अपराध और दंड / अध्याय 5 / भाग 5 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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लेबेजियातनिकोव बहुत फिक्रमंद दिखाई दे रहा था।

'मैं तुमसे बात करने आया हूँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना,' उसने कहना शुरू किया। 'माफ कीजिए... मैं सोच ही रहा था कि शायद आप भी यहाँ हों,' उसने अचानक रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहा। 'मेरा मतलब... मैंने ऐसी... कोई बात नहीं सोची थी... बस सोच रहा था। ...कतेरीना इवानोव्ना पगला गई हैं!' उसने रस्कोलनिकोव की ओर से ध्यान हटा कर सोन्या की ओर मुड़ते हुए अचानक सूचना दी।

सोन्या के मुँह से चीख निकल गई।

'मेरा मतलब, लगता तो ऐसा ही है। लेकिन... बात यह है, हम लोगों की समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए... मुश्किल तो यही है। वे लौट कर आईं... शायद कहीं से निकाल दी गई थीं, शायद थोड़ी-बहुत पिटाई भी हुई थी... मेरा मतलब, लगता तो ऐसा ही था। ...वे भागी-भागी मार्मेलादोव साहब के एक पुराने अफसर से मिलने गई थीं, लेकिन वे घर पर थे नहीं। किसी दूसरे जनरल के यहाँ दावत खाने गए हुए थे। जानती हो उन्होंने क्या किया... सीधी चली गईं उस दूसरे जनरल के यहाँ और पता हैं.. इस बात पर अड़ गईं कि बिना मिले नहीं जाएँगी। लगता है, उन्हें खाने की मेज से जबरदस्ती खींच लाईं। तुम समझ सकती हो कि फिर क्या हुआ होगा। जाहिर है, उन्हें निकाल दिया गया। कहती हैं, उन्होंने उस जनरल को ढेरों गालियाँ दीं और कोई चीज फेंक कर मारा भी। बहुत मुमकिन है कि उन्होंने यह सब किया भी हो। उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, यह मुझे नहीं पता। अब वे सबको इस बारे में बता रही हैं, अमालिया इवानोव्ना को भी, बस यह पता पाना मुश्किल है कि वे कह क्या रही हैं। बस चीखती रहती हैं, रो-रो कर बैन करती रहती हैं। और हाँ, चिल्ला-चिल्ला कर यह भी कहती रहती हैं कि हर आदमी उनसे दामन छुड़ा कर अलग हो गया है, सो वे बच्चों के साथ सड़क पर बाजा ले कर निकलेंगी; बच्चे सड़क पर नाचेंगे-गाएँगे, और वह खुद भी, और इस तरह वे पैसे जमा करेंगी; रोज उस जनरल की खिड़की के नीचे जाएँगी। कहती हैं, सब लोग देखें तो सही कि एक भले सरकारी अफसर के बच्चे सड़क पर भीख माँगते किस तरह फिर रहे हैं। वे बच्चों को पीटती, उन्हें रुलाती रहती हैं। वह लीदा को 'मेरा छप्पर' गाना सिखा रही हैं और लड़के को नाचना... और पोलेंका को भी। उनके सारे कपड़े फाड़ कर ऐसी छोटी-छोटी टोपियाँ बना रही हैं जैसी एक्टर लोग पहनते हैं, और संगीत की जगह तसल्ला बजाने का इरादा कर रही हैं। किसी की बात सुनने तक को तैयार नहीं हैं। समझ में नहीं आता कि हम लोग क्या करें। हम लोग उन्हें यह सब तो करने नहीं दे सकेंगे न!'

लेबेजियातनिकोव तो इसी तरह बोलता ही रहता लेकिन सोन्या ने, जो अब तक दम साधे उसकी बातें सुन रही थी, अचानक अपना कोट और हैट उठाया और तीर की तरह कमरे के बाहर निकल गई। भागते ही भागते उसने अपना कोट पहना और हैट भी। रस्कोलनिकोव भी उसके पीछे-पीछे चला और उसके पीछे लेबेजियातनिकोव चल पड़ा।

'इसमें कोई शक ही नहीं कि वे पागल हो गई हैं,' बाहर सड़क पर पहुँच कर वह रस्कोलनिकोव से कह रहा था। मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना को डराना नहीं चाहता था इसीलिए मैंने कहा था कि लगता है, लेकिन इसमें किसी तरह का कोई शक है ही नहीं। सुना है कि जिन लोगों को तपेदिक होती है, उनके दिमाग में गिल्टियाँ बन जाती हैं। अफसोस कि मुझे डॉक्टरी के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। समझाने-बुझाने की बहुत कोशिश मैंने की लेकिन वे तो कुछ सुनतीं ही नहीं।'

'आपने उन्हें गिल्टियों के बारे में क्या बताया?'

'सो तो नहीं बताया। यूँ भी यह बात उनकी समझ में नहीं आती। मतलब यह कि अगर आप किसी को यह समझाने में कामयाब हो जाएँ कि उसके रोने की कोई वजह नहीं है तो वह रोना बंद कर देगा, कि नहीं यह तो पक्की बात है। आप ऐसा नहीं समझते क्या?'

'ऐसा अगर होता तो जिंदगी कितनी आसान हो जाती,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया।

'मैं नहीं मानता। जाहिर है कतेरीना इवानोव्ना को यह बात समझाना मुश्किल है, लेकिन आप जानते हैं क्या कि पेरिस में इस तरह के प्रयोग गंभीरता से किए जा रहे हैं कि लोगों को दलील से समझा-बुझा कर उनके पागलपन का इलाज किया जाए। वहाँ के एक प्रोफेसर एक नामी वैज्ञानिक थे और अभी हाल ही में मरे हैं। उनकी राय यह थी कि इस तरह पागलपन का इलाज किया जा सकता है। कहते थे कि पागल आदमी के शरीर के अंगों में कोई खराबी नहीं होती, और पागलपन तो एक तरह की तर्क की गलती है, यह एक तरह से विवेक की भूल और चीजों के बारे में गलत रवैए के अलावा कुछ नहीं होता। वे धीरे-धीरे अपने मरीज की राय को गलत साबित करते रहते थे और जानते हैं आप, लोग कहते हैं कि उन्हें इसमें कामयाबी मिली। लेकिन चूँकि वे मरीज को एक खास तरीके से नहलाते भी थे, इसलिए इलाज के इस तरीके के बारे में कुछ शक भी है... मेरा मतलब, लगता तो ऐसी ही है...'

रस्कोलनिकोव बहुत देर से उसकी बातें सुनना बंद कर चुका था। अपने घर पहुँच कर उसने सर हिला कर लेबेजियातनिकोव से विदा ली और फाटक में घुस गया। लेबेजियातनिकोव अचानक चौंका। उसने चारों ओर नजरें दौड़ाईं और तेज कदम बढ़ाता हुआ आगे चल पड़ा।

रस्कोलनिकोव अपनी छोटी-सी कोठरी में घुसा और उसके बीच में रुक गया। 'मैं यहाँ वापस क्यों आया?' उसने दीवारों के फटे हुए और मटमैले पीले कागज पर, धूल पर, अपने सोफे पर नजर डाली। ...नीचे आँगन से लगातार खटखट की तेज आवाज आ रही थी; लग रहा था कोई आदमी कोई चीज ठोंक रहा था... शायद कोई कील। वह खिड़की के पास गया और पंजों के बल खड़े हो कर देर तक यह पता लगाने की कोशिश करता रहा कि आँगन से खटखट की वह आवाज क्यों आ रही थी। उसके चेहरे पर असाधारण एकाग्रता थी। लेकिन आँगन खाली पड़ा था और खटखट की आवाज कर रहे लोग दिखाई नहीं दे रहे थे। मकान के बाईं तरफवाली छोटी इमारत में उसे कुछ खुली हुई खिड़कियाँ दिखाई दे रही थीं। उन खिड़कियों की सिल पर जेरेनियम के थोड़े मुरझाए हुए पौधों के गमले रखे हुए थे। खिड़कियों के बाहर कपड़े सुखाने के लिए फैलाए हुए थे। यह सब कुछ उसे अच्छी तरह याद था। उधर से मुँह फेर कर वह सोफे पर आ कर बैठ गया।

उसने पहले कभी इतना अकेलापन महसूस नहीं किया था। कभी नहीं!

हाँ, एक बार फिर उसने महसूस किया कि वह शायद सोन्या से सचमुच नफरत करने लगेगा, खास तौर पर अब, जबकि उसने उसे इतना दुखी कर दिया था। 'वह उसके पास आँसुओं की भीख माँगने क्यों गया था? उसके लिए उसके जीवन में जहर घोलना इतना जरूरी क्यों था? कैसी नीचता थी!'

'मैं अकेला ही रहूँगा,' अचानक उसने इरादा किया, 'मैं उसे जेल भी नहीं आने दूँगा।'

पाँच मिनट बाद उसने अपना सर ऊपर उठाया और अजीब ढंग से मुस्कराया। उसके मन में एक अजीब विचार उठा। 'साइबेरिया भी शायद इससे बेहतर होगा,' उसने अचानक सोचा।

उसे कुछ भी पता नहीं चला कि इस तरह अपने दिमाग में धुँधले विचारों की भीड़ लिए वह अपने कमरे में कितनी देर टिका रहा। अचानक दरवाजा खुला और दूनिया अंदर आई। पहले तो उसने चौखट पर ही रुक कर रस्कोलनिकोव को देखा, ठीक उसी तरह जैसे कुछ ही देर पहले रस्कोलनिकोव ने सोन्या को देखा था। फिर वह अंदर आई और उसके सामने कुर्सी पर बैठ गई, उसी जगह जहाँ वह कल बैठी थी। रस्कोलनिकोव उसे चुपचाप देखता रहा, गोया उसका दिमाग बिलकुल खाली हो चुका हो।

'नाराज न होना, भाई,' दूनिया बोली, 'मैं बस एक मिनट के लिए आई हूँ।' दूनिया की मुद्रा विचारमग्न तो थी पर कठोर नहीं थी। आँखें चमक रही थीं और शांत थीं। रस्कोलनिकोव को साफ पता चल रहा था कि दूनिया भी उसके पास प्रेम का भाव ले कर आई थी।

'मुझे सब कुछ पता चल चुका है रोद्या, सब कुछ। रजुमीखिन ने मुझे सब कुछ बताया है और सब कुछ समझा दिया है। किसी अहमकाना और काबिले-नफरत शक की वजह से तुम्हें सताया जा रहा है, परेशान किया जा रहा है... रजुमीखिन ने बताया कि खतरेवाली कोई बात नहीं है, और इसलिए दिल पर इन सब बातों का बोझ लिए फिरना तुम्हारी नादानी है। मैं नहीं समझती कि तुम नादान हो। मैं यह बात पूरी तरह समझ सकती हूँ कि तुम इन बातों से तंग आ चुके होगे। मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम अपनी इस कड़वाहट की भावना का शिकार नहीं होगे और यह भावना तुम पर उम्र भर के लिए अपनी छाप नहीं डाल सकेगी। मुझे इसी बात का डर है। मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देती कि तुमने हम लोगों को छोड़ दिया। तुमको दोष देने का मुझे कोई अधिकार भी नहीं है, और मुझे अफसोस है कि मैंने पहले तुम्हें इसी बात के लिए बुरा-भला कहा। मैं यह महसूस किए बिना नहीं रह सकती कि अगर मैं भी इतनी ही मुसीबत में होती तो मैं भी सबसे दूर भाग जाती। मैं माँ को इसके बारे में कुछ भी नहीं बताऊँगी, लेकिन मैं उनसे तुम्हारे बारे में बराबर बातें करती रहूँगी और उनसे कहूँगी कि तुमने जल्द ही वापस आने का वादा किया है। तुम उनकी चिंता करना, मैं उन्हें शांत रखने की पूरी कोशिश करूँगी। लेकिन तुम भी उन्हें बहुत दुखी न करना : आ कर कम-से-कम एक बार जरूर मिल जाना। यह याद रखना कि वे माँ हैं! और अब मैं तुम्हें बस यह बताना चाहती हूँ,' दूनिया ने खड़े होते हुए अपनी बात खत्म की, 'कि अगर कभी तुम्हें मेरी मदद दरकार हो, अगर तुम्हें मेरी जान की या किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुलवा भेजना, मैं आ जाऊँगी। तो अब मैं चलती हूँ!'

वह अचानक मुड़ कर दरवाजे की ओर चल पड़ी।

'दूनिया,' रस्कोलनिकोव ने उसके पास जा कर उसे रोका। बोला, 'द्मित्री प्रोखोविच रजुमीखिन बहुत अच्छा आदमी है।'

दूनिया के चेहरे पर जरा-सी लाली दौड़ गई।

'तो?' दूनिया ने एक पल रुक कर पूछा।

'बहुत कामकाजी, मेहनती और ईमानदार आदमी है : सच्चे दिल से प्यार करना जानता है। ...अच्छा, दूनिया, फिर मिलेंगे।'

दूनिया शरमा गई, फिर अचानक चिंतित दिखाई देने लगी : 'कैसी बातें करते हो, रोद्या, हम कोई हमेशा के लिए तो नहीं विदा हो रहे। तुम क्यों इस तरह बातें कर रहे हो जैसे... जैसे अपनी वसीयत पढ़ कर सुना रहे हो मुझे!'

'कोई बात नहीं... अलविदा!'

रस्कोलनिकोव बहन की ओर से मुँह मोड़ कर खिड़की की ओर बढ़ गया। दूनिया एक पल इंतजार करती रही, फिर चिंतित हो कर भाई की ओर देखा और परेशान-सी बाहर निकल गई।

नहीं, वह उसके साथ रुखाई से पेश नहीं आया। एक पल ऐसा जरूर आया था (बिलकुल अंतिम पल) जब उसका जी चाहा था कि अपनी बहन को गले लगा कर उससे विदा ले और उसे बता भी दे। लेकिन वह उसकी ओर अपना हाथ भी नहीं बढ़ा सका था।

'बाद में जब कभी वह इस बात को याद करती,' रस्कोलनिकोव ने सोचा, 'तो शायद यह सोच कर काँप उठती कि मैंने उसे गले लगाया था। शायद कहती कि मैंने चुपके से उसको प्यार भी किया था!'

'तो क्या वह यह परीक्षा झेल सकेगी?' कुछ मिनट बाद उसने फिर अपने मन में कहा। 'नहीं, वह नहीं कर पाएगी। उसकी जैसी औरतें कभी नहीं कर पातीं। कभी परीक्षा नहीं झेल सकतीं...'

फिर वह सोन्या के बारे में सोचने लगा।

खुली हुई खिड़की से ठंडी हवा का एक झोंका आया। बाहर अँधेरा हो चला था। अचानक उसने अपनी टोपी उठाई और बाहर निकल गया।

स्वाभाविक रूप से अभी वह अपनी तंदुरुस्ती की चिंता न कर सकता था, न करना चाहता था। लेकिन यह भी तो नहीं हो सकता था कि वह लगातार इस कदर मानसिक यातना और कष्ट झेलता रहे और उस पर कोई असर न हो। अभी तक तेज बुखार का शिकार हो कर भी अगर उसने चारपाई नहीं पकड़ी थी तो शायद इसी वजह से कि निरंतर मानसिक पीड़ा के मारे वह चलता-फिरता रहा और अपने होश में रहा। बनावटी तौर पर सही और कुछ समय के लिए ही सही।

वह सड़क पर बेमकसद घूमता रहा। सूरज डूब रहा था। इधर कुछ दिनों से उदास अकेलेपन की एक अजीब भावना ने उसे आ दबोचा था। उसमें कोई पैनापन या दर्द नहीं था, लेकिन उसकी वजह से उसे यूँ महसूस होने लगा था कि यह भावना अब हमेशा बनी रहेगी, और बरसों तक उसे यही उदास अकेलापन झेलना था - बेरहम दो गज जमीन पर एक शाश्वत दशा! शाम को यह भावना आम तौर पर अधिक प्रबल और कष्टदायी हो उठती थी।

'जब डूबते सूरज या ऐसी ही किसी और चीज की वजह से पैदा होनेवाली, इस तरह की बेवकूफी भरी, खालिस जिस्मानी बीमारी किसी को आ घेरती है, तो वह नादानी की कोई न कोई हरकत किए बिना तो नहीं रह सकता। सोन्या की बात तो दूर, वह दूनिया की तरफ भी भागेगा,' तल्खी से बुदबुदाया।

किसी ने उसे नाम ले कर पुकारा। उसने घूम कर देखा। लेबेजियातनिकोव उसकी ओर भागा आ रहा था।

'सोचिए तो सही, मैं अभी आपके कमरे से आ रहा हूँ। आप ही को ढूँढ़ रहा था। जरा सोचिए, जैसा कि उन्होंने अपने मन में ठानी थी, वे बच्चों को ले कर निकल गईं। हमने, मैंने और सोफ्या सेम्योनोव्ना ने, मुश्किल से उन्हें ढूँढ़ा। वे एक तसला बजा रही हैं और बच्चों को उसकी ताल पर गाने-नाचने पर मजबूर कर रही हैं। बच्चे रो रहे हैं। वे चौराहों पर और दूकानों के सामने खड़ी हो कर ये तमाशे कर रही हैं। बहुत से बेवकूफ लोग उनके पीछे भाग रहे हैं। आइए, चलिए!'

'और सोन्यों...' रस्कोलनिकोव ने जल्दी-जल्दी लेबेजियातनिकोव के पीछे कदम बढ़ाते हुए चिंतित स्वर में पूछा।

'उन पर तो जुनून सवार है। मेरा मतलब, सोफ्या सेम्योनोव्ना पर नहीं बल्कि कतेरीना इवानोव्ना पर... और सच पूछिए तो सोफ्या सेम्योनोव्ना पर भी जुनून ही सवार है। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना तो सिड़ी हो चुकी हैं। मैं आपको बताता हूँ, वे बिलकुल पागल हो चुकी हैं। उन लोगों को पुलिस के हवाले कर दिया जाएगा। आप सोच सकते हैं न कि इसका क्या नतीजा होगा... इस वक्त वे लोग नहर के बाँध पर हैं, वोज्नेसेंस्की पुल के पास, सोफ्या सेम्योनोव्ना के घर से बहुत दूर नहीं। यहाँ से नजदीक है।'

बाँध पर, पुल के पास ही, जहाँ सोन्या रहती थी, वहाँ से लगभग दो मकानों की दूरी पर, एक छोटी-सी भीड़ जमा थी। उनमें एक बड़ी संख्या सड़क पर मारे-मारे फिरने वाले लड़कों और लड़कियों की थी। कतेरीना इवानोव्ना की भर्राई, फटी हुई आवाज सुनाई दे रही थी। सचमुच वह पूरा दृश्य एक अजब तमाशा था, जिसे देखने के लिए एक भीड़ का जमा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। कतेरीना इवानोव्ना अपनी पुरानी मैली-कुचैली पोशाक पहने हुए थीं; उस पर हरे रंग की द्रा-द-देम्स की शाल ओढ़ रखी थीं; सर पर तिनकों की फटी हुई हैट थी जो एक तरफ पिचक कर बदसूरत और पोटली जैसी बन गई थी। उनके होश सचमुच ठिकाने नहीं थे। वे थक कर चूर हो गई थीं और हाँफ रही थीं। तपेदिक का मारा थका हुआ निढाल चेहरा हमेशा से ज्यादा पीड़ाग्रस्त लग रहा था (यूँ भी तपेदिक के मरीजों की हालत घर के बाहर धूप में और भी बदतर लगने लगती है); लेकिन उनकी उत्तेजना किसी तरह कम नहीं हो रही थी। हर पल उनकी झुँझलाहट बढ़ती जा रही थी। वे बार-बार भाग कर बच्चों के पास जातीं, उन्हें डाँटतीं-डपटतीं, बहलातीं-फुसलातीं, और सारी भीड़ के सामने उन्हें बतातीं कि वे कैसे नाचें और क्या गाएँ। वे उन्हें यह भी समझातीं कि उनके लिए यह सब करना क्यों जरूरी है। जब वे समझ न पाते तो वे गुस्से से पागल हो कर उन्हें पीटने लगतीं... फिर अपना यह काम अधूरा छोड़ कर भीड़ की ओर भाग कर जातीं और अगर उसमें कोई आदमी अच्छे कपड़े पहने हुए दिखाई देता, जो तमाशा देखने के लिए रुक गया हो, तो फौरन उसे बताने लगतीं कि 'एक शरीफ, बल्कि यूँ कहिए कि एक खानदानी रईस घर के' ये बच्चे कैसी दुर्दशा झेल रहे थे। अगर वे भीड़ में से किसी की हँसी या कोई गुस्सा दिलानेवाली बात सुनतीं तो फौरन ऐसा करनेवालों पर झपट पड़तीं और उनसे लड़ने लगतीं। कुछ लोग सचमुच हँस रहे थे, कुछ सर हिला रहे थे; लेकिन सहमे हुए बच्चों को साथ ले कर घूमनेवाली पागल औरत को देखने की बेकरारी सब में थी। लेबेजियातनिकोव ने जिस तसले की चर्चा की थी, वह कहाँ था... कम-से-कम रस्कोलनिकोव ने उसे नहीं देखा। कतेरीना इवानोव्ना जब भी पोलेंका को गाने और लीदा और कोल्या को नाचने के लिए मजबूर करतीं तो तसला पीटने की बजाय अपने सूखे हुए हाथों से ताली बजा कर ताल देती थीं। बीच-बीच में खुद भी गाने लगती थीं लेकिन दूसरे ही मिसरे पर उनको खाँसी का जबरदस्त दौरा पड़ता और उनका गाना बंद हो जाता, जिसकी वजह से वे बेहद निराश हो कर अपनी खाँसी को कोसने लगती थीं, रोने तक लगती थीं। उनको जिस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था, वह था कोल्या और लीदा का रोना और सहमे रहना। बच्चों को सचमुच सड़क पर घूम-घूम कर गानेवालों जैसी पोशाक पहनाने की कोशिश की गई थी। लड़के के सर पर लाल-सफेद रंग के किसी कपड़े की पगड़ी थी ताकि वह तुर्क लगे। लेकिन लीदा की पोशाक के लिए काफी कपड़ा नहीं मिल सका था। उसे सजाने के लिए बस एक ऊनी टोपी, बल्कि यूँ कहिए कि रात को पहनने की टोपी, पहना दी गई थी, जो पहले मार्मेलादोव की हुआ करती थी। उसमें शुतुरमुर्ग के सफेद पर का एक टुकड़ा भी लगा दिया गया था, जो किसी जमाने में कतेरीना इवानोव्ना की नानी का हुआ करता था और खानदान की एक निशानी के तौर पर संदूक में सुरक्षित रखा था। पोलेंका अपनी मामूली पोशाक में थी। वह सहमी और सिटपिटाई हुई अपनी माँ की ओर देख रही थी। वह माँ से सटी हुई खड़ी थी और अपने आँसू छिपाने की कोशिश कर रही थी। वह समझ चुकी थी कि उसकी माँ पागल हो गई है, और इसलिए वह बेचैन हो कर अपने चारों ओर देख रही थी। सड़क के वातावरण और भीड़ से उसे बहुत डर लग रहा था। सोन्या अपनी माँ के साथ परछाईं की तरह लगी थी और रो-रो कर हर पल उससे घर लौट चलने की विनती कर रही थी। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना इसके लिए किसी भी तरह तैयार नहीं हो रही थीं।

'चुप रहो सोन्या, रहने दो,' वे हाँफते और खाँसते हुए, बड़ी तेजी से बोलते हुए चिल्लाईं। 'तुम नहीं जानती, तुम मुझसे क्या करने को कह रही हो। अभी तुम बच्ची हो। तुमसे मैं सौ बार कह चुकी कि मैं उस जर्मन छिनाल के यहाँ नहीं जानेवाली। सब लोग देखें, सारा पीतर्सबर्ग देखे तो सही कि एक भले आदमी ने लगन और वफादारी से अपने देश की सेवा की, उसके बारे में सचमुच ऐसा कहा जा सकता है कि वह अपना काम करते-करते मरा, और फिर भी उसके बच्चे किस तरह ऐसी दुर्दशा को पहुँच गए कि आज सड़क पर भीख माँग रहे हैं,' कतेरीना इवानोव्ना ने, जिन्होंने अब तक यह बेबुनियाद किस्सा गढ़ लिया था और उस पर विश्वास भी करने लगी थीं, उत्तेजित हो कर कहा। 'वह कमबख्त, दो कौड़ी का जनरल भी तो देखे। तुम बिलकुल बेवकूफ हो, सोन्या पक्की बेवकूफ! इसके अलावा तुम ही बताओ अब हम लोगों को कहाँ से खाना मिलेगा? हम लोग तुम्हें बहुत दुख दे चुके, मैं इस तरह अब नहीं चलने दूँगी! अरे, रोदिओन रोमानोविच, आप हैं' रस्कोलनिकोव को देख कर कतेरीना इवानोव्ना ने उत्सुकता से उसकी ओर लपकते हुए कहा। 'आप ही इस नादान लड़की को समझाइए कि अब हमारे पास इससे ज्यादा समझदारी का कोई धंधा नहीं रहा। रोजी तो हर गाने-बजानेवाला कमाता है लेकिन हरेक की समझ में फौरन यह बात आ जाएगी कि हम लोग उनसे अलग हैं, कि हम लोग गरीब सही पर भले लोग हैं, जो आज भीख माँगने पर मजबूर हैं। आप मेरी बात याद रखिएगा, वह कमबख्त दो कौड़ी का जनरल नौकरी से हाथ धोएगा। रोज हम लोग जा कर उसकी खिड़की के नीचे धरना देंगे, और जब बादशाह की सवारी उधर से गुजरेगी तो मैं बच्चों को उन्हें दिखाऊँगी और कहूँगी : 'माई बाप, आप ही इनकी रक्षा कीजिए! वे ही अनाथों के नाथ हैं, दयालु हैं और इनकी रक्षा करेंगे। आप देखिएगा, वे इनकी रक्षा करेंगे... और वह कमबख्त दो कौड़ी का जनरल - लीदा, कोल्या, तुम्हें अभी थोड़ी देर में फिर नाचना है! पिनपिना क्यों रहे हो देखा, फिर पिनपिनाने लगा! किस बात से डरता है बेवकूफ हे भगवान, मैं इन सबका क्या करूँ... आप नहीं जानते, ये कितने नासमझ हैं! ऐसे बच्चों का कोई करे क्यों...'

खुद लगभग रोते हुए, जिसकी वजह से उसकी बातों के प्रवाह में कोई रुकावट पैदा नहीं हुई, उसने बिसूर कर बच्चों की तरफ इशारा किया। रस्कोलनिकोव ने उसे समझा-बुझा कर घर वापस भेजने की बहुत कोशिश की, और उसके स्वाभिमान को छेड़ने की कोशिश भी यह कह कर की कि वह लड़कियों के बोर्डिंग स्कूल की हेडिमिस्ट्रेस बनने की सोच रही है और इसलिए गाने-बजानेवालियों की तरह सड़क पर मारे-मारे फिरना उसे शोभा नहीं देता।

'बोर्डिंग स्कूल, ही-ही-ही! दूर के ढोल सुहावने होते हैं!' कतेरीना इवानोव्ना ने व्यंग्य से कहा। उसे हँसते-हँसते खाँसी आ गई। 'नहीं रोदिओन रोमानोविच, वह सपना टूट चुका! हमें तो सभी छोड़ चुके! और वह नासमझ, दो कौड़ी का जनरल... आपको पता है मैंने उसे दवात फेंक कर मारी थी! उस वक्त इत्तफाक से हॉल की मेज पर एक दवात रखी थी, उसी कागज के पास जिस पर लोग आ कर अपने दस्तखत करते हैं। मैंने उस कागज पर अपना नाम लिखा और दवात उसके ऊपर चला कर भाग आई। बदमाश कहीं का! लेकिन अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है। अब बच्चों का पेट भरने का बंदोबस्त मैं ही करूँगी। अब किसी के आगे नाक मैं रगड़ने नहीं जाऊँगी! हमारी वजह से यह काफी मुसीबतें झेल चुकी,' कतेरीना इवानोव्ना ने सोन्या की तरफ इशारा करके कहा। 'पोलेंका, कितने पैसे जमा हुए दिखा तो सही। क्या बस दो कोपेक... कमीने कहीं के! कुछ भी नहीं देते, बस जबान लटकाए हमारे पीछे भागते रहते हैं। देखो तो उस बेवकूफ को! न जाने किस बात पर हँस रहा है,' उसने भीड़ में एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा। 'यह सब कुछ इसलिए कि कोल्या पक्का बुद्धू है! क्या बात है, पोलेंका मुझे फ्रांसीसी में बताओ - मैंने तुम्हें फ्रांसीसी सिखाई है न... कुछ जुमले बोलना तो आता है, कि नहीं... नहीं तो लोगों को कैसे मालूम होगा कि तुम भले घर की हो, तुम आम गाने-बजानेवाली नहीं हो बल्कि शरीफों के घर में पली-बढ़ी हो। हम लोग सड़क पर कोई बाजारू तमाशा दिखाने के लिए तो नहीं निकले! बिलकुल नहीं! हम लोग शरीफों की महफिल में गाया जानेवाला गाना गाएँगे। ...अच्छा, तो... अब कौन-सा गाना गाएँ... आप लोग, मेहरबानी करके बीच में न बोलें। हम लोग... रोदिओन रोमानोविच, हम लोग यह सोचने के लिए ठहर गए थे कि अब कौन-सा गाना गाएँ, जिसकी धुनपर कोल्या नाच सके। आपको तो पता ही होगा कि हमें ठीक से तैयारी करने का वक्त नहीं मिला। हमें सोचना होगा कि अब क्या करना है, उसकी ठीक से तैयारी करनी होगी, और तब हम लोग नेव्स्की एवेन्यू जाएँगे जहाँ सबसे बेहतर किस्म के बहुत से लोग होते हैं। उनका ध्यान फौरन हम लोगों की ओर जाएगा। लीदा को 'छप्पर मेरा' आता है। ...बस, 'छप्पर मेरा और कुछ नहीं ...हर आदमी आज वही गाना गाता है! हम लोगों को तो इससे कहीं ज्यादा शरीफाना चीज गानी होगी... पोलेंका, तुमने कोई गाना सोचा है बेटी, अपनी माँ का थोड़ा-सा तो हाथ बँटाया कर! मेरी याददाश्त पर तो पत्थर पड़ चुके हैं, नहीं तो मुझे ही कुछ याद आ जाता! हम लोग वह 'हुस्सार' वाला गाना तो नहीं गा सकते! खैर, हम लोग अब फ्रांसीसी गाना गाएँगे 'Cinq sous'!1 तुम्हें सिखाया था न असल बात तो यह है कि जब लोग तुम्हें फ्रांसीसी में गाते सुनेंगे तो फौरन समझ जाएँगे कि तुम लोग भले घर के बच्चे हो। इस बात से उन्हें और ज्यादा तरस आएगा... हम 'Malborough s'en va-t-en querre'2 भी गाने की कोशिश कर सकते हैं, और वह है भी एक लोरी... असली लोरी। सभी रईसों के घरों में वह लोरी की तरह ही गाया जाता है :

Malborough s'en va-t-en querre,

Ne sait quand reviendra... 3

उसने गाना शुरू किया। 'लेकिन नहीं, 'Cinq sous' ही ज्यादा बेहतर रहेगा! मेरा अच्छा बेटा कोल्या, कमर पर हाथ तो रख! जल्दी कर, बेटे! और लीदा, तुम दूसरी तरफ घूमती रहो, पोलेंका और मैं ताली बजा कर गाएँगे।'

Cinq sous, cinq sous...

Pour monter notre menage... 4

गाते-गाते उसे खाँसी का दौरा पड़ गया। 'पोलेंका बेटी, अपनी पोशाक ठीक करो; कंधे से नीचे सरक आई है,' दौरे के बाद वह साँस लेने की कोशिश करते हुए बोली। 'तो अब तुम लोग इस बात का खास ध्यान रखना कि तुम्हारी चाल-ढाल ठीक रहे ताकि हर आदमी देखे कि तुम किसी शरीफ के बच्चे हो। मैंने तुमसे कहा था कि कुर्ती लंबी काटना, और पूरे दो अरज की बनाना। यह सब तुम्हारी गलती है, सोन्या। तुम्हीं मुझसे बराबर कहे जा रही थी कि और छोटी रखो, और छोटी रखो। अब देखो बेचारी बच्ची का हाल! क्या हुलिया निकल कर आया है। तुम लोग अब क्यों रो रहे हो? क्या बात है, नासमझो चलो, कोल्या, शुरू करो! जल्दी! कैसा नटखट लड़का है!...

Cinq sous, cinq sous...

...लो, एक पुलिसवाला और आ धमका! अरे, तुझे भला क्या चाहिए?'


1. `पाँच पैसे'। (फ्रांसीसी)

2. कूच को माल्बरो तैयार हुए। (फ्रांसीसी)

3. कूच को माल्बरो तैयार हुए, जाने कब लौटे युद्धभूमि से... (फ्रांसीसी)

4. पाँच पैसे, पाँच पैसे, घर का तामझाम जमाने की खातिर... (फ्रांसीसी )


एक पुलिसवाला सचमुच भीड़ को चीरता हुआ चला आ रहा था। लेकिन उसी समय सरकारी अफसरों की पोशाक पहने हुए कोई 50 साल के एक सज्जन कतेरीना इवानोव्ना के पास आए और चुपचाप तीन रूबल का एक हरा नोट उसे थमा दिया। उनकी मुद्रा गंभीर थी और गर्दन में एक तमगा लटक रहा था। (इसे देख कर कतेरीना इवानोव्ना बहुत खुश हुई और पुलिसवाले पर भी काफी रोब पड़ा।) उन सज्जन के चेहरे पर दया का सच्चा भाव था। कतेरीना इवानोव्ना ने पैसे ले लिए और विनम्रता व शिष्टता से झुक कर उनका आभार प्रकट किया।

'आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब,' कतेरीना इवानोव्ना ने थोड़े अहंभाव से कहना शुरू किया, 'जिन वजहों से हम लोगों को... पोलेच्का, ये पैसे रख लो। देखा, ऐसे शरीफ और उदार लोग भी दुनिया में हैं जो मुसीबत की मारी एक बेचारी भली औरत की मदद करने की तैयार हैं। देखिए साहब, आपके सामने एक भले घर के अनाथ बच्चे हैं, जिनकी रिश्तेदारी समझ लीजिए कि बड़े-बड़े रईसों से है। ...और वह बेवकूफ, दो कौड़ी का जनरल बैठा बटेर खाता रहा... उसने मेरे विघ्न डालने पर बहुत पाँव पटके... 'महामहिम' उससे मैंने कहा, 'मेरे अनाथ बच्चों के लिए कुछ कीजिए। आप मेरे स्वर्गीय पति को जानते थे, और उनकी मौत के दिन ही एक बेहद कमीने बदमाश ने उनकी बेटी का बेरहमी से अपमान किया है...' लीजिए, एक और पुलिसवाला आ गया! बराय मेहरबानी,' उसने फरियाद करते हुए उस अफसर से ऊँची आवाज में कहा, 'कुछ कीजिए, यह पुलिसवाला चाहता क्या है! अभी हम लोग मेश्चांस्काया स्ट्रीट से एक पुलिसवाले से पीछा छुड़ा कर आए हैं। ...चाहिए क्या तुझे?'

'सड़क पर यह सब करने की इजाजत नहीं है औरत, यहाँ हुल्लड़ न मचा।'

'तू खुद हुल्लड़ न मचा! सड़क पर सभी लोग गाते-बजाते रहते हैं। तुम्हें इससे क्या लेना-देना?'

'सड़क पर गाने-बजाने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है, औरत, और तू यह सब अपनी मर्जी से कर रही है और भीड़ जमा कर रही हैं। घर कहाँ है तेरा?'

'लाइसेंस' कतेरीना इवानोव्ना गुस्से से चिल्लाईं। 'मैं अपने शौहर को आज ही दफन करके आई हूँ, और यह चला है लाइसेंस माँगने।'

'शांत हो जा,' सरकारी अफसर ने कहना शुरू किया। 'मेरे साथ आ, मैं तुझे घर पहुँचाए देता हूँ... तेरे लिए यहाँ भीड़ में खड़े रहना ठीक नहीं... तेरी तबीयत ठीक नहीं है...'

'साहब,' कतेरीना इवानोव्ना ने चीख कर कहा, 'आप कुछ नहीं जानते! हम लोग नेव्स्की एवेन्यू चले जाएँगे। सोन्या, सोन्या! कहाँ चली गई... यह भी रो ही है! तुम सबको हो क्या गया है कोल्या... लीदा... कहाँ चले तुम सब?' वह अचानक भयभीत हो कर चीखी। 'नादान बच्चो! अरे कोल्या... लीदा... कहाँ चले गए ये सबके सब...?'

बात यह हुई थी कि कोल्या और लीदा भीड़ से और अपनी पागल माँ की बहकी-बहकी हरकतों से डर कर, और यह देख कर भी कि पुलिसवाला उन्हें पकड़ कर कहीं ले जानेवाला है, एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर वहाँ से भाग गए थे, गोया शुरू से ही ऐसा करने का इरादा बाँध रखा हो। बेचारी कतेरीना इवानोव्ना रोती-सिसकती उनकी तलाश में भागी। उसे इस तरह भागते, रोते और हाँफते देख कर तरस आता था और तकलीफ होती थी। सोन्या और नन्ही पोलेच्का पीछे भागीं।

'उन्हें पकड़ो सोन्या, वापस लाओ उन्हें! नासमझ, नाशुक्रे बच्चे। पोलेच्का पकड़ना तो उन्हें... तुम्हीं लोगों की वजह से मुझे...'

भागते-भागते पोलेच्का का पाँव फिसला और वे धड़ाम से गिर पड़ीं।

'देखो तो सही, कितना खून बह रहा है! कहीं से कट गया है! हे भगवान!' सोन्या उनके ऊपर झुक कर रोते हुए बोली।

सब लोग उनके चारों ओर भीड़ बना कर खड़े हो गए। रस्कोलनिकोव और लेबेजियातनकोव वहाँ सबसे पहले पहुँचे। वह सरकारी अफसर भी लपक कर उनके पास पहुँचा और उसके पीछे-पीछे पुलिसवाला भी वहीं आ पहुँचा और बुदबुदाया, 'हाय रे नसीब!' उसने अपने कंधे यह सोच कर बिचकाए कि अब उसे मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।

'चलो यहाँ से! आगे बढ़ो!' उसने चारों ओर जमा लोगों को तितर-बितर करने की कोशिश करते हुए कहा।

'मरनेवाली है!' कोई चिल्लाया।

'पागल हो चुकी है!' कोई और बोला।

'भगवान हमारी रक्षा करे!' एक औरत ने सीने पर सलीब का निशान बनाते हुए कहा। 'वह छोटा लड़का और लड़की मिले कि नहीं वो रहे, भगवान भला करे। बड़ीवाली पकड़ लाई उन्हें... नासमझ बच्चे!'

लोगों ने जब कतेरीना इवानोव्ना को अच्छी तरह देखा तो पता चला कि कहीं पत्थर से टकरा कर चोट नहीं आई थी, जैसा कि सोन्या ने समझा था, बल्कि सड़क पर जो खून फैला हुआ था वह उनके मुँह से निकला था।

'मैंने पहले भी ऐसा देखा है,' सरकारी अफसर ने बुदबुदा कर रस्कोलनिकोव और लेबेजियातनिकोव से कहा। 'तपेदिक है... ऐसे ही खून बहता है और बीमार का दम घुट जाता है। बहुत दिन नहीं हुए, मैंने रिश्ते की एक औरत के साथ ऐसा होते देखा था... लगभग आधे बोतल खून और वह भी अचानक। ...लेकिन किया क्या जाए अब मरनेवाली है।'

'इधर! इधर से! इन्हें मेरे कमरे पर ले चलिए,' सोन्या ने गिड़गिड़ा कर कहा। 'मैं यहीं रहती हूँ! ...वह रहा मेरा घर, यहाँ से दूसरा ...इन्हें मेरे कमरे पर ले चलिए। जल्दी! जल्दी! ...!' वह भाग-भाग कर हरेक से कहती रही। 'कोई तो डॉक्टर को बुलाए! ...हे भगवान!'

सरकारी अफसर की कोशिशों की बदौलत सब कुछ संतोषजनक ढंग से हो गया; पुलिसवाले ने भी कतेरीना इवानोव्ना को सोन्या के कमरे तक पहुँचाने में मदद की। कतेरीना इवानोव्ना को लगभग मुर्दा हालत में वहाँ ला कर पलँग पर लिटा दिया गया। खून अब भी बह रहा था लेकिन लगता था, उन्हें धीरे-धीरे होश आ रहा है। रस्कोलनिकोव, लेबेजियातनिकोव, सरकारी अफसर और वह पुलिसवाला सोन्या के पीछे-पीछे कमरे में आए। पुलिसवाले ने सबसे पहले तो भीड़ को तितर-बितर किया और जो थोड़े से लोग साथ में दरवाजे तक आ गए उन्हें वहाँ से भगा दिया। उनके बाद पोलेच्का कोल्या और लीदा का हाथ पकड़े अंदर आई। वे दोनों रो रहे थे और सर से पाँव तक काँप रहे थे। कापरनाउमोव परिवार के लोग भी अंदर आ गए। खुद लँगड़ा और काना कापरनाउमोव जो देखने में कुछ अजीब-सा आदमी लगता था और जिसके गलमुच्छों और सर के बाल हमेशा खड़े रहते थे। दूसरे उसकी बीवी जो हमेशा सहमी-सहमी दिखाई देती थी, और कुछ बच्चे जो हमेशा मुँह खोले रहते थे और जिनक चेहरे पर हमेशा हैरानी का भाव कायम रहता था। उन्हीं के बीच स्विद्रिगाइलोव भी अचानक वहाँ आ गया। रस्कोलनिकोव ने उसे आश्चर्य से देखा। उसे पता नहीं चला कि वह वहाँ कहाँ से आ गया था और उसे यह भी याद नहीं था कि उसको उसने भीड़ में देखा हो।

डॉक्टर और पादरी की भी चर्चा हो रही थी। उस सरकारी अफसर ने चुपके से रस्कोलनिकोव के कान में कहा कि उसकी समझ में अब डॉक्टर के आने से कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन उसने डॉक्टर को बुलवाने का पक्का प्रबंध कर दिया था। कापरनाउमोव खुद उसे बुलाने गया।

इस बीच कतेरीना इवानोव्ना की साँस एक बार फिर ठीक से चलने लगी; खून बहना भी कुछ देर के लिए बंद हो गया। उन्होंने कुछ देर सोन्या को बुखार की मारी आँखों से लेकिन पैनी और बेधती हुई नजरों से देखा। सोन्या का रंग पीला पड़ चुका था। वह काँप रही थी और रूमाल से उनके माथे का पसीना पोंछ रही थी। आखिरकार कतेरीना इवानोव्ना ने उठा कर तकिए के सहारे बिठाने को कहा। लोगों ने उनके दोनों ओर तकियों का सहारा दे कर बिस्तर पर बिठा दिया।

'बच्चे... बच्चे कहाँ हैं?' उन्होंने मरी हुई आवाज में पूछा। 'पोलेच्का, तू उन्हें ले आई नासमझ बच्चो, तुम भाग क्यों गए... आह!'

उनके सूखे होठों पर अभी तक खून जमा हुआ था। उन्होंने चारों ओर नजरें दौड़ा कर कमरे को देखा।

'तो तुम इस हालत में रहती हो, सोन्या! मैं पहले कभी तुम्हारी कमरे में नहीं आई... और अब आई भी तो इस हाल में!'

उसने सोन्या को दर्द भरी नजरों से देखा।

'सोन्या, हम लोगों ने तेरा सारा खून निचोड़ लिया। पोलेच्का... लीदा... कोल्या... इधर आओ। लो सोन्या... ये रहे सारे के सारे... इन्हें सँभालो। मैंने इनको तुम्हारे हवाले किया। मुझमें अब दम तो रहा नहीं। मैंने तो बहुत कुछ झेल लिया। आ-ह! मुझे लिटा दो। कम-से-कम चैन से मर तो सकूँ...'

उन्हें एक बार फिर तकिए के सहारे लिटा दिया गया।

'क्या पादरी... नहीं, मुझे पादरी नहीं चाहिए... पादरी को देने के लिए रूबल भला कहाँ से आएगा? मैंने कोई पाप नहीं किया है। भगवान इसके बिना ही मुझे बख्श देगा... वह जानता है कि मैंने कितना दुख झेला है! और अगर उसने मुझे माफ नहीं किया तो यही सही...'

उनके विचार भटकने लगे थे और वे बिस्तर पर पड़ी छटपटा रही थीं। वे रह-रह कर सिर उठाती थीं, चारों ओर देखती थीं, एक पल के लिए सबको पहचानती थीं लेकिन फिर लगभग फौरन ही बेहोश को जाती थीं या उनके विचार भटकने लगते थे। वे खर-खर की आवाज के साथ बड़ी मुश्किल से साँस ले रही थीं। लगता था कि गले में कहीं कोई चीज फँस रही थी।

'मैंने कहा, योर एक्सीलेंसी,' वे कह रही थीं, और बीच-बीच में हर शब्द के बाद साँस लेने के लिए रुकती थीं, 'कि अमालिया लूदविगोव्ना... आह! लीदा, कोल्या, अपनी कमर पर हाथ रखो, चलो, जल्दी... ग्लिस्से, ग्लिस्से...पा-द-बास्क! एड़ियों से ताल दो, चलो, अच्छे बच्चों की तरह :

Du hast Diamanten und Perlen... 1

इसके बाद क्या है... हमें यही गाना है :

Du hast die schonsten Augen,

Madchen, was willst du mehr? 2

खैर, उस बेवकूफ से और क्या उम्मीद की जा सकती है! was willst du mehr अब क्या चाहे ऐ गोरी... वह मूरख भी... कैसी-कैसी बातें भला सोचता रहता है! ...अरे हाँ, अच्छा याद आया :

भरी दोपहरी दागिस्तान की इक वादी में...


1. पास हैं तेरे हीरे-मोती... (जर्मन)

2. पास हैं तेरे सुंदर नैना, अब क्या चाहे ऐ गोरी (जर्मन)


मुझे यह गाना कितना अच्छा लगता था... मैं इसकी दिवानी थी! जानती है, जब हमारी मँगनी हुई थी तब तेरे पापा यही गाना गाया करते थे... कितने सुख के दिन थे! ...हम यही गाएँगे! लेकिन इसके बोल क्या हैं... मैं तो भूल ही गई... कोई बताओ न... क्या है यह गाना?' उनका जोश उमड़ आया, और उन्होंने उठ कर बैठने की कोशिश की। आखिरकार बेहद भर्राई, फटी हुई आवाज में वे चीख-चीख कर गाने भी लगीं। हर शब्द पर उनका गला रुँध जाता था; आँखों में भय समाया हुआ था :

भरी दोपहरी... दागिस्तान की... इक वादी में...

सीने में सीसा-सा ले कर...

योर एक्सीलेंसी!' अचानक वे दिल को चीर देनेवाली आवाज में चीखीं और उनकी आँखों से आँसू बह निकले, 'मेरे अनाथ बच्चों के लिए कुछ कीजिए! आप मेरे स्वर्गीय पति के यहाँ मेहमान रह चुके हैं! ...यूँ समझिए कि खानदानी रईस! ...आ...ह!' वे अचानक सिहर उठीं, फिर होश में आ कर कातर दृष्टि से सबको देखा, लेकिन बस सोन्या को पहचान सकीं। 'सोन्या! सोन्या!' वे नर्मी और बड़े प्यार से बोलीं, गोया सोन्या को अपने सामने पा कर बहुत आश्चर्य में पड़ गई हों। 'प्यारी बेटी सोन्या, यहाँ तू भी है?'

उन्हें फिर उठा कर बिठा दिया गया।

'बहुत हो चुका! ...वक्त अब आ गया ...तो मैं चली, मेरी बदनसीब बच्ची! ...उन्होंने घोड़ी को दौड़ा-दौड़ा कर उसकी जान ही ले ली! मैं तो मिट गई! तबाह हो गई!' वे घोर निराशा और घृणा में डूबे स्वर में चिल्लाईं और उनका सर तकिए पर लुढ़क गया।

वे एक बार फिर बेहोश हो गईं, लेकिन इस बार उनकी बेहोशी बहुत देर तक कायम नहीं रही। मुरझाया हुआ पीला बेजान चेहरा पीछे की ओर झुक गया, मुँह खुल गया और टाँगें झटके के साथ ऐंठ गईं। एक गहरी, बहुत गहरी आह भरीं और दम तोड़ दिया।

सोन्या लाश पर गिर पड़ी। उसने अपनी बाँहें लाश के चारों ओर डाल दीं और मृत शरीर के सूखे सीने पर सर रखे चुपचाप लेटी रही। नन्ही पोलेच्का ने माँ के पाँवों पर होठ रख कर उन्हें जोर से चूमा और फूट-फूट कर रोने लगी। कोल्या और लीदा की समझ में अभी तक नहीं आया था कि हो क्या गया है लेकिन यह महसूस करके कि कोई भयानक बात हुई है, वे एक-दूसरे के गले में बाँहें डाल कर एक-दूसरे को घूरने लगे। अचानक उनके मुँह एक साथ खुले और वे चीख पड़े। दोनों अभी तक अपना वही गाने-बजानेवाला लिबास पहने हुए थे। लड़के के सर पर पगड़ी थी और छोटी बच्ची के सर पर वही टोपी जिसमें शुतुरमुर्ग का पंख लगा हुआ था।

वह प्रशंसापत्र न जाने कैसे कतेरीना इवानोव्ना के बिस्तर पर, उनकी बगल में प्रकट हुआ वह तकिए के पास पड़ा था; रस्कोलनिकोव ने उसे देखा।

वह खिड़की के पास चला गया। लेबेजियातनिकोव भी लपक कर पास पहुँचा।

'मर चुकी हैं,' लेबेजियातनिकोव ने कहा।

'मैं आपसे कुछ बातें करना चाहता हूँ, रोदिओन रोमानोविच,' स्विद्रिगाइलोव ने पास आ कर कहा। लेबेजियातनिकोव परिस्थिति को समझ कर चुपचाप वहाँ से हट गया। स्विद्रिगाइलोव आश्चर्यचकित रस्कोलनिकोव को ले कर और भी दूर, कमरे के एक कोने में पहुँच गया।

'आप यह सारा काम, मेरा मतलब है कफन-दफन का काम मुझ पर छोड़ सकते हैं। आप जानते ही हैं कि इसमें पैसा लगेगा और जैसा कि मैं बता चुका हूँ, मेरे पास कुछ फालतू पैसा है। इन दोनों बच्चों को और उस छोटी लड़की पोलेच्का को मैं किसी अनाथालय में रखवा दूँगा, किसी अच्छे से अनाथालय में, और उनमें से हरेक के नाम पंद्रह-पंद्रह सौ रूबल जमा करवा दूँगा, जो बालिग होने पर उन्हें मिल जाएँगे, ताकि सोफ्या सेम्योनोव्ना को किसी बात की चिंता न करनी पड़े। मैं उसे भी इस कीचड़ से बाहर निकालूँगा क्योंकि वह बहुत अच्छी लड़की है, है कि नहीं... तो जनाब, आप अपनी बहन से कह सकते हैं कि उनके नाम किए गए दस हजार रूबल मैंने इस तरह खर्च कर दिए।'

'आप अचानक भला इतना उदार कैसे हो गए?' रस्कोलनिकोव ने पूछा।

'आह, आप भी अजीब शक्की आदमी हैं।' स्विद्रिगाइलोव ने हँस कर कहा। 'मैंने आपको बताया था न कि मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। क्या आप इतना नहीं समझ सकते कि मैं यह बात सिर्फ इनसानियत के नाते कर रहा हूँ बहरहाल, वे...' उसने कमरे के उस कोने की तरफ इशारा किया जहाँ कतेरीना इवानोव्ना मरी पड़ी थीं, 'वे कोई 'जूँ' तो थीं नहीं, किसी खूसट सूदखोर बुढ़िया की तरह, या थीं...? या आप सचमुच यह समझते हैं कि, 'लूजिन को जिंदा रहना और अपनी बेहूदगियाँ करते रहना चाहिए और इनको मर जाना चाहिए और अगर मैं उन्हें बचाने न आता तो 'नन्ही पोलेच्का भी, मिसाल के लिए, उसी रास्ते पर लग गई होती...'

उसने ये सारी बातें चटखारे ले-ले कर, आँख मार कर और शरारत भरे अंदाज में कहीं और लगातार रस्कोलनिकोव पर अपनी नजरें जमाए रहा। उसके मुँह से हू-ब-हू वही शब्द सुन कर जो खुद उसने सोन्या के साथ अपनी बातचीत के दौरान इस्तेमाल किए थे, रस्कोलनिकोव का रंग सफेद हो गया। उसका शरीर ठंडा पड़ गया। वह चौंक कर पीछे हटा और फटी-फटी आँखों से स्विद्रिगाइलोव को देखने लगा।

'आपको... कैसे मालूम?' उसने बहुत धीमे स्वर में कहा। उसकी साँस भी ठीक से नहीं चल रही थी।

'मेरे दोस्त, मैं यहीं रहता हूँ... श्रीमती रेसलिख के यहाँ लकड़ी की उस ओट के पीछे। इस फ्लैट में कापरनाउमोव रहता है, और उस फ्लैट में मिसेज रेसलिख रहती हैं। मेरी श्रीमती रेसलिख से पुरानी दोस्ती है। मुझे बहुत मानती हैं। हम पड़ोसी हैं।'

'आप?'

'हाँ, मैं,' स्विद्रिगाइलोव ने ठहाका लगा कर कहा। 'और, प्यारे रोदिओन रस्कोलनिकोव, तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मुझे तुममें बेहद दिलचस्पी है। मैंने तुमसे कहा भी था कि हम दोनों गहरे दोस्त बन जाएँगे, कहा था कि नहीं? मैंने तो पहले ही तुम्हें बता दिया था। तो हम दोस्त बन ही गए। तुम देखोगे कि मैं कितना मस्त-मौला आदमी हूँ। देखोगे कि मुझसे तुम्हारी कैसी अच्छी पटती है!'