आज फिर मरने का इरादा है, जीने की तमन्ना है / जयप्रकाश चौकसे

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आज फिर मरने का इरादा है, जीने की तमन्ना है
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2018


मोहम्मद रफी के जनाजे में शामिल सभी लोगों के पास छाते थे परंतु झमाझम बारिश में भी किसी ने छाता नहीं खोला। संगीतकार जयकिशन की अंतिम यात्रा में जाने किस ने लाउड स्पीकर पर गाना बजा दिया, 'ज़िंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना।' उनके जोड़ीदार शंकर की शवयात्रा में केवल राज कपूर और उनके कुछ साथी ही मौजूद थे, क्योंकि शंकर की पत्नी ने किसी को खबर ही नहीं दी। जब मुकेश लता मंगेशकर के दल के साथ डेट्रायट, अमेरिका में कार्यक्रम कर रहे थे तब उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने नश्वर देह का त्याग किया। उनका पार्थिव शरीर लेने राज कपूर एयरपोर्ट पहुंचे। उन्होंने कहा कि उनका मित्र वर्टिकल दशा (खड़े खड़े) में गया और हॉरिजोंटल (लेटे हुए) दशा में वापस आ रहा है। उस समय उन्हें अंदेशा भी नहीं था कि कुछ इसी तरह दिल्ली से वे भी लौटेंगे। दादा साहब फालके पुरस्कार ग्रहण करते ही वे अचेत हो गए थे। उस दौर में राष्ट्रपति स्वयं ही सभी विजेताओं को पुरस्कार देते थे। उनकी पार्थिव देह भी मुकेश की तरह ही वापस आई थी।

तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने राज कपूर की अंत्येष्टि का सारा इंतजाम किया था। अत: जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि श्रीदेवी की अंतिम यात्रा का इंतजाम सरकार ने क्यों किया, वे इन तथ्यों से अनभिज्ञ हैं। बहरहाल, केन में श्रीदेवी की एक प्रशंसक ने कॉफी के मग में डाले हुए दूध पर श्रीदेवी का चित्र उकेरा और उसे इंटरनेट पर डाल दिया। 20 मई को दोपहर पुणे फिल्म संस्थान में पढ़ने वाली टीनू सोजतिया और उनकी सहेली परिधि भाटी तथा स्वाति विचारिया ने अपनी कार के चारों ओर श्रीदेवी की छवियां अंकित की हैं और वे यह कार दिखाने के लिए बोनी कपूर के घर आई थीं। कार का संदेश है कि दुष्कर्मी को मृत्युदंड दिया जाए। उन्होंने बताया कि पुणे से मुंबई तक सफर में कार को अनेक लोगों ने देखा। राह में जहां उन्होंने नाश्ता किया, रेस्तरां मालिक ने उनसे पैसे नहीं लिए। टीनू सोजतिया का परिवार इंदौर में रहता है। अनुमान है कि उनका परिवार इंदौर में एक दोपहरिया अखबार का प्रकाशन भी करता है।

श्रीदेवी अपनी मृत्यु के बाद भी इस तरह उजागर हो रही हैं। उनकी विराट लोकप्रियता का अहसास शनै: शनै: हो रहा है। आश्चर्य है कि अपनी पहली पारी के वर्षों बाद उन्होंने गौरी शिंदे की फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' की और बाद में 'मॉम' में अभिनय किया, जो उनका स्वॉन सॉन्ग सिद्ध हुआ। मृत्यु पूर्व लिखे हुए को स्वॉन सॉन्ग कहा जाता है। मृत्यु जीवन के वाक्य में अर्धविराम की तरह है। यह फुलस्टॉप नहीं है। शैलेन्द्र ने 'अनाड़ी' के लिए गीत लिखा, मरकर भी याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे, जीना इसी का नाम है।' आज श्रीदेवी-बोनी कपूर की सुपुत्री जाह्नवी कपूर अभिनय क्षेत्र में कदम रख रहीं हैं और उन्होंने लिखा है, 'मैं अपनी आवाज में मां की आवाज सुनती हूं, इस तरह उन्हें आज भी अपने पास पाती हूं।' यादों में गुजरने वाला व्यक्ति हमेशा धड़कता रहता है। कुछ लोग ऐसा अर्थहीन जीवन जीते हैं कि लगता है कि वे आए ही नहीं थे तो जाएंगे कैसे?

पांचवें दशक में लोकप्रिय सितारे थे श्याम जिनकी मृत्यु घोड़े से गिरने के कारण हुई और यह घुड़सवारी फिल्म 'शबनम' की शूटिंग के लिए की गई थी। हॉलीवुड में हर कलाकार और फिल्म का बीमा किया जाता है कि किसी तरह का हादसा होने पर भरपूर मुआवजा मिले। हमारे देश में तो मेडिकल क्लेम भी दिए नहीं जाते। किसी न किसी बहाने क्लेम रद्द कर दिया जाता है। खाकसार भुक्तभोगी है। इस पर तुर्रा यह कि सरकार ने पचास करोड़ लोगों के बीमा कराने की घोषणा की है। घोषणाएं करते रहने से मन बहलता रहता है। इसी तरह एक हास्य कलाकार गोप की मृत्यु हुई और उनकी शक्ल-सूरत से मिलती-जुलती शक्ल वाले बुरहानपुर के एक निवासी को लेकर फिल्म पूरी की गई थी। कहते हैं कि समान शक्ल-सूरत के साथ व्यक्ति होते हैं परंतु वे विभिन्न देशों में जन्म लेते हैं। ऊपर वाले के पास सीमित फर्मे हैं परंतु उसे सतत काम करते रहना है। अत: समान शक्ल-सूरत का माल भी बन जाता है। कई बार वह अपने काम से ऊब जाता है और ऐसे में ही कुछ हुक्मरान बना देता है। डोनाल्ड ट्रम्प अकेले नहीं हैं।

देव आनंद को किसी तरह का हंगामा पसंद नहीं था। वे सतत काम करते रहते थे और प्राय: पटकथा पूरी करने के पहले ही शूटिंग शुरू कर देते और संपादन पूरा करने के पहले फिल्म का प्रदर्शन कर देते थे। उम्रदराज होने पर जब उन्हें लगा कि उनका अंत करीब है तब उन्होंने लंदन जाना तय किया और अपने आखिरी दस्तावेज में स्पष्ट निर्देश दिए कि उनकी अंत्येष्टि लंदन में ही बिना किसी हंगामे के कर दी जाए। इस तरह भी लोग अलविदा कहते हैं। देव आनंद को यकीन था कि 'स्टाइल इज द मैन' और उन्होंने इसे मृत्यु तक निभाया।

उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्म 'गाइड' के लिए शैलेन्द्र ने गीत लिखा 'आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।' बहरहाल सोनू सोजतिया, परिधि भाटी और स्वाति विचारिया जैसी श्रीदेवी प्रशंसक की कार जहां से भी गुजरेगी, वहां श्रीदेवी की यादें लहराएंगी। यह कार श्रीदेवी का चलायमान म्यूजियम है। प्रशंसा मनोरंजन उद्योग की ऊर्जा नदी है, जो सदैव प्रवाहित रहती है। नदी के किनारे घाट बन जाते हैं, हाट लग जाते हैं, मेले-तमाशे जारी रहते हैं। कभी-कभी नदी में बाढ़ के जाने के बाद नदी-किनारों पर कूड़ा-करकट भी छोड़ जाती है। इस सबके बीच बोनी कपूर को अपने जन्म नाम अटल को ही चरितार्थ करना है।