अपराध और दंड / अध्याय 3 / भाग 2 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रजुमीखिन अगले दिन सबेरे सात के बाद उठा। वह बहुत परेशान और गंभीर था। उसके सामने बहुत-सी नई और अनसोची परीशानियाँ आ गई थीं। कभी उसने सोचा भी न था कि वह ऐसा जागना महसूस करेगा। पिछले दिन की एक-एक बात उसे याद थी और वह जानता था कि उसे एक बिलकुल ही नया और अनोखा अनुभव हुआ है, कि उसके दिल पर एक ऐसी छाप पड़ी है जैसी इससे पहले कभी नहीं पड़ी थी। इसके साथ ही उसने साफ तौर पर यह भी पहचाना कि जिस सपने ने उसकी कल्पना को जगा दिया था, वह कभी पूरा नहीं हो सकता था, उसका पूरा होना इतना असंभव था कि उसे सोच कर भी शर्म महसूस होती थी। उसने फौरन अपना ध्यान उन अधिक व्यावहारिक चिंताओं और कठिनाइयों की ओर कर दिया जो उसे 'उस अभिशप्त बीते हुए कल' से विरासत में मिली थीं।

उसे पिछले दिन की जो बातें याद थीं, उनमें सबसे अप्रिय यह थी कि उसने अपने 'नीच और कमीना' होने का परिचय दिया था। इस वजह से ही नहीं कि वह नशे में था बल्कि इस वजह से भी कि उसने उस नौजवान लड़की की स्थिति का लाभ उठा कर अपनी मूर्खताभरी ईर्ष्या में उसके मँगेतर को गालियाँ दी थीं, जबकि उसे उनके आपसी संबंधों और दायित्वों के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था, न ही उसे उस आदमी के बारे में ही कुछ मालूम था। तो इतनी जल्दबाजी में बेलगाम हो कर उसे बुरा-भला कहने का अधिकार ही उसे क्या था उसकी राय माँगी किसने थी, यह बात क्या सोची जा सकती थी कि अव्दोत्या रोमानोव्ना जैसी लड़की पैसे के फेर में किसी ऐसे-वैसे आदमी से शादी करेगी? मतलब यह कि उसमें कोई-न-कोई खूबी तो जरूर होगी। रहने की जगह लेकिन उसे आखिर रहने की जगह के बारे में मालूम ही क्या था कि वह कैसी थी वह एक फ्लैट ठीक करा रहा था... छिः! यह सब कुछ किस कदर नफरत के काबिल था! और यह क्या दलील है कि वह नशे में था, इस तरह का लुजलुजा बहाना तो और भी नीचता का सबूत था! शराब में सच्चाई होती है और सारी सच्चाई, 'मतलब यह कि उसके घिनौने और ईर्ष्या भरे हृदय की सारी गंदगी' बाहर आ गई थी! और क्या उसे, रजुमीखिन को, कभी इस बात का सपना देखने का भी हक था ऐसी लड़की के सामने उसकी क्या हस्ती थी -कल रात के इस शराबी बड़बोले की 'क्या कोई ऐसी बेतुकी और बेमेल जोड़ी की कल्पना भी कर सकता था!' रजुमीखिन का चेहरा इस विचार से ही शर्म से लाल हो गया। अचानक उसे साफ-साफ याद आया : कल रात सीढ़ियों पर उसने कहा था कि मकान-मालकिन को अव्दोत्या रोमानोव्ना से जलन होने लगेगी... यह बात तो कभी बर्दाश्त भी नहीं की जा सकती। उसने तंदूर के चबूतरे पर जोर से घूँसा मारा, हाथ भी जख्मी कर लिया, और उसकी एक ईंट भी गिरा दी।

'जाहिर है,' मिनट भर बाद वह आत्मतिरस्कार की भावना से मन-ही-मन बुदबुदाया, 'जाहिर है कि ये सारे कलंक न कभी धुल सकते हैं और न ही उनकी कोई सफाई दी जा सकती है... इसलिए इस बारे में सोचना भी बेकार है। मुझे चुपचाप उनके पास जाना चाहिए और... अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए... वह भी चुपचाप, बल्कि क्षमा भी नहीं माँगनी चाहिए, कुछ भी नहीं कहना चाहिए... क्योंकि सब कुछ मिट्टी में तो मिल ही चुका!'

तो भी कपड़े पहनते वक्त उसने अपना लिबास हमेशा के मुकाबले कहीं ज्यादा सावधानी से देखा। उसके पास कोई दूसरा सूट नहीं था... होता तो भी वह उसे शायद न पहनता। 'मैं उसे हरगिज न पहनता।' लेकिन वह दुनिया से चिढ़ा हुआ, फक्कड़ बना तो घूम नहीं सकता था। उसे दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई अधिकार नहीं था, खास तौर पर जब उन्हें उसकी मदद की जरूरत थी और उन्होंने उसे बुलाया था। उसने अपने कपड़े अच्छी तरह ब्रश से साफ किए। उसकी कमीज हमेशा बहुत बढ़िया रहती थी; इस मामले में वह खास तौर पर बहुत नफासत से और साफ-सुथरा रहता था।

उस सुबह उसने बहुत मल-मल कर अपना बदन साफ किया। नस्तास्या से उसे साबुन का एक टुकड़ा मिल गया था। उसने अपने बाल धोए, गर्दन धोई और हाथ तो खास तौर पर धोए। जब ठोड़ी पर बढ़ी हुई दाढ़ी का सवाल आया कि उसे बनाए या न बनाए (प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना के पास उसके स्वर्गीय पति मि. जार्निस्तीन के बहुत उम्दा उस्तरे थे), तो उसने इस प्रश्न का उत्तर बहुत गुस्से से 'नहीं' में दिया। 'जैसी है रहने दो वैसी ही! अगर उन लोगों ने यह सोचा कि मैं जान-बूझ कर साफ दाढ़ी बना कर आया हूँ ताकि... जरूर वे यही सोचेंगी! नहीं, किसी भी हालत में नहीं।'

'और सबसे खास बात तो यह थी कि वह उजड्ड था, गंदा था, उसके तौर-तरीके पूरी तरह भठियारखाने वाले थे; और... और अगर यह मान भी लें कि उसे मालूम था कि उसमें शरीफ लोगोंवाली कुछ बुनियादी बातें थीं... तो भी इसमें इतना इतराने की क्या बात थी शरीफ तो हर आदमी को होना चाहिए, बल्कि उससे भी बढ़ कर... और भी (उसे याद आया) उसने भी तो ऐसी छोटी-छोटी कुछ बातें की थीं... जिन्हें बेईमानी तो नहीं कहा जा सकता, फिर भी! ...और कभी-कभी उसके मन में विचार कैसे उठते थे! हुँ... और इन सब बातों का मुकाबला अव्दोत्या रोमानोव्ना से! लानत है! खैर, यही सही! अच्छी बात है, वह जान-बूझ कर गंदा रहेगा, चीकट रहेगा, भठियारखानों वाले तौर-तरीके अपनाएगा और रत्ती भर इसकी परवाह नहीं करेगा! बल्कि इससे भी बदतर बन जाएगा!...'

अपने आपसे वह कुछ इसी तरह की बातें कर रहा था कि इतने में जोसिमोव वहाँ आ पहुँचा। रात उसने प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना के घर में बिताई थी।

वह जा तो अपने घर रहा था लेकिन पहले उसे मरीज को देखने की जल्दी थी। उसे रजुमीखिन ने बताया कि रस्कोलनिकोव बहुत गहरी नींद सो रहा है। जोसिमोव ने कहा -उसे जगाया न जाए और लगभग ग्यारह बजे फिर आ कर उसने देखने का वादा करके चला गया।

'वह तब तक अगर घर पर हुआ,' चलते-चलते उसने इतना और जोड़ा। 'लानत है! अगर मरीज काबू में न रहे तो कोई कैसे उसका इलाज करे? तुम्हें मालूम है कि वह उन लोगों के यहाँ जाएगा या वे लोग यहाँ आएँगी?'

'मैं समझता हूँ कि वे लोग ही आ रही हैं,' रजुमीखिन ने उसके प्रश्न का उद्देश्य समझते हुए जवाब दिया, 'और जाहिर है, वे लोग अपने परिवार के मुआमलों की बातें करेंगे। मैं तो चला जाऊँगा। डॉक्टर के नाते तुम्हें यहाँ होने का मुझसे ज्यादा हक है।'

'लेकिन मैं कोई पादरी तो नहीं जिसके सामने आदमी अपने पाप स्वीकार करता है। मैं तो आऊँगा और चला जाऊँगा। उनकी देखभाल के अलावा मुझे और भी बहुत से काम हैं।'

'मुझे एक बात की वजह से काफी परेशानी है,' रजुमीखिन माथे पर बल डाले हुए बीच में बोला। 'घर आते हुए, रास्ते में मैंने उससे नशे में काफी बकवास की थी... दुनिया भर की बातें... और यह भी कि तुम्हें डर है कि वह... पागल हो जाएगा।'

'तुमने माँ-बेटी से भी यह बात कह दी?'

'जानता हूँ मैं कि यह मेरी बेवकूफी थी! तुम्हारा जी चाहे, मुझे पीट लो। तुम क्या सचमुच ऐसा समझते थे?'

'मैं तुम्हें बताता हूँ, यह सब बकवास है। मैं भला ऐसा कैसे सोच सकता हूँ जब तुम मुझे उसके पास ले गए थे, तब खुद तुमने बताया था कि उसे किसी एक बात की सनक चढ़ गई है... पर कल हम लोगों ने आग में घी डालने का काम किया, मतलब यह कि तुमने किया, वह अपने पुताई करनेवाले का किस्सा सुना कर। बहुत अच्छी बातचीत हो रही थी तब, पर शायद उसी बात पर उसका पागलपन भड़क उठा होगा! काश, मुझे मालूम होता कि थाने में क्या-क्या हुआ था और यह कि किसी कमबख्त ने... यही शक करके उसका अपमान किया था! हुँह... तो कल मैं वह बातचीत होने ही न देता। इसी तरह के जुनूनी लोग राई का पहाड़ बना लेते हैं... और अपनी कल्पनाओं को सच्चाई की शक्ल में देखने लगते हैं... मुझे याद आता है कि, जहाँ तक मैं समझता हूँ जमेतोव के किस्से ने इस रहस्य पर से आधा पर्दा हटाया था। अरे मैं तो एक ऐसा मामला भी जानता हूँ जिसमें ऐसे ही एक खब्ती ने, वह चालीस साल का शख्स था, आठ साल के एक लड़के की गर्दन बस इसलिए काट दी थी कि रोज खाने की मेज पर वह लड़का उसका मजाक उड़ाता था। जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था! और इस मामले में तो इसके फटे-पुराने कपड़े, सरफिरा पुलिस अफसर, बुखार, और यह शक! एक आदमी जो बीमारी के खब्त से यूँ ही आधा पागल हो, उसका हद दर्जे बढ़ा हुआ अहंकार बीमारी का रूप ले चुका हो, और उस पर से इन सब बातों का असर! बहुत मुमकिन है कि बीमारी की शुरूआत यही रही हो! खैर, छोड़ो इन बातों को! ...हाँ, यह जमेतोव आदमी तो बहुत उम्दा है, लेकिन... उसे कल रात वह सब कुछ नहीं बताना चाहिए था। वह भी पक्का बातूनी है!'

'लेकिन उसने बताया ही किसे बस तुम्हें और मुझे ही तो!'

'और पोर्फिरी को।'

'तो उससे क्या हुआ?'

'और हाँ, यह तो कहो कि उन लोगों पर तुम्हारा कुछ असर है, उसकी माँ और बहन पर? उनसे कह देना कि आज उसके बारे में जरा ज्यादा सावधानी बरतें...'

'वे ठीक से ही रहेंगी!' रजुमीखिन ने झिझकते हुए जवाब दिया।

'आखिर वह इस लूजिन के इतना खिलाफ क्यों है? पैसेवाला आदमी है और वह उसे ऐसा कोई नापसंद भी नहीं करती... जहाँ तक मैं समझता हूँ, इन लोगों के पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है, क्यों?'

'ये सब सवाल भला क्यों?' रजुमीखिन चिढ़ कर बोला। 'मुझे क्या मालूम कि उनके पास एक कौड़ी भी है कि नहीं जा कर खुद पूछ लो, शायद पता चल जाए...'

'उफ! तुम भी कभी-कभी कैसी गधेपन की बातें करते हो! कल रात की चढ़ी हुई अभी तक उतरी नहीं! खैर, मैं चला; मेरी तरफ से अपनी प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना को रात में मुझे ठहराने का शुक्रिया अदा कर देना। वह तो कमरा अंदर से बंद करके बिस्तर पर दराज, मैंने दरवाजे के बाहर से सलाम किया तो उसका भी जवाब नहीं; सुबह सात बजे उठीं, रसोई से समोवार सीधा उनके कमरे में लाया गया। मुझे तो उनका दीदार तक नसीब नहीं हुआ...'

ठीक नौ बजे रजुमीखिन बकालेयेव के मकान पर पहुँचा। दोनों महिलाएँ घबराई हुई, बेचैनी से उसकी राह देख रही थीं। वे सात बजे या उससे भी पहले उठ गई थीं। वह अंदर आया तो चेहरे पर रात जैसी स्याही छाई हुई थी। कुछ गड़बड़ा कर वह सलाम करने के अंदाज में झुका और इस बात पर फौरन ही अपने आपको धिक्कारने लगा। उसे इस बात का पूरा-पूरा अंदाजा भी नहीं था कि वह मिलने किससे आया है। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उसकी ओर लपक ही पड़ीं। उन्होंने तपाक से उसके दोनों हाथ पकड़े और उन्हें लगभग चूमने लगीं। रजुमीखिन ने डरते-डरते कनखियों से अव्दोत्या रोमानोव्ना की ओर देखा, लेकिन उस पल उसके गर्वमय चेहरे पर कृतज्ञता और मित्रता का, संपूर्ण और अप्रत्याशित सम्मान का ऐसा भाव था। (जबकि वह उपहास दृष्टि और खुले तिरस्कार की आशा ले कर आया था) कि वह और भी निराश हो उठा। अगर उसे गाली दी गई होती तो भी वह शायद इतना न बौखलाता। सौभाग्य से बातचीत के लिए एक विषय तो था ही और वह फौरन उसका सहारा लेने से नहीं चूका।

यह सुन कर कि सब कुछ ठीक चल रहा था और उनका बेटा अभी तक जागा नहीं था, पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने इस बात पर अपनी खुशी का ऐलान किया क्योंकि 'एक बात ऐसी थी जिसके बारे में पहले से बात कर लेना बहुत ही जरूरी था।' इसके बाद नाश्ते की बात पूछी गई और उसे भी साथ ही नाश्ता करने का निमंत्रण मिला। वे लोग भी वास्तव में उसके साथ ही नाश्ता करने का इंतजार कर रही थीं। अव्दोत्या रोमानोव्ना ने घंटी बजाई। घंटी सुन कर फटे-पुराने, मैले कपड़े पहने एक गंदा-सा वेटर आया जिससे उन्होंने चाय लाने को कहा। आखिरकार चाय आई लेकिन ऐसे गंदे और बेहूदा ढंग से कि दोनों महिलाएँ शर्मिंदा हो गईं। रजुमीखिन ने ठहरने की उस जगह पर भड़भड़ाना शुरू ही किया था कि लूजिन की याद आते ही वह सकपका कर रुक गया। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के सवालों की लगातार झड़ी से उसे बड़ी राहत मिली।

वह पौन घंटे तक बोलता रहा; बीच-बीच में वे दोनों उससे कुछ सवाल भी पूछती रहीं। रस्कोलनिकोव के पिछले एक साल के जीवन की जो सबसे महत्वपूर्ण बातें उसे मालूम थीं, वे उनके सामने उसने बयान कर दीं और अंत में उसकी बीमारी से संबंधित परिस्थितियों का ब्यौरा भी दे दिया। लेकिन उसने बहुत-सी बातें छोड़ भी दीं, जिनका छोड़ दिया जाना ही बेहतर था। इनमें थाने का वह दृश्य और उसके बाद की घटनाएँ शामिल थीं। उन्होंने उत्सुकता से यह पूरा किस्सा सुना और जब वह यह समझ रहा था कि वह अपनी बात खत्म कर चुका और उसके सुननेवालों की तसल्ली हो गई होगी, तभी उसे पता चला कि वे लोग यह समझ रही थीं कि उसने अभी अपनी बात शुरू भी नहीं की है।

'अच्छा बताओ, मुझे बताओ! तुम्हारे खयाल में... माफ करना, मुझे अभी तक तुम्हारा नाम भी नहीं मालूम!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना जल्दी से बोलीं।

'द्मित्री प्रोकोफिच!'

'मैं यह जानना चाहूँगी, द्मित्री प्रोकोफिच, पूरे दिल से जानना चाहूँगी कि आमतौर पर सभी बातों के बारे में अब... उसका रवैया क्या है... मेरा मतलब है... कैसे समझाऊँ... क्या बातें उसे पसंद हैं और क्या नापसंद हैं वह हमेशा क्या ऐसे ही चिड़चिड़ा रहता है अगर तुम्हें मालूम हो तो बताओ कि उसकी उम्मीदें क्या हैं और यूँ समझ लो कि उसके सपने क्या हैं, इस वक्त उस पर किन-किन बातों का असर पड़ रहा है कुल मिला कर मेरा मतलब यह है कि मैं चाहूँगी...'

'माँ, इतनी सारी बातों का जवाब कोई एक साथ कैसे दे सकता है,' दूनिया ने टोका।

'भगवान ही जानता है द्मित्री प्रोकोफिच, मुझे इसकी जरा भी उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसी हालत में होगा!'

'स्वाभाविक है मादाम,' रजुमीखिन ने जवाब दिया। 'मेरी माँ तो रहीं नहीं, लेकिन मेरे चाचा हर साल आते हैं और लगभग हर बार ऐसा होता है कि वे मुझे मुश्किल से ही पहचान पाते हैं, यहाँ तक कि मेरी सूरत भी नहीं पहचानते, हालाँकि वे बहुत होशियार आदमी हैं। और आपके तीन साल से अलग रहने से भी बहुत फर्क पड़ा होगा। आपसे अब मैं क्या बताऊँ! रोदिओन को मैं डेढ़ साल से जानता हूँ। वह कुछ खोया-खोया उदास-सा रहता है, स्वाभिमानी है और जिद्दी भी, और इधर कुछ समय से - हो सकता है और भी पहले से - शक्की भी हो गया है। अपने मन से कोई बात सोच कर फिर उसी को पकड़ कर बैठ जाता है। स्वभाव का बहुत अच्छा और दिल का नेक है। सबके सामने अपनी भावनाओं को जाहिर करना पसंद नहीं करता और भले ही उसे बेरहमी का बर्ताव करना पड़े, अपने दिल की बात खोल कर सामने कभी नहीं रखेगा। कभी-कभी यूँ भी होता है कि किसी कुंठा या बीमारी का शिकार हुए बिना वह एकदम निर्मम और अमानवीय सीमा तक कठोर हो जाता है। तब लगता है कि एक नहीं, दो आदमी हैं; कभी वह एक हो जाता है, कभी दूसरा। कभी-कभी तो अपने आपमें इतना सिमट जाता है कि डर लगने लगता है। कहता है उसे इतना काम है कि हर चीज से उसमें बाधा पड़ती है लेकिन बस बिस्तर पर पड़ जाता है, करता कुछ भी नहीं है। किसी चीज का वह मजाक भी नहीं उड़ाता, इसलिए नहीं कि उसमें इतनी बुद्धि नहीं है बल्कि लगता है उसके पास ऐसी टुच्ची बातों में गँवाने के लिए वक्त नहीं है। उससे जो कुछ कहा जाता है, उसे कभी भी पूरी तरह नहीं सुनता। किसी खास मौके पर लोग जिस बात में दिलचस्पी लेते हैं, उसमें उसे कोई दिलचस्पी नहीं रहती। अपने आप को बहुत भाव देता है और शायद यह ठीक ही करता है। बस, और क्या बताऊँ! मैं समझता हूँ उस पर आप लोगों के आने का अच्छा ही असर पड़ेगा।'

'भगवान करे ऐसा ही हो,' उनके रोद्या का रजुमीखिन ने जो बयान किया था, उससे दुखी हो कर पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने आशा व्यक्त की।

आखिरकार रजुमीखिन ने अब अव्दोत्या रोमानोव्ना की ओर कुछ और भी बेझिझक हो कर देखने की हिम्मत की। जब वह बातें कर रहा था तो बीच-बीच में अकसर कनखियों से उसकी ओर देख लेता था, लेकिन बस एक पल के लिए देख कर अपनी नजरें फौरन दूसरी ओर फेर लेता था। अव्दोत्या रोमानोव्ना मेज के पास बैठी ध्यान से सुन रही थी। थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह उठती और सीने पर हाथ बाँधे, होठ भींचे, कमरे में इधर-से-उधर टहलने लगती। बीच-बीच में टहलना रोके बिना वह कोई सवाल भी पूछ लेती। उसकी भी आदत यही थी कि जो कुछ कहा जाता था, उसे सुनती नहीं थी। उसने गहरे रंग के महीन कपड़े की पोशाक पहन रखी थी और गले में सफेद रंग का झीना रूमाल लपेट रखा था। रजुमीखिन को उनकी हर बात में बेहद गरीबी की झलक पाने में कुछ ज्यादा समय नहीं लगा। वह महसूस कर रहा था कि अव्दोत्या रोमानोव्ना अगर किसी महारानी की तरह सजी-बनी होती तो उससे उसे कोई डर नहीं लगता। लेकिन शायद इसी वजह से कि उसके कपड़े मामूली थे और उसके चारों ओर की हर चीज से मुफलिसी टपकती दिखाई देती थी, उसके दिल में डर समा गया। उसे अपने कहे हर शब्द से, हर हाव-भाव से डर लगने लगा था, और जो आदमी पहले से ही सहमा-सहमा हो उसके लिए यह बहुत ही परीशानी की बात थी।

'आपने मेरे भाई के स्वभाव के बारे में बहुत दिलचस्प बातें बताई हैं... और बड़े निष्पक्ष ढंग से बताई हैं। मुझे इस बात की खुशी है। मैं समझती थी आपको उनसे इतना गहरा लगाव है कि आप उनमें कोई बुराई देख ही नहीं सकते,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने मुस्करा कर कहा। 'मैं समझती हूँ आपका यह कहना एकदम ठीक है कि उन्हें किसी औरत की बहुत जरूरत है,' कुछ सोच कर उसने इतना और जोड़ दिया।

'मैंने यह बात कही तो नहीं थी लेकिन इतना मैं जरूर कह सकता हूँ कि आपका यह कहना एकदम ठीक है; बात बस इतनी-सी है कि...'

'क्या?'

'वह किसी से प्यार नहीं करता और शायद कभी करे भी नहीं,' रजुमीखिन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।

'आपका मतलब यह है कि वह प्यार कर ही नहीं सकता?'

'आपको शायद मालूम नहीं अव्दोत्या रोमानोव्ना कि आप हर बात में हू-ब-हू अपने भाई जैसी हैं!' अचानक उसके मुँह से यह बात निकल गई और उसे इस पर खुद भी आश्चर्य हुआ। लेकिन फौरन यह याद आते ही कि अभी-अभी इससे पहले उसने उसके भाई के बारे में क्या कहा था, उसका रंग लाल हो गया और वह सिटपिटा गया। उसे देख कर अव्दोत्या रोमानोव्ना को बरबस हँसी आ गई।

'रोद्या के बारे में तुम दोनों गलती पर हो सकते हो,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने कुछ खीझ कर कहा। 'मैं अभी की उलझन की बात नहीं कर रही, दूनिया बेटी। प्योत्र पेत्रोविच ने अपने इस खत में जो कुछ लिखा है और जो कुछ तुम और मैं अपने मन में माने बैठे हैं, वह गलत हो सकता है। लेकिन, द्मित्री प्रोकोफिच, तुम सोच भी नहीं सकते कि वह कितना सनकी है। बस यूँ समझो कि बेहद बदमिजाज। जब वह पंद्रह साल का था तभी से मुझे कभी यह भरोसा नहीं रहा कि कब क्या कर बैठेगा। मुझे तो बल्कि पूरा यकीन है कि वह अब भी कोई ऐसा काम कर बैठेगा जिसे करने की बात कोई दूसरा आदमी सोच तक नहीं सकता... अब जैसे इसी बात को ले लो... बस डेढ़ साल पहले की बात है कि उसने मुझे ऐसे चक्कर में डाल दिया और मुझे ऐसा गहरा सदमा पहुँचाया कि मैं बस मरते-मरते बची... जब वह उस लड़की से ब्याह करने की सोच रहा था - क्या नाम था उसका? ...अरे वही, उसकी मकान-मालकिन की बेटी!'

'आपने उस मामले के बारे में विस्तार से सुना था?' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने पूछा।

'क्या तुम समझती हो...' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना जोश के साथ अपनी बात कहती रहीं, 'कि मैं घड़े-घड़े आँसू बहाती, बेपनाह रोती-गिड़गिड़ाती, बीमार पड़ जाती, दुख से मर भी जाती... या फिर हमारी गरीबी... कोई भी चीज उसे रोक सकती थी नहीं, इन सारी बाधाओं की परवाह किए बिना वह चुपचाप अपने रास्ते पर आगे चलता जाता। तो क्या हम लोगों से उसे प्यार नहीं?'

'उस सिलसिले के बारे में उसने मुझसे कभी एक बात भी नहीं कही,' रजुमीखिन ने सावधान हो कर जवाब दिया। 'लेकिन मैंने इस बारे में खुद प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना के मुँह से कुछ सुना था, हालाँकि वह ऐसी औरत हरगिज नहीं है कि किसी के बारे में यूँ ही कोई बात फैलाए। और जो कुछ मैंने सुना था वह सचमुच जरा अजीब था।'

'क्यों... क्या सुना तुमने?' दोनों औरतों ने एक साथ पूछा।

'खैर, कोई खास बात नहीं। मुझे तो बस इतना मालूम हुआ कि वह शादी, जो सिर्फ उस लड़की के मरने की वजह से नहीं हो सकी, प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना को कतई पसंद नहीं थी। लोग तो यह भी कहते हैं कि लड़की कतई सुंदर नहीं थी। वास्तव में मैंने तो यहाँ तक सुना है कि वह एकदम बदसूरत थी... हमेशा बीमार रहती थी... और कुछ अजीब-सी थी। लेकिन ऐसा लगता है कि उस लड़की में कुछ अच्छाइयाँ भी थीं। कुछ न कुछ अच्छाइयाँ उसमें जरूर रही होंगी, वरना यह बात समझ में नहीं आती... दहेज के नाम पर भी कुछ नहीं था और उसके पैसे के चक्कर में यह पड़ता भी नहीं... लेकिन ऐसे किसी मामले में कोई फैसला करना हमेशा मुश्किल होता है।'

'मुझे तो यकीन है कि वह जरूर अच्छी लड़की रही होगी,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने संक्षेप में अपनी राय दी।

'भगवान मुझे क्षमा करे, मैं उसके मरने पर बहुत खुश हुई थी। यूँ मैं ठीक से नहीं कह सकती कि दोनों में से कौन किसे ज्यादा तकलीफ पहुँचाता - यह उसको पहुँचाता या वह इसको पहुँचाती,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने इस सिलसिले को खत्म करते हुए कहा। इसके बाद उन्होंने लूजिन के साथ कल जो कांड हुआ था, उसके बारे में टोह लेने के लिए उससे कुछ सवाल पूछने शुरू किए। वे कुछ झिझक रही थीं और बीच-बीच में कनखियों से लगातार दूनिया को देखती जाती थीं, जिस पर दूनिया को, साफ था कि उलझन हो रही थी। जाहिर था कि और चाहे जो कुछ भी हुआ था, उन्हें सबसे बढ़ कर इस घटना की वजह से काफी बेचैनी, बल्कि कहना चाहिए कि परीशानी थी। रजुमीखिन ने विस्तार से एक बार फिर सारी घटना बयान की, लेकिन इस बार वह अपनी राय भी जोड़ता गया। उसने खुल कर रस्कोलनिकोव को जान-बूझ कर प्योत्र पेत्रोविच का अपमान करने का दोषी ठहराया, और उसकी बीमारी की वजह से भी उसे माफ करने की कोशिश नहीं की।

'उसने अपनी बीमारी से पहले ही इसकी ठान रखी थी,' आखिर में उसने यह भी कहा।

'मेरा भी यही खयाल है,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने निराशा के भाव से अपनी सहमति दी। लेकिन उन्हें यह सुन कर बहुत ताज्जुब हो रहा था कि रजुमीखिन सावधानी से, बल्कि एक हद तक प्योत्र पेत्रोविच के प्रति सम्मान की भावना के साथ अपनी राय जाहिर कर रहा था। अव्दोत्या रोमानोव्ना को भी यह बात कुछ खटकी।

'तो प्योत्र पेत्रोविच के बारे में तुम्हारी राय यह है?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उससे पूछे बिना न रह सकीं।

'आपकी बेटी के होनेवाले पति के बारे में मेरी राय और क्या हो सकती है,' रजुमीखिन ने दृढ़ता और सहृदयता से जवाब दिया, 'पर मैं यह बात कोरी शिष्टता के नाते नहीं कह रहा, बल्कि इसलिए... सिर्फ इसलिए कह रहा हूँ कि अव्दोत्या रोमानोव्ना ने अपनी मर्जी से इस आदमी को स्वीकार किया है। कल रात उनके बारे में मैं जो बदतमीजी से बातें कर रहा था, उसकी वजह यह थी कि मैं बुरी तरह नशे में था और... उसके अलावा कुछ पागल भी हो गया था : जी हाँ, पागल, दीवाना, मेरा दिमाग एकदम फिर गया था... और मैं आज सुबह से अपनी उस हरकत पर शर्मिंदा हूँ।' उसका चेहरा लाल हो गया और इसके आगे वह कुछ और न बोल सका। अव्दोत्या रोमानोव्ना के चेहरे पर भी लाली दौड़ गई, लेकिन उसने भी इस चुप्पी को नहीं तोड़ा। जबसे उन लोगों ने लूजिन की चर्चा छेड़ी थी, तब से उसने एक शब्द भी नहीं कहा था।

उसके समर्थन के बिना पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। आखिर अटक-अटक कर बोलते हुए और बराबर कनखियों से अपनी बेटी की ओर देखते हुए उन्होंने यह बात मानी कि वे एक बात की वजह से बेहद परेशान थीं।

'देखो, द्मित्री प्रोकोफिच,' उन्होंने कहना शुरू किया। 'मैं द्मित्री प्रोकोफिच से खुल कर बात करूँ, दुनेच्का?'

'हाँ माँ, क्यों नहीं,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने जोर दे कर कहा।

'असल में बात यह है,' उन्होंने जल्दी-जल्दी अपनी बात कहनी शुरू की, गोया अपनी परीशानी के बारे में बातें करने की इजाजत पा कर उनके दिमाग पर से कोई बोझ हट गया हो। 'आज बहुत सबेरे प्योत्र पेत्रोविच ने हमारे पास हमारे उस खत के जवाब में, जिसमें हमने उन्हें यहाँ अपने पहुँचने की खबर दी थी, एक पर्चा लिख कर भेजा। उन्होंने हमें लेने के लिए स्टेशन आने का वादा किया था, यह तो तुम जानते ही हो। पर इसकी बजाय उन्होंने रहने की इस जगह का पता हमें एक नौकर के हाथ भिजवा दिया और उससे हमें यहाँ तक का रास्ता बताने को कह दिया। हाँ, उन्होंने यह संदेश भी भिजवाया कि वे आज सबेरे यहाँ आएँगे। लेकिन आज सबेरे उनका यह पर्चा आया... तुम खुद पढ़ लो; इसमें एक बात भी है जिसकी वजह से मुझे बड़ी चिंता हो रही है... अभी तुम्हारी समझ में आ जाएगा कि वह कौन-सी बात है और द्मित्री प्रोकोफिच... मुझे अपनी राय सही-सही बताना! तुम रोद्या के स्वभाव को जितनी अच्छी तरह जानते हो, उतनी अच्छी तरह और कोई नहीं जानता, और हमें तुमसे बेहतर सलाह भी और कोई नहीं दे सकता। मैं तुम्हें बता दूँ कि दूनिया ने तो फौरन अपना फैसला कर लिया था लेकिन मैं अभी तक अपना मन नहीं बना सकी कि हमें क्या कदम उठाना चाहिए और मैं... मैं तुम्हारी राय जानने की राह देख रही थी।'

रजुमीखिन ने पर्चा खोला जिस पर पिछली शाम की तारीख पड़ी थी। लिखा था :

'प्रिय महोदया पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना, मैं पूरे सम्मान के साथ आपको यह सूचना देना चाहता हूँ कि ऐसी कुछ अड़चनों की वजह से, जिनका मुझे पहले से कोई पता नहीं था, मैं इतना लाचार रहा कि आपको लेने रेलवे स्टेशन नहीं आ सका; इस काम के लिए मैंने एक बहुत जिम्मेदार आदमी को भेज दिया था। कल सबेरे भी मैं आपके दर्शन पाने का सौभाग्य नहीं पा सकूँगा क्योंकि सेनेट में एक ऐसा काम आ पड़ा है, जिसे टाला नहीं जा सकता। अलावा इसके यह बात भी है कि जब आप अपने बेटे से और अव्दोत्या रोमानोव्ना अपने भाई से मिल रही हों तो मैं उस मुलाकात में विघ्न नहीं डालना चाहता। मैं आपसे मिलने और आपके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने आपके निवास-स्थान पर कल शाम तक, बल्कि हद-से-हद आठ बजे तक उपस्थित हूँगा और इसके साथ ही मैं आपकी सेवा में अपनी यह हार्दिक, बल्कि मैं यह भी कह दूँ कि नितांत आवश्यक, प्रार्थना भी रखना चाहता हूँ कि हमारी भेंट के समय रोदिओन रोमानोविच वहाँ उपस्थित न रहें... क्योंकि मैं कल जब उनकी बीमारी के बीच उन्हें देखने गया तो उन्होंने सरासर मेरा ऐसा खुला अपमान किया कि आज तक किसी ने नहीं किया। अलावा इसके, मैं एक बात के बारे में आपसे निजी तौर पर नितांत आवश्यक और विस्तृत सफाई चाहता हूँ, क्योंकि मैं जानना चाहता हूँ कि इस बात के बारे में आपकी क्या राय है। मैं आपको पहले से ही यह सूचना भी देना चाहूँगा कि अगर मेरी इस प्रार्थना के बावजूद रोदिओन रोमानोविच से वहाँ भेंट हुई तो मैं वहाँ से फौरन चले आने पर मजबूर हूँगा और इसके लिए केवल आप दोषी होंगी। ये बातें मैं यह मान कर लिख रहा हूँ कि रोदिओन रोमानोविच, जो उनको देखने के लिए मेरे जाने के समय काफी बीमार लग रहे थे, अचानक दो ही घंटे बाद एकदम चंगे हो गए थे और इसलिए, घर से बाहर निकल सकने योग्य होने की वजह से, हो सकता है कि वह आपसे भी मिलने आएँ। मेरा यह विश्वास उस बात से और भी पक्का हो गया है, जो मैंने खुद एक शराबी के घर पर देखी जो सड़क पर गाड़ी से कुचल गया था और बाद में मर भी गया। उसकी बेटी को, जो बदचलन है, उन्होंने कफन-दफन के बहाने पच्चीस रूबल भी दिए, जिस पर मुझे गहरी हैरानी हुई क्योंकि मुझे मालूम था कि आपने वह रकम कितनी तकलीफें उठ कर जमा की थीं। इसके साथ ही आपकी सम्मानित पुत्री अव्दोत्या रोमानोव्ना के प्रति अपना विशेष सम्मान प्रकट करते हुए मैं आपसे मेरा श्रद्धापूर्ण नमस्कार स्वीकार करने की प्रार्थना करता हूँ।

आपका विनीत सेवक,

प. लूजिन।'

'अब मैं क्या करूँ द्मित्री प्रोकोफिच' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने लगभग रोते हुए अपनी बात कहनी शुरू की। 'मैं भला रोद्या को यहाँ आने से कैसे मना कर सकती हूँ कल उसने इतनी जिद करके कहा कि हम प्योत्र पेत्रोविच से साफ इनकार कर दें और अब हमें हुक्म दिया जा रहा है कि हम रोद्या को अपने यहाँ न आने दें! अगर उसे मालूम हो गया तो वह जान-बूझ कर यहाँ आएगा और... तब क्या होगा'

'अव्दोत्या रोमानोव्ना जो फैसला करें वैसा कीजिए,' रजुमीखिन ने फौरन और शांत भाव से उत्तर दिया।

'आह, कुछ समझ में नहीं आता! वह कहती है... भगवान जाने क्या कहती है... वह कुछ बताती ही नहीं कि चाहती क्या है! वह तो कहती है कि सबसे अच्छा यही होगा, या सबसे अच्छा न भी सही, लेकिन यह जरूरी है कि रोद्या यहाँ आठ बजे मौजूद रहे और यह कि उन दोनों की मुलाकात हो... मैं उसे यह खत भी नहीं दिखाना चाहती थी, बल्कि उसे तुम्हारी मदद से किसी तरकीब से यहाँ आने से रोकना चाहती थी... क्योंकि वह काफी चिड़चिड़ा हो गया है... इसके अलावा वह बात भी मेरी समझ में नहीं आती, उस शराबी की, जो मर गया और उसकी बेटी की, कि उसने उसकी बेटी को सारा पैसा दे कैसे दिया... जिसके...'

'जिसके लिए तुम्हें काफी कुरबानी देनी पड़ी थी, माँ,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने उसकी बात पूरी की।

'वह कल अपने होश में नहीं था,' रजुमीखिन ने कुछ सोचते हुए कहा, 'काश आपको मालूम होता कि कल उसने एक रेस्तराँ में क्या किया, हालाँकि उसमें भी एक तुक था... हुँ! कल रात जब हम लोग घर जा रहे थे तो एक मरे हुए आदमी और एक लड़की के बारे में वह कुछ कह तो रहा था लेकिन मेरी समझ में एक शब्द भी नहीं आया... लेकिन कल रात मैं खुद भी...'

'सबसे अच्छी बात यह होगी माँ, कि हम लोग खुद उसके पास जाएँ और मैं यकीन दिलाती हूँ कि वहाँ पहुँच कर हमारी समझ में फौरन आ जाएगा कि हमें क्या करना है। इसके अलावा, अब देर भी हो रही है - बाप रे, दस बज चुके,' वह अपने गले में वेनिस की बनी महीन-सी जंजीर से लटकी हुई एक बहुत ही शानदार सुनहरी घड़ी में, जिसका उसकी बाकी पोशाक के साथ कोई मेल नहीं दिखाई पड़ रहा था, वक्त देख कर चिल्ला पड़ी। 'मँगेतर ने तोहफे में दी होगी,' रजुमीखिन ने सोचा।

'हमें चलना चाहिए बेटी, फौरन चल देना चाहिए,' उसकी माँ ने हड़बड़ी में कहा। 'हमारे इतनी देर से आने पर वह यही सोचेगा कि कलवाली बात पर हम लोग अभी तक नाराज हैं। भगवान भला करे।'

यह कहते हुए उन्होंने जल्दी-जल्दी अपना लबादा पहना और टोपी लगा ली; दूनिया भी तैयार हो गई। रजुमीखिन ने देखा कि उसके दस्ताने बदरंग और भद्दे ही नहीं थे बल्कि उनमें जगह-जगह सूराख भी हो गए थे। तो भी पोशाक से साफ दिखाई देनेवाली गरीबी की वजह से दोनों महिलाओं में एक विशेष गरिमा आ गई थी, जो ऐसे लोगों में हमेशा पाई जाती है, जो मामूली कपड़े भी सँवार कर सलीके से पहनना जानते हैं। रजुमीखिन ने श्रद्धा के साथ दूनिया की ओर देखा और इस बात पर गर्व का अनुभव किया कि वह उसके साथ चल रहा था। 'वह रानी जो कैदखाने में अपने मोजे रफू करती थी,' उसने सोचा, 'उस वक्त भी सोलहों आने रानी ही लगती होगी, बल्कि जैसी वह आलीशान दावतों में और दरबार लगने पर लगती रही होगी, उससे भी ज्यादा रानी लगती होगी।'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने दुखी हो कर कहा, 'मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे कभी अपने बेटे से, अपने कलेजे के टुकड़े रोद्या से, मिलने में भी डर लगेगा। मुझे तो अब डर लग रहा है, द्मित्री प्रोकोफिच,' उन्होंने सहमी हुई नजर से उसे देख कर कहा।

'डरो नहीं, माँ,' दूनिया ने उन्हें चूमते हुए कहा, 'भरोसा करो उस पर, जैसे मैं करती हूँ।'

'अरे, भरोसा तो है उस पर लेकिन सारी रात मेरी आँख नहीं लगी,' बेचारी माँ ने कातर हो कर कहा।

वे लोग बाहर सड़क पर आ चुके थे।

'जानती हो दूनिया, मेरी आँख आज सबेरे जब थोड़ी देर को लगी तो मैंने सपने में मार्फा पेत्रोव्ना को देखा... वे सर से पाँव तक सफेद कपड़े पहने थीं... मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी ओर सर हिलाया, लेकिन इतने झटके से गोया मुझे दोष दे रही हों... यह क्या अच्छा शगुन है अरे, तुम नहीं जानते द्मित्री प्रोकोफिच, मार्फा पेत्रोव्ना मर चुकी हैं!'

'नहीं, मुझे नहीं मालूम था। ये मार्फा पेत्रोव्ना हैं कौन?'

'एकदम अचानक मर गईं; जरा सोचो...'

'बाद में, माँ,' दूनिया ने बात काटते हुए कहा। 'इन्हें क्या मालूम कि मार्फा पेत्रोव्ना कौन थीं।'

'अरे, तुम नहीं जानते मैं समझ रही थी तुम्हें हम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम है। माफ करना, द्मित्री प्रोकोफिच, इधर कुछ दिनों से मैं न जाने क्या-क्या सोचती रहती हूँ। मैं तुम्हें सचमुच हम सबके लिए भगवान की देन समझती हूँ, और इसलिए मैंने मान लिया था कि तुम हम लोगों के बारे में सब कुछ जानते होगे। मैं तो तुम्हें अपना रिश्तेदार समझने लगी हूँ... मेरी इस बात का बुरा न मानना। अरे, यह तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या हुआ कहीं चोट खा ली क्या?'

'हाँ, चोट लग गई थी,' रजुमीखिन ने दबे स्वर में जवाब दिया। वह खुशी से फूला जा रहा था।

'मैं कभी-कभी अपने दिल की बात कह देती हूँ, और दूनिया मुझे टोकती है... लेकिन भैया, वह भी कैसे दड़बे में रहता है! मालूम नहीं, अभी जागा भी होगा कि नहीं। यह औरत, उसकी मकान-मालकिन, उस जगह को कमरा कहती है सुना, तुम कह रहे थे कि वह अपनी भावनाएँ किसी के सामने खोल कर रखना नहीं चाहता... तो मैं अगर अपनी कमजोरियाँ उसके सामने रखूँगी तो उसे झुँझलाहट ही होगी! मुझे सलाह दो द्मित्री प्रोकोफिच, मैं उसके साथ किस तरह का बर्ताव करूँ। मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता, मैं तो एकदम हैरान-सी हूँ!'

'उसके माथे पर अगर बल पड़े हुए हों तो उससे किसी बात के बारे में कुछ ज्यादा मत पूछिएगा। उससे उसकी तंदुरुस्ती के बारे में ज्यादा मत पूछिएगा; यह उसे अच्छा नहीं लगता।'

'आह, द्मित्री प्रोकोफिच, माँ होना भी कैसी मुसीबत है! लो, ये तो सीढ़ियाँ आ गईं... कैसी बेढब सीढ़ियाँ हैं!'

'माँ, तुम्हारा चेहरा एकदम पीला पड़ गया है! इतनी दुखी न हो, माँ,' दूनिया ने एक बाँह में उसे कसते हुए कहा और फिर चमकती हुई आँखों से देख कर बोली : 'वह तुम्हें देख कर खुश ही होगा, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो।'

'आप लोग ठहरिए, मैं जरा झाँक कर देख तो लूँ कि वह जाग गया है या नहीं।'

रजुमीखिन आगे बढ़ गया। दोनों औरतें धीरे-धीरे पीछे आ रही थीं। जब वे चौथी मंजिल पर मकान-मालकिन के दरवाजे पर पहुँचीं तो उन्होंने देखा कि उसके दरवाजे में एक पतली-सी दरार खुली थी और अंदर के अँधेरे में से दो काली-काली आँखें उन्हें देख रही थीं। जब उनकी आँखें मिलीं तो दरवाजा अचानक इतने जोर से बंद कर दिया गया कि पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के मुँह से चीख निकलते-निकलते रह गई।