जाने क्या ढूंढता है ये मेरा दिल तुझको क्या चाहिए जिंदगी / नवल किशोर व्यास

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जाने क्या ढूंढता है ये मेरा दिल तुझको क्या चाहिए जिंदगी


तनुजा चंद्रा की 2002 में एम एम करीम के संगीत में आई फिल्म सुर- द मेलोडी ऑफ लाइफ का ये गीत अपने बीच ही रह रहे उन "कन्फ्यूज" लोगो की वेदना है जिन्हें सच मे नही पता कि आखिर वो बेचैन क्यों है? जिंदगी से उन्हें क्या चाहिए और किस दिशा में वो जा रहे है। करना कुछ और है और शायद कर कुछ और रहे है। इस बेचैनी और तलाश को आवाज देने और अभिनय के लिए लकी अली से बेहतर चयन क्या हो सकता था। आखिर ऐसी अंनत बैचैनी और किसकी आंखों और कंठ में एक साथ दर्ज है? गाने के बोल की तरह मन में यात्राओं को समेटे, देश विदेश भटकते, कभी मानते, कभी मना करते, कुछ पाने की इच्छा और खोने के डर से ऊपर उठे लकी अली उन कुछ आर्टिस्ट में से रहा जिसके जीवन मे साधारण तौर पर मिलने वाली स्थितियों, चांस और करियर को "टैकल" करने का रवैया स्टडी करने जैसा है। वो सफल आदमी के तौर पर उदाहरण दिए जाने वाला नाम नही है। वो सदा दुनिया की परिभाषाओं में गढ़ा वो "कन्फ्यूज टैलेंट" रहा जिसने अपने भीतर और बाहर हमेशा एक यात्रा की और ट्रेवलर ही बना रहा।

लकी अली चार साल तक श्याम बेनेगल के असिस्टेंट रहे। भारत एक खोज में बुद्ध का रोल किया पर मन नही लगा। बेनेगल तिलिस्म से बाहर आ गए। पिता सितारे कमेडियन मेहमूद थे। दुश्मन दुनिया का नाम से फिल्म बना कर लकी को लॉन्च करने वाले थे पर लकी ने मना कर दिया। बोले स्क्रिप्ट अच्छी नही। फिर इसी फिल्म से लकी का छोटा भाई लॉन्च हुआ। गाने का शौक था, पर संगीत सीखा हुआ नही था। ऊपर से इतनी खुरदरी और बेतरतीब आवाज। सब जगह से रिजेक्ट हुआ। चार साल अपने गाने लिए घूमा, फिर यार-दोस्तो की मदद से पहला एलबम निकाला- "सुनो" जिसका गाना "ओ सनम" सुन सुन के हम कैसेट और सीडी घस चुके है। आगे भी जितने एलबम आये, अनोखे रहे, हिट रहे और उस पर बने वीडियो में लकी अली बैग पकड़े ट्रेवलर का क्लीशे दिखाते रहे। वो अभिनेता, गायक और लाइव परफॉर्मर के रूप में भारत में आता-जाता रहा। काम किया और वापिस रवाना। बाकी समय पूरी दुनिया घूमने में लगा रहा माने कभी सेट नही हो पाया। उसे एक तय मानक में सेट होना ही नही था। दिल्ली के प्रदूषण से उसे शिकायत थी और मुम्बई के शोर से इरिटेशन। दुबई में कालीन से लेकर न्यूजीलैंड में खेती तक का काम किया। हर काम में आराम ढूंढा, पर आराम न मिला।

दरअसल लकी समय के आसमान में बह रही कटी पतंग रही जो उड़ती है, कटती है, गिरती है, मिलती है, फिर उड़ती है, दोबारा कटती है और किसी नई जगह फिर पड़ी हुई मिलती है। उड़ने से ज्यादा मजा उसे हमेशा कटे रहने में आया और बहुधा जीवन मे कटे होने के सुख जुड़े होने से ज्यादा ही होते है। खारिज कर देने का अपना मजा है और खारिज हो जाने की अपनी संतुष्टि। साध लेना परम सत्य नही और चूक जाना हार नही। पा लेना हल्कापन है पर जान लेना गम्भीरता। तैरना छिछलापन है पर डूबना टशन। इसी टशन में लकी अली हमेशा रहे। जीवन जीने के जितने रास्ते हम सब ने बना रखे है, उसके समानांतर जिंदगी के सारे चोर रास्ते भी साथ-साथ चलते है। इन चोर रास्तों पर चलने पर "शास्त्रीय" सफलता न मिले न मिले, पर जीवन और संतुष्टि को देखने और महसूस करने की "अशास्त्रीय" दृष्टि आपको जरूर मिल जाती है। ये "अशास्त्रीय" दृष्टि आपको सारी ईर्ष्या, दायरे और प्रूव करने की दौड़ से बाहर ले आती है। वहां पर, जहां आप खुद ही खुद के मुरीद होते हो और खुद ही खुद के आलोचक। खुद ही खुद की यात्रा में खुद को ढूंढ रहे होते हो और खुद ही खुद को पा लेने की अतृप्त प्यास लिए अजीब यायावरी रचते रहते हो। लकी अली इसी यायावरी में आज तक है। वो अगुआ प्रतिनिधि है। आगे-पीछे जमात बहुत लंबी है।

अभी यूट्यूब पर उसके ताजा कन्सर्ट देखे। लकी अली अब अधेड़ से कुछ ज्यादा हो चले है। चेहरे पर सफेद ढाढी के साथ झुर्रियों की सलवटें है। चेहरा पतला पड गया है और सफेद बालों की चोटी किये हमारे नस्टेल्जिया नाइनटिज के गबरू नायक राकेश ओमप्रकाश से दिखने लगे है। अपने पिछले कुछ लाइव परर्फोमेंस में उन्हे खुद कहते हुए सुन सकते है कि उसका गला उनका साथ नही दे रहा है। पहले जितना बेसुरा गाता था, अब उससे भी ज्यादा बेसुरा मंच पर गा रहा है। सुर तो पहले भी खैर साथ नही दे रहे थे। इन सब बातों के बावजूद उसकी चितकबरी गहरी उदास आंखे अंदर तक उतरती है। उदासी उसका सौन्दर्य लगती है। उस पर मोहित होने के लिए ये एक सबसे आकर्षक पहलू है। संगीत बाद में आता है और संगीत में भी आप टैक्नेलिटीज में घुसे पडे है तो लकी अली और उसके गाने आपको कभी पसंद नही आने पर आप उस खास साउंड को पकडने में माहिर है जो सुर ताल को खारिज कर आपके अंदर हलचल पैदा करें तो आप बेसुरे लकी अली के मुरीदों में से एक होंगे। लकी के तकरीबन सारे अलबम और फिल्मो में गाये गाने हिट रहे पर लकी अपनी यायावरी के साथ भटकते रहे। बार बार शिखर पर जाने की संभावनाओं को ठुकरा कर लकी अपने भीतर एक यात्रा समेटे चल रहे थे। लकी अली को समझने के लिये उसके एलबल के वो गाने आपको सुनने पडेंगे जो ज्यादा लोकप्रिय नही हुए। जैसे लकी अली खुद बेतरतीब और खुरदरी आवाज वाले है उसके गानो की बनावट भी बडी बेतरतीब है। उसे परम्परागत सांचे में फिट करके ना तो हम सुन सकते है और ना उस दायरे में पसंद किये जाने की संभावना बनती है। उसकी धुने,आर्केस्ट्राईजेशन और गायकी उसके जैसे ही अपने समय से आगे की थी।

लकी का एक एलबम आया था- सिफ़र। सिफ़र उर्दू शब्द है। हिंदी में इसका मतलब होता है जीरो। मतलब शून्य। इस शून्य से आगे और पीछे बिखरे पड़े तमाम शिखर है और इस शून्य के ठीक बीच जमे लकी जैसे तमाम लोग। वो तमाम "अशास्त्रीय" लोग जिन्होंने "शास्त्रीयता" को खारिज किया। उसके पीछे कभी न भागे। इस शून्य के मायने खास है। यहां लकी अली जैसे लोग अपनी बेचैनी लिए मौजूद है। हम 80ज के बाद पैदा हुए लड़को का ताजा ताजा उगा सयानापन युवा लकी अली में दर्ज है। लकी अली हमारी नाइंटीज के जादूई इंडियन पॉप का वो दिलकश मोह है जो हमसे कभी छुटता नही। लकी अली के बहाने हम थोड़े थोड़े अभी भी नाइंटीज की दहलीज से चिपके पसरे हुए पड़े है।