अपराध और दंड / अध्याय 3 / भाग 1 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव सोफे पर उठ कर बैठ गया।

उसने कमजोरी के साथ अपना हाथ हिला कर रजुमीखिन को इशारा किया कि वह उसकी माँ और बहन को संबोधित करके सांत्वना की जो भावपूर्ण मगर अनर्गल बातें कर रहा था, उसे बंद कर दे। फिर उसने उन दोनों के हाथ पकड़े और एक-दो मिनट तक कुछ भी कहे बिना, बारी-बारी उन्हें घूरता रहा। उसकी माँ उसके भाव देख कर डर गई। उसमें एक ऐसी भावना की साफ झलक दिखाई देती थी, जिसमें दारुण विपदा के साथ एक तरह की जड़ता भी थी, लगभग पागलपन जैसी। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना रोने लगीं।

अव्दोत्या रोमानोव्ना भी पीली पड़ गई। भाई के हाथों में उसके हाथ काँपने लगे।

'घर चली जाओ... इसके साथ,' उसने रजुमीखिन की ओर इशारा करके उखड़े हुए स्वर में कहा, 'कल फिर मिलेंगे; सारी बातें कल होंगी... तुम लोगों को आए क्या बहुत देर हो गई?'

'आज शाम ही तो आए, रोद्या,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जवाब दिया, 'गाड़ी बेहद लेट थी। लेकिन रोद्या, मैं इस वक्त किसी भी हालत में तुमको अकेला छोड़ जाने को तैयार नहीं हूँ! रात को मैं रहूँगी, तुम्हारे पास...'

'तंग मत करो मुझे!' रस्कोलनिकोव ने चिड़चिड़ा कर कहा।

'मैं इसके पास रह जाता हूँ,' रजुमीखिन बोला, 'मैं इसे पल भर भी नहीं छोड़ सकता। भाड़ में जाएँ सारे मेहमान! चाचा तो वहीं है, सँभाल लेगा।'

'कैसे, मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने रजुमीखिन के हाथ एक बार फिर अपने हाथों में ले कर बात शुरू की थी कि रस्कोलनिकोव ने फिर बीच में ही टोक दिया :

'मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता! नहीं कर सकता!' उसने झुँझला कर दोहराया। 'मुझे परेशान न करो! बस, सब लोग निकल जाओ... मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकता!'

'आओ माँ, कम-से-कम कुछ पल के लिए कमरे के बाहर चलें,' दूनिया ने फिक्रमंद हो कर दबी जबान में कहा, 'हमारी वजह से उन्हें उलझन हो रही है, यह तो देख रही हो!'

'तीन बरस बाद भी जी भर कर देख नहीं सकती?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने रो-रो कर कहा।

'ठहरो,' उसने उन्हें फिर रोका, 'तुम लोग बीच में टोकती रहती हो और मेरे विचार उलझ कर रह जाते हैं... लूजिन से भेंट हुई'

'नहीं रोद्या, लेकिन उन्हें हमारे पहुँच जाने की खबर मिल गई है। हमने सुना है रोद्या कि प्योत्र पेत्रोविच भलमनसाहत के साथ आज तुमसे मिलने आए थे,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने कुछ डरते हुए कहा।

'हाँ, भलमनसाहत तो थी ही उनकी... दूनिया, मैंने लूजिन से कह दिया कि मैं उसे नीचे फेंक दूँगा और यह भी कहा कि वह जहन्नुम में जाए...'

'क्या कह रहे हो रोद्या कहीं तुमने सचमुच...' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने सहम कर बात शुरू की थी कि दूनिया की ओर देख कर अचानक रुक गईं।

अव्दोत्या रोमानोव्ना ध्यान से अपने भाई को देख रही थी कि अब आगे क्या होनेवाला है। इस झगड़े के बारे में वे दोनों नस्तास्या से उतना तो पहले ही सुन चुकी थीं, जितना वह उसे समझ सकी और बयान कर सकी थी। तकलीफ पाने के अलावा वे चिंता और दुविधा में भी पड़ गई थीं।

'दूनिया,' रस्कोलनिकोव ने कुछ कोशिश करके अपनी बात जारी रखी, 'मुझे यह शादी एकदम पसंद नहीं, इसलिए तुम कल पहला मौका मिलते ही लूजिन से इनकार कर दो, ताकि हमें उसका नाम भी फिर कभी सुनाई न दे।'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना चीख उठी।

'सोचो तो भैया, तुम कह क्या रहे हो!' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने बेचैन हो कर कहना शुरू किया। लेकिन उसने फिर फौरन अपने आपको सँभाल लिया। 'शायद तुम अभी ठीक से बातें करने की हालत में नहीं हो, बहुत थक गए हो,' उसने अपनी बात जारी रखते हुए बड़ी नर्मी से कहा।

'तुम समझती हो मुझे सरसाम है नहीं... तुम लूजिन से मेरी खातिर शादी कर रही हो। लेकिन मुझे यह कुर्बानी नहीं चाहिए। इसलिए तुम कल ही खत लिख कर उससे इनकार कर दो... सुबह मुझे दिखा देना, झगड़ा खत्म हो जाए!'

'मैं यह नहीं कर सकती!' नौजवान लड़की बुरा मान कर चिल्लाई। 'मैं क्यों...'

'दुनेच्का, तुम्हें भी सब्र नहीं है। चुप रहो, कल देखा जाएगा... देखती नहीं...,' माँ घबरा कर उसकी ओर लपकीं। 'आओ, चलें!'

'यह होश में नहीं,' रजुमीखिन नशे में डूबी आवाज में बोला, 'वरना इतनी हिम्मत कैसे पड़ती! कल यह सारी हिमाकत खत्म हो जाएगी... आज इसने उन्हें यहाँ से सचमुच भगा दिया था, इतना तो एकदम सच है। फिर लूजिन को भी गुस्सा आ गया था... वे यहाँ भाषण झाड़ रहे थे, अपने विद्वान होने का रोब जमाना चाहते थे पर गए जब, तो दुम दबाए हुए...'

'तो सच है यह बात?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने चीख कर पूछा।

'कल मिलेंगे भैया,' दूनिया ने दयाभाव से कहा, 'आओ माँ, चलें... तो चलते हैं रोद्या।'

'सुनो बहन,' उसने आखिरी बार कोशिश करके उनके जाते-जाते दोहराया। 'मैं सरसाम में नहीं हूँ; यह शादी... एक कलंक है। मैं अगर बदमाश-लफंगा हूँ तो भी तुम्हें तो ऐसा नहीं करना चाहिए... हम दोनों में से कोई एक ही रहेगा... और मैं अगर बदमाश हूँ तो भी ऐसी बहन को कभी अपनी बहन नहीं मानूँगा। या मैं या लूजिन! ठीक है, अब जाओ...'

'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! तानाशाह बन रहा है!' रजुमीखिन गरजा। लेकिन रस्कोलनिकोव ने कोई जवाब नहीं दिया और शायद दे भी नहीं सकता था। वह एकदम निढाल हो कर सोफे पर लेट गया और अपना मुँह दीवार की ओर फेर लिया। अव्दोत्या रोमानोव्ना दिलचस्पी से रजुमीखिन को देखती रही। उसकी काली आँखों में बिजली जैसी चमक थी : उसकी इस तरह की निगाह से रजुमीखिन चौंक पड़ा। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना अवाक खड़ी थीं।

'मैं किसी भी हालत में नहीं जाने की,' उन्होंने निराशा में डूबे स्वर में रजुमीखिन से धीरे से कहा। 'मैं यहीं कहीं रह जाती हूँ... तुम दूनिया को घर पहुँचा आओ।'

'और आप सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ेंगी,' रजुमीखिन ने बेचैन हो कर उसी तरह धीमी आवाज में कहा, 'बहरहाल, आप बाहर सीढ़ियों पर तो आइए। नस्तास्या, रोशनी दिखाना जरा! मैं आपको यकीन दिलाता हूँ,' वह सीढ़ियों पर पहुँच कर भी कुछ-कुछ कानाफूसी के ढंग से कहता रहा, 'कि आज तीसरे पहर वह मुझे और डॉक्टर को मारने पर ही आमादा था! आप समझ रही हैं न डॉक्टर तक को! वह भी हार मान कर यहाँ से चलता बना ताकि इसे झुँझलाहट न हो। मैं नीचे खड़ा पहरा देता रहा, लेकिन उसने झटपट कपड़े पहने और आँखें बचा कर खिसक गया। अगर आपकी किसी बात पर वह झुँझलाया तो इसी रात को फिर कहीं खिसक जाएगा और अपने आपको किसी मुसीबत में डाल लेगा...'

'कह क्या रहे हो!'

'इसके अलावा अव्दोत्या रोमानोव्ना को भी आपके बिना अकेला उस घर में छोड़ा नहीं जा सकता! जरा सोचिए, आप कहाँ ठहरी हुई हैं। उस बदमाश प्योत्र पेत्रोविच को आपके लिए कोई इससे अच्छा घर भी नहीं मिला... लेकिन, आप जानती हैं न, मैंने थोड़ी पी रखी है और उसी की वजह से... गाली बक रहा हूँ। बुरा न मानिएगा...'

'लेकिन मैं यहाँ मकान-मालकिन के पास रह जाऊँगी,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना अपनी बात पर अड़ी रहीं। 'मैं उसकी मिन्नत करूँगी कि वह मेरे और दूनिया के सोने के लिए किसी कोने में जरा-सी जगह दे दे। मैं इसे इस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती, कभी नहीं जा सकती!'

यह सारी बातचीत मकान-मालकिन के दरवाजे के ठीक सामने की खुली जगह में हो रही थी। नस्तास्या एक सीढ़ी नीचे खड़े हो कर रोशनी दिखा रही थी। रजुमीखिन असाधारण सीमा तक बेचैन था। आध घंटे पहले वह जब रस्कोलनिकोव को घर ला रहा था, तब भी उसकी जबान जरूरत से ज्यादा चल रही थी। लेकिन उसे इस बात का पता जरूर था, और काफी शराब पी लेने के बावजूद उसका दिमाग सुलझा हुआ था। इस समय वह खुशी और मस्ती के आलम की-सी स्थिति में था, और लग रहा था कि उसने जितनी भी पी रखी थी, वह सब कई गुना असर के साथ दिमाग पर चढ़ती जा रही थी। वह दोनों हाथों में उन दोनों औरतों के हाथ पकड़े हुए खड़ा उन्हें समझा-बुझा रहा था और अद्भुत सीमा तक सीधे-सादे शब्दों में उनके सामने तर्क प्रस्तुत कर रहा था। लगभग हर शब्द के साथ, शायद अपनी दलील पर जोर देने के लिए, वह इतना कस कर उनके हाथ दबाता था कि उन्हें तकलीफ होने लगती थी, मानो किसी ने शिकंजा कसा हो। वह शिष्टता की जरा भी परवाह किए बना अव्दोत्या रोमानोव्ना को घूरता रहा। दोनों कभी-कभी अपने हाथ उसके बड़े-बड़े, सख्त हड्डियोंवाले पंजों से छुड़ाने की कोशिश करतीं, लेकिन इस बात पर ध्यान देना तो दूर कि वे क्या चाहती हैं, वह और भी उनके करीब खिंच आता। वे अगर उससे कहतीं कि सर के बल सीढ़ियों से नीचे कूद जाए तो उनको खुश करने के लिए सोचे-समझे बिना या जरा भी संकोच किए बिना वह यह भी करने को तैयार हो जाता। हालाँकि पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना यह महसूस कर रही थीं कि वह नौजवान कुछ सनकी था और उनके हाथ जरूरत से कुछ ज्यादा ही दबा रहा था, लेकिन वे अपने रोद्या की चिंता में डूबी हुई थीं और वहाँ उसकी मौजूदगी को ईश्वर की कृपा समझ रही थीं। इसलिए वे उसकी इन सभी अजीब हरकतों को नजरअंदाज करने को भी तैयार थीं। अव्दोत्या रोमानोव्ना भी अपने भाई की तरफ से उतनी ही चिंतित थी, और वह स्वभाव से ऐसी डरपोक भी नहीं थी। लेकिन रजुमीखिन की आँखों की दहकती चमक को देख कर उसे भी ताज्जुब होने लगा और वह कुछ डर गई। नस्तास्या ने उसके भाई के इस विचित्र दोस्त के बारे में जो कुछ बताया था, उसकी वजह से उसके मन में अगर उसके लिए असीम विश्वास न पैदा हुआ होता तो वह उसके पास से जाने कब की भाग गई होती और अपनी माँ को भी भागने के लिए मजबूर किया होता। यह भी उसने सोचा होगा कि अब भागना भी शायद असंभव है। लेकिन कोई दस मिनट बाद वह आश्वस्त हो गई। रजुमीखिन की यही विशेषता थी कि उसकी मनोदशा जो भी हो, लेकिन वह अपना स्वभाव फौरन जाहिर कर देता था। सो लोग बहुत जल्द समझ जाते थे कि उनका किस तरह के आदमी से साबका पड़ा है।

'आप मकान-मालकिन के पास नहीं जा सकतीं; यह एकदम बेतुकी बात होगी,' उसने ऊँचे स्वर में कहा। आप हालाँकि उसकी माँ हैं पर आप अगर यहाँ रुकीं तो आप उसे जुनून की हद तक पहुँचा देंगी, और तब भगवान ही जानता है कि जो भी हो जाए, थोड़ा है। सुनिए, मैं बताता हूँ कि मैं क्या करूँगा। उसके पास इस वक्त नस्तास्या रहेगी, और मैं आप दोनों को घर पहुँचाए देता हूँ, आपका सड़क पर अकेले जाना ठीक नहीं है; पीतर्सबर्ग वैसे बहुत ही बेहूदा जगह है... पर कोई बात नहीं! फिर मैं लौट कर सीधा यहीं आऊँगा, और मैं कसम खा कर कहता हूँ कि पंद्रह मिनट बाद आ कर आपको सारा हाल बता दूँगा कि वह कैसा है, सो रहा है कि नहीं, वगैरह-वगैरह। अब उसके बाद की सुनिए! फिर मैं पलक झपकते सीधे अपने घर जाऊँगा - वहाँ मेरे मेहमान जमा हैं पर सब नशे में चूर - और जोसिमोव को साथ ले आऊँगा - उसी डॉक्टर को, जो इसका इलाज कर रहा है। वह भी वहीं है लेकिन नशे में नहीं है; वह कभी नशे में नहीं होता! मैं उसे घसीट कर पहले रोद्या के पास लाऊँगा, फिर आपके पास लाऊँगा, और इस तरह आपको घंटे भर में दो रिपोर्टें मिल जाएँगी - डॉक्टर की रिपोर्ट भी। आप समझ रही हैं न, खुद डॉक्टर की रिपोर्ट, जो मेरे बताए हुए हाल से पूरी तरह अलग कोई चीज होगी! अगर ऐसी-वैसी बात हुई तो मैं कसम खा कर कहता हूँ कि मैं खुद आपको यहाँ लाऊँगा, और अगर सब ठीक-ठाक रहा तो आप सो जाइएगा। मैं रात-भर यहीं रहूँगा ड्योढ़ी में, पर उसे मेरा पता तक नहीं चलेगा। जोसिमोव को मैं मकान-मालकिन के यहाँ सुला दूँगा ताकि वक्त-जरूरत वह यहाँ हो। उसके लिए बेहतर कौन है इस वक्त : आप या डॉक्टर इसलिए चलिए, घर चलिए। और आपका मकान-मालकिन के यहाँ जाने का सवाल ही नहीं उठता : वह आपको रखेगी भी नहीं, क्योंकि वह... वह बेवकूफ है। अगर आप जानना ही चाहती हैं तो मेरी वजह से उसे अब्दोत्या रोमानोव्ना से जलन होने लगेगी, और आपसे भी... अव्दोत्या रोमानोव्ना से तो जरूर ही होगी। उसके बारे में यकीन के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि कब क्या कर बैठे, कुछ भी नहीं कहा जा सकता! लेकिन मैं भी तो बेवकूफ हूँ... कोई बात नहीं! मुझ पर आपको भरोसा है बताइए, मुझ पर भरोसा है कि नहीं?'

'चलो, माँ,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने कहा, 'इन्होंने जो वादा किया है, उसे ये जरूर पूरा करेंगे। रोद्या की जान तो इन्होंने ही बचाई है, और अगर डॉक्टर सचमुच रात को यहाँ रहने पर राजी हो जाए तो इससे अच्छी और क्या बात होगी?'

'यानी कि आप... आप... मुझे समझ रही हैं, क्योंकि आप फरिश्ता हैं!' रजुमीखिन खुशी से पागल हो उठा, 'आइए, चलें! नस्तास्या! भाग कर ऊपर जाओ और रोशनी ले कर जरा उसके पास बैठो। मैं अभी पंद्रह मिनट में आता हूँ।'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को पूरी तरह भरोसा तो नहीं था, लेकिन उन्होंने और ज्यादा आग्रह नहीं किया। रजुमीखिन दोनों को अपनी एक-एक बाँह का सहारा दे कर सीढ़ियों से नीचे उतार लाया। 'हालाँकि यह बहुत मुस्तैद और अच्छे स्वभाव का है,' माँ बेचैनी से सोच रही थीं, 'लेकिन क्या अपना वादा पूरा कर पाएगा, हालत तो इसकी ऐसी है कि...'

'आह, मुझे पता है... आप शायद यह समझ रही हैं कि मेरी हालत इस वक्त ऐसी नहीं है!' रजुमीखिन ने उनके विचारों को भाँप कर उनको हतप्रभ कर दिया। वह सड़क की पटरी पर लंबे-लंबे डग भरता चल रहा था, जिसकी वजह से दोनों महिलाओं को उसके साथ चलने में कठिनाई हो रही थी। लेकिन उसका इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं गया। 'सरासर बकवास! मेरा मतलब है... मैंने इतनी पी ली है कि मेरी मति मारी गई है, लेकिन यह बात है नहीं; मुझे शराब का नशा नहीं है। आपको देख कर मेरा दिमाग फिर गया है... लेकिन गोली मारिए मुझे! मेरी किसी बात की ओर भी ध्यान मत दीजिए : मैं बकवास कर रहा हूँ, मैं आपके लायक नहीं हूँ... बिलकुल आपके लायक नहीं हूँ! आपको घर पहुँचाने के बाद मैं यहीं मोरी पर अपने सर पर दो बाल्टी पानी डालूँगा और एकदम ठीक हो जाऊँगा... काश, आपको मालूम होता कि मुझे आप दोनों से कितनी मुहब्बत है! हँसिए मत, और नाराज भी मत होइए! आप किसी से भी नाराज हो जाएँ, लेकिन मुझसे मत हों! मैं उसका दोस्त हूँ, इसलिए आपका भी दोस्त हूँ। यानी बनना चाहता हूँ... मैंने गोया एक सपना देखा था... पिछले साल एक पल ऐसा आया था हालाँकि सच पूछिए तो वह सपना नहीं था, क्योंकि आप तो जैसे आसमान से उतरी हैं। पर मैं समझता हूँ कि अब मुझे रात भर नींद नहीं आएगी... कुछ ही समय पहले तक जोसिमोव को भी डर था कि यह पागल हो जाएगा... और इसीलिए ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए जिससे उसे चिड़चिड़ाहट हो।'

'कह क्या रहे हो तुम!' माँ ने चिंतित स्वर में कहा।

'डॉक्टर ने सचमुच ऐसी बात कही थी?' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने सहम कर पूछा।

'लेकिन, बात ऐसी है नहीं, एकदम नहीं है। उसने इसे कोई दवा दी थी। कोई पुड़िया थी, मैंने खुद देखा था, और फिर आप लोगों के यहाँ आ जाने से ...आह! कितना अच्छा होता अगर आप लोग कल आतीं। अच्छा हुआ कि हम लोग चले आए। अभी घंटेभर में खुद जोसिमोव आपको सारा हाल बता जाएगा। वह नशे में नहीं है! और मैं भी नशे में नहीं रहूँगा... और मुझे इस बुरी तरह नशा चढ़ा तो क्यों क्योंकि उन लोगों ने मुझे बहस में उलझा लिया, लानत हो उन पर! मैंने कसम खाई थी कि कभी बहस नहीं करूँगा! ऐसी खुराफातें उछालते हैं लोग कि बस! मेरी तो हाथा-पाई होते-होते रह गई! मैं वहाँ चाचा को छोड़ आया हूँ, वह सब कुछ सँभाल लेंगे। आप यकीन करेंगी उनकी जिद यह है कि किसी आदमी की अपनी कोई अलग हस्ती होनी ही नहीं चाहिए, और इसी में उनको मजा आता है! कि वे जो कुछ हैं, वह न रहें और जो कुछ भी हैं, उससे जितना भी हो सके अलग लगने लगें! इसी को वे प्रगति की चरम सीमा मानते हैं। अगर यह बकवास उनकी अपनी होती तब भी बात थी, लेकिन है यह...'

'सुनो!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने उसे दबी जबान में बीच में टोका। लेकिन इस चीज ने आग में घी का काम किया।

'आप क्या समझती हैं' रजुमीखिन पहले से भी ऊँची आवाज में बोला, 'आप समझती हैं, मैं उन पर इस बात के लिए बरस पड़ता हूँ कि वे खुराफातें उछालते हैं कतई नहीं! मैं तो यह चाहता हूँ कि वे बकवास करें! मनुष्य का यही तो ऐसा विशेषाधिकार है, जो पूरी सृष्टि में किसी और प्राणी को नहीं मिला है। आप झूठ बोल कर ही सच्चाई तक पहुँचते हैं! मैं इनसान इसीलिए हूँ कि मैं झूठ बोलता हूँ : आप कभी किसी सच्चाई तक पहुँच ही नहीं सकते, जब तक उससे पहले चौदह बार झूठ न बोल लें, और कौन जाने एक सौ चौदह बार बोलना पड़े। अपने ढंग से यह सम्मान की बात भी है; लेकिन हम झूठ भी तो अपने ढंग से नहीं बोलते! बकवास करो, लेकिन वह तुम्हारी अपनी बकवास हो, और मैं तुम्हारे कदम चूम लूँगा। अपने ढंग से झूठ बोलना किसी दूसरे के ढंग से सच बोलने से अच्छा है। पहली हालत में आप इनसान होते हैं, दूसरी हालत में आप तोते से बढ़ कर कुछ नहीं होते! सच्चाई तो आपसे बच कर जा नहीं सकती, कभी-न-कभी तो हाथ लगेगी ही, लेकिन गलतियों से डरने की वजह से जिंदगी घुटन की शिकार हो सकती है। बहुत-सी मिसालें मिलती हैं इसकी और इस वक्त हम क्या हैं विज्ञान में, विकास में, चिंतन, आविष्कार, आदर्शों, उद्देश्यों, उदारवाद, विवेक, अनुभव, और हर चीज में, हर एक चीज में, हर बात में हम सभी स्कूली बच्चे हैं। दूसरों के विचारों के सहारे जीना हमें अच्छा लगता है, इसी की हमें आदत जो पड़ गई है! ठीक बात है न मैं ठीक कह रहा हूँ न?' रजुमीखिन दोनों महिलाओं के हाथ जोर से दबा कर हिलाते हुए चिल्लाया।

'आह, मुझसे क्या पूछे हो, मुझे पता भी नहीं,' बेचारी पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना बोलीं।

'हाँ, हाँ, सच कहते हैं... हालाँकि मैं आपकी हर बात से सहमत नहीं हूँ,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने सच्चे दिल से कहा। अचानक उसके मुँह से एक हलकी-सी चीख निकल गई क्योंकि उसने उसका हाथ इतने जोर से दबाया कि तकलीफ होने लगी।

'सच जो आपने कहा सच है ...अरे, अब तो आप... आप...' वह मंत्रमुग्ध हो कर चिल्लाया, 'आप नेकी, शुद्धता, विवेक... और उत्कृष्टता का स्रोत हैं! अपना हाथ इधर लाइए... और आप भी लाइए। मैं आपके हाथों को चूमना चाहता हूँ, अभी यहीं, घुटनों के बल बैठ कर!'

यह कह कर वह घुटनों के बल वहीं सड़क की पटरी पर बैठ गया। खैरियत हुई कि उस वक्त वहाँ कोई था ही नहीं।

'बस, रहने दो, मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ। तुम कर क्या रहे हो?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना दुखी हो कर चिल्लाईं।

'उठिए, उठिए!' दूनिया ने भी हँसते हुए कहा, हालाँकि वह परेशान भी हो रही थी।

'मैं तब तक नहीं उठूँगा जब तक आप मुझे अपना हाथ नहीं चूमने देंगी! यह बात हुई! लीजिए मैं उठ गया, और अब चलिए। मैं अभागा बेवकूफ हूँ, आपके लायक नहीं हूँ, और ऊपर नशे में भी हूँ... और मैं शर्मिंदा भी हूँ... मैं आपसे प्यार करने लायक नहीं हूँ, लेकिन आपके सामने सर झुकाना हर उस आदमी का फर्ज है, जो बिलकुल ही जानवर न हो। तो मैं अपना यह फर्ज पूरा कर चुका... यह रही आपकी रहने की जगह, और सिर्फ इसी की वजह से रोद्या ने आपके उस प्योत्र पेत्रोविच को भगा दिया, जो ठीक ही हुआ! उसकी यह मजाल! आपको ऐसी जगह में रखने की उसे हिम्मत कैसे पड़ी! कितनी शर्मनाक बात है! आप जानती हैं यहाँ कैसे-कैसे लोग किराएदार रखे जाते हैं और आप उसकी मंगतेर! आपसे उसकी सगाई हुई है न? अच्छी बात है, तो मैं आपको इतना बता दूँ कि आपका मँगेतर पक्का बदमाश है!'

'मिस्टर रजुमीखिन, आप भूल रहे हैं कि...' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना कुछ कहने जा रही थीं।

'जी, जी हाँ, आप ठीक कहती हैं, मैं अपने आपको भूल गया था। मैं अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा हूँ,' रजुमीखिन ने जल्दी से माफी माँगते हुए कहा। 'लेकिन... लेकिन आप ऐसी बातें कहने पर मुझसे नाराज मत हों! इसलिए कि मैं ये बातें सच्चे दिल से कह रहा हूँ, इसलिए नहीं कि... हूँ! वह तो बड़ी शर्म की बात होगी; दरअसल इसलिए नहीं कि मुझे आपसे... हुँ! खैर, मैं इसकी वजह नहीं बताऊँगा, मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ेगी! ...लेकिन आज जब वे तशरीफ लाए तो हम सबने देखा कि वे हमारी बिरादरी के आदमी नहीं हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने नाई के यहाँ जा कर बालों में घूँघर डलवाए थे, इसलिए भी नहीं कि उन्हें अपना सारा इल्म हम लोगों पर झाड़ने की जल्दी थी, बल्कि इसलिए कि वे सूम हैं, सटोरिए हैं, मक्खीचूस हैं और पक्के मसखरे हैं। यह बात एकदम साफ है, आप उन्हें बहुत होशियार समझती हैं जी नहीं, वे बेवकूफ हैं, सरासर बेवकूफ! और आपका उनका क्या जोड़ भगवान बचाए! देवियो! आप लोग समझ रही हैं न?' अचानक उनके कमरों की ओर जानेवाली सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते वह रुक गया, 'हालाँकि वहाँ मेरे सभी दोस्त शराब पिए हुए हैं, लेकिन वे ईमानदार हैं और हालाँकि हम सब लोग बहुत-सी बकवासें करते हैं, मैं भी करता हूँ, पर हम लोग इसी तरह बातें करते-करते आखिरकार सच्चाई तक पहुँचेंगे क्योंकि हम सही रास्ते पर हैं। लेकिन आपके प्योत्र पेत्रोविच... वे सही रास्ते पर नहीं हैं। ...हालाँकि मैं अभी उन लोगों को हर तरह की गालियाँ दे रहा था, लेकिन मैं उन सबकी इज्जत करता हूँ... मैं जमेतोव की इज्जत तो नहीं करता, फिर भी वह मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि अभी उसकी उम्र ही क्या है... और वह साँड़ जोसिमोव भी, क्योंकि वह ईमानदार आदमी है और अपना काम जानता है। लेकिन बस, अब जाने दीजिए, कहा-सुना माफ कीजिए। माफ कर दिया न अच्छी बात है, तो फिर आइए, चलें। मुझे यह रास्ता मालूम है, मैं यहाँ आ चुका हूँ, यहाँ 3 नंबर में एक शर्मनाक वारदात हो गई थी... आप यहाँ कहाँ हैं? किस नंबर में? आठ में... अच्छा, तो रात को दरवाजा अंदर से बंद कर लीजिएगा। किसी को भीतर आने मत दीजिएगा। अभी पंद्रह मिनट में मैं सारा हाल ले कर आता हूँ और उसके आधे घंटे बाद जोसिमोव को लाऊँगा... आप देखती जाइए। तो मैं चला, भाग कर सीधे जाता हूँ।'

'हे भगवान, यह क्या होनेवाला है दुनेच्का...' चिंता और आश्चर्य के भाव से पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने अपनी बेटी से कहा।

'चिंता मत करो, माँ,' दूनिया ने अपना हैट और कोट उतारते हुए कहा। 'भगवान ने इस भले आदमी को हमारी मदद के लिए भेजा है, हालाँकि यह सीधा शराबियों की महफिल से उठ कर आया है। मेरी बात मानो, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं। फिर रोद्या के लिए जो कुछ उसने किया है...'

'आह दूनिया, भगवान जाने वह आएगा भी कि नहीं! मैं रोद्या को छोड़ कर चली क्यों आई... क्या-क्या मैंने सोच रखा था इस मुलाकात के बारे में, और हो क्या गया! कैसा कठोर था वह, जैसे हमसे मिल कर उसे कोई खुशी ही न हुई हो...'

उनकी आँखों में आँसू भर आए।

'नहीं, ऐसी बात नहीं है माँ। तुमने ध्यान नहीं दिया, तुम तो सारे वक्त रोती ही रही। सख्त बीमारी की वजह से उनका दिमाग ठिकाने नहीं है... असली वजह यही है।'

'हाय, यह बीमारी! अब क्या होगा, क्या होगा अब और वह तुमसे बातें कैसी कर रहा था, दूनिया!' माँ ने लाचारी की दृष्टि से बेटी की ओर देखते हुए कहा। वह अपनी बेटी के मन की बात जानने की कोशिश कर रही थीं। दूनिया ने अपने भाई का पक्ष लिया तो उनकी आधी तसल्ली तो हो ही गई थी, क्योंकि इसका मतलब यह था कि उसने उसे माफ कर दिया था। 'मैं समझती हूँ कि कल वह इसके बारे में ठीक से सोच सकेगा,' माँ ने उसके विचारों की और भी थाह लेने की गरज से कहा।

'पर मैं समझती हूँ कि कल भी वह... उस बात के बारे में... यही कहेगा,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने जोर दे कर कहा। पर सच तो यह है कि इससे आगे कहने को कुछ था भी नहीं, क्योंकि यह एक ऐसी बात थी जिस पर बात करते हुए पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना डर रही थीं। दूनिया ने आगे बढ़ कर माँ को प्यार कर लिया। माँ ने भी कुछ कहे बिना उसे कस कर गले लगा लिया। इसके बाद वे बैठ कर बेचैनी से रजुमीखिन के आने का इंतजार करने लगीं और सहमी-सहमी निगाहों से बेटी को देखती रहीं जो दोनों हाथ सामने बाँधे, विचारों में डूबी, कमरे में इधर-से-उधर टहल रही थी। अव्दोत्या रोमानोव्ना की आदत थी कि जब किसी बारे में सोचती थी, तो इधर-से-उधर टहलती रहती थी और माँ को ऐसे पलों में खलल डालने से डर लगता था।

नशे की हालत में रजुमीखिन का अचानक अव्दोत्या रोमानोव्ना पर फिदा हो जाना हास्यास्पद था। लेकिन उसकी इस सनक से अलग, बहुत से लोग अगर अव्दोत्या रोमानोव्ना को देख लेते तो उसकी इस हरकत को ठीक ही समझते। खास तौर पर उस पल में जब वह दोनों हाथ सीने पर बाँधे, विचारमग्न और उदास टहलती होती थी। अव्दोत्या रोमानोव्ना खासी खूबसूरत थी - लंबा कद, सुड़ौल, गठा हुआ शरीर और आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हुआ। उसका यह आत्मविश्वास उसके हर हाव-भाव से झलकता था, हालाँकि उसकी वजह से उसकी शालीन चाल-ढाल और कोमलता में राई भर भी कमी नहीं आती थी। सूरत-शक्ल में वह अपने भाई से मिलती थी, लेकिन उसे सचमुच सुंदर कहा जा सकता था। बाल गहरे बादामी रंग के थे, अपने भाई के बालों के रंग से कुछ ही कम गहरे। लगभग काली आँखों में गर्व और स्वाभिमान की चमक थी लेकिन साथ ही उनमें कभी-कभी असाधारण दयालुता का भाव भी स्पष्ट दिखाई देता था। रंग पीला तो था, लेकिन यह स्वस्थ पीलापन था। चेहरे पर ताजगी और स्फूर्ति की चमक थी। मुँह जरा छोटा था और नीचे का भरा-भरा लाल होठ ठोड़ी की तरह ही कुछ बाहर को निकला हुआ था। उसके सुंदर चेहरे में बस यही एक जरा-सी असंगति थी, लेकिन इसकी वजह से उसमें एक विचित्र-सा, अनोखा और दंभ का भ्रम पैदा करनेवाला भाव आ गया था। उसकी मुद्रा उल्लासमय की बजाय हमेशा कुछ गंभीर और चिंतामग्न रहती थी; लेकिन मुस्कान, हलकी-फुलकी, यौवनमय, चिंतामुक्त हँसी उसके चेहरे पर ऐसी फबती थी कि देखते बनता था! यह स्वाभाविक ही था कि रजुमीखिन जैसा सहृदय, खुले दिल का, भोला, ईमानदार, लंबे-चौड़े डीलडौलवाला आदमी, जिसने पहले कभी उस जैसी किसी औरत को नहीं देखा था और जो उस वक्त पूरी तरह होश में भी नहीं था, फौरन उस पर फिदा हो गया। इसके अलावा, यह भी एक संयोग ही था कि उसने दूनिया को पहली बार ऐसे समय देखा था, जब अपने भाई के प्रति अपने प्रेम के कारण और उससे मिलने की अपार खुशी के कारण वह एकदम भिन्न रूप में दिखाई दे रही थी। बाद में रजुमीखिन ने भाई के अशिष्ट, क्रूर और कृतघ्नता भरे शब्दों पर आग-बगूला हो कर उसके निचले होठ को काँपते हुए भी देखा था - और उसी वक्त उसकी किस्मत का फैसला हो गया था।

लेकिन रस्कोलनिकोव की बेलगाम झक्की मकान-मालकिन प्रस्कोव्या के बारे में जब रजुमीखिन ने सीढ़ियों पर नशे में बात करते हुए यह कहा था कि उसे उसकी वजह से अव्दोत्या रोमानोव्ना से ही नहीं बल्कि पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना से भी जलन होने लगेगी, तो उसने सच ही कहा था। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना तैंतालीस साल की जरूर हो गई थीं। लेकिन उनके चेहरे पर उनकी पुरानी सुंदरता के निशान बाकी थे। वह देखने में सचमुच अपनी उम्र से बहुत छोटी लगती थीं, जैसा कि उन औरतों के साथ अकसर होता है जो बुढ़ापे तक अपनी भावनाओं में शांति, संवेदनशीलता और शुद्ध निष्कपट सहृदयता बनाए रखती हैं। प्रसंगवश हम बता दें कि बुढ़ापे तक अपनी सुंदरता को कायम रखने का तरीका यही है कि इन सब गुणों को बनाए रखा जाए। उनके बालों में जहाँ-तहाँ सफेदी आने लगी थी और वे पहले जितने घने भी नहीं रह गए थे। आँखों के चारों ओर बहुत पहले से ही कौए के पंजे की शक्ल की झुर्रियाँ पड़ गई थीं और चिंता और कष्ट के कारण गाल पिचक कर अंदर धँस गए थे। फिर भी उनका चेहरा सुंदर था। वे देखने में दूनिया का ही दूसरा रूप लगती थीं, बस उससे बीस साल बड़ी थीं, और उनका निचला होठ बाहर की ओर निकला हुआ नहीं था। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना भावुक तो थीं पर भावनाओं में सहज ही बह जानेवाली नहीं थीं। वे दब्बू थीं और आसानी से बातें मान लेती थीं, लेकिन बस एक हद तक। अपनी आस्थाओं के विपरीत भी वे बहुत कुछ मान लेने और दब जाने को तैयार हो जाती थीं, लेकिन ईमानदारी, सिद्धांत और गहरी आस्थाओं की एक सीमा थी, जिसे पार करने के लिए कोई भी चीज उन्हें मजबूर नहीं कर सकती थी।

रजुमीखिन के जाने के ठीक बीस मिनट बाद किसी ने धीमे से दो बार, जल्दी-जल्दी दरवाजा खटखटाया। वह वापस आ गया था।

'मैं अंदर नहीं आऊँगा, मेरे पास वक्त नहीं है,' दरवाजा खुलते ही उसने जल्दी से कहा। 'वह चुपचाप, गहरी नींद सो रहा है, जैसे कोई बच्चा सो रहा हो। भगवान करे वह दस घंटे तक ऐसे ही सोता रहे। नस्तास्या उसके पास है और मैं उससे कह आया हूँ कि जब तक मैं न आ जाऊँ, वह कहीं जाए नहीं। अब मैं जा कर जोसिमोव को लिए आता हूँ। वह आ कर आपको सारा हाल बताएगा और उसके बाद आप लोग आराम से सो जाइए क्योंकि आप इतनी थकी हुई दिखाई दे रही हैं कि अब कुछ कर नहीं सकतीं...'

और यह कह कर वह गलियारे में भागा।

'कैसा मुस्तैद और... वफादार नौजवान है!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने खुश हो कर कहा।

'बहुत ही अच्छा आदमी मालूम होता है!' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने फिर कमरे में इधर-से-उधर टहलते हुए कुछ जोश से जवाब दिया।

लगभग एक घंटे बाद उन्हें फिर बाहर गलियारे से कदमों की आहट और फिर दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी। इस बार दोनों औरतें रजुमीखिन के वादे पर पूरा भरोसा करके राह देख रही थीं। वह सचमुच जोसिमोव को ले आने में सफल रहा था। जोसिमोव शराब की महफिल छोड़ कर फौरन रस्कोलनिकोव के पास जाने को तैयार हो गया था, लेकिन वह बड़े संकोच और शंका के भाव से उन दोनों महिलाओं से मिलने आया क्योंकि इस मस्ती की हालत में उसे रजुमीखिन पर भरोसा नहीं था। लेकिन यह देख कर कि वे लोग सचमुच किसी मसीहा की तरह उसकी राह देख रही थीं, उसके स्वाभिमान की भावना पूरी तरह तृप्त हो गई और उसे अपनी इस प्रशंसा पर खुशी भी हुई। वह वहाँ कुल दस मिनट ही ठहरा होगा पर इतनी ही देर में उसने पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को पूरी तरह यकीन दिला दिया और उनकी पूरी-पूरी तसल्ली कर दी। उसने गहरी हमदर्दी के साथ बातें कीं, लेकिन साथ ही उसके भाव में किसी महत्वपूर्ण परामर्श में भाग लेनेवाले नौजवान डॉक्टर जैसा ठहराव भी था और भरपूर गंभीरता भी थी। उसने किसी भी दूसरे विषय पर एक शब्द भी नहीं कहा और उन दोनों महिलाओं के साथ अधिक घनिष्ठता स्थापित करने की जरा भी इच्छा प्रकट नहीं की। कमरे में कदम रखते ही वह अव्दोत्या रोमानोव्ना के चकाचौंध कर देनेवाले रूप को देख कर दंग रह गया - इतना कि वह वहाँ जितनी देर भी रहा, उसने कोशिश उसकी ओर कोई भी ध्यान न देने की ही की और सारे वक्त केवल पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को संबोधित करके बातें करता रहा। इन सब बातों से उसे गहरा दिली संतोष मिल रहा था। उसने ऐलान किया कि उसकी राय में बीमार में इस समय काफी संतोषजनक सुधार आ रहा था। उसके मत में रोगी की बीमारी की वजह कुछ हद तक तो पिछले कुछ महीनों के दौरान उसकी दुर्भाग्यपूर्ण भौतिक परिस्थितियाँ थीं, लेकिन कुछ हद तक उसकी वजह नैतिक भी थी, 'एक तरह से वह अनेक नैतिक तथा भौतिक प्रभावों, चिंताओं, आशंकाओं, मुसीबतों, कुछ विचारों... इत्यादि का नतीजा थी।' कनखियों से यह देख कर कि अव्दोत्या रोमानोव्ना उसके एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रही थी, जोसिमोव इस विषय पर और भी विस्तार से बातें करने लगा। जब पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने डरते-डरते, कुछ चिंतित हो कर 'पागलपन के कुछ संदेह' के बारे में पूछा तो उसने सधी हुई पर निष्कपट मुस्कराहट के साथ जवाब दिया कि उसके शब्दों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है, कि रोगी के दिमाग में निश्चित रूप से कोई एक विचार जम कर रह गया है, जो कुछ-कुछ एकोन्माद (मोनोमेनिया) जैसी हालत है - वह, जोसिमोव, स्वयं इस समय डॉक्टरी की इस दिलचस्प शाखा का विशेष अध्ययन कर रहा था - लेकिन यह बात याद रखनी चाहिए कि रोगी आज तक सरसाम की हालत में था और... और यह कि उसके सगे-संबंधियों के यहाँ मौजूद होने से उसके ठीक होने में मदद मिलेगी और उसका दिमाग दूसरी ओर हटेगा, 'लेकिन बस इस शर्त पर कि अब उसे कोई नया धक्का न पहुँचे।' उसने अपनी यह आखिरी बात बड़े अर्थपूर्ण ढंग से कही। उसके बाद वह उठा और प्रभावशाली व विनम्र ढंग से झुक कर उसने विदा ली। उस पर आशीर्वादों, हार्दिक कृतज्ञता के बोलों और प्रार्थनाओं की बौछार हो रही थी, और अव्दोत्या रोमानोव्ना ने स्वयं उसकी ओर अनायास ही अपना हाथ बढ़ा दिया। जब वह बाहर निकला तो यहाँ आने पर बहुत खुश था और उससे भी ज्यादा खुश अपने-आपसे था।

'कल बात करेंगे; आप लोगों को भी तो सोना है!' रजुमीखिन ने जोसिमोव के पीछे-पीछे बाहर निकलते हुए अंत में कहा। 'मैं कल सुबह सारा हालचाल ले कर जल्द-से-जल्द आपके पास आऊँगा।'

जब वे दोनों बाहर सड़क पर आए तो जोसिमोव ने लगभग अपने होठ चाटते हुए कहा, 'लड़की है बड़ी मजेदार यह अव्दोत्या रोमानोव्ना!'

'मजेदार क्या कहा तुमने, मजेदार' रजुमीखिन गरजा और लपक कर जोसिमोव की गर्दन पकड़ ली। 'खबरदार, जो फिर कभी हिम्मत की... समझे... समझ गए न...' उसने कालर पकड़ कर उसे झिंझोड़ते हुए और दीवार से भिड़ा कर दबाते हुए चीख कर कहा। 'सुन लिया तुमने?'

'छोड़ मुझे, शराबी शैतान...' जोसिमोव ने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा। फिर जब रजुमीखिन ने उसे छोड़ दिया तो वह उसे पहले तो घूरता रहा, फिर ठहाका मार कर हँस पड़ा। रजुमीखिन उसके सामने उदास सूरत बनाए, गहरे विचारों में खोया हुआ खड़ा रहा।

'सच बात है, मैं भी पक्का गधा हूँ,' उसने दुखी स्वर में जवाब दिया, 'लेकिन तुम भी...'

'नहीं, भाई, तुम्हारे जैसा नहीं। मैं कोई बेवकूफी के सपने नहीं देख रहा।'

वे दोनों चुपचाप चलते रहे और जब रस्कोलनिकोव के घर के पास पहुँचे तो रजुमीखिन ने चिंतित हो कर चुप्पी को तोड़ा।

'सुनो,' उसने कहा, 'आदमी तो तुम लाजवाब हो, लेकिन दूसरी खराबियों के अलावा तुम्हारी एक खराबी और भी है, और वह मैं जानता हूँ, यह कि तुम बहुत लंपट आदमी हो, और सो भी घटिया किस्म के। तुम तबीयत के कमजोर, हर वक्त बौखलाए रहनेवाले मुसीबत के मारे आदमी हो, तुमने दुनिया की हर सनक पाल रखी है, ऊपर से दिन-ब-दिन मोटे और काहिल होते जा रहे हो और यह तुम्हारे बस की बात नहीं कि मिलती हुई कोई चीज छोड़ दो। इसे मैं इसलिए घटिया कहता हूँ कि इस रास्ते पर चल कर आदमी सीधा मोरी में जा पहुँचता है। तुमने अपने आपको इतना लुंज-पुंज बना रखा है कि मेरी समझ में यही नहीं आता कि तुम अभी तक एक अच्छे डॉक्टर हो कैसे, और वह भी लगन से काम करनेवाले। तुम - एक डॉक्टर - परों से भरे हुए गद्दे पर सोते हो और रात को अपने मरीजों को देखने के लिए उठ भी जाते हो! बस तीन-चार साल की बात और है, फिर तो मरीजों के लिए उठना भी छोड़ दोगे... लेकिन छोड़ो भी यह सब, असल बात यह नहीं है कि बात यह है कि आज रात तुम्हें यहाँ मकान-मालकिन के फ्लैट में सोना है (मैंने मुश्किल से उसे राजी किया है) और मैं रसोई में सोऊँगा। यह तुम्हारे लिए उससे जान-पहचान बढ़ाने का बेहतरीन मौका है! तुम जो सोचते हो, वह बात नहीं है! उस तरह की राई भर भी बात नहीं है, बिरादर...'

'मैं तो कुछ सोच ही नहीं रहा।'

'यहाँ, बिरादर, तुम्हें मिलेगी विनम्रता, खामोशी, शरमीलापन, घोर निष्कलंकता... फिर भी वह आहें भरती है और मोम की तरह पिघल जाती है, बस पिघलती रहती है! मुझे उससे बचा लो, कुछ भी करके बचा लो! वह तो पटाखा है, एकदम पटाखा। सच कहता हूँ। मैं तुम्हारा पाई-पाई बदला चुका दूँगा, तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा!'

जोसिमोव पहले से भी ज्यादा जोर-से ठहाका मार कर हँसा।

'अरे भाई, काबू से बाहर न हो! मुझे उससे क्या लेना-देना?'

'तुम्हें कुछ ज्यादा मुसीबत नहीं उठानी पड़ेगी, मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ। जो भी जी में आए उससे बकवास करते रहो, बस उसके पास बैठे उससे बातें करते रहो। तुम डॉक्टर भी हो; उसकी भी बीमारी का कुछ इलाज करो। मैं कसम खा कर कहता हूँ कि तुम्हें पछतावा नहीं होगा। उसके पास पियानो है, और तुम तो जानते ही हो, मैं बस थोड़ा-बहुत सुर छेड़ना जानता हूँ। मुझे एक गाना याद है, ठेठ रूसी गाना : 'मैं खून के आँसू रोता हूँ...'। उसे इस तरह की खरी चीजें बहुत पसंद हैं - और हाँ, सारा किस्सा इसी गीत से शुरू हुआ; तुम तो बाकायदा पियानोवादक हो, उस्ताद हो, अपने वक्त के रूबिंस्टाइन हो... मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि तुम्हें किसी तरह का पछतावा नहीं होगा!'

'लेकिन तुमने उससे क्या कोई वादा कर रखा है कुछ लिख कर दिया है शादी करने का वादा... या ऐसी ही कोई और बात?'

'कुछ भी नहीं, कतई नहीं, इस तरह की कोई भी बात नहीं है! इसके अलावा, वह इस तरह की औरत है भी नहीं। चेबारोव ने इसकी कोशिश की थी...'

'तो फिर छोड़ो उसे!'

'लेकिन मैं उसे इस तरह छोड़ नहीं सकता!'

'क्यों नहीं छोड़ सकते?'

'कुछ ऐसी ही बात है कि नहीं छोड़ सकता! एक अजीब कशिश है उसमें, बिरादर!'

'तो फिर तुमने उसे अपने ऊपर फिदा क्यों कर लिया?'

'मैंने उसे फिदा नहीं किया; शायद अपनी बेवकूफी में मैं खुद उस पर फिदा हो गया। लेकिन उसे इस बात की जरा-सी भी परवाह नहीं कि तुम हो या मैं हूँ... बस कोई उसके पास बैठा आहें भरता रहे... यह, बिरादर... मैं सारी बात तुम्हें नहीं समझा सकता... देखो, तुम गणित अच्छी जानते हो, और आजकल उस पर काम भी कर रहे हो... उसे समाकलन गणित पढ़ाना शुरू कर दो; अपनी जान की कसम, मैं मजाक नहीं कर रहा, तुमसे सच कहता हूँ, उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह नजरें जमाए तुम्हें एकटक देखती रहेगी और सालभर तक आहें भरती रहेगी। एक बार मैं लगातार दो दिन तक उससे प्रशा की संसद के ऊपरी सदन की बातें करता रहा (किसी-न-किसी चीज के बारे में तो बात करनी ही थी) - वह बस आहें भर-भर कर पिघलती रही! पर मुहब्बत की बात भूल कर भी न करना - वह शर्मीली तो इतनी है कि दौरा पड़ जाता है - बस उसे इतना जता दो कि तुम्हारा किसी भी तरह वहाँ से उठने को जी नहीं चाहता - बस काफी है। वहाँ हद से ज्यादा आराम है; एकदम अपने घर जैसा लगता है। पढ़ो, बैठो, लेटो, लिखो, जो जी चाहे करो। कभी-कभार थोड़ा प्यार भी कर सकते हो, मगर हाथ-पाँव बचा कर...'

'लेकिन मुझे उससे क्या लेना-देना?'

'आह, तुम्हें मैं कैसे समझाऊँ! देखो, बात यह है कि तुम्हारी जोड़ी लाजवाब रहेगी, तुम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बनाए गए हो! तुम्हारे बारे में मैंने पहले भी सोचा था... आखिर तुम्हें पहुँचना तो यहीं है! तो क्या फर्क पड़ता है, जल्दी पहुँचो या देर में पहुँचो यहाँ परों से भरे गद्दोंवाली कुछ बात है, मेरे भाई - आह! और सिर्फ इतनी ही बात नहीं है। यहाँ एक कशिश है... यहाँ आ कर दुनिया खत्म हो जाती है। समझो कि यह लंगर डालने की जगह है, चैन से रहने की जगह है, जहाँ न कोई झगड़ा है न झंझट। यहीं धरती की धुरी है, वह तीन मछलियाँ जो धरती को अपने ऊपर रोके हुए हैं। बेहतरीन पकवान, जायकेदार कबाब, शाम को दहकते हुए समोवार से चाय की चुस्कियाँ, ठंडी-ठंडी आहें और गर्म शॉल, और सोने के लिए आतिशदान के ऊपर गर्म चबूतरा - ऐसा सुख मिलता है, जैसे मर चुके हो और फिर भी जिंदा रहते हो - एक साथ दोनों चीजों का मजा! खैर बिरादर, छोड़ो ये बातें, मैं भी कहाँ की बकवास ले कर बैठ गया! अब सोने का वक्त हो गया है। सुनो, रात को कभी मेरी आँख खुली तो मैं जा कर उसे देख लिया करूँगा। वैसे कोई जरूरत नहीं है, सब तो ठीक-ठाक ही है। तुम कोई फिक्र न करो; वैसे तुम्हारा जी चाहे तो एक बार तुम भी झाँक लेना। लेकिन अगर कोई बात दिखाई दे -सरसाम हो या बुखार - तो मुझे फौरन जगा लेना। वैसे कोई जरूरत पड़ेगी नहीं...'