अपराध और दंड / अध्याय 6 / भाग 2 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'इन सिगरेटों को ही देखो,' पोर्फिरी ने सिगरेट जला लेने के बाद धुआँ फूँकते हुए कहना शुरू किया। 'मुझे पता है कि ये मेरे लिए अच्छी नहीं हैं लेकिन इन्हें मैं नहीं छोड़ सकता। हर वक्त खाँसी आती रहती है, गले में खराश रहती है, दम फूलता है। तुम जानते ही हो, मैं जरा डरपोक किस्म का बंदा हूँ। अभी उस दिन मैं एक स्पेशलिस्ट के पास गया था - डॉ. बोतकिन के पास। वे हर मरीज को देखने में कम-से-कम आधा घंटा लगाते हैं, लेकिन मुझे देख कर बस हँस पड़े। ठोंक-बजा कर देखा, सीने पर आला लगा कर देखा। फिर मुझसे बोले, तंबाकू तुम्हारे लिए बुरी है, फेफड़ों पर असर हो गया है। लेकिन मैं इसे छोड़ूँ कैसे... इसकी जगह ले सके, ऐसी क्या चीज है मुसीबत यह है कि शराब मैं छूता नहीं, हा-हा-हा! मैं तो समझता हूँ सारी मुसीबत यही है। देखो, बात यह है कि अपने आप में कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं होती; आदमी-आदमी की और वक्त-वक्त की बात होती है!'

'अपनी वही कानूनी चालें फिर तो नहीं चल रहा?' रस्कोलनिकोव ने झुँझला कर सोचा। पिछली मुलाकात का सारा दृश्य अचानक उसकी आँखों के सामने आ गया और एक बार फिर उसने उसी भावना को तेजी से उभरता हुआ महसूस किया जिसे उसने उस समय महसूस किया था।

'परसों भी तुमसे मिलने आया था मैं, शाम को,' पोर्फिरी कमरे में चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए कहता रहा। 'तुम्हें पता नहीं, यहाँ आया था, इसी कमरे में। इधर से हो कर गुजर रहा था... आज ही की तरह, सो दिल में सोचा, क्यों न एक मिनट के लिए मिलता चलूँ सो मैं आया। तुम्हारे कमरे का दरवाजा भाड़ के मुँह जैसा खुला हुआ था। मैंने इधर-उधर देखा, तुम्हारी नौकरानी तक को नहीं बताया, और वापस चला गया। तुम दरवाजे में ताला नहीं लगाते, क्यों?'

रस्कोलनिकोव का चेहरा और भी गंभीर हो गया। लगता था, पोर्फिरी ने उसके विचारों को भाँप लिया था।

'मैं तुमसे ही बातें करने आया हूँ, दोस्त! लेकिन सिर्फ बातें करने! यहाँ आने की वजह बताना मेरे लिए जरूरी है, बल्कि मेरा फर्ज है,' वह कुछ मुस्कराते हुए कहता रहा, और उसने धीरे से रस्कोलनिकोव का घुटना थपथपाया। लेकिन लगभग उसी पल उसका चेहरा गंभीर और विचारमग्न हो गया। रस्कोलनिकोव को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसकी भंगिमा में उदासी की भी जरा-सी परछाईं थी। उसे उसने कभी ऐसा नहीं देखा था, बल्कि कभी सोचा तक नहीं था कि वह कभी ऐसा भी नजर आ सकता है। 'मैं समझता हूँ पिछली मुलाकात के वक्त हम दोनों के बीच झड़प जैसी कोई बात हो गई थी। यह सच है कि पहली मुलाकात में भी हम दोनों के बीच कुछ झड़प-सी हुई थी... लेकिन अब एक ही बात करनी है। अब मैं तुमसे बस इतना कहना चाहता हूँ कि मैंने तुम्हारे साथ शायद ज्यादती की है। हाँ, मुझे यही खयाल आता रहता है कि मैंने ज्यादती की है। तुम्हें याद है, हम लोग पिछली बार किस तरह एक-दूसरे से अलग हुए थे, कि नहीं याद है तुम बुरी तरह झुँझलाए हुए थे। तुम्हारी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं, और मेरी भी। देखो, मैं समझता हूँ कि उस दिन जो कुछ भी हुआ वह बहुत भद्दा था; उसमें शरीफों जैसी कोई बात नहीं थी। हम लोग तो शरीफ ही हैं, कि नहीं कुछ भी हो जाए हम सबसे पहले और सबसे बढ़ कर शरीफ ही रहेंगे। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। लेकिन तुम्हें याद होगा, हम लोग किस हद तक आगे बढ़ गए थे... सच पूछो तो बेहूदगी की हद तक।'

'कहना क्या चाहता है? यह मुझे समझता क्या है?' रस्कोलनिकोव आश्चर्य में पड़ा सोचता रहा, और सर उठा कर नजरें जमाए हुए पोर्फिरी को घूरता रहा।

'अब मैंने तय किया है कि हमारे लिए यही बेहतर होगा कि हम दोनों एक-दूसरे से दिल खोल कर बातें करें,' पोर्फिरी अपना सर थोड़ा पीछे करके कहता रहा, गोया उसे अपने पुराने शिकार को परेशान करना अच्छा न लग रहा हो और जैसे उसने तिरस्कार के साथ अपने पुराने तरीकों और तरकीबों को दूर फेंक दिया हो। 'तो इस तरह की झड़पें और शंकाएँ बहुत दिन तक नहीं चल सकतीं। वह तो कहो कि निकोलाई ने आ कर उस झड़प को खत्म करा दिया, वरना हम दोनों के बीच न जाने क्या हो जाता। वह कमीना पूरे वक्त मेरे कमरे के पीछे ही जमा रहा... कभी तुम सोच भी सकते थे जाहिर है तुम्हें भी यह बात मालूम है, और मैं यह भी जानता हूँ कि वह बाद में तुमसे मिलने आया था। लेकिन उस वक्त तुम जो समझते थे, वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। मैंने किसी को नहीं बुलवाया था और उस वक्त किसी तरह का कोई हुक्म नहीं दिया था। तुम पूछोगे -क्यों नहीं पर मैं तुम्हें क्या बताऊँ इस सबका असर मुझ पर भी पड़ा था। दरबानों को भी मैं मुश्किल से बुलवा सका था। (मैं समझता हूँ, तुमने बाहर जाते वक्त दरबानों को देखा होगा।) देखो, बात यह है कि उस वक्त मुझे कोई बात सूझी थी - बिजली की तरह ही वह विचार मेरे दिमाग में कौंधा था। जैसा कि तुम देखोगे दोस्त, मुझे तो उसी वक्त पक्का यकीन हो चुका था। मैंने सोचा, क्यों न आजमा कर देखूँ। हो सकता है कोई चीज थोड़ी देर के लिए मेरे हाथों से निकल जाए, लेकिन आखिर में यकीनन कोई दूसरी चीज हाथ लग जाएगी, और दोस्त, कम-से-कम मैं जो चीज चाहता हूँ उसे हाथ से निकलने नहीं दूँगा। मैं समझता हूँ दोस्त, कि तुम स्वभाव से ही चिड़चिड़े हो। तुम्हारी दूसरी खूबियों को देखें तो जरूरत से कुछ ज्यादा ही चिड़चिड़े हो और इसे मैं अपनी बहुत बड़ी कामयाबी समझता हूँ कि मैंने कुछ हद तक उसकी थाह पा ली है। तो यह बात मुझे उसी वक्त समझ लेनी चाहिए थी कि आदमी उठे और अपने बारे में सारी सच्चाई उगल दे, ऐसा हमेशा नहीं होता। कभी-कभी जरूर होता है, अगर आप किसी तरकीब से उसे इतना गुस्सा दिला दें कि वह आपे से एकदम बाहर हो जाए, लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता। यह बात मुझे समझ लेनी चाहिए थी। खैर, मैंने सोचा था कि मुझे तो असल में एक छोटे से तथ्य की, एक बहुत ही छोटे-से तथ्य की, कुल जमा एक तथ्य की जरूरत है, किसी ऐसी चीज की जो मेरे काम आ सके, कोई ऐसी चीज जो ठोस हो, बस निरा मनोविज्ञान न हो। इसलिए कि मैं सोचता था, अगर कोई आदमी अपराधी है तो वक्त आने पर आपको उससे उसी के बारे में कोई ठोस नतीजा हासिल होना चाहिए; और आपको ऐसा कोई नतीजा मिलने का भी भरोसा रखने का हक है, जिसकी आपको कतई कोई उम्मीद न हो। मैं आपके स्वभाव पर उम्मीद लगाए बैठा था जनाब, सबसे बढ़ कर आपके स्वभाव पर। लेकिन मैं समझता हूँ, मुझे उस वक्त तुम्हारा जरूरत से ज्यादा भरोसा था।'

'लेकिन... लेकिन आप अभी भी उसी तरह की बातें क्यों ठोंके जा रहे हैं,' रस्कोलनिकोव ने आखिर बड़बड़ा कर पूछा। उसे ठीक से यह भी नहीं मालूम था कि उससे पूछा क्यों जा रहा है। 'यह भला किस चीज के बारे में बातें कर रहा है,' उसने कुछ भी न समझ कर अपने आपसे पूछा। 'क्या यह मुझे सचमुच बेकुसूर समझता है?'

'तो मैं इस तरह की बातें क्यों कर रहा हूँ? बात यह है कि मैं अपनी सफाई देने आया हूँ; यूँ कहो कि मैं इसे अपना फर्ज समझता हूँ। तुम्हें मैं सब कुछ बता देना चाहता हूँ, हर बात जिस तरह से हुई ऐन उसी तरह। मैं समझता हूँ, मेरे दोस्त, कि मैंने तुम्हें बहुत तकलीफ पहुँचाई है। मैं कोई दानव नहीं हूँ। मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि उस आदमी के लिए इन सब बातों को झेलने का क्या मतलब होता है, जो निराश होने के बावजूद स्वाभिमानी हो, होशियार हो और बेचैन, खास कर बेचैन हो। बहरहाल, मैं तुम्हें बहुत ही इज्जतदार समझता हूँ, बल्कि तुम्हारे स्वभाव से उदारता की एक झलक भी है। वैसे मैं तुम्हारी हर राय से सहमत नहीं हूँ, और यही मुनासिब समझता हूँ कि मैं फौरन तुम्हें साफ-साफ और पूरी ईमानदारी के साथ यह बात बता दूँ, क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैं तुम्हें धोखा देना नहीं चाहता। यह पता लगा लेने के बाद कि तुम किस तरह के आदमी हो, मुझे आप ही तुमसे कुछ लगाव जैसा हो गया। शायद मेरे इस तरह बातें करने की वजह से तुम मुझ पर हँसोगे! खैर, इसका तुम्हें अधिकार है। मैं जानता हूँ, मुझे तुम शुरू से ही नापसंद करते थे, क्योंकि सच तो यह है कि तुम मुझे पसंद करो भी तो क्यों करो! मेरे बारे में तुम चाहे जो सोचो, मैं अपनी तरफ से कोई कोशिश उठा रखना नहीं चाहता कि मेरे बारे में तुम्हारी जो राय बन गई है, उसे मिटा दूँ और तुम्हें बता दूँ कि मैं एक ऐसा आदमी हूँ जिसके दिल में भावनाएँ भी हैं, जिसके पास एक जमीर है। सच कह रहा हूँ मैं।'

पोर्फिरी गरिमा के साथ ठहर गया। रस्कोलनिकोव के दिल में अचानक एक नया डर समा गया। वह अचानक यह सोच कर सहम गया कि पोर्फिरी उसे बेकुसूर समझता है।

'मैं सारी बातें तुम्हें उसी तरह सिलसिलेवार बताऊँ जिस तरह कि वे हुईं, यह तो शायद ही जरूरी हो' पोर्फिरी कहता रहा। 'मुझे डर है कि अगर मैं चाहूँ भी तो मैं ऐसा नहीं कर सकूँगा। भला बातों को विस्तार से कैसे समझाया जा सकता है शुरू में तरह-तरह की अफवाहें फैली थीं। वे किस तरह की अफवाहें थीं और उन्हें कब या किसने फैलाया था, किस तरह... फैलाया था तुम किस तरह इस चक्कर में आ गए - यह सब भी बताने की, मैं समझता हूँ, कोई खास जरूरत नहीं है। जहाँ तक मेरा सवाल है, पूरा सिलसिला इत्तफाक से शुरू हुआ, जो हो भी सकता था और नहीं भी। कौन-सा इत्तफाक मैं समझता हूँ इस बात की चर्चा करने की भी कोई जरूरत नहीं है। इन सब बातों से - इन अफवाहों और इत्तफाकों से - मेरे मन में एक विचार उठा। मैं साफ-साफ मानने को तैयार हूँ - क्योंकि अगर मुझे मानना ही है तो सारी बातें ही मैं क्यों न मान लूँ - कि मुझे सबसे पहले तुम पर शक हुआ था। बात यह है कि गिरवी रखी गई चीजों के साथ बुढ़िया जो सुराग छोड़ गई थी वे बिलकुल बेकार हैं। इस तरह के तो सैकड़ों सुराग मिल सकते हैं। पुलिस थाने में जो कुछ हुआ, उसका ब्योरा भी मुझे उसी वक्त मालूम हुआ। वह भी बिलकुल इत्तफाक से। लेकिन ये बातें मुझे ऐसे आदमी से मालूम हुईं जो ऐसी बातों को बयान करने का खास गुर जानता है और जिसने, खुद इस बात को जाने बिना, मुझे उस घटना का एक बहुत ही उम्दा ब्योरा दिया। यह सब भी बस ताबड़तोड़ हुआ। एक चीज से दूसरी चीज निकलती गई, मेरे दोस्त, यहाँ तक कि मेरे लिए अपना ध्यान एक खास दिशा में मोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया। सौ खरगोशों से जिस तरह एक घोड़ा नहीं बन सकता, उसकी तरह सौ शुबहों को मिला कर एक सबूत नहीं बनता। मैं समझता हूँ यह अंग्रेजी की एक कहावत है, और यह सीधी-सादी समझदारी की बात है। लेकिन किसी आदमी को जिस चीज की धुन हो जाए, उस पर वह काबू नहीं पा सकता... खुद अपनी धुन पर। फिर छानबीन करनेवाला वकील भी तो आदमी ही होता है। मुझे उस पत्रिका में तुम्हारा लेख भी याद था। तुम्हें याद होगा, तुम जब पहली बार आए थे तो हम लोगों ने उस पर विस्तार से बहस की थी। उस वक्त मैंने उसका मजाक उड़ाया था, लेकिन वह मैंने तुम्हें उकसाने के लिए किया था कि तुम मुझे कुछ और बातें बताओ। मैं एक बार फिर कहता हूँ, तुम जरूरत से ज्यादा बेसब्रे हो, मेरे दोस्त, और बीमार भी... बहुत ज्यादा बीमार। तुम बहादुर हो, स्वाभिमानी और जिद्दी हो, गंभीर विचारोंवाले हो, और... और भारी मुसीबत झेल चुके हो। यह सब कुछ मुझे काफी दिनों से मालूम है... मेरे लिए भी ये भावनाएँ अनजानी नहीं हैं, और इसलिए मैंने तुम्हारा लेख अपनी किसी जानी-पहचानी चीज की तरह पढ़ा था। वह सब तो तुमने अपनी रातों की नींद हराम करके, बहुत उत्तेजना की हालत में, धड़कते दिल से और अपने उत्साह को दबा कर सोचा होगा। पर नौजवानों के लिए यह दबा हुआ, स्वाभिमान से भरा उत्साह बहुत खतरनाक होता है! उस वक्त मैंने तुम्हारे लेख का मजाक उड़ाया, लेकिन इतना मैं बता दूँ कि साहित्यप्रेमी होने के नाते नौजवानों की सच्ची लगन से की गई इन पहली साहित्यिक कोशिशों के बारे में मेरे अंदर एक कमजोरी भी रही है। धुआँ, कुहासा, और उस कुहासे में एक टूटती हुई तान की आवाज। तुम्हारा लेख कल्पनातीत और बेतुका है, लेकिन उसमें सच्ची लगन की कैसी ताजगी है, कितना निष्कलंक, नौजवानों जैसा स्वाभिमान है... सब कुछ दाँव पर लगा देने का साहस है। वह एक बीभत्स लेख जरूर है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने तुम्हारा लेख पढ़ा और अलग रख दिया और... और उसे अलग रखते ही सोचा : यह आदमी किसी दिन मुसीबत में पड़ेगा! इसलिए तुम्हीं बताओ कि पहले जो कुछ हो चुका था, उसे देखते हुए यह कैसे मुमकिन था कि बाद में जो कुछ हुआ मैं उसकी धारा में न बह जाता लेकिन भगवान जानता है, मैं कुछ नहीं कह रहा। इस वक्त मैं किसी भी खास बात का दावा नहीं कर रहा। मैंने तो बस उस वक्त अपने दिमाग में कुछ टाँक लिया था। मैंने सोचा, आखिर क्या है इसमें कुछ भी तो नहीं है, मेरा मतलब है कतई कुछ नहीं। शायद रत्ती भर भी नहीं। फिर मेरे जैसे छानबीन करनेवाले वकील के लिए यह ठीक भी नहीं कि वह इस तरह की बातों की धार में बह जाए। मुझे तो उस आदमी, निकोलाई से निबटना है और मेरे पास ऐसे ठोस तथ्य हैं जिनसे उसके अपराधी होने का संकेत मिलता है... और कोई कुछ भी कहे, तथ्य तो तथ्य ही होता है। वह भी तो मेरे पास अपनी मनोदशा ले कर ही आया था। मुझे उससे इसलिए निबटना है कि यह जिंदगी और मौत का सवाल है। इस वक्त मैं यह सफाई क्यों दे रहा हूँ। इसलिए कि मैं चाहता हूँ तुम्हें हर बात मालूम हो जाए, और यह भी मैं नहीं चाहता कि उस मौके पर मैंने तुम्हारे साथ दुश्मनी का जो सुलूक किया था, उसकी वजह से तुम्हारे दिल से मेरे खिलाफ कोई शिकायत बनी रहे। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि उसमें दुश्मनीवाली कोई बात नहीं थी... हा-हा! क्या खयाल है तुम्हारा उस वक्त तुम्हारे कमरे की तलाशी ली गई थी, कि नहीं ली गई थी... हा-हा! सो भी उस वक्त, जब तुम बीमार थे। लेकिन याद रखना, सरकारी तौर पर नहीं... तलाशी भी मैंने खुद नहीं ली थी, लेकिन तलाशी ली गई थी। तुम्हारे कमरे की एक-एक चीज, एक-एक तिनके को उलट-पुलट कर देखा गया था, और सो भी उस वक्त जब मामला अभी ताजा-ताजा था, लेकिन बेकार। मैंने सोचा, अब वह आदमी मेरे पास आएगा, खुद मेरे पास आएगा, और बहुत जल्द आएगा। दोषी होगा तो जरूर ही आएगा। कोई दूसरा होता तो न आता, लेकिन यह जरूर आएगा। तुम्हें याद है किस तरह तुम्हारे साथ अपनी बातचीत के दौरान रजुमीखिन ने सारा भेद उगल दिया था... यही सोच कर हमने यह मंसूबा बनाया था ताकि तुम भड़को। इसीलिए जान-बूझ कर अफवाहें फैलाईं ताकि तुमसे बातें करते वक्त रजुमीखिन सारा भेद खोल दे, क्योंकि वह ऐसा शख्स है कि अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकता। तुम्हारे गुस्से और खुली ढिठाई का निशाना सबसे पहले बना जमेतोव : समझ में नहीं आता, शराबखाने में तुमने उसके सामने साफ-साफ कैसे कह दिया कि उसे मैंने मारा है! बेहद हिम्मत और ढिठाई की बात थी, और मैं मन में यह सोचने पर मजबूर हो गया कि यह आदमी अगर सचमुच अपराधी है तो डट कर लड़ेगा! तब मैंने यही सोचा था। इसीलिए मैं इंतजार करता रहा... बड़ी बेचैनी से तुम्हारा इंतजार करता रहा। रहा जमेतोव तो उस दिन तो तुमने उसकी धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थीं, और... देखो, मुसीबत यह है कि यह सारा कमबख्त मनोविज्ञान... इसकी भी काट दोहरी होती है! तो मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा, और इतने में क्या देखता हूँ कि तुम आ गए! मेरा दिल धक से रह गया। आह! मैं पूछता हूँ, उस दिन सबेरे तुम्हारे आने की जरूरत ही क्या थी तुम क्यों आए तुम्हारी हँसी... जिस वक्त तुम अंदर आए उस वक्त की हँसी... याद है मैंने तो फौरन ही उसके पीछे छिपा हुआ भेद ताड़ लिया था। लेकिन अगर मैं उस तरह तुम्हारा इंतजार न कर रहा होता तो तुम्हारी उस हँसी में मुझे कभी कोई खास बात न दिखाई देती। सही दिमागी हालत का मतलब यही होता है... रजुमीखिन... अरे हाँ, वह पत्थर! तुम्हें उस पत्थर की याद है वह पत्थर जिसके नीचे चीजें छिपाई गई थीं पूरी तरह ऐसा लगता था कि मैंने किसी के बगीचे में उसे देखा है... किसी के बगीचे की बात तुमने जमेतोव से कही थी, और फिर दूसरी बार मेरे दफ्तर में कही थी, कि नहीं फिर जब हमने तुम्हारे लेख की छानबीन शुरू की, जब तुमने उसका मतलब समझाना शुरू किया, तो तुम्हारे हर शब्द में मुझे दो अर्थ नजर आने लगे, जैसे हर शब्द के नीचे कोई दूसरा शब्द छिपा हो! तो मेरे दोस्त, इसी तरह से मैं मील के आखिरी पत्थर तक पहुँचा और उससे जब मैंने सर टकराया तब मुझे होश आया। हे भगवान, मैंने अपने आपसे कहा, मैं कर क्या रहा हूँ! इसलिए अगर कोई चाहे तो इस पूरे सिलसिले को सर के बल खड़ा कर दे और वही स्वाभाविक लगने लगेगी। मैं परेशान हो कर तड़प उठा। मैंने अपने मन में कहा : नहीं, इससे काम नहीं चलेगा। मेरे पास कुछ ठोस होना चाहिए जिसका मैं सहारा ले सकूँ। इसलिए जब मुझे दरवाजे की घंटीवाली बात पता चली तो मैं सन्न रह गया। अंदर ऐसी खलबली मची कि मैं काँपने लगा। मैंने दिल में सोचा, आखिरकार कोई ठोस चीज हाथ आई। यही है वह! तब मैंने इस बात पर पूरी तरह सोच-विचार करने की भी जरूरत नहीं समझी। बस जी ही नहीं चाहा। उस पल काश मैं अपनी आँखों से देख पाता कि तुम किस तरह सौ गज तक उस कमबख्त के साथ गए जिसने तुम्हारे मुँह पर तुम्हें 'हत्यारा' कहा था और रास्ते भर तुम्हें उससे एक भी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं हुई! ...रीढ़ की हड्डी में ऊपर से नीचे तक सिहरन का दौड़ना! और दरवाजे की घंटी बजाना! क्या यह सब कुछ उस वक्त हुआ था जब तुम बीमार थे जब तुम नीमबेहोशी की हालत में थे? इसलिए, मेरे दोस्त, तुम्हारे साथ मैंने जिस तरह के मजाक किए थे, उन पर तुम्हें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। पर तुम ठीक उसी वक्त क्यों आए क्या, एक मानी में ऐसा नहीं था कि गोया कोई तुम्हें भी पीछे से धकेल रहा हो! धकेल रहा था न? अब अगर निकोलाई हम दोनों के बीच में न आया होता... निकोलाई की याद तो है न? अच्छी तरह याद है न? उसकी गोया आसमान से टपक पड़ा था! तूफानी बादल से बिजली टूटी हो! कड़कती हुई बिजली! और मैं उससे मिला किस तरह था बिजली के टूट कर गिरने पर मेरा कोई यकीन नहीं था। रत्तीभर नहीं! तुमने खुद भी देखा था! लेकिन, भगवान जानता है, बाद में भी... तुम्हारे चले आने के बाद भी, जब वह मेरे कुछ सवालों के समझदारी भरे ऐसे जवाब देने लगा कि मुझे भी उस पर ताज्जुब होने लगा, तब भी मैंने उसकी किसी बात का यकीन नहीं किया! अटल रहने का मतलब यही होता है। नहीं, मैंने मन में सोचा, ऐसा नहीं हो सकता! इसमें निकोलाई का कोई हाथ नहीं।'

'रजुमीखिन ने मुझे अभी-अभी बताया कि आपको अभी तक निकोलाई के ही अपराधी होने का यकीन है और यह भी कि रजुमीखिन को खुद आपने यकीन दिलाया है कि निकोलाई ही अपराधी है...'

उसकी साँस फूलने लगी। अपनी बात वह पूरी नहीं कर सका। एक अवर्णनीय उत्तेजना के साथ वह उस आदमी की बातें सुनता रहा था, जिसने उसके भेद का पता लगा लिया था पर जो अब अपनी ही पिछली बात से मुकर रहा था। वह इस पर यकीन कर भी नहीं पा रहा था और उसे यकीन था भी नहीं। उसके शब्दों में, जो अभी तक अस्पष्ट थे, वह किसी ठोस, अकाट्य चीज की लगातार तलाश कर रहा था।

'मिस्टर रजुमीखिन!' पोर्फिरी चिल्लाया, गोया रस्कोलनिकोव के मुँह से, जो अभी तक बिलकुल चुप था, यह सवाल सुन कर उसे बहुत खुशी हुई हो। 'हा-हा-हा! अरे! मुझे मिस्टर रजुमीखिन को रास्ते से तो हटाना ही था : दो आदमी हों तो संगत कहलाती है, तीन हों तो भीड़। मिस्टर रजुमीखिन का इस मामले से कोई संबंध नहीं है। बाहर का आदमी है वह। मेरे पास वह भागा-भागा आया था, चेहरा बिलकुल उतरा हुआ... लेकिन, छोड़ो भी उसे, इस मामले में उसे क्यों लाते हो रहा निकोलाई, तो क्या तुम जानना चाहोगे कि वह किस तरह का आदमी है... मेरा मतलब उसके बारे में मेरी क्या राय है पहली बात तो यह है कि वह अभी बच्चा है, अभी बालिग भी नहीं हुआ... मैं यह तो नहीं कहूँगा कि वह सचमुच बुजदिल है, लेकिन मेरा मतलब है... यूँ समझ लो... कि वह एक तरह से कलाकार है। उसके बारे में मेरी इस तरह की राय पर हँसो मत। वह मासूम है और जल्द ही किसी भी बात के असर में आ सकता है। बहुत ही भावुक है... कमाल का आदमी। गाना जानता है, नाचना जानता है, और किसी ने मुझे बताया कि परियों की कहानियाँ तो इतनी अच्छी सुनाता है कि लोग मीलों दूर से सुनने आते हैं। अभी तक स्कूल जाता है, और तुम उसकी ओर उँगली भी उठा दो तो हँसते-हँसते उसके आँसू निकल आते हैं। शराब इतनी पीता है कि उसे कुछ सुझाई नहीं देता। इसलिए कि शराब पिए बिना नहीं रह सकता, बल्कि जब मौत आती है तब पीता है। इसलिए कि लोग उसे शराब पिलाते हैं। एकदम बच्चों जैसा है! उसने कानों की बालियाँ तो चुरा ली थीं लेकिन यह नहीं समझा था कि वह कोई गलत काम कर रहा है... उसका कहना तो यह है कि जो चीज पड़ी मिल जाए उसे रख लो! जानते हो, वह पुरातनपंथियों में से है, और पुरातनपंथी भी क्या, बस किसी पंथ का है। उसके परिवार में कुछ लोग 'भगोड़े' भी थे, और अभी हाल में वह खुद गाँव में दो साल तक किसी पहुँचे हुए फकीर का मुरीद रह चुका है। ये सारी बातें मुझे खुद निकोलाई से और उसके जरायस्क साथियों से मालूम हुईं। अरे, एक वक्त तो ऐसा भी था जब यह आदमी भाग कर जंगल में चले जाना और संन्यासी बन जाना चाहता था। बड़ा जोश था उसमें, रात-रात भर पूजा-पाठ किया करता था, पुरानी 'सच्ची' किताबें पढ़ता रहता था और उनके पीछे सब कुछ भूल जाता था। पीतर्सबर्ग ने उस पर बहुत असर डाला। खास तौर पर यहाँ की औरतों का असर पड़ा और जाहिर है, शराब का भी। बहुत जल्दी ही असर में आ जाता है। सो फकीर-वकीर सब कुछ भूल गया। मैं पक्के तौर पर जानता हूँ कि उसे एक कलाकार बहुत पसंद करने लगा था, उससे मिलने जाया करता था, और इसलिए वह इसी चक्कर में फँस गया। तो हुआ यह कि उसके दिल में ऐसा डर समाया कि उसने फाँसी लगा कर मर जाने की कोशिश की फिर उसके बाद भाग जाने की भी कोशिश की। हमारी कानूनी कार्रवाइयों के बारे में आम लोगों में जो विचित्र धारणाएँ बुरी तरह फैल गई हैं, उनका भला कोई क्या करे! कुछ लोग तो अदालत के ही नाम से डरते हैं। मुझे नहीं मालूम कि इसमें किसका कुसूर है। मैं तो बस यह उम्मीद किए बैठा हूँ कि हमारी नई अदालतें इस हालत को बदलेंगी। मैं भगवान से भी यही मनाता रहता हूँ कि वे ऐसा कर सकें। खैर, लगता है निकोलाई को जेल में उस फकीर की याद आई। वह बाइबिल भी पढ़ने लगा। क्या तुम्हें मालूम है दोस्त, कि कुछ लोग तकलीफ उठाने का क्या मतलब समझते हैं सवाल किसी की खातिर तकलीफ उठाने का नहीं होता, बल्कि महज तकलीफ उठाने की खातिर तकलीफ उठाने का हो जाता है। मतलब यह कि आदमी को तकलीफ तो उठाना ही चाहिए, और अगर तकलीफ हाकिमों की तरफ से मिले तो फिर क्या पूछना! मुझे एक कैदी का मामला याद आता है... बहुत ही सीधा-सादा आदमी था बेचारा, जेल में पूरा साल आतिशदान पर बैठ कर रात-रातभर बाइबिल पढ़ते हुए काट दिया और बाइबिल पढ़ने का ऐसा असर हुआ उस पर कि एक दिन उसने ईंट का टुकड़ा उठाया और बिना किसी वजह के जेलर को दे मारा, जिसने उसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाया था। और ईंट फेंका भी तो कैसे! जान-बूझ कर उससे कई गज दूर-इस बात का पक्का हिसाब लगा कर कि उसे कोई चोट न लगे। यह तो तुम जानते ही हो कि कोई कैदी अगर जेल के किसी अफसर पर घातक हमला करता है तो उसके साथ क्या सुलूक किया जाता है। तो उसने 'तकलीफ' उठाई और... इसीलिए मुझे शक होता है कि निकोलाई भी उठाना चाहता है... या इसी तरह की कोई और बात है। मैं यह बात पक्के तौर पर जानता हूँ... ठोस सबूतों की बुनियाद पर। लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि मैं जानता हूँ। तो क्या तुम यह नहीं मानते कि इनमें से ऐसे अनोखे लोगों का निकल आना पूरी तरह मुमकिन है अरे... ऐसा तो जहाँ देखो, वहीं होता रहता है। अब वह फिर उसी फकीर के चक्कर में पड़ रहा है... फाँसी लगा कर मरने की कोशिश के बाद उसे उसके बारे में सब कुछ याद आने लगा। लेकिन मुझे यकीन है कि मुझे वह खुद ही सब कुछ बताएगा। खुद आ कर मुझे बताएगा। क्या तुम समझते हो कि वह ऐसा नहीं करेगा? बस देखते जाओ... अपराध स्वीकार करते हुए उसने जो बयान दिया है, उसे वह वापस ले लेगा! मुझे उम्मीद है कि अब वह किसी भी वक्त आ कर ऐसा कर सकता है। मुझे यह निकोलाई बहुत ही अच्छा लगने लगा है, और मैं उसे बखूबी समझने की कोशिश कर रहा हूँ। क्यों, क्या खयाल है तुम्हारा? हा-हा-हा! तो कुछ बातों के बारे में उसके जवाब सचमुच समझदारी के थे। साफ जाहिर है कि उसने सारी जरूरी जानकारी जमा कर रखी थी और काफी होशियारी से तैयारी की थी। लेकिन कुछ दूसरी बातों के बारे में वह एकदम कोरा मालूम होता है; उनके बारे में उसे कुछ भी नहीं मालूम और उसे शक भी नहीं होता कि उसे कुछ नहीं मालूम। नहीं, दोस्त, यह करतूत निकोलाई की नहीं है! हमारा साबका एक पूरी तरह अनोखे मामले से पड़ा है, एक बहुत ही निराशाजनक मामले से, बिलकुल आजकल के मामले से, एक ऐसे मामले से जो ठेठ हमारे इस जमाने का है, जब लोगों के दिलों में खोट और बदी पैदा हो गई है, जब बार-बार हमें यह सुनने को मिलता है कि इससे खून में नई जान पड़ जाती है, जब ऐश-आराम को जिंदगी में काम की अकेली चीज समझा जाने लगा है, इस मामले में हमारा साबका पड़ा है किताबी सपनों से, एक ऐसे दिल से जो सिद्धांतों के चक्कर में पड़ कर छलनी हो चुका है... हमारा साबका पड़ा है पहला कदम उठाने के पक्के संकल्प से, लेकिन यह एक खास किस्म का संकल्प है; उस आदमी ने यह काम करने की ठानी, और फिर गोया कि वह किसी पहाड़ी से नीचे गिर पड़ा, या गिरजाघर की मीनार से नीचे कूद पड़ा, और अपराध के स्थल पर इस तरह प्रकट हुआ, गोया उसको उसकी मर्जी के खिलाफ वहाँ लाया गया हो। वह सामनेवाला दरवाजा बंद करना तो भूल गया लेकिन कत्ल कर दिया... एक सिद्धांत की खातिर दो जानें ले लीं। उसने उन्हें कत्ल तो कर दिया लेकिन दौलत समेटने की अक्ल नहीं आई... तब जो कुछ उसने लिया भी उसे भी पत्थर के नीचे छिपा दिया। जब बाहर से लोग दरवाजा भड़भड़ा रहे थे और घंटी बजा रहे थे, दरवाजे के पीछे खड़े उसने घोर कष्ट के क्षण बिताए। पर वे भी उसके लिए काफी नहीं थे - नहीं, वह आधी बेहोशी की हालत में एक बार फिर उसी खाली फ्लैट में गया... एक बार फिर उसे घंटी की आवाज को याद करने और एक बार फिर रीढ़ की हड्डी में ऊपर से नीचे तक सिहरन की लहर महसूस करने की जरूरत महसूस हुई... हो सकता है यह सब उसने बीमारी के दौरान किया हो; लेकिन इसके बारे में तुम क्या कहोगे... उसने कत्ल किया है, लेकिन अब भी अपने आपको ईमानदार समझता है; दूसरे लोगों को नफरत की नजर से देखता है; उतरा हुआ चेहरा लिए शहीद बना फिरता है। नहीं रोदिओन रोमानोविच, ये सब बातें मैं निकोलाई के बारे में नहीं कह रहा। निकोलाई का इन सबसे क्या लेना। इससे पहले जो कुछ भी कहा जा चुका था, वह सुनने से लगता था कि कोई आदमी अपनी ही बातों का खंडन कर रहा है। इसलिए उसके बाद ये अंतिम शब्द बहुत ही अप्रत्याशित थे।' रस्कोलनिकोव बुरी तरह काँप उठा, गोया उसके दिल में किसी ने छुरा उतार दिया हो।

'फिर कौन... कौन कातिल है?' उसने हाँफते हुए पूछा, गोया वह अपने आप पर काबू न रख पा रहा हो। पोर्फिरी को इस सवाल पर इतना गहरा ताज्जुब हुआ कि वह अपनी कुर्सी में धँस कर बैठ गया, मानो उसे इस सवाल की उम्मीद भी न रही हो।

'मतलब क्या है तुम्हारा कि कातिल कौन है...?' उसने रस्कोलनिकोव की ही बात दोहराई, मानो उसे अपने कानों पर विश्वास न हो रहा हो। 'क्यों, कातिल तुम हो, दोस्त! तुम हो,' उसने रस्कोलनिकोव के कान में फुसफुसा कर विश्वास के स्वर में कहा।

रस्कोलनिकोव सोफे से उछल पड़ा, कुछ पलों तक स्थिर खड़ा रहा, और फिर एक शब्द भी बोले बिना फिर बैठ गया। चेहरा रह-रह कर फड़क रहा था।

'तुम्हारे होठ पहले की ही तरह फिर फड़क रहे हैं,' पोर्फिरी कुछ सहानुभूति के साथ बुदबुदाया, 'मुझे लगता है, प्यारे कि तुम मेरी बात ठीक से नहीं समझे,' कुछ देर रुक कर उसने फिर कहा। 'इसीलिए तुम इतने हैरान हुए हो। मैं यहाँ जान-बूझ कर तुम्हें सब कुछ बताने और अपने सारे पत्ते तुम्हारे सामने रखने के लिए ही आया था।'

'मैंने नहीं किया यह काम,' रस्कोलनिकोव ने शरारत करते हुए पकड़े गए और सहमे हुए बच्चे की तरह बहुत ही धीमे लहजे में कहा।

'नहीं, दोस्त, यह तुम्हारा ही काम है। कोई दूसरा हो ही नहीं सकता,' पोर्फिरी ने कठोरता से और अटल विश्वास के साथ कहा।

दोनों चुप हो गए। उनकी यह खामोशी एक असाधारण देरी तक बनी रही, कोई दस मिनट तक। रस्कोलनिकोव ने अपनी कुहनियाँ मेज पर टिका दीं और चुपचाप अपने बालों में उँगलियाँ फेरने लगा। पोर्फिरी चुपचाप बैठा उसकी ओर देखता रहा। अचानक रस्कोलनिकोव ने तिरस्कार के साथ पोर्फिरी की ओर देखा।

'आप फिर वही खेल शुरू कर बैठे, पोर्फिरी पेत्रोविच' वह बोला, 'वही पुराने हथकंडे ताज्जुब होता है कि आप उनसे तंग क्यों नहीं हुए।'

'हे भगवान, हथकंडे इस वक्त मेरे किस काम के अगर यहाँ गवाह मौजूद होते तब कोई बात भी होती, लेकिन हम लोग तो दबे-दबे लहजे में एक-दूसरे से अपने दिल की बात कह रहे हैं। तुम देख ही रहे हो कि मैं यहाँ तुम्हारा पीछा करने, तुम्हें खरगोश की तरह पकड़ने नहीं आया। इस वक्त मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अपना अपराध मानते हो कि नहीं। अपनी हद तक तो मुझे वैसे भी पक्का यकीन हो चुका है।'

'अगर ऐसी बात है तो आप यहाँ आए किसलिए थे?' रस्कोलनिकोव ने चिढ़ कर पूछा। 'मैं आपसे वही सवाल एक बार फिर पूछना चाहूँगा : अगर आप समझते हैं कि मुजरिम मैं हूँ तो मुझे गिरफ्तार क्यों नहीं कर लेते?'

'मुनासिब सवाल है। मैं एक-एक बात करके इसका जवाब दूँगा : सबसे पहली बात तो यह है कि मैं नहीं समझता, तुम्हें फौरन गिरफ्तार करने से मुझे कोई फायदा होगा।'

'मतलब क्या है आपका कि आपको कोई फायदा नहीं होगा? अगर आपको पक्का यकीन है कि मैं अपराधी हूँ तो आपका फर्ज बनता है कि...'

'आह, इस बात से मेरे पक्के यकीन का क्या लेना-देना? इस वक्त तो ये अटकल की बातें हैं। मैं तुम्हें आराम करने के लिए जेल में क्यों डालूँ? तुम अगर खुद मुझसे ऐसा करने को कह रहे हो, तो यह बात तुम जानते होगे। मिसाल के लिए मैं अगर अभी उस कमबख्त कारीगर से तुम्हारा सामना करा दूँ तो तुम्हारे लिए उससे बस इतना कहना काफी होगा कि 'पिए हुए तो नहीं हो? मुझे किसने देखा तुम्हारे साथ? मैंने तो तुम्हें बस शराब के नशे में चूर समझा था, और तुम सचमुच पिए हुए थे!' तो इसके जवाब में मैं तुमसे कहता तो क्या... खास तौर पर इसलिए कि तुम्हारे बयान पर उसकी बात के मुकाबले ज्यादा आसानी से यकीन किया जा सकता था। इसलिए कि उसकी बात के पक्ष में मनोविज्ञान के अलावा कुछ भी नहीं होता, जिसकी उस तरह के आदमी से बहुत उम्मीद नहीं की जाती, जबकि तुम्हारा तीर ठीक निशाने पर बैठता, क्योंकि वह बदमाश पीता तो पानी की तरह है और सारे इलाके में पक्के शराबी के रूप में बदनाम है। इसके अलावा मैं खुद तुम्हारे सामने साफ-साफ मान चुका हूँ कि यह मनोविज्ञान दोधारी तलवार है, जिसकी एक धार दूसरी से ज्यादा पैनी है। इसके अलावा अभी तक तुम्हारे खिलाफ कोई भी सबूत मेरे पास नहीं है। हालाँकि मैं तुम्हें गिरफ्तार तो करूँगा, और सच तो यह है कि मैं - कायदे-कानून के खिलाफ जा कर - तुम्हें इसकी चेतावनी देने के लिए ही यहाँ आया हूँ, फिर भी मैं तुमसे साफ-साफ कहता हूँ - और यह भी कायदे-कानून के खिलाफ है - कि ऐसा करने से मुझे कोई फायदा नहीं होगा। दूसरे, मैं यहाँ इसलिए आया कि...'

'यह 'दूसरे' किसलिए?' रस्कोलनिकोव अब भी हाँफ रहा था।

'इसलिए कि, जैसाकि मैं पहले ही बता चुका हूँ, मैं तुम्हारे सामने अपनी सफाई पेश करना अपना फर्ज समझता हूँ। मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे राक्षस समझो, खास कर इसलिए कि, तुम मानो या न मानो, मैं सच्चे दिल से तुम्हारा भला चाहता हूँ। इसी वजह से मैं यहाँ, तीसरी बात, तुम्हारे पास एक बहुत दो-टूक और सीधा सुझाव ले कर आया हूँ - तुम पुलिस के पास जाओ और सारी बातें साफ-साफ मान लो। इससे तुम्हारा भला तो होगा ही, मुझे भी खयाल है, फायदा होगा क्योंकि मुझे इस सारे लफड़े से छुटकारा मिल जाएगा। मैं तुमसे दिल खोल कर साफ बात कह रहा हूँ कि नहीं?'

रस्कोलनिकोव एक मिनट तक सोचता रहा।

'देखिए,' वह बोला, 'आप खुद ही मान रहे हैं कि आपने मेरे खिलाफ जो भी मामला बनाया है, उसकी बुनियाद सिर्फ मनोविज्ञान पर है। लेकिन फिर भी लगता ऐसा है कि आप अचानक गणित में घुस पड़े हैं। अगर आप इस वक्त गलती कर रहे हों तो...।'

'नहीं दोस्त, मैं गलती नहीं कर रहा। मेरे पास एक सुराग है, एक छोटा-सा सुराग जो अचानक मेरे हाथ लग गया था। तकदीर ने साथ दिया!'

'किसी तरह का सुराग?'

'मैं नहीं बताऊँगा। बहरहाल, अब मुझे और ज्यादा ढील देने का कोई हक भी नहीं। मुझे तुमको गिरफ्तार करना ही पड़ेगा। इसलिए देखो, अब मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वह तुम्हारी भलाई के लिए कर रहा हूँ। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ दोस्त, कि यही बेहतर होगा।'

रस्कोलनिकोव एक कड़वी हँसी हँसा।

'यह हँसी की बात नहीं, सरासर ढिठाई है। समझ लीजिए कि मैं अपराधी हूँ (जिसे मैं कतई नहीं मानता), तो मैं आपके पास आ कर अपना अपराध क्यों मानूँ, जबकि आप खुद कह रहे हैं कि अगर मुझे जेल भेजा भी गया तो यह ऐसी ही बात होगी जैसे मुझे वहाँ आराम करने के लिए बिठा दिया गया हो?'

'आह, मेरे दोस्त, शब्दों पर पूरी तरह यकीन मत किया करो। जेल जाना शायद आराम के लिए तो नहीं ही हो! बहरहाल, यह तो बस एक सिद्धांत है, और सो भी मेरा सिद्धांत; और तुम्हारे लिए मेरी बात कोई प्रामाणिक तो है नहीं! हो सकता है मैं इस वक्त भी तुमसे कुछ छिपा रहा हूँ। तुम कहीं यह उम्मीद तो नहीं करते कि मैं तुम्हारे सामने अपने सारे पत्ते खोल कर रख दूँगा हा-हा! दूसरे, इस बात से तुम्हारा क्या मतलब कि तुम्हें क्या फायदा होगा यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती कि अगर अपना अपराध मान लोगे तो तुम्हारी सजा कितनी कम हो जाएगी जरा सोचो तो सही कि तुम अपना अपराध कब स्वीकार कर रहे होगे... किस वक्त सोचो! ठीक उस वक्त जब एक दूसरा आदमी मान चुका है कि अपराध उसने किया है और सारे मामले को बुरी तरह उलझा कर रख दिया है। मैं तुमसे भगवान की कसम खा कर कहता हूँ कि मैं 'वहाँ' ऐसा बंदोबस्त कर दूँगा कि तुम्हारा अपराध स्वीकार करना सबके लिए एक अचंभे की बात बन जाएगा। हम लोग मनोविज्ञान के बारे में सब कुछ भूल जाएँगे और मैं तुम्हारे बारे में सभी शुबहों को बेबुनियाद बताऊँगा ताकि तुम्हारा अपराध एक तरह का दिमागी उलझाव मालूम हो; सच पूछो तो वह उलझाव ही था। मैं ईमानदार आदमी हूँ, दोस्त, और अपना वचन पूरा करूँगा।'

रस्कोलनिकोव चुप रहा। उसने उदासी के साथ अपना सर झुका लिया, देर तक कुछ सोचता रहा और आखिरकार फिर मुस्कराया। लेकिन इस बार उसकी मुस्कराहट बहुत उदास और फीकी-फीकी थी।

'मुझे यह सब नहीं चाहिए,' उसने कहा, मानो वह पोर्फिरी से अपना अपराध छिपाने की कोशिश भी न कर रहा हो। 'ऐसा करने से कोई फायदा नहीं! मुझे सजा में आपकी यह कमी नहीं चाहिए!'

'आह, मुझे इसी का डर था!' पोर्फिरी ने अनायास ही सहृदयता से कहा। 'मुझे डर था कि तुम अपनी सजा में कमी करवाना नहीं चाहोगे।'

रस्कोलनिकोव ने उदासी और गंभीरता से उसकी ओर देखा।

'जिंदगी को इस तरह मत ठुकराओ, दोस्त,' पोर्फिरी कहता रहा, 'अभी तो तुम्हारे सामने सारी जिंदगी पड़ी है। यह कहने का भला क्या मतलब कि तुम अपनी सजा कम करवाना नहीं चाहते तुम भी बहुत बेसब्रे हो!'

'अभी क्या चीज मेरे आगे पड़ी है?'

'जिंदगी! पैगंबर बने फिरते तो हो पर तुम्हें मालूम क्या है? ढूँढ़ो और तुम्हें मिलेगा : शायद यह ईश्वर का तुम्हें अपने पास तक पहुँचने का रास्ता बताने का ढंग था। फिर यह कोई हमेशा के लिए तो होगा नहीं... मेरा मतलब है, पाँवों में बेड़ियाँ...'

'आप मेरी सजा कम करवाएँगे...?' रस्कोलनिकोव हँसा।

'आह, कहीं बदनामी का बुर्जुवा विचार तो तुम्हें परेशान नहीं कर रहा? मैं समझता हूँ तुम इसी बात से डर रहे हो, चाहे तुम्हें खुद इसका पता न हो, क्योंकि तुम अभी नौजवान हो। तो भी, कम-से-कम तुम्हारे लिए अपना अपराध मान लेने में डर या शर्म की कोई बात नहीं है।'

'भाड़ में जाए!' रस्कोलनिकोव ने तिरस्कार और घोर विरक्ति के भाव से धीमे स्वर में कहा, जैसे वह इस बारे में बात भी करना न चाहता हो। वह एक बार फिर उठा, गोया कमरे से बाहर चला जाना चाहता हो, लेकिन फिर बैठ गया। उसके चेहरे पर घोर निराशा का भाव एकदम स्पष्ट था।

'भाड़ में जाए, क्यों यही बात है न... तुम्हारे साथ मुसीबत की बात यह है कि तुम्हें अब किसी चीज पर भरोसा नहीं रहा, और शायद तुम यह समझते हो कि मैं खुल्लमखुल्ला तुम्हारी खुशामद कर रहा हूँ। लेकिन तुम्हें जिंदगी का अभी तजरबा ही कितना है तुम सचमुच कितनी बातें समझते हो... बस एक सिद्धांत गढ़ लिया, और अब यह सोच कर शरमा रहे हो कि वह गलत साबित हो गया और बहुत मौलिक भी नहीं निकला। वह भले ही पक्का दुष्ट निकला हो लेकिन तुम तो ऐसे दुष्ट नहीं हो! तुम कतई ऐसे दुष्ट नहीं हो। तुम कम-से-कम अपने को एक अरसे से धोखा तो नहीं देते आ रहे हो... तुम तो एकदम से राह के आखिरी छोर पर जा पहुँचे। जानते हो, तुम्हारे बारे में मेरी क्या राय है? मेरी राय में तुम इस तरह के आदमी हो कि आँतें भी बाहर निकाल ली जाएँ तो वह अपने सतानेवालों को मुस्करा कर देखेगा... मानो उसे कोई ऐसी चीज मिल गई हो जिस पर वह विश्वास रख सकता हो या उसे भगवान मिल गया हो। तो, उसे खोजो और तुम जिंदा रहोगे। तुम्हें बहुत अरसे से जिस चीज की जरूरत रही है वह है, हवा-पानी में बदलाव। लेकिन तकलीफ उठाना भी कोई ऐसी बुरी बात नहीं। उठाओ तकलीफ! अगर निकोलाई तकलीफ उठाना चाहता है तो शायद ठीक ही चाहता है। मैं जानता हूँ किसी चीज पर विश्वास रखना इतना आसान नहीं है, लेकिन बहुत ज्यादा चालाक मत बनो। अपने को बिना सोच-विचार किए जिंदगी के हवाले कर दो, चिंता मत करो, और जिंदगी तुम्हें सीधे किनारे पर पहुँचा देगी, तुम्हें अपने पाँव खड़ा कर देगी। किस किनारे पर यह मैं क्या जानूँ, मैं तो बस इतना जानता हूँ कि अभी तुम्हारे आगे काफी लंबी जिंदगी पड़ी है। मैं जानता हूँ, तुम इस वक्त मेरी बातों को एक रटे-रटाए उपदेश का हिस्सा समझ रहे हो, लेकिन बाद में चल कर शायद तुम्हें इनकी याद आएगी, शायद ये ही बातें किसी दिन तुम्हारे काम आएँ। इसीलिए मैं तुमसे इस वक्त बातें कर रहा हूँ। मैं समझता हूँ, यह अच्छा ही हुआ कि तुमने एक बुढ़िया की जान ली। अगर तुम्हें कोई और सिद्धांत सूझा होता तो शायद तुम इससे भी हजार गुनी बदतर कोई हरकत कर बैठते। तुम्हें भगवान का उपकार मानना चाहिए। कौन जाने, शायद भगवान किसी काम के लिए तुम्हें जिंदा रखे हुए हो। तुम्हें अपना दिल छोटा करना नहीं चाहिए, न इतना डरना चाहिए। या ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे सामने जो महान प्रायश्चित है उससे डर रहे हो... नहीं, उससे डरना तुम्हारे लिए शर्म की बात होगी। ऐसा कदम उठाने के बाद तुम्हें हिम्मत रखनी चाहिए। अब यह न्याय का सवाल बन चुका है। इसलिए वही करो जो न्याय का तकाजा है। मैं जानता हूँ तुम किसी चीज में विश्वास नहीं रखते, लेकिन मेरी बात मानो, जिंदगी तुम्हें हर मुसीबत से बाहर निकाल ले जाएगी। कुछ वक्त बीतेगा तो वह तुम्हें अच्छी भी लगने लगेगी। तुम्हें बस जिस चीज की जरूरत है वह है हवा, हवा, हवा!'

रस्कोलनिकोव न चाहते हुए भी चौंक पड़ा।

'आप हैं कौन?' वह जोर से चीखा। 'आप भला कहाँ के पैगंबर हैं? आप शांति के किस ऊँचे शिखर पर खड़े हो कर मुझसे ये भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं?'

'मैं कौन हूँ मैं ऐसा आदमी हूँ जिसे जिंदगी से अब और कुछ नहीं चाहिए। ऐसा आदमी जो फिर भी महसूस करता और हमदर्दी रखता है... जिसे शायद कुछ बातें मालूम भी हैं, लेकिन जिसे जिंदगी से अब कुछ और नहीं चाहिए। मगर तुम्हारी बात बिलकुल दूसरी है : भगवान ने तुम्हें जिंदगी दी है। (यूँ भगवान ही जानता है कि कहीं तुम्हारी जिंदगी भी तो महज एक धुआँ बन कर खत्म नहीं हो जाएगी और तुम्हारा कुछ भी नहीं बनेगा।) अगर तुम अपने आपको दूसरी ही श्रेणी के लोगों में गिनते हो तो इससे क्या होता है? तुम्हारे जैसे आदमी को इसका अफसोस तो हो नहीं सकता कि तुमसे तुम्हारा ऐश-आराम छिन जाएगा। कोई अगर बहुत दिनों तक तुम्हें नहीं भी देखे तो क्या हो जाएगा असल चीज समय नहीं बल्कि खुद तुम हो। सूरज बनो, हर आदमी तुम्हें देखेगा। लेकिन सूरज को सबसे पहले सूरज तो होना पड़ेगा। अब तुम किस बात पर मुस्करा रहे हो कि मैं शिलर जैसा कोई आदमी हूँ... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, तुम यह सोच रहे हो कि मैं तुम्हारी खुशामद करने की कोशिश कर रहा हूँ। शायद ऐसा ही हो... हा-हा-हा! बेहतर शायद यही हो दोस्त कि तुम मेरी हर बात ज्यों का त्यों न मान लो! शायद तुम्हें मेरा यकीन करना नहीं भी चाहिए - पूरी तरह तो हरगिज नहीं - मैं हूँ ही ऐसा शख्स। लेकिन इतना मैं और कहना चाहूँगा : मैं समझता हूँ, तुम खुद इसका फैसला कर सकते हो कि मैं ईमानदार हूँ या नहीं।'

'आप मुझे कब गिरफ्तार करेंगे?'

'मैं समझता हूँ, डेढ़ या दो दिन तुम्हें मैं और आजादी से घूमने दूँगा। सोच लो, दोस्त! भगवान से प्रार्थना करो और याद रखो कि इससे तुम्हारा भला ही होगा। मैं इसका तुम्हें यकीन दिलाता हूँ।'

'और अगर मैं भाग जाऊँ तो?' रस्कोलनिकोव ने कुछ विचित्र ढंग से मुस्करा कर पूछा।

'नहीं, तुम नहीं भागोगे। कोई किसान होता तो भाग जाता, कोई फैशनेबुल समाज का होता तो भाग जाता, वह किसी दूसरे के विचारों का गुलाम है, क्योंकि उसकी तरफ तुम अपनी कानी उँगली से भी इशारा कर दो तो वह जिंदगी भर किसी भी चीज पर विश्वास करने को तैयार हो जाएगा। लेकिन तुम अब अपने सिद्धांत पर विश्वास नहीं रख सकोगे, इसलिए अपने साथ क्या ले कर भागोगे और भागते रहने से भी तुम्हें क्या मिलेगा... भागते रहना बहुत ही गंदा और मुश्किल काम है, और तुम्हें जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है जिंदगी में एक खास हैसियत... और मुनासिब हवा। जिस तरह की हवा तुम चाहते हो, क्या वह तुम्हें वहाँ मिल सकेगी? तुम भाग भी जाओ तो अपने आप वापस आओगे। हम लोगों के बिना तुम्हारा काम नहीं चलेगा। मैं अगर तुम्हें कालकोठरी में डाल दूँ तो वहाँ तुम महीने, दो महीने, या शायद तीन महीने रहोगे, और तब तुम्हें याद आएगा कि मैंने तुमसे क्या कहा था। तब तुम खुद मेरे पास आओगे, और बहुत मुमकिन है कि तुम खुद भी इस बात पर ताज्जुब करो। आने से एक घंटा पहले तक भी तुम्हें यह पता नहीं होगा कि तुम मेरे पास अपना अपराध स्वीकार करने आ रहे हो। सच... मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि आखिर में तुम 'तकलीफ ही स्वीकार करने' का फैसला करोगे। तुम इस वक्त मेरी बात नहीं मानोगे, लेकिन यह बात खुद तुम्हारी समझ में आ जाएगी क्योंकि मेरे दोस्त, तकलीफ उठाना बहुत बड़ी बात है। इस तरह मुझे मत देखो। मैं जानता हूँ, मैं मोटा हो गया हूँ। लेकिन कोई बात नहीं। मैं जानता हूँ - मेरी बात पर हँसो नहीं - कि तकलीफ उठाने में कोई बात जरूर है। हाँ, निकोलाई ठीक कहता है। नहीं दोस्त, तुम नहीं भाग सकोगे।'

रस्कोलनिकोव उठ खड़ा हुआ और अपनी टोपी उठा ली। पोर्फिरी भी उठ खड़ा हुआ।

'खुली हवा लेने जा रहे हो? सुहानी शाम है, बस आँधी न आए। लेकिन आई भी तो कुछ खास बुरा न होगा। हवा साफ हो जाएगी...'

पोर्फिरी ने भी अपनी टोपी उठा ली।

'कहीं यह न समझ लीजिएगा,' रस्कोलनिकोव ने कठोर स्वर में जोर दे कर कहा, 'कि आपके सामने आज मैंने कोई अपराध स्वीकार किया है। आप बहुत अजीब आदमी हैं और मैंने आपकी बातें कौतूहल के मारे ही सुनी हैं, कोई अपराध नहीं स्वीकार किया है। याद रखिएगा।'

'जाहिर है, जाहिर है, इतना मैं जानता हूँ... याद रखूँगा मैं। देखो तो सही कितना काँप रहे हो। फिक्र न करो दोस्त, जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा। थोड़ा-बहुत घूम-फिर लो; लेकिन यह याद रखना कि मैं तुम्हें बहुत दिनों तक इस तरह घूमने नहीं दूँगा। बहरहाल, मैं तुमसे मेरे साथ एक एहसान करने को जरूर कहूँगा,' पोर्फिरी ने अपनी आवाज नीची करते हुए कहा। 'बात कुछ टेढ़ी है, लेकिन है जरूरी। मेरा मतलब यह है कि अगर कभी तुम यह फैसला करो (याद रहे, मैं एक पल के लिए भी ऐसा नहीं समझता कि तुम ऐसा फैसला करोगे, और सच तो यह है कि मेरी राय में तुममें इसकी क्षमता भी नहीं है), लेकिन अगर तुम अगले कोई चालीस या पचास घंटों में यह फैसला करो कि तुम इस मामले को किसी दूसरे तरीके से खत्म करना चाहते हो - मेरा मतलब है, अपने आपको खत्म कर देना चाहते हो (एकदम बेतुका विचार है, और मैं माफी चाहता हूँ कि मैं इस तरह का इशारा कर रहा हूँ), तो मुझे बहुत खुशी होगी अगर तुम एक छोटी-सी पर्ची पर पूरा ब्यौरा लिख कर मेरे लिए छोड़ जाओ। बस दो लाइनें - दरअसल, दो छोटी लाइनों से ज्यादा मुझे कुछ चाहिए भी नहीं... और बराय मेहरबानी उस पत्थर की बात लिखना न भूलना। इसी में तुम्हारी सज्जनता होगी। अच्छा, तो मैं चलता हूँ। कोई बुरी बात न सोचना और कोई गलत फैसला न करना!'

पोर्फिरी झुक कर, रस्कोलनिकोव से नजरें चुराता हुआ बाहर चला गया। रस्कोलनिकोव खिड़की के पास जा कर चिड़चिड़ाहट के साथ और बेसब्री से उस वक्त तक इंतजार करता रहा जब तक उसके हिसाब से पोर्फिरी काफी दूर न चला गया हो। फिर वह भी जल्दी से कमरे के बाहर चला गया।