; मैं दो पूरे पन्ने भर चुकी हूँ और अब ज्यादा लिखने के लिए जगह नहीं है। मैंने

1. सभी आर्थोडाक्स चर्च के चार व्रतों में से एक। आम तौर पर यह अगस्त के पहले पखवाड़े में पड़ता है।

तो अपनी पूरी राम-कहानी लिख दी है, लेकिन इस बीच हुआ भी तो बहुत कुछ है! और अब, मेरे अनमोल रोद्या, मैं तुम्हें कलेजे से लगाती हूँ और मुलाकात होने तक के लिए माँ का आशीर्वाद भेजती हूँ अपनी बहन दूनिया को प्यार करना, रोद्या; उसको उसी तरह प्यार करना जैसे वह तुमको करती है। यह समझ लेना कि वह तुमको हर चीज से बढ़ कर, अपने आप से भी बढ़ कर, प्यार करती है। वह फरिश्ता है और तुम, रोद्या, तुम्हीं हम लोगों के लिए सब कुछ हो। हमारी अकेली उम्मीद, हमारा अकेला सहारा। बस तुम सुखी रहो, इसी में हमारा सुख है। रोद्या, तुम अभी तक रोज प्रार्थना तो करते हो, कि नहीं, और हमारे विधाता और मुक्तिदाता की दया पर विश्वास रखते हो कि नहीं मेरे मन में डर लगा रहता है कि आजकल नास्तिकता की जो नई भावना फैल रही है, कहीं तुम भी तो उसका शिकार नहीं हो गए अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगी। प्यारे बेटे, याद है न, बचपन में जब तुम्हारे बाप जिंदा थे, तुम मेरी गोदी में बैठ कर तुतला-पुतला कर प्रार्थना किया करते थे और उन दिनों हम सब लोग कितने खुश रहते थे! अच्छा, अब मैं मुलाकात होने तक के लिए विदा लेती हूँ और तुम्हें अपने कलेजे से लगाती हूँ। ढेर सारा प्यार।

मरते दम तक तुम्हारी,

पुल्खेरिया रस्कोलनिकोवा।'

पत्र पढ़ते हुए लगभग शुरू से ही रस्कोलनिकोव का चेहरा आँसुओं से भीगा रहा। लेकिन जब उसने पत्र खत्म किया तो उसका चेहरा पीला पड़ चुका और विकृत हो गया था, और उसके होठों पर कड़वी, क्रोधभरी और द्वेषभरी मुस्कराहट थी। उसने अपने फटे हुए मैले तकिए पर सर टिका दिया और सोचने लगा, बड़ी देर तक सोचता रहा। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था, और दिमाग में एक तूफान मचा हुआ था। आखिरकार उस छोटे से पीले कमरे में, जो किसी कबूतरखाने या संदूक जैसा था, उसे घुटन महसूस होने लगी, जैसे किसी ने उसे वहाँ जकड़ रखा हो। उसकी आँखें और उसका दिमाग खुली जगह के लिए तड़प उठे। उसने अपना हैट उठाया और बाहर निकल गया। इस बार उसे किसी से मुलाकात का डर नहीं सता रहा था; वह अपना डर भूल चुका था। वही बसील्येव्स्की ओस्त्रोव की दिशा में मुड़ा और व. प्रॉस्पेक्ट पर इस तरह चलता रहा जैसे उसे किसी काम से कहीं पहुँचने की जल्दी हो। लेकिन, जैसी कि उसकी आदत थी, वह अपने रास्ते के बारे में कोई ध्यान दिए बिना चल रहा था, और मन-ही-मन कुछ बुदबुदाता जा रहा था। वह बीच-बीच में अपने आपसे, जोर-जोर से बातें भी करने लगता था, जिस पर राह चलनेवालों को आश्चर्य होता था। उनमें से बहुतेरे तो यह समझते थे कि वह पिए हुए है।