खुश भी रहें और राजी भी / सुषमा पराचा / राजी खुशी

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: राजी खुशी  » अंक: दिसम्बर 2011  

क्या इस बात पर यकीन करना आसान है कि जो व्यक्ति प्रसन्नचित्त रहते हैं वे अधिक समय तक जीते हैं, लेकिन हाल ही में हुए अध्ययन बता रहे हैं कि प्रसन्न रहने और अधिक जीने में सीधा संबंध है।

वैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों का मानना है कि सकारात्मक सोच के साथ जीने वाले और जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ संतुलन बनाए रखने वाले लोग न केवल लंबी आयु पाते हैं, बल्कि वे जीवन में अपने तय उद्देश्यों को पूरा करने में भी सफल रहते हैं।

जबकि ईष्र्या, उत्तेजना और अवसादग्रस्त लोग जल्दी ही तनाव और अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं। हालाँकि अभी यह स्पष्ट रूप से तय नहीं हुआ कि क्या वाकई लंबी आयु के लिए खुशी एक आवश्यक तत्व है, लेकिन एक बात प्रमाणित हो गई है कि चूँकि खुश रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। शायद इसीलिए वे अधिक समय तक जी पाते हैं। पर वैज्ञानिक अधिक समय तक जीने के लिए जिम्मेदार कारणों की तलाश भी कर रहे हैं।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. हॉवर्ड एस. क्राइड का मानना है कि जो लोग मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, वे अधिक समय तक जीते हैं। फ्राइड एक ऐसे मनोविश्लेषक भी माने जाते हैं जो व्यक्ति की विशेषता को लंबी आयु और उसके प्रसन्न रहने से जोड़कर देखते हैं। हाल ही में 660 लोगों पर सर्वेक्षण में जब यह पूछा गया कि उनकी लंबी आयु का राज क्या है तो उनका जवाब था कि वे आज भी उतने ही खुश हैं, जितने बचपन में रहा करते थे। उनका मानना था कि हम जैसे-जैसे बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे हैं, अधिक खुश रहने की कोशिश कर रहे हैं।

शोधकर्ता यह भी मान रहे हैं कि निराशावादी रवैये से रक्तचाप बढ़ जाता है और अनियमित खानपान से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। यदि लगातार 4 वर्षों तक यह बढ़ती रहे तो समझिए मृत्यु निकट है, इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे व्यक्तियों को अपने वजन को संतुलित बनाए रखना, धूम्रपान न करना और नियमित व्यायाम करना चाहिए।

सामाजिक विश्लेषक डॉ. बीका लेवी का मानना है कि बढ़ती उम्र के साथ हमें अपने खानपान, यौन आवश्यकताओं, अकेलेपन, आर्थिक स्थितियों के संतुलन और बढ़ते तनाव को भी नियंत्रित करना चाहिए। सर्वेक्षण का निष्कर्ष यह भी निकला कि लंबी आयु पाने से अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा बुढ़ापे को नियंत्रित करने का है, लेकिन यदि बुढ़ापा शुरू होने पर दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाए तो अधिकतर समस्याएँ स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं।

उधर रोचेस्टर के मायो क्लिनिक में हुए एक अन्य शोध में भी यह बात उभरकर सामने आई है कि जीवन में आशावादी नजरिया किसी भी व्यक्ति को लंबी उम्र देने में सहायक सिद्ध होता है, जबकि किसी भी व्यक्ति का निराशावादी दृष्टिकोण उन्हें उनकी मृत्यु के करीब 19 प्रतिशत पहले पहुँचा देता है।

मनोविश्लेषक भी यह मानते हैं कि दरअसल यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि तनाव के दौरान ऐसे लोग खुद को कैसे संभालते हैं, क्योंकि यह तो तय है कि उम्र बढऩे के साथ ही तनाव बढऩे की शुरुआत भी हो जाती है।

अधिकतर शोधकर्ता इस बात से भी सहमत हैं कि व्यक्ति और लंबी आयु के बीच के संबंध की व्याख्या करना कोई सरल काम नहीं है। फ्राइडमैन भी मानते हैं कि यह एक गलत सलाह है, लंबी आयु के लिए सिर्फ व्यक्ति खुश रहें। वे मानते हैं कि यदि नियंत्रित सोच के लिए दिल से ऊपर स्थित दिमाग का इस्तेमाल किया जाए तो शायद कोई हल निकल आए।

बहुत से मनोविश्लेषक यह भी कहते हैं कि लंबी आयु के लिए अपनी जीवनशैली और व्यक्तित्व में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है। पर मायो क्लिनिक की डॉ. तोशीहीको मारुता का मानना है कि व्यक्तित्व एक स्थिर चीज है। इसे कुछ नरम तो किया जा सकता है, पर पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता।

सुषमा पराचा