किसान सभा विप्‍लवी शक्तियों की प्रतीक / महारुद्र का महातांडव / सहजानन्द सरस्वती

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हाँ तो , हम उसी चौथे पर्व पर आयें और आगे बढ़ें। जब बराबर के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संघर्षों में , असहयोग और चुनावों में सरकार पछाड़-पर-पछाड़ खाने लगी-वही सरकार , जो पशुबल और प्रभुत्व में अपना सानी नहीं रखती थी ; सो भी निहत्थी जनता के दृढ़ संकल्प के सामने , तो बलातगाँवों की जनता को भान होने लगा कि हममें अपार शक्ति है , जिसे भूल गए थे। 1930-32 के सत्याग्रह और 1934 के केंद्रीय चुनाव ने इस पर कसकर मुहर भी लगा दी। 1936-37 के चुनाव ने तो स्पष्ट ही बता दिया कि ग्रामीण जनता के पास अपरंपार शक्ति है , जो किसी को झुका सकती है। इसी भाव ने , जनशक्ति के इसी ज्ञान ने किसान-आंदोलन को जन्म दिया। जनांदोलन का मूल तो गाँवों में ही था , उसके मूलस्तंभ किसान ही थे। अहसयोग-आंदोलन का कार्यक्रम प्रधानत: उन्हीं को ध्यान में रखकर तैयार हुआ था। अधिकांशत: किसान-आंदोलन में खिंचे भी। फलत: अपनी अजेय शक्ति का ज्ञान विशेष रूप से उन्हीं को हुआ। उनने सोचा कि अगर हम अपार बलशाली साम्राज्यशाही को पछाड़ सकते हैं , तो इन जमींदार-मालगुजारों और सूदखोरों की क्या हस्ती ? ये तो उसी साम्राज्यशाही के बनाए हुए हैं। जब हमने हाथी या सिंह को पछाड़ लिया , तो बिल्ली या चुहिया की क्या बिसात ? यदि संगठित जनांदोलन ने सरकार को मात किया , तो संगठित किसान-आंदोलन ही जमींदारों को करारा पाठ पढ़ाएगा , यह निष्कर्ष किसानों और उनके सेवकों ने स्वभावत: निकाला। 1927-28 से ही यह आंदोलन किसान सभा के रूप में जन्म लेकर क्रमश: पुष्ट और शक्तिशाली होता गया , ज्यों-ज्यों किसानों को अपनी अपारशक्ति के भान की मजबूती होती गई। 1936-37 के बाद तो 1938-39 में या उससे पूर्व एक बार किसान सभा ने बिहार में , युक्तप्रांत में या अन्यत्र सामंतशाही शक्तियों एवं उनके हिमायतियों को जड़ से हिला दिया। आज जमींदारी मिटाने की व्यापक चिल्लाहट उसी का परिणाम है।

इस प्रकार राष्ट्रीय आजादी के महाभारत के चतुर्थ पर्व में होनेवाले कांग्रेस के जनांदोलन ने ही अनिवार्य रूप से किसान-आंदोलन को जन्म देकर बलवान बनाया। यह आंदोलन या किसान सभा उन्हीं विप्लवी या विस्फोटकारी शक्तियों का प्रतीक है , जो भीषण भूकंप लाती हैं और महारुद्र का महातांडव कराती हैं। समय-समय पर सोशलिस्ट पार्टी , फारवर्ड ब्लाक आदि विभिन्न वामपंथी दलों का जन्म उन्हीं प्रलयंकर शक्तियों को समयोचित पथ-दर्शन कराने के लिए ही हुआ है और इन दलों के नेता कर्मठ कांग्रेसजन ही रहे हैं या हैं , जैसे किसान सभा के नेता भी वही रहे हैं और आज भी हैं।