जयप्रकाश चौकसे जी से कुछ बात, एक दो मुलाकात / दीपक असीम

Gadya Kosh से
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चौकसे जी उन दिनों डनहिल सिगरेट पिया करते थे और चेन स्मोकर थे। उम्र में बड़े थे लिहाजा जब उन्होंने सिगरेट ऑफर की तो झिझक हुई। मगर वे सहज थे।

``आप वितरक भी हैं और दैनिक भास्कर में कॉलम भी लिखते हैं। जो फिल्म आप रिलीज़ करते हैं, उसकी बेजा तारीफ आप करते हैं, क्या यह ठीक है?`` अपने अखबार की तरफ से यही कठिन सवाल पूछने के लिए मुझे भेजा गया था। उस इंटरव्यू में और बाते तो गौण थीं, असल सवाल यही था।

इस सवाल का जवाब चौकसे जी ने पूरी ईमानदारी से दिया था कि हां मैं फिल्म वितरण व्यवसाय में हूं और अपनी रिलीज़ की हुई फिल्मों की तारीफ भी करता हूं ताकि मुझे फायदा हो। मगर यह भी देखिए कि मैं घाटा उठाकर भी ऐसी फिल्में दिखाता हूं, जिन्हें कोई और वितरक हाथ लगाने को तैयार नहीं होता। उनका मतलब उन दिनों की कुछ ऐसी आर्ट फिल्मों की तरफ था, जो अच्छी थीं, मगर उनका वितरण किसी भी वितरक के लिए घाटे का सौदा होता।

इस मुलाकात से पहले मैं उन्हें भास्कर में रोज़ पढ़ता था। एक बार मुझे किसी ने कहा कि भास्कर बुरा अखबार है, आप नईदुनिया पढ़ा करो।``मैं भास्कर इसलिए पढ़ता हूं कि उसमें चौकसे जी का कॉलम छपता है।`` मैंने जवाब दिया था। उन दिनों तक नईदुनिया जागरण समूह ने नहीं खरीदा था और वाकई उन दिनों नईदुनिया अच्छा निकलता था। समझदार पाठक नईदुनिया पढ़ा करते थे और अपन को भास्कर केवल चौकसे जी के लिए अच्छा लगता था।

तो अखबार की नौकरी की खातिर चौकसे जी से अप्रिय सवाल पूछा। बातों ही बातों में मालूम पड़ा कि संपादक और वे दोस्त भी हैं। यह संपादक की ईमानदारी थी कि ऐसा सवाल पुछवाया। ये चौकसे जी का जिगर था कि ऐसे सवाल का सच्चा जवाब दिया। यह पहली मुलाकात थी उनसे। फिर इधर उधर मिलते रहे, मगर पहली ही मुलाकात में उनसे मुहब्बत सी हो गई थी। शायद उन्हें भी मुझसे लगाव हुआ था। तभी वे मुझे अरसे तक भूले नहीं और लगातार आत्मीयता से मिलते रहे। वे जिससे मिलते थे, बेतकल्लुफी से बात करते थे, बेबाक और बेलाग बात करते थे। जिससे नहीं बात करनी होती, उसे बड़ी रुखाई से टाल देते थे। एक फिल्मी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वे मुझ नाचीज़ से एक कोने में बात कर रहे थे कि एक पत्रकार आई। पूछने लगी आप यहां से सीधे घर ही जाएंगे ना। चौकसे जी ने कहा हां घर ही जाऊंगा। पत्रकार ने कहा मैं आपके घर आ रही हूं। चौकसे जी की त्यौरियां चढ़ गईं। पत्रकार से कहा आप घर मत आना। पत्रकार ने पूछ क्यों? कहने लगे मैं घर जाकर अपनी बीवी से रोमांस करना चाहता हूं। नहीं चाहता कि कोई मुझे डिस्टर्ब करे। फिर उस पत्रकार से नाराज़गी की वजह भी बताई। हुआ यह कि चौकसे जी निदा फाजली के साथ होटल के कमरे में विस्की पी रहे थे। बाहर डू नॉट डिस्टर्ब की तख्ती भी लगवा दी थी कि कोई परेशान ना करे। मगर एक पत्रकार होटल स्टाफ से लड़-झगड़ कर कमरे में आ गई और निदा जी के पैरों में गिरकर कहने लगी कि आपका इंटरव्यू तो मैं लेकर रहूंगी। फिर जो इंटरव्यू उसने लिया वो निहायद बोदा और मामूली सा था। इसीलिए चौकसे जी उस पत्रकार से खफा थे।

  बहरहाल चौकसे जी उन दिनों खूब लिखा करते थे। वो उनके कॉलम के बहार वाले दिन थे। फिर उनके कॉलम की किताब की भी निकली, जो अरसे तक पास रही। उनके पास फर्स्ट हैंड जानकारियां हुआ करती थीं, भाषा थी, उर्दू की शायरी थी। अंग्रेजी साहित्य का उनका ज्ञान भी था।

बाद में उनके कॉलम से जी उचटने लगा। महसूस हुआ कि लेख के लिए जो सेंट्रल आइडिया चाहिए होता है, वो गायब रहता है। शायद उनका स्वास्थ्य उन दिनो खराब होना शुरू हो गया था। लेख कहीं से भी शुरू होकर कहीं भी खत्म हो जाता था। कुछ घटनाओं, यादों, कविताओं और अशआर का रिपिटेशन भी होने लगा। सलमान खान और उनके परिवार के प्रति एक किस्म की श्रध्दा और स्वामीभक्ति नजर आने लगी। राजकपूर के प्रति उनका प्रेम और लगाव सहनीय था, मगर सलमान खान जैसे औसत एक्टर के लिए नहीं जो केवल मसाला फिल्में करता है।

बहरहाल इससे भी मुक्ति मिली और उनका कॉलम पढ़ना छूट गया। जब मुझे ओशो के एक प्रवचन के प्रकाशन पर साज़िशन धारा 295 ए लगवाकर जेल भेजा गया तो चौकसे जी ने मेरे साथ हुई घटना का ज़िक्र उनके कॉलम में किया। यह बड़ी बात थी कि जिस कॉलम में सितारों का जिक्र होता हो, मेरा भी जि़क्र आया। उन्होंने मेरी तरफदारी करते हुए लिखा था कि इन दिनों असहिष्णुता का आलम यह है कि एक बेकसूर को जेल जाना पड़ा।

उनका कॉलम पढ़ना बरसों से छूट गया था, मगर उनके प्रति प्यार और सम्मान जैसा पहले दिन था, वैसा ही आज भी है। यह पढ़कर दुख हुआ कि उनका कॉलम बंद हो गया है। उनके लाखों करोड़ों प्रतिबध्द पाठक थे। उनका कॉलम शायद भारत के फिल्म साहित्य इतिहास का सबसे लंबे समय तक छपने वाला कॉलम है और शायद सबसे लोकप्रिय भी। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे चौकसी जी का थोड़ा बहुत सानिध्य और बहुत सारा प्यार मिला। वे भले ही कॉलम ना लिखें पर खूब जिएं। स्वस्थ रहें।