ईश्वर अपने साथ है तो डरने की क्या बात है / ताराचंद्र अग्रवाल / राजी खुशी

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: राजी खुशी  » अंक: दिसम्बर 2011  

बी.के. ताराचंद्र अग्रवाल परमात्मा के अनन्य विश्वासी है। यह विश्वास इतना गहरा है कि वे उसे अपने साथ अनुभव करते हैं। अपने ऑपरेशन के दौरान उन्होंने इसे अधिक स्पष्ट अनुभव किया। वही अनुभव यहां प्रस्तुत है, उन्हीं के शब्दों में।

परमात्मा का प्यार अनमोल है। उस पवित्र प्यार को इन स्थूल नेत्रों से देखा तो नहीं जा सकता लेकिन अनुभव जरूर किया जा सकता है। भारतवर्ष में विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं। कई लोग भक्ति, पूजा तथा प्रार्थना के द्वारा ईश्वर से सुख-शांति, आनंद की अनुभूति की प्राप्ति करना चाहते हैं तो कई लोग गीत-संगीत व विभिन्न प्रकार के योग और क्रियाओं के द्वारा उसे रिझाने की कोशिश करते हैं। मैं, सर्वशक्तिमान निराकार परमपिता परमात्मा शिव को याद करता हूं। चूंकि वह परम आत्मा है, तो मैं उसका बच्चा स्वयं को आत्मा समझकर कभी पिता के रूप में, कभी माता के रूप में तो कभी बंधु सखा व सद्गुरू के रूप में उसे याद करता हूं। सचमुच खुदा मेरा दोस्त भी है, मैं जब भी उसे याद करता हूं उसे अपने समीप ही पाता हूं। मैंने उसकी आहट को पहचाना है। उससे मिलती मदद को जाना है और निश्चित ही वह मेरा साथी बनकर दिनरात मेरे साथ ही रहता है। वह मेरी जरा सी भी तकलीफ देख नहीं सकता और तुरंत मेरी मदद के लिए हाजिर हो जाता है। ऐसा मेरा अनुभव है।

बात 5 अगस्त 2007 की है। मैं नियमित सुबह अमृतवेला उठकर सर्वप्रथम अपने प्यारे पिता को याद करता हूं। मेरी गुड मार्निंग सर्वप्रथम मेरे खुदा दोस्त से ही होती है, फिर कुछ समय बैठकर उससे सकाश लेकर अपने नित्यकर्म में लग जाता हूं। मैं नियमित 3-4 कि.मी. घूमने जाता हूं। उस दिन घूमते समय रास्ते में मुझे सीने में दर्द सा महसूस हुआ जो कुछ समय पश्चात बंद भी हो गया। दो-तीन दिनों तक लगातार ऐसी ही चलता रहा और मैंने घर में किसी को बताया भी नहीं। 10 अगस्त 2007 को रात्रि 8.30 बजे मुझे अटैक आया और मैं पसीना-पसीना हो गया। मैंने ईश्वर से मदद मांगी। देखते ही देखते घर के सभी सदस्य इकट्ठे हो गये और मुझे तुरंत हॉस्पिटल ले गये। वहां पूर्व उपचार की कोई विशेष व्यवस्था ना होने के कारण आक्सीजन सिलेंडर लगाकर मुझे तुरंत इंदौर रैफर कर दिया गया।

बाहर भयंकर बारिश और सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे, लेकिन परमात्म गोद में मैं स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहा था। सुबह इंदौर पहुंचते ही विशेष हॉस्पिटल में मेरा ट्रीटमेंट शुरू हुआ। 6 दिन मैं आईसीयू में रहा। डॉक्टर्स मेरी बिगड़ती हालतों को देखकर घबरा रहे थे लेकिन मेरे चेहरे पर असीम आत्मविश्वास और मुस्कुराहट को देखकर कई बार तो वे चकित से रह जाते थे। जो भी मुझसे मिलने आता, उसे लगता ही नहीं था कि मैं इतना बीमार हूं। एंजियोग्राफी में मेरी चारों आर्टरीज 95प्रतिशत ब्लाकेज थी और डॉक्टर्स मेरी बायपास सर्जरी को बहुत रिस्की बता रहे थे। मेरी पत्नि, बच्चे बड़े सभी मेरे लिए ईश्वर से दुआएं मांग रहे थे।

23 अगस्त 2007 को मेरा ऑपरेशन दिल्ली के हार्ट एंड लंग्स हॉस्पिटल में हुआ। जब मुझे ऑपरेशन थियेटर में ले जा रहे थे मैंने अपने खुदा दोस्त को आह्वान किया। बेहोशी की हालत में मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं परमात्म गोद में लेटा हुआ हूं और वह सर्वशक्तिमान मुझे सकाश दे रहे हैं। मेरे चेहरे पर ना तो कोई डर का भाव था ना ही कोई चिड़चिड़ाहट, सिर्फ आंखों से आंसू बहते थे। मेरी आनंदमयी नि:शांत स्थिति को देखकर डॉक्टर्स भी आश्चर्यचकित थे। दोपहर 12 बजे से रात्रि 8 बजे तक मेरा ऑपरेशन चला। परिवार व रिश्तेदार सभी मिलकर मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे।

दोपहर चार बजे मुझे ऐसा महसूस हुआ कि स्वयं भगवान मुझे अपने हाथों से चाय-बिस्किट खिला रहे हैं। इस अनुभव को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगा। मैंने सच्चे दिल से साहेब को राजी किया है और सदैव उनकी श्रीमत पर चलते रहने से भगवान की मदद सदैव मेरे साथ है। तभी तो जब मेरे लिए डॉक्टर्स ने स्वयं फाइल पर लिखकर दिया है कि-वेरी हाय रिस्क केस इन बायपास सर्जरीÓÓ लेकिन मेरा ऑपरेशन सफल हुआ और आज मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। इसलिए यह बात निर्विवाद सत्य है कि-

जिसे वह देना चाहता है
उसी को थमाता है।
खजाने रहमतों के
इसी बहाने लुटाता है।

ताराचंद्र अग्रवाल

(5, तिलकपथ, शुजालपुर मंडी 465333 (म.प्र.))