अपराध और दंड / अध्याय 3 / भाग 5 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव जब कमरे में प्रवेश कर रहा था तो उसकी सूरत से लगता था उसे अपने आपको फिर ठहाका मार कर हँस पड़ने से रोकने में भारी कठिनाई हो रही थी। उसके पीछे रजुमीखिन कुछ अटपटे और भोंडे तरीके से अंदर आया। वह कुछ शरमाया हुआ था; चेहरा टमाटर की तरह लाल हो रहा था। वह बुरी तरह झेंपा और गुस्से से भरा हुआ मालूम होता था। उस समय उसका चेहरा और उसका पूरा हुलिया सचमुच हास्यास्पद लग रहा था और रस्कोलनिकोव को अगर हँसी आ रही थी तो ठीक ही आ रही थी। रस्कोलनिकोव ने परिचय कराए जाने का इंतजार किए बिना पोर्फिरी पेत्रोविच को झुक कर सलाम किया जो कमरे के बीच में खड़ा उन्हें सवालिया नजरों से देख रहा था। रस्कोलनिकोव ने आगे बढ़ कर हाथ मिलाया। वह अभी तक अपनी फूटी पड़ रही खुशी को दबाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था और अपना परिचय देने के लिए कुछ कहना चाहता था। लेकिन वह गंभीर मुद्रा धारण करने और दबी जबान से कुछ कहने में अभी सफल ही हुआ था कि अचानक उसकी नजर फिर रजुमीखिन पर पड़ी और वह अपने आपको काबू में न रख सका। अपनी दबी हुई हँसी को वह जितना ही दबाने की कोशिश करता था, उतनी ही तेजी से वह फूटी पड़ती थी। रजुमीखिन को उसकी इस 'दिली' हँसी पर जिस तरह बेतहाशा गुस्सा आया, उसकी वजह से पूरे दृश्य से अत्यंत वास्तविक मनबहलाव और उससे भी बढ़ कर स्वाभाविकता का तत्व पैदा हो गया था। रजुमीखिन ने मानो जान-बूझ कर इस धारणा को और पक्का कर दिया था।

'भाड़ में जाओ!' वह अपना एक हाथ घुमा कर जोर से गरजा। हाथ एक छोटी-सी गोल मेज से टकराया, जिस पर चाय का एक खाली गिलास रखा हुआ था। मेज उलट गई और उस पर रखा काँच का गिलास झनझना कर टूट गया।

'लेकिन आप लोग कुर्सियाँ क्यों तोड़ रहे हैं? आप जानते हैं न कि इससे सरकार का नुकसान होता है,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने मजाक के लहजे में जोर से कहा।

रस्कोलनिकोव अभी तक हँस रहा था। अभी तक उसका हाथ पोर्फिरी पेत्रोविच के हाथ में था, लेकिन वह नहीं चाहता था कि जरूरत से ज्यादा बेतकल्लुफी का परिचय दे। इसलिए वह इस सिलसिले को स्वाभाविक ढंग से खत्म करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कर रहा था। मेज उलटने और काँच का गिलास टूटने से रजुमीखिन एकदम सिटपिटा गया था। बड़ी उदास नजरों से काँच के टूटे हुए टुकड़ों को देख रहा था। वह अपने आपको कोसता हुआ तेजी से खिड़की की ओर मुड़ा और बेहद गुस्से में भरा हुआ, त्योरियों पर बल डाले उन लोगों की ओर पीठ किए खड़ा रहा। वह शून्य भाव से तके जा रहा था। पोर्फिरी पेत्रोविच हँस रहा था और इसी तरह हँसते रहने को तैयार था, लेकिन जानना भी चाहता था कि यह सब क्या और क्यों हो रहा है। जमेतोव एक कोने में बैठा हुआ था, लेकिन इन लोगों के अंदर आते ही वह उठ पड़ा और होठों पर मुस्कराहट लिए हुए किसी चीज की प्रतीक्षा में खड़ा रहा। वैसे इस पूरे दृश्य को वह आश्चर्य से देख रहा था और लग रहा था कि उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा। रस्कोलनिकोव को देख कर वह कुछ खिसिया भी रहा था। वहाँ आशा के विपरीत जमेतोव की मौजूदगी रस्कोलनिकोव को कुछ अच्छी नहीं लगी।

'मुझे इस बात का ध्यान रखना होगा,' रस्कोलनिकोव ने सोचा। 'माफ कीजिएगा,' उसने बेहद अटपटा महसूस करने की मुद्रा धारण करते हुए कहना शुरू किया। 'मैं रस्कोलनिकोव हूँ।'

'इसमें माफी की क्या बात है, आपसे-मिल कर खुशी हुई... और आप आए भी तो कैसे खुशदिल ढंग से! ...अरे, वह क्या सलाम-दुआ भी नहीं करेगा?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने सर के झटके से रजुमीखिन की तरफ इशारा करके कहा।

'कसम खा कर कहता हूँ कि मुझे नहीं पता वह क्यों मुझसे इतना बिफरा हुआ है। यहाँ आते हुए मैंने उससे बस इतना ही कह दिया था कि वह दीवाना लग रहा है... और इस बात को मैंने साबित भी कर दिया था। जहाँ तक मैं समझता हूँ, बस इतनी ही बात थी।'

'पाजी कहीं का!' रजुमीखिन ने मुड़े बिना ही, चिढ़ कर कहा।

'अगर वह इतना ही कहने पर इस तरह जामे से बाहर हो रहा है तो कोई वजह भी होगी,' पोर्फिरी ने हँस कर कहा।

'बस-बस, बड़े आए जासूस बन कर! ...तुम सब भाड़ में जाओ!' रजुमीखिन ने झिड़क कर कहा और अचानक खुद भी खिल-खिला कर हँस पड़ा। वह और भी खिले हुए चेहरे के साथ पोर्फिरी के पास गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। 'छोड़ो इन बातों को, हम सब बेवकूफ हैं। अब कुछ मतलब की बातें करें। यह मेरा दोस्त रोदिओन रोमानोविच रस्कोलनिकोव है। पहली बात तो यह है कि तुम्हारी चर्चा इसने सुनी थी और तुमसे मिलना चाहता था। दूसरे, इसे तुमसे एक छोटा-सा काम भी है। अरे, वाह! जमेतोव, तुम यहाँ कैसे? तुम लोग क्या पहले ही मिल चुके हो? तुम दोनों एक-दूसरे को क्या बहुत दिन से जानते हो?'

'क्या मतलब हो सकता है इसका?' रस्कोलनिकोव ने बेचैन हो कर सोचा।

ऐसा लगा कि जमेतोव कुछ परेशान हो गया है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।

'अभी कल ही तो मुलाकात हुई थी तुम्हारे यहाँ,' उसने सहज भाव से कहा।

'भगवान की कृपा कि मैं इस जिम्मेदारी से बच गया। हफ्ते भर से यह मेरे पीछे पड़ा था कि मैं तुमसे इसे मिला दूँ। आखिरकार पोर्फिरी और तुम, दोनों एक-दूसरे तक पहुँच ही गए। अपना तंबाकू कहाँ रखते हो?'

पोर्फिरी पेत्रोविच ने अनौपचारिक ढंग की एक ड्रेसिंग गाउन, बहुत साफ कमीज और छोटी एड़ी की स्लीपर पहन रखी थी। वह लगभग पैंतीस साल का शख्स था। छोटा कद, गठा हुआ शरीर, कुछ मोटापा लिए हुए। दाढ़ी-मूँछ सफाचट। उसने बाल बहुत छोटे कटवा रखे थे और सर बहुत बड़ा और गोल था। और पीछे की ओर खास तौर पर कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ था। फूला हुआ, गोल, जरा चपटी नाक के साथ चेहरा बीमारों की तरह पीले रंग का था, लेकिन उस पर बड़ी चुस्ती थी और कुछ व्यंग्य का भी भाव था। आँखें छोड़ कर बाकी चेहरा काफी हँसमुख और सुहृद भी था। आँखों में लगभग पूरी तरह सफेद, झपकती हुई पलकों के नीचे एक अजीब गीली-गीली फीकी-सी चमक थी; हरदम यूँ लगता था गोया वह आँख मार रहा हो। आँखों का भाव उसके कुछ-कुछ जनाने डील-डौल से मेल न खाने की वजह से कुछ अजीब-सा लगता था। पहली बार देखने पर उनमें जितनी संजीदगी मालूम होती थी उससे कहीं अधिक गंभीरता आ जाती थी।

पोर्फिरी पेत्रोविच ने जब सुना, कि उससे मिलने के लिए आनेवाले को उससे, 'एक छोटा-सा काम' है तो उसने उससे सोफे पर बैठने की प्रार्थना की और खुद सोफे के दूसरे सिरे पर बैठ कर राह देखने लगा कि रस्कोलनिकोव अपना काम उसे बताए। पोर्फिरी उसे इतनी गहराई और आवश्यकता से अधिक गंभीरता से देख रहा था कि सामनेवाला आदमी घुटन और घबराहट महसूस करने लगे, खास तौर पर तब जबकि वह अजनबी हो और उस हालत में तो और भी जब वह मामला, जिसके बारे में आप बात कर रहे हो, खुद आपकी राय में इतना कम महत्व रखता हो कि उसकी ओर इतनी असाधारण गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत ही न हो। लेकिन रस्कोलनिकोव ने बहुत थोड़े और गठे हुए शब्दों में अपनी गरज बहुत साफ-साफ और सही-सही समझाया, और अपने आपसे इतना संतुष्ट हुआ कि पोर्फिरी को नजर भर कर देख भी लिया। पोर्फिरी पेत्राविच ने उसकी ओर से एक पल के लिए नजर भी नहीं हटाई। रजुमीखिन उसी मेज के सामने बैठा हुआ जोश और अधीरता से सब कुछ सुन रहा था, और एक-एक पल पर जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी के साथ बारी-बारी कभी एक की ओर तो कभी दूसरे की ओर देखता था।

रस्कोलनिकोव ने मन-ही-मन उसकी बेवकूफी को गाली दी।

'आपको पुलिस को बयान देना होगा,' पोर्फिरी ने कारोबारी ढंग से जवाब दिया, 'कि इस मामले की, यानी इस कत्ल की, खबर मिलने पर आप इसकी छानबीन करनेवाले वकील को यह बताना चाहते हैं कि फलाँ-फलाँ चीजें आपकी हैं और आप उन्हें छुड़ाना चाहते हैं... या... बल्कि वे लोग आपको खुद लिखेंगे।'

'बात यही तो है इस... इस वक्त,' रस्कोलनिकोव ने यह जताने की भरपूर कोशिश की कि वह कुछ अटपटा-सा महसूस कर रहा है। 'मेरे पास कतई कोई पैसा नहीं है... और यह छोटी-सी रकम अदा करना भी मेरे बस से बाहर है... बात यह है कि... इस वक्त मैं सिर्फ यह दर्ज कराना चाहता हूँ कि वे चीजें मेरी हैं, और जब मेरे पास पैसा होगा तो...'

'कोई बात नहीं,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने पैसे की तंगी के बारे में रस्कोलनिकोव के बयान पर कोई प्रतिक्रिया दिखाए बिना जवाब दिया, 'लेकिन आप चाहें तो सीधे मुझे भी लिख सकते हैं कि इस मामले की खबर मिलने पर, और फलाँ-फलाँ चीजों को अपना बताते हुए, आप चाहते हैं कि...'

'सादे कागज पर' रस्कोलनिकोव ने एक बार फिर इस सिलसिले के पैसेवाले पहलू से दिलचस्पी दिखाते हुए उत्सुकता से उनकी बात काटी।

'जी हाँ, एकदम मामूली कागज पर,' यह कह कर पोर्फिरी पेत्रोविच ने आँखें सिकोड़ कर, गोया उसकी ओर आँख मार रहा हो, खुले व्यंग्य के भाव से कहा। लेकिन यह शायद रस्कोलनिकोव का भ्रम मात्र था, क्योंकि उसका यह भाव सिर्फ एक पल रहा। लेकिन कोई बात इस तरह की जरूर थी। रस्कोलनिकोव कसम खा कर कह सकता था कि उसने उसकी तरफ आँख मारी थी; न जाने क्यों।

'सब मालूम है इसे,' उसके दिमाग में अचानक यह विचार बिजली की तरह कौंधा।

'इतनी छोटी-सी बात पर आपको परेशान करने के लिए मुझे माफ कीजिएगा,' वह कुछ घबरा कर कहता रहा, 'उन चीजों की कीमत तो होगी सिर्फ पाँच रूबल, लेकिन जिनसे वे मुझे मिली हैं, उन लोगों की वजह से मैं उनकी बहुत कद्र करता हूँ। मैं यह भी मानने को तैयार हूँ कि तब मेरे दिल में दहशत समा गई थी, जब मैंने सुना था कि...'

'इसीलिए तुम इतना चौंके थे जब मैंने जोसिमोव से कहा था कि पोर्फिरी उन तमाम लोगों के बारे में पूछताछ कर रहा है, जिन्होंने वहाँ चीजें गिरवी रखी थीं!' रजुमीखिन ने जान-बूझ कर एक खास इरादे से बात काट कर कहा।

यह बात सचमुच बर्दाश्त के बाहर थी। रस्कोलनिकोव अपनी काली-काली आँखों में प्रतिरोध से भरे गुस्से की चमक लिए हुए उसकी ओर देखे बिना न रह सका। लेकिन उसने अपने आपको फौरन ही सँभाल भी लिया।

'तुम तो लगता है मेरी खिल्ली उड़ा रहे हो यार,' उसने बनावटी चिड़चिड़ाहट की साथ कहा। 'मैं मानता हूँ कि तुम्हारे खयाल में मुझे इस तरह की छोटी-मोटी बातों में बेतुकेपन की हद तक दिलचस्पी है। लेकिन इसकी वजह से तुम कहीं यह न समझ लेना कि मैं स्वार्थी और लालची हूँ; और ये दो बातें मेरी नजरों में कतई छोटी-मोटी नहीं हैं। मैंने तुम्हें बताया था कि वह चाँदी की घड़ी भले ही दो कौड़ी की न हो, लेकिन हम लोगों के पास मेरे बाप की वही अकेली निशानी बची है। आप मेरा मजाक उड़ाएँगे लेकिन मेरी माँ यही हैं,' उसने अचानक पोर्फिरी की ओर घूम कर कहा, 'और अगर उन्हें मालूम हो गया,' वह एक बार फिर अचानक, जल्दी से रजुमीखिन की ओर घूमा और बड़ी होशियारी से उसने अपनी आवाज में कँपकँपी पैदा की, 'कि घड़ी खो गई है तो उनका दिल टूट जाएगा! औरतों की बातें तो आप जानते ही हैं!'

'नहीं, नहीं, ऐसी बात बिलकुल नहीं है! यह मेरा मतलब हरगिज न था, बल्कि बात इसकी उलटी ही थी!' रजुमीखिन ने दुखी हो कर ऊँची आवाज में कहा।

'यह क्या सही था स्वाभाविक था कहीं मैंने जरूरत से ज्यादा नाराजगी तो नहीं दिखाई,' रस्कोलनिकोव ने डर से काँपते हुए अपने आप से पूछा। 'मैंने औरतों के बारे में ऐसी बात क्यों कही?'

'तो आपकी माँ आपके पास आई हुई हैं?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने पूछा।

'जी।'

'कब आईं?'

'कल रात।'

पोर्फिरी रुक गया, गोया कुछ सोच रहा हो।

'आपकी चीजें बहरहाल खोएँगी नहीं,' वह शांत भाव से और सर्द लहजे में कहता रहा। 'मैं काफी अरसे से यहाँ आपके आने की उम्मीद लगाए हुए था।'

यह बात इस तरह कह कर गोया इसका कोई बहुत अधिक महत्व न हो, उसने बहुत सँभाल कर ऐश-ट्रे रजुमीखिन की ओर बढ़ा दी, जो सिगरेट की राख कालीन पर अंधाधुंध बिखेरे जा रहा था। रस्कोलनिकोव सहम गया लेकिन पोर्फिरी के आचरण से ऐसा लगता था कि वह उसकी ओर देख ही नहीं रहा। अभी तक उसका ध्यान रजुमीखिन की सिगरेट की ही ओर था।

'क्या कहा? इसके आने की उम्मीद लगाए हुए थे! क्यों, तुम्हें मालूम था क्या कि इसकी चीजें वहाँ रेहन रखी हुई हैं?' रजुमीखिन ने बेचैन हो कर पूछा।

पोर्फिरी पेत्रोविच रस्कोलनिकोव से ही बातें करता रहा।

'तुम्हारी दोनों चीजें, घड़ी और अँगूठी, एक साथ लपेट कर रखी हुई थीं, पेंसिल से कागज पर तुम्हारा नाम साफ-साफ लिखा था, और साथ ही वे तारीखें भी पड़ी थीं, जब तुम वे चीजें उसके पास रख कर आए थे...'

'आपकी नजर भी कितनी तेज है!' रस्कोलनिकोव कुछ खिसियाना-सा मुस्कराया और उसकी आँखों में आँखें डाल कर देखने की भरपूर कोशिश की लेकिन ऐसा कर न सका। अचानक बातचीत का सिलसिला जारी रखते हुए वह बोला, 'मैं इसलिए ऐसा कह रहा हूँ कि वहाँ शायद बहुत-सी चीजें रेहन रखी गई होंगी... इसलिए उन सबको याद रखना जरा मुश्किल ही है... लेकिन आपको तो सब चीजें एकदम साफ-साफ याद हैं... और... और...'

'बेवकूफी की बात!' उसने सोचा। 'यह बात कहने की जरूरत ही क्या थी'

'लेकिन हमें उन सब लोगों के बारे में पता है जिनकी चीजें वहाँ रेहन रखी हुई थीं, और तुम्हीं अकेले ऐसी आदमी हो, जो अभी तक नहीं आए थे,' पोर्फिरी ने छिपे हुए व्यंग्य के साथ जवाब दिया।

'मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी।'

'यह बात भी मैंने सुनी थी। मैंने तो बल्कि यह भी सुना था कि किसी बात की वजह से तुम बेहद परेशान थे। अभी तक तुम्हारा रंग कुछ-कुछ पीला है।'

'नहीं, मेरा रंग तो हरगिज पीला नहीं है... नहीं, मैं एकदम ठीक हूँ,' रस्कोलनिकोव ने रुखाई और गुस्से से अपना लहजा बदलते हुए, झट से जवाब दिया। उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था और वह उसे किसी भी तरह दबा नहीं पा रहा था। 'पर अपने गुस्से की वजह से मैं तो अपना ही भाँडा फोड़ दूँगा,' एक बार फिर यह विचार उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा। 'ये लोग मुझे सता क्यों रहे हैं?'

'बहुत ठीक तो नहीं है!' रजुमीखिन ने उसकी बात का खंडन करते हुए कहा। 'कम करके बता रहा है! यह अभी कल तक बेहोश था और सरसाम की हालत में था। यकीन जानो पोर्फिरी, हम लोगों के मुड़ते ही इसने कपड़े पहने, हालाँकि ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, और हम सबको चकमा दे कर आधी रात तक न जाने कहाँ-कहाँ घूमता रहा, वह भी तमाम वक्त सरसाम की हालत में! यकीन करोगे तुम! इसने तो हद कर दी!'

'सचमुच, सरसाम की हालत में सच कह रहे हो न!' पोर्फिरी ने किसान औरतों के ढंग से सर हिलाया।

'बकवास। आप इसकी बातों में मत आइए! लेकिन आपको तो यूँ भी इस बात पर यकीन नहीं है,' रस्कोलनिकोव के मुँह से गुस्से में निकल गया। पर लगता था पोर्फिरी पेत्रोविच पर उन विचित्र शब्दों की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी।

'लेकिन अगर तुम सरसाम की हालत में नहीं थे तो बाहर कैसे गए?' रजुमीखिन को अचानक तैश आ गया। 'बाहर भला किसलिए गए थे काम क्या था तुम्हें? और इस तरह चोरी से क्यों गए? जिस वक्त तुमने यह किया, क्या तुम पूरी तरह होश में थे? अब चूँकि सारा खतरा दूर हो चुका है, इसलिए मैं साफ-साफ बातें कर सकता हूँ।'

'कल मैं इन लोगों से बेहद तंग आ गया था।' रस्कोलनिकोव ने अचानक ढिठाई से मुस्करा कर पोर्फिरी को संबोधित किया। 'मैं इन लोगों से भाग कर रहने की कोई ऐसी जगह तलाश करने गया था जहाँ इन लोगों को मेरा पता न चल सके। और मैं साथ में बहुत सारा पैसा भी ले गया था। वह जमेतोव साहब, जो वहाँ बैठे हैं, उन्होंने वह पैसा देखा था। मैं पूछता हूँ जमेतोव साहब, मैं कल होश में था या सरसाम में था हमारा यह झगड़ा आप ही निबटा दीजिए।'

रस्कोलनिकोव को जमेतोव की मुद्रा और खामोशी से इतनी नफरत हो रही थी कि उसका बस चलता तो वह उसका गला घोंट देता।

'मेरी राय तो यह है कि तुम भरपूर समझदारी से, बल्कि काफी होशियारी से बातें कर रहे थे, लेकिन बेहद चिड़चिड़े भी हो रहे थे,' जमेतोव ने रूखे स्वर में अपना फैसला सुनाया।

'आज निकोदिम फोमीच मुझे बता रहा था,' पोर्फिरी पेत्रोविच बीच में बोला, 'कि वह कल बहुत रात गए तुमसे उस शख्स के घर पर मिला था जो गाड़ी से कुचल गया था।'

'लो, सुन लिया,' रजुमीखिन बोला, 'उस वक्त तुम क्या पगलाए हुए नहीं थे? तुमने अपनी पाई-पाई उस विधवा को कफन-दफन के लिए दे दी! मदद ही करना चाहते थे तो पंद्रह रूबल दे देते, या बीस भी दे देते, पर अपने लिए तीन-चार रूबल तो रख लेते। लेकिन नहीं, इसने तो पूरे पच्चीस रूबल फेंक दिए!'

'हो सकता है मुझे कोई खजाना मिल गया हो और तुम्हें उसके बारे में कुछ भी पता न हो हाँ, इसीलिए मैं कल इतना दानवीर बन गया था... जमेतोव साहब को मालूम है कि मुझे खजाना मिला है! माफ कीजिएगा, हम लोग ऐसी फिजूल बातों में आधे घंटे से आपका वक्त खराब कर रहे हैं,' उसने पोर्फिरी पेत्रोविच की ओर घूम कर काँपते हुए होठों से कहा। 'आप हम लोगों की बातों से बेजार हो रहे होंगे, क्यों?'

'नहीं, बात बल्कि इसकी उलटी है, एकदम उलटी! तुम्हें नहीं मालूम कि तुम्हारी बातों में मुझे कितनी दिलचस्पी है! बैठे देखते रहने और सुनते रहने में मुझे मजा आता है... और मुझे बड़ी खुशी है कि आखिर तुम खुद आए।'

'लेकिन हमें चाय तो पिलाओ! गला सूख रहा है,' रजुमीखिन ऊँचे बोला।

'उम्दा खयाल है! शायद हम सभी लोग तुम्हारा साथ दें। चाय से पहले कुछ वह चीज तो... नहीं लेंगे'

'जो मँगाना है, जल्दी मँगाओ!'

पोर्फिरी पेत्रोविच चाय के लिए बोलने चला गया।

रस्कोलनिकोव के विचारों में बगूला-सा उठ रहा था। वह बेहद आग-बगूला हो रहा था।

'सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये लोग कुछ छिपाते भी नहीं; उन्हें इसकी फिक्र भी नहीं है कि कुछ तकल्लुफ से ही काम लें। अब अगर आप मुझे एकदम नहीं जानते थे तो निकोदिम फोमीच से मेरे बारे में आपने बात कैसे की, यानी इन लोगों को इस बात को भी छिपाने को भी फिक्र नहीं कि ये लोग मेरे पीछे शिकारी कुत्तों की तरह पड़े हुए हैं। सरासर मेरे मुँह पर थूक रहे हैं!' वह गुस्से के मारे काँप रहा था। 'आओ, सीधी मार करो मुझ पर, मेरे साथ वैसा खेल न खेलो जैसा बिल्ली चूहे के साथ खेलती है, पोर्फिरी पेत्रोविच, और मैं शायद इसकी इजाजत भी नहीं दूँगा। मैं उठ कर सारी सच्चाई आप लोगों के इन बदसूरत चेहरों पर फेंक मारूँगा और तब आपको पता चलेगा कि आप सब से मुझे कितनी नफरत है...' साँस लेने में भी उसे कठिनाई हो रही थी। 'पर अगर यह सिर्फ मेरा भ्रम हुआ तो अगर मेरा इस तरह सोचना गलत हुआ, और अपनी नातजुर्बेकारी की वजह से मैं गुस्से में अपनी घृणित भूमिका न निभा सका तो शायद इन सब बातों के पीछे कोई इरादा हो ही नहीं इनकी सारी बातें घिसी-पिटी, पुरानी बातें हैं, लेकिन इनमें कोई बात तो है... ये सभी बातें कही जा सकती हैं, लेकिन इनमें कोई बात जरूर है। उसने इतने मुँहफट हो कर यह क्यों कहा : उसके यहाँ जमेतोव ने भी यह क्यों कहा कि मैं होशियारी से बातें कर रहा था? ऐसे लहजे में बातें ये लोग क्यों करते हैं हाँ, उनका लहजा... यहाँ रजुमीखिन भी बैठा है, उसे कुछ दिखता क्यों नहीं? इस काठ के उल्लू को कभी कुछ दिखाई नहीं देता! बुखार फिर चढ़ रहा है क्या? पोर्फिरी ने अभी मेरी ओर देख कर आँख मारी थी, क्या नहीं, सरासर बकवास है! वह आँख भला क्यों मारने लगा। ये लोग मुझे बौखला देने की कोशिश कर रहे हैं क्या, या मुझे तंग कर रहे हैं या तो यह सब कुछ मेरा भ्रम है या इन लोगों को सब कुछ मालूम है! जमेतोव भी अक्खड़ है... या नहीं है पिछली रात के बाद उसने तमाम बातों पर फिर से गौर किया है। मैं तो पहले ही समझ गया था कि वह अपनी राय बदलेगा। उसके लिए यहाँ जैसे सुकून-ही-सुकून है, और फिर भी वह यहाँ पहली बार आया है! पोर्फिरी उसे कोई ऐसा आदमी नहीं समझता जो उससे मिलने आया हो; उसकी तरफ पीठ करके बैठता है। मेरे बारे में तो उन दोनों के बीच चोरोंवाली मिलीभगत है... इसमें कोई शक ही नहीं है! न इसमें कोई शक है कि हम लोगों के आने से पहले वे मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे। उन्हें फ्लैटवाली बात मालूम है क्या? जो कुछ भी करना हो, ये बस जल्दी से खत्म करें तो अच्छा! जब मैंने कहा कि मैं रहने की जगह किराए पर लेने के लिए अपने यहाँ से भाग आया था तो उसने इस बात को नजरअंदाज किया... वह रहने की जगहवाली बात मैंने चालाकी से कही थी, मुमकिन है बाद में काम आए... सरसामी हालत, क्या बात है... हा-हा-हा! उसे कल रात के बारे में सब कुछ मालूम है! उसे मेरी माँ के आने के बारे में नहीं पता था! ...उस चुड़ैल ने पुड़िया पर पेंसिल से तारीख लिख रखी थी! यह आप लोगों का भ्रम है, मेहरबान आप मुझे नहीं पकड़ सकते! आपके पास कोई ठोस सबूत नहीं, सब हवाई बातें हैं! पेश कीजिए कोई ठोस सच्चाई! किराएवाली बात भी ठोस सबूत नहीं है, वह तो सरसामी हालत की बात है। मैं जानता हूँ। मुझे उनसे क्या कहना है... क्या उन्हें किराएवाली बात मालूम है मुझे उनसे क्या कहना है... क्या उन्हें बात मालूम है इस बात का पता लगाए बिना तो मैं यहाँ से नहीं जाता। यहाँ मैं आया किसलिए था लेकिन मेरी इस वक्त की नाराजगी शायद एक ठोस सच्चाई है! बेवकूफ, मैं भी कितना चिड़चिड़ा हो रहा हूँ! यही शायद ठीक है; बीमारी का बहाना करते रहना... यह मेरी टोह ले रहा है। मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा। मैं आया क्यों था यहाँ?'

उसके दिमाग में ये सारी बातें बिजली की तरह कौंधीं। पोर्फिरी पेत्रोविच जल्द ही वापस आ गया। अचानक वह पहले से भी ज्यादा हँसी-मजाक करने लगा था।

'यार, कल तुम्हारी पार्टी के बाद से मेरा तो सर जरा... मेरा अंजर-पंजर ढीला हो रहा,' उसने रजुमीखिन की ओर देख कर हँसते हुए एक-दूसरे ही लहजे में कहा।

'सचमुच दिलचस्प रही क्या कल मैं तुम्हें छोड़ कर जब आया था तब बहस बहुत दिलचस्प मुकाम पर पहुँच चुकी थी। बाजी आखिर में किसके हाथ रही?'

'जाहिर है, किसी के भी नहीं। वे लोग तो शाश्वत सवालों में उलझ गए और भटकते हुए दूर बादलों पर तैरने लगे!'

'सोचो तो, रोद्या, कल हम लोग किस तरह की बहस में उलझ गए थे : एक अपराध जैसी कोई चीज होती है क्या मैंने तुम्हें बताया था न कि हम लोग बकवास करने लगे थे।'

'इसमें क्या अजीब बात है यह तो आए दिन का एक समाजी सवाल है,' रस्कोलनिकोव ने सहज भाव से जवाब दिया।

'नहीं, सवाल को इस ढंग से नहीं रखा गया था,' पोर्फिरी ने अपनी बात कही।

'ठीक, इस ढंग से तो नहीं, यह सच है,' रजुमीखिन ने फौरन बात मान ली। वह हमेशा की तरह जोश से जल्दबाजी में बोल रहा था। 'सुनो रोदिओन, हमें तुम अपनी राय बताओ, और वह मैं सुनना चाहता हूँ। मैं उनका डट कर मुकाबला कर रहा था और मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत थी। मैंने उन लोगों से कहा भी कि तुम आ रहे हो... बहस शुरू हुई थी समाजवादियों के नजरिए से। तुम तो उन लोगों का नजरिया जानते हो : अपराध समाज के संगठन में आए विकार के खिलाफ विरोध के अलावा और कुछ भी नहीं और कुछ भी नहीं। उनके यहाँ इसके अलावा इसका और कोई कारण माना ही नहीं जाता।'

'यह तुम गलत बोल रहे हो,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने तेज आवाज में उसका खंडन किया। देखने से ही लग रहा था कि वह जोश में था। रजुमीखिन की ओर देख कर वह बराबर हँसता रहा, जिसकी वजह से रजुमीखिन पहले से भी ज्यादा उत्तेजित हो गया।

'कुछ और तो नहीं माना जाता,' रजुमीखिन ने जोश में आ कर उसकी बात काटी। 'मैं कतई गलत नहीं कह रहा हूँ। तुम्हें मैं उनकी किताबें दिखा सकता हूँ। उनके यहाँ हर चीज 'माहौल का असर' होती है, और कुछ भी नहीं! यही उनका सबसे पसंदीदा नारा है। इससे यह नतीजा निकाला जाता है कि अगर समाज को सही ढंग से संगठित किया जाए तो सारे अपराध फौरन मिट जाएँगे, क्योंकि फिर ऐसी कोई चीज रहेगी ही नहीं जिसके खिलाफ आवाज उठाई जाए और हर आदमी पल भर में पुण्यात्मा हो जाएगा। मनुष्य के स्वभाव की ओर तो ध्यान दिया ही नहीं जाता, उसे एक सिरे से अलग कर दिया जाता है और ऐसा समझ लिया जाता है कि गोया वह है ही नहीं। वे इस बात को नहीं मानते कि मानवजाति इतिहास की एक जीवंत प्रक्रिया के अनुसार विकसित हो कर आखिर में एक सुलझा हुआ, कायदे का समाज बन जाएगा। वे लोग बल्कि यह समझते हैं कि गणित जैसी सटीकता से काम करनेवाले किसी दिमाग से निकली हुई समाज-व्यवस्था पूरी मानवता को पलक झपकते संगठित कर देगी और पल भर में, किसी भी जीवंत प्रक्रिया से ज्यादा तेजी के साथ, उसे न्याय के मार्ग पर चलनेवाला और पाप से दूर रहनेवाला बना देगी! यही वजह है कि वे अपने सहज स्वभाव से सबब इतिहास को पसंद नहीं करते, 'उसमें उन्हें बदसूरती और बेवकूफी के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता,' और वे सारे के सारे इतिहास को महज बेवकूफी साबित करते हैं! यही वजह है कि उन्हें जीवन की जीवंत प्रक्रिया से नफरत है और वे जीवंत आत्मा चाहते ही नहीं। जीवंत आत्मा के लिए जीवन की जरूरत होती है, वह मशीनों के नियमों को नहीं मानती। जीवंत आत्मा शंकाग्रस्त होती है, जीवंत आत्मा पीछे ले जानेवाली चीज है! जिस तरह की आत्मा वे चाहते हैं, उसमें भले ही मौत की बदबू आती हो, और भले ही वह रबर से बनी कोई चीज हो, लेकिन उसमें कम-से-कम जान तो नहीं होती, कम-से-कम अपनी इच्छाशक्ति तो नहीं होती। आज्ञाकारी होती है वह और विद्रोह नहीं करती। सो आखिर में नतीजा यह होता है कि वे हर चीज को एक कबीले की रिहाइशी इमारत की दीवारें खड़ी करने और उसमें कमरों और गलियारों की योजना तैयार करने की सतह पर उतार लाते हैं। तो समाजवादी कबीले के रहने के लिए इमारत तो तैयार हो गई, लेकिन मनुष्य का स्वभाव इस इमारत के लिए तैयार नहीं है। वह जीवन चाहता है, अभी उसने अपनी जीवन-लीला पूरी नहीं की है, उसके लिए अभी कब्रिस्तान में जाने का समय नहीं आया है! तर्क के सहारे मनुष्य के स्वभाव को फलाँग कर आप आगे नहीं जा सकते! तर्क कुल तीन संभावनाओं को मान कर चलता है, जबकि संभावनाएँ तो करोड़ों हैं! उन करोड़ों संभावनाओं को काट दीजिए और सारी समस्या को बस सुख-सुविधा तक सीमित कर दीजिए। यह समस्या का सबसे आसान हल है! यह हल इतना सीधा-सादा है कि बरबस आपको लुभाता है, उसके बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं रहती। सबसे बड़ी बात तो यही है कि सोचने की कोई जरूरत नहीं। जीवन का सारा रहस्य दो छपे हुए पन्नों में समेट दिया गया है!'

'लो, अब इनका चरखा चल गया, ढोल पीटना शुरू हो गया! अरे यार, रोको इन्हें!' पोर्फिरी ने हँस कर कहा। 'तुम भला सोच सकते हो क्या,' उसने रस्कोलनिकोव की ओर मुड़ कर कहा, 'कि कल रात छह आदमी एक कमरे में बहस में इसी तरह उलझे हुए थे और इसकी तैयारी के लिए सबके गले के नीचे काफी शराब उँड़ेल दी गई थी नहीं, यार, तुम्हारा कहना गलत है। अपराध में इर्द-गिर्द के हालात का बड़ा दखल होता है; इसका तुम्हें मैं यकीन दिला सकता हूँ।'

'अरे, मैं यह जानता हूँ कि दखल होता है, लेकिन मुझे एक बात बताओ एक चालीस साल का आदमी दस साल की बच्ची के साथ कुकर्म करता है, तो क्या उसे इर्द-गिर्द के हालात ने ऐसा करने के लिए मजबूर किया?'

'एक तरह से, सच पूछा जाए तो, किया,' पोर्फिरी ने गंभीर स्वर में अपनी राय दी, 'इस तरह के अपराध को इर्द-गिर्द के हालात का नतीजा यकीनन कहा जा सकता है।'

रजुमीखिन का जोश बढ़ कर जुनून की हद तक पहुँच गया।

'अरे, अगर तुम यह बात कह रहे हो,' उसने गरज कर कहा, 'तो मैं यह साबित कर दूँगा कि तुम्हारी पलकें सफेद होने की वजह यह है कि इवान महान का घंटाघर पैंतीस गज ऊँचा है, और मैं यह बात साफ-साफ, सही-सही और प्रगतिशील ढंग से साबित करूँगा और उसमें उदारपंथी विचारों का पुट भी होगा। मैं इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार हूँ! लगी शर्त?'

'शर्त लगी! जरा सुनूँ तो, कैसे साबित करते हो!'

'तुम हमेशा ऐसी ही धोखेधड़ी की बातें करते हो, भाड़ में जाओ,' रजुमीखिन उछल कर खड़ा हो गया और जोर-जोर से हाथ हिला कर ऊँची आवाज में बोला। 'तुमसे बात करने से फायदा रोदिओन, तुम नहीं जानते, ऐसी बातें यह जान-बूझ कर करता है! कल इसने उन लोगों का पक्ष उन्हें बेवकूफ बनाने के लिए ही लिया था। और कैसी-कैसी बातें कल कही थीं इसने! और वे लोग थे कि बहुत ही खुश! फिर यह शख्स भी पंद्रह दिन तक यही नाटक जारी रख सकता है। पिछले साल इसने हम लोगों को यकीन दिला दिया था कि यह संन्यास ले कर किसी मठ में जानेवाला है : और दो महीने तक इसी बात पर अड़ा रहा। अभी बहुत दिन नहीं हुए, जाने क्या सूझी इसे कि ऐलान कर दिया कि यह शादी करनेवाला है। इसने तो यहाँ तक कहा कि शादी की सारी तैयारी हो भी चुकी। सच, नए कपड़े तक सिलवा लिए। सब लोग इसे बधाइयाँ भी देने लगे। लेकिन न कहीं कोई दुल्हन, न कुछ और सब मनगढ़ंत बातें थीं!'

'नहीं, यह तुम गलत कह रहे हो! कपड़े मैंने पहले ही सिलवा लिए थे। सच बात तो यह है कि उन नए कपड़ों की वजह से ही मुझे तुम लोगों को उल्लू बनाने की सूझी थी।'

'तो ऐसा ढोंग भी आप रच सकते हैं?' रस्कोलनिकोव ने लापरवाही से पूछा।

'तुम्हारा ऐसा खयाल नहीं था, न ठहरो, मैं तुम्हें भी ऐसा ढोंग रच कर दिखाऊँगा कि याद करोगे। हा-हा-हा! नहीं, मैं तुमसे सच कहूँगा। अपराध, परिवेश, बच्ची वगैरह के बारे में इन सब सवालों से मुझे तुम्हारे एक लेख की याद आती है जिसमें मुझे उन्हीं दिनों दिलचस्पी पैदा हो गई थी। 'अपराध के बारे में'... या ऐसा ही कुछ भला-सा नाम था, नाम तो मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा, दो महीने पहले सामयिक संवाद में उसे पढ़ कर मैं बहुत खुश हुआ था।'

'मेरा लेख सामयिक संवाद में?' रस्कोलनिकोव ने हैरानी से पूछा। 'छह महीने पहले मैंने जब यूनिवर्सिटी छोड़ी थी, तब मैंने एक किताब के बारे में एक लेख जरूर लिखा था, लेकिन मैंने तो उसे साप्ताहिक संवाद में भेजा था।'

'लेकिन वह छपा सामयिक में था।'

'लेकिन साप्ताहिक तब तक बंद हो गया था, इसलिए वह लेख उस वक्त नहीं छपा था।'

'यही बात थी... लेकिन सप्ताहिक संवाद के बंद होने के बाद उसे सामयिक ने ले लिया था और इसीलिए दो महीने पहले ही उसमें तुम्हारा लेख छपा था। तुम्हें पता नहीं था?'

रस्कोलनिकोव को वाकई पता नहीं था।

'पर उस लेख के लिए तो तुम्हें उन लोगों से कुछ पैसे भी मिल सकते हैं! अजीब आदमी हो तुम भी। सबसे इतना अलग-थलग और अकेले रहते हो कि उन बातों का भी तुम्हें पता नहीं रहता, जिनसे तुम्हारा सीधा सरोकार होता है। यह बात सच है, मैं यकीन दिलाता हूँ।'

'खूब रोद्या! मुझे भी इस बारे में कुछ पता नहीं था!' रजुमीखिन यकायक बोला। 'मैं आज ही लाइब्रेरी में जा कर उसका वह अंक देखता हूँ। तो बात दो महीने पहले की है तारीख क्या थी लेकिन कोई फर्क इससे नहीं पड़ता, मैं पता लगा लूँगा। कमाल कर दिया, हमें बताया तक नहीं!'

'आपको यह कैसे पता चला कि वह लेख मेरा था उसके नीचे तो मैंने अपने नाम के सिर्फ पहले अक्षर ही लिखे थे।'

'अभी कुछ दिन हुए इत्तफाक से पता चल गया। संपादक ने बताया, मैं उन्हें जानता हूँ... मुझे बड़ी दिलचस्पी थी उस लेख में।'

'मुझे जहाँ तक याद आता है, मैंने उसमें अपराध से पहले और अपराध के बाद अपराधी की मनोदशा का विश्लेषण किया था।'

'हाँ, और उसमें जोर दे कर तुमने यह बात कही थी कि कोई भी अपराध करने पर कोई बीमारी की दशा भी साथ लगी रहती है। यह तो बहुत ही अछूता खयाल है, लेकिन... लेख के इस हिस्से में मुझे इतनी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। हाँ, लेख के आखिर में एक विचार आया था जिसकी तरफ सिर्फ इशारा किया गया था, साफ-साफ शब्दों में और विस्तार से कुछ भी नहीं बताया गया था। अगर तुम्हें याद हो तो उसमें इस बात की तरफ इशारा किया गया है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो... मतलब यह कि उनमें ऐसी क्षमता होती है, बल्कि उन्हें इस बात का पूरा-पूरा अधिकार होता है कि वे नैतिकता के नियमों का पालन न करें और अपराध करें, और यह कि उनके लिए कानून कोई नहीं होता।'

उसके विचार को जिस तरह अतिशयोक्ति के साथ और जाने-बूझे तोड़-मरोड़ कर पेश किया था, उस पर रस्कोलनिकोव मुस्करा पड़ा।

'क्या मतलब? क्या है तुम्हारा अपराध करने का अधिकार? लेकिन इर्द-गिर्द के 'हालात' के हानिकर प्रभाव से नहीं' रजुमीखिन ने कुछ चिंतित हो कर पूछा।

'नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता कि उन्हीं के प्रभाव से,' पोर्फिरी ने जवाब दिया। 'इनके लेख में सभी इनसानों को दो हिस्सों में बाँटा गया है : साधारण और असाधारण। साधारण लोग वे होते हैं जिन्हें दब कर रहना पड़ता है, जिन्हें कानून का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं होता क्योंकि बस समझ लो कि वे साधारण ही होते हैं लेकिन असाधारण लोगों को कोई भी अपराध करने का किसी भी तरह से कानून का उल्लंघन करने का अधिकार होता है, और ऐसा सिर्फ इसलिए कि वे असाधारण होते हैं। अगर मैं गलती पर नहीं हूँ तो यही आपका विचार था न?'

'मतलब यह बात सही तो नहीं हो सकती।' रजुमीखिन बौखला कर बुदबुदाता रहा।

रस्कोलनिकोव फिर मुस्कराया। मतलब की बात उसने फौरन पकड़ ली और समझ गया कि वे लोग उसे किधर ले जाना चाहते थे। उसे अपना लेख याद था। उसने उनकी चुनौती कबूल करने का फैसला किया।

'पूरी तरह यही मेरे कहने का मतलब नहीं था,' रस्कोलनिकोव ने सीधे ढंग से और विनम्रता के साथ कहना शुरू किया। 'मैं फिर भी मानता हूँ कि मेरी बात को आपने लगभग पूरी तरह सही-सही बयान किया है, बल्कि मैं तो यहाँ तक कहने को तैयार हूँ कि शायद उसमें कुछ भी गड़बड़ नहीं है।' (इस बात को मान कर उसे कुछ खुशी भी हुई।) 'फर्क बस एक है। मैं इस पर जोर नहीं देता कि असाधारण लोगों के लिए हमेशा उनके, जैसा कि आप कहते हैं, नैतिकता के नियमों के, खिलाफ काम करना लाजमी नहीं होता। दरअसल, मुझे तो इसमें भी शक है कि इस बात की तरफ इशारा किया था कि 'असाधारण' आदमी को इस बात का अधिकार होता है... मतलब यह कि औपचारिक रूप से अधिकार तो नहीं होता पर वास्तविकता के स्तर पर अधिकार होता है कि वह अपनी अंतरात्मा में इस बात का निश्चय कर सके कि वह कुछ बाधाओं को... पार करके आगे जा सकता है, और वह भी उस हालात में जब ऐसा करना उसके विचारों को व्यवहार का रूप देने के लिए जरूरी हो। (शायद कभी-कभी यही पूरी मानवता के हित में हो।) आपका कहना है कि मेरे लेख में यह बात स्पष्ट ढंग से नहीं कही गई है; मैं अपनी बात, जहाँ तक मेरे लिए मुमकिन है, साफ-साफ कहने को तैयार हूँ। शायद मेरा यह सोचना ठीक ही है कि आप चाहेंगे, मैं ऐसा करूँ... अच्छी बात है। मेरा कहना यह है कि अगर एक, एक दर्जन, एक सौ या उससे भी ज्यादा लोगों की जान की कुरबानी दिए बिना केप्लर और न्यूटन की खोजों को सामने लाना मुमकिन न होता, तो न्यूटन को इस बात का अधिकार होता, बल्कि सच पूछें तो उसका कर्तव्य होता कि वह पूरी मानवता तक अपनी खोजों की जानकारी पहुँचाने के लिए... उन एक दर्जन या एक सौ आदमियों का सफाया कर दे। लेकिन इससे यह नतीजा नहीं निकलता कि न्यूटन को इस बात का अधिकार था कि वह अंधाधुंध लोगों की हत्या करता चले और रोज बाजार में जा कर चीजें चुराए। फिर मुझे याद है, मैंने अपने लेख में यह भी दावा किया था कि सभी... मेरा मतलब है कि सुदूर अतीत से ले कर अभी तक कानून बनानेवाले और जनता के नेता, जैसे लाइकर्गस, सोलन, मुहम्मद, नेपोलियन, वगैरह-वगैरह सारे के सारे एक तरह से अपराधी थे, सिर्फ इस बात के सबब कि उन्होंने एक नया कानून बना कर उस पुराने कानून का उल्लंघन किया जो उनके पुरखों से उन्हें मिला था और जिसे आम लोग अटल मानते थे। अरे, ये लोग तो खून-खराबे से भी नहीं झिझके क्योंकि उस खून-खराबे से, जिसमें अकसर पुराने कानून को बचाने के लिए बहादुरी से लड़नेवाले मासूमों का खून बहाया जाता था, उन्हें अपने लक्ष्य पाने में मदद मिलती थी। जी हाँ, कमाल की बात तो यह है कि मानवता का उद्धार करनेवाले इन लोगों में से, मानवता के इन नेताओं में से ज्यादातर नेता भयानक खून-खराबे के दोषी थे। इससे मैंने यह नतीजा निकाला है कि सभी महापुरुषों को, बड़े लोगों को, और उन लोगों को भी जो आम लोगों से थोड़े भिन्न होते हैं, कहने का मतलब यह कि कोई नई बात कह सकते हैं, उन्हें जाहिर है कि कमोबेश अपराधी ही बनना पड़ता है। नहीं तो उनके लिए घिसी-घिसायी लीक से बाहर निकलना मुश्किल हो जाए, और वे कभी घिसी-घिसायी लीक पर चलते रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह भी उनके स्वभाव की वजह से ही है और मैं समझता हूँ कि दरअसल उन्हें करना भी नहीं चाहिए। आप देखेंगे कि इसमें कोई खास नई बात नहीं कही गई। पहले हजारों बार यही बात छपी और पढ़ी जा चुकी है। रहा इसका सवाल कि मैंने लोगों को साधारण और असाधारण में बाँटा है, तो मैं यह मानता हूँ कि यहाँ मैंने कुछ मनमानेपन से काम लिया है। फिर भी उनकी सही-सही संख्या कितनी होनी चाहिए। इसके बारे में मेरा कोई आग्रह नहीं है। मैं तो बस अपने इस मुख्य विचार में विश्वास रखता हूँ कि प्रकृति का एक नियम लोगों को आमतौर पर दो खानों में बाँट देता है : एक तो निम्नतर (यानी साधारण), मतलब यह कि वह माल जो सिर्फ अपनी ही किस्म का माल बार-बार पैदा करते रहने के लिए होता है, और दूसरे वे लोग जिनमें कोई नई बात कहने की प्रतिभा होती है। जाहिर है इनके और भी अनगिनत छोटे-छोटे हिस्से हैं, लेकिन इन दो तरह के लोगों को जिन गुणों की बुनियाद पर अलग-अलग पहचाना जा सकता है, वे एकदम स्पष्ट हैं। आम तौर पर, पहली किस्म में ऐसे लोग होते हैं जो स्वभाव से ही दकियानूस और कानून को माननेवाले होते हैं, आज्ञाकारी होते हैं और आज्ञाकारी रहना पसंद करते हैं। उन्हें मेरी राय में आज्ञाकारी ही होना चाहिए। क्योंकि यही उनका काम है, और इसमें उनकी कोई हेठी नहीं होती। दूसरे किस्म के लोग कानून की सीमाओं को तोड़ते हैं; अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से वे या तो चीजों को नष्ट करते हैं या उनका झुकाव चीजों को नष्ट करने की ओर होता है। जाहिर है इन लोगों के अपराध दूसरी ही तरह के होते हैं और किसी दूसरी बात से तुलना करके ही उन्हें अपराध कहा जा सकता है। ज्यादातर तो यही होता है कि वे बहुत ही भिन्न-भिन्न संदर्भों में जो कुछ मौजूद है, उसे कुछ बेहतर की खातिर नष्ट करने की माँग करते हैं। लेकिन इस तरह का एक आदमी अगर अपने विचारों की खातिर किसी लाश को रौंदने या खून की नदी से भी पार उतरने पर मजबूर हो जाए तो वह, मेरा दावा है कि अपनी अंतरात्मा में खून की इस नदी से पार उतरने को उचित ठहराने के लिए भी कोई कारण ढूँढ़ निकालेगा। इसका दारोमदार इस पर है कि उसका विचार क्या है और वह कितना व्यापक है; यही ध्यान में रखने की बात है। मैंने अपने लेख में उनके अपराध करने के अधिकार की बात सिर्फ इसी मानी में कही है (आपको याद होगा, वह लेख एक कानूनी सवाल से शुरू हुआ था)। लेकिन कुछ ज्यादा चिंता करने की बात नहीं है : आम लोग इस अधिकार

को शायद कभी मानेंगे ही नहीं। वे ऐसे लोगों को (कमोबेश) या तो मौत की सजा देते हैं या फाँसी पर लटका देते हैं, और ऐसा करके वे अपने दकियानूसी होने के फर्ज को पूरा करते हैं, जो ठीक ही है। लेकिन अगली पीढ़ी में पहुँच कर आम लोग ही (कमोबेश) इन अपराधियों की ऊँची-ऊँची मूर्तियाँ खड़ी करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पहली किस्म के लोगों का हमेशा केवल वर्तमान पर ही अधिकार रहता है और दूसरी किस्म के लोग हमेशा भविष्य के मालिक होते हैं। पहली किस्म के लोग दुनिया को जैसे का तैसा बनाए रखना चाहते हैं और उनकी बदौलत दुनिया चलती रहती रहती है और दूसरी तरह के लोग दुनिया को आगे बढ़ाते हैं, उसे उसकी मंजिल की ओर ले जाते हैं। हर वर्ग को जिंदा रहने का बराबर अधिकार होता है। सच तो यह है कि मेरी राय में सभी के एकदम अधिकार बराबर होते हैं - और टपअम सं हनमततम मजमतदमससम1 - जब तक कि यरूशलम में फिर कोई नया मसीहा न आ जाए।'


1. अनंत युद्ध अमर रहे। (फ्रांसीसी)


'तो यरूशलम में नए मसीहा के आने पर आपका भी विश्वास है, क्यों?'

'बिलकुल है,' रस्कोलनिकोव ने सधे स्वर में कहा। ये शब्द कहते समय और इससे पहलेवाले पूरे प्रवचन के दौरान कालीन पर एक जगह अपनी नजरें उसने जमाए रखीं थीं।

'और... ईश्वर में भी विश्वास रखते हैं आप? मुझे यह सवाल पूछने के लिए माफ कीजिएगा।'

'एकदम रखता हूँ,' रस्कोलनिकोव ने पोर्फिरी की ओर नजरें उठा कर कहा।

'और... लैजेरस के फिर से जिंदा होने में भी आपका विश्वास है?'

'मुझे... हाँ, है। यह सब आप पूछ क्यों रहे हैं?'

'आप उस किस्से पर ज्यों का त्यों, उसके एक-एक शब्द पर विश्वास रखते हैं?'

'एक-एक शब्द पर।'

'सचमुच... मैंने तो यूँ ही जानने के लिए पूछा था। माफ कीजियेगा। लेकिन आइए, हम अपने सवाल पर फिर लौटें : तो उन्हें हमेशा मौत के घाट नहीं उतारा जाता, बल्कि इसके बरखिलाफ कुछ लोग...'

'अपनी जिंदगी में ही कामयाब हो जाते हैं जी हाँ, कुछ लोग इस जिंदगी में ही अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, और फिर...'

'दूसरों को मौत के घाट उतारने लगते हैं...'

'जरूरी होता है... तो सच तो यह है कि ज्यादातर वे लोग ऐसा ही करते हैं। आपने बहुत गहरी चुटकी ली।'

'शुक्रिया। लेकिन मुझे तो आप यह बताइए कि आप इन असाधारण और साधारण लोगों को एक-दूसरे से अलग करके पहचानते कैसे हैं? क्या उनमें पैदा होते ही कुछ ऐसी निशानियाँ बन जाती हैं? मुझे लगता है कि इस बात को और भी सही-सही समझाया जाना चाहिए, कुछ ऐसे कि किसी बाहरी निशानी के सहारे उन्हें साफ-साफ पहचाना जा सके। कानून को माननेवाले और व्यावहारिक नागरिक होने के नाते मुझे जो स्वाभाविक चिंता है, उसके लिए मुझे माफ कीजिएगा। लेकिन क्या, मिसाल के लिए, उनकी कोई खास वर्दी नहीं हो सकती, क्या उन्हें अलग से कोई चीज नहीं पहनाई जा सकती, उन पर कोई निशानी नहीं लगाई जा सकती इसलिए कि, देखिए, बात यह है कि अगर कोई गड़बड़ हो जाए और एक किस्म का कोई आदमी यह समझ बैठे कि वह दूसरी किस्म का है, और बाधाओं का सफाया करना शुरू कर दे, जैसा कि आपने इस बात को बहुत अच्छे ढंग से सामने रखा है, तब...'

'जी... अकसर ऐसा ही होता है! यह चुटकी तो पहलेवाली से भी ज्यादा गहरी है।'

'शुक्रिया।'

'कोई बात नहीं। लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि यह गलती सिर्फ पहली किस्म के लोग कर सकते हैं, यानी साधारण लोग। (जैसा कि मैंने उन्हें शायद बदकिस्मती से कहा है।) आज्ञापालन के अपने स्वभाव के बावजूद उनमें से बहुत से लोग, तबीयत में कोई शरारत पैदा होती है तो क्योंकि शरारत तो कभी-कभी गाय जैसे जानवर को भी सूझ जाती है, अपने आपको दूसरों से आगे विनाशक जताने लगते हैं और धक्का-मुक्की करके नए पैगाम से जा चिपकते हैं, और वे पूरी ईमानदारी के साथ ऐसा करते हैं। साथ ही, जो लोग सचमुच नए होते हैं वे उन्हें अकसर नजरअंदाज कर देते हैं या वे उन्हें पिछड़े हुए, जाहिल समझ कर उनसे नफरत भी करने लगते हैं। लेकिन मैं नहीं समझता कि वे कोई बहुत बड़ा खतरा हैं, और आपको उनकी तरफ से परेशान तो नहीं ही होना चाहिए - क्योंकि वे बहुत आगे तक जा नहीं सकते। कभी-कभी ऐसा जरूरी हो सकता है कि ऐसी उड़ान भरने पर उन्हें उनकी अपनी हैसियत बताने के लिए उनकी मरम्मत कर दी जाए, बस इससे ज्यादा नहीं। दरअसल जरूरत तो इसकी भी नहीं पड़ती क्योंकि वे खुद अपने आपको धिक्कारते हैं क्योंकि वे बेहद ईमानदार होते हैं। इस तरह की सेवा कुछ लोग तो एक-दूसरे के लिए करते हैं, और कुछ दूसरे लोग खुद अपने हाथों अपने को सजा देते हैं... ये लोग तरह-तरह से, सरेआम ऐसे प्रायश्चित्त करते हैं कि दूसरों पर उसका अद्भुत और बहुत अच्छा असर पड़ता है। दरअसल, इसमें आपके लिए परेशान होनेवाली कोई बात नहीं... प्रकृति का यही नियम है।'

'खैर, इस मसले के बारे में आपने मेरी परीशानी यकीनन एक बड़ी हद तक दूर कर दी; लेकिन मुझे एक और बात भी परेशान करती रहती है। मेहरबानी करके यह बताइए कि क्या इस तरह के लोग, ये 'असाधारण लोग', जिन्हें दूसरों को मार डालने का अधिकार होता है, बहुत ज्यादा होते हैं मैं उनके सामने सर झुकाने को एकदम तैयार हूँ, लेकिन यह तो आप भी मानेंगे कि इस तरह के लोग बहुत से हुए तो बात सोच कर ही दिल दहल जाए, कि नहीं?'

'अरे नहीं, आपको उससे भी परेशान होने की कोई जरूरत नहीं,' रस्कोलनिकोव उसी लहजे में कहता रहा। 'जिन लोगों के पास नए विचार होते हैं, जिन लोगों में कुछ नया कहने की जरा-सी भी लियाकत होती है, उनकी गिनती बहुत थोड़ी होती है, सच तो यह है कि ऐसे लोग इने-गिने ही होते हैं। एक बात पूरी तरह साफ है : लोगों की ये श्रेणियाँ, उपश्रेणियाँ प्रकृति के किसी नियम की पूरी तरह पाबंद रह कर ही सामने आती हैं। अभी तक उस नियम का पता, जाहिर है, नहीं चल सका है, लेकिन मुझे यकीन है कि इस तरह का कोई नियम है जरूर और एक न एक दिन उसका पता चलेगा। यह विशाल मानवजाति तो बस वह सामग्री है जिसका अस्तित्व कुल जमा इसलिए है कि किसी बहुत बड़े प्रयास से किसी रहस्यमय प्रक्रिया में, जातियों और नस्लों के आपस में घुलने-मिलने के फलस्वरूप वह इस दुनिया में हजार में से आखिरकार एक आदमी ऐसा पैदा कर सके, जिसमें आजादी की कोई चिनगारी हो। शायद दस हजार लोगों में एक - मैं तो मोटा-मोटा अंदाजा ही बता रहा हूँ - ऐसा होता है, जिसमें कुछ आजादी होती है और उससे ज्यादा आजादी तो शायद लाख में से एक में होती हो। मेधावी तो करोड़ों में एक होता है और महान मेधावी तो जो मानवजाति का सरताज हो, इस पृथ्वी पर शायद अरबों-खरबों लोगों में से कोई एक ही होता है। अब मैंने उस यंत्र में झाँक कर तो नहीं देखा, जिसमें यह प्रक्रिया चलती रहती है, लेकिन कोई पक्का नियम जरूर है और होना भी चाहिए। यह सब कुछ संयोग फालतू तो हो नहीं सकता।'

'कहना क्या चाहते हो? तुम दोनों मजाक कर रहे हो क्या?' रजुमीखिन से आखिर रहा नहीं गया और वह चीख कर बोला, 'या एक-दूसरे को बना रहे हो, बैठे बैठे एक-दूसरे का मजाक उड़ा रहे हो! रोद्या, तुम ये सब गंभीरता से कह रहे हो क्या?'

रस्कोलनिकोव ने पीला और उदास चेहरा ऊपर उठा कर उसकी ओर देखा पर कोई जवाब नहीं दिया। उसके उस शांत और उदास चेहरे के मुकाबले पोर्फिरी का खुला, लगातार खिसियाया हुआ और अशिष्ट व्यंग्य रजुमीखिन को कुछ अजीब-सा लगा।

'खैर यार, तुम अगर सचमुच गंभीरता से बात कर रहे हो... तो जाहिर है तुम्हारा यह कहना ठीक ही है कि इसमें कोई नई बात नहीं है, कि यह वैसी ही बात कोई है, जैसी हमने पहले भी हजार बार पढ़ा और सुना है। लेकिन इन सबमें एक बात सचमुच मौलिक, सचमुच अछूती है, और मैं तो यही सोच कर काँप जाता हूँ कि वह बात पूरी तरह तुम्हारी अपनी है। यह कि तुम अंतरात्मा की दुहाई दे कर और मुझे माफ करना, इतनी कट्टरता के साथ, खून-खराबे को सही ठहरा रहे हो। जहाँ तक मैं समझ सका हूँ, तुम्हारे लेख की खास बात यही है। लेकिन अंतरात्मा के नाम पर खून-खराबे को इस तरह उचित ठहराना, मेरी समझ में तो... जिस तरह खून-खराबे को सरकारी तौर पर, कानूनी तौर पर, उचित ठहराया जाता है... उससे भी ज्यादा भयानक है।'

'आप एकदम सही कहते हैं, ये तो और भी भयानक बात है,' पोर्फिरी ने सहमति जताई।

'हाँ, तुमने बात को जरूर बढ़ा-चढ़ा कर कहा होगा! कहीं कोई गलती तो है... मैं देखूँगा पढ़ कर। ऐसा तो तुम सोच नहीं सकते! मैं जरूर पढ़ूँगा।'

'यह सब उस लेख में है ही नहीं, उसमें तो इसकी तरफ इशारा ही किया गया है,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

'हाँ, सो तो ठीक है,' पोर्फिरी बेचैन हुआ जा रहा था। 'अपराध के बारे में आपका रवैया तो मेरी समझ में काफी साफ आ गया है, लेकिन... गुस्ताखी माफ हो (मैं आपको इस तरह परेशान करने पर सचमुच शर्मिंदा हूँ!), देखिए बात यह है कि आपने दानों किस्म के लोगों के आपस में गड्डमड्ड होने के सवाल पर तो मेरी परीशानी दूर कर दी लेकिन... अमल में और भी कई तरह की बातें हो सकती हैं, जो मुझे परेशान कर सकती हैं! फर्ज कीजिए कोई आदमी या नौजवान यह समझने लगे कि वह लाइकर्गस या मुहम्मद है - मतलब कि आगे चल कर वह बन सकता है - और फर्ज कीजिए कि वह सारी रुकावटों को दूर करना शुरू कर देता है, तो क्या होगा... उसके सामने कोई बहुत बड़ा काम है और उसके लिए पैसे की जरूरत है... और वह पैसा हासिल करने की कोशिश करता है... आप समझ रहे हैं न?'

जमेतोव कोने में अपनी जगह बैठे-बैठे ही ठहाका मार कर हँसा। रस्कोलनिकोव ने उसकी तरफ आँख उठा कर देखा भी नहीं।

'मानता हूँ,' वह शांत भाव से कहता रहा, 'कि इस तरह की मिसालें हो सकती हैं। बेवकूफ और शेखचिल्ली लोग खास तौर पर इस जाल में फँस सकते हैं; खास तौर पर नौजवान।'

'जी, तो आप ही बताइए तब क्या होगा!'

'तब क्या होगा' रस्कोलनिकोव जवाब में मुस्कराया, 'इसमें तो मेरा कोई कुसूर नहीं। ऐसा है और हमेशा होता रहेगा। अभी-अभी यह कह रहा था' (उसने रजुमीखिन की तरफ सर हिला कर इशारा किया) 'कि मैं खून-खराबे को सही ठहरा रहा हूँ। तो इसमें हर्ज क्या है समाज के बचाव के लिए जेलखानों, जलावतनी, जाँच-पड़ताल और सख्त सजाओं का पक्का बंदोबस्त है। परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। आपको तो बस चोर को पकड़ना है!'

'और हमने उसे पकड़ लिया तो फिर?'

'तो वह सजा भुगतेगा अपनी।'

'आप बात तो पक्की कहते हैं। लेकिन उसकी अंतरात्मा का क्या होगा?'

'उसकी चिंता आप क्यों करते हैं?'

'महज इनसान होने के नाते।'

'अगर उसके कोई अंतरात्मा होगी तो वह अपनी गलती पर पछताएगा। वही उसकी सजा होगी - और जेल तो है ही।'

'लेकिन जो सचमुच मेधावी हैं,' रजुमीखिन ने त्योरियों पर बल डाल कर पूछा, 'जिन्हें हत्या करने का अधिकार है, क्या उन लोगों को उस खून की भी कोई सजा नहीं मिलनी चाहिए, जो वे बहाते हैं?'

'आखिर यह चाहिए की बात क्यों? यह न इजाजत का सवाल है न पाबंदी का। उसने जिसे मारा है उसके लिए उसे जब अफसोस होगा तो उसे पछतावा होगा... जिसके ज्यादा समझ होती है, जिसके दिल में गहराई होती है, उसे हमेशा, लाजिमी तौर पर तकलीफें और मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं। मैं समझता हूँ कि जो लोग सचमुच बड़े होते हैं, इस धरती पर बेहद उदासी ही उनका नसीबा होती है,' रस्कोलनिकोव ने ऐसे लहजे में कहा, जो इस पूरी बातचीत का लहजा नहीं था। लग रहा था, वह कोई सपना देख रहा हो।

उसने नजरें उठा कर बड़ी सादगी से सबकी ओर देखा, मुस्कराया और अपनी टोपी उठा ली। वह जिस ढंग से अंदर आया था उसके मुकाबले अब वह बहुत शांत था, और उसने इस बात को महसूस भी किया। सब लोग उठ खड़े हुए।

'खैर, आप भले ही मुझे बुरा-भला कह लें या चाहें तो मुझ पर नाराज हो लें,' पोर्फिरी ने फिर कहना शुरू किया, 'लेकिन अपनी बात कहे बिना मैं नहीं रह सकता। मुझे बस एक छोटा-सा सवाल पूछने की इजाजत दीजिए। (मैं जानता हूँ कि मेरी वजह से आपको परीशानी हो रही है!) मेरे दिल में बस एक छोटी-सी बात है जो मैं कह देना चाहता हूँ, सिर्फ इसलिए कि उसे भूल न जाऊँ।'

'बहुत अच्छा, तो बताइए वह छोटी-सी बात क्या है।' रस्कोलनिकोव उसके सामने खड़ा इंतजार करता रहा। उसका चेहरा पीला और गंभीर था।

'देखिए, बात यह है... मेरी समझ में नहीं आ रहा कि दरअसल उस बात को मैं सही ढंग से कहूँ कैसे... बड़ा दिलचस्प, मनोवैज्ञानिक किस्म का विचार है। आप जब वह लेख लिख रहे थे तो आप भी ही-ही-ही... अपने बारे में यह सोचे बिना न रह सके होंगे... कि आप भी, थोड़ी-सी हद तक ही सही, एक असाधारण आदमी हैं, जो अपनी समझ में एक नई बात कह रहा है... या नहीं?'

'बहुत मुमकिन है,' रस्कोलनिकोव ने तिरस्कार से जवाब दिया।

रजुमीखिन जरा-सा कसमसाया।

'अब अगर ऐसा है तो क्या यह मुमकिन है कि रोजमर्रा की कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना होने पर - या मानवजाति की सेवा करने के लिए - आप उन बाधाओं को चूर कर देते... मिसाल के लिए, कहीं डाका, किसी का कत्ल...'

उसने एक बार फिर अपनी बाईं आँख मारी और पहले की ही तरह एक दबी हुई हँसी हँसा।

'मैं अगर ऐसा करता भी तो क्या आपको बताने आता,' रस्कोलनिकोव ने चुनौती और दंभ भरे तिरस्कार से जवाब दिया।

'अरे नहीं, मेरी दिलचस्पी तो सिर्फ आपके लेख की वजह से, साहित्यिक दृष्टिकोण से थी...'

'उफ! किस कदर सरासर ढिठाई है!' रस्कोलनिकोव ने नफरत के साथ सोचा। उसने रूखेपन से जवाब दिया, 'मुझे यह कहने की इजाजत दीजिए कि मैं अपने आपको न तो मुहम्मद समझता हूँ न नेपोलियन, न ही उस तरह की कोई दूसरी हस्ती। अब चूँकि मैं उनमें से नहीं हूँ इसलिए मैं आपको यह नहीं बता सकता कि मैं क्या करता।'

'खैर, छोड़िए भी, आज रूस में हम सभी अपने आपको क्या नेपोलियन नहीं समझते?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने अचानक खौफनाक बेतकल्लुफी से कहा। उसकी आवाज के उतार-चढ़ाव से निश्चित रूप से किसी भयानक एहसास का पता चलता था।

'ऐसा नहीं हो सकता क्या कि आगे चल कर नेपोलियन बनने का सपना देखनेवाले किसी ऐसे ही बंदे ने अल्योना इवानोव्ना को पिछले हफ्ते ठिकाने लगा दिया हो?' जमेतोव कोने में बैठे-बैठे बोला।

रस्कोलनिकोव कुछ बोला नहीं लेकिन नजरें गड़ा कर गौर से पोर्फिरी की ओर देखा। रजुमीखिन त्योरियों पर बल डाले निराश मुद्रा में बैठा हुआ था। इससे पहले ऐसा लग रहा था कि उसका ध्यान किसी और चीज की ओर जा रहा है। उसने गुस्से से चारों ओर देखा। कुछ पलों तक निराशा भरी खामोशी छाई रही। रस्कोलनिकोव चलने के लिए मुड़ा।

'आप जा रहे हैं क्या?' पोर्फिरी ने बेहद शिष्टता से हाथ आगे बढ़ाते हुए नर्मी से कहा। 'आपसे मिल कर भारी खुशी हुई। जहाँ तक आपकी उस समस्या का सवाल है, उसके बारे में आप कतई परेशान न हों। जैसा मैंने आपको बताया वैसी अर्जी लिख दीजिए, बल्कि बेहतर तो यह होगा कि एक-दो दिन में खुद ही वहाँ जाइए... चाहे तो कल ही आ जाइए। मैं ग्यारह बजे वहाँ यकीनन रहूँगा। हम सब बंदोबस्त कर देंगे और वहीं बातें कर लेंगे। चूँकि आप वहाँ जानेवाले आखिरी लोगों में से थे, इसलिए शायद आप हमें कुछ बता सकें,' उसने सहृदयता से कहा।

'आप बाकायदा सरकारी तौर पर सवाल-जवाब करना चाहते हैं?' रस्कोलनिकोव ने तीखे स्वर में पूछा।

'नहीं तो, किसलिए? अभी उसकी कोई जरूरत नहीं। आपने मुझे गलत समझा। देखिए, बात यह है कि मैं हाथ से कोई मौका नहीं जाने देता, और... जिन-जिन की चीजें वहाँ गिरवी थीं, उन सभी से मैंने बात की है... उनमें से कुछ की गवाहियाँ भी ली हैं, और आप आखिरी आदमी हैं... हाँ, एक बात तो बताइए,' वह अचानक गोया खुश हो कर बोला, 'अभी याद आया जाता है कि मैं सोच क्या रहा था!' वह रजुमीखिन की ओर मुड़ा। 'उस मिकोलाई के बारे में तुम मेरे कान खा रहे थे... जाहिर है मैं जानता हूँ, बहुत अच्छी तरह जानता हूँ,' यह कह कर वह रस्कोलनिकोव की ओर मुड़ा, 'कि वह आदमी एकदम बेकसूर है, लेकिन क्या किया जाए, हमें मित्का को भी हैरानी में डालना पड़ा। बात यह है, बस इतनी-सी कि जब आप सीढ़ियों से ऊपर गए थे, उस वक्त सात बज चुके थे न?'

'हाँ,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। लेकिन जैसे ही उसने हाँ कहा, उसके मन में एक खटक-सी पैदा हुई कि उसे यह बात नहीं कहनी चाहिए थी।

'आप जब सात और आठ के बीच ऊपर गए थे, तो आपने दूसरी मंजिल पर एक खुले हुए फ्लैट में दो मजदूरों को या कम-से-कम एक को काम करते देखा? आपको कुछ याद है वे वहाँ रंगाई-पुताई कर रहे थे, आपने उन्हें देखा था यह बात उनके लिए बहुत ही महत्व रखती है।'

'पुताई करनेवाले? नहीं, मैंने तो नहीं देखा उन्हें,' रस्कोलनिकोव ने धीरे-धीरे जवाब दिया, मानो अपनी यादों को टटोल रहा हो। साथ ही वह दिमाग का पूरा जोर लगा कर जल्द से जल्द यह सूँघने की कोशिश कर रहा था कि इसमें फंदा कहाँ पर है, और इसकी भी कि उसकी नजर से कोई बात न चूक जाए। इसकी फिक्र में उसे गश आया जा रहा था। 'नहीं, मैंने उन्हें नहीं देखा, और मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने इस तरह का कोई खुला हुआ फ्लैट देखा... लेकिन चौथी मंजिल पर।' अब फंदा उसकी समझ में आ गया था और उसे लग रहा था गोया उसे बहुत बड़ी जीत मिली हो, 'अब मुझे याद आता है कि चौथी मंजिल पर अल्योना इवानोव्ना के सामनेवाला फ्लैट छोड़ कर कोई जा रहा था... मुझे याद है... अच्छी तरह याद है। कुछ मजदूर सोफा बाहर निकाल रहे थे और उन्होंने मुझे दबाते-दबाते दीवार से भिड़ा ही दिया था। लेकिन पुताई करनेवाले... नहीं, मुझे एकदम याद नहीं आता कि वहाँ पुताई करनेवाले भी रहे हों, और मैं यह भी नहीं समझता कि कहीं कोई फ्लैट खुला हुआ था। नहीं, कोई नहीं था।'

'मतलब तुम्हारा क्या है?' रजुमीखिन अचानक चीखा, गोया उसने सोच कर कोई बात पकड़ ली हो। 'अरे, पुताई करनेवाले तो उस दिन काम कर रहे थे जिस दिन कत्ल हुआ और यह वहाँ गया था तीन दिन पहले, पूछ क्या रहे हो तुम?'

'उफ! मैं भी किस बात में उलझ गया!' पोर्फिरी ने माथा ठोंकते हुए कहा। 'लानत है! इस चक्कर में मेरा दिमाग भी कुछ फिरा जा रहा है!' उसने रस्कोलनिकोव से कुछ-कुछ माफी माँगने के अंदाज में कहा। 'हमारे लिए इसका पता लगाना बेहद जरूरी है कि सात और आठ के बीच उन्हें उस फ्लैट में किसी ने देखा था या नहीं। इसलिए मैंने सोचा कि शायद आप कुछ बता सकें... मैंने तो एकदम उलझा दिया सारी बातों को!'

'तुम्हें कुछ और सावधानी से काम लेना चाहिए,' रजुमीखिन ने गंभीरता से कहा।

ये आखिरी शब्द बाहर निकलते हुए ड्योढ़ी में कहे गए थे। जरूरत से ज्यादा शिष्टता का परिचय देते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच उन्हें दरवाजे तक छोड़ आया।

जब वे बाहर सड़क पर निकले तो निराश और गंभीर थे। कुछ कदम तक दोनों ने एक शब्द भी नहीं कहा। रस्कोलनिकोव ने गहरी साँस ली...