अपराध और दंड / अध्याय 5 / भाग 4 / दोस्तोयेव्स्की

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रस्कोलनिकोव के दिल पर खुद अपनी मुसीबतों और दहशत का बोझ कुछ कम नहीं था फिर भी लूजिन के खिलाफ सोन्या की ओर से उसने बहुत डट कर और सक्रिय रूप से पैरवी की थी। लेकिन सबेरे से उस पर इतनी बहुत कुछ बीत चुकी थी कि वह सोन्या का पक्ष लेने की अदम्य इच्छा से तो ग्रस्त था ही, लग रहा था कि वह इस बात से भी खुश था कि उसे अपनी ही भावनाओं से दूर भागने का अवसर मिला था जो उसके लिए नाकाबिले बर्दाश्त होती जा रही थीं। अलावा इसके वह एक पल के लिए भी उस मुलाकात को नहीं भुला सका जो उसने उस शाम के लिए सोन्या के साथ तय की थी। इसके बारे में सोच कर ही वह रह-रह कर चिंतित हो उठता था : उसे उसको बताना ही पड़ेगा कि लिजावेता की हत्या किसने की थी। यह जानते हुए कि इसमें उसे कितनी तकलीफ होगी, उसने इस विचार को ही दिमाग से निकाल देने की कोशिश की। इसलिए कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ से चलते वक्त जब उसने ऊँचे स्वर में कहा कि 'तो सोफ्या सेम्योनोव्ना, देखता हूँ कि तुम अब क्या कहती हो?' तो उस वक्त भी वह लूजिन के खिलाफ अपनी थोड़ी ही देर पहले की जीत के फलस्वरूप बेहद जोश और जुनून से भरा हुआ, किसी से भी टक्कर लेने को तैयार रहा होगा। लेकिन उसके साथ एक अजीब-सी बात हुई। वह जब कापरनाउमोव के फ्लैट पर पहुँचा तो उसे अचानक लगा कि उसकी सारी शक्ति निचुड़ रही है। उस पर खौफ छा गया। वह झिझक कर दरवाजे पर रुका और अपने आपसे यह अजीब सवाल पूछा : 'क्या उसे यह बताना जरूरी है कि लिजावेता को किसने मारा है?' यह सवाल अजीब इसलिए था कि अचानक लगभग उसी पल उसने यह भी महसूस किया कि वह उसे बताए बिना रह नहीं सकता था, बल्कि अपने अपराध को स्वीकार करना जरा देर के लिए भी टाल नहीं सकता था। अभी तक उसे यह नहीं पता था कि यह काम असंभव क्यों था। वह इसे सिर्फ महसूस करता था, और होनी के सामने अपनी बेबसी के इस दुख देनेवाले एहसास ने उसे लगभग पूरी तरह कुचल कर रख दिया था। और अधिक विचारों तथा यातनाओं से छुटकारा पाने के लिए जल्दी से दरवाजा खोला और चौखट के पार सोन्या को देखने लगा। वह छोटी मेज पर कुहनियाँ टिकाए, दोनों हाथों में चेहरा छिपाए बैठी थी, लेकिन रस्कोलनिकोव को देखते ही जल्दी से उठ खड़ी हुई और उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ी, गोया वह उसके आने की राह ही देखती रही हो।

'आप न होते तो न जाने मेरा क्या हाल होता!' कमरे के बीच में ही दोनों के आमने-सामने होने पर उसने जल्दी से कहा। साफ पता चल रहा था कि उससे यह बात कहने के लिए वह बेहद बेचैन थी। इसी के लिए तो वह उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।

रस्कोलनिकोव मेज के पास जा कर उसकी कुर्सी पर बैठा, जिस पर से सोन्या उठी थी। वह उससे दो कदम पर आ कर खड़ी हो गई, ठीक उसी तरह जैसे उसने कल शाम को किया था।

'तो सोन्या' उसने कहा। अचानक उसे एहसास हुआ कि उसकी आवाज काँप रही है। 'तुम्हारे खिलाफ सारे मामले की बुनियाद, 'तुम्हारी समाजी हालत और उससे जुड़ी आदतों' पर थी। बात समझ में आई?'

वह दुखी हो गई।

'मेहरबानी करके आप मुझसे उस तरह बातें न करें, जैसे कल कर रहे थे!' सोन्या बीच में बोली। 'वही सिलसिला फिर से शुरू मत कीजिए। वैसे भी मुझ पर बहुत कुछ बीत चुकी है...'

उसकी यह शिकायत रस्कोलनिकोव को अच्छी न लगे, यह सोच कर वह जल्दी से मुस्कराई।

'मैं समझती हूँ, वहाँ से चली आ कर मैंने गलती की है। वहाँ इस वक्त न जाने क्या-क्या हो रहा होगा मैं तो वापस जानेवाली थी, लेकिन मुझे आपका खयाल आया... कि यहाँ आप शायद आएँ।'

उसने सोन्या को बताया कि अमालिया इवानोव्ना उन्हें घर से जबरन निकाल रही थी और कतेरीना इवानोव्ना 'न्याय की खोज में' भाग कर न जाने कहाँ चली गई थीं।

'हे भगवान!' सोन्या चीख उठी। 'चलिए, फौरन चलें!' यह कह कर उसने अपना कोट उठा लिया।

'हमेशा वही बात!' रस्कोलनिकोव चिढ़ कर जोर से चीखा। 'तुम बस उन्हीं के बारे में सोचती रहती हो! थोड़ी देर तो मेरे पास बैठो।'

'लेकिन... कतेरीना इवानोव्ना?'

'कतेरीना इवानोव्ना की फिक्र मत करो। वे घर से बाहर निकल गई हैं, इसलिए वे अब खुद तुम्हारे पास आएँगी,' उसने चिड़चिड़ेपन से कहा। 'अगर तुम यहाँ न मिली, तो कुसूर तुम्हारा अपना ही होगा...'

सोन्या तकलीफदेह उलझन में पड़ कर कुर्सी के किनारे बैठ गई। फर्श पर नजरें गड़ाए रस्कोलनिकोव चुपचाप बैठा था और किसी चीज के बारे में सोच रहा था।

'मान लो कि अब लूजिन कोई मुसीबत खड़ी करना नहीं चाहता,' उसने सोन्या की ओर देखे बिना कहना शुरू किया, 'लेकिन अगर वह करना चाहता और अगर इससे उसका फायदा होता तो वह तुम्हें जेल भी भिजवा सकता था, अगर लेबेजियातनिकोव और मैं वहाँ इत्तफाक से न होते। भिजवाता कि नहीं?'

'हाँ,' उसने कमजोर आवाज में कहा। 'जी हाँ,' उसने दुखी और बेचैन लहजे में एक बार फिर दोहराया।

'लेकिन सोचो तो सही, यह भी तो मुमकिन था कि मैं वहाँ न होता... और यह भी इत्तफाक की ही बात थी कि लेबेजियातनिकोव भी उसी वक्त वहाँ आन पहुँचा।'

सोन्या चुप रही।

'पर अगर उसने तुम्हें जेल भिजवा दिया होता तो क्या होता? याद है, कल मैंने तुमसे क्या कहा था?'

वह इस बार भी कुछ नहीं बोली। वह कुछ देर इंतजार करता रहा।

'मैंने तो सोचा था कि तुम फिर चीखोगी : बस, अब रहने दीजिए! ऐसी बातें मत कीजिए!' रस्कोलनिकोव हँसा, हालाँकि यह जबरदस्ती की हँसी थी। 'तुम फिर चुप हो?' उसने एक पल बाद पूछा। 'लेकिन हम लोगों को तो किसी चीज के बारे में बातें करनी हैं कि नहीं देखा, मेरी दिलचस्पी यह जानने में है कि तुम एक 'समस्या' को कैसे हल करती, जैसे कि लेबेजियातनिकोव कहता है।' (लग रहा था कि वह कुछ उलझता जा रहा है।) 'नहीं, मैं संजीदगी से बात कर रहा हूँ। मैं सचमुच संजीदा हूँ। एक पल के लिए सोचो, सोन्या कि तुम्हें लूजिन के तमाम इरादे पहले से पता होते (मेरा मतलब है, पक्के तौर पर पता होते), और उनकी वजह से कतेरीना इवानोव्ना और उसके छोटे-छोटे बच्चे तबाह हो जाते... और तुम भी (तुम तो यह समझती हो कि तुम्हारी वजह से जरा भी फर्क नहीं पड़ता, इसलिए मैंने यह 'भी' का टुकड़ा जोड़ दिया) ...और नन्ही पोलेंका भी... क्योंकि वह भी किसी दिन तुम्हारे ही रास्ते लग जाएगी। तो मुझे तुम यह बताओ : मान लो इन तमाम बातों का फैसला अचानक तुम्हारे ऊपर छोड़ दिया जाता - मेरा मतलब यह है कि वह या वे लोग जिंदा रहें या न रहें, लूजिन जिंदा रहे और अपनी बेहूदगियाँ करता रहे या नहीं, या कतेरीना इवानोव्ना को मर जाने दिया जाए या नहीं। तुम इस समस्या का फैसला किस तरह करोगी कि दोनों में से किसको मरना चाहिए मैं यह सवाल तुमसे पूछ रहा हूँ।'

सोन्या ने बेचैन हो कर उसे देखा। उसे शक था कि रस्कोलनिकोव ने जिस तरह उससे यह सवाल घुमा-फिरा कर पूछा था, उसमें कोई छिपा हुआ मतलब भी हो सकता था।

'मैं जानती थी आप मुझसे इसी तरह की कोई बात पूछेंगे,' सोन्या ने कुछ तलाश भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा।

'अच्छा, तो तुम जानती थीं! लेकिन मैं तो अब भी जानना चाहूँगा कि तब तुम्हारा फैसला क्या होता।'

'मुझसे आप ऐसी बात क्यों पूछ रहे हैं, जो कभी नहीं हो सकती थी?' सोन्या ने झिझकते हुए जवाब दिया।

'तो तुम्हारी राय में यही बेहतर है कि लूजिन को जिंदा रहने और बेहूदगियाँ करते रहने दिया जाए! तुममें इस मामले का फैसला करने की भी हिम्मत नहीं है?'

'लेकिन मुझे कैसे मालूम हो कि भगवान की इच्छा क्या है और आप मुझसे ऐसी बात पूछ ही क्यों रहे हैं, जो किसी को कभी पूछनी नहीं चाहिए? इस तरह के बेसर-पैर के सवाल क्यों कर रहे हैं इस बात का दारोमदार मेरे फैसले पर भला कैसे है मैं इस बात का फैसला करनेवाली कौन होती हूँ कि कौन जिंदा रहे और कौन न रहे?'

'आह, तो अगर तुम बीच में भगवान की इच्छा को घसीट कर ला ही रही हो तो फिर तो इसके बारे में कुछ और कहा भी नहीं जा सकता,' रस्कोलनिकोव चिढ़ कर बुदबुदाया।

'आप मुझे साफ-साफ बताइए कि आप क्या चाहते हैं,' सोन्या ने बेबसी से चिल्ला कर कहा। 'आप फिर इस सिलसिले को किसी दूसरी ओर ले जाना चाहते हैं... आप क्या मुझे तकलीफें ही देने के लिए आए हैं?'

वह अपने आप पर काबू न रख सकी और अचानक फूट-फूट कर रोने लगी। रस्कोलनिकोव उसे उदास और निराश मुद्रा में देखता रहा। इस तरह कोई पाँच मिनट बीत गए।

'तुम ठीक कहती हो सोन्या,' आखिरकार वह धीमे से बोला। अचानक उसमें एक परिवर्तन आ गया और उसने जान-बूझ कर रुखाई और बेबस चुनौती का जो रवैया अपना रखा था, वह गायब हो गया। आवाज भी अचानक कमजोर पड़ गई। 'कल मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हारे पास किसी बात की क्षमा माँगने नहीं आऊँगा, पर अभी मैं क्षमा ही तो माँग रहा था। देखो, जब मैं लूजिन की बातें या भगवान की इच्छा की बातें कर रहा था तो दरअसल अपनी ही बात कर रहा था... मैं तुमसे क्षमा ही माँग रहा था, सोन्या...'

रस्कोलनिकोव ने मुस्कराने की कोशिश की लेकिन उस मुरझाई हुई मुस्कराहट में एक तरह की कमजोरी थी, एक अधूरापन था। उसने सर झुका कर हाथों में चेहरा छिपा लिया।

लेकिन अचानक उसे सोन्या से गहरी नफरत की एक विचित्र और आश्चर्यजनक भावना ने आन दबोचा। उसने जल्दी से सर उठा कर सोन्या को गौर से देखा, मानो इस भावना से वह आश्चर्यचकित रह गया हो और डर गया हो। लेकिन उसे बस सोन्या की परीशानी और कष्टदायी चिंता से भरी आँखें ही दिखाई दीं। उसकी उस दृष्टि से प्यार था और रस्कोलनिकोव की सारी नफरत देखते-देखते गायब हो गई। वह नफरत थी ही नहीं; उसने एक भावना को कोई दूसरी भावना समझ लिया था। इसका मतलब सिर्फ यही था कि वह पल आ चुका था।

उसने एक बार फिर हाथों में अपना मुँह छिपा कर सर झुका लिया। अचानक उसका रंग पीला पड़ गया। वह कुर्सी से उठा और सोन्या को देखने लगा, पर एक शब्द कहे बिना ही उसके पलँग पर धम से बैठ गया।

उसके दिमाग में वह पल किसी रहस्यमय ढंग से ऐन उसी पल की तरह था, जब वह उस बुढ़िया के पीछे खड़ा था और कुल्हाड़ी को फंदे में से छुड़ाते हुए उसने महसूस किया था कि 'उसके पास खोने के लिए अब एक पल का समय भी नहीं है।'

'बात क्या है?' सोन्या ने सहम कर पूछा।

रस्कोलनिकोव से कुछ भी कहते न बना। उसने जिस ढंग से उसे बताने की योजना बनाई थी, वह ढंग यह नहीं था। उसे तो खुद भी नहीं मालूम था कि इस समय उसे हो क्या रहा था। सोन्या धीरे-धीरे उसके पास गई, पलँग पर उसकी बगल में बैठ गई और उस पर नजरें जमाए निहोरा करती रही। उसका दिल धड़क रहा और डूबा जा रहा था। स्थिति बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। उसने अपना चेहरा, जिस पर मौत का पीलापन छाया हुआ था, सोन्या की ओर घुमाया और कुछ कहने की कोशिश की लेकिन कोई आवाज नहीं निकली, बस उसके होठ हिलते रहे। सोन्या बुरी तरह डर गई।

'बात क्या है?' सोन्या ने सिमट कर कुछ दूर हटते हुए दोहराया।

'कुछ भी नहीं, सोन्या। डरो नहीं... यह सब बकवास है! अगर सोचो तो यह सभी कुछ बकवास है,' वह इस तरह बुदबुदाया जैसे उसे पूरी तरह होश न हो। 'मैं तुम्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए यहाँ आया ही क्यों?' उसने अचानक सोन्या की ओर देख कर कहा। 'मैं क्यों आया? क्यों? अपने आपसे मैं यही सवाल करता रहता हूँ, सोन्या...'

वह अपने आपसे शायद यही सवाल पंद्रह मिनट पहले भी पूछ रहा था। लेकिन इस वक्त उसने यही बात बेबसी की हालत में कही। उसे तो ठीक से यह भी नहीं मालूम था कि वह कह क्या रहा है। उसे बस यह महसूस हो रहा था कि उसका सारा बदन काँप रहा था।

'आह, आप खुद को कितनी तकलीफ दे रहे हैं!' सोन्या ने उसे गौर से देखते हुए बेहद आहत हो कर कहा।

'यह तो कुछ भी नहीं है! ...इधर देखो, सोन्या,' वह अचानक कुछ उदासी और कमजोरी से एक-दो सेकेंड तक मुस्कराता रहा, 'याद है, कल तुम्हें मैं क्या बताना चाहता था?'

सोन्या बेचैनी से इंतजार करती रही।

'यहाँ से जब मैं जा रहा था तो कहा था कि शायद मैं तुमसे हमेशा के लिए विदा हो रहा हूँ, लेकिन आज अगर मैं यहाँ आया तो मैं तुम्हें बता दूँगा कि... लिजावेता को किसने मारा।'

सोन्या एकाएक सर से पाँव तक दहल उठी।

'तो मैं तुम्हें वही बात बताने आया हूँ।'

'तो कल आपका सचमुच यही मतलब था...' उसने बड़ी कठिनाई से, धीमे स्वर में कहा।

'लेकिन आपको कैसे पता?' सोन्या ने गोया अचानक अपने आपको सँभालते हुए, जल्दी से कहा।

वह बुरी तरह हाँफ रही थी। रंग लगातार पीला पड़ता जा रहा था।

'मुझे पता है।'

सोन्या एक मिनट चुप रही।

'क्यों? क्या उस आदमी का पता चल गया है?' उसने दबी जबान से पूछा।

'नहीं, उन लोगों को नहीं चला है।'

'तो आपको वह कैसे पता हो सकता है?' उसने एक बार फिर कोई एक मिनट रुक कर और एक बार फिर इतनी धीमी आवाज में पूछा कि सुनना भी मुश्किल था।

रस्कोलनिकोव ने उसकी और घूम कर उसे भेदती हुई नजरों से देखा।

'अंदाजा लगाओ,' उसने उसी विकृत और कमजोर मुस्कराहट के साथ कहा।

सोन्या थरथर काँपने लगी।

'लेकिन आप... आप मुझे... इस तरह क्यों डरा रहे हैं?' सोन्या ने बच्चों की तरह मुस्कराते हुए कहा।

'तुम्हारी समझ में अभी भी नहीं आ रहा? मैं उसका बहुत अच्छा दोस्त रहा हूँगा अगर... अगर मुझे मालूम है तो,' रस्कोलनिकोव उसकी तरफ से एक पल को भी नजरें हटाए बिना कहता रहा। लग रहा था वह नजरें हटा भी नहीं सकता था। 'उसका इरादा लिजावेता को मारने का था भी नहीं। उसने... उसने उसे तो बस इत्तफाक से मार डाला था। वह तो... उस बुढ़िया को मारना चाहता था... तब जबकि वह... अकेली हो और... वह वहाँ गया... कि इतने में लिजावेता आ गई सो... सो उसे भी उसने मार डाला।'

एक और भयानक मिनट बीता। दोनों अभी तक एक-दूसरे को देखे जा रहे थे।

'तुम अब भी अंदाजा नहीं लगा सकतीं?' उसने अचानक पूछा। उसे लगा, उसकी हालत उस आदमी जैसी है जो गिरजाघर के ऊँचे मीनार से नीचे कूदनेवाला हो।

'न...हीं,' सोनिया ने इतने धीरे से कहा कि मुश्किल से ही सुनाई पड़ा।

'देखो अच्छी तरह।'

यह बात कहते समय एक और पुरानी जानी-पहचानी भावना ने उसके हृदय को बर्फ की तरह जमा दिया : उसने सोनिया की ओर देखा और उसके चेहरे में अचानक लिजावेता का चेहरा झाँकता महसूस हुआ। उसे उस दिन शाम को लिजावेता के चेहरे का उस वक्त का भाव अच्छी तरह याद था जब वह कुल्हाड़ी ले कर उसकी ओर बढ़ रहा था और वह धीरे-धीरे दूर खिसकती हुई दीवार की ओर सरकती जा रही थी। उसने अपना हाथ सामने की ओर तान रखा था, चेहरे पर बच्चों जैसा भय था, और वह उन बच्चों जैसी लग रही थी जो अचानक किसी चीज से सहम जाते हैं, बेहरकत हो कर हैरानी से उसी चीज को देखते रहते हैं जिससे उन्हें डर लगता है, सिमट कर पीछे हट जाते हैं, अपने छोटे-छोटे हाथ आगे की ओर तान लेते हैं, और उनकी आँखों में आँसू छलक आते हैं। सोन्या के साथ भी इस समय लगभग ऐसा ही हो रहा था : कुछ देर तक वह रस्कोलनिकोव को बेबसी से देखती रही, उसके चेहरे पर भय का वही भाव था। अचानक उसने अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ा कर उँगलियों से उसका सीना हलके से छू लिया और धीरे-धीरे पलँग पर से उठने लगी। वह उससे दूर हटती रही और उसे लगातार नजरें और भी गड़ा कर घूरती रही। सोन्या के आतंकित होने का यह भाव अचानक रस्कोलनिकोव में दाखिल हो गया और उसके चेहरे पर भी आतंक का वही भाव पैदा हो गया। वह भी उसे उसी तरह और बच्चों जैसी मुस्कराहट के साथ घूरने लगा।

'कुछ अंदाजा लगा?' उसने आखिरकार फुसफुसा कर पूछा।

'हे भगवान!' उसके मुँह से एक भयानक चीख निकली। वह बेबस पलँग पर गिरी और तकियों में अपना मुँह छिपा लिया। लेकिन एक ही पल बाद वह जल्दी से उठ बैठी, झपट कर उसकी ओर बढ़ी, और उसके दोनों हाथ अपनी पतली-पतली उँगलियों में कस कर भींच लिए, गोया एक शिकंजे में जकड़ लिए हों। वह उसे एकटक घूरती रही, मानो उसकी नजरें रस्कोलनिकोव के चेहरे पर चिपक कर रह गई हों। घोर निराशा की दृष्टि से उस पर एक आखिरी नजर डाल कर सोन्या ने कम-से-कम अपने लिए आशा की कोई किरण खोजने और उसे पकड़े रहने की कोशिश की। लेकिन अब कहीं कोई उम्मीद बाकी नहीं थी, कोई संदेह नहीं रह गया था... वह बात सच थी! वास्तव में, काफी अरसा बाद उसने उस पल को जब याद किया तो उसे इस बात पर आश्चर्य हुए बिना नहीं रहा कि उसने फौरन यह कैसे मान लिया था कि उसके बारे में कोई भी संदेह नहीं हो सकता था मिसाल के लिए, वह यह नहीं कह सकती थी कि उसे किसी तरह का पूर्वाभास था। फिर भी जिस पल रस्कोलनिकोव ने वह बात कही थी, उस पल सोन्या को बरबस ऐसा लगा था कि सचमुच उसे इस बात का पूर्वाभास हुआ था।

'रहने दो, सोन्या, बस बहुत हुआ! मुझे सताओ मत,' उसने दुखी हो कर उससे प्रार्थना की।

उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह बात उसे इस तरह बताएगा, लेकिन सब कुछ इसी तरह बस हो गया।

सोन्या उछल कर खड़ी हो गई, गोया उसे यह भी न मालूम हो कि वह क्या कर रही है। अपने हाथ मलते हुए वह कमरे के बीच तक गई; लेकिन फिर फौरन ही जल्दी से वापस आ कर उसकी बगल में उसके कंधे से अपना कंधा लगभग सटा कर बैठ गई। अचानक वह इस तरह चौंकी जैसे उसे किसी ने छूरा भोंक दिया हो, और जोर से चीख कर यह जाने बिना कि वह ऐसा क्यों कर रही है, उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गई।

'आपने अपनी क्या हालत बना ली है?' वह घोर निराशा में डूबे स्वर में चीखी। उछल कर खड़े होते हुए झपट कर वह उसकी गर्दन से चिपट गई और उसे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया।

रस्कोलनिकोव ने अपने आपको उसकी बाँहों से छुड़ाया और उदासी भरी मुस्कराहट से उसकी ओर देखता रहा।

'तुम भी अजीब हो, सोन्या, मेरे वह बात बता देने के बाद भी मुझे गले लगा रही हो और प्यार कर रही हो। तुम जानती भी नहीं कि तुम कर क्या रही हो।'

'मैं नहीं समझती कि कोई तुमसे ज्यादा दुखी इस दुनिया में होगा!' वह जुनून भरे लहजे में चिल्लाई, सुना भी नहीं कि उसने क्या कहा था, और अचानक फूट-फूट कर रोने लगी।

रस्कोलनिकोव के दिल में एक ऐसी भावना उमड़ी, जिसे वह बहुत समय पहले से भुला चुका था और उसका दिल एकाएक मोम की तरह पिघल उठा। उसने इस भावना का विरोध करने की कोई कोशिश नहीं की। आँखों में आँसू छलक आए और पलकों पर आ कर टिक गए।

'मुझे छोड़ तो नहीं जाओगी, सोन्या?' उसने लगभग आशा के लहजे में उसकी ओर देखते हुए कहा।

'नहीं-नहीं, कभी नहीं, और कहीं भी नहीं!' सोन्या ने जज्बाती हो कर कहा। 'तुम जहाँ भी जाओगे, मैं साथ जाऊँगी! हे भगवान! ...कैसी अभागी हूँ मैं भी! ...तुमसे पहले मैं क्यों नहीं मिली? तुम पहले क्यों नहीं मेरे पास आए? हे भगवान!'

'अब तो आ गया!'

'अब अब हम क्या कर सकते हैं ...हम दोनों को एक-दूसरे के साथ रहना है, एक-दूसरे के साथ,' वह बार-बार दोहराती रही, गोया उसे इस बात का एहसास भी न हो कि वह कह क्या रही है। उसने एक बार फिर उसे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया। 'मैं तुम्हारे पीछे-पीछे साइबेरिया भी जाऊँगी।'

सोन्या के अंतिम शब्द रस्कोलनिकोव के दिल में तीर की तरह लगे। उसके होठों पर वही पुरानी, तिरस्कार भरी मुस्कान लौट आई।

'मैं तो शायद साइबेरिया जाने की सोच भी नहीं रहा सोन्या!' उसने कहा।

सोन्या ने जल्दी से उसे एक नजर देखा।

उस दुखी प्राणी पर तरस के उस शुरुआती जज्बात भरे और दुखदायी पल के बाद, मन में हत्या का भयानक विचार उठते ही सोन्या एक बार फिर गूँगी हो गई। उसकी आवाज के बदले हुए लहजे से उसे इस बात का एक बार फिर एहसास हुआ कि वह हत्यारा है। वह हैरान हो कर उसे देखती रही। अभी तक उसे कुछ भी नहीं मालूम था, यह भी नहीं कि जो कुछ हुआ था, वह क्यों हुआ था, किसलिए हुआ था या कैसे हुआ था। अब ये सारे सवाल उसके मन में एक साथ एक जोरदार लहर की तरह उठे और एक बार फिर वह विश्वास न कर सकी कि, 'वह हत्यारा है! क्या ऐसा हो सकता है?'

'यह सब आखिर है क्या? मैं कहाँ हूँ?' सोन्या ने बौखला कर कहा गोया उसके हवास अभी तक ठिकाने न आए हों। 'लेकिन तुम कैसे... तुम्हारे जैसा प्राणी ऐसा काम कर कैसे सका! आखिर यह सब क्या है?'

'देखो, बात यह है... मैं सिर्फ डाका डालना चाहता था। मेरे हाल पर रहम खा कर इन बातों को जाने ही दो, सोन्या,' वह थके हुए लहजे में झुँझला कर बोला।

सोन्या स्तब्ध खड़ी थी, लेकिन अचानक ऊँचे स्वर में बोली :

'तुम भूख थे, थे न? तुमने... तुमने यह सब अपनी माँ की मदद करने के लिए किया था, है न?'

'नहीं सोन्या, नहीं,' उसने बुदबुदा कर कहा और मुँह फेर कर सर झुका लिया। 'मैं इतना भूखा भी नहीं था और... मैं अपनी माँ की मदद जरूर करना चाहता था, लेकिन... लेकिन वह भी वजह नहीं थी। ...मेरे जख्म को मत कुरेदो, सोन्या!'

'लेकिन यह बात सचमुच सच है?' सोन्या आश्चर्य से चिल्लाई। 'हे भगवान, यह बात कैसे सच हो सकती है तुम्हारी बात पर विश्वास कौन करेगा यह कैसे मुमकिन है कि तुम अपनी आखिरी पाई तक दूसरों को दे दो और साथ ही हत्या और डाके के अपराधी भी बनो मैं समझी!' उसने अचानक चौंक कर कहा। 'वह पैसा जो तुमने कतेरीना इवानोव्ना को दिया था... वह पैसा... हे भगवान! क्या वह पैसा भी...'

'नहीं, सोन्या,' उसने जल्दी से उसकी बात काट कर कहा, 'वह पैसा वहाँ से नहीं आया था। तुम उसकी वजह से परेशान न हो। पैसे मेरी माँ ने यहाँ के एक व्यापारी के हाथ भिजवाए थे, और वह रकम मुझे तब मिली थी, जब मैं बीमार था और मैंने वह उसी दिन दे भी दी थी... रजुमीखिन ने देखा था... मेरी तरफ से उसी ने पैसे लिए थे... मेरा पैसा था वह... मेरा अपना।'

सोन्या विस्मय से आँखें फाड़े उसकी बात सुनती रही और समझने की कोशिश करती रही।

'जहाँ तक उस पैसे का सवाल है,' उसने बहुत धीमे स्वर में, मानो कुछ सोचते हुए कहा, 'मुझे... दरअसल, मुझे यह भी नहीं मालूम कि उसमें कोई पैसा था भी कि नहीं। मैंने उसकी गर्दन से मखमली चमड़े का बना हुआ एक बटुआ लिया था... उसमें कोई चीज इस तरह ठूँस कर भरी हुई थी कि वह फटा जा रहा था... काफी भारी था। ...लेकिन मैंने उसे खोल कर देखा भी नहीं; शायद इसका वक्त मिला ही नहीं... और जो चीजें मैंने ली थीं वे जंजीरें और दूसरी छोटी-मोटी चीजें थीं... उन्हें मैंने अगले ही दिन सबेरे वोज्नेसेंस्की प्रॉस्पेक्ट पर एक अहाते में उस बटुए के साथ ही पत्थर के नीचे गाड़ दिया था। वे अब भी वहीं हैं...'

सोन्या उत्सुकता से सुनती रही।

'लेकिन तुमने, जैसा कि तुमने अभी कहा था, अगर यह काम सिर्फ... डाका डालने के लिए किया था, तो तुमने कोई चीज ली क्यों नहीं?' उसने डूबते की तरह तिनके का सहारा लेते हुए जल्दी से पूछा।

'पता नहीं... अभी तक मैं अपना मन पक्का नहीं कर सका हूँ कि वह पैसा लूँ या न लूँ,' उसने एक बार फिर गोया सारी बातों के बारे में सोचते हुए कहा, और अपने आपको सँभाल कर अचानक मुस्कराया। 'मैं बहुत बकवास कर रहा हूँ, है न?'

सोन्या के दिमाग में यह विचार अचानक बिजली की तरह कौंधा : 'क्या यह पागल है' लेकिन उसने फौरन ही इसे अपने दिमाग से निकाल दिया : नहीं, बात कुछ और है। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।

'जानती हो, सोन्या,' उसने कहा, गोया उसके मन में अचानक कोई प्रेरणा जागी हो, 'क्या तुम्हें पता है कि अगर मैंने उसकी हत्या सिर्फ भूखे होने के सबब की होती,' वह एक-एक शब्द पर जोर दे कर, रहस्यमय ढंग से उसे देखते हुए लेकिन सच्चाई से कहता रहा, 'तो मैं इस वक्त... खुश हो रहा होता! मैं चाहता हूँ कि यह बात तुम समझो!'

'और,' एक पल बाद वह कुछ हताश हो कर बोला, 'तुम्हें इससे क्या कि मैं इस बात को मानूँ या न मानूँ कि मैंने गलती की है? मुझ पर इस तरह की खोखली विजय पा कर तुम्हें क्या मिलेगा? आह, सोन्या, क्या मैं इसीलिए यहाँ आया था?'

सोन्या फिर कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसने अपने आपको रोक लिया।

'मैंने कल तुमसे साथ चलने को कहा था... इसीलिए कि मेरे पास अब तुम्हारा ही सहारा बचा है।'

'कहाँ चलने को?' सोन्या ने दबी जबान से पूछा।

'डाके डालने और कत्ल करने नहीं, चिंता मत करो,' वह तल्खी से मुस्कराया। 'हम एक-दूसरे से अलग हैं... कितने अलग। और सोन्या, तुम्हें पता है, मैंने अभी इसी पल, महसूस किया कि मैं तुमसे कहाँ साथ चलने को कह रहा था। मैंने कल जब पूछा था, तब मुझे खुद नहीं मालूम था। मैं तुम्हारे पास बस एक चीज के लिए आया था : मैं चाहता था कि तुम मुझे छोड़ न जाना। तुम मुझे छोड़ तो नहीं जाओगी सोन्या?'

सोन्या ने उसका हाथ धीरे-से दबाया।

'आखिर क्यों, मैंने उसे बताया क्यों? मैंने उसके सामने हर बात मान क्यों ली?' एक ही मिनट बाद वह घोर निराशा से बेचैन हो कर चिल्लाया और सोन्या की ओर बेहद दर्द के साथ देखता रहा। 'सोन्या, तुम मुझसे जरूर कुछ बातों की वजह जानना चाहती होगी। तुम बैठी इसी का इंतजार तो कर रही हो। यह बात तो मुझे दिखाई दे रही है, लेकिन मैं तुम्हें भला क्या बता सकता हूँ तुम्हारी समझ में कुछ भी नहीं आएगा। बेकार अपना दिल दुखाओगी... मेरी खातिर! फिर वही बात! रोने लगीं और मुझे गले लगाने लगीं! किसलिए गले लगा रही हो मुझे? इसीलिए न कि वह बोझ मैं अकेले बर्दाश्त न कर सका और उसे किसी दूसरे के कंधों पर डाल देने के लिए यहाँ चला आया? क्यों न तुम भी तकलीफ उठाओ? इसी से मुझे कुछ राहत मिलेगी! ऐसे कमीने आदमी को तुम प्यार कैसे कर सकती हो?'

'लेकिन क्या तुम तकलीफ नहीं उठा रहे हो?' सोन्या ने रुँधी हुई आवाज में पूछा।

रस्कोलनिकोव पर वही भावना एक बार फिर छा गई। एक पल के लिए उसका दिल पसीज उठा।

'सोन्या, मेरा दिल बहुत मैला है! यह बात याद रखना : शायद इससे बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ में आ जाएँ। मैं यहाँ इसलिए आया कि मैं दुष्ट हूँ। ऐसे भी लोग हैं जो न आते। लेकिन मैं कायर हूँ और... और कमीना भी हूँ! लेकिन... तुम चिंता न करो! असल बात यह नहीं है... मैं सब कुछ कह देना चाहता हूँ, लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि शुरू किस तरह करूँ...'

कुछ देर ठहर कर वह सोचता रहा।

'आह, हम दोनों एक-दूसरे से कितने अलग हैं,' वह फिर दुखी हो कर बोला। 'बिलकुल एक जैसे नहीं हैं। आखिर क्यों, मैं यहाँ क्यों आया... इसके लिए अपने आपको मैं कभी माफ नहीं करूँगा!'

'नहीं, नहीं, मुझे खुशी है कि तुम आए!' सोन्या ने जज्बाती हो कर कहा। 'अच्छा यही है कि मुझे मालूम हो जाए! कहीं बहुत अच्छा!'

रस्कोलनिकोव ने आहत दृष्टि से उसे देखा।

'और अगर वैसा था भी तो क्या हुआ,' वह बोला, जैसे किसी फैसले पर पहुँच चुका हो। 'हाँ, यकीनन यही बात थी! सुनो : मैं नेपोलियन बनना चाहता था और इसलिए मैंने उस बुढ़िया का खून कर दिया... अब तुम्हारी समझ में आया?'

'न...हीं,' सोन्या ने भोलेपन से और दब्बूपन के साथ धीमे स्वर में कहा, 'लेकिन... तुम कहते रहो! मैं समझ जाऊँगी, अपने दिल की गहराई से मैं समझ जाऊँगी!' वह उससे प्रार्थना करती रही।

'समझ जाओगी खूब, तो देखते हैं!'

वह देर तक चुप रहा और कुछ सोचता रहा।

'देखो, हुआ यह कि एक दिन मैंने अपने आपसे सवाल पूछा : अगर मेरी जगह, मिसाल के लिए, नेपोलियन होता और अपना जीवन आरंभ करने के लिए उसके पास न तूलों होता न मिस्र होता, और न ही पार करने को कोई ब्लांक पहाड़ होता, बल्कि इन तमाम शानदार और भारी-भरकम चीजों की बजाय कोई खूसट बुढ़िया होती, किसी छोटे-मोटे सरकारी नौकर की विधवा, जिसके संदूक से पैसा निकालने के लिए (समझीं न, अपना जीवन आरंभ करने के लिए) उसका खून करना जरूरी होता। तो अगर उसके सामने कोई दूसरा रास्ता न होता तो क्या वह यह काम करने का फैसला करता? क्या यह काम करने से उसे भी इसलिए नफरत होती कि यह काम किसी भी तरह शानदार नहीं था और... और फिर पाप का भी काम था! आज मैं तुम्हें यह बता दूँ कि इस 'सवाल' में मैंने काफी लंबे वक्त तक सर खपाया यहाँ तक कि आखिर में जब मेरे दिमाग में यह बात आई (न जाने कैसे एकदम अचानक) कि उसे बिलकुल नफरत न होती, बल्कि यह बात उसके मन में उठती भी नहीं कि यह काम कोई शानदार काम नहीं था, तो मुझे बेहद शर्म आई। सच तो यह है कि उसकी समझ में भी नहीं आता कि आखिर इसमें इतना आगा-पीछा सोचने की बात क्या है। और अगर उसके सामने कोई दूसरा रास्ता न होता तो जरा भी संकोच किए बिना वह उसका गला घोंट देता और इस काम में किसी तरह की कोई कसर न छोड़ता... खैर, आखिरकार ऐसा वक्त आया कि मुझे भी कोई संकोच नहीं रहा और... और मैंने उसका खून कर दिया... उसी आदमी के कदमों पर चलते हुए जिसे मैं अपना आदर्श मानता था... वह सारी घटना ठीक इसी तरह हुई! तुम्हें यह बात अजीब लगती है क्या हाँ, सोन्या, अजीब बात तो यह है कि ठीक यही हुआ था...'

सोन्या को यह बात हरगिज अजीब नहीं लग रही थी।

'मुझे साफ-साफ बताओ... कोई मिसाल दिए बिना,' उसने और भी दब्बूपन से और इतने धीमे लहजे में कहा कि ठीक से सुनाई भी नहीं देता था।

रस्कोलनिकोव उसकी ओर घूमा उदास भाव से उसे देखा, और उसके हाथ थाम लिए।

'तुम भी ठीक ही कहती हो, सोन्या। यह सब कुछ बकवास है... कोरी बातें। देखो, तुम जानती हो कि मेरी माँ के पास कुछ भी नहीं है, लगभग कुछ भी नहीं। मेरी बहन ने काफी अच्छी शिक्षा पाई, लेकिन वह तो बस किस्मत की बात थी, और इसके बाद भी उसे बच्चों की देखभाल करने की ही नौकरी मिली। उन लोगों ने सारी उम्मीदें मुझसे लगा रखी थीं... सिर्फ मुझसे। मैं पढ़ रहा था। लेकिन मैं यूनिवर्सिटी का खर्च नहीं जुटा सकता था, और इसलिए मजबूरन मुझे कुछ अरसे के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अगर वह सिलसिला चलता रहता तो शायद (अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहता तो।) दस-बाहर साल में मुझे हजार रूबल सालाना पर कहीं पढ़ाने की या किसी सरकारी दफ्तर की नौकरी मिल जाती,' वह यूँ बोलता रहा जैसे सब कुछ रटा-रटाया बोल रहा हो। उस वक्त तक मेरी माँ चिंता करते-करते और दुख झेलते-झेलते पूरी तरह टूट चुकी होती और मैं उन्हें भी सुख न पहुँचा पाता, जहाँ तक मेरी बहन का सवाल है... उसकी हालत इससे भी बदतर हो सकती थी और इससे बहरहाल क्या फायदा कि जिंदगी में हर चीज अपने पास से कतरा कर निकल जाए और हम देखते रह जाएँ, या हर चीज की ओर से मुँह फेर लें मैं अपनी माँ को भूल जाऊँ या मिसाल के लिए, मेरी बहन पर अपमानों की जो बौछार की गई है, उन्हें चुपचाप सर झुका कर पी जाऊँ मैं ऐसा क्यों करूँ... इसलिए कि मैं उन्हें दफन कर दूँ और अपने कंधों पर नई जिम्मेदारियाँ सँभाल लूँ... बीवी और बच्चे... और फिर उन्हें भी कंगाल छोड़ जाऊँ तो इसलिए... इसलिए मैंने फैसला किया कि उस बुढ़िया का पैसा हथिया लूँ ताकि अपनी माँ को परेशान किए बिना यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी कर सकूँ, यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद कुछ बरस तक अपनी जिंदगी सँवारने के लिए उस पैसे की मदद लूँ, और यह सब कुछ अच्छी तरह करूँ, बड़े पैमाने पर करूँ, ताकि अपनी जिंदगी के लिए जो काम भी चुनूँ, उसमें कामयाबी का पूरा भरोसा रहे और मैं किसी के सहारे का मुहताज न रहूँ। ...तो ...तो, यही है सारा किस्सा। ...बेशक मैंने ...मैंने उस बुढ़िया का खून करके बुरा किया ...और ...और यह ...बस इतना ही काफी है!'

उसने बड़ी मुश्किल से अपना किस्सा खत्म किया। उसे लगा, वह थक कर चूर हो चुका है और उसने अपना सर झुका लिया।

'ऐसा नहीं है! नहीं, ऐसा नहीं है!' सोन्या ने निराशा में डूबे स्वर में चिल्ला कर कहा। 'तुम भला... नहीं, ऐसा नहीं, बिलकुल नहीं है!'

'तो तुम खुद भी यही समझती हो कि ऐसा नहीं है! ...फिर भी मैंने अपने दिल की बात कही है! जो सच्चाई थी, मैंने तुम्हें वही बताई है।'

'आह, यह कैसी सच्चाई है, भगवान?'

'मैंने सिर्फ एक जूँ को मारा है, सोन्या। एक बेकार, गंदी, नुकसान पहुँचानेवाली जूँ को।'

'इनसान... जूँ है क्या'

'मैं बिलकुल जानता हूँ कि वह जूँ नहीं थी,' उसने सोन्या की ओर अजीब निगाहों से देखते हुए जवाब दिया। 'लेकिन सोन्या, मैं समझता हूँ कि मैं सरासर बकवास कर रहा हूँ,' उसने कहा। 'मैं एक अरसे से बकवास करता आ रहा हूँ। बात वह नहीं है ...तुम ठीक कहती हो। इस सिलसिले में कुछ एकदम दूसरे कारण भी काम कर रहे थे। एक जमाने से मैंने किसी से बात तक नहीं की है, सोन्या। ...इस वक्त मेरा सर दर्द के मारे फटा जा रहा है।'

उसकी आँखों में बुखारवाली चमक थी। वह लगभग सरसाम जैसी हालत में बकबका रहा था। होठों पर एक बेचैन मुस्कराहट नाच रही थी। इस उत्तेजना की दशा से बस इसी बात की झलक मिलती थी कि वह थक कर किस कदर चूर हो चुका है। सोन्या ने महसूस किया कि वह किस कदर तकलीफ झेल रहा है। उसका सर भी चकराने लगा था। वह बातें भी कितने अजीब ढंग से कर रहा था : उसकी बातों का कुछ-कुछ मतलब तो समझ में आता था, लेकिन... 'हे भगवान! यह कैसे... यह कैसे हो सकता है?' घोर निराशा से चूर, वह अपने हाथ मलने लगी।

'नहीं, सोन्या, यह बात नहीं है!' उसके अचानक अपना सर उठा कर फिर कहना शुरू किया, गोया उसके विचारों में कोई नया मोड़ आ गया हो जिससे वह नए सिरे से आश्चर्यचकित और उत्तेजित हो गया हो। 'यह बात नहीं है सोन्या... बेहतर होगा कि तुम यूँ समझ लो (हाँ, यकीनन, यही बेहतर होगा), यही समझ लो कि मैं घमंडी हूँ, दूसरों से जलता हूँ, उनसे ईर्ष्या करता हूँ, कमीना हूँ, दूसरों को नीचा दिखाना चाहता हूँ और... और शायद मुझमें पागलपन की कुछ निशानी भी मौजूद है। (क्यों न सारी बातें एक ही साथ साफ कर दी जाएँ! मुझे पता है कि मेरे पागलपन की चर्चा पहले भी की जा चुकी है!) अभी कुछ ही देर पहले मैंने तुमसे कहा था कि मैं यूनिवर्सिटी का खर्च नहीं उठा सकता था। लेकिन जानती हो, शायद मैं उठा भी लेता! माँ मुझे फीस देने भर को काफी पैसे भेज देतीं और अपने कपड़ों, जूतों और खाने भर का मैं खुद कमा सकता था। मुझे यकीन है कि मैं इतना तो कमा ही सकता था। आधे रूबल फी घंटे पर पढ़ाने का काम भी मिल सकता था। रजुमीखिन को ही देख लो। कहीं न कहीं से उसे काम मिल ही जाता है। लेकिन मेरा मन खट्टा हो गया था और काम करने को जी नहीं चाहता था। हाँ, मेरा मन खट्टा हो चुका था। (यही कहना ठीक है!) मैं काम से जी चुराए अपने कमरे में मकड़ी की तरह बैठा रहता था। तुमने मेरी वह कोठरी तो देखी है... सोन्या, क्या तुम यह बात महसूस करती हो कि ये नीची छतें, ये छोटी-छोटी अँधेरी कोठरियाँ मन और आत्मा दोनों को विकृत कर देती हैं कितनी नफरत थी मुझे अपने उस दड़बे से! फिर भी मैं उसे नहीं छोड़ता था। जान-बूझ कर नहीं छोड़ता था! कई-कई दिन बाहर नहीं जाता था। कोई काम करना नहीं चाहता था। खाने को भी मन नहीं करता था। बस मैं यूँ ही पड़ा रहता था। नस्तास्या कुछ लाती थी तो खा लेता था, वरना दिनभर मुँह में दाना भी नहीं जाता था। अपनी तरफ से मैं कुछ भी नहीं माँगता था... सिर्फ कुढ़न के मारे! रात को जलाने के लिए बत्ती नहीं थी, इसलिए अँधेरे में पड़ा रहता था। इतना पैसा भी कमाने की कोशिश मैं नहीं करता था कि एक शमा खरीद लूँ। मुझे आगे पढ़ना चाहिए था लेकिन मैंने अपनी किताबें तक बेच दीं। मेरी मेज पर रखी कापियों पर अभी तक एक-एक इंच मोटी गर्द जमी है। लेटे-लेटे सोचते रहना मुझे अच्छा लगता था और मैं सिर्फ सोचता रहता था... ऐसे-ऐसे अजीब सपने मुझे दिखाई देते थे... भयानक तरह-तरह के - मैं तुम्हें यह बताने की जरूरत नहीं समझता कि मेरे सपने कैसे होते थे। पर फिर मुझे यह महसूस होने लगा, कि... नहीं! ऐसी बात नहीं है। नहीं, अभी भी मैं तुम्हें ठीक से नहीं बता पा रहा हूँ! देखो, बात यह है... मैं लगातार अपने आप से यही सवाल करता था कि मैं इतना बेवकूफ क्यों हूँ। अगर दूसरे लोग बेवकूफ हैं, और मुझे पक्का मालूम है कि वे बेवकूफ हैं, तो मैं समझदार बनने की कोशिश क्यों नहीं करता तब जा कर मेरी समझ में आया, सोन्या, कि अगर मैंने सभी के समझदार बनने का इंतजार किया, तो मुझे बहुत लंबा इंतजार करना पड़ेगा... फिर उसके बाद मेरी समझ में यह आया कि ऐसा कभी नहीं हो सकेगा, लोग कभी नहीं बदलेंगे, कोई उन्हें कभी भी बदल नहीं सकेगा, और यह कि इसकी कोशिश करना भी बेकार है! हाँ, यही बात है! यही उनके अस्तित्व का आधार है... एक नियम है, सोन्या! तो यही बात है! ...और अब मैं जानता हूँ, सोन्या कि मजबूत मन और मस्तिष्कवाला ही उन पर राज करेगा! जो बहुत हिम्मत करे, वही सही होगा। जिस चीज को लोग पवित्र मानते हैं; उसे तिरस्कार से ठुकरानेवाले को ही विधाता समझते हैं। जो सबसे आगे बढ़ कर जुरअत से काम लेता है, उसी को सबसे सही मानते हैं! अभी तक ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होता भी रहेगा! जो अंधे हैं सिर्फ यही इस हकीकत को नहीं देख पाते!'

ये बातें कहते समय रस्कोलनिकोव देख तो सोन्या की ओर रहा था, लेकिन उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी कि वह उसकी बात समझ भी रही है या नहीं। बुखार उसे पूरी तरह दबोच चुका था। वह आशा और निराशा की एक अजीब-सी घालमेलवाली हालत में था। (सचमुच उसने बहुत दिनों से किसी से बात तक नहीं की थी!) सोन्या ने महसूस किया कि यह निराशा भरी स्वीकारोक्ति ही रस्कोलनिकोव की आस्था, उसका कायदा बन चुकी है।

'तब जा कर मैंने महसूस किया, सोन्या,' वह जुनून के आलम में कहता रहा, 'कि ताकत उसी को मिलती है, जो उसे ले लेने का हौसला दिखाता है। यहाँ बस एक चीज का महत्व है : आदमी में जुरअतमंदी होनी चाहिए! उस वक्त जिंदगी में पहली बार मेरे दिमाग में वह विचार आया जिसके बारे में इससे पहले किसी ने सोचा भी नहीं था! किसी ने भी नहीं! मेरे सामने अचानक यह बात दिन की रोशनी की तरह साफ हो गई कि न तो कभी पहले और न उस वक्त किसी ने इन बेतुकी बातों के बीच से गुजरते वक्त यह हौसला किया था कि इन सारी बातों को दुम से पकड़ कर उन्हें जहन्नुम में झोंक दे! मैं... मैं यही हौसला करना चाहता था और एक खून कर आया... मैं सिर्फ हौसला करना चाहता था, सोन्या! मेरे सामने बस यही एक मकसद था!'

'चुप रहो, बस चुप हो जाओ!' सोन्या ने दुख से भरे स्वर में कहा। उसे बहुत गहरी चोट पहुँची थी। 'तुम ईश्वर से दूर हो गए हो और भगवान ने तुम पर वार करके तुम्हें शैतान के हवाले कर दिया है...'

'अरे हाँ सोन्या, जानती हो, जब मैं अँधेरे में लेटा रहता था और मेरी आँखों के सामने तस्वीरें घूमती रहती थीं, तब शैतान ही मुझे लालच देता नजर आता था। सुना?'

'चुप रहो! हँसो मत, भगवान की निंदा मत करो! कुछ नहीं समझते तुम, कुछ भी नहीं! भगवान, इनकी समझ में क्या कुछ भी नहीं आएगा?'

'बेवकूफी की बातें मत करो, सोन्या, मैं हँस नहीं रहा हूँ। मुझे अच्छी तरह पता है कि शैतान मुझे अपने इशारे पर चला रहा था। चुप रहो, सोन्या, चुप रहो!' उसने निराशा के साथ इसरार किया। 'सब जानता हूँ मैं। अँधेरे में लेटे-लेटे मैं इन सारी बातों के बारे में ही सोचता रहता था और चुपके-चुपके अपने आपसे यही सब बातें कहता रहता था... इन सारी बातें के बारे में मैं खुद से पूरी-पूरी बहस कर चुका हूँ, और मैं सब कुछ जानता हूँ, सभी कुछ! बेवकूफी की इस सारी बकवास से मैं किस कदर तंग आ चुका था! मैं हर बात को भूल जाना, सब कुछ नए सिरे से शुरू करना चाहता था सोन्या, मैं बकबक करना बंद कर देना चाहता था! क्या तुम सचमुच यह समझती हो कि कुछ भी सोचे बिना मैंने अचानक नादानी में यह काम कर डाला नहीं, मैंने चालाकी से यह सारा सिलसिला शुरू किया, और मेरी तबाही की वजह यही थी! क्या सचमुच तुम्हारी समझ में मिसाल के लिए, मैं यह नहीं जानता था कि अगर मैं खुद से यह पूछता रहा कि मुझे ताकत पाने का अधिकार है कि नहीं, तो इसका मतलब सिर्फ यह होगा कि मुझे ताकत पाने का कोई अधिकार नहीं है। या यह कि अगर मैंने खुद से यह पूछा कि आदमी जूँ है या नहीं है, तो इसका मतलब बस यह होगा कि मेरी नजर में आदमी जूँ नहीं है, हालाँकि वह उस आदमी की नजर में जूँ हो सकता है, जिसने कभी इस बारे में सोचा नहीं और जो अपने आपसे कोई सवाल किए बिना, आगे ही बढ़ता गया। ...इसलिए अगर मैं इतने दिनों तक यही फैसला करने की कोशिश में परेशान रहा कि नेपोलियन ऐसा करता या नहीं, तो इसकी वजह यही थी कि मुझे बखूबी पता था कि मैं नेपोलियन नहीं था। ...मैं उस बेवकूफी की सारी तकलीफ झेलता रहा सोन्या, और मैं उससे छुटकारा पाने के लिए तड़पता रहा। मैं खून करना चाहता था सोन्या, भला-बुरा कुछ भी सोचे बिना खून करना चाहता था... अपने संतोष के लिए खून करना चाहता था, सिर्फ अपनी खातिर! मैं इस बारे में खुद से भी कोई झूठ नहीं बोलना चाहता था। यह खून मैंने इसलिए नहीं किया कि अपनी माँ की मदद करूँ... यह बकवास है! इसलिए यह खून नहीं किया कि दौलत और ताकत हासिल करके मैं मानवजाति का उपकार करना चाहता था... यह भी बकवास है! मैंने यह काम बस यूँ ही कर डाला, सिर्फ अपनी खातिर यह काम किया। उस वक्त मुझे इसकी भी परवाह नहीं थी कि मैं किसी का उपकारी बनूँगा या नहीं, या अपनी बाकी जिंदगी उन सबको एक मकड़ी की तरह अपने जाल में फँसा कर और उनका जीवन-रस चूस कर बिता दूँगा। जिस वक्त मैंने यह काम किया सोन्या, उस वक्त मुझे पैसे का भी लोभ नहीं था। नहीं, उस वक्त मुझे पैसे की उतनी जरूरत नहीं थी, जितनी किसी और चीज की थी... अब मुझे सब कुछ मालूम है... सोन्या, मुझे समझने की कोशिश करो : अगर मैं उसी रास्ते पर चलता रहता तो शायद फिर कभी कोई खून न करता। मैं कोई दूसरी ही बात पता करना चाहता था, कोई दूसरी ही चीज मुझे आगे धकेल रही थी। उस वक्त मुझे यह पता करना था, जल्दी से जल्दी पता करना था, कि क्या मैं भी दूसरे लोगों की तरह जूँ हूँ या एक इनसान हूँ क्या मैं हदों को पार कर सकता हूँ या नहीं क्या मुझमें आगे बढ़ कर ताकत हासिल करने का हौसला है या नहीं मैं कोई रेंगनेवाला कीड़ा हूँ या मुझे इसका अधिकार है कि...'

'खून करने का? तुम्हें खून करने का अधिकार है या नहीं?' सोन्या डर कर चीख पड़ी।

'आह सोन्या, भगवान के लिए,' वह चिढ़ कर ऊँची आवाज में बोला। वह जवाब में कुछ कहना चाहता था, लेकिन इसकी बजाय वह बड़े तिरस्कार के भाव से चुप हो गया। 'बीच में मत बोलो, सोन्या! मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा था कि शैतान मुझे खींच कर वहाँ ले गया था, और बाद में उसने मुझे यह समझाया कि मुझे वहाँ जाने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि मैं भी बाकी लोगों की तरह ही एक जूँ हूँ! उसने मेरी हँसी उड़ाई और मैं अब इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ। अपने मेहमान का स्वागत करो! अगर मैं एक जूँ न होता तो क्या तुम्हारे पास आता सुनो : उस दिन शाम को जब मैं उस बुढ़िया के यहाँ गया था तो मैं सिर्फ यह आजमाने गया था... मैं चाहता हूँ तुम यह बात जान लो!'

'और फिर भी तुमने खून किया! तुमने खून कर डाला!'

'तो क्या? हुआ क्या? इसी तरह लोग खून करते हैं... लोग क्या खून करने उसी तरह जाते हैं जैसे उस दिन मैं वहाँ गया था? मैं फिर कभी तुम्हें बताऊँगा कि मैं वहाँ किस तरह गया था... क्या मैंने उस खूसट बुढ़िया की हत्या की नहीं, मैंने तो खुद अपनी हत्या की, एक खूसट बुढ़िया की नहीं! एक ही वार में हमेशा के लिए मैंने खुद अपना सफाया कर दिया! उस खूसट की हत्या तो शैतान ने की, मैंने नहीं। ...लेकिन, बहुत हुआ! बहुत हो चुका, सोन्या! अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!' वह घोर निराशा में डूब कर अचानक चीखा। 'मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!'

घुटनों पर दोनों कुहनियाँ टिका कर उसने अपना सर दोनों हाथों में पकड़ लिया।

'तुम कितना दुख झेल रहे हो!' सोन्या दर्द से बेचैन हो कर एकाएक कराह उठी।

'खूब, तो अब मैं क्या करूँ तुम्हीं बताओ!' उसने अचानक अपना सर उठा कर और घोर निराशा के कारण भयानक सीमा तक विकृत मुद्रा से सोन्या की ओर देखते हुए कहा।

'क्या करो?' वह अचानक उछल कर खड़े होते हुए चीखी। आँखों से, जिनमें अभी तक आँसू भरे थे, आग बरसने लगी। 'उठो!' (सोन्या ने उसका कंधा पकड़ कर कहा और वह हैरत के साथ उसकी ओर देखते हुए उठ खड़ा हुआ।) 'फौरन, इसी पल जाओ और चौराहे पर झुक कर पहले उस धरती को चूमो जिसे तुमने अपवित्र किया है। फिर चारों दिशाओं में झुको और सभी लोगों से चिल्ला-चिल्ला कर कहो : मैं हत्यारा हूँ! भगवान तब तुम्हें फिर से एक नया जीवन भेजेगा। जाओगे जा सकोगे तुम?' सोन्या ने सर से पाँव तक काँपते हुए, उसके दोनों हाथ कस कर अपने हाथों में थामे हुए और दहकती हुई आँखों से उसे देखते हुए पूछा।

रस्कोलनिकोव उस लड़की में अचानक यह जोश देख कर हैरान रह गया।

'तुम साइबेरिया की बात सोच रही हो, सोन्या यह चाहती हो कि मैं आत्मसमर्पण कर दूँ?' उसने निराश भाव से पूछा।

'कष्ट को स्वीकार करो और इस तरह अपना प्रायश्चित करो - तुम्हें यही करना होगा।'

'नहीं, मैं उनके पास नहीं जाऊँगा, सोन्या।'

'फिर तुम किस तरह जिंदगी बसर करना चाहते हो, सोचो तो सही, तुम्हें क्या-क्या झेलना होगा,' सोन्या ने चिल्ला कर कहा। 'क्या अब यह मुमकिन है तुम अब अपनी माँ से बात कैसे कर सकोगे? (सोचो तो उनका अब क्या होगा!) लेकिन मैं क्या बातें किए जा रही हूँ... तुम अपनी माँ और बहन को तो पहले ही छोड़ चुके हो, कि नहीं... हे भगवान!' उसने दुखी स्वर में कहा, 'इसे तो सब कुछ पहले से मालूम है। किसी इनसान के साथ के बिना तुम सारा जीवन कैसे काटोगे? तुम्हारा होगा क्या?'

'बच्चों जैसी बात मत करो, सोन्या,' उसने शांत भाव से कहा। 'उनकी नजरों में भला किस तरह मैं अपराधी हूँ? क्यों जाऊँ मैं? उनसे मैं क्या कहूँगा? यह सब एक छलावा है। ...वे खुद ही लाखों-करोड़ों को तबाह कर रहे हैं और इसे एक अच्छी बात समझते हैं। वे दगाबाज और बदमाश लोग हैं, सोन्या! ...मैं नहीं जाता। फिर मैं जा कर कहूँगा क्या कि मैंने एक बुढ़िया का खून किया और पैसा लेने की हिम्मत नहीं पड़ी उसे मैंने एक पत्थर के नीचे छिपा दिया...' उसने तल्खी से मुस्कराते हुए कहा। 'वे सब मुझ पर हँसेंगे और पैसा न लेने की बात पर मुझे बेवकूफ कहेंगे। कायर और मूर्ख! वे कुछ भी नहीं समझ सकेंगे सोन्या, कुछ भी नहीं। वैसे उन्हें कुछ समझने का हक भी नहीं है। तो मैं क्यों जाऊँ बच्चों जैसी बातें मत करो...'

'तुम यह बर्दाश्त नहीं कर सकोगे, नहीं कर सकोगे, नहीं कर सकोगे!' वह निराश हो कर उसकी ओर अपने दोनों हाथ बढ़ा कर बार-बार अपनी गुजारिश करती रही।

'मुझे लगता है, मैं पहले से ही अपनी निंदा करता रहा हूँ,' उसने गोया सारी बातों पर विचार करके उदास भाव से कहा। 'शायद मैं जूँ नहीं, इनसान ही हूँ। शायद मैंने अपनी निंदा में जल्दबाजी से काम लिया है... मैं उनसे अभी भी टक्कर ले सकता हूँ।'

उसके होठ तिरस्कार भरी मुस्कराहट के साथ खुल गए।

'अपने जमीर पर यह बोझ ले कर! और सो भी जीवन भर, जीवन भर!'

'आदत पड़ जाएगी,' उसने विचारों में डूब कर उदासी के साथ से कहा। 'सुनो,' उसने एक मिनट बाद कहा, 'रोना-धोना बंद करो। यह वक्त काम की बातों का है। मैं तुम्हें यह बताने आया हूँ कि वे लोग मेरे पीछे लग चुके हैं, मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।'

'आह!' सोनिया डर के मारे चीख उठी।

'तुम इतना डर किस बात से रही हो? क्या तुम खुद ही यह नहीं चाहतीं कि मैं साइबेरिया चला जाऊँ तो फिर इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? पर वे लोग मुझे पकड़ नहीं सकेंगे। मैं उन्हें खूब दौड़ाऊँगा और मेरा दावा है कि वे लोग मेरा कुछ भी नहीं कर सकेंगे। उनके पास कोई पक्का सबूत नहीं है। कल मैं बहुत खतरे में था और यह समझ रहा था कि मेरा खेल खत्म हो चुका है, लेकिन आज परिस्थिति काफी बेहतर दिखाई देती है। उनके पास जो भी सबूत मेरे खिलाफ हैं, वे कच्चे हैं। उनकी काट दोनों तरफ हो सकती है। मेरा मतलब है, मैं उनके सारे इल्जाम अपने पक्ष में मोड़ सकता हूँ। समझ में आ रही है यह बात? और मैं ऐसा करूँगा भी क्योंकि मैं जरूरी सबक सीख चुका हूँ। ...लेकिन यह बात पक्की है कि वे मुझे जेल में डालेंगे। आज ऐसी ही एक बात हो गई, वरना तो वे लोग जेल में मुझे डाल भी चुके होते। शायद वैसे भी वे आज ही मुझे जेल भेज दें... लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, सोन्या। मैं एक-दो हफ्ते जेल में काटूँगा और उन्हें फिर मुझको छोड़ना पड़ेगा... क्योंकि उनके पास मेरे खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। पर उन्हें कोई सबूत मिलेगा भी नहीं, इसका मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ। उनके पास जो सबूत हैं, उनके बल पर वे किसी को भी सजा नहीं दिलवा सकते। खैर, छोड़ो भी इसे... मैं तुम्हें सिर्फ इसलिए बता रहा हूँ कि तुम्हें पता रहे... मैं अपनी तरफ से इस बात का बंदोबस्त करने की पूरी कोशिश करूँगा कि मेरी माँ और बहन को कुछ ज्यादा फिक्र न हो... मेरी बहन के लिए तो, मैं समझता हूँ, अब काफी बंदोबस्त मौजूद है... और जाहिर है इसका मतलब यह है कि माँ भी ठीक ही हैं... तो यह है सारी बात। फिर भी, सावधान रहना। अगर मैं जेल चला गया तो क्या मुझसे मिलने तुम आया करोगी?'

'हाँ, जरूर आऊँगी!'

दोनों एक-दूसरे की बगल में बैठे हुए बहुत उदास और निराश लग रहे थे, जैसे तूफान के बाद किसी डूबे हुए जहाज के दो यात्री सुनसान किनारे पर आ लगे हों। उसने सोन्या की ओर देखा और महसूस किया कि सोन्या को उससे कितना अधिक प्यार था। अजीब बात तो यह थी कि उसे यह महसूस करके बहुत दुख हुआ और उसका दिल तड़प उठा कि कोई उससे इतना अधिक प्यार करे। वह एक अजीब और भयानक एहसास था! जब वह सोन्या से मिलने आ रहा था तब उसे यही महसूस हो रहा था कि वही उसकी सारी आशाओं का केंद्र है और सब कुछ उसी पर निर्भर है। सोचा था कि वह अपनी तकलीफ इस तरह कुछ कम कर सकेगा, लेकिन जब सोन्या का दिल पूरी तरह उसकी ओर झुका हुआ था तो अचानक उसने महसूस किया, उसे मालूम हुआ कि वह पहले से भी बहुत अधिक दुखी हो गया है।

'सोन्या,' वह बोला, 'बेहतर शायद यही होगा कि जब मैं जेल चला जाऊँ तो मुझसे मिलने वहाँ मत आना।'

सोन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वह रो रही थी। इसी तरह कई मिनट बीत गए।

'तुम सलीब पहनते हो?' सोन्या ने अप्रत्याशित प्रश्न किया, जैसे उसे अचानक इसका ध्यान आ गया हो।

उसका सवाल रस्कोलनिकोव कि समझ में फौरन नहीं आया।

'नहीं पहनते न? लो, यह लो। यह साइप्रेस की लकड़ी की है। मेरे पास एक और है, ताँबे की। लिजावेता की है। मैंने लिजावेता से सलीबों की अदला-बदली की थी। उसने मुझे अपना सलीब दिया था और उसे मैंने एक छोटी-सी मूर्ति दी थी। इसे ले लो। यह मेरी है... मेरी!' उसने अनुरोध से कहा। 'यह बात समझो कि यह मेरी अपनी है। हम लोग साथ दुख झेल रहे हैं, इसलिए बेहतर है कि हम अपनी सलीबें भी साथ मिल कर ढोएँ।'

'लाओ, दो,' रस्कोलनिकोव ने कहा। वह उसे निराश नहीं करना चाहता था। लेकिन सलीब लेने के लिए जो हाथ उसने बढ़ाया उसे उसने फौरन खींच भी लिया।

'अभी नहीं, सोन्या,' वह बोला। फिर सोन्या को तसल्ली देने के लिए उसने धीमे से कहा, 'अच्छा यही होगा कि बाद में लूँ।'

'हाँ, हाँ, वही ठीक रहेगा, बहुत बेहतर होगा,' उसने उत्साह से हामी भरी। 'जब अपनी तकलीफ को स्वीकार करने का मन बनाना तो इसे पहन लेना। मेरे पास आना, मैं पहना दूँगी। हम प्रार्थना करेंगे और साथ-साथ आगे बढ़ेंगे।'

तभी किसी ने तीन बार दरवाजा खटखटाया।

'सोफ्या सेम्योनोव्ना, मैं अंदर आ सकता हूँ क्या?' किसी ने जानी-पहचानी आवाज में विनम्रता से कहा।

सोन्या हैरान हो कर दरवाजे की ओर लपकी। दरवाजे से लेबेजियातनिकोव के सन जैसे बालोंवाले सर ने अंदर झाँका।