अपराध और दंड / अध्याय 4 / भाग 5 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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अगले दिन सबेरे रस्कोलनिकोव ठीक ग्यारह बजे फौजदारी मुआमलों की छानबीन वाले विभाग में पहुँचा। उसने अपना नाम पोर्फिरी पेत्रोविच के पास भिजवाया तो उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उसे देर तक इंतजार कराया गया। कम-से-कम दस मिनट बीतने के बाद ही उसे अंदर बुलाया गया। उसने सोचा था, वे लोग देखते ही उस पर लपक पड़ेंगे। वह बाहरी कमरे में खड़ा इंतजार करता रहा और ऐसे लोग, जिनको बजाहिर उससे कोई वास्ता नहीं था, उसके सामने से हो कर इधर-से-उधर गुजरते रहे। उसके बादवाले कमरे में, जो देखने में कोई दफ्तर लगता था, कई क्लर्क बैठे कुछ लिख रहे थे। जाहिर है, उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं था कि रस्कोलनिकोव कौन और क्या है। उसने बेचैन हो कर और शक से यह पता लगाने के लिए चारों ओर देखा कि उस पर कोई पहरा तो नहीं लगाया गया है या किसी रहस्यमय ढंग से उस पर नजर तो नहीं रखी जा रही कि वह भाग न सके। लेकिन इस तरह की कोई बात नहीं थी। उसे सिर्फ उन क्लर्कों के चेहरे नजर आए जो छोटे-छोटे कामों में व्यस्त थे और कुछ ऐसे लोगों के भी, जिनमें से किसी को भी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। रहा वह, तो वह जहाँ भी चाहे, जा सकता था। उसके मन में यह विश्वास और पक्का हो गया कि कलवाले उस रहस्यमय आदमी ने, जो धरती का सीना फाड़ कर अचानक निकल आए, उस प्रेत ने सब कुछ देखा होता, तो वे लोग उसे वहाँ इस तरह खड़े-खड़े इंतजार करने का मौका न देते। या वे लोग इस बात की राह देखते कि वह खुद ग्यारह बजे आ कर वहाँ हाजिर हो या तो उस आदमी ने उन लोगों को अभी तक कोई खबर नहीं दी थी, या... या फिर उसे कुछ भी मालूम नहीं था, उसने कुछ भी नहीं देखा था (वह देख भी कैसे सकता था!), और इसलिए कल उसके साथ जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक भ्रम था, जिसे उसकी बीमार और जरूरत से ज्यादा थकी हुई कल्पना ने बढ़ा-चढ़ा कर एक भीषण रूप दे दिया था। उसके सारे भय और सारी निराशा के बीच यह अनुमान कल ही पकना शुरू हो गया था। अब इस सारी बात पर फिर से विचार करते, एक नए संघर्ष की तैयारी करते हुए, उसे अचानक एहसास हुआ कि वह काँप रहा है। मगर मन में यह विचार आते ही कि वह उस मनहूस पोर्फिरी पेत्रोविच का सामना करने के डर से काँप रहा था, उसे अपने अंदर क्रोध का एक तूफान उठता हुआ महसूस हुआ। उसे सबसे ज्यादा डर उससे फिर मिलने से लग रहा था। उससे उसको गहरी नफरत थी, खुली हुई नफरत, और उसे डर था कि इस नफरत की वजह से कहीं उसका भेद खुल न जाए। फिर तो उसे इतना गुस्सा आया कि उसका काँपना फौरन बंद हो गया। वह शांत भाव से और ढिठाई के अंदाज में अंदर जाने को तैयार हो गया और उसने मन-ही-मन कसम खाई कि जहाँ तक हो सकेगा, वह चुप रहेगा, सिर्फ देखेगा और सुनेगा और कम-से-कम इस बार अपने जरूरत से ज्यादा थके हुए दिमाग पर लगाम लगा कर रखेगा। उसी पल उसे पोर्फिरी पेत्रोविच के सामने बुलाया गया।

उसने देखा उस पल पोर्फिरी पेत्रोविच अपने दफ्तर में अकेला था। दफ्तर न बहुत बड़ा था, न बहुत छोटा। एक बड़ी-सी लिखने की मेज रखी हुई थी, पास ही एक सोफा पड़ा था जिस पर मोमजामा चढ़ा हुआ था, एक और दफ्तरी मेज थी, कोने में किताबों की एक अलमारी और बहुत-सी कुर्सियाँ। यह सब पीली पालिश की हुई लकड़ी का सरकारी फर्नीचर था। दूरवाली दीवार में एक बंद दरवाजा था, जिसके उधर यकीनन दूसरे कमरे होंगे। रस्कोलनिकोव के अंदर आते ही पोर्फिरी पेत्रोविच ने फौरन वह दरवाजा बंद कर दिया, जिससे हो कर वह कमरे में आया था, और वहाँ वे दोनों अकेले रह गए। वह अपने मेहमान से जाहिरा तौर पर काफी मिलनसारी और खुशमिजाजी के साथ मिला। रस्कोलनिकोव को कुछ मिनट बाद उसमें अटपटा महसूस करने के चिह्न दिखाई पड़े, गोया उसका सारा हिसाब गड़बड़ हो गया हो या वह कोई खुफिया काम करते हुए पकड़ा गया हो।

'आओ, यार। तो तुम आ ही गए... हमारे हलके में...' पोर्फिरी ने दोनों हाथ उसकी ओर बढ़ा कर कहना शुरू किया। 'आओ, बैठो उस्ताद... या शायद तुम्हें यह पसंद नहीं कि तुमसे यार और उस्ताद कह कर बात की जाए... खैर छोड़ो। मेरी बेतकल्लुफी का बुरा न मानना... यहाँ बैठो सोफे पर।'

रस्कोलनिकोव बैठ गया और नजरें जमा कर उसे देखने लगा। 'हमारे हलके में', बेतकल्लुफी की माफी माँगना, बीच में, फ्रांसीसी के कुछ शब्द कह देना, ये सब बातें खास होती थीं। 'उसने दोनों हाथ मेरी ओर बढ़ाए लेकिन मिलाया नहीं... मिलाने से पहले ही खींच लिया।' इस बात से रस्कोलनिकोव के मन में शक पैदा हुआ। दोनों एक-दूसरे को गौर से देखते थे, लेकिन नजरें मिलते ही बिजली जैसी तेजी से किसी दूसरी ओर देखने लगते थे।

'मैं यह कागज ले कर आपके पास आया था... घड़ी के बारे में। इसे देख लीजिए। ठीक हैं या फिर से लिख दूँ?'

'क्या कागज हाँ, हाँ... परेशान न हो, ठीक है,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने कहा, जैसे उसे किसी बात की बड़ी जल्दी हो। यह कह चुकने के बाद उसने कागज की ओर देखा। 'हाँ, ठीक है। और किसी चीज की जरूरत नहीं है,' उसने उतनी ही तेजी से कहा और कागज मेज पर रख दिया। मिनट-भर बाद जब वह कोई दूसरी बात कर रहा था, उसने वह कागज उठा कर अपनी मेज पर रख दिया।

'मैं समझता हूँ आपने कल यह कहा था कि आप... जिसका कत्ल हुआ है उस औरत के साथ... मेरी जान-पहचान के बारे में पूछताछ करेंगे... बाकायदा, सरकारी तौर पर!' रस्कोलनिकोव ने फिर कहना शुरू किया। 'मैंने भला 'मैं समझता हूँ' क्यों जोड़ दिया,' उसके दिमाग में पलक झपकते यह विचार उठा। 'फिर फौरन ही आखिर 'मैं समझता हूँ' कह देने पर मैं इतना परेशान क्यों हूँ' यह दूसरा विचार भी उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा।

अचानक उसे महसूस हुआ कि पोर्फिरी के साथ संपर्क होने के साथ ही, उसकी पहली बात पर ही, उसकी सूरत देखते ही उसकी बेचैनी ने बढ़ते-बढ़ते एक भयानक रूप ले लिया था... और यह कि यह बात बेहद खतरनाक थी। उसकी रगें तक काँप रही थीं, भावों का ज्वार चढ़ता जा रहा था। 'बहुत बुरी बात है, बहुत ही बुरी! ...मैं फिर शायद जरूरत से ज्यादा कुछ कह जाऊँगा।'

'हाँ, हाँ, हाँ! कोई जल्दी नहीं है, कोई नहीं,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने मेज के पास किसी साफ मकसद के बिना ही इधर-से-उधर टहलते हुए बुदबुदा कर कहा। कभी वह झपट कर खिड़की के पास चला जाता, कभी दफ्तर की मेज के पास, फिर कभी लिखने की मेज के पास। कभी वह रस्कोलनिकोव की संदेही नजरों से बचने की कोशिश करता, और कभी चुपचाप खड़ा उसकी नजरों में नजरें डाल कर देखने लगता। उसका गोलमटोल, छोटा-सा शरीर देखने में अजीब लग रहा था, मानो कोई गेंद इधर-से-उधर लुढ़के और किसी चीज से टकरा कर फिर लौट आए।

'हमारे पास वक्त बहुत है! ...बहुत सिगरेट पीते हो, है तुम्हारे पास लो, पियो...' मेहमान की ओर सिगरेट बढ़ाते हुए वह बोलता रहा। 'बात यह है कि मैं तुमसे मिल तो यहाँ रहा हूँ, लेकिन मेरा अपना घर, मतलब यह कि मेरा सरकारी घर वहाँ, उस पार है। अभी तो मैं वहाँ से बाहर ही रह रहा हूँ क्योंकि उस घर में कुछ मरम्मत का काम चल रहा है। मरम्मत लगभग पूरी हो चुकी है... सरकारी घर, तुम तो जानते ही हो, बहुत बढ़िया होते हैं। क्यों, क्या खयाल है?'

'हाँ, बढ़िया होते हैं,' रस्कोलनिकोव ने लगभग व्यंग्य से उसे देखते हुए कहा।

'बहुत... बहुत ही बढ़िया,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने फिर दोहराया, मानो अभी-अभी उसे किसी बिलकुल ही दूसरी चीज का खयाल आया हो। 'हाँ, बेहद बढ़िया,' आखिर वह लगभग चीख उठा और रस्कोलनिकोव से कोई दो कदम दूर खड़ा हो कर, उसकी आँखों में आँखें डाल कर घूरने लगा। अपने मेहमान को वह जिस गंभीर, विचारमग्न और रहस्यमयी निगाह से देख रहा था उसके साथ फूहड़ ढंग से एक ही बात को बार-बार दोहराना बेतुका लगता था।

लेकिन इस बात ने रस्कोलनिकोव का गुस्सा पहले से भी ज्यादा भड़का दिया। वह अपने आपको उसे व्यंग्य भरी और एक हद तक अविवेक से भरी चुनौती देने से न रोक सका।

'आपको पता है,' रस्कोलनिकोव ने लगभग ढिठाई से उसे देखते हुए अचानक पूछा, जैसे उसे अपनी इस ढिठाई में मजा आ रहा हो। 'मैं समझता हूँ यह एक तरह का कानूनी नियम है। छानबीन करनेवाले सभी वकीलों के लिए एक तरह का कानूनी तरीका कि वे अपना हमला दूर से शुरू करते हैं, किसी बहुत छोटी-सी बात से, कम-से-कम किसी ऐसी बात से जिसका असल मामले से कोई संबंध न हो, ताकि जिस आदमी से वे सवाल-जवाब कर रहे हों, उसे बढ़ावा मिले, या उसका ध्यान दूसरी ओर हट जाए, वह चौकस न रह पाए, और तब वे कोई टेढ़ा सवाल करके अचानक उस पर ऐसा वार करें कि वह टिक न सके। इसका पालन मैं समझता हूँ, इस धंधे के सभी कामों में पाबंदी से किया जाता है।'

'क्यों, क्या तुम्हारा खयाल यह है कि मैं सरकारी घर की चर्चा इसलिए कर रहा था... क्यों?' यह कहते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच ने आँखें तरेर कर आँख मारी। उसके चेहरे पर जरा देर के लिए खुशमिजाजी मिली, चालाकी का भाव उभरा, माथे पर पड़े बल सीधे हो गए, आँखें सिकुड़ गईं, चेहरा कुछ और चौड़ा हो गया, और अचानक वह देर तक घबराई हुई हँसी हँसता रहा। उसका सारा शरीर हिल रहा था और वह रस्कोलनिकोव की आँखों में आँखें डाल कर देख रहा था। रस्कोलनिकोव भी न चाहते हुए हँसने लगा। लेकिन जब पोर्फिरी ने उसे हँसते देख कर ऐसा ठहाका मारा कि उसका चेहरा एकदम लाल हो गया, तो उसके प्रति रस्कोलनिकोव की घृणा सावधानी की सारी हदें तोड़ कर बाहर फूट निकली। हँसना उसने बंद कर दिया, आँखें तरेरी और नफरत भरी नजरों से पोर्फिरी को घूरता रहा। फिर तो पोर्फिरी जब तक जान-बूझ कर अपनी हँसी को खींचता गया, वह भी उस पर आँखें गड़ाए रहा। लेकिन लापरवाही दोनों ओर से बरती जा रही थी। लग रहा था कि पोर्फिरी पेत्रोविच अपने मेहमान को चिढ़ाने के लिए ही हँस रहा था और उसे इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि उसके मेहमान को उसकी हँसी से कितनी नफरत हो रही थी। यह बात रस्कोलनिकोव के लिए बहुत ही अधिक महत्व रखती थी। उसने देखा कि इससे फौरन पहले पोर्फिरी कतई अटपटा महसूस नहीं कर रहा था, लेकिन शायद वह खुद, यानी कि रस्कोलनिकोव, किसी जाल में फँस गया था; कि इसमें कोई ऐसी बात होगी, कोई ऐसा उद्देश्य होगा जिसका उसे कुछ भी पता नहीं था; कि शायद हर तैयारी पहले से करके रखी गई थी और अभी एक पल में भेद अचानक उसके सामने खोल दिया जाएगा और वह अचेते ही पकड़ा जाएगा...

वह फौरन मतलब की बात पर आ गया, कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और अपनी टोपी उठा ली।

'पोर्फिरी पेत्रोविच,' उसने सधे लहजे में लेकिन कुछ चिड़चिड़े ढंग से कहना शुरू किया, 'कल आपने कहा था कि आप चाहते हैं, मैं किसी जाँच-पड़ताल के लिए आपके पास आऊँ।' (उसने जाँच-पड़ताल शब्द पर खास जोर दिया।) 'तो मैं आ गया हूँ और आपको मुझसे अगर कुछ पूछना है तो पूछिए, वरना मुझे जाने दीजिए। मेरे पास फालतू वक्त नहीं, मुझे काम है... मुझे उस आदमी के जनाजे में जाना है जो घोड़ागाड़ी से कुचल कर मर गया, जिसका आपको... इल्म भी है,' उसने कहा। लेकिन यह बात जोड़ देने के साथ ही उसे फौरन गुस्सा आया और अपने इस गुस्से के सबब पर वह और भी चिड़चिड़ा हो गया। 'मैं तंग आ चुका हूँ, इन सब बातों से, सुना आपने और बहुत अरसे से तंग हूँ। यही एक हद तक मेरी बीमारी की वजह भी है। कहने का मतलब यह,' यह महसूस करके कि यह अपनी बीमारी की चर्चा करने का कोई मौका नहीं था, वह जोर से बोला, 'कहने का मतलब यह कि या तो जो भी पूछताछ करनी हो, फौरन कीजिए या मुझे जाने दीजिए... और अगर पूछताछ करनी भी है तो बाकायदा, सही तरीके से कीजिए! मैं किसी दूसरे तरीके से ऐसा करने की इजाजत नहीं दूँगा... अभी इस वक्त तो मैं चलता हूँ क्योंकि जाहिर है हमारे पास अब कोई ऐसा काम नहीं जिसके लिए मैं यहाँ रुकूँ।'

'कमाल है! तुम आखिर किस चीज के बारे में बातें कर रहे हो? चाहते क्या हो, मैं तुमसे किस चीज के बारे में पूछताछ करूँ?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने फौरन हँसना बंद कर दिया और अपना लहजा बदलते हुए चहक कर बोला। 'बे-वजह परेशान न हो,' वह बेचैनी से कभी इधर जाता, कभी उधर और आग्रह के साथ रस्कोलनिकोव से बार-बार बैठ जाने को कहता। 'कोई जल्दी नहीं है, कोई भी नहीं, यह सब बकवास है। अरे, मैं तो खुश हूँ कि आखिर तुम मुझसे मिलने तो आए... मैं तो तुम्हें अपना मेहमान मानता हूँ। रहा सवाल मेरी इस कमबख्त हँसी का, तो उसके लिए मुझे माफ करना रोदिओन रोमानोविच। रोदिओन रोमानोविच यही नाम है न तुम्हारा ...मेरा स्वभाव ही ऐसा बन चुका है और तुमने तो एक दिलचस्प बात कह कर मुझे जैसे गुदगुदा दिया। तुम्हें मैं यकीन दिलाता हूँ कि कभी-कभी तो मैं आधे-आधे घंटे तक रबर की गेंद की तरह उछल-उछल कर हँसता रहता हूँ... हाँ, मेरी तबीयत में हँसी-मजाक बहुत है। मेरे जैसे डीलडौलवाले आदमी के लिए यह बात जरा खतरनाक होती है। अकसर मुझे डर लगने लगता है कि मुझे कहीं लकवा न मार जाए। बैठो, अब बैठ भी जाओ, नहीं तो मैं समझूँगा कि नाराज हो...'

रस्कोलनिकोव कुछ नहीं बोला, बस उसे सुनता और देखता रहा। पहले की ही तरह उसके माथे पर गुस्से से बल पड़े रहे। वह बैठा तो भी अपनी टोपी हाथ में ही लिए रहा।

'रोदिओन रोमानोविच, तुम्हें मैं अपने बारे में एक बात बता दूँ,' पोर्फिरी पेत्रोविच कमरे में इधर-उधर तेजी से टहलता हुआ और मेहमान से नजरें मिलाने से बचता हुआ अपनी बात कहता रहा। 'देखो, बात यह है कि मैं ठहरा एक कुँवारा; न मैं दुनियादार न लोगों के बीच मेरा कोई असर-रसूख या नाम। इसके अलावा, अब मुझे जिंदगी से कुछ मिलना भी नहीं है। मैं एक लीक पकड़े चल रहा हूँ, पुराना पड़ता जा रहा हूँ और... और एक बात देखी है तुमने, रोदिओन रोमानोविच, कि हमारे यहाँ, यानी रूस में, खास कर इस पीतर्सबर्ग के समाज में, अगर दो ऐसे समझदार कहीं मिल जाएँ, जो एक-दूसरे को अच्छी तरह न जानते हों लेकिन एक-दूसरे की एक तरह से इज्जत करते हों, जैसे तुम और मैं हैं, तो उन्हें बातचीत का कोई विषय ढूँढ़ने में ही आधा घंटा लग जाता है। वे गूँगे बन जाते हैं; एक-दूसरे के सामने बैठे अटपटा-सा महसूस करते रहते हैं। हरेक के पास बातचीत के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है, मिसाल के लिए बड़े घरों की औरतों के पास... समाज के ऊँचे वर्गों के पास हमेशा बातचीत के अपने विषय होते हैं, बँधे, बँधाए, लेकिन हम जैसे मामूली लोग, मेरा मतलब है सोचने वाले लोग... उनकी जबान हमेशा ही बंद रहती है और वे अटपटा-सा महसूस करते हैं। वजह क्या है इसकी मुझे नहीं मालूम, ऐसा क्यों होता है : इसलिए कि हम लोगों में कोई समाजी दिलचस्पी नहीं होती, या इसलिए कि हम इतने ईमानदार होते हैं कि एक-दूसरे को धोखा देना नहीं चाहते। तुम्हारा खयाल क्या है टोपी रख दो, नहीं तो ऐसा लगता रहेगा कि तुम जानेवाले हो। इससे मुझे उलझन होती है... जबकि अभी मुझे वाकई खुशी है...'

रस्कोलनिकोव ने अपनी टोपी रख दी और गंभीर मुद्रा बनाए, त्योरियों पर बल डाले, चुपचाप बैठा पोर्फिरी पेत्रोविच की गोल-मोल और खोखली बकवास सुनता रहा। 'यह क्या सचमुच अपनी बेवकूफी की बातों से मेरा ध्यान बँटाना चाहता है?'

'मैं यहाँ तुम्हें कॉफी नहीं पिला सकता। इस काम के लिए यह जगह है भी नहीं। लेकिन एक दोस्त के साथ पाँच मिनट क्यों नहीं बिताए जा सकते?' पोर्फिरी बड़बड़ाता रहा, 'और सरकारी काम का हाल तुम तो जानते ही हो। ...मेरे इस तरह इधर-उधर टहलने का बुरा न मानना; इसके लिए मैं माफी चाहता हूँ। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरी किसी बात का बुरा न मान जाओ, लेकिन यह कसरत मेरे लिए बेहद जरूरी है। मुझे हर वक्त बैठे रहना पड़ता है और पाँच मिनट भी चलने-फिरने को मिल जाएँ तो मुझे बेहद खुशी होती है... हरदम बैठे ही रहना जी का जंजाल हो गया है... बवासीर है न... मैं हमेशा यही सोचता रहता हूँ कि इलाज के लिए कसरत करना शुरू कर दूँ, सुना है कि बड़े-बड़े अफसर, प्रिवी कौंसिलर तक बीच-बीच में खुश हो कर रस्सी कूदते रहते हैं; यही तो है आधुनिक विज्ञान! ...हाँ, हाँ... लेकिन जहाँ तक यहाँ मेरे काम का सवाल है, यह सारी जाँच-पड़ताल और इसी तरह की सारी रस्मी कार्रवाई... जाँच-पड़ताल की बात तो अभी तुम ही कर रहे थे... तो मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि कभी-कभी इस जाँच-पड़ताल में जिससे पूछताछ की जाती है, उसको उतनी परीशानी नहीं होती जितनी कि पूछताछ करनेवाले को होती है... अभी तुमने खुद यह बात बहुत अच्छे और दिलचस्प ढंग से कही थी।' (रस्कोलनिकोव ने इस तरह की कोई बात नहीं कही थी।) 'आदमी है कि उलझ कर रहा जाता है! एकदम उलझ कर वह एक ही सुर में अलापता रहता है, ढोलक की तरह! सुना है कोई सुधार होनेवाला है और हम लोगों के ओहदों के नाम बदल दिए जाएँगे। चलो, कम-से-कम इतना तो होगा, हिःहिःहिः! जहाँ तक हमारे कानूनी तरीकों का सवाल है, जैसा कि तुमने दिलचस्प तरीके से उसे बयान किया, मैं तुमसे सौ पैसे सहमत हूँ। गँवार से गँवार कोई किसान ही क्यों न हो, जिस कैदी पर भी मुकद्दमा चलाया जाता है वह जानता है कि ये लोग शुरू में उससे बे-मतलब सवाल करके उसे गाफिल करते हैं। (जैसा कि तुमने बहुत अच्छे ढंग से बयान किया) और फिर अचानक उस पर करारी चोट करते हैं कि बंदा ढेर हो जाता है... हिः-हिः-हिः! तुम्हारी ही दी हुई मुनासिब मिसाल है... हिः-हिः-हिः! तो तुम्हारा सचमुच यह खयाल था कि 'सरकारी घर' से मेरा मतलब... हिः-हिः-हिः! तुम भी खूब डंक मारनेवाले आदमी हो। अच्छा, तो लो यह बात मैं नहीं करता! अरे हाँ, याद आया! बात में से बात निकलती है। तुमने अभी बाकायदा कार्रवाई की बात कही थी, जाँच-पड़ताल के सिलसिले में... याद है लेकिन बाकायदा कार्रवाई से फायदा क्या? कई मुआमलों में तो यह सरासर बकवास होती है। कभी-कभी तो दोस्ताना बातचीत करके ही उससे कहीं ज्यादा बातें मालूम की जा सकती हैं। बाकायदा कार्रवाई का सहारा तो कभी भी लिया जा सकता है, इसका मैं तुम्हें यकीन दिला दूँ। बहरहाल उससे नतीजा क्या निकलता है? छानबीन करनेवाला मजिस्ट्रेट हर कदम पर बाकायदा कार्रवाई की हदों में जकड़ कर तो नहीं रह सकता। छानबीन का काम, यूँ कहो कि अपने ढंग की एक अलग ही कला है... हिः-हिः-हिः...'

पोर्फिरी पेत्रोविच ने एक मिनट रुक कर दम लिया। वह थके बिना धाराप्रवाह बोलता रहा। कभी-कभी अपनी खोखली निरर्थक बातों के बीच कोई पहेली जैसे शब्द बोल देता था, और फिर वही बेसर-पैर की बकवास करने लगता था। वह जमीन की ओर देखता हुआ कमरे में इधर-से-उधर, लगभग दौड़ रहा था और उसकी छोटी-छोटी पर मोटी टाँगों की रफ्तार लगातार तेज होती जा रही थी। उसने दायाँ हाथ पीठ के पीछे कर रखा था और बाएँ हाथ को हिला-हिला कर ऐसे भाव व्यक्त करने की कोशिश कर रहा था... जो उसके शब्दों से कतई मेल नहीं खाते थे। रस्कोलनिकोव का ध्यान अचानक इस बात की ओर गया कि कमरे में इधर-से-उधर भागते वक्त दो बार यूँ लगा कि वह दरवाजे के पास एक पल के लिए ठिठका, मानो कुछ सुनने की कोशिश कर रहा हो...' उसे क्या किसी बात का इंतजार है?'

'तुम्हारा कहना एकदम ठीक है,' पोर्फिरी ने चौकस रस्कोलनिकोव की ओर बेहद मासूमियत से देखते हुए, खुश हो कर कहना शुरू किया (इस बात से रस्कोलनिकोव चौंका और फौरन चौकस हो गया) : 'हमारे कानूनी तौर-तरीकों पर तुम्हारा इस तरह मजे ले-ले कर हँसना एकदम ठीक है... हिः-हिः-हिः! हमारे ये पेचीदा मनोवैज्ञानिक तरीके तो इतने बेसिर-पैर के हैं कि उन पर हँसी आती है, उनमें कम-से-कम कुछ तो जरूर ऐसे हैं। अगर कोई कानूनी कार्रवाई की बहुत सख्ती से पाबंदी करे तो वे बेकार भी साबित होते हैं। हाँ... मैं फिर कानूनी कार्रवाई की ही बात करने लगा। खैर, जो भी छोटा-मोटा मामला मेरे हवाले किया जाता है उसमें अगर मैं किसी आदमी को पहचान लूँ, यूँ कहो कि अगर किसी पर मुझे शक हो जाए कि वह अपराधी है तो... तुम कानून ही पढ़ रहे हो न, रोदिओन रोमानोविच?'

'पढ़ रहा था...'

'खूब, तो यह एक ऐसी मिसाल है जो आगे चल कर तुम्हारे काम आएगी - हालाँकि अपराध के बारे में तुम्हारे जैसे बढ़िया लेख उसके बाद भी छपे हैं... यह न समझना कि मैं तुम्हें कुछ सिखाने की जुरअत कर रहा हूँ, मैं तो बस एक मिसाल दे रहा हूँ... तो यूँ समझ लो कि मैं अगर किसी को अपराधी समझ भी लूँ तो मैं पूछता हूँ, इसकी क्या जरूरत है कि उसके खिलाफ सबूत होते हुए भी मैं उसे वक्त से पहले परेशान करूँ? किसी मामले में हो सकता है कि मेरे लिए किसी को फौरन गिरफ्तार कर लेना जरूरी हो, लेकिन दूसरे मामले में हालत एकदम दूसरी भी हो सकती है... तुम तो जानते ही हो... तो मैं उसे शहर में थोड़ा घूम-फिर लेने का मौका क्यों न दूँ? हिः-हिः-हिः! लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बात तुम्हारी समझ में कुछ आ नहीं रही... लो, मैं तुम्हें इससे भी ज्यादा साफ मिसाल देता हूँ। अगर मैं उसे जरूरत से पहले ही जेल में डाल दूँ, तो एक तरह से यह भी हो सकता है कि उसे मेरी वजह से नैतिक सहारा मिल जाए... हिः-हिः! तो तुम हँस रहे हो?'

(रस्कोलनिकोव हँसने की बात सोच भी नहीं रहा था। वह अपने होठ भींचे और अपनी बुखार से चूर आँखें पोर्फिरी पेत्रोविच पर गड़ाए हुए बैठा था।) 'फिर भी होता यही है, खासतौर पर कुछ लोगों के मामले में। आदमी तो हर तरह के होते हैं लेकिन उन सबसे निबटने का एक ही सरकारी तरीका होता है। तुम सबूत की बातें करते हो। तो, सबूत तो हो सकता है। लेकिन, तुम जानो, सबूत तो आमतौर पर दोधारी तलवार जैसा हो सकता है। मैं जाँच-पड़ताल का मजिस्ट्रेट तो जरूर हूँ, लेकिन इनसान भी तो हूँ। मैं ऐसा सबूत जुटाना चाहूँगा जो समझ लो कि हिसाब की तरह साफ हो। मैं ऐसे सुबूतों का एक पूरा सिलसिला तैयार करना चाहूँगा जैसे दो और दो चार होते हैं। सबूत सीधा और ऐसा होना चाहिए कि उसकी काट न हो सके! तो अगर मैं जरूरत से ज्यादा पहले ही उसे बंद कर दूँ, चाहे मुझे उसके अपराधी होने का पूरा-पूरा विश्वास ही क्यों न हो - तो बहुत मुमकिन है कि मैं उसके खिलाफ और ज्यादा सबूत जुटाने का रास्ता ही अपने पर बंद कर लूँ। पूछो क्यों? मैं उसे एक तरह से एक निश्चित मनोवैज्ञानिक स्थिति में पहुँचा कर उसकी सारी दुविधा दूर कर दूँगा, उसे निश्चित कर दूँगा, और इस तरह वह वापस अपने खोल में चला जाएगा। लोग कहते हैं कि सेवास्तोपोल में, आल्मा की जंग के फौरन बाद, वहाँ के होशियारों के दिल में यह डर समा गया था कि दुश्मन खुला हमला करेगा और सेवास्तोपोल पर कब्जा कर लेगा। लेकिन जब उन्होंने देखा कि दुश्मन बाकायदा घेराबंदी के पक्ष में है, तो उन्हें बहुत खुशी हुई : वे इसलिए खुश थे कि घेराबंदी कम-से-कम दो महीने खिंचेगी। तुम फिर हँस रहे हो... तो तुम्हें अभी भी मेरी बात पर यकीन नहीं आया तुम्हारा कहना भी ठीक ही है। ठीक कहते हो, तुम बिलकुल ठीक कहते हो। ये सब खास मिसालें हैं, मैं मानता हूँ, खास कर यह आखिरी मिसाल। लेकिन तुम्हें यह बात समझनी चाहिए, रोदिओन रोमानोविच मेरे दोस्त, कि वह मिसाल जिसके लिए सारे कानूनी तौर-तरीके और कायदे बनाए जाते हैं, जिसे सामने रख कर सारा हिसाब लगाया गया और किताबों में दर्ज किया गया, वह औसत मिसाल कहीं होती भी नहीं। इसलिए कि मिसाल के लिए हर अपराध, जैसे ही वह होता है, फौरन एक खास मामला बन जाता है और कभी-कभी तो वह ऐसा मामला बन जाता है जैसा उससे पहले कभी सामने आया ही नहीं। कभी-कभी इस तरह के बहुत ही हास्यास्पद मामले भी होते हैं। अगर मैं किसी भले आदमी को उसके हाल पर छोड़ दूँ, अगर उसे एकदम न छेड़ूँ, उसे परेशान न करूँ, लेकिन उसे यह जता दूँ या कम-से-कम उसके दिल में यह शक पैदा कर दूँ कि मुझे उस मामले के बारे में सब कुछ पता है और मैं दिन-रात उस पर नजर रखे हुए हूँ, अगर वह हरदम इसी शक और डर का शिकार बना रहे, तो यकीनन वह अपने होश-हवास खो बैठेगा। वह आप चल कर मेरे पास आएगा या फिर कोई ऐसी हरकत कर बैठेगा जिससे सारी बात दो और दो चार की तरह साफ हो जाएगी... बड़ा मजा आता है इसमें। जाहिल किसान के मामले में भी ऐसा ही होता है, लेकिन हम लोग जैसे पढ़े-लिखे और समझदार आदमी के मामले में तो, जिसमें इसके अलावा कुछ... वह क्या नाम है... कुछ खास रुझान भी हों, ऐसा होना यकीनी हैं इसलिए, मेरे दोस्त कि यह जानना बहुत जरूरी होता है कि किसी आदमी के दिमाग में किस तरह के रुझान सबसे ज्यादा हावी हैं। और फिर धीरज का भी सवाल होता है... कि किसमें कितना धीरज है इस बात की ओर तुमने तो ध्यान भी नहीं दिया! इसलिए कि आजकल सभी लोग कितने बीमार, बेचैन और चिड़चिड़े दिखाई देते हैं! ...जरा सोचो, वे सब लोग दुनिया से कितने तंग रहते हैं। उनमें से हर एक के दिल में कितना जहर भरा है। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ, ये सारी बातें हमारे लिए सोने की खान जैसी होती हैं। और शहर भर में उसके खुले फिरते रहने से मुझे क्या परीशानी? घूमने दो! जितना जी चाहे घूम-फिर लेने दो! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैंने उसे पकड़ लिया है, वह मेरे पंजे से निकल नहीं सकता। भाग कर जाएगा कहाँ... हिः-हिः-हिः ...विदेश? एक पोल तो विदेश भाग जाएगा, लेकिन मेरा आदमी नहीं, खास कर इसलिए कि उस पर मेरी नजर है, मैंने सारी रोकथाम कर रखी है। शायद वह कहीं दूर देहात में निकल जाए लेकिन उसे वहाँ किसानों... असली रूसी किसानों के अलावा कोई नहीं मिलेगा। आजकल का पढ़ा-लिखा रूसी हमारे किसानों जैसे अजनबियों के बीच रहने की बजाय जेल में रहना ज्यादा पसंद करेगा। हिः-हिः-हिः! लेकिन यह सब है बकवास और वह भी छिछोरी बकवास। 'वह भाग जाएगा' - मतलब क्या है इसका? महज अटकल। बात यह तो है ही नहीं। देखो, वह मुझसे इसलिए नहीं भाग सकता कि उसके पास जाने के लिए कोई जगह है ही नहीं। फिर उसकी दिमागी हालत भी ऐसी होती है कि वह मुझसे भाग कर जा ही नहीं सकता। हिः-हिः! क्या लाजवाब बात है! इनसानी स्वभाव से वह ऐसा बँधा रहता है कि उसके पास भाग कर जाने की कोई जगह हो, तब भी वह मुझसे भाग कर नहीं जा सकता। कभी तुमने शमा पर परवाने को मँडराते देखा है उसी तरह वह भी मेरे चारों ओर, शमा के चारों ओर, मँडराता रहेगा। उसमें आजादी की कोई चाह नहीं रह जाएगी। वह अपने ही विचारों में घुटता रहेगा, अपने ही चारों ओर एक जाल बुन लेगा, चिंता करते-करते मर जाएगा! इतना ही नहीं, वह मेरे लिए गणित के सवाल जैसा साफ सबूत जुटा देगा - अगर मैं उसे काफी लंबा वक्त दूँ... तो वह मेरे चारों ओर मँडराता रहेगा, मँडराता रहेगा, धीरे-धीरे मेरे पास आता जाएगा और फिर... लप! सीधे मेरे मुँह में आ जाएगा, मैं उसे निगल जाऊँगा, और इसमें बड़ा मजा आएगा... हिः-हिः-हिः! तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं आता?'

रस्कोलनिकोव ने कोई जवाब नहीं दिया। उसका रंग पीला पड़ रहा था और वह पत्थर की मूरत की तरह बैठा नजरें गड़ा कर पोर्फिरी के चेहरे को घूरता रहा।

'पाठ अच्छा पढ़ा लेता है!' उसने सोचा और उसका सारा शरीर ठंडा पड़ने लगा। 'यह कल जैसी बात भी नहीं है कि बिल्ली के पंजे में चूहा आ गया और वह उससे खेल रही है। यह किसी खास मतलब के बिना, सिर्फ मुझे अपनी ताकत तो नहीं दिखा रहा... मुझे कोई खास दिशा में जाने का उकसावा देने के लिए वह इससे कहीं ज्यादा चालाक है... जरूर कोई दूसरी चाल होगी। क्या यह सब बकवास है, मेरे दोस्त, तुम दिखावा कर रहे हो मुझे डराने के लिए! तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है और जो शख्स कल मेरे पास आया था वह असल में कहीं है ही नहीं। तुम बस यह चाहते हो कि मैं अपना संतुलन खो बैठूँ; पहले से मुझे भड़काना और इस तरह मुझे कुचल देना चाहते हो। लेकिन यह तुम्हारी भूल है। तुम ऐसा नहीं कर पाओगे... ऐसा कर नहीं सकोगे! लेकिन मुझे इस तरह अपनी सारी चाल पहले से बताने की तकलीफ क्यों उठा रहा है भला किस चीज का भरोसा किए बैठा है मेरे उलझे हुए दिमाग का? नहीं दोस्त, यह भूल है तुम्हारी, तुम ऐसा कभी नहीं कर सकोगे, भले ही तुम्हारे पास कोई जाल हो... देखना है, मेरे खिलाफ तुम्हारे पास क्या-क्या हथकंडे हैं।'

अब वह एक भयानक और अज्ञात आफत के लिए तैयार था। कभी-कभी उसका जी चाहता था कि वह पोर्फिरी पर टूट पड़े, उसका गला घोंट दे। उसे इसी गुस्से से शुरू से ही डर लग रहा था। उसको महसूस हुआ कि उसके सूखे होठों पर झाग आ रहा है। दिल धड़क रहा था। लेकिन अभी भी वह अपने इसी इरादे पर कायम था कि सही वक्त से पहले नहीं बोलेगा। उसने अच्छी तरह समझ लिया था कि वह जिस हालत में था उसके लिए सबसे अच्छा रवैया यही था। जरूरत से ज्यादा कही गई बातों की बजाय उसकी खामोशी से दुश्मन ज्यादा चिड़चिड़ाएगा और उसे जरूरत से ज्यादा खुल कर बातें करने का उकसावा मिलेगा। उसे कम-से-कम यही उम्मीद थी।

'नहीं, मैं देख रहा हूँ कि तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं आ रहा। तुम समझते हो मैं तुम्हारे साथ यूँ ही कोई बेमतलब मजाक कर रहा हूँ,' पोर्फिरी ने फिर कहना शुरू किया। हर पल उसका जोश बढ़ता जा रहा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह चहक उठता था। वह एक बार फिर कमरे में इधर-से-उधर टहलने लगा था। 'और तुम्हारा ऐसा समझना यकीनन ठीक है। भगवान ने मुझे डीलडौल ही ऐसा दिया है कि इसे देख कर अगला शख्स हँसने के सिवा और कर ही क्या सकता है। मैं बिलकुल मसखरा लगता हूँ। लेकिन इतना मैं तुम्हें बता दूँ, और इस बात को मैं दोहराना चाहता हूँ। मुझे बूढ़ा समझ कर माफ कर देना, रोदिओन रोमानोविच, तुम अभी जवान हो, तुम्हारी जवानी अभी एक तरह से शुरू ही हुई है और इसलिए तुम सभी नौजवानों की तरह अकल को सबसे बड़ी चीज समझते हो। मजाकिया हाजिर-जवाबी और हवाई दलीलें तुम्हें अच्छी लगती हैं। जहाँ तक मैं फौजी मुआमलों को समझ सका हूँ, यह आस्ट्रिया की पुरानी शाही फौजी कौंसिल जैसी बात है। मतलब यह कि कागज पर उन्होंने नेपोलियन को हरा दिया था, उसे कैदी भी बना लिया था, और अपने अध्ययनकक्षों में उन्होंने बड़ी होशियारी से सारा हिसाब-किताब ठीक भी कर लिया था, लेकिन क्या देखा हमने कि जनरल मैक ने अपनी पूरी फौज सहित हथियार डाल दिए थे... हिः-हिः-हिः! मैं देख रहा हूँ, देख रहा हूँ रोदिओन रोमानोविच, कि तुम इसी बात पर हँस रहे हो कि मुझ जैसा गैर-फौजी आदमी फौजी इतिहास से मिसालें निकाल कर दे रहा है। लेकिन मैं मजबूर हूँ, यह मेरी कमजोरी है। मुझे युद्ध-कला के बारे में पढ़ने का शौक है। ...और सारा फौजी इतिहास पढ़ने का तो उससे भी ज्यादा शौक है। मैं जिंदगी के लिए सही रास्ता चुनने में चूक गया। मुझे फौज में होना चाहिए था... कसम से कहता हूँ, मुझे वहीं होना चाहिए था। नेपोलियन तो मैं नहीं बन पाता, लेकिन मेजर तो बन ही जाता... हिः-हिः-हिः! खैर, तो मैं सारी बात तुम्हें सच-सच बताए देता हूँ दोस्त, मेरा मतलब है इस खास मिसाल के बारे में : सच्चाई और आदमी का स्वभाव ऐसी चीजें हैं कि भारी महत्व रखती हैं, और हैरत होती है कि कभी-कभी इनकी वजह से सही से सही हिसाब भी किस तरह गलत हो जाता है! एक बूढ़े आदमी की बात सुनो - मैं बहुत संजीदगी से कह रहा हूँ रोदिओन रोमानोविच,' (यह बात कहते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच, जो मुश्किल से पैंतीस साल का होगा, सचमुच बूढ़ा लगने लगा; उसकी आवाज तक बदल गई और लगा कि वह कुछ सिकुड़ भी गया है), 'इसके अलावा, मैं खरी बात कहनेवाला आदमी हूँ... खरी-खरी कहनेवाला हूँ कि नहीं तुम्हारा क्या खयाल है? मैं समझता हूँ कि मैं सचमुच हूँ : ये सारी बातें मैं तुम्हें तुमसे कुछ लिए बिना ही बताए दे रहा हूँ और मुझे यह उम्मीद भी नहीं कि मुझे कोई इनाम मिलेगा... हिः-हिः-हिः! हाँ, तो मैं कह रहा था कि मेरी राय में हाजिर-जवाबी बहुत अच्छी चीज है, एक तरह से प्रकृति का वरदान है और जिंदगी के लिए बहुत बड़ी तसल्ली की चीज है। क्या-क्या गुल खिला सकती है यह! यहाँ तक कि कभी-कभी तो बेचारे जाँच-पड़ताल करनेवाले मजिस्ट्रेट के लिए भी यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर वह है कहाँ, खास कर तब, जब इस बात का खतरा हो कि वह भी कहीं अपने मन में सोची हुई बातों की धार में न बह जाए, क्योंकि वह भी तो बहरहाल इनसान ही होता है! लेकिन आम तौर पर अपराधी का स्वभाव उसे बचा लेता है - यही तो मुसीबत है! लेकिन अपनी हाजिर-जवाबी के धारे में बह जानेवाले नौजवान 'सारी अड़चनों को पार करके आगे निकल जाते वक्त,' जैसा कि तुमने इसी बात को कल बड़े दिलचस्प ढंग से और बड़ी होशियारी से बयान किया था, इसके बारे में नहीं सोचते। वह झूठ बोलेगा - मेरा मतलब उस आदमी से है जो खास मिसाल होता है, जो भेस बदले रहता है - और वह हद दर्जे की चालाकी से अच्छी तरह झूठ बोलेगा; आप समझेंगे कि उसकी जीत हो जाएगी और वह अपनी हाजिर-जवाबी के फल चखेगा, लेकिन तभी सबसे दिलचस्प, सबसे बेतुके मौके पर उसे गश आ जाएगा। जाहिर है कि इसकी वजह बीमारी भी हो सकती है, कमरे में घुटन भी हो सकती है, लेकिन फिर भी! बहरहाल, इससे हमें कुछ सुराग तो मिल ही जाता है! उसने झूठ तो लाजवाब बोला, लेकिन अपने स्वभाव को भूल गया और इसी से उसका भाँडा फूट गया! फिर कभी ऐसा भी होता है कि अपनी मजाकिया हाजिर-जवाबी के धारे में बह कर वह उसी आदमी का मजाक उड़ाने लगता है जो उस पर शक करता है, उसका रंग पीला पड़ जाता है, गोया वह जान-बूझ कर, गुमराह करने के लिए ऐसा कर रहा हो, लेकिन उसके चेहरे का पीलापन बहुत ही स्वाभाविक होता है, बिलकुल असली जैसा, और इससे भी हमें सुराग मिल जाता है! हो सकता है कि उससे सवाल करनेवाला शुरू-शुरू में धोखा खा जाए, लेकिन अगर वह बेवकूफ नहीं है तो रात को उसके बारे में सोचेगा और असलियत का पता लगा लेगा... हर कदम पर यही तो होता रहता है! वह लगातार बोलता रहता है जबकि उसे चुप रहना चाहिए... वह दुनिया-भर की मिसालें ढूँढ़ कर देता है... हिः-हिः-हिः! आ कर पूछता है कि आपने हमें बहुत पहले ही क्यों नहीं पकड़ लिया... हिः-हिः-हिः! और यह जान लो कि चालाक से चालाक आदमी के साथ, सारा मनोविज्ञान जाननेवाले के साथ, साहित्यिक प्रवृत्तिवाले आदमी के साथ भी ऐसा हो सकता है। स्वभाव के आईने में हर चीज एकदम साफ नजर आती है! आईने को ध्यान से देखो और जो कुछ दिखे उसे सराहो! लेकिन तुम्हारा रंग इतना पीला क्यों पड़ रहा है, रोदिओन रोमानोविच कमरे में घुटन है क्या? खिड़की खोलूँ?'

'नहीं, आप तकलीफ न कीजिए,' रस्कोलनिकोव ने ऊँचे स्वर में कहा और अचानक हँस पड़ा। 'आप कतई तकलीफ न कीजिए!'

पोर्फिरी उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, एक पल रुका और फिर वह भी यकायक हँस पड़ा। रस्कोलनिकोव अचानक अपनी दीवानों जैसी हँसी रोक कर सोफे से उठ खड़ा हुआ।

'पोर्फिरी पेत्रोविच,' उसने ऊँचे लहजे में साफ-साफ कहना शुरू किया, हालाँकि उसकी टाँगें काँप रही थीं और वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। 'आखिर अब मेरी समझ में साफ-साफ आ गया है कि आपको मुझ पर उस बुढ़िया और उसकी बहन लिजावेता को कत्ल करने का शक है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं आपको बता दूँ कि मैं इन सब बातों से तंग आ चुका हूँ। अगर आप समझते हैं कि आपको मुझ पर कत्ल का इल्जाम लगाने या मुकद्दमा चलाने का अधिकार है तो वही कीजिए। लेकिन मैं किसी को इसकी इजाजत नहीं दूँगा कि मेरे मुँह पर मेरा मजाक उड़ाया जाए और मुझे सताया जाए।'

एकाएक उसके होठ काँपने लगे, आँखें गुस्से से सुलग उठीं, और वह अपनी आवाज भी काबू में नहीं रख पा रहा था।

'ऐसा मैं होने नहीं दूँगा!' मेज पर जोर से मुक्का मारते हुए वह चिल्लाया। 'सुना आपने, पोर्फिरी पेत्रोविच! इसकी इजाजत मैं नहीं दूँगा!'

'हे भगवान! इसका मतलब क्या है' पोर्फिरी पेत्रोविच भी जोर से बोला। सूरत से लग रहा था कि वह काफी डर चुका था। 'यार रोदिओन रोमानोविच तुम्हें हो क्या गया है?'

'मैं ऐसा होने नहीं दूँगा!' रस्कोलनिकोव फिर चीखा।

'धीमे बोलो, दोस्त! लोग सुनेंगे तो अंदर आ जाएँगे। जरा सोचो फिर हम उनसे क्या कहेंगे...' पोर्फिरी पेत्रोविच अपना मुँह रस्कोलनिकोव के मुँह के पास ला कर घबराते हुए धीमे से बोला।

'मैं ऐसा होने नहीं दूँगा, नहीं होने दूँगा!' रस्कोलनिकोव मशीनी ढंग से दोहराता रहा। लेकिन वह भी अचानक अब धीमे लहजे में बोलने लगा था।

पोर्फिरी तेजी से घूम कर खिड़की खोलने के लिए लपका।

'कुछ ताजा हवा आने दो! और तुम मेरे यार, थोड़ा-सा पानी पी लो। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है!' वह पानी मँगाने के लिए दरवाजे की ओर लपका ही था कि कोने में उसे एक जग में पानी रखा नजर आया।

'लो, थोड़ा-सा पियो,' जग ले कर तेजी से उसकी ओर आते हुए वह धीमे स्वर में बोला। 'इससे तबीयत सँभल जाएगी...' पोर्फिरी की बौखलाहट और हमदर्दी इतनी स्वाभाविक थी कि रस्कोलनिकोव चुप हो गया और उसे भारी उत्सुकता से देखता रहा। पर उसने पानी नहीं पिया।

'रोदिओन रोमानोविच, मेरे यार! मैं तुमसे सच कहता हूँ कि इस तरह तो तुम अपने आपको खब्ती बना लोगे। छिः! पी भी लो, थोड़ा-सा पानी पी लो!'

उसने गिलास जबरदस्ती उसे पकड़ा दिया। रस्कोलनिकोव मशीन की तरह उसे होठों तक ले गया, लेकिन फिर बेजारी से उसे मेज पर वापस रख दिया।

'हाँ, तुम्हें जरा-सा दौरा तो पड़ा था! तुम इस तरह तो अपनी बीमारी फिर वापस बुला लोगे, तो दोस्त,' पोर्फिरी पेत्रोविच दोस्ताना हमदर्दी से चहक कर, हालाँकि वह अभी भी कुछ घबराया हुआ लग रहा था। 'भगवान के लिए, अपनी सेहत की ओर से इतनी लापरवाही तो मत करो! द्मित्री प्रोकोफिच यहाँ आया था, मुझसे मिलने। मैं जानता हूँ, जानता हूँ मैं कि मेरा मिजाज बहुत बुरा और तानेबाज है, लेकिन लोग उसका जाने क्या-क्या मतलब निकाल लेते हैं... हे भगवान, वह कल तुम्हारे जाने के बाद आया था। हम लोगों के साथ खाना खाया और वह बातें करता रहा। बोलता रहा, बोलता रहा, यहाँ तक कि आखिर में निराश हो कर दुआ माँगने लगा! मैंने सोचा - हे भगवान! ...वह तुम्हारे पास से आया था क्या? लेकिन तुम बैठो तो, मेरे हाल पर रहम खा कर बैठ जाओ!'

'नहीं, वह मेरे पास से नहीं आया था, लेकिन मुझे पता था कि वह आपके पास गया था और किसलिए गया था,' रस्कोलनिकोव ने तीखेपन से जवाब दिया।

'तुम्हें पता था?'

'हाँ, पता था। तो उससे क्या हुआ?'

'तो बात यह है रोदिओन रोमानोविच, मेरे दोस्त, कि मुझे तुम्हारे बारे में उससे ज्यादा मालूम है; मुझे हर बात पता है। मुझे यह भी मालूम है कि तुम रात के वक्त अँधेरे में फ्लैट किराए पर लेने गए थे। तुमने घंटी बजाई, खून के बारे में पूछा, और मजदूरों और दरबानों को चक्कर में डाल दिया। हाँ, तुम्हारे दिमाग की तब जो हालत थी उसे मैं समझता हूँ... लेकिन मैं सच कहता हूँ, इस तरह तो तुम पागल हो जाओगे! दिमाग ठिकाने नहीं रहेगा! तुम्हारे साथ पहले तो तुम्हारे मुकद्दर की तरफ से और फिर पुलिस अफसरों की तरफ से जो ज्यादतियाँ हुई हैं, उन पर तुम्हारे दिल में बेहद गुस्सा भरा हुआ है। सो तुम एक से दूसरी चीज की ओर भागते रहते हो कि उन्हें खुल कर बोलने पर मजबूर करो और इस पूरे किस्से का खात्मा कर दो क्योंकि तुम इन सारे शक-शुबहों और बेवकूफी की बातों से उकता चुके हो। है न यही बात देखो, मैंने सही-सही अंदाजा लगा लिया है कि तुम क्या महसूस करते हो, कि नहीं ...हाँ, इतनी बात जरूर है कि इस तरह तुम अपना भी दिमाग खराब करोगे और रजुमीखिन का भी। वह इतना नेक बंदा है कि उसे ऐसी हालत में नहीं पहुँचना चाहिए; यह बात तो तुम्हें मालूम होनी ही चाहिए। तुम बीमार और वह नेक, और तुम्हारी बीमारी की छूत उसे भी लग सकती है... जब तुम्हारे हवास जरा और दुरुस्त होंगे तब मैं तुम्हें इस बारे में बताऊँगा... लेकिन, भगवान के लिए बैठो तो सही। थोड़ा आराम करो... पर... तुम्हारी सूरत डरावनी लगती है। बैठ भी जाओ।'

रस्कोलनिकोव बैठ गया। अब वह काँप नहीं रहा था पर उसका सारा शरीर तप रहा था। वह आश्चर्य से और ध्यान दे कर पोर्फिरी पेत्रोविच की बातें सुनता रहा, जो दोस्ताना ढंग से उस पर ध्यान देते हुए भी कुछ डरा हुआ लग रहा था लेकिन रस्कोलनिकोव को उसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं था, हालाँकि अजीब बात यह थी कि उसका दिल विश्वास करने को हो रहा था। पोर्फिरी ने फ्लैट के बारे में जो कुछ कहा था, उससे वह बेबस हो गया था, क्योंकि उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके मुँह से यह बात सुनेगा। 'यह कैसे हो सकता है। इसका मतलब है कि इसे फ्लैट के बारे में मालूम है,' उसने अचानक सोचा, 'और यह खुद इसके बारे में बता रहा है!'

'हाँ, हमारे कानून के इतिहास में लगभग ऐसे ही एक मामले की मिसाल मिलती है, बीमार मनोदशा के मामले की,' पोर्फिरी ने अपनी बात का टूटा हुआ सिरा फिर से पकड़ते हुए जल्दी से कहना शुरू किया। 'उस मामले में भी किसी को यह बात सूझी कि कत्ल के जुर्म का इकबाल कर ले। और, सच कहता हूँ, उसने यह काम कमाल से किया! हम लोगों को उसने एक सरासर ऊटपटाँग किस्सा सुनाया, जैसे सचमुच सारी बातें उसकी आँखों के सामने हो रही हों... उसने ठोस तथ्य पेश किए, सारी परिस्थितियाँ बयान की और हर किसी को बुरी तरह चकरा कर रख दिया। और किसलिए इसलिए कि कुछ हद तक, लेकिन कुछ ही हद तक, अनजाने में, वह भी उस कत्ल का सबब था। सो जब उसे पता चला कि उसकी वजह से ही कातिलों को मौका मिला था, तो वह घोर निराशा में डूब गया, उसके मन में बात बैठ गई और उसका दिमाग फिर गया। वह तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगा और धीरे-धीरे उसने अपने आपको कायल कर लिया कि कत्ल उसी ने किया था। लेकिन आखिरकार सेनेट में अपील के बाद पूरे मामले की छानबीन की गई, वह बेचारा बरी कर दिया गया और उसकी देखभाल का पूरा इंतजाम किया गया। यह सब कुछ सेनेट की बदौलत! च-च-च! लोग भी क्या-क्या हरकतें करते हैं! तो मेरे दोस्त, तुम्हारा अगर यही हाल रहा तो आगे चल कर क्या होगा इसी तरह तो आदमी पर जुनून सवार होता है। एक बार जहाँ ऐसी किसी सनक को अपने दिमाग में पनपने दिया तो आदमी रात-बिरात गिरजे में जा कर घंटियाँ बजाने लगता है, खून के बारे में पूछने लगता है अपनी नौकरी के दौरान मैंने इस तरह की मनोदशा का गहरा अध्ययन किया है। कभी-कभी आदमी का जी चाहता है कि खिड़की से बाहर या गिरजाघर की बुर्जी से नीचे कूद पड़े। घंटियाँ बजाना भी रोदिओन रोमानोविच ऐसा ही है... यह एक तरह की बीमारी है! तुम अपनी... बीमारी की तरफ से लापरवाही बरतने लगे हो। तुम्हें तो उस मोटे की बजाय किसी अच्छे तजर्बेकार डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। तुम्हारे होश ठिकाने नहीं रहते! जिस वक्त तुमने यह सब किया उस वक्त भी तो तुम सरसामी हालत में ही थे...'

पलभर के लिए रस्कोलनिकोव को हर चीज घूमती मालूम हुई।

'यह क्या मुमकिन है, ऐसा हो सकता है क्या,' उसके दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा, 'कि यह अब भी झूठ बोल रहा हो? नहीं ऐसा नहीं हो सकता!' उसने इस विचार को दिमाग से निकाल देने की कोशिश की क्योंकि वह पहले ही महसूस करने लगा था कि यह उसे जुनून की किस हद तक पहुँचा सकता है, उसे पागल बना सकता है।

'मैं तो सरसामी हालत में नहीं था। तब मुझे अच्छी तरह मालूम था कि मैं क्या कर रहा हूँ,' वह पोर्फिरी की चाल को समझने के लिए दिमाग की पूरी शक्ति लगाते हुए चीखा। 'मैं पूरी तरह होश में था, आप सुन रहे हैं न?'

'हाँ, सुन भी रहा हूँ और समझ भी रहा हूँ। कल भी तुमने कहा था कि तुम सरसामी हालत में नहीं थे, और तुमने इस बात पर खास जोर दिया था! तुम मुझे जो कुछ भी बता सकते हो, वह मैं पहले से ही समझता हूँ! अच्छा... तो सुनो, रोदिओन रोमानोविच, मेरे दोस्त! मिसाल के लिए इसी बात को लो... अगर तुम सचमुच अपराधी होते, या इस सिड़ी मामले में किसी भी तरह से तुम्हारा हाथ होता, तो क्या इस बात पर अड़े रहते कि तुम सरसामी हालत में नहीं, बल्कि पूरी तरह होश में थे... वह भी इतना जोर दे कर इस तरह लगातार... क्या यह मुमकिन है? मैं समझता हूँ कि एकदम नामुमकिन है। अगर तुम्हारे जमीर पर जरा भी बोझ होता तो तुम यही कहते कि तुम सरसामी हालत में थे। मैं सही कह रहा हूँ न?'

उसके इस सवाल में काइयाँपन का जरा-सा पुट भी था। जैसे ही पोर्फिरी उसकी ओर झुका रस्कोलनिकोव सोफे पर पीछे खिसक गया और चुपचाप, उलझन में गिरफ्तार उसे घूरता रहा।

'या फिर रजुमीखिन को ले लो। मेरा मतलब है, इस सवाल को कि कल वह अपनी मर्जी से मुझसे बात करने आया था या तुम्हारे कहने पर। तुम्हें यकीनन यही कहना चाहिए था कि वह अपनी मर्जी से आया था, ताकि तुम इसमें अपने हाथ की बात पर पर्दा डाल सको! लेकिन इसे छिपाने की बात तुम्हारे दिमाग में नहीं आई! बल्कि तुम तो इसी बात पर जोर दे रहे हो कि वह तुम्हारे कहने से यहाँ आया था।'

रस्कोलनिकोव ने कभी ऐसा किया ही नहीं था। उसकी रीढ़ में ऊपर से नीचे तक सिहरन दौड़ गई।

'आप झूठ बोले चले जा रहे हैं,' उसने होठों को टेढ़ा करके, उन पर एक बीमार मुस्कराहट ला कर, धीरे-धीरे और कमजोर लहजे में कहा, 'आप एक बार फिर यही जताने की जुगत कर रहे हैं कि आपको मेरी सारी चालें पता हैं, कि मैं जो कुछ भी कहूँगा वह आपको पहले से मालूम हैं।' फिर वह खुद महसूस करने लगा कि अपने शब्दों को उतनी अच्छी तरह नहीं तोल रहा था जिस तरह उसे तोलना चाहिए था। 'या तो आप मुझे डराना चाहते हैं... या मुझ पर सिर्फ हँस रहे हैं।'

वह ये बातें कहते वक्त भी उसे घूरता रहा। उसकी आँखों में गहरी नफरत की चमक एक बार फिर पैदा हो गई।

'आप झूठ बोले जा रहे हैं!' उसने चीख कर कहा। 'आप अच्छी तरह जानते हैं कि जहाँ तक मुमकिन हो, सारी बात सच-सच बता देना ही अपराधी के लिए सबसे अच्छा सौदा होता है। उसे तो चाहिए कि जहाँ तक मुमकिन हो, कम-से-कम छिपाए। मैं आपकी बात का यकीन नहीं करता!'

'बड़े चालाक हो तुम भी!' पोर्फिरी दबी हुई हँसी के साथ बोला, 'तुम्हें दबा सकना नामुमकिन है... तुमने बस एक ही बात अपने दिमाग में बिठा ली है। मेरी बात का तुम्हें यकीन नहीं आता फिर भी मैं तुम्हें बता दूँ, दोस्त, कि तुम्हें मेरी बात का थोड़ा-बहुत यकीन जरूर आ रहा है, और मुझे भरोसा है कि जल्द ही मैं तुम्हें पूरा यकीन दिला दूँगा। इसलिए कि तुम मुझे सचमुच अच्छे लगते हो और मैं सच्चे दिल से तुम्हारा भला चाहता हूँ।'

रस्कोलनिकोव के होठ फड़के।

'हाँ, सच कहता हूँ,' पोर्फिरी ने मित्रता के भाव से रस्कोलनिकोव की बाँह को कुहनी से ऊपर धीरे-से पकड़ कर अपनी बात का सिलसिला जारी रखा, 'तुम्हें अपनी बीमारी का खयाल रखना चाहिए। इसके अलावा, अब तो तुम्हारी माँ और बहन भी यहीं हैं; उनके बारे में भी तुम्हें सोचना चाहिए। तुम्हें तो चाहिए कि उन्हें तसल्ली दो, कुछ आराम पहुँचाओ, और तुम हो कि उलटे उन्हें डराने के सिवा कुछ नहीं करते...'

'आपको इन बातों से क्या? आपको यह सब कैसे पता चला?, इन बातों से आपका मतलब? ...क्या यही न कि आप मेरे ऊपर नजरें रख हुए हैं और मुझे यह बात जता देना चाहते हैं?'

'हे भगवान! मुझे यह सब तो खुद तुमसे पता चला। तुम्हें तो पता भी नहीं चलता और तुम आपा खो कर और दूसरे लोगों को सब कुछ बता देते हो। कल रजुमीखिन से भी बहुत-सी दिलचस्प बातें मालूम हुईं। तुमने मेरी बात काट दी, लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ कि तुममें अपनी तमाम होशियारी के बावजूद, अपने शक्कीपन की वजह से, चीजों को समझदारी से देखने की क्षमता नहीं बची है। मिसाल के लिए, घंटी बजाने की बात को लो। छानबीन करनेवाला मजिस्ट्रेट हो कर भी मैंने ऐसी अनमोल बात तुम्हें बता दी, (क्योंकि यह सच्चाई है), और तुम्हें इसमें कुछ भी नजर नहीं आता! अरे, मुझे तुम्हारे ऊपर अगर जरा भी शक होता तो मैं कभी इस तरह की बातें करता नहीं, पहले मैं तुम्हारे सारे शक दूर करता, तुम्हें यह न पता चलने देता कि मुझे इस बात का पता है, तुम्हारा ध्यान किसी और चीज की तरफ फिरा देता और फिर अचानक ऐसा वार करता जिसके सामने तुम टिके न रहते। (यह तुम्हारा ही जुमला है) तब मैं कहता : 'जनाब, मेहरबानी करके यह बताइए कि रात को दस बजे या लगभग ग्यारह बजे आप उस औरत के फ्लैट में क्या कर रहे थे, जिसका कत्ल हुआ, और आपने घंटी क्यों बजाई और आपने खून के बारे में क्यों पूछा... दरबानों से आपने यह क्यों कहा कि वह आपके साथ थाने चलें, पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर साहब के पास... अगर मुझे तुम्हारे ऊपर राई बराबर भी शक होता तो मैं क्या करता : मैं बाकायदा तुम्हारी गवाही लेता, तुम्हारे घर की तलाशी लेता, शायद तुम्हें गिरफ्तार भी करता... इसका मतलब यह है कि मुझे तुम्हारे ऊपर कोई शक नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है! लेकिन तुम इस बात को सहज भाव से नहीं देखना चाहते और तुम्हें कुछ दिखाई भी नहीं देता। मैं एक बार फिर यही बात दोहरा रहा हूँ।'

रस्कोलनिकोव इस तरह चौंका कि पोर्फिरी ने यह बात साफ-साफ देखी।

'आप झूठ ही बोलते जा रहे हैं!' वह चिल्ला कर बोला। 'यह तो मुझे नहीं मालूम कि आप चाहते क्या हैं, लेकिन आप झूठ बोले जा रहे हैं... अभी आप इस तरह की कोई बात नहीं कर रहे थे और इसे समझने में मुझसे गलती नहीं हो सकती... आप झूठ बोल रहे हैं!'

'मैं झूठ बोल रहा हूँ!' पोर्फिरी ने पलट कर पूछा। उसकी सूरत से लग रहा था कि उसका गुस्सा भड़क उठा है लेकिन उसने अपने चेहरे पर हँसी-मजाक और व्यंग्य का भाव बनाए रखा, जैसे उसे इसकी जरा भी परवाह न हो कि उसके बारे में रस्कोलनिकोव की राय क्या है। 'मैं झूठ बोल रहा हूँ ...लेकिन अभी मैंने तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया... मैंने, छानबीन करनेवाले मजिस्ट्रेट ने... मैंने तुम्हें बताया कि तुम्हें क्या कहना चाहिए। मैंने तुम्हें बचाव की सारी तरकीबें बताईं : बीमारी, सरसाम की हालत, चोट, उदासी, पुलिस के अफसर, और भी न जाने कितनी बातें कि नहीं... हिः-हिः-हिः! वैसे सच तो यह है कि बचाव के ये सारे मनोवैज्ञानिक हथियार कुछ खास भरोसेमंद नहीं होते और दोनों तरफ काट करते हैं। बीमारी, सरसामी हालत, मुझे याद नहीं - सब ठीक है, लेकिन इसकी क्या वजह है, मेहरबान कि आपकी बीमारी और सरसाम की हालत में आपके सर पर इन्हीं भ्रमों का भूत सवार रहता था, दूसरे भ्रमों का नहीं दूसरे भ्रम भी तो रहे होंगे, क्यों? हिः-हिः-हिः!'

रस्कोलनिकोव ने ढिठाई और तिरस्कार के साथ उसकी ओर देखा।

'थोड़े-से शब्दों में,' उसने खड़े हो कर और इस चक्कर में पोर्फिरी को थोड़ा-सा पीछे ढकेल कर ऊँचे लहजे में और रोब के साथ कहा, 'थोड़े से शब्दों में, मैं यह बात जानना चाहता हूँ कि आप मुझे शक से पूरी तरह बरी मानते हैं कि नहीं बताइए, पोर्फिरी पेत्रोविच, मुझे आखिरी तौर पर बताइए और जल्दी बताइए।'

'तुम्हारे जैसे आदमी से निबटना भी आसान नहीं है!' पोर्फिरी ने मजाक की मुद्रा बनाए रख कर जोर से कहा। लेकिन उसके चेहरे से, जिस पर जरा भी घबराहट नहीं थी, काइयाँपन साफ नजर आता रहा था। 'पर तुम जानना क्यों चाहते हो? इतनी-इतनी बातें भला क्यों जानना चाहते हो जबकि अभी तुम्हें किसी ने परेशान करना शुरू भी नहीं किया? अरे, तुम तो बिलकुल बच्चों की तरह खेलने के लिए आग माँगे जा रहे हो! और इतने बेचैन क्यों हो भला? अपने आपको हम लोगों पर थोप क्यों रहे हो, क्यों? हिः-हिः-हिः!'

'मैं एक बार फिर कहता हूँ,' रस्कोलनिकोव गुस्से से बिफर कर चीखा, 'मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता...'

'क्या बर्दाश्त नहीं कर सकते दुविधा?' पोर्फिरी ने बात काटी।

'बंद करो मेरा मजाक उड़ाना! मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूँगा! कहे देता हूँ कि मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसे न बर्दाश्त कर सकता हूँ और न करूँगा! सुन लिया... सुना कि नहीं?' मेज पर एक बार फिर मुक्का मारते हुए वह चिल्लाया।

'धीरे! कुछ धीरे! कोई सुन लेगा! मैं संजीदगी से तुम्हें कहे देता हूँ, अपना खयाल रखो। मैं मजाक नहीं कर रहा!' पोर्फिरी ने चुपके से कहा, लेकिन अब उसके चेहरे पर बुढ़ियों जैसी नेकदिली का और घबड़ाहट का भाव नहीं था। इसके विपरीत उस वक्त वह उसे खुलेआम आदेश दे रहा था। उसकी मुद्रा कठोर थी और माथे पर बल थे, गोया एक ही झटके में उसने हर अस्पष्ट पहलू और हर रहस्य पर से पर्दा हटा दिया हो। लेकिन ऐसा केवल एक पल ही रहा। रस्कोलनिकोव बौखला कर अचानक सचमुच ही उन्माद का शिकार हो गया, लेकिन अजीब बात यह हुई कि इस बार फिर उसने धीमे बोलने का हुक्म मान लिया, हालाँकि उसका गुस्सा भड़क कर सारी हदें तोड़नेवाला था।

'मैं इसकी इजाजत नहीं दूँगा कि मुझे सताया जाए,' उसने पहले की तरह धीमे स्वर में कहा। फिर फौरन यह महसूस करके उसे भारी नफरत हुई कि हुक्म मान लेने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह सोच कर उसका गुस्सा और भी भड़क उठा। 'मुझे गिरफ्तार कीजिए, मेरी तलाशी लीजिए, लेकिन बराय मेहरबानी जो कुछ भी कीजिए सही ढंग से कीजिए और मेरे साथ खेल मत कीजिए! कभी इसकी हिम्मत भी मत कीजिएगा...'

'सही ढंग की चिंता न करो,' पोर्फिरी ने उसी मक्कारी भरी मुस्कान के साथ उसकी बात काटते हुए कहा, गोया रस्कोलनिकोव को इस हाल में देख कर उसे मजा आ रहा हो। 'मैंने दोस्ताना ढंग से तुम्हें मिलने के लिए यहाँ बुलाया था।'

'मुझे आपकी दोस्ती नहीं चाहिए। मैं थूकता हूँ उस पर! सुना आपने और यह देखिए, मैंने अपनी टोपी उठाई और चला। अगर आपका इरादा मुझे गिरफ्तार करने का है तो अब आप क्या कहेंगे?'

अपनी टोपी उठा कर वह दरवाजे तक पहुँचा।

'तुम क्या मेरा छोटा-सा अजूबा भी नहीं देखोगे?' पोर्फिरी एक बार फिर उसकी बाँह पकड़ कर उसे दरवाजे पर ही रोकते हुए चहका। लगता था, पोर्फिरी का रवैया पहले से भी ज्यादा मजाक और चुहल का हो गया था, जिस पर रस्कोलनिकोव गुस्से से धीरज खोने लगा।

'कैसा छोटा-सा अजूबा?' उसने पूछा। वह सन्न हो कर पोर्फिरी को सहमी-सहमी नजरों से देख रहा था।

'मेरा छोटा-सा अजूबा वहाँ दरवाजे के पीछे है... हिः-हिः-हिः!' (उसने बंद दरवाजे की तरफ इशारा किया।) 'उसे मैंने ताले में बंद कर रखा है कि भागने न पाए।'

'क्या है? कहाँ? क्यों...?' रस्कोलनिकोव चल कर उस दरवाजे तक गया और उसे खोलना चाहा, लेकिन उसमें ताला लगा था।

'उसमें ताला बंद है। चाभी यह रही!'

सचमुच उसने अपनी जेब से एक चाभी निकाली।

'तुम झूठ बोल रहे हो,' रस्कोलनिकोव ने सारी शराफत ताक पर रख कर गरजा, 'तुम झूठे हो, कमबख्त मसखरे कहीं के!' यह कह कर वह पोर्फिरी की ओर झपटा, जो पीछे हट कर दूसरे दरवाजे की तरफ चला गया। वह जरा भी नहीं डरा।

'सब समझता हूँ मैं! सब कुछ!' रस्कोलनिकोव झपट कर उसके पास पहुँचा। 'तुम झूठ बोल रहे हो और मुझे चिढ़ा रहे हो ताकि मैं अपना भेद तुम्हें बता दूँ...'

'अरे, भेद बताने को अब रहा ही क्या है, यार रोदिओन रोमानोविच! अभी तुम आपे में नहीं हो। चीखो नहीं, वरना मैं अभी क्लर्कों को बुलवाता हूँ।'

'झूठ बोल रहे हो तुम! कुछ भी तुम नहीं कर सकते। बुलाओ अपने आदमियों को! तुम जानते थे कि मैं बीमार हूँ और फिर भी तुमने मुझे चिढ़ा कर जुनून की हालत में पहुँचाने की कोशिश की ताकि मैं अपना भेद खोल दूँ। यही तुम चाहते थे न अपने सबूत पेश करो! मैं सब समझ रहा हूँ। तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है, तुम्हारे दिमाग में भी जमेतोव की ही तरह शक का कूड़ा भरा है! तुम्हें मेरा स्वभाव मालूम था, तुम चाहते थे कि मैं गुस्से से आपे से बाहर हो जाऊँ और तब तुम पादरियों और गवाहों का सहारा ले कर मेरे ऊपर ऐसा वार करो कि मैं टिक न सकूँ। ...तुम क्या उन्हीं का इंतजार कर रहे हो क्यों किस चीज का इंतजार कर रहे हो? कहाँ हैं वे लोग? लाओ उन्हें!'

'गवाहों से तुम्हारा मतलब क्या है जानेमन तुम भी कैसी-कैसी बातें सोच लेते हो! ऐसा करना तो, वह जिसे तुम कहते हो न सही ढंग, तो सही ढंग से काम करना नहीं होगा। तुम्हें इस काम का कुछ भी इल्म नहीं है, दोस्त! ...और अभी बाकायदा काम करना तो बचा ही है जो कि तुम खुद देखोगे,' पोर्फिरी बुदबुदाता रहा और दरवाजे पर कान लगाए सुनता रहा। दरवाजे के उस पार, दूसरे कमरे में सचमुच कुछ हलचल हो रही थी।

'तो वे आ रहे हैं!' रस्कोलनिकोव चीखा। 'उनको तुमने बुला ही लिया! उन्हीं की राह तुम देख रहे थे न अच्छी बात है, पेश करो सबको, अपने गवाहों को, और जिसे-जिसे भी तुम चाहो! ...मैं तैयार हूँ! एकदम तैयार!'

लेकिन तभी एक अजीब-सी घटना हुई, ऐसी अप्रत्याशित कि रस्कोलनिकोव और पोर्फिरी पेत्रोविच दोनों में से किसी को गुमान न था कि ऐसा नतीजा निकलेगा।