अपराध और दंड / अध्याय 6 / भाग 1 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव के लिए एक अजीब दौर का आरंभ हुआ : लगता था, उसके ऊपर घना कुहरा उतर आया हो जिसने उसे घोर निराशा भरे अकेलेपन की चादर में लपेट दिया हो और उससे निकलने का कोई रास्ता न हो। बाद में - बहुत बाद में - इस जमाने को याद करके उसने महसूस किया कि इसमें ऐसे पल भी आए थे जब चीजों को देखने-समझने की क्षमता धुँधलाती महसूस हो रही थी, और यह सिलसिला आखिरी तबाही आने तक चलता रहा था, बस बीच में कभी-कभी ठहर जाता था। उसे यकीन हो चला था कि उस जमाने में, कई बातों के बारे में उसके विचार गलत थे, मसलन कुछेक घटनाओं की तारीख और अवधि के बारे में। बहरहाल, बाद में जब उसने उन घटनाओं को याद किया और उनकी वजह तलाश करने की कोशिश की तो दूसरे लोगों से हासिल की गई जानकारी को बाँध-जोड़ कर उसने अपने बारे में कई ऐसी बातों का पता लगाया जो उसे पहले नहीं मालूम थीं। मिसाल के तौर पर वह एक घटना को कोई दूसरी घटना का नतीजा समझ लेता था, जिसका अस्तित्व केवल उसकी कल्पना में था। कभी-कभी उस पर चिंता की ऐसी दुखदायी और बीमार भावना छा जाती थी, जो बौखलाहट का रूप ले लेती थी। लेकिन उसे ऐसे पल भी याद थे, ऐसे घंटे, बल्कि पूरे-पूरे दिन, जब उस पर गोया पहलेवाली बौखलाहट के विपरीत भरपूर उदासीनता छा जाती थी, उसी बीमार लाचारी जैसी उदासीनता, जो कभी-कभी मरने से फौरन पहले कुछेक लोगों पर छा जाती है। उन अंतिम दिनों में, कुल मिला कर, ऐसा लगता था कि वह अपनी स्थिति को पूरी तरह और साफ-साफ समझने से कतराने की चिंता करता रहता था। उन दिनों तात्कालिक महत्व की कुछ ऐसी बातें दिमाग पर खास तौर पर बोझ बनी रहती थीं, जिनकी वजह को फौरन समझना जरूरी होता था। लेकिन उसे अपनी चिंताओं से बच निकलने से कितनी ही खुशी क्यों न होती रही हो, उसने इतना जरूर महसूस किया कि जो आदमी उस जैसी स्थिति में हो, उसके लिए उन चिंताओं की ओर एकदम ध्यान न देना लाजमी तौर पर तबाही का कारण बन सकता था।

वह खास कर स्विद्रिगाइलोव की वजह से चिंतित था, बल्कि यह कहना गलत न होगा कि उसके सारे विचार स्विद्रिगाइलोव पर केंद्रित थे। जब से स्विद्रिगाइलोव ने कतेरीना इवानोव्ना की मौत के समय सोन्या के कमरे में रस्कोलनिकोव के आगे उन धमकी भरे और उसकी नजरों में असंदिग्ध, शब्दों का इस्तेमाल किया था, तब से ऐसा लगने लगा था कि उसके विचारों का स्वाभाविक प्रवाह टूट चुका था। वैसे इस नई बात से रस्कोलनिकोव को बेहद चिंता हुई थी, फिर भी उसे इसका कारण जानने की कोई जल्दी महसूस नहीं होती थी। कभी-कभी जब वह शहर के किसी दूर-दराज, एकांत हिस्से में, किसी घटिया शराबखाने की मेज पर अपने आपको विचारों में खोया हुआ पाता और उसे ठीक से यह भी याद नहीं आता कि वह वहाँ पहुँचा कैसे, तब वह अचानक स्विद्रिगाइलोव के बारे में सोचने लगता था। वह अचानक हैरानी के साथ और बहुत स्पष्ट रूप से यह महसूस करने लगा था कि उसे जितनी जल्दी हो सके, उस आदमी के साथ मेल-जोल पैदा करना चाहिए, उससे कोई पक्का समझौता कर लेना चाहिए। अपने आपको एक दिन शहर के बाहर पा कर वह यह भी कल्पना करने लगा कि वह स्विद्रिगाइलोव का इंतजार कर रहा था, कि उसने उससे वहीं मिलने की बात तय की थी। फिर एक बार ऐसा भी हुआ कि पौ फटने से पहले उसकी आँख खुली, तो वह झाड़ियों के बीच जमीन पर पड़ा था और उसे यह भी याद नहीं आ रहा था कि वह वहाँ पहुँचा कैसे था। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना की मौत के दो-तीन दिनों के अंदर वह स्विद्रिगाइलोव से कई बार मिला था, और लगभग हर बार सोन्या के कमरे में मिला था, जहाँ वह देखने में बिना किसी काम के जाता था। ऐसी हर भेंट लगभग हमेशा ही बस एक मिनट के लिए हुई। वे एक-दूसरे से कुछ शब्द कहते थे लेकिन कभी उस चीज के बारे में बातें नहीं करते थे, जिसमें उन दोनों को सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी, गोया दोनों के बीच अपने आप फिलहाल उस बारे में कुछ भी न कहने का फैसला हो गया हो। कतेरीना इवानोव्ना की लाश अभी तक ताबूत में रखी थी। स्विद्रिगाइलोव कफन-दफन के इंतजाम में लगा हुआ था। सोन्या भी बहुत व्यस्त थी। पिछली मुलाकात में स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को बताया था कि उसने कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों का पूरा-पूरा बंदोबस्त और बहुत ही संतोषजनक बंदोबस्त कर दिया था। अपनी जान-पहचान के कुछ लोगों से पूछताछ करके उसने कुछ ऐसे लोगों का पता लगाया था जिनकी मदद से उन तीन अनाथ बच्चों को उचित संस्थाओं में फौरन रखा जा सकता था। उसने यह भी बताया कि उसने उनके नाम जो पैसा जमा कराया था, उसकी वजह से भी बहुत मदद मिली क्योंकि जिन बच्चों के पास अपना कुछ पैसा होता है, उनका बंदोबस्त कंगाल बच्चों की अपेक्षा कहीं ज्यादा आसानी से हो जाता है। उसने सोन्या के बारे में भी कुछ कहा था, एक-दो दिन में रस्कोलनिकोव से खुद आ कर मिलने का वादा किया था, और इस बात का जिक्र किया था कि वह उसकी 'सलाह' लेना चाहता है, कि वह उसके साथ 'सारी बातें सुलझा लेने' के लिए बहुत ही बेचैन है, और यह कि उसे उससे कुछ 'काम की' बातें करनी हैं। यह बातचीत ड्योढ़ी में या सीढ़ियों पर होती थी। स्विद्रिगाइलोव ने एक बार एक पल रस्कोलनिकोव की आँखों में आँखें डाल कर बड़े गौर से देखा और फिर अपनी आवाज नीची करके उसने अचानक पूछा :

'लेकिन रोदिओन रोमानोविच, तुम इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो तुम तो लगता है कहीं खोए हुए हो, सचमुच! सब कुछ देखते रहते हो और सुनते रहते हो लेकिन लगता है, तुम्हारी समझ में कुछ भी नहीं आता। चिंता छोड़ो यार, खुश रहो! हम लोगों की बातचीत होने के बाद देखना; अफसोस की बात है कि इस वक्त मैं खुद अपने और दूसरे लोगों के मुआमलों में बुरी तरह उलझा हुआ हूँ।' उसने अचानक कहा, 'हर इनसान को खुली हवा की जरूरत होती है, हवा की, हवा की! ...सबसे बढ़ कर बस इसी एक चीज की!'

अचानक वह पादरी और उसके सहायक को रास्ता देने के लिए एक ओर को हट गया। वे लोग मृतात्मा के लिए प्रार्थना करने सीढ़ियों से ऊपर आ रहे थे। स्विद्रिगाइलोव ने इसका बंदोबस्त कर दिया था कि रोज दो बार यह प्रार्थना हुआ करे। स्विद्रिगाइलोव तो अपने काम से चला गया लेकिन रस्कोलनिकोव कुछ पल खड़ा सोचता रहा और फिर पादरी के पीछे-पीछे सोन्या के कमरे में चला गया।

वह चौखट पर ठिठक गया। प्रार्थना शुरू हुई - मंद गति से, शांत और उदास भाव से। बचपन के दिनों से ही वह हमेशा यह महसूस करता आया था कि मृत्यु के विचार में और मृत्यु की उपस्थिति की चेतना में कोई बहुत ही मनहूस और रहस्यमय, डरावनी चीज थी। इसके अलावा यह बात भी कि किसी मृत के शोक की प्रार्थना में गए उसे बहुत दिन हो गए थे। पर यहाँ तो कुछ और भी था - कोई बहुत ही भयानक और बेचैन करनेवाली बात। उसने बच्चों की ओर देखा : वे सभी ताबूत के पास घुटनों के बल बैठे थे। पोलेच्का रो रही थी। उनके पीछे सोन्या चुपके-चुपके, डरते-डरते, रोते हुए प्रार्थना कर रही थी। 'बात क्या है,' रस्कोलनिकोव ने अचानक सोचा, 'कि पिछले कुछ दिनों से उसने मेरी ओर देखा तक नहीं और न ही मुझसे कोई बात की!' कमरे में धूप फैली हुई थी; लोबान के धुएँ के बादल उठ रहे थे; पादरी एक आयत पढ़ रहा था, 'हे प्रभु, इसे चिर शांति दो'। पूरी प्रार्थना के दौरान रस्कोलनिकोव वहीं मौजूद रहा। उन्हें आशीर्वाद देने और उनसे विदा लेने के समय लगा कि पादरी ने एक अजीब ढंग से मुड़ कर अपने चारों ओर देखा। रस्कोलनिकोव प्रार्थना के बाद सोन्या के पास गया और सोन्या ने अचानक उसके हाथ अपने हाथों में ले कर सर उसके कंधे पर टिका दिया। उसके जरा देर की इस दोस्ताना अदा से रस्कोलनिकोव हैरत में पड़ गया; उसे यह बात बेहद अजीब लगी। हे भगवान, तो क्या उसके दिल में मेरे लिए जरा भी घृणा और तिरस्कार का भाव नहीं था उसके हाथ कतई काँप नहीं रहे थे... यह तो अपने आपको अपमानित करने की चरम सीमा है। उसने कम-से-कम इसे इसी रूप में समझा। सोन्या ने कुछ नहीं कहा। रस्कोलनिकोव ने उसका हाथ धीरे से दबाया और बाहर चला गया। वह बहुत कुढ़न का अनुभव कर रहा था। अगर वह उस पल कहीं चला जाता और वहाँ बाकी जीवन एकदम अकेला रहता, तो भी अपने आपको धन्य समझता। लेकिन मुसीबत यह थी कि इधर कुछ समय से यूँ तो वह निपट अकेला रहा, पर फिर भी वह कभी यह महसूस नहीं किया कि वह अकेला है। कभी-कभी वह शहर से बाहर निकल जाता, शाहराह पर चलता रहता, और एक दिन तो एक छोटे से जंगल में भी जा पहुँचा लेकिन जगह जितनी ही सुनसान होती थी, उसे पास ही किसी की डरावनी मौजूदगी का उतना ही अधिक एहसास होता था, किसी की ऐसी मौजूदगी का जो उसमें भय उतना पैदा नहीं करती थी जितना उसे झुँझला देती थी। तब वह जल्दी से वापस शहर आ जाता, भीड़ में घुल-मिल जाता, किसी रेस्तराँ या शराबखाने में जा कर बैठ जाता, या पैदल चलता हुआ कबाड़ी बाजार या भूसामंडी पहुँच जाता। वहाँ उसे अधिक शांति मिलती और वह अधिक अकेला भी महसूस करता। एक शाम एक शराबखाने में लोग गीत गा रहे थे। वहाँ वह लगभग घंटे भर बैठा गीत सुनता रहा, और उसे याद था कि उसे उसमें बहुत आनंद आया था। लेकिन अंत में वह फिर बेचैन हो उठा, गोया उसका जमीर उसे कचोके दे रहा हो : 'यहाँ बैठा मैं गाने सुन रहा हूँ जबकि मुझे यही नहीं करना चाहिए, क्यों?' वह बरबस सोचने लगा। लेकिन उसे फौरन लगा कि उसे अकेले यही बात परेशान नहीं कर रही थी। कोई बात ऐसी भी थी जिसे फौरन तय करना जरूरी था लेकिन बात क्या थी, इसे वह न तो साफ तौर पर देख सका और न शब्दों से व्यक्त कर सका। हर चीज कैसी बुरी तरह उलझी हुई मालूम होती थी। 'नहीं,' उसने सोचा, 'इससे तो लड़ना कहीं बेहतर होगा! इससे कहीं बेहतर यह होगा कि वह फिर पोर्फिरी से टक्कर ले... या स्विद्रिगाइलोव से टकरा जाए... या किसी समन का, किसी हमले का सामना करे!' वह शराबखाने से बाहर निकल गया और लगभग दौड़ने लगा। न जाने क्यों दुनिच्का और अपनी माँ का खयाल आने पर वह अचानक बौखला उठा। यह उसी रात की बात है जब उसकी आँख पौ फटने से पहले क्रेस्तोव्स्की द्वीप की कुछ झाड़ियों के बीच खुली थी, उसकी हड्डियों तक में सर्दी समा गई थी और उसे बुखार महसूस हो रहा था। वह घर की तरफ बढ़ चला था और बहुत तड़के वहाँ पहुँचा था। कुछ घंटे सोने के बाद उसका बुखार तो उतर चुका था, लेकिन वह काफी देर तक सो कर उठा था : तीसरे पहर के दो बजे।

उसे याद आया उसी दिन कतेरीना इवानोव्ना को दफन किया जानेवाला था और उसे इसी बात की खुशी थी कि वह उसके जनाजे में नहीं गया। नस्तास्या उसके लिए जब कुछ खाना लाई तो उसने जी भर कर खाया-पिया, किसी मरभुक्खड़ की तरह। दिमाग में पहले से ज्यादा ताजगी आ गई थी, और तब वह जितनी शांति अनुभव करने लगा था, उतनी उसने उससे पहले तीन दिन में कभी नहीं की थी। एक पल के लिए उसे उससे पहले के बौखलानेवाले खौफ के दौरों पर कुछ आश्चर्य भी हुआ। इतने में दरवाजा खुला और रजुमीखिन अंदर आया।

'खूब, तो खाना खा रहे हो... इसका मतलब है कि बीमार नहीं हो,' रजुमीखिन ने कुर्सी खींच कर मेज की दूसरी तरफ रस्कोलनिकोव के सामने बैठते हुए कहा। वह बहुत परेशान था और उसने इसे छिपाने की कोशिश नहीं की। वह स्पष्ट झुँझलाहट के साथ बोल रहा था, लेकिन बिना किसी जल्दी के बिना आवाज ऊँची किए हुए। साफ था कि वह किसी खास, बल्कि गैर-मामूली, काम से आया था।

'देखो,' उसने सधी आवाज में कहना शुरू किया, 'जहाँ तक मेरा सवाल है, मेरी बला से तुम सब लोग भाड़ में भी जाओ... लेकिन मैं अब उस जगह पहुँच चुका हूँ जहाँ मैं यह महसूस करने लगा हूँ कि मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता। भगवान के लिए, यह मत समझना कि मैं तुमसे जवाब माँगने आया हूँ। मेरी बला से! ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं! अगर तुम मुझे खुद अपनी सारी बातें, सारे मनहूस भेद, बताना चाहो तब भी ऐन मुमकिन यही है कि मैं सुनने के लिए न रुकूँ। मैं उठ कर फौरन चला जाऊँगा। मैं निजी तौर पर सबसे पहले और आखिरी बार जिस बात का पता लगाने आया हूँ वह यह है कि तुम सचमुच पागल हो कि नहीं। देखो, कुछ लोग तुम्हारे बारे में यही राय रखते हैं (यहाँ भी और वहाँ भी) कि तुम या तो पागल हो या पागल होनेवाले हो। मैं तुम्हें साफ-साफ बता दूँ, मैं खुद इस राय को मानने को तैयार था। पहली बात तो यह कि तुम्हारी बेवकूफी भरी और कुछ हद तक नफरत पैदा करनेवाली हरकतों की वजह से (मैं लगे हाथ यह भी कह दूँ कि उनकी कोई वजह समझ में नहीं आती), और दूसरी यह कि इधर हाल में अपनी माँ और बहन के साथ तुम्हारा बर्ताव ही ऐसा था। जैसा बर्ताव तुमने किया, वैसा तो महज कोई पिशाच, कोई नीच या कोई पागल ही कर सकता था। इससे साबित होता है कि तुम जरूर पागल हो...'

'क्या तुम उनसे हाल में भी मिले?'

'अभी-अभी। तो क्या उस दिन के बाद तुम उनसे नहीं मिले? तुम आखिर भटकते कहाँ रहते हो, मैं तो यह जानना चाहता हूँ। मैं यहाँ तीन बार पहले भी आ चुका। तुम्हारी माँ बीमार हैं। कल से उनकी तबीयत बहुत खराब है। वे तुम्हारे पास आना चाहती थीं। तुम्हारी बहन ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह किसी तरह सुनती ही नहीं थीं। बोलीं : अगर वह बीमार है, अगर पागल हो रहा है, तो उसकी मदद करना उसकी माँ का फर्ज है। इसलिए हम सब यहाँ साथ आए क्योंकि उन्हें अकेले तो नहीं आने देते। रास्ते भर उनसे हम शांत रहने की मिन्नतें करते रहे। हम अंदर भी आए, लेकिन तुम कहीं बाहर गए हुए थे। वे दस मिनट तक यहीं बैठी राह देखती रहीं, और हम लोग चुपचाप पास में खड़े रहे। फिर वे उठीं और बोलीं : अगर वह बाहर गया हुआ है तो मतलब यह है कि वह चंगा होगा या अपनी माँ को भूल गया है। यह उसकी माँ के लिए बड़े अपमान की बात है और उसे यह शोभा नहीं देता कि माँ उसके दरवाजे पर खड़ी हो कर उससे प्यार की भीख माँगे। घर वापस आते ही उन्होंने चारपाई पकड़ ली। अब उन्हें बुखार है। कहती हैं : मैं देख रही हूँ, 'उसके पास अपनी छोकरी के लिए काफी वक्त है'। उन्हें विश्वास है कि तुम्हारी छोकरी वह सोफ्या सेम्योनोव्ना है और उसे वे तुम्हारी मँगेतर या रखैल, मुझे नहीं मालूम क्या समझती हैं। मैं फौरन सोफ्या सेम्योनोव्ना के यहाँ गया। बात यह है यार कि मैं एक पूरे मामले की तह तक पहुँचना चाहता हूँ। वहाँ पहुँच कर मैंने एक ताबूत रखा हुआ देखा। बच्चे रो रहे थे और सोफ्या सेम्योनोव्ना उन्हें मातमी कपड़े पहना रही थी। तुम वहाँ नहीं थे। मैंने एक नजर झाँक कर देखा, फौरन माफी माँग कर वापस चला आया और फौरन जा कर तुम्हारी बहन को सारी बात बता दी। लिहाजा यह सारी बात बकवास ही है। तुम्हारी कोई छोकरी नहीं है, और तुम शायद सरासर, पूरी तरह पागल हो। और अब तुम यहाँ बैठे उबले गोश्त से यूँ चिपके हुए हो जैसे तीन दिन से मुँह में कौर न गया हो। माना कि खाना तो पागल भी खाते हैं, पर मैं देख सकता हूँ कि तुम... पागल नहीं हों। हालाँकि तुमने मुझसे अभी तक एक शब्द भी नहीं कहा है! मैं कसम खा कर कह सकता हूँ कि तुम कतई पागल नहीं हो। इसलिए तुम सब जाओ भाड़ में क्योंकि जाहिर है इसमें कोई भेद है, कोई रहस्य है और अगर मैं तुम्हारे रहस्यों का पता लगाने में अपना सर खपाऊँ, तो मुझ पर लानत बरसे। इसलिए मैं तुमसे बस यह बताने आया हूँ कि तुम्हारे बारे में मैं क्या सोचता हूँ,' उसने उठते हुए अपनी बात खत्म की। '...अपने दिमाग पर से बोझ उतारने के लिए। इसलिए कि अब मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना है!'

'तुम अब क्या करनेवाले हो?'

'तुमसे मतलब कि मैं क्या करनेवाला हूँ?'

'देखो, खबरदार! तुम शराब पीना न शुरू कर दो!'

'कैसे... तुमने कैसे अंदाजा लगाया?'

'हे भगवान, यह तो सीधी-सी बात है!'

रजुमीखिन कुछ पलों तक चुप रहा।

'तुम हमेशा बहुत समझदार रहे,' अचानक उसने जोश में कहा, 'और कभी पागल नहीं रहे... कभी नहीं। तुम एकदम ठीक कहते हो : मैं शराब ही पीने लगूँगा। तो लो, मैं चला।' यह कह कर वह दरवाजे की ओर बढ़ा।

'रजुमीखिन, मैं अपनी बहन से तुम्हारे बारे में ही बातें कर रहा था। मेरा खयाल है परसों।'

'मेरे बारे में! लेकिन परसों तुम उनसे कहाँ मिले?' रजुमीखिन अचानक ठिठका। उसके चेहरे का रंग जरा उतर गया। साफ लग रहा था कि उसका दिल धीरे-धीरे लेकिन भारीपन के साथ धड़क रहा था।

'वह यहाँ अकेली आई थी। यहीं बैठ कर मुझसे बातें करती रही।'

'यह बात?'

'हाँ।'

'उनसे तुमने क्या बातें की... मेरा मतलब है, मेरे बारे में क्या कहा?'

'मैंने उसे बताया कि तुम बहुत भले, ईमानदार और मेहनती इनसान हो। हाँ, उसे मैंने यह नहीं बताया कि तुम उससे प्यार करते हो, क्योंकि यह तो वह आप ही जानती है।'

'आप ही जानती हैं?'

'बिलकुल! तो मैं कहीं भी जाऊँ, मेरा जो भी हाल हो, तुम उन लोगों के साथ ही रहना, उनकी देखभाल करना। यह समझ लो रजुमीखिन कि उन्हें मैं तुम्हारे हवाले कर रहा हूँ... कि मुझे पता है, तुम्हें उससे कितना प्यार है और इसलिए कि मुझे पक्का यकीन है कि तुम एक नेक इनसान हो। मुझे यह भी पता है कि अगर इस वक्त उसे तुमसे प्यार नहीं भी हो, तो भी आगे चल कर वह तुमसे प्यार कर सकती है। अब तुम खुद ही फैसला करो कि तुम्हें शराब शुरू करनी चाहिए या नहीं।'

'रोद्या... देखो... खैर... जाने दो यह बात! लेकिन तुम भला कहाँ जाने की सोच रहे हो मेरा मतलब है, अगर यह कोई भेद की बात है तो मैं जवाब के लिए तुम पर जोर नहीं डालूँगा। हाँ, मैं... मैं इस भेद का पता तो लगा ही लूँगा... और मुझे पूरा यकीन है कि यह सब खुराफात है... सरासर बकवास है, और यह सारा सिलसिला तुमने ही शुरू किया है। फिर भी, तुम आदमी बहुत अच्छे हो! बहुत अच्छे...'

'खैर, मैं तो आप ही तुम्हें बताने जा रहा था, लेकिन तुमने मेरी बात बीच में ही काट दी। अभी एक मिनट पहले तुम्हारे मुँह से यह सुन कर मैं बहुत खुश हुआ था कि तुम मेरे किसी भेद का पता लगाने की कोशिश नहीं करोगे। फिलहाल तो भेद को भेद ही रहने दो। तुम बड़े अच्छे हो, और उसके बारे में परेशान मत हो। वक्त आने पर हर बात तुम्हें मालूम हो जाएगी... मेरा मतलब है, जब तुम्हारे जानने का वक्त आएगा। कोई मुझे कल बता रहा था कि आदमी के लिए जो चीज जरूरी है, वह है ताजा हवा, हवा! मैं अभी उसके पास जा कर यही मालूम करना चाहता था कि इससे उसकी मुराद क्या थी।'

रजुमीखिन विचारमग्न और अंदर से हिला हुआ नजर आ रहा था। लग रहा था, वह किसी बात के बारे में सोच रहा है।

'यह एक राजनीतिक षड्यंत्रकारी है, इसमें कोई शक नहीं! और यह भी तय है कि यह जान की बाजी लगा कर कुछ करनेवाला है... इसके अलावा कुछ और हो भी नहीं सकता और... और दुनिच्का इस बात को जानती है,' उसने मन-ही-मन सोचा।

'तो तुम्हारी बहन तुमसे मिलने आती हैं,' उसने एक-एक शब्द पर जोर दे कर कहा, 'और तुम खुद ऐसे किसी आदमी से मिलने के लिए बेचैन हो जो कहता है कि हमें हवा की और ज्यादा जरूरत है, हवा की और... मैं समझता हूँ कि वह खत भी इसी तरह की कोई चीज है,' उसने अपनी बात खत्म करते हुए कहा, गोया अपने आपसे बातें कर रहा हो।

'कौन-सा खत?'

'आज सबेरे उनके पास एक खत आया जिसे पढ़ कर वे बहुत परेशान हो गईं। बहुत ही परेशान। मैं तुम्हारे बारे में बातें करने लगा तो मुझे लगभग डाँट कर चुप करा दिया। फिर... फिर बोलीं कि शायद जल्दी ही हमको एक-दूसरे से अलग होना पड़े। फिर किसी बात के लिए मेरा शुक्रिया अदा करने लगीं, और उसके बाद अपने कमरे में जा कर कमरा अंदर से बंद कर लिया।'

'उसके पास कोई खत आया था?' रस्कोलनिकोव ने कुछ सोचते हुए कहा।

'हाँ। तुम्हें नहीं मालूम हूँ!'

दोनों चुप रहे।

'तो रोद्या, मैं चला। देखो यार... एक जमाना वह भी था जब... खैर, चलता हूँ! मुझे जाना भी है। मैं शराब के चक्कर में नहीं पड़ूँगा, अब उसकी कोई जरूरत नहीं रही... खतरे की कोई बात नहीं।'

उसे जाने की जल्दी थी, लेकिन बाहर निकलते हुए जब वह दरवाजा बंद करने लगा तो अचानक दरवाजा फिर खोल कर रस्कोलनिकोव की ओर देखे बिना बोला :

'अरे हाँ, तुम्हें वह कत्ल तो याद है न पोर्फिरी और... वह बुढ़िया तो मैं तुम्हें यह बता दूँ कि हत्यारे का पता चल चुका है। उसने अपना अपराध मान लिया है और सारे सबूत भी बरामद करा दिए हैं। वह उन्हीं मजदूरों में से था जो घर की रंगाई-पुताई कर रहे थे। कमाल की बात है न? याद है, मैं यहीं पर, उन्हीं की पैरवी कर रहा था। तुम यकीन करोगे कि जिस वक्त दरबान और दो गवाह सीढ़ियों से ऊपर जा रहे थे तब उसने जान-बूझ कर अपने पर से शक हटाने के लिए अपने साथी के साथ सीढ़ियों पर मार-पीट और हँसी-मजाक का वह नाटक रचा था। ऐसी नौजवानी में इतनी चालाकी ऐसी हाजिर-दिमागी! यकीन नहीं आता किसी तरह, लेकिन उसने हर बात की वजह साफ कर दी है और सब कुछ साफ तौर पर कबूल कर लिया है। पर मैं भी कैसा बेवकूफ बना! मैं तो समझता हूँ कि मक्कारी और सूझबूझ में उसका जवाब नहीं है। वह हमारे बड़े-बड़े कानून के पंडितों की आँखों में धूल झोंकने में उस्ताद है, सो ताज्जुब की कोई बात नहीं है इसमें! बहरहाल, ऐसे लोग भी इस दुनिया में क्यों न मिलें जहाँ तक इस नाटक को जारी न रख पाने और अपना अपराध कबूल कर लेने की बात है, तो यह भी एक वजह है कि उसका यकीन किया जाए। बात और भी यकीन के लायक हो जाती है... लेकिन उस दिन मैं कैसा बेवकूफ बना! उसकी पैरवी में जमीन-आसमान के कुलाबे मिला दिए!'

'आह... पर यह तो बताओ कि ये सब बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं, और तुम्हें इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों है?' रस्कोलनिकोव ने साफ तौर पर उत्तेजित हो कर पूछा।

'हे भगवान, इसमें मेरी दिलचस्पी की भी एक ही कही! क्या सवाल है! मुझे यह बात औरों के अलावा पोर्फिरी से भी मालूम हुई। सच तो बल्कि यह है कि लगभग सारी बातें उसी ने बताईं।'

'पोर्फिरी ने'

'हाँ, पोर्फिरी ने।'

'हूँ तो क्या... क्या कहा उसने?' रस्कोलनिकोव ने चौंक कर पूछा।

'अरे उसने तो सारी बातें बड़े ही खूबसूरत ढंग से समझाईं। मनोवैज्ञानिक ढंग से, अपने ही खास ढंग से।'

'उसने समझाया... तुम्हें उसने खुद समझाया?'

'हाँ, खुद उसने। तो मैं चला। बाद में तुम्हें और भी बातें बताऊँगा। माफ करना, अब मैं भागूँगा। देखो, बात यह है कि एक जमाना था जब मैं सोच करता था... पर जाने दो, अभी नहीं बाद में बताऊँगा... अब मैं नशे में चूर होना नहीं चाहता, तुमने तो मुझे शराब के बिना ही मदहोश कर दिया है। मैं नशे में हूँ, रोद्या! एक बूँद भी पिए बिना नशे में हूँ। खैर, फिर मिलेंगे। बहुत जल्द मैं फिर आऊँगा।'

वह चला गया।

'किसी राजनीतिक षड्यंत्र में यह शामिल है, यह तो तय बात है... एकदम पक्की,' रजुमीखिन ने धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरते हुए आखिरी तौर पर सोचा। 'और इसने अपनी बहन को भी उसमें घसीट लिया है। दुनिच्का जैसी लड़की के साथ ऐसा होना ऐन मुमकिन है। दोनों छिप-छिप कर मिलने भी लगे हैं... और उसने भी इशारे-इशारे में मुझसे यह बात कही! हाँ, उसकी बातों से... उसके हाव-भाव से... और उसके इशारों से तो यही लगता है कि यह बात सच होगी! वरना इस गुत्थी का और क्या हल हो सकता है मैं सोचता था... हे भगवान, मैंने ऐसी बात सोची कैसे! मैं पागल था कि मैंने इस तरह की बात सोची और इस तरह उसके साथ बड़ी ही ज्यादती की। उस दिन रात को गलियारे में लैंप के नीचे उसी ने मुझे ऐसा सोचने पर मजबूर किया। लानत है! कैसा बेहूदा, भोंडा और कायरता भरा विचार था! भला हो उस निकोलाई का कि उसने अपना अपराध मान लिया! उसकी वजह से कितनी मदद मिली है सारी बात समझने में। इसकी बीमारी, इसकी अजीब-अजीब हरकतें... यूनिवर्सिटी में भी यह उखड़ा-उखड़ा और उदास रहा था... लेकिन उस खत का भेद क्या है मैं समझता हूँ, उसमें भी कोई बात जरूर है। किसका खत था? मुझे तो शक है... खैर, पता तो मैं लगा ही लूँगा!'

दुनिच्का का अजीब-गरीब व्यवहार याद करके उसका दिल डूबने लगा। वह तेज कदम बढ़ाता हुआ चलता रहा।

रजुमीखिन के जाते ही रस्कोलनिकोव उठा, खिड़की की ओर घूमा और कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टहलने लगा, गोया उसे यह याद भी न रहा हो कि कमरा कितना छोटा था, और... वह एक बार फिर सोफे पर बैठ गया। लग रहा था, वह बिलकुल बदल गया है। तो आगे एक संघर्ष और भी है... मतलब कि बाहर निकलने का रास्ता भी है!

'हाँ, रास्ता तो है! हवा की बेहद कमी हो रही है... काफी घुटन है यहाँ!' उसे लगा, वह किसी बहुत बड़े बोझ के नीचे दबा हुआ है जो उसे जमीन से उठने नहीं दे रहा, गोया उसे किसी ने नशीली दवा पिला दी हो। उस दिन पोर्फिरी के दफ्तर में निकोलाई के साथ जो कुछ हुआ था, उसके बाद से वह बहुत जकड़ा हुआ, घुटा-घुटा महसूस करने लगा था। उसी दिन निकोलाईवाली घटना के बाद सोन्या के कमरेवाली बात हुई थी। उस घटना में उसने जो कुछ किया और अंत में जो कुछ कहा, उसकी उसने पहले से कल्पना तक नहीं की थी... हाँ, वह कमजोर हो गया था, और सो भी अचानक और पूरी तरह! एक ही झटके में! उस वक्त वह सोन्या की इस बात से सहमत था कि अपने अंतःकरण पर ऐसी चीज का बोझ ले कर वह चल नहीं सकेगा! और स्विद्रिगाइलोव? स्विद्रिगाइलोव एक पहेली था... यह सच था कि उसे स्विद्रिगाइलोव की वजह से काफी चिंता रहती थी, लेकिन न जाने क्यों यह उस तरह की चिंता नहीं थी। शायद उसे स्विद्रिगाइलोव से भी टकराना पड़े। शायद उसके लिए स्विद्रिगाइलोव को पछाड़ देने की गुंजाइश भी बहुत थी। लेकिन पोर्फिरी की बात एकदम अलग थी।

तो पोर्फिरी ने रजुमीखिन को सारी बात समझाई। मनोवैज्ञानिक ढंग से... उसने फिर अपना वही मनहूस मनोविज्ञान घुसेड़ा! पोर्फिरी उस दिन उसके दफ्तर में उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था उसके बाद, और निकोलाई के आने से पहले उन दोनों में जो झड़प हुई थी उसके बाद, जिसकी बस एक वजह हो सकती थी... क्या यह मुमकिन था कि पोर्फिरी एक पल के लिए भी यह यकीन कर ले कि निकोलाई अपराधी था! (पिछले कुछ दिनों में रस्कोलनिकोव को पोर्फिरी के साथ उस झड़प के अलग-अलग टुकड़े कई बार याद आए थे; पूरी घटना को याद करना उसकी बर्दाश्त से बाहर था।) उस दिन ऐसी बातें भी कही गई थीं, दोनों के बीच इस तरह के इशारे भी हुए थे, दोनों ने ऐसी नजरों से एक-दूसरे को देखा था, ऐसे लहजे में बातें कही गई थीं और आखिर में यहाँ तक नौबत पहुँच गई थी कि इतना सब कुछ होने के बाद निकोलाई (जिसे पोर्फिरी ने उसके पहले ही शब्द और उसकी पहली ही मुद्रा से एक खुली किताब की तरह पढ़ लिया था) उसके विश्वास को डिगा नहीं सकता था।

पर कमाल तो यह था कि अब रजुमीखिन भी शक करने लगा था! उस दिन गलियारे में लैंप के नीचे जो कुछ हुआ उसका भी असर पड़े बिना नहीं रहा इसीलिए तो वह भागा-भागा पोर्फिरी के पास गया था। ...लेकिन पोर्फिरी क्यों उसे धोखे में रखना चाहता था? रजुमीखिन का ध्यान निकोलाई की ओर मोड़ने के पीछे उसकी क्या चाल थी? उसके मन में कोई तो बात होगी। उसके कुछ इरादे तो होंगे! तो वे इरादे क्या थे? वह सच है कि उस सुबह के बाद से बहुत सारा वक्त गुजर गया था - बहुत अधिक वक्त - और पोर्फिरी की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई थी। यह यकीनन कोई बहुत अच्छा संकेत नहीं है...' रस्कोलनिकोव गहरी सोच में डूबा हुआ था। बाहर जाने के इरादे से उसने अपनी टोपी उठाई। इतने दिनों में पहली बार उसे महसूस हुआ कि उसके दिमाग पर जो बादल छाए हुए थे, वे छँट गए हैं। 'मुझे स्विद्रिगाइलोव से तो निबटना ही होगा,' उसने सोचा, 'हर कीमत पर और जल्द से जल्द निबटना होगा। शायद वह भी इसी की राह देख रहा है कि मैं उसके पास आऊँ।' उस पल उसके थके हुए मन में इतनी नफरत भर गई कि वह उन दो में से किसी को कत्ल भी कर सकता था : स्विद्रिगाइलोव को या फिर पोर्फिरी को। उसने कम-से-कम यही महसूस किया कि अभी नहीं तो बाद में तो वह ऐसा कर ही सकता है। 'देखेंगे... देखेंगे,' वह बार-बार मन ही मन कहता रहा।

लेकिन उसने अभी दरवाजा खोला ही था कि उसकी मुठभेड़ पोर्फिरी से हो गई। वह उससे ही मिलने आ रहा था। एक पल के लिए रस्कोलनिकोव भौंचक रह गया, लेकिन बस एक पल के लिए। अजीब बात है कि उसे पोर्फिरी को देख कर ताज्जुब तक नहीं हुआ और उससे कुछ खास डर भी नहीं लगा। वह बस चौंक पड़ा लेकिन जल्द ही, लगभग फौरन ही, अपने आपको इस बात के लिए तैयार कर लिया कि जो भी होना हो, वह हो ही ले। 'शायद यही अंत है! लेकिन वह इस तरह, चूहे की तरह चुपके-चुपके ऊपर कैसे आया कि उसकी आहट तक मैंने नहीं सुनी! कहीं छिप कर कान लगाए सुन तो नहीं रहा था!'

'तुम्हें एक मेहमान के आने की उम्मीद तो रही नहीं होगी, दोस्त' पोर्फिरी जोर-से हँस कर बोला। 'मैं एक अरसे से तुमसे मिलने का इरादा कर रहा था। इधर से गुजर रहा था तो सोचा कि क्यों न पाँच मिनट के लिए मिलता चलूँ और देखूँ कि तुम्हारा क्या हाल है। बाहर जा रहे हो? मैं ज्यादा वक्त नहीं लूँगा। अगर तुम्हें एतराज न हो तो एक सिगरेट पी लूँ।'

'कृपा करके आसन लीजिए पोर्फिरी पेत्रोविच, तशरीफ रखिए!' रस्कोलनिकोव इतनी शिष्टता और मित्रता के भाव से मेहमान से बैठने को कह रहा था कि वह खुद अगर देखता तो उसे ताज्जुब होता। तो अब टकराव का वक्त करीब आ रहा है! आदमी आध घंटा किसी कातिल के साथ बिताता है और उसकी साँस अटकी रहती है, लेकिन जब छुरा उसकी गर्दन पर रख दिया जाता है तो उसे कतई कोई डर नहीं लगता। रस्कोलनिकोव पोर्फिरी के सामने आन बैठा और पलक झपकाए बिना उसे देखने लगा। पोर्फिरी ने आँखें सिकोड़ कर देखा और सिगरेट जलाने लगा।

'खैर, तो कहिए, कुछ कहिए तो सही!' लग रहा था कि शब्द रस्कोलनिकोव के दिल से फूटे पड़ रहे थे। 'आप कुछ बोलते क्यों नहीं, जनाब!'