चला तो चाँद तक, नहीं तो शाम तक / सुरेश कुमार मिश्रा

Gadya Kosh से
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फुटपाथ किनारे मारुति ओमिनी कार में एलईडी बल्बों का ठेला लगाए एक दुकानदार लगातार एक ही धुन बजाए जा रहा था-'घर को चमकाना है, ख़ुद को रोशन करना है, तो आइए भाई साहब, कदरदान! मेहरबान! दुनिया का सबसे अच्छा एलईडी बल्ब। तीन एलईडी बल्ब सिर्फ़ सौ रुपए में। सौ रुपये में। सौ रुपये में।' मैं जब भी बाज़ार से गुजरता तो यह धुन ज़रूर सुनता। किंतु आज मैं उसके पास ही चला गया। घर में बल्ब जो खराब हो गया है! अब क्या बताऊँ साहब रात में शौचालय जाने में बड़ी तकलीफ होती है। ऊपर से श्रीमती जी की रट-रट! उनका एक ही कथन–'तुमसे कुछ नहीं होगा। सब मुझे ही करना होगा। कितने दिनों से कह रही हूँ बल्ब खराब हो गया, लेकिन आपके कानों पर तो जूँ तक नहीं रेंगता।' मुझ में और इतनी सहनशीलता नहीं थी कि पत्नी की यह रट-रट सुन सकूँ। ग़ज़ब तब हुआ जब बल्ब खराबी का समाचार पड़ोस तक पहुँच गया। पड़ोसी ने हमसे सहायता कि भावना में कहा–साहब लगता है आजकल आप बड़े व्यस्त हैं। कहें तो मैं बल्ब लाकर दे दूँ। इतना सुनना था कि मेरा खून खौल उठा। थोड़ा बहुत योग करता था सो ख़ुद को नियंत्रित कर पाया। नहीं तो साहब उस दिन उनकी खैर नहीं थी। मैंने कहा–कोई ज़रूरत नहीं है। मैं बाज़ार जा रहा हूँ। खरीद लूँगा।

मुझे डर इस बात का था कि कहीं बल्ब खराबी का किस्सा रिपब्लिक चैनल पर न आ जाए। वरना अरनब गोस्वामी चिल्ला-चिल्लाकर 'नेशन वान्ट टू नो' के जरिए पूरी दुनिया को बता देगा। फिर लोग तरेरी आँखों से गला फाड़-फाड़कर एक ही बात पूछेंगे-भाई साहब नेशन वान्ट टू नो कि आप बल्ब कब खरीदोगे! इससे पहले कि मामला ज़्यादा बिगड़े फौरन जाकर बल्ब ही खरीद लूँ। इस तरह मैं हर दिन एक ही रामधुन बजा रहे एलईडी बेचने वाले साहब के पास प्रकट हुआ। ऐसा नहीं है कि मैं सीधे उसके पास पहुँचा था। वह तो कई दुकानों में नाक रगड़ने के बाद पता चला कि एक एलईडी बल्ब की क़ीमत 150-200 रुपये से एक पैसा कम नहीं है। कुछ के पास क़ीमत पूछने गया तो कुछ के पास खरीदने। लेकिन किसी न किसी बात में मुझमें और दुकानदार में कुछ कहा-सुनी हो जाती। कुछ दुकानदारों ने यहाँ तक कह दिया कि मेरी सूरत खरीदने वाली नहीं है। कुछ ने कहा–जाओ-जाओ साहब हमारा टाइम खोटी मत करो।

आखिरकार थक-हार के सौ रुपये में तीन एलईडी बल्ब बेचने वाले के पास पहुँचा। वह मुझे काफ़ी देर से देख रहा था। उसने मुझसे पूछा–'साहब कहीं सामने वाले दुकानदारों ने भगा तो नहीं दिया? कहीं भला-बुरा तो नहीं कहा। जो मेरे पास चले आए?' मैंने गुस्से में आँखें दिखाते हुए उससे कहा–ज़्यादा होशियारी मत दिखाओ। अपने काम से काम रखो। बल्ब वाले ने कहा–हाँ साहब आजकल भलाई का जमाना ही कहाँ रहा? मैं लोगों को बड़े प्यार से बुलाता हूँ तो आते नहीं है। जब तक किसी की चार झिड़की न खा लें तब तक होश ठिकाने नहीं आते। मैं उसकी इस बात पर चुप रह गया। मैंने उसे सौ रुपये देते हुए कहा–ये बल्ब काम करेंगे भी न? या सिर्फ़ तुम यूँ ही हर दिन फेंकते रहते हो? वह क्या है न भाई चाइना (चीन) माल का कोई भरोसा नहीं है!

इतना सुनना था कि बल्ब वाले ने जो मेरी क्लास ली वह ज़िन्दगी भर याद रह गया। न जाने कहाँ का गुस्सा था या फिर कुछ और उसने सब का सब मुझ पर उगल दिया। उसने कहा-साहब चाइना का माल हमारे रगों में समाया हुआ है! आपके नीचे से लेकर ऊपर तक और अंदर से लेकर बाहर तक सब चाइना ही चाइना है। लकड़ी, मिट्टी के खिलौने, पटाखे, दीपावली की चमक-दमक वाली लाइटें, राखियाँ सब ए टू जेड चाइना का है। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील से ऑनलाइन सामान हो या फिर स्विगी, जोमाटो से भोजन–सब चाइना है। इलेक्ट्रिक दुनिया कि तो बात ही मत पूछो। छोटे से छोटे चिप से लेकर मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, लैपटाप, कंप्यूटर तक सब चाइना का बना हुआ है। कहीं घूमना है तो मेक मैं ट्रिप, कहीं ठहरना है तो ओयो के होटल, कहीं बैठना है तो प्लास्टिक की कुर्सियाँ सब चाइना नहीं तो और क्या है! साहब चाइना का माल बहुत ख़ास होता है। अगर यह अच्छे से चल गया तो चाँद तक नहीं तो शाम तक! इसकी कोई गारंटी-वारंटी नहीं होती। वैसे भी एक ही चीज को लेकर कितने दिन तक घसीटेंगे? चलो चाइना माल के बहाने ही सही नए-नए सामान तो यूज़ कर सकते हैं! आप इन बल्बों को भूल जाइए। इसकी गारंटी मैं देता हूँ। इतने दिनों से यूँ ही ये बल्ब नहीं बेच रहा। मैं भी पीएच.डी होल्डर हूँ। वह तो देश ने मुझे नौकरी नहीं दी। वरना मैं बंदा बड़े काम का हूँ! शुक्र है कि चाइना का माल तो है। इसी से मेरे जैसे न जाने कितनों की रोज़ी रोटी चलती है!

मैं इतना सुन सिर झुकाए सौ रुपये के तीन बल्ब घर ले आया।