अपराध और दंड / अध्याय 3 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'ठीक, बिलकुल ठीक!' जोसिमोव उनके अंदर आते ही खुश हो कर ऊँचे स्वर में बोला। वह दस मिनट पहले ही आया था और सोफे पर पहलेवाली जगह पर ही बैठा था। रस्कोलनिकोव सामनेवाले कोने में बैठा था। वह मुँह-हाथ अच्छी तरह धोए हुए, बाल बनाए हुए और सारे कपड़े पहने हुए था, जैसा कि उसने इधर एक अरसे से नहीं किया था। कमरा ठसाठस भर गया। नस्तास्या फिर भी मेहमानों के पीछे-पीछे अंदर आ गई और उनकी बातें सुनने के लिए वहीं रुकी रही।

कल की हालत के मुकाबले में रस्कोलनिकोव लगभग पूरी तरह ठीक था, हालाँकि उसका चेहरा अब भी पीला, बेजान और उदास लगता था। देखने में वह किसी घायल आदमी जैसा या किसी ऐसे शख्स जैसा लगता था जो कोई भयानक शारीरिक कष्ट झेल चुका हो। भौहें तनी हुईं, होठ भिंचे हुए और आँखों में बुखार जैसी हालत। बहुत थोड़ा बोलता था और वह भी अटक-अटक कर, मानो कोई फर्ज पूरा कर रहा हो। चाल-ढाल में एक बेचैनी-सी थी।

बस एक ही कमी रह गई थी। अगर उसकी बाँह स्लिंग में टिकी होती या उँगली पर पट्टी बँधी होती तो उसका हुलिया उस आदमी जैसा होता, जिसके हाथ में चोट लगी हुई हो या जिसे कोई फोड़ा बेहद दर्द कर रहा हो।

माँ और बहन के आने पर उसके पीले, उदास चेहरे पर एक पल के लिए चमक-सी आ गई। लेकिन इसी वजह से उस पर निराशा की मुर्दनी की बजाय गहरी पीड़ा का भाव आ गया था। चमक तो थोड़ी देर में गायब हो गई लेकिन पीड़ा का भाव बना रहा। नई-नई डॉक्टरी शुरू करनेवाले नौजवान डॉक्टर के पूरे उत्साह के साथ जोसिमोव ने अपने मरीज को ध्यान से देखा, उसकी हालत पर गहराई से विचार किया और यह नतीजा निकाला कि अपनी माँ और बहन के आने से उसे कोई खुशी नहीं हुई थी, बल्कि अंदर ही अंदर कोई कड़वा संकल्प पैदा हो गया था, यह कि वह एक बार फिर घंटे-दो घंटे यातना झेल लेगा, जिसे टाला नहीं जा सकता था। बाद में उसने देखा कि उनके बीच जो बातचीत हुई उसका एक-एक शब्द गोया किसी दुखते हुए जख्म को छेड़ कर उसमें टीस पैदा कर रहा था। लेकिन इसके साथ ही उसे उस मरीज की अपने पर काबू रखने और अपनी भावनाओं को छिपाने की ताकत पर हैरत भी हो रही थी, जो अभी कल तक जरा-जरा-सी बात पर पागलों की तरह भड़क उठता था।

'हाँ, मुझे खुद लगता है कि मैं लगभग एकदम ठीक हो चुका हूँ,' रस्कोलनिकोव ने माँ और बहन को चूम कर उनका स्वागत करते हुए कहा। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना फौरन इससे चहक उठीं। 'और मैं यह बात उसी तरह नहीं कह रहा जिस तरह कल कही थी,' उसने दोस्ताना ढंग से रजुमीखिन का हाथ दबाते हुए कहा।

'आज इसे देख कर मुझे सचमुच ताज्जुब हो रहा है,' जोसिमोव ने कहना शुरू किया। वह इन दो महिलाओं के आ जाने से खुश था क्योंकि वह अपने मरीज के साथ दस मिनट भी बातचीत करने में असफल रहा था। 'यह सिलसिला अगर इसी तरह चलता रहा तो यह तीन-चार दिन में पहले जैसा ही हो जाएगा, मेरा मतलब है कि एक महीने पहले या दो महीने पहले जैसा... या शायद वैसा ही जैसा तीन महीने पहले था। इसकी हालत काफी दिनों से धीरे-धीरे बिगड़ती आई है... क्यों अब मान भी लो कि यह सब शायद तुम्हारा अपना किया-धरा है' उसने कुछ झिझकते हुए मुस्करा कर कहा, गोया अब भी डर रहा हो कि कहीं वह चिढ़ न जाए।

'बहुत मुमकिन है,' रस्कोलनिकोव ने सपाट लहजे में जवाब दिया।

'मैं तो यह भी कहना चाहूँगा,' जोसिमोव ने उत्साह से अपनी बात आगे बढ़ाई, 'कि तुम्हारे ठीक होने का पूरा दारोमदार खुद तुम पर है। चूँकि अब तुमसे बात की जा सकती है, इसलिए मैं तुम्हारे दिमाग में यह बात अच्छी तरह बिठाना चाहूँगा कि तुम्हारे लिए उन बुनियादी वजहों से बचना निहायत जरूरी है, जो तुम्हारी यह बीमारी पैदा कर सकती हैं। मेरा मतलब है कि जो तुम्हारी इस हालत की जड़ हैं। तुम अगर ऐसा करोगे तो अच्छे हो जाओगे, और नहीं करोगे तो तुम्हारी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जाएगी। ये बुनियादी वजहें क्या हैं, मुझे नहीं मालूम, लेकिन तुम्हें जरूर मालूम होंगी। तुम समझदार आदमी हो, और जाहिर है तुमको इन वजहों को खुद पहचानना होगा। मैं समझता हूँ तुम्हारे बहकने की पहली मंजिल उसी वक्त शुरू हुई जब तुमने युनिवर्सिटी छोड़ी थी। तुम्हें खाली नहीं बैठना चाहिए। सो मैं समझता हूँ कि अगर तुम कोई काम करते रहोगे और अपने सामने कोई लक्ष्य रखोगे तो बहुत जल्द फायदा होगा।'

'हाँ, तुम ठीक कहते हो... मैं जल्द-से-जल्द यूनिवर्सिटी वापस जाने की कोशिश करूँगा और फिर... सब कुछ ठीक हो जाएगा...'

जोसिमोव ने उपदेश की ये बातें एक हद तक उन महिलाओं पर अपनी धाक जमाने के लिए शुरू की थी। लेकिन जब भाषण निबटा कर उसने अपने मरीज पर एक नजर डाली और उसके चेहरे पर एक कड़वी मुस्कराहट देखी तो उसे कुछ हैरत जरूर हुई। लेकिन यह हालत बस एक पल ही रही। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने फौरन जोसिमोव का शुक्रिया अदा करना शुरू कर दिया, खास तौर पर पिछली रात उनके यहाँ आने का।

'क्या! कल रात भी यह तुम लोगों से मिला था' रस्कोलनिकोव ने गोया चौंक कर पूछा। 'तब तो तुम लोग इतने लंबे सफर के बाद भी सोई नहीं होगी!'

'अरे नहीं रोद्या, वह तो बस दो बजे तक की बात थी। यूँ घर पर भी तो हम और दूनिया कभी दो बजे से पहले सोते नहीं।'

'मेरी समझ में नहीं आता कि इसका शुक्रिया मैं कैसे अदा करूँ,' रस्कोलनिकोव अचानक माथे पर बल डाल कर और नीचे देखते हुए कहता रहा। 'पैसे देने का सवाल तो अलग, मुझे इसकी चर्चा छेड़ने के लिए माफ करना,' उसने जोसिमोव की ओर मुड़ कर कहा। 'मेरी समझ में सचमुच नहीं आता कि मैंने तुम्हारे साथ कौन-सा ऐसा उपकार किया है जो तुम खास तौर पर मेरा इतना ध्यान रख रहे हो! मेरी समझ में कतई नहीं आती यह बात... और... और... सच पूछो तो यह मेरे लिए एक बोझ बन गई है, क्योंकि मेरी समझ में नहीं आती। मैं तुमसे साफ-साफ कह रहा हूँ।'

'परेशान न हो!' जोसिमोव ने जबरदस्ती की हँसी हँसते हुए कहा। 'यूँ समझ लो कि तुम मेरे पहले मरीज हो, और हम लोग जब नई-नई डॉक्टरी शुरू करते हैं तो अपने शुरुआती मरीजों से हमें ऐसा लगाव हो जाता है जैसे वे हमारे बच्चे हों; कुछ तो उनसे प्यार-सा करने लगते हैं। यूँ मेरे पास मरीज भी कुछ ज्यादा नहीं हैं।'

'इस बारे में तो मैं कुछ कहूँगा भी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने रजुमीखिन की ओर इशारा करते हुए कहा, 'हालाँकि इसे भी मुझसे झिड़कियों और मुसीबतों के अलावा कुछ नहीं मिला।'

'कैसी बकवास कर रहा है! क्यों, आज इतना जज्बाती भला क्यों हुआ जा रहा है?' रजुमीखिन ऊँचे स्वर में बोला।

अगर उसकी समझ जरा और पैनी होती तो वह आसानी से देख लेता कि उसमें जज्बात का नाम भी नहीं था, बल्कि उसकी उलटी ही कोई चीज थी। लेकिन दूनिया ने इस बात को ताड़ लिया। वह अपने भाई को गौर-से और बेचैनी से देखे जा रही थी।

'रहा तुम्हारा सवाल माँ, तो मैं कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं कर सकता,' वह इस तरह कहता रहा जैसे कोई रटा हुआ सबक सुना रहा हो। 'आज जा कर मुझे इस बात का कुछ अंदाजा हुआ कि कल मेरी वापसी की राह देखते हुए तुम्हें कितनी तकलीफ हुई होगी।' यह सब कुछ कहने के बाद उसने एक शब्द भी कहे बिना, मुस्कराते हुए अचानक अपनी बहन की ओर हाथ बढ़ा दिया। लेकिन इस मुस्कराहट में सच्ची और निष्कपट भावना की चमक थी। दूनिया ने फौरन इस बात को देख लिया और बेहद खुश हो कर, कृतज्ञता के भाव से तपाक से उसका हाथ दबाया। उनके कल के झगड़े के बाद रस्कोलनिकोव ने उसे पहली बार संबोधित था। भाई-बहन के बीच इस तरह फिर से पक्की सुलह होते देख कर माँ का चेहरा हद दर्जा खुशी से खिल उठा।

'बस, इसकी यही बात मुझे बेहद भाती है,' रजुमीखिन, जिसे हर बात बढ़ा-चढ़ा कर कहने की आदत थी, झटके से कुर्सी पर पहलू बदलते हुए मुँह-ही-मुँह में बुदबुदाया। 'ऐसी अदाएँ भी नजर आती हैं इसके हावभाव में!'

'और करता किस ढंग से है यह सब,' माँ मन ही में सोच रही थीं। 'कैसे उदार भाव हैं इसके, कितने सीधे-सादे ढंग से, कैसी कोमलता से उसने अपनी बहन के साथ कल की सारी गलतफहमी दूर कर दी। एकदम सही समय पर उसकी ओर अपना हाथ बढ़ा कर, उसकी ओर यूँ देख कर... और कितनी अच्छी उसकी आँखें हैं, पूरा मुखड़ा कितना सुंदर है। ...देखने में दूनिया से भी सुंदर लगता है ...मगर, हे भगवान, सूट तो देखो - कैसे भोंडे कपड़े पहन रखे हैं। ...अफानासी इवानोविच की दुकान का चपरासी वास्या भी इससे अच्छे कपड़े पहनता होगा! जी चाहता है आगे बढ़ कर इसे कलेजे से लगा लूँ... खुश हो कर रोऊँ, खूब रोऊँ - लेकिन डर लगता है... क्या बताऊँ, कैसा अजीब लगता है यह! बातें कैसी मीठी कर रहा है, लेकिन मुझे डर लगता है! आखिर, मुझे किस बात का डर लगता है...'

'अरे रोद्या यकीन नहीं आएगा तुम्हें,' माँ अचानक बोलने लगीं गोया उन्हें उन शब्दों के जवाब में कुछ कहने की जल्दी हो, जो बेटे ने उनसे कहे थे, 'कल दूनिया और मैं कितने दुखी थे! अब जब कि सारा झगड़ा निबट गया है, हम सब फिर से बहुत खुश हैं -इतना तो मैं कह सकती हूँ। जरा सोचो, हम लोग तुमसे मिलने के लिए इतने बेताब थे कि रेलगाड़ी से उतरते ही लगभग सीधे यहाँ आए... और उस औरत ने - अरे, यह रही वह! कैसी हो, नस्तास्या! ...इसने हमें आते ही बताया कि तुम तेज बुखार में पड़े थे, सरसाम ही हालत में डॉक्टर के पास से भाग कर बाहर चले गए थे और लोग तुम्हें बाहर सड़क पर ढूँढ़ रहे थे। तुम सोच भी नहीं सकते कि हमें उस वक्त कैसा लगा होगा! मुझे अचानक लेफ्टिनेंट पोतांचिकोव का अन्जाम याद आ गया... तुम्हारे बाप के एक दोस्त थे - तुम्हें तो उनकी याद नहीं होगी, रोद्या - वह भी तेज बुखार में इसी तरह भाग कर बाहर निकल गए और आँगन के कुएँ में गिर पड़े। कहीं अगले दिन जा कर ही निकाले जा सके। और हमने तो बात को सौ गुना बढ़ा दिया था। हम तो मदद के लिए भाग कर प्योत्र पेत्रोविच के पास जानेवाले थे... क्योंकि हम अकेले थे, एकदम अकेले,' उन्होंने दर्द में डूबी हुई आवाज में कहा और अचानक रुक गईं; उन्हें याद आ गया कि अभी प्योत्र पेत्रोविच की बात करना खतरे से खाली नहीं होगा, पर अब हम सब फिर से बहुत खुश हैं।'

'हाँ... झुँझलाने की बात तो है...' रस्कोलनिकोव जवाब में बुदबुदाया। लेकिन वह विचारों में ऐसा डूबा हुआ, कुछ खोया-खोया-सा था कि दूनिया घबरा कर उसे घूरती रही।

'मैं और क्या कहना चाहता था,' वह कुछ याद करने की कोशिश करता हुआ कहता रहा। 'अरे, हाँ माँ, और दूनिया तुम भी, तुम लोग यह न समझना कि आज आ कर तुम लोगों से मिलने का मेरा कोई इरादा नहीं था या इस बात की राह देख रहा था कि पहले तुम लोग यहाँ आओ।'

'कैसी बातें करते हो, रोद्या' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने दुखी हो कर कहा। उन्हें भी उसकी बात पर ताज्जुब हुआ था।

'क्या यह जवाब फर्ज निभाने के लिए दिया जा रहा है' दूनिया सोचने लगी। 'क्या यह सुलह करने और अपनी गलती की माफी माँगने की कोशिश है... जैसे कोई रस्म पूरी की जा रही हो, या कोई सबक सुनाया जा रहा हो!'

'मैं तो सो कर अभी उठा, और तुम लोगों के यहाँ जाना चाहता था लेकिन कपड़ों की वजह से देर हो गई; मैं कल इससे... नस्तास्या से... कहना भूल गया था... कि खून धो डाले... बस, कपड़े पहन कर अभी तैयार ही हुआ था...'

'खून! कैसा खून!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने चौंक कर पूछा।

'अरे, कुछ नहीं, परेशान न हो। कल जब मैं इधर-उधर भटक रहा था, कुछ-कुछ सरसामी हालत में, तभी रास्ते में एक आदमी सड़क पर पड़ा मिला, जो गाड़ी से कुचल गया था... क्लर्क था...'

'सरसामी हालत में लेकिन तुम्हें याद तो सब कुछ है!' रजुमीखिन बीच में बोला।

'ठीक कहते हो,' रस्कोलनिकोव ने खास तौर पर सावधान हो कर जवाब दिया। 'मुझे सब कुछ छोटी-से-छोटी बात भी याद है। मगर फिर भी... मैंने वैसा क्यों किया, वहाँ क्यों गया, वह बात क्यों कही, इसे अब मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता।'

'यह बात तो सभी जानते हैं,' जोसिमोव अपनी राय देते हुए बीच में बोला, 'कभी-कभी यूँ भी होता है कि एक योजना कुशल ढंग से, महारत के साथ और चालाकी से पूरी की जाती है, लेकिन उसके अलग-अलग नियंत्रण में ढील रहती है, खास तौर पर शुरू में और उसका फैसला बहुत-सी ऐसी सोचों की बुनियाद पर होती है जो स्वस्थ नहीं होतीं... बिलकुल सपने जैसी बात होती है।'

'यह शायद अच्छी ही बात है कि यह मुझे लगभग पागल समझ रहा है,' रस्कोलनिकोव ने सोचा।

'क्यों, ऐसी हरकतें अच्छे-भले लोग भी करते हैं, जिन्हें कोई बीमारी नहीं होती,' दूनिया ने बेचैनी से जोसिमोव की ओर देखते हुए कहा।

'जो कुछ कह रही हैं आप उसमें कुछ सच्चाई है,' जोसिमोव ने जवाब दिया। 'इस मानी में यह कोई अनोखी बात नहीं कि हम सब लोग पागलों जैसी कुछ हरकतें करते हैं। फर्क बस इतना होता है कि जिनका 'दिमाग पटरी पर से उतर जाता है।' वे कुछ ज्यादा ही पागल होते हैं, क्योंकि हमें कहीं तो दोनों के बीच फर्क करना होगा। सच है, ऐसा आदमी शायद ही कोई होता हो जिसमें किसी तरह की कोई गड़बड़ी न हो। हजारों में... शायद लाखों में... मुश्किल से कहीं एक मिलता है और सो भी खालिस होशमंद नहीं।'

अपने पसंदीदा विषय पर धाराप्रवाह बोलते हुए जोसिमोव के मुँह से असावधानी में 'पागल' शब्द क्या निकला कि सबके माथे पर बल पड़ गए।

रस्कोलनिकोव अपने पीले होठों पर अजीब-सी एक मुस्कराहट लिए हुए विचारों में डूबा बैठा रहा। लग रहा था कि उसने इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। वह अभी तक किसी चीज के बारे में सोच रहा था।

'हाँ, तो उसका क्या हुआ जो गाड़ी से कुचल गया था मैंने तुम्हारी बात बीच में काट दी थी!' रजुमीखिन जल्दी से बोला।

'क्या,' रस्कोलनिकोव अचानक जैसे सोते से जागा हो। 'आह... तो उसे घर तक पहुँचाने में मदद करते हुए मेरे कपड़े खून में सन गए थे। और हाँ माँ, अच्छा याद आया, मैंने कल एक ऐसी हरकत की जिसके लिए मुझे माफ नहीं किया जा सकता। मैं सचमुच बेहोशी की हालत में था। तुमने जो पैसा भेजा था वह मैंने पूरे का पूरा... उसकी बीवी को कफन-दफन के लिए दे दिया। अब वह विधवा हो गई है, वैसे ही तपेदिक की मारी हुई है बेचारी... तीन बच्चे हैं, भूख से बिलखते हुए... घर में दाना भी नहीं... एक बेटी भी है... तुमने अगर देखा होता उन लोगों को तो शायद तुम भी दे आतीं। ...लेकिन मैं मानता हूँ कि ऐसा करने का मुझे कोई हक नहीं था, खास तौर पर तब, जबकि मुझे मालूम था कि तुम्हें खुद उनकी कितनी जरूरत थी। दूसरों की मदद करने के लिए आदमी को ऐसा करने का हक होना चाहिए, वरना ब्तमअम्रए बीपमदेए पे अवने दश्मजमे चें बवदजमदजे!1' यह कह कर वह हँस पड़ा।

'क्यों, ठीक है न, दूनिया?'


1. फ्रांसीसी कहावत : कुत्ते, अगर तू संतुष्ट नहीं तो कहीं जा मर!


'नहीं, ठीक नहीं है,' दूनिया ने कठोरता से उत्तर दिया।

'छिः! तो तुम्हारे भी अपने विचार हैं!' वह दूनिया को लगभग घृणा से देखते और व्यंग्य से मुस्कराते हुए बुदबुदाया। 'मुझे पहले ही सोचना चाहिए था... खैर, यह तारीफ की ही बात है, और तुम्हारे लिए अच्छा ही है... कभी तुम ऐसी हद तक पहुँच गईं जिसे पार करने को तुम तैयार न हुई तो बहुत दुखी रहोगी... और अगर उसे पार कर लिया तो और भी दुखी होगी... लेकिन यह सब बकवास है!' उसने चिढ़ कर कहा। उसे इस तरह भावनाओं में बह जाने पर झुँझलाहट हो रही थी। 'मैं तो बस इतना कहना चाहता था माँ, कि मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ,' उसने अचानक अपनी बात समेटते हुए कहा।

'जाने दो रोद्या, मैं बस इतना जानती हूँ कि तुमने जो कुछ किया, अच्छा किया!' माँ ने खुश हो कर कहा।

'इस बात पर कुछ ज्यादा निश्चिंत न होना,' रस्कोलनिकोव ने मुँह कुछ टेढ़ा करके मुस्कराते हुए कहा।

कुछ देर तक सभी चुप रहे। इस सारी बातचीत में, इस खामोशी में, इस सुलह में, इस क्षमा कर देने में कुछ झिझक थी, और सभी उसे महसूस कर रहे थे।

'लगता है कि वे मुझसे डरी हुई हैं,' रस्कोलनिकोव कनखियों से अपनी माँ और बहन को देखता हुआ सोच रहा था। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को जितनी ही देर तक चुप रहना पड़ रहा था उतना ही उनका डर बढ़ता जा रहा था।

'फिर भी वे जब यहाँ नहीं थीं, मैं दिल में उनके लिए कितना प्यार महसूस कर रहा था,' अचानक यह विचार उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा।

'तुम्हें मालूम है रोद्या, मार्फा पेत्रोव्ना मर गईं,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने बिना किसी प्रसंग के अचानक कहा।

'मार्फा पेत्रोव्ना कौन?'

'अरे, भगवान भला करे, वही मार्फा पेत्रोव्ना स्विद्रिगाइलोवा! मैंने तुम्हें उनके बारे में इतनी तो बातें लिखी थीं।'

'आह! याद आया... तो वे मर गईं सचमुच?' रस्कोलनिकोव ने अचानक कहा, जैसे सोते से जागा हो। 'कैसे मरीं?'

'सोचो तो सही, बस अचानक मर गईं!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने उसकी उत्सुकता से जोश में आ कर जल्दी से जवाब दिया। 'जिस दिन मैंने तुम्हें खत भेजा था उसी दिन! सच मानो, उनकी मौत उसी जल्लाद की वजह से हुई। लोग तो कहते हैं कि उन्हें उसने बुरी तरह पीटा था।'

'क्यों, उनकी एकदम नहीं बनती थी,' रस्कोलनिकोव ने बहन की ओर देख कर पूछा।

'नहीं, ऐसी बात हरगिज नहीं है। बात बल्कि उलटी ही थी। यह उनके साथ तो हमेशा से सब्र से पेश आता था, बल्कि कहना चाहिए कि उनका बहुत खयाल रखता था। सच तो यह है कि अपनी शादी के सात बरसों के दौरान बहुत-सी बातों में वह उनकी जैसी ही करता था, सच पूछें तो जरूरत से ज्यादा। लगता है, अचानक वह अपना सब्र खो बैठा।'

'अगर उसने सात साल तक अपने आपको काबू में रखा तो इतना बुरा आदमी नहीं हो सकता। तुम तो दुनेच्का, लगता है उसकी तरफ से सफाई दे रही हो।'

'नहीं, आदमी वह बहुत बुरा है! मेरी समझ में उससे बुरा आदमी तो हो ही नहीं सकता!' दूनिया ने लगभग सहमते हुए जवाब दिया; उसकी त्योरियों पर बल पड़ गए और वह विचारों में डूब गई।

'यह बात सबेरे की है,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जल्दी से आगे कहा। 'फिर तुरंत बाद उसने हुक्म दिया कि खाने के फौरन बाद उसे शहर ले जाने के लिए बग्घी तैयार रहे। वह ऐसी हालत में फौरन बग्घी जुतवा कर शहर चली जाती थीं। सुना है कि खाना उसने डट कर खाया...'

'मार खाने के बाद'

'हमेशा से उसकी यही... आदत थी। और खाने के फौरन बाद, कि कहीं जाने में देर न हो जाए, वह सीधे नहाने गईं... बात यह है कि उसकी कुछ स्नान-चिकित्सा चल रही थी। वहाँ ठंडे पानी के झरने में स्नान का खास इंतजाम था और वह रोज उसमें नहाती थी। लेकिन पानी में घुसते ही अचानक उसे फालिज मार गई!'

'जरूर मार गई होगी,' जोसिमोव बोला।

'क्या उसने बहुत बुरी तरह उसे मारा था?'

'क्या फर्क पड़ता है इससे' दूनिया बोली।

'हुँह! लेकिन माँ, मेरी समझ में नहीं आता कि तुम ऐसी, इधर-उधर की खबरें हम लोगों को क्यों सुनाना चाहती हो,' रस्कोलनिकोव ने चिढ़ कर कहा। यह बात गोया अनायास उसके मुँह से निकली थी।

'मेरी कुछ समझ में नहीं आता बेटा, कि बातें क्या करूँ,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने लाचारी से कहा।

'क्यों, क्या तुम सबको मुझसे डर लगता है?' उसने फीकी-सी मुस्कराहट के साथ पूछा।

'बात तो यही है,' दूनिया ने भाई की आँखों में आँखें डाल कर कठोरता से देखते हुए कहा। 'सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त माँ डर के मारे रह-रह कर दुआ माँग रही थीं।'

रस्कोलनिकोव का चेहरा फड़कने और टेढ़ा पड़ने लगा।

'छिः, कैसी बातें करती हो दूनिया रोद्या, तुम नाराज न होना, बेटा।... तुमने यह बात कैसे कही, दूनिया' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने भाव से विभोर हो कर कहना शुरू किया। 'बात यह है कि यहाँ आते वक्त रेलगाड़ी में मैं रास्ते-भर यही सोचती आ रही थी कि हम लोग मिलेंगे कैसे, कैसे मिल कर हर चीज के बारे में बातें करेंगे... और मैं इतनी खुश थी, इतनी खुश कि रास्ता कब और कैसे कट गया, कुछ पता ही नहीं चला। लेकिन मैं कह क्या रही हूँ। मैं अब भी बहुत खुश हूँ... ऐसी बात तुम्हें नहीं कहनी चाहिए दूनिया! मैं अब भी बहुत खुश हूँ - मैं तो तुम्हें देख कर ही निहाल हो गई, रोद्या...'

'बस, माँ बस,' वह सिटपिटा कर बुदबुदाया। माँ की ओर देखे बिना ही उसने चुपके से उसका हाथ दबाया। 'हर चीज के बारे में खुल कर बातें करने का वक्त भी आएगा!'

यह कहते-कहते अचानक वह सिटपिटा गया और उसका रंग पीला पड़ गया। एक बार फिर भयानक संवेदना, जिसका वह कुछ समय से अनुभव करता आ रहा था, उसकी आत्मा पर छा गई। वह सिहर उठा। एक बार फिर अचानक यह बात साफ-साफ उसकी समझ में आने लगी कि अभी-अभी उसने एक भयानक झूठ बोला था क्योंकि अब वह कभी हर चीज के बारे में खुल कर बातें नहीं कर सकेगा, क्योंकि अब फिर कभी ऐसा नहीं होगा कि वह किसी से भी, किसी भी चीज के बारे में बात कर सके। इस विचार से उसे ऐसी भयानक तकलीफ का एहसास हुआ कि एक पल के लिए वह अपने आपको भूल ही गया। वह अपनी जगह से उठा और किसी की ओर देखे बिना दरवाजे की ओर बढ़ा।

'करने क्या जा रहे हो?' रजुमीखिन उसकी बाँह पकड़ कर चीखा।

वह फिर बैठ गया और चुपचाप चारों ओर देखने लगा। सब लोग परेशान हो कर देख रहे थे।

'लेकिन तुम सब इतने गुमसुम क्यों हो?' वह अचानक चीखा। किसी को इसकी उम्मीद भी नहीं थी। 'कुछ तो बोलो! इस तरह बैठे रहने से फायदा बोलो, कुछ तो बोलो! आओ, बातें करें... आपस में हम लोग मिलें और चुप बैठे रहें, यह तो कोई बात न हुई... कुछ तो बोलो!'

'भगवान की दया है! मैं तो समझी कि वही कलवाला सिलसिला फिर शुरू हो गया,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने सीने पर सलीब का निशान बनाते हुए कहा।

'बात क्या है, रोद्या?' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने शंका के साथ पूछा।

'कुछ तो नहीं! बस कुछ याद आ गया था,'उसने जवाब दिया और अचानक हँस पड़ा।

'चलो, अच्छा है। अगर कुछ याद आ गया तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। मैं तो सोचने लगा था...' जोसिमोव सोफे पर से उठते हुए बुदबुदाया। 'अच्छा, मैं चलूँगा। अगर हो सका... तो शायद फिर आऊँ... मगर तब तक आप घर पर ही रहें...' बारी-बारी सबकी ओर झुक कर वह बाहर चला गया।

'कितना अच्छा है!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने राय जाहिर करते हुए कहा।

'हाँ, अच्छा, उम्दा, पढ़ा-लिखा, खूब समझदार,' रस्कोलनिकोव अचानक बेहद तेजी से बोलने लगा। उसमें ऐसी चुस्ती और फुर्ती आ गई जैसी अभी तक नजर नहीं आई थी। 'मुझे याद नहीं पड़ता कि अपनी बीमारी से पहले मैं कहाँ इससे मिला था... मुझे लगता है, मैं इससे कहीं जरूर मिला हूँ...यह भी बहुत अच्छा आदमी है,' उसने सर के झटके से रजुमीखिन की तरफ इशारा किया। 'यह तुम्हें अच्छा लगता है, दूनिया' उसने अपनी बहन से पूछा और न जाने क्यों यकायक हँस पड़ा।

'बहुत,' दूनिया ने जवाब दिया।

'उफ! तुम भी कैसे सुअर हो!' रजुमीखिन ने सिटपिटा कर उसे झिड़का। उसकी कान की लवें लाल हो गई थीं। कुर्सी से वह उठ खड़ा हुआ। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना धीरे से मुस्कराईं, लेकिन रस्कोलनिकोव जोर से हँसा।

'कहाँ चले?'

'मुझे भी... जाना है।'

'नहीं, कोई जरूरत नहीं! ठहरो! जोसिमोव चला गया, इसलिए तुम्हें भी जाना है। अभी क्यों जाओ... अभी बजा क्या है अभी बारह तो नहीं बजे दूनिया, तुम्हारी यह छोटी-सी घड़ी कितनी खूबसूरत है! लेकिन तुम सब लोग फिर से चुप क्यों हो गए मैं अकेले ही बातें किए जा रहा हूँ।'

'मार्फा पेत्रोव्ना ने दी थी,' दूनिया ने जवाब दिया।

'पर बहुत महँगी है!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने इतना और बताया।

'अच्छा! लेकिन है इतनी बड़ी कि जनानी घड़ी बिल्कुल नहीं लगती।'

'ऐसी घड़ी मुझे अच्छी लगती है,' दूनिया बोली।

'तो यह मँगेतर का तोहफा नहीं है,' रजुमीखिन ने सोचा। न जाने क्यों इस बात से उसे खुशी हुई।

'मैं समझे था लूजिन ने दिया होगा,' रस्कोलनिकोव ने अपना विचार व्यक्त किया।

'नहीं, अभी तक दूनिया को उन्होंने कोई तोहफा नहीं दिया है।'

'अच्छा! तुम्हें याद है माँ, मुझे भी किसी से प्यार हो गया था और मैं उससे शादी करना चाहता था!' वह यकायक माँ की ओर देख कर बोला। अचानक बातचीत का विषय इस तरह बदल जाने से, और जिस तरह वह इस नए विषय पर बोल रहा था उससे, माँ कुछ उलझन में पड़ गईं।

'हाँ, बेटा!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने कनखियों से दूनिया और रजुमीखिन को देखा।

'हुँह, अच्छा। मैं क्या बताऊँ! ज्यादा कुछ याद ही नहीं है। वह मरी-मरी, बीमार-सी लड़की थी,' यादों में खोया हुआ वह बोलता रहा और एक बार फिर जमीन की ओर देखने लगा था। 'एकदम बीमार थी। उसे गरीबों को भीख देने का शौक था और हमेशा किसी मठ में जा कर रहने के सपने देखा करती थी। एक बार वह मुझसे इस बारे में बातें करने लगी तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। हाँ, हाँ, याद है मुझे... बहुत अच्छी तरह याद है। देखने में यूँ ही, मामूली-सी थी। मुझे सचमुच याद नहीं कि उस वक्त किस चीज ने मुझे उसकी ओर खींचा था... मैं समझता हूँ इसलिए कि हमेशा वह बीमार रहती थी। अगर वह लँगड़ी या कुबड़ी होती तो मैं समझता हूँ, मुझे और भी अच्छी लगती,' वह सपनों में खोया हुआ, मुस्कराया। 'वह तो... एक तरह का मौसमी बुखार था...'

'नहीं, सिर्फ मौसमी बुखार नहीं था,' दूनिया ने जोश के लहजे में कहा।

वह अपनी बहन को आँखें गड़ा कर देखने लगा लेकिन न तो उसकी बात सुनी और न उसकी समझ में कुछ आया फिर वह पूरी तरह विचारों में डूबा हुआ उठा, माँ के पास गया, उसे प्यार किया, और वापस आ कर अपनी जगह पर बैठ गया।

'तुम्हें उससे अब भी प्यार है!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने हमदर्दी से कहा।

'उससे अब हाँ... तो उसके बारे में पूछती हो! नहीं... वह सब तो अब, एक तरह से, दूसरी दूनिया की बात लगती है... वह भी बहुत पहले की। पर सच तो यह है कि यहाँ भी जो कुछ हो रहा है, वह भी जाने क्यों बहुत दूर की चीज लगता है।'

उसने उन लोगों को ध्यान से देखा।

'जैसे तुम्हीं हो, अब... लगता है मैं तुम्हें हजार मील की दूरी से देख रहा हूँ... लेकिन हम ये सब बातें कर क्यों रहे हैं! उसके बारे में पूछने से फायदा ही क्या?' उसने कुछ झुँझला कर कहा और दाँतों से नाखून कुतरते हुए एक बार फिर खयालों की खामोशी में खो गया।

'यह तुम्हारा रहने का कमरा भी कैसा मनहूस है रोद्या, मकबरा लगता है,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने अचानक घुटन भरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा। 'मुझे पक्का यकीन है कि तुम अगर इतने उदास रहने लगे हो, तो इसकी आधी वजह तो तुम्हारा यह रहने का कमरा है।'

'मेरा रहने का कमरा!' उसने मरी-मरी आवाज से कहा। 'हाँ, इस कमरे का भी इसमें बड़ा हाथ था... यही तो मैं भी सोचता था। ...हालाँकि, तुम्हें शायद मालूम नहीं माँ, कि तुमने अभी-अभी कैसी अजीब बात कही है,' उसने अजीब ढंग से हँसते हुए कहा।

वह तो बस थोड़ी ही कसर रह गई थी। अगर यह सिलसिला कुछ देर और चलता तो उनका यह साथ, उसकी माँ और बहन जो उससे तीन साल बाद मिली थीं, और किसी भी चीज के बारे में खुल कर बात करने की पूरी-पूरी असंभावना के बावजूद बातचीत में आत्मीयता का यह भाव, यह सब कुछ उसके बर्दाश्त से बाहर हो जाता। लेकिन एक जरूरी सवाल ऐसा भी था जिसका फैसला, इस पार या उस पार, उसी दिन होना था - यह बात उसने सुबह आँखें खुलते ही तय कर ली थी। अब उसे खुशी हो रही थी कि उसे बच निकलने की राह की शक्ल में उसे इस बात की याद आ गई थी।

'सुनो दूनिया,' उसने गंभीर और रूखे स्वर में कहना शुरू किया, 'कल जो कुछ हुआ उसके लिए मैं तुमसे माफी माँगता हूँ। फिर भी तुम्हें यह बता देना एक बार फिर मैं अपना फर्ज समझता हूँ कि मैंने जो खास बात उठाई थी उससे पीछे हटने को मैं हरगिज तैयार नहीं। या तो मैं या लूजिन। मैं भले ही दुष्ट हूँ, लेकिन तुम्हें ऐसा नहीं बनना है। बात यह है कि तुम हम दोनों में से एक को चुन लो। तुमने अगर लूजिन से शादी की तो तुम्हें अपनी बहन मानना मैं छोड़ दूँगा।'

'रोद्या, रोद्या! यह कलवाली बात तो कल ही खत्म हो चुकी थी,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना कातर स्वर में चिल्लाईं। 'और तुम अपने आपको दुष्ट क्यों कहते हो मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। यही बात कल भी तुमने कही थी।'

'भैया,' दूनिया ने भी सधे लहजे में और रूखेपन से जवाब दिया। 'इसमें तुम्हारी एक गलती है। रात मैंने इसके बारे में बहुत सोचा, और उस गलती का पता लगाया। इस सबकी जड़ में यह बात है कि लगता है तुम यह समझते हो कि मैं अपने आपको किसी के सामने और किसी की खातिर कुरबान कर रही हूँ। ऐसी बात हरगिज नहीं है। मैं महज अपनी खातिर यह शादी कर रही हूँ क्योंकि जिंदगी में मुझे बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यूँ मैं अगर अपने परिवारवालों के किसी काम आ सकूँ तो मुझे खुशी होगी, लेकिन यह मेरे फैसले का अहम मकसद नहीं है...'

'झूठ बोल रही है,' रस्कोलनिकोव ने जल-भुन कर नाखून कुतरते हुए, मन ही मन सोचा। 'घमंडी लड़की! कभी नहीं मानेगी कि वह परोपकार के लिए ऐसा कर रही है! जिद्दी है बहुत! नीच लोग! प्यार भी ऐसे करते हैं जैसे नफरत कर रहे हों!... उफ, मुझे इन सबसे कितनी नफरत है...'

'मतलब यह कि,' दूनिया ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, 'मैं प्योत्र पेत्रोविच से इसलिए शादी कर रही हूँ कि दो बुरी चीजों में से कम बुरी को मैंने चुन लिया है। उन्हें मुझसे जो भी उम्मीदें हैं उन सबको मैं ईमानदारी के साथ पूरी करने का इरादा रखती हूँ, इसलिए मैं उन्हें किसी तरह का धोखा नहीं दे रही। ...अभी तुम किस बात पर मुस्करा रहे थे?'

उसका चेहरा भी तमतमा उठा और आँखें गुस्से से चमकने लगीं।

'सब कुछ पूरा करोगी?' रस्कोलनिकोव ने जहरीली मुस्कान के साथ पूछा।

'एक हद के अंदर। लेकिन विवाह का प्रस्ताव रखने का ढंग और उस प्रस्ताव की शक्ल, इन सबसे मुझे फौरन पता चल गया कि वे चाहते क्या हैं। वे यकीनन अपने आपको तीसमार खाँ समझते हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि उनकी नजर में मेरी भी कुछ इज्जत होगी... तुम अब किस बात पर हँस रहे हो?'

'और तुम लजा किस बात पर रही हो तुम झूठ बोल रही हो, मेरी बहन। जान-बूझ कर तुम झूठ बोल रही हो, सिर्फ तिरियाहठ में मेरे सामने अपनी बात ऊँची रखने के लिए... तुम लूजिन की इज्जत नहीं कर सकती। मैंने उसे देखा है और उससे बातें की हैं। बात तो यह है कि तुम अपने आपको पैसे के लिए बेच रही हो और इसलिए हर तरह से बहुत ही घटिया हरकत कर रही हो, पर मुझे इसी बात की खुशी है कि तुम्हें इस पर कम-से-कम शर्म तो आती है।'

'यह बात सच नहीं है। मैं झूठ नहीं बोल रही,' दूनिया संतुलन खो कर ऊँची आवाज में बोली। 'मुझे अगर इस बात का यकीन न होता कि वे मेरी कद्र करते हैं और मेरे बारे में अच्छी राय रखते हैं तो मैं उनसे कभी शादी न करती। अगर मुझे इसका पूरा-पूरा विश्वास न होता कि मैं खुद भी उनका आदर कर सकती हूँ तो मैं उनसे कभी शादी न करती। सौभाग्य से मुझे इस बात का पक्का सबूत आज ही मिल जाएगा... और इस तरह की शादी कोई नीचता नहीं है, जैसाकि तुम कहते हो! पर अगर तुम्हारी बात सच भी होती, अगर मैंने कोई नीच काम करने की सचमुच ही ठान ली होती, तो भी क्या तुम्हारा इस तरह मुझसे बात करना बेरहमी नहीं है तुम मुझसे ऐसी बहादुरी दिखाने का क्यों तकाजा करते हो जैसी कि शायद तुममें भी नहीं है यह सरासर चंगेजशाही है, जुल्म है! अगर मैं किसी को तबाह करूँगी तो सिर्फ अपने को। ...मैं कोई कत्ल नहीं कर रही! ...तुम मुझे इस तरह देख क्यों रहे हो तुम्हारा रंग पीला क्यों पड़ गया रोद्या, भैया, क्या... बात क्या है?'

'हे भगवान् तुमने फिर उसे बेहोश कर दिया,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना घबरा कर चीखी।

'नहीं नहीं, कुछ भी नहीं हुआ! कुछ भी तो नहीं। बस जरा-सा चक्कर आ गया - बेहोशी नहीं थी। तुमको तो बेहोशी का खब्त हो गया है। ...हाँ, तो मैं कह क्या रहा था अरे, हाँ। तो आज इस बात का पक्का सबूत किस तरह तुम्हें मिलेगा कि तुम उसकी इज्जत कर सकती हो और वह... तुम्हारी कद्र करता है मैं समझता हूँ, तुमने आज ही के लिए कहा था... या मैंने गलत सुना था'

'माँ, रोद्या को प्योत्र पेत्रोविच का खत तो दिखाओ,' दूनिया ने कहा।

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने उसे काँपते हाथों एक खत दे दिया। उसने उसे उत्सुकता से ले तो लिया लेकिन खोलने से पहले दूनिया की तरफ कुछ हैरत से देखा।

'अजीब बात है,' उसने धीमे-धीमे कहना शुरू किया, मानो कोई नया विचार उसके दिमाग में आया हो, 'मैं इतना बखेड़ा आखिर किस बात पर खड़ा कर रहा हूँ? आखिर क्यों? तुम्हारा तो जिससे जी चाहे, शादी करो!'

उसने यह बात कही इस तरह से, गोया अपने से बातें कर रहा हो, लेकिन कही ऊँचे स्वर में। फिर वह थोड़ी देर तक असमंजस में पड़ा बहन की ओर देखता रहा।

आखिर उसने खत खोला; चेहरे पर अब भी वही अजीब-सी हैरत थी। फिर उसने धीरे-धीरे और ध्यान से पढ़ना शुरू किया और खत को दो बार पूरा पढ़ गया। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के चेहरे पर चिंता की साफ झलक थी, और सच बात यह है कि सभी को किसी बात की उम्मीद थी।

'मुझे जिस बात पर ताज्जुब होता है,' उसने माँ को खत देते हुए, थोड़ी देर रुक कर कहना शुरू किया, लेकिन वह अपनी बात खास किसी को संबोधित करके नहीं कह रहा था, 'वह यह है कि वह कामकाजी आदमी है, वकील है, और बातचीत का ढंग तो... बहुत दिखावेवाला है ही, और फिर भी ऐसा... जाहिलों जैसा खत लिखता है।'

सभी लोग चौंक पड़े। उन्हें कोई दूसरी ही बात सुनने की उम्मीद थी।

'लेकिन, तुम तो जानते हो, वे सब इसी तरह लिखते हैं,' रजुमीखिन ने संक्षेप में अपनी राय दी।

'तुमने इसे पढ़ा है?'

'हाँ।'

'इन्हें दिखाया था, रोद्या हमने... इनसे भी सलाह ली थी,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने सिटपिटा कर कहा।

'यही तो अदालती जबान है,' रजुमीखिन बीच में बोला। 'आज भी सारे कानूनी दस्तावेज इसी जबान में लिखे जाते हैं।'

'कानूनी हाँ, कानूनी या कारोबारी जबान-न ज्यादा जाहिलों की जबान न अदीब लोगों जैसी जबान... कारोबारी!'

'प्योत्र पेत्रोविच ने यह बात छिपाने की कोई कोशिश नहीं की है कि उनकी पढ़ाई-लिखाई बहुत ही सस्ती और घटिया किस्म की हुई थी। उन्हें तो बल्कि इस खत पर गर्व भी है कि वह अपने बल पर यहाँ तक पहुँचे हैं,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने भाई के लहजे का कुछ बुरा मानते हुए अपनी बात कही।

'खैर, उसे अगर इस बात पर गर्व है तो बिलकुल ठीक ही है। मैं इस बात से इनकार नहीं करता। लगता है, मेरी बहन, तुम्हें यह बात बुरी लगी है कि मैंने इस खत पर बस इतनी हल्की-फुल्की राय दी। तुम शायद यह भी सोचती होगी कि मैं जान-बूझ कर, तुम्हें चिढ़ाने के लिए टुच्ची चीजों के बारे में बात कर रहा हूँ। बात इसकी एकदम उलटी है। खत लिखने के ढंग पर जो राय मैंने दी उसका, हालात को देखते हुए, इस मामले से एकदम कोई संबंध न हो, ऐसी बात नहीं है। इसमें बहुत गहरे मतलब के साथ और साफ-साफ एक बात कही गई है, कि 'इसके लिए केवल आप ही दोषी होंगी', और इसके साथ ही इसमें यह धमकी भी है कि अगर मैं वहाँ पर मौजूद हुआ तो वह वहाँ से फौरन उठ कर चला जाएगा। इस चले जाने की धमकी का मतलब यही है कि अगर तुम दोनों ने उसका हुक्म न माना तो वह तुम दोनों से नाता तोड़ लेगा, और तुम लोगों को यहाँ पीतर्सबर्ग बुलाने के बाद तुम्हें बेसहारा छोड़ देगा। बोलो, क्या खयाल है तुम्हारा? क्या लूजिन की कलम से निकली इस बात का हम उसी तरह बुरा मान सकते हैं, जैसे उस हालत में बुरा मानते अगर यही बात इसने,' उसने रजुमीखिन की तरफ इशारा किया, 'लिखी होती या जोसिमोव ने या हममें से किसी ने?'

'न...हीं,' दूनिया ने कुछ ज्यादा मुस्तैदी से जवाब दिया। 'यह चीज तो मुझे भी साफ नजर आई थी कि यह बात बहुत ही फूहड़ तरीके से कही गई थी, और यह कि शायद उन्हें लिखने का सलीका नहीं आता... तुम्हारा यह विचार सही है, भैया। सचमुच मुझे उम्मीद नहीं थी कि...'

'बात कानूनी ढंग से कही गई है, और शायद इसीलिए जितना कि उनका इरादा था उससे ज्यादा फूहड़ और भोंडी लगती है। लेकिन मैं तुम्हारी गलतफहमी थोड़ी-सी दूर कर दूँ। इस खत में एक और बात लिखी गई है। मेरे खिलाफ एक तोहमत है और बहुत ही घटिया किस्म की तोहमत है। मैंने कल रात पैसा उस विधवा को, एक ऐसी औरत को दिया था, जो तपेदिक की मारी हुई है, जिसके सर पर मुसीबत का पहाड़ टूटा है, और मैंने वह पैसा, 'कफन-दफन के बहाने,' नहीं दिया बल्कि कफन-दफन का खर्च पूरा करने के लिए ही दिया। मैंने वह पैसा उसकी बेटी को नहीं दिया - जो उसने लिखा है कि एक 'बदचलन', नौजवान औरत है (जिसे मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार कल रात देखा) -बल्कि उस विधवा को दिया। इस सबसे मुझे यह मालूम पड़ता है कि उसे मुझको बदनाम करने और हम लोगों में झगड़ा पैदा करने की जल्दी मची हुई थी। और यह बात भी घिसी-पिटी कानूनी जबान में लिखी गई है, यानी कि जो बात वह कहना चाहता था, वह जरूरत से ज्यादा साफ हो गई है, और वह भी बहुत ही फूहड़ किस्म की बेताबी के साथ लिखी गई है। उसमें अकल तो है लेकिन समझदारी के साथ काम करने के लिए सिर्फ अकल काफी नहीं होती। इन सब बातों से उस आदमी की हकीकत का पता चलता है और... और मुझे नहीं लगता कि उसके दिल में तुम्हारे लिए कुछ खास कद्र है। मैं यह बात तुम्हें सिर्फ चेताने के लिए बता रहा हूँ, क्योंकि मैं सचमुच भलाई चाहता हूँ...' दूनिया ने कोई जवाब नहीं दिया। वह अपना फैसला कर चुकी थी। और बस शाम की राह देख रही थी।

'तो तुम्हारा फैसला क्या है, रोद्या?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने पूछा। वह उसकी बातचीत में अचानक यह नया कारोबारी लहजा पा कर पहले से भी ज्यादा परेशान हो गई थी।

'कौन-सा फैसला?'

'देखो न, प्योत्र पेत्रोविच ने लिखा है कि तुमको आज शाम हम लोगों के साथ नहीं रहना है, और अगर तुम आए तो वे उठ जाएँगे। तो तुम क्या... आओगे?'

'जाहिर है, इसका फैसला मुझे नहीं करना बल्कि तुम्हें पहले यह तय करना है कि इस तरह की माँग तुम्हें बुरी तो नहीं लगी; और फिर दूनिया को फैसला करना है कि उसे भी यह माँग बुरी तो नहीं लगी। मैं वैसा ही करूँगा जैसा तुम लोग बेहतर समझो,' उसने बड़ी रुखाई से अपनी बात खत्म करते हुए कही।

'दूनिया ने फैसला कर लिया है, और इसमें मैं पूरी तरह उसके साथ हूँ,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जल्दी से ऐलान किया।

'मैंने तुमसे यह कहने का, तुमको इस बात पर राजी करने का फैसला किया है रोद्या, कि आज शाम हमारी इस मुलाकात के वक्त तुम हमारे साथ मौजूद रहोगे... जरूर,' दूनिया ने कहा। 'आओगे न?'

'हाँ।'

'मैं आपसे भी कहना चाहती हूँ कि आप भी आठ बजे हमारे यहाँ आ जाइए,' उसने रजुमीखिन से कहा। 'माँ, मैंने इनको भी बुला लिया।'

'बहुत अच्छा किया, दुनेच्का! जैसा तुम लोगों ने फैसला कर लिया है,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने कहा, 'वैसा ही होगा। मुझे भी परीशानी कम रहेगी। किसी का चोरी-छिपे कुछ करना और झूठ बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। बेहतर यही है कि सारी सच्चाई सामने आ जाए... प्योत्र पेत्रोविच चाहे नाराज हों या न हों!'