अपराध और दंड / अध्याय 5 / भाग 1 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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प्योत्र पेत्रोविच का दिमाग दुनेच्का और उसकी माँ के साथ उस निर्णायक भेंट के बाद अगले दिन सुबह कुछ ठिकाने आया। उसके लिए यह चीज नागवार तो बहुत थी, लेकिन धीरे-धीरे वह उसी बात को अटल सत्य के रूप में स्वीकार करने पर मजबूर हो गया जो अभी कल तक कल्पनातीत और अनहोनी मालूम होती थी। जख्मी अहंकार का नाग उसके हृदय को सारी रात डसता रहा था। प्योत्र पेत्रोविच ने बिस्तर से उठते ही आईने में अपनी सूरत देखी। उसे डर था कि रात को उसे कहीं उलटी न हो गई हो। लेकिन उसकी तंदुरुस्ती पर कोई आँच आई हो, अभी तक तो ऐसा नहीं लगता था और आईने में अपने गौरवमय गोरे चेहरे को देख कर, जो इधर कुछ दिनों में भर आया था, प्योत्र पेत्रोविच को एक पल के लिए इस पक्के विश्वास से तसल्ली मिली कि उसे दूसरी दुल्हन मिल जाएगी, जो शायद और भी अच्छी हो। लेकिन उसने फौरन अपने को सँभाला और जोर से खखार कर थूका। उसकी इस हरकत को देख कर उसके नौजवान मित्र आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव के चेहरे पर, जिसके साथ वह ठहरा हुआ था, व्यंग्य भरी मुस्कराहट दौड़ गई। प्योत्र पेत्रोविच का ध्यान उस मुस्कराहट की ओर गया, और उसने जेहन में फौरन उसे अपने नौजवान मित्र का नाम चढ़ा लिया कि एक दिन इसका भी हिसाब चुकाना होगा। इधर पिछले कुछ दिनों में उसने उसके नाम बहुत-सी चीजें चढ़ाई थीं। यह सोच कर उसका गुस्सा दोगुना हो गया कि उसे आंद्रेई सेम्योनोविच को कल की मुलाकात और उसके नतीजे के बारे में नहीं बताना चाहिए था। यह दूसरी गलती थी, जो कल उसने जल्दबाजी और चिड़चिड़ाहट की वजह से की थी। इसके अलावा, उस दिन सुबह एक के बाद एक कई नागवार घटनाएँ होती रहीं। उसका जो मामला सेनेट में पेश था उसमें भी कुछ बाधा आने का खतरा नजर आने लगा था। उस फ्लैट के मालिक पर वह खास तौर पर झुँझला रहा था जो उसने अपनी होनेवाली शादी को ध्यान में रख कर किराए पर लिया था और जिसे उसने अपने खर्च से नए सिरे से सजाया-सँवारा था। फ्लैट का मालिक एक अमीर जर्मन व्यापारी था। वह उसको रद्द करने को तैयार नहीं था और बयाने की पूरी रकम जब्त कर लेने पर अड़ा हुआ था, हालाँकि प्योत्र पेत्रोविच उसे वह फ्लैट नए सिरे से ठीक करा कर, सजा-सँवार कर वापस कर रहा था। इसी तरह फर्नीचरवाला भी उस फर्नीचर के लिए दी गई किस्त वापस करने को तैयार नहीं था जो खरीद तो लिया गया था लेकिन अभी उसकी दुकान से उठाया नहीं गया था। 'मुझे क्या सिर्फ इस फर्नीचर की खातिर शादी करनी पड़ेगी...,' प्योत्र पेत्रोविच दाँत पीस कर रह गया। पर इसी के साथ उसके हृदय में आशा की अंतिम किरण जगमगाई : 'सब कुछ सचमुच और हमेशा के लिए खत्म तो नहीं हो चुका। एक और कोशिश कर देखने से कोई फायदा नहीं क्या?' दूनिया का ध्यान आते ही उसके हृदय में एक बार फिर लालचभरी टीस उठी। उसके लिए वह गहरे दर्द का लम्हा था, लेकिन अगर केवल इच्छा से रस्कोलनिकोव को कत्ल कर सकना संभव होता तो प्योत्र पेत्रोविच यह इच्छा फौरन कर बैठता।

'इसके अलावा उन्हें कुछ पैसा न देना भी गलती ही थी,' घोर निराशा में डूब कर लेबेजियातनिकोव के कमरे की ओर लौटते समय उसने सोचा। 'मैं भला ऐसा मक्खीचूस बन कैसे गया। यह भी तो किफायत की एक झूठी कोशिश थी! मैं उन्हें कौड़ी-कौड़ी को मोहताज रखना चाहता था ताकि वे मुझे अपना दाता समझ लें, अब देखो उन्हें! छिः! अगर मैंने उन्हें पंद्रह सौ रूबल भी दे दिए होते कि नॉप के यहाँ से और उस विलायती दूकान से दुल्हन के लिए साज-सामान खरीद लें, कुछ तोहफे, छोटी-मोटी चीजें, कपड़े, गहने, और इसी तरह की दूसरी खुराफात चीजें खरीद लें तो आज मेरी स्थिति कहीं बेहतर होती... कहीं ज्यादा मजबूत! वे मुझे इतनी आसानी से ठुकरा नहीं पातीं! वे उस किस्म के लोग हैं कि रिश्ता तोड़ते तो अपने को पैसा और तोहफे भी वापस करने पर मजबूर समझते; और यही उनके लिए मुश्किल होता! उनका जमीर भी अंदर-ही-अंदर उन्हें कचोटता रहता : हम ऐसे आदमी को कैसे ठुकरा सकते हैं जो अब तक हमारे साथ उदारता और नर्मी का बर्ताव करता रहा है ...हुँ! मैंने बहुत बड़ी गलती की!' एक बार फिर दाँत पीस कर प्योत्र पेत्रोविच ने अपने आपको बेवकूफ कहा - लेकिन, जाहिर है, मन-ही-मन में।

इस सोच के साथ जब वह घर लौटा तो पहले से दोगुना चिढ़ा हुआ और नाराज। कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ जनाजे के भोज की जो तैयारी हो रही थी, उसे देख कर उसके मन में उत्सुकता जागी। उसने कल उसके बारे में कुछ सुना था, कुछ-कुछ यह भी याद था कि उसे भी बुलाया गया है, लेकिन वह अपनी चिंताओं में ही इतना डूबा हुआ था कि इस ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया था। कतेरीना इवानोव्ना कब्रिस्तान गई हुई थी। उसके पीछे मादाम लिप्पेवेख्सेल मुस्तैदी से मेज पर खाना लगवा रही थी; उससे पूछने पर मालूम हुआ कि भोज काफी बड़ा होगा, कि उस मकान में रहनेवाले सभी लोगों को बुलाया गया था और उनमें कुछ तो ऐसे भी थे जो मरनेवाले को जानते तक नहीं थे, कि कतेरीना इवानोव्ना से पहले झगड़ा हो चुकने के बावजूद आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव को भी बुलाया गया था, कि खुद उसे (प्योत्र पेत्रोविच को) न केवल बुलाया गया था बल्कि उसके आने की उम्मीद भी की जा रही थी क्योंकि वह उस घर में रहनेवालों में सबसे महत्वपूर्ण आदमी था। तमाम पिछले झगड़ों के बावजूद अमालिया इवानोव्ना को भी खास तौर पर बुलाया गया था, इसलिए वह तैयारियों में लगन से जुटी हुई थी और उसे इस काम में मजा आ रहा था। इसके अलावा वह काले रंग के नई रेशमी लिबास में अपनी सजधज पर इतरा भी रही थी। इन सब बातों को देख कर प्योत्र पेत्रोविच के मन में एक विचार उठा और वह विचारों में डूबा हुआ अपने, बल्कि सच पूछिए तो लेबेजियातनिकोव के कमरे में गया। उसने सुन रखा था कि मेहमानों में रस्कोलनिकोव भी शामिल था।

आंद्रेई सेम्योनोविच किसी वजह से पूरी सुबह घर पर ही रहा। इस भले आदमी के सिलसिले में प्योत्र पेत्रोविच का रवैया कुछ अजीब-सा था, हालाँकि शायद वह स्वाभाविक ही था। प्योत्र पेत्रोविच जिस दिन उसके साथ रहने आया उसी दिन से उससे नफरत करता आ रहा था, लेकिन साथ ही लगता था कि वह उससे कुछ डरता भी था। पीतर्सबर्ग पहुँचने पर उसके साथ ठहरने का मकसद सिर्फ पैसे बचाना नहीं था, हालाँकि उसका खास मकसद यही था। इसकी एक वजह और भी थी। वह आंद्रेई सेम्योनोविच का किसी जमाने में संरक्षक रह चुका था, और उसने सुन रखा था कि वह शहर का एक प्रमुख प्रगतिशील नौजवान था और कुछ ऐसी दिलचस्प मंडलियों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा था, जिनके कारनामों की दूर-दूर तक चर्चा थी। प्योत्र पेत्रोविच पर इस बात का रोब पड़ा था। हर आदमी से नफरत करनेवाली, सबका कच्चा चिट्ठा खोलनेवाली और हर बात पर नजर रखनेवाली इन ताकतवर मंडलियों का एक अजीब अस्पष्ट-सा डर उसके दिल में बहुत अरसे से बैठा हुआ था। जाहिर है, वह अपने मन में इस किस्म की किसी भी चीज के बारे में कोई छोटी-मोटी धारणा भी नहीं बना सकता था, खास तौर पर शहरों से दूर रह कर। सभी लोगों की तरह उसने भी सुन रखा था कि खास तौर पर पीतर्सबर्ग में खुदा जाने किस-किस तरह के प्रगतिशील विनाशवादी वगैरह होते हैं, और बहुतों की तरह उसने भी इन शब्दों के अर्थ को बढ़ा-चढ़ा कर, तोड़-मरोड़ कर बेतुकेपन की हद तक पहुँचा दिया था। पिछले कई साल से वह सबसे ज्यादा इसी बात से डरता आ रहा था कि कहीं उसका चिट्ठा न खोल दिया जाए और यही उसके लगातार परेशान रहने की वजह थी, खास तौर पर अपना कारोबार हटा कर पीतर्सबर्ग ले आने के सिलसिले में। वह इस बात से उसी तरह डरा हुआ था जैसे कभी-कभी किसी चीज से छोटे बच्चे डर जाते हैं। कुछ साल पहले, जब वह जिंदगी में आगे बढ़ना अभी शुरू ही कर रहा था, उसने दो किस्से ऐसे सुने थे जिनमें देहात के दो काफी नामवर लोगों की, जो उसके सरपरस्त भी थे, बेरहमी से धज्जियाँ उड़ाई गई थीं। एक मामले में तो जिस पर हमला हुआ था जिसकी काफी छीछालेदर हुई थी और दूसरे में भी भारी मुसीबत पैदा होते-होते रह गई थी। इसीलिए प्योत्र पेत्रोविच ने फैसला किया था कि पीतर्सबर्ग पहुँच कर वह इस समस्या की जड़ तक जाने की कोशिश करेगा और जरूरी हुआ तो 'हमारी नौजवान पीढ़ी' की खुशामद करके कोई मुसीबत खड़ी होने से पहले ही उसकी काट कर लेगा। उसे भरोसा था कि इस काम में आंद्रेई सेम्योनोविच से उसे मदद मिलेगी और दूसरे लोगों से, मसलन रस्कोलनिकोव से संपर्क होने से पहले ही उसने भी प्रचलन में मौजूद कुछ शब्दों और मुहावरों का प्रयोग करने की कला सीख ली थी...

स्वाभाविक था कि उसे जल्द ही पता चल गया कि आंद्रेई सेम्योनोविच बहुत ही घटिया और एक ही बेवकूफ किस्म का आदमी था, लेकिन यह जान कर प्योत्र पेत्रोविच को न कोई तसल्ली हुई, न कोई खास खुशी। अगर उसे यकीन भी तो जाता कि सभी प्रगतिशील उसके ही जैसे बेवकूफ होते हैं, तब भी उसकी बेचैनी दूर न होती। आंद्रेई सेम्योनोविच उस पर जिन सिद्धांतों, विचारों और प्रणालियों की बौछार करता रहता था, उनमें उसे कोई खास दिलचस्पी भी नहीं थी। उसका एक अपना ही उद्देश्य था। वह तो बस जल्द-से-जल्द यह मालूम करना चाहता था कि यहाँ हो क्या रहा है। इन लोगों की कोई ताकत है भी या नहीं, उसके लिए निजी तौर पर उनसे डरने की कोई वजह है कि नहीं, अगर उसने कोई काम शुरू किया तो क्या वे लोग उसकी भी कलई खोल देंगे और वे लोग अगर उसकी कलई खोलने पर तुल ही जाएँ तो उस वक्त उनके हमलों का असली निशाना क्या होगा और क्यों इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि क्या वह उनसे मेल-जोल पैदा कर सकता था और अगर वह सचमुच ताकतवर हों तो क्या उनको किसी तरह चकमा दे सकता था। उसे ऐसा करना भी चाहिए या नहीं उनकी मदद से क्या वह कुछ हासिल नहीं कर सकता... संक्षेप में सैकड़ों सवाल उसके सामने आ रहे थे।

आंद्रेई सेम्योनोविच किसी सरकारी दफ्तर में क्लर्क था। छोटे कद का दुबला-पतला, मरियल-सा आदमी। उसे अपने अजीब से सफेद बालों और मटन-चॉप किस्स के गलमुच्छों पर बेहद नाज था। उसकी आँखों में हमेशा कोई न कोई खराबी रहती थी। दिल का बहुत नर्म आदमी था, लेकिन उसमें आत्मविश्वास भरपूर था। कभी-कभी वह रोब के साथ बोलता था, जो लगभग हमेशा ही - उसके छोटे-से कद को देखते हुए - बहुत ही बेमेल और बेतुका लगता था। लेकिन वह उन किराएदारों में से था जिनकी अमालिया इवानोव्ना सबसे ज्यादा इज्जत करती थी। सबब यह कि वह कभी नशे में चूर नहीं होता था और किराया वक्त पर अदा करता था। इन सारे गुणों के बावजूद लेबेजियातनिकोव सचमुच काफी बेवकूफ था। वह सिर्फ जोश में आ कर प्रगति के ध्येय और 'हमारी नौजवान पीढ़ी' के साथ लग गया था। वह उन तरह-तरह के और अनगिनत मूढ़ लोगों में से, उन भोंडे किस्म के घमंडी, जाहिल और छिछोरे लोगों में एक था, जो किसी प्रचलित विचार के साथ हो जाते हैं, इस तरह उसकी मिट्टी पलीद करते हैं और जिस ध्येय की भी सेवा करते हैं, और कितने तो सच्चे मन से करते हैं, पर उसे भी एक मजाक बना कर रख देते हैं।

अपने नर्म स्वभाव के बावजूद लेबेजियातनिकोव भी अपने भूतपूर्व संरक्षक को नापसंद करने लगा था, जो इस वक्त उसके साथ एक ही कमरे में रह रहा था। यह रवैया दोनों तरफ अनजाने ही पैदा हो गया था। आंद्रेई सेम्योनोविच कितना ही भोला भंडारी क्यों न हो, यह बात उसकी भी समझ में आने लगी थी कि प्योत्र पेत्रोविच उसे बेवकूफ बना रहा था, अंदर-ही-अंदर उससे नफरत करता था, और यह कि 'वह जैसा लगता था वैसा बिलकुल नहीं था।' उसने उसे फूरिए की प्रणाली और डार्विन का सिद्धांत भी समझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ समय से प्योत्र पेत्रोविच उसकी बातें व्यंग्य के साथ सुनने लगा था और उसके साथ कभी-कभी बदतमीजी से पेश आने लगा था। वास्तव में उसने सहज ही अनुमान लगा लिया था कि लेबेजियातनिकोव न सिर्फ मूढ़ और क्षुद्र व्यक्ति था बल्कि झूठा भी था, यह कि खुद अपने क्षेत्र में उसकी कोई पहुँच नहीं थी, उसने बस कुछ सुनी-सुनाई बातें रट ली थीं; और बहुत मुमकिन था कि अपने प्रचार के काम की भी उसे कोई खास जानकारी न रही हो, क्योंकि उसका दिमाग गड्डमड्ड विचारों से भरा हुआ था। यह किसी का कच्चा चिट्ठा भला क्या खोलेगा! लगे हाथ, यह बात भी ध्यान देने की है कि इन दस दिनों के दौरान खास कर शुरू में प्योत्र पेत्रोविच ने उत्सुकता से आंद्रेई सेम्योनोविच के मुँह से अपनी प्रशंसा में अजीब-अजीब बातें भी स्वीकार कर ली थीं। मिसाल के लिए, आंद्रेई सेम्योनोविच ने उसे सराहा था कि मेश्चान्स्काया सड़क पर किसी जगह वह एक नए 'कम्यून' की स्थापना में योगदान देने को तैयार था, कि वह अपने बच्चों का गिरजाघर में विधिवत नामकरण नहीं कराएगा, या यह कि अगर शादी के महीने-भर बाद ही दूनिया ने कोई दूसरा प्रेमी बना लिया तब भी वह चुपचाप सह लेगा, वगैरह-वगैरह। उसने इन सब बातों के खिलाफ तब कोई आवाज नहीं उठाई था। प्योत्र पेत्रोविच को अपनी तारीफ सुनने का इतना शौक था कि इस तरह की खूबियाँ भी उसके मत्थे मढ़ी जाती थीं तो वह बुरा नहीं मानता था।

प्योत्र पेत्रोविच ने उसी दिन सवेरे अपने किसी निजी काम के लिए पाँच फीसदी सूदवाले कुछ सरकारी बांड भुनाए थे और मेज पर बैठा गड्डियाँ गिन रहा था। आंद्रेई सेम्योनोविच, जिसके पास शायद ही कभी अपना पैसा रहता हो, कमरे में टहल कर मन को बहला रहा था कि उसे उन नोटों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वह उन्हें तुच्छ समझता था। प्योत्र पेत्रोविच, मिसाल के लिए, कभी यह बात मान ही नहीं सकता था कि इतना पैसा देख कर आंद्रेई सेम्योनोविच पर कोई असर नहीं होगा और दूसरी तरफ आंद्रेई सेम्योनोबिच यह सोच कर कुढ़ रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच के मन में ऐसी कोई बात थी और वह नोटों की गड्डियाँ सजा कर, अपने नौजवान दोस्त को उसकी हीनता का एहसास करा कर, यह जता कर कि उन दोनों के बीच कितना अंतर है, और उसे छेड़ने का मौका पा कर खुश था।

इस समय आंद्रेई सेम्योनोविच अपने प्रिय विषय के एक नए और विशेष 'कम्यून' की स्थापना के बारे में लूजिन को अपने विचार विस्तार से बता रहा था। लेकिन उसने देखा कि प्योत्र पेत्रोविच उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था और चिड़चिड़ा हो रहा था। हिसाब जोड़ने के चौखटे पर गोलियाँ खटाखट इधर-से-उधर सटकाते हुए प्योत्र पेत्रोविच बीच-बीच में थोड़े में शब्द बोल देता था जिनसे खुले अशिष्ट व्यंग्य की झलक मिलती थी। लेकिन 'मानवता प्रेमी' आंद्रेई सेम्योनोविच ने इसे यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि प्योत्र पेत्रोविच अभी कल रात दूनिया से अनबन होने की वजह से चिड़चिड़ा हो रहा होगा। वह इस विषय पर बातें करने को सचमुच बेचैन था : उसे इसके बारे में कुछ प्रगतिशील बातें कहनी थीं, कुछ ऐसी बातें जो प्रचार के लिए सचमुच महत्वपूर्ण थीं, जिनसे उसके योग्य मित्र को तसल्ली होती और जिनसे उसके विकास को 'निश्चित रूप से' गति मिलती।

'यह किस भोज की तैयारी हो रही है उधर... उस विधवा के यहाँ?' प्योत्र पेत्रोविच ने अचानक सवाल करके आंद्रेई सेम्योनोविच की बात सबसे दिलचस्प जगह पर काट दी।

'जैसे कि तुम्हें मालूम ही नहीं था! अरे, कल रात ही तो मैं तुम्हें बता रहा था कि इस तरह की रस्मों के बारे में मैं क्या सोचता हूँ... और मैंने तो सुना है कि उसने तुम्हें भी बुलाया है। कल तुम उससे बातें भी तो कर रहे थे...'

'मैंने सोचा भी नहीं था कि इस मूर्ख कँगली को उस दूसरे बेवकूफ रस्कोलनिकोव से जितना पैसा मिला, वह सारे का सारा इस दावत पर खर्च कर देगी। अभी मैं उधर से आ रहा था तो तैयारियाँ देख कर ही दंग रह गया... इतनी शराब! ...बहुतों को न्योता दिया गया है। मेरी तो समझ में ही नहीं आता!' प्योत्र पेत्रोविच कहता रहा और लग रहा था कि यह बातचीत शुरू करने के पीछे उसका कोई उद्देश्य था। 'क्या कहा तुमने कि मुझे भी बुलाया गया है?' उसने सर उठा कर अचानक कहा। 'कब बुलाया गया मुझे तो याद नहीं। लेकिन मैं जाऊँगा नहीं। क्यों जाऊँ... मैंने तो कल यूँ ही उससे कह दिया था कि एक सरकारी नौकर की कंगाल विधवा होने के नाते उसे राहत के तौर पर सालभर की तनख्वाह मिल सकती है। मैं समझता हूँ, उसने मुझे इसी वजह से न्योता दिया होगा, है न यही बात खी-खी-खी!'

'जाने का इरादा तो मेरा भी नहीं है,' लेबेजियातनिकोव ने कहा।

'मैं भी नहीं समझता कि तुम्हें जाना चाहिए। उसकी ऐसी पिटाई करने के बाद तुम्हें संकोच भी हो रहा होगा। खी-खी-खी!'

'किसने पिटाई की... किसकी?' लेबेजियातनिकोव ने चीख कर पूछा। सिटपिटा कर उसका चेहरा लाल हो रहा था।

'तुमने पीटा। अभी महीना-भर हुआ, तुम्हीं ने तो कतेरीना इवानोव्ना को पीटा था। मैंने कल ही किसी से सुना... तो ये हैं तुम्हारे सिद्धांत! नारी-समस्या के बारे में भी अपने सारे विचारों को भुला ही दिया है, खी-खी-खी!'

इसके बाद प्योत्र पेत्रोविच चौखटे पर गोलियाँ गटकने लगा, गोया यह बात कह कर उसके कलेजे को ठंडक मिली हो।

'सब झूठ और बकवास है!' लेबेजियातनिकोव जोर से चीखा। वह इस बात की चर्चा चलने से हमेशा डरता था। 'ऐसा सब कुछ भी नहीं हुआ था! बात दूसरी ही थी... तुमने गलत सुना है; ये सब मुझे बदनाम करने की बातें हैं! मैं सिर्फ अपना बचाव कर रहा था। पहले वह मेरे ऊपर झपटी, अपने नाखूनों से खरोंचा, मेरे सारे गलमुच्छे नोच डाले। ...मैं समझता हूँ सबको इस बात की इजाजत होनी चाहिए कि वह अपना बचाव कर सकें। मेरा सिद्धांत यह है कि मैं किसी को अपने खिलाफ कोई हिंसा नहीं करने देता; यह निरंकुशता है। तो मैं करता ही क्या... बस उसे पीछे धकेल दिया।'

'खी-खी-खी।' लूजिन द्वेष की हँसी हँसता रहा।

'तुम इसलिए चिढ़ा रहे हो मुझे कि खुद चिढ़े हुए हो... लेकिन यह सरासर बकवास है। फिर नारी-समस्या से इसका कोई संबंध भी नहीं है, कोई भी नहीं! समझते नहीं तुम; मैं भी यही सोचा करता था कि औरतें अगर हर मुआमलों में मर्दों के बराबर हैं, ताकत के मामले में भी (जैसा कि अब कहा जा रहा है), तो फिर तो वैसे मुआमलों में भी बराबरी होनी चाहिए। लेकिन मैंने बाद में सोचा कि इस तरह का सवाल उठाना ही नहीं चाहिए, क्योंकि लड़ाई-झगड़ा भी नहीं होना चाहिए, और आगे चल कर जो समाज बनेगा उसमें लड़ाई की बात सोची नहीं जा सकती... यह भी कि लड़ाई के सिलसिले में बराबरी कायम करने की कोशिश करना तो अजीब बात होगी। ऐसा नासमझ मैं नहीं... जाहिर है, लड़ाई होती है... यानी बाद में चल कर तो नहीं होगी लेकिन अभी तो होती ही है...लानत है! तुम्हारे साथ बातें करो तो दिमाग कितना उलझता है! वहाँ मेरे न जाने की वजह यह है ही नहीं। मैं सिद्धांत की वजह से नहीं जा रहा। असली वजह यही है, मरनेवाले की याद में दावत की इस घृणित परंपरा में हिस्सा न लेने का सिद्धांत। यूँ वहाँ इस रिवाज का मजाक उड़ाने के लिए भी जाया जा सकता है। ...मुझे अफसोस इस बात का है कि वहाँ कोई पादरी नहीं होगा। होता तो मैं जरूर जाता।'

'तब तुम किसी दूसरे की मेज पर बैठ कर खाने का और मेजबान का अपमान करते। क्यों?'

'कोई अपमान नहीं करता, सिर्फ उसके खिलाफ अपनी आवाज उठाता। और यह मैं एक अच्छे उद्देश्य से करता। इस तरह मैं जागरूकता और प्रचार के कामों में एक तरह से मदद ही करता। हरेक का कर्तव्य है कि वह जागरूकता और प्रचार के लिए काम करे, और यह काम जितने ही जोरों से किया जाए, उतना ही अच्छा। मैं एक बीज डाल सकता हूँ, एक विचार का बीज! ...और वह बीज उग कर एक तथ्य का रूप भी धारण कर सकता है। इसमें उनका क्या अपमान हो सकता है वे शुरू में बुरा मानें लेकिन बाद में उनकी समझ में जरूर आएगा कि मैंने उनकी सेवा की है। जानते हो, तेरेब्येवा को (जो अब कम्यून में है) बहुत बुरा-भला कहा गया था... जब उसने अपना परिवार छोड़ा और... अपनी पसंद के आदमी के साथ रहने लगी तो उसने अपने माँ-बाप को चिट्ठी लिखी कि परंपराओं में जकड़ी जिंदगी बिताने के लिए वह तैयार नहीं और इसलिए शादी किए बिना ही अपनी पसंद के आदमी के साथ रहने जा रही है। तब कहा गया था कि उसने बहुत सख्त बात लिखी थी, कि उसे अपने माँ-बाप को इतनी तकलीफ नहीं पहुँचानी चाहिए थी और कुछ ज्यादा खत लिखना चाहिए था। मैं समझता हूँ यह सब बकवास है। नर्मी की कोई जरूरत है नहीं, बल्कि जरूरत तो इस बात की है कि ऐसी बातों के खिलाफ आवाज उठाई जाए। वारेंत्स को लो, उसकी शादी को सात साल हो चुके थे जब उसने अपने दो बच्चों को छोड़ा और अपने पति को एक खत में साफ-साफ लिखा था : 'मैंने यह बात समझ ली है कि मैं तुम्हारे साथ खुश नहीं रह सकती। मैं तुम्हें इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूँगी कि तुमने मुझे धोखा दिया और यह बात छिपाई कि समाज का एक और संगठन है, जिसकी बुनियाद कम्यून पर होगी। इसका पता मुझे हाल ही में बहुत ऊँचे विचारोंवाले एक आदमी से चला, जिसे मैं अपना सब कुछ अर्पित कर चुकी और जिसके साथ मैं एक कम्यून स्थापित करने जा रही हूँ। मैं यह बात इसलिए साफ-साफ बता रही हूँ कि तुम्हें धोखा देने को मैं बेईमानी समझती हूँ। तुम जैसा ठीक समझना, वैसा ही करना। मुझे वापस पाने की उम्मीद मत रखना; उसके लिए बहुत देर हो चुकी है। उम्मीद है कि तुम सुखी रहोगे।' ऐसे विषयों पर खत इसी तरह ही लिखे जाने चाहिए!'

'वही तेरेब्येना जिसके बारे में तुम बता रहे थे कि वह तीसरी बार बिना शादी किए किसी के साथ रह रही है?'

'नहीं, यह दरअसल दूसरी बार हैं! लेकिन अगर चौथी बार होता या पंद्रहवीं बार भी होता, तो क्या! ऐसी बातें बकवास हैं। मुझे अपने माँ-बाप की मौत का अगर कभी अफसोस हुआ है तो अब। मेरे मन में कई बार यह विचार उठा कि वे जिंदा नहीं हैं, यह कितने अफसोस की बात है... वे अगर जिंदा होते तो मुझे उनके खिलाफ आवाज उठा कर उन्हें चौंकाने का कितना अच्छा मौका मिलता! मैं जान-बूझ कर भी कुछ-न-कुछ कर बैठता। बच्चे के घर छोड़ जाने और आजाद होने के बारे में कितनी सारी बेवकूफी की बातें होतीं! मैं उन्हें बताता तो वे सचमुच दंग रह जाते। मैं बता नहीं सकता कि किसी के न होने का मुझे कितना अफसोस है।'

'उन्हें हैरत में डालने के लिए! खी-खी-खी! खैर, वह तो जैसा जी चाहे, करो,' प्योत्र पेत्रोविच बात काट कर बोला, 'लेकिन मुझे तो यह बताओ कि क्या तुम मरनेवाले की बेटी को जानते हो? वही जो एक छोटी-सी नाजुक-सी लड़की है उसके बारे में जो कुछ कहा जा रहा है वह तो सच है?'

'तो क्या? मैं समझता हूँ, मेरा मतलब यह मेरी निजी राय है कि यही औरतों के लिए सबसे स्वाभाविक स्थिति है। और क्यों न हो मेरा मतलब है, हमें अंतर करना चाहिए। हमारे आज के समाज में इसे इसलिए पूरी तरह स्वाभाविक नहीं समझा जाता कि वे मजबूरन ऐसा करती हैं। लेकिन आनेवाले समाज में इसे एकदम स्वाभाविक समझा जाएगा क्योंकि वे अपनी मर्जी से ऐसा करेंगी। लेकिन मौजूदा हालत में भी उसे ऐसा करने का पूरा-पूरा अधिकार था। मुसीबतें झेल रही थी बेचारी और उसके पास यही एक सहारा था। यही एक तरह से उसकी दौलत थी, जिसे अपनी मर्जी से इस्तेमाल करने का उसे पूरा-पूरा अधिकार था। जाहिर है, आनेवाले समाज में इस तरह की दौलत की कतई जरूरत नहीं होगी, लेकिन उसकी भूमिका एकदम दूसरे ही ढंग से निश्चित होगी... उसका फैसला पूरी तरह बुद्धिसंगत और सामंजस्य के साथ किया जाएगा। रहा सोफ्या सेम्योनोव्ना का सवाल, निजी तौर पर, तो मैं समझता हूँ उसने ऐसा करके समाज के संगठन के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है। इसके लिए मैं इज्जत करता हूँ उसकी और जब उसे देखता हूँ तो सचमुच मुझे खुशी होती है!'

'मुझे तो बताया गया कि यहाँ से तुम्हीं ने उसे निकलवाया था!'

लेबेजियातनिकोव गुस्से में आ गया।

'मेरे खिलाफ यह एक और इल्जाम है,' उसने चीख कर कहा। 'ऐसा तो एकदम नहीं हुआ था! कतई नहीं! यह सब कतेरीना इवानोव्ना की मनगढ़ंत बात है, क्योंकि मुझे वह ठीक से समझ ही नहीं सकी। रही सोफ्या सेम्योनोव्ना, तो उसके साथ कभी मुझे मुहब्बत नहीं रही! मैं तो निःस्वार्थ भाव से उसके विचारों को विकसित कर रहा था, उसे विरोध की प्रेरणा देने की कोशिश कर रहा था... मैं तो कुल इतना चाहता था कि वह इन बातों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। वैसे सोफ्या सेम्योनोव्ना यहाँ तो किसी हाल में नहीं रह सकती थी।'

'तुमने उसे भी अपने कम्यून में शामिल होने को कहा कि नहीं?'

'तुम तो हर बात का मजाक उड़ा रहे हो पर एकदम बेकार उड़ा रहे हो, इतना मैं तुम्हें बताए देता हूँ। तुम बातों को समझते भी नहीं! कम्यून में इस तरह की कोई भूमिका नहीं होती क्योंकि कम्यून बनाया ही इसलिए जाता है कि इस तरह की भूमिकाएँ खत्म हों। कम्यून में इस तरह की भूमिका का रूप बुनियादी तौर पर भिन्न होगा और जिसे यहाँ मूर्खता समझा जाता है वह वहाँ समझदारी की बात बन जाएगी, मौजूदा हालत में जिसे अस्वाभाविक समझा जाता है, वह कम्यून में एकदम स्वाभाविक होगा। सब कुछ माहौल पर निर्भर है। माहौल ही सब कुछ होता है; मनुष्य कुछ नहीं होता। और हाँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना के साथ मेरे संबंध आज तक बहुत अच्छे हैं, जो इस बात का सबूत है कि उसने कभी यह नहीं समझा कि मैंने उसके साथ कुछ बुरा किया। जी हाँ, अब मैं उसे कम्यून की ओर लाने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन दूसरी ही बुनियाद पर! तुम हँस किस बात पर रहे हो? हम अपना एक अलग ही कम्यून बनाने की कोशिश कर रहे हैं, एक खास तरह का कम्यून, जिसकी बुनियाद ज्यादा व्यापक हो। अपने विश्वासों को ले कर हम और आगे बढ़े हैं, और भी बातों को नकारने लगे हैं! तो अगर दोब्रोल्यूबोव अपनी कब्र से निकल आते तो उनसे मेरी खूब बहस होती। रहा बेलीस्की का सवाल तो उनकी तो मैं धज्जियाँ उड़ाता। इस बीच मैं आज भी सोफ्या सेम्योनोव्ना के विचारों को विकसित कर रहा हूँ। बहुत सुंदर है उसका चरित्र, बहुत ही सुंदर!'

'और तुम उसके बहुत ही सुंदर चरित्र का फायदा उठाते हो... क्यों? खी-खी-खी!'

'नहीं, बिलकुल नहीं! बात इसकी उलटी है!'

'अच्छा, तो बात उलटी है! खी-खी-खी! कैसी उलटी बात है!'

'मेरी मानो! मैं तुमसे क्यों छिपाऊँगा, बताओ सच में मुझे तो खुद ताज्जुब होता है कि वह मेरे साथ कैसे दब कर पवित्र भाव से और शील-संकोच से पेश आती है!'

'और तुम तो जाहिर है कि उसके विचारों को विकसित कर रहे हो... खी-खी-खी उसके सामने यह साबित करना चाहते हो कि उसका सारा शील-संकोच बकवास है?'

'कतई नहीं! बिल्कुल नहीं! माफ करना, तुम भी विकास शब्द का कितने भोंडे तरीके से और कितनी नासमझी से गलत मतलब निकाल रहे हो! तुम्हारी समझ में तो कुछ भी नहीं आता। कुछ भी नहीं। लानत है... तुम... अभी तक तुम्हारे विचार बहुत अधकचरे हैं। हम तो औरतों की आजादी के लिए काम कर रहे हैं और तुम्हारी खोपड़ी में बस एक बात है... मैं स्त्रियों की सच्चरित्रता, उनके शील-संकोच के आम सवाल को बेकार की बातें या पूर्वाग्रह मान कर उन पर कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन वह जो सच्चरित्रता मेरे साथ बरत रही है उसे मैं स्वीकार करता हूँ, क्योंकि यह उसकी अपनी इच्छा की बात है और इसका उसे पूरा-पूरा अधिकार है। जाहिर है, वह अगर अपने मुँह से कहे कि वह मुझे चाहती है तो मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली समझूँ, क्योंकि वह लड़की मुझे अच्छी लगती है। लेकिन आज की बात करें तो मैं तो यह जानता हूँ कि किसी ने उसके साथ मुझसे ज्यादा शराफत का बर्ताव नहीं किया है, किसी ने उसके स्वाभिमान के कारण उसे उतनी इज्जत की नजर से नहीं देखा, जितना मैं देखता हूँ... मैं तो उम्मीद लगाए राह देख रहा हूँ, बस!'

'बेहतर होगा कि तुम उसे तोहफे में कोई चीज दे दो। मेरा दावा है कि यह बात तुम्हें नहीं सूझी होगी।'

'मैं तुमसे कह चुका कि तुम कई बातें नहीं समझते! यह सच है कि उसकी ऐसी हालत है, लेकिन वह अलग सवाल है! बिलकुल दूसरा सवाल! तुम उससे सिर्फ नफरत करते हो। तुमने ऐसी बात देखी जिसके बारे में तुम्हारी यह गलत राय है कि उसका तिरस्कार ही किया जा सकता है। इस तरह तुम अपने ही जैसे एक इनसान को इनसानियत की नजरों से देखने से इनकार कर रहे हो। तुम्हें मालूम नहीं कि उसका कैसा चरित्र है! मुझे तो इस बात का अफसोस है कि इधर कुछ दिनों से उसने किताबें पढ़ना और किताबें माँग कर ले जाना बंद कर दिया है। पहले मैं उसे पढ़ने को किताबें दिया करता था। मुझे इस बात का भी अफसोस है कि हालात के खिलाफ आवाज उठाने का जोश और पक्का इरादा होते हुए भी - जिसका सबूत एक बार वह दे भी चुकी है - उसे अपने आप पर बहुत कम भरोसा है। उसमें यूँ कहो कि आजादी बहुत कम है, इतनी कम कि वह कुछ पूर्वाग्रहों से और... बेवकूफी के कुछ विचारों से छुटकारा नहीं पा सकती। फिर भी वह कुछ सवालों को बहुत अच्छी तरह समझती है। मिसाल के लिए हाथ चूमने के सवाल को... मतलब यह कि एक आदमी एक औरत का हाथ चूमे तो इसे वह औरत का अपमान समझती है क्योंकि यह औरत को अपने बराबर न समझने की निशानी है। इसके बारे में हमारी बहस हुई थी और मैंने यह बात उसे अच्छी तरह समझाई थी। उसने फ्रांस के मजदूर संगठनों की तफसील भी बड़े ध्यान से सुनी थी। अब मैं उसे आनेवाले समाज में किसी के कमरे में किसी के बेरोकटोक घुसने का सवाल समझा रहा हूँ।'

'यह कौन-सी बला है?'

'अभी कुछ दिन पहले हम लोगों में इस सवाल पर बहस हुई थी कि कम्यून के एक सदस्य को दूसरे सदस्य के कमरे में, वह मर्द हो या औरत, किसी भी समय घुसने का अधिकार है या नहीं... और हम इस नतीजे पर पहुँचे कि यह अधिकार उसे है!'

'लेकिन उस वक्त वे कोई बहुत ही वैसा काम कर रहे हों तो... खी-खी-खी!'

इस पर लेबेजियातनिकोव को सचमुच गुस्सा आ गया।

'हमेशा तुम कोई-न-कोई बेहूदा बात सोचते हो,' वह नफरत से भरे लहजे में जोर से बोला। 'हमेशा वही बात। जब देखो तब वही कमबख्त 'कोई वैसा काम छिः! यह सोच कर भी मुझे कितनी झुँझलाहट होती है कि तुम्हें अपनी व्यवस्था के बारे में समझाते हुए मैंने कमबख्त निजी किस्म की समस्याओं का सवाल वक्त से पहले ही क्यों उठाया! तुम्हारे जैसे लोग हमेशा यहीं पर आ कर अटकते हैं, बात को समझने से पहले ही उसका मजाक उड़ाने लगते हैं, और इसी पर मुझे झुँझलाहट होती है। वे सचमुच यह समझते हैं कि वे जानते हैं, वे क्या कह रहे हैं और इस पर गर्व भी करते हैं! छि! मैं बार-बार कह चुका कि यह सवाल किसी अनाड़ी को तब तक नहीं समझाया जाना चाहिए, जब तक उसे इस व्यवस्था के सही होने का पक्का विश्वास न हो जाए, जब तक उसके विचार विकसित न हों और जब तक वह सही दिशा में आगे न बढ़े। अब मेहरबानी करके यह बताइए जनाब, कि आपको, मिसाल के तौर पर, नाबदानों में भी क्या वैसी बात दिखाई देती है। मैं तो जो नाबदान भी आप कहें, उसे साफ करने को तैयार हूँ... सबसे पहले यह आत्म-बलिदान का सवाल नहीं है, यह तो बस एक काम है... इज्जतदार, उपयोगी काम जो उतना ही अच्छा है जितना कोई दूसरा काम है। अरे, यह काम तो किसी रफाएल या पुश्किन के काम से भी अच्छा है, क्योंकि यह कहीं ज्यादा उपयोगी काम है!'

'और ज्यादा इज्जतदार भी, ज्यादा इज्जतदार भी... खी-खी-खी!'

'इस 'ज्यादा इज्जतदार' से क्या मतलब है तुम्हारा आदमी के किसी भी काम के बयान के लिए इस तरह के जुमले मेरी तो समझ में नहीं आते। 'ज्यादा इज्जतदार', 'अधिक उच्च' - ये सब हैं पुराने ढंग के पूर्वाग्रह, जिन्हें मैं नहीं मानता। मानव-जाति के लिए जो चीज भी उपयोगी हो, वही इज्जतदार है! मैं बस एक शब्द समझता हूँ : उपयोगी! तुम चाहे जितना हँसो, लेकिन सच बात यही है!'

प्योत्र पेत्रोविच दिल खोल कर हँसा। वह पैसे गिन चुका और सँभाल कर रख चुका था। लेकिन कुछ नोट उसने मेज पर क्यों छोड़े थे, इसे वही जानता था। इस नाबदान वाले सवाल पर प्योत्र पेत्रोविच और उसके नौजवान दोस्त के बीच कई बार झगड़ा हो चुका था। इसमें बेवकूफी की बात यह थी कि लेबेजियातनिकोव को इस पर सचमुच गुस्सा आता था जबकि लूजिन को इसमें मजा आता था। इस वक्त तो वह खास तौर पर अपने नौजवान दोस्त का पारा चढ़ाना चाहता था।

'कल तुम्हारे साथ जो गलत बात हुई, तुम उसी की वजह से इतने बदमिजाज और चिड़चिड़े हो रहे हो,' लेबेजियातनिकोव आखिर फट पड़ा। अपनी 'आजादी' और अपने 'विरोधों' के बावजूद वह प्योत्र पेत्रोविच से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं रखता था और अभी भी वह उसके साथ एक हद तक उसी इज्जत के साथ पेश आता था जिसका कि वह पहले कभी बरसों तक आदी रह चुका था।

'अच्छा तो यह बताओ,' प्योत्र पेत्रोविच ने चिढ़ कर रोब से उसकी बात काटी, 'क्या तुम... या यूँ समझ लो, तुम क्या सचमुच उस जवान लड़की को इतनी अच्छी तरह जानते हो कि उसे एक मिनट के लिए यहाँ ले आओ... मैं समझता हूँ वे सब लोग कब्रिस्तान से लौट आए हैं... मैंने कदमों की आहट सुनी है... मैं उससे मिलना चाहता हूँ, उस जवान लड़की से।'

'किसलिए भला?' लेबेजियातनिकोव ने ताज्जुब से पूछा।

'बस यूँ ही। कल या परसों मैं यहाँ से चला जाऊँगा, इसलिए उससे बात करना चाहता था कि... हाँ, उससे जब मैं बात करूँ, तब तुम भी मौजूद रह सकते हो। दरअसल, बेहतर तो यही होगा कि तुम मौजूद रहो क्योंकि कौन जाने तुम क्या-क्या सोच बैठो।'

'मैं जरा भी नहीं सोचूँगा... मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया... और अगर उससे तुम्हें कुछ कहना है तो उसे यहाँ बुला लाना कोई मुश्किल काम नहीं। मैं अभी जाता हूँ और तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मैं बीच में नहीं आऊँगा।'

पाँच मिनट बाद लेबेजियातनिकोव सचमुच सोन्या को साथ लिए हुए अंदर आया। वहाँ आ कर सोन्या को ताज्जुब हो रहा था और वह हमेशा की तरह शरमाए जा रही थी। ऐसी परिस्थितियों में वह हमेशा शरमाती थी और नए लोगों से उसे हमेशा डर लगता था। यूँ वह बचपन से ही डरपोक थी, लेकिन अब तो और भी हो गई थी। ...प्योत्र पेत्रोविच उससे बड़ी 'शिष्टता और नर्मी' के साथ मिला, लेकिन उसमें कुछ दिल्लगी और बे-तकल्लुफी का भी मेल था, क्योंकि उसकी राय में सोन्या जैसी नौजवान और एक विशेष अर्थ में दिलचस्प हस्ती के साथ इसी तरह पेश आना उसके जैसे इज्जतदार और हैसियतवाले आदमी के लिए मुनासिब था। उसने जल्दी से उसको 'आश्वस्त कर दिया' और उसे मेज के दूसरी ओर अपने सामने बिठाया। सोन्या बैठी और उसने अपने चारों ओर एक नजर डाली - लेबेजियातनिकोव पर, मेज पर पड़े नोटों पर और एक बार फिर प्योत्र पेत्रोविच पर फिर उसकी नजरें उसी पर जमी रह गईं। लेबेजियातनिकोव दरवाजे की ओर जा रहा था। प्योत्र पेत्रोविच ने सोन्या को बैठे रहने का इशारा करके जा कर लेबेजियातनिकोव को रोका।

'रस्कोलनिकोव वहाँ है? आया है क्या?' उसने उससे चुपके से पूछा।

'रस्कोलनिकोव? हाँ। क्यों? हाँ, वहीं है... मैंने अभी उसे अंदर आते देखा... क्यों?'

'खैर, मैं तुमसे खास तौर पर अर्ज करना चाहता हूँ कि यहाँ हम लोगों के साथ रहो और मुझे अकेला छोड़ कर न जाओ, इस... इस लड़की के साथ। मुझे इससे बस कुछ बातें ही करनी हैं, पर भगवान जाने, लोग उसका क्या-क्या मतलब लगा बैठे। मैं नहीं चाहता कि रस्कोलनिकोव लोगों से वहाँ यह कहे... मेरा मतलब समझ रहे हो न?'

'हाँ, समझ रहा हूँ! समझ रहा हूँ!' लेबेजियातनिकोव ने कहा। मतलब उसकी समझ में एकाएक आ गया था। 'हाँ, तुम्हें इसका अधिकार है... लेकिन, मेरा अपना खयाल यह है कि तुम्हें इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन... फिर भी, तुम्हें इसका अधिकार है। मैं यहीं रुकता हूँ। मैं यहाँ खिड़की के पास खड़ा हूँ और तुम्हारी बातों में कोई बाधा नहीं आएगी... मैं समझता हूँ, तुम्हें इसका अधिकार है...'

प्योत्र पेत्रोविच वापस जा कर सोन्या के सामने सोफे पर बैठ गया और उसे गौर से देखने लगा। उसने रोबदार, बल्कि कुछ हद तक कठोर, मुद्रा धारण कर ली, गोया कह रहा हो कि 'किसी तरह की गलतफहमी में मत रहियेगा, मोहतरमा।' सोन्या बुरी तरह सिटपिटा गई।

'पहली बात यह है, सोफ्या सेम्योनोव्ना, कि तुम मेरी तरफ से अपनी माँ से माफी माँग लेना... ठीक है न कतेरीना इवानोव्ना तो तुम्हारी माँ जैसी ही हुई, कि नहीं?' प्योत्र पेत्रोविच ने रोब से, लेकिन काफी खुशदिली के साथ कहना शुरू किया। साफ तौर पर उसके इरादे दोस्ताना ही थे।

'जी हाँ; माँ जैसी ही हैं,' सोन्या ने डरते-डरते, जल्दी से जवाब दिया।

'तो तुम उनसे मेरी तरफ से माफी माँगोगी न मैं कुछ मजबूरियों की वजह से वहाँ नहीं आ सकूँगा। हालाँकि तुम्हारी माँ ने काफी आग्रह करके मुझे बुलाया है।'

'जी... मैं कह दूँगी... अभी।' यह कह कर सोन्या अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गई।

'ठहरो, बात अभी पूरी नहीं हुई,' प्योत्र पेत्रोविच ने उसकी सादगी पर और उसके शिष्टाचार के अज्ञान पर मुस्कराते हुए उसे रोका। 'सोफ्या सेम्योनोव्ना, अगर तुम यह समझती हो कि मैंने इतनी छोटी-सी बात के लिए, जिसका संबंध सिर्फ मुझसे है, तुम्हारे जैसे शख्स को तकलीफ देने की हिम्मत की है, मतलब यह हुआ कि मुझे तुम ठीक से जानती भी नहीं। मुझे एक काम और भी था।'

सोन्या जल्दी से बैठ गई। उसकी आँखें एक बार फिर मेज पर रखे स्लेटी और इन्द्रधनुषी रंगोंवाले नोटों पर जा कर पलभर के लिए टिकीं लेकिन उसने जल्दी से नजरें वहाँ से हटा कर प्योत्र पेत्रोविच पर जमा दीं। उसने अचानक महसूस किया कि किसी दूसरे के पैसे को घूरना बहुत ही बेहूदा बात थी, खास तौर पर उसके लिए। वह प्योत्र पेत्रोविच के हाथ में मौजूद सुनहरे फ्रेमवाले चश्मे को और उसकी बीच की उँगली में बड़ा-सा पीला पत्थर लगी बेहद खूबसूरत, बड़ी-सी अँगूठी को घूरने लगी। लेकिन अचानक उसने वहाँ से भी अपनी नजरें हटा लीं और जब उसकी समझ में यह न आया कि किस चीज पर नजरें जमाए तो सीधे प्योत्र पेत्रोविच के चेहरे पर नजरें जमा कर घूरने लगी। थोड़ी देर ठहर कर वह और भी रोब के साथ बोला :

'कल यूँ ही लगे हाथों मुझे बेचारी कतेरीना इवानोव्ना से दो-एक बातें करने का मौका मिला था। बस उतना ही मेरे लिए यह अंदाजा लगा लेने के वास्ते काफी था कि उसकी हालत यूँ कहें कि कुछ अस्वाभाविक-सी थी...'

'जी हाँ...' सोन्या ने जल्दी से हामी भरी।

'या अगर और भी सीधे-सादे और भी आसानी से समझ में आनेवाली भाषा में कहा जाए तो वे बीमार हैं।'

'जी, और भी सीधे-सादे और भी आम... जी हाँ, बीमार।'

'यही बात है। इसलिए उनकी इस हालत को देखते हुए इनसानियत के नाते या यूँ कहें कि दया के भाव से मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं उनकी कुछ खिदमत कर सकूँ। मुझे पता चला है कि अब इस बदहाल परिवार का बोझ पूरी तरह तुम्हारे कंधों पर है।'

'मैं एक बात पूछना चाहती हूँ,' सोन्या ने उठ कर खड़े होते हुए कहा, 'आपने कल उनसे पेन्शन मिल सकने के बारे में क्या कहा था इसलिए कि कल वे मुझसे कह रही थीं कि आपने वादा किया है आप उन्हें पेन्शन दिला देंगे। क्या वह बात सच थी?'

'कतई नहीं। दरअसल, यह तो पूरी तरह बेसर-पैर की बात है। मैंने तो सिर्फ इतना कहा था कि नौकरी के दौरान मरनेवाले अफसर की विधवा होने के नाते उन्हें थोड़ी-बहुत सरकारी मदद मिल सकती है - वह भी अगर उनकी पहुँच ऊपर किसी तक हो तो... लेकिन मुझे तो पता चला है कि तुम्हारे बाप ने पूरी मुद्दत तक नौकरी नहीं की थी और इधर काफी दिनों से तो वे नौकरी में भी नहीं थे। सच बात तो यह है कि अगर कोई उम्मीद हो भी तो बहुत थोड़ी ही होगी, क्योंकि तुम तो देख रही हो न, ऐसी हालत में उनकी मदद पाने का कोई हक दूर-दूर तक नहीं बनता। बल्कि तो बात इसकी उलटी ही है। तो वे अभी से पेन्शन के सपने देखते लगी हैं, क्यों? खी-खी-खी! बहुत तेज औरत हैं!'

'जी हाँ, वे पेन्शन की उम्मीद लगाए बैठी हैं क्योंकि वे आसानी से सबकी बात पर विश्वास कर लेती हैं। वे दिल की बहुत अच्छी हैं और इसीलिए हर बात पर भरोसा कर लेती हैं और... और... वे हैं ही ऐसी। ...जी ...आप उनकी बात का बुरा मत मानिएगा,' यह कह कर सोन्या एक बार फिर चल देने के लिए उठी।

'लेकिन तुमने वह बात तो सुनी ही नहीं, जो मुझे कहनी थी।'

'जी नहीं... नहीं सुनी,' सोन्या ने बुदबुदा कर कहा।

'तो बैठो फिर।'

सोन्या सिटपिटाई हुई थी और तीसरी बार भी बैठ गई।

'छोटे-छोटे अभागे बच्चों के साथ उनकी दुर्दशा को देखते हुए, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ, जहाँ तक मेरे बस में है, अगर मैं उनकी कोई खिदमत कर सकूँ तो मुझे खुशी होगी... मतलब कि जहाँ तक मेरे बस में है, उससे ज्यादा नहीं। मिसाल के लिए, उनके लिए चंदा जमा किया जा सकता है, कोई लॉटरी निकाली जा सकती है, या इसी तरह का कोई और काम किया जा सकता है, जैसा कि ऐसी हालत में रिश्तेदार या बाहर के लोग भी जो मदद करना चाहते हैं, अकसर इतना कर देते हैं। तुमसे मैं इसी बारे में बातें करना चाहता था। इतना तो किया ही जा सकता है।'

'जी, जी हाँ... भगवान आपको बहुत कुछ देगा,' सोन्या ने प्योत्र पेत्रोविच को ध्यान से देखते हुए, लड़खड़ाती जबान से कहा।

'इतना तो हो ही सकता है, लेकिन उसके बारे में बातें हम बाद में करेंगे... यानी कि हम यह काम आज भी शुरू कर सकते हैं। हम आज शाम को मिलेंगे और इस बारे में बातें करेंगे और जैसा कि लोग कहते हैं इसकी नींव डालेंगे। सात बजे मेरे पास आना। मुझे उम्मीद है कि आंद्रेई सेमेनोविच भी इस काम में हमारी मदद करेंगे। लेकिन... एक बात के बारे में मैं पहले से तुम्हें सावधान कर दूँ और सोफ्या सेम्योनोव्ना, मैंने उसी के लिए तुम्हें यहाँ आने की तकलीफ दी है। सच कहूँ तो मेरी राय में कतेरीना इवानोव्ना के हाथों में पैसे देना खतरे से खाली नहीं होगा। आज की दावत इसी बात का सबूत है। कल के लिए तो यूँ कह लो कि खाने को रोटी का टुकड़ा भी नहीं और... खैर, न किसी के पाँव में जूते हैं, न कोई और चीज है लेकिन आज के लिए जमैका की रम खरीदी गई है, मैं समझता हूँ 'मदीरा' भी है और... और कॉफी भी। उधर से गुजरते वक्त मैंने यह सब देखा है। कल तुम्हें पूरे परिवार के लिए नए सिर से बंदोबस्त करना पड़ेगा, जो कि मेरे कहे का बुरा मत मानना, बकवास-सी बात है। इसलिए मैं समझता हूँ कि चंदा इस तरह जमा होना चाहिए कि उस अभागिनी बेवा को पता न चले... सिर्फ मिसाल के लिए तुम्हें इसका पता रहे। ठीक है न?'

'मालूम नहीं... यह बस आज की बात है, जिंदगी में एक बार... उनकी बड़ी इच्छा थी कि मरनेवाले का सम्मान किया जाए, उसकी याद मनाई जाए... वैसे वे बहुत समझदार हैं... लेकिन आप जैसा ठीक समझें, मैं तो बहुत-बहुत... उन सबको... भगवान आपको बहुत कुछ देगा... और वे अनाथ बच्चे...'

सोन्या अपनी बात आगे न कह सकी और फूट-फूट कर रोने लगी।

'तो अच्छी बात है, इसका ध्यान रखना। इस वक्त तो मैं निजी तौर पर जो थोड़ा-बहुत दे सकता हूँ, तुम्हारे परिवार के लिए दे रहा हूँ... इसे ले लो। मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि इस सिलसिले में कहीं मेरा नाम लिया जाए। यह लो... एक तरह से मेरी अपनी भी परीशानियाँ हैं, सो मैं तो कुछ ज्यादा नहीं कर सकता...'

यह कह कर प्योत्र पेत्रोविच ने दस रूबल का एक नोट सावधानी से सीधा करके सोन्या को दे दिया। सोन्या ने नोट लिया और उसका चेहरा लाल हो गया। वह उछल कर उठ खड़ी हुई और मुँह-ही-मुँह में कुछ बुदबुदा कर चलने को तैयार हो गई। प्योत्र पेत्रोविच शालीनता के साथ उसे दरवाजे तक छोड़ने आया। आखिरकार वह परेशान और बौखलाई हुई कमरे से बाहर निकल गई और जब कतेरीना इवानोव्ना के पास पहुँची तो बुरी तरह घबराई हुई थी।

इस पूरी बातचीत के दौरान लेबेजियातनिकोव या तो खिड़की के पास खड़ा रहा या कमरे में टहलता रहा क्योंकि वह बातचीत में बाधा नहीं डालना चाहता था। सोनिया के जाने के बाद वह प्योत्र पेत्रोविच के पास पहुँचा और गंभीरता से उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया।

'मैंने सब कुछ सुना और देखा भी,' उसने आखिरी शब्दों पर जोर देते हुए कहा। 'यह होती है शराफत, मतलब कि इसे कहते हैं इनसानियत! तुम तो उस पर एहसान का बोझ भी नहीं डालना चाहते थे! मैं मानता हूँ कि सिद्धांत के सर पर मैं व्यक्तिगत खैरात की हिमायत नहीं कर सकता। इससे न सिर्फ यह कि बुराई दूर नहीं होती बल्कि उलटे उसे बढ़ावा मिलता है। फिर भी जो कुछ तुमने किया, वह सब मैंने देखा और देख कर मुझे खुशी हुई - हाँ-हाँ, मुझे यह बात अच्छी लगी।'

'उफ, यह सब बेकार की बात है,' प्योत्र पेत्रोविच ने एक अजीब चेहरा बना कर लेबेजियातनिकोव की ओर देखते हुए, जरा उत्तेजित हो कर कहा।

'नहीं, बेकार की बात नहीं है! जिस आदमी को खुद मुसीबत और परीशानी का सामना करना पड़ा हो, जैसा कि कल तुमने किया, दूसरों की मुसीबत देख कर उनके साथ हमदर्दी करे तो ऐसा आदमी, वह भले ही सामाजिक स्तर पर गलती कर रहा हो, इज्जत के काबिल होता है! मुझे तुमसे वाकई इसकी उम्मीद नहीं थी, प्योत्र पेत्रोविच, खास तौर पर इसलिए कि तुम्हारे विचार में... आह! तुम्हारे विचार भी तुम्हारे लिए कैसी मुसीबत हैं! मिसाल के लिए, कल लगे धक्के के सबब तुम कितने दुखी हो,' लेबेजियातनिकोव ने भोलेपन से हमदर्दी दिखाते हुए कहा; उसके दिल में प्योत्र पेत्रोविच के लिए फिर से प्यार उमड़ आया था। 'पर मेरे नेक दोस्त ...प्योत्र पेत्रोविच ...तुम्हें इस शादी से, इस कानूनी शादी से, क्या मिल जाएगा तुम शादी की इस कानूनियत में भला क्यों उलझे रहना चाहते हो? खैर, तुम चाहो तो पीट लो मुझे लेकिन मुझे खुशी है, सचमुच बहुत खुशी है, कि यह शादी नहीं हो पाई और तुम आजाद हो, कि अभी तक मानवजाति के लिए तुम बचे हुए हो। ...देखा तुमसे, मैंने दिल की बात साफ-साफ कही है!'

'इसलिए कि मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी 'बिन शादी की शादी' के चक्कर में पड़ कर मैं गले में पट्टा डाले रहूँ। दूसरों के बच्चे पालता रहूँ। मैं कानूनी शादी इसीलिए करना चाहता हूँ,' लूजिन को कुछ जवाब देना था, सो उसने यही जवाब दिया। लग रहा था कि वह विचारमग्न और किसी उलझन में है।

'बच्चे तुम बच्चों की बात कर रहे थे,' लेबेजियातनिकोव ऐसे चौंका जैसे बिगुल की आवाज पर लड़ाई का घोड़ा चौंकता है। 'बच्चे एक सामाजिक समस्या हैं और सबसे महत्वपूर्ण समस्या हैं, सो मैं मानता हूँ। लेकिन बच्चों की समस्या का एक दूसरा हल भी है। कुछ लोग तो बच्चों की जरूरत को मानते तक नहीं, न किसी ऐसी चीज को जिसका परिवार से कोई संबंध हो। बच्चों की बात हम बाद में करेंगे। रहा गले में पट्टे का सवाल तो मैं मानता हूँ कि वह मेरी कमजोरी है। यह बेहूदा, हुस्सारोंवाला पुश्किनवादी शब्द भविष्य के किसी शब्दकोश में मिलेगा भी नहीं। और यह तो बताइए श्रीमान कि ये पट्टे क्या होते हैं? इस शब्द का कैसा गलत प्रयोग किया है। क्या बकवास है! अपनी पसंद की शादी में पट्टे का कोई सवाल नहीं होगा! पट्टे तो कानूनी शादी के स्वाभाविक परिणाम होते हैं, एक तरह से गलती को ठीक करने का जरिया होते हैं, एक तरह से विरोध होते हैं। इसलिए इसमें अपमान की ऐसी कोई बात है भी नहीं... और अगर... थोड़ी देर के लिए दलील की सुविधा के लिए हम यह बेतुकी बात मान भी लें, तो अगर मैं कभी कानूनी शादी करूँगा तो तुम्हारे वे कमबख्त पट्टे डाल कर मुझे बहुत खुशी होगी! तब मैं अपनी बीवी से कह तो सकूँगा कि जानेमन, अभी तक मैं तुम्हें सिर्फ प्यार करता था, लेकिन अब तुम्हारी इज्जत करता हूँ क्योंकि तुममें विरोध करने की हिम्मत तो है! तो तुम हँस रहे हो... हँसो, क्योंकि तुम पूर्वाग्रहों से छुटकारा नहीं पा सकते! लानत है इन बातों पर! मेरी समझ में आ चुका कि कानूनी शादी में धोखा खाना आदमी को बुरा क्यों लगता है। लेकिन यह तो एक शर्मनाक नतीजा है ऐसी शर्मनाक स्थिति का, जिसमें दोनों का अपमान होता ही रहता है। जब खुल्लमखुल्ला पट्टे डाल लिए जाते हैं, जैसे कि मुक्त विवाह में तो वे बाकी भी नहीं रहते। उनका विचार मन में नहीं आता और वे पट्टे ही नहीं रहते। आपकी बीवी जब यह समझेगी कि आप उसकी खुशी का विरोध नहीं कर सकते कि आप उसके नए शौहर की वजह से उससे बदला लेने की बात सोच तक नहीं सकते, तभी वह यह साबित कर सकेगी कि वह आपकी कितनी इज्जत करती है। लानत है! कभी-कभी मैं भी सपना देखने लगता हूँ कि मजबूरन किसी आदमी से अगर मेरी शादी हो जाए... छिः! मतलब किसी औरत से हो जाए तो वह शादी कानूनी हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता... तो मेरी बीवी अपने लिए अगर खुद कोई प्रेमी न ढूँढ़े तो मैं उसके लिए ढूँढ़ दूँगा। कहूँगा : 'मेरी जान, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, लेकिन उससे भी बढ़ कर यह चाहता हूँ कि तुम मेरी इज्जत करो, इसलिए यह लो!' जो मैं कह रहा हूँ वह ठीक तो है न?'

प्योत्र पेत्रोविच उसकी बातें सुन कर धीरे-धीरे हँसता रहा, लेकिन इनमें उसे कोई खास मजा नहीं आ रहा था। वह तो शायद कुछ सुन भी नहीं रहा था। वह कुछ और ही सोच रहा था और आखिरकार लेबेजियातनिकोव का ध्यान भी इस तरफ गया। प्योत्र पेत्रोविच बेचैन-सा लग रहा था, हाथ मल रहा था और विचारों में डूबा हुआ था। लेबेजियातनिकोव को जब ये बातें बाद में याद आईं, तब उसकी समझ में आया कि वजह क्या थी...