जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से जइयो कहां ऐ हुज़ूर / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जे हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से जइयो कहां ऐ हुज़ूर
प्रकाशन तिथि :13 सितम्बर 2017


अभिनेता टॉम अल्टर कैंसर से पीड़ित हैं और मुंबई के अस्पताल में उनका इलाज जारी है। रोग निदान के समय वे बीमारी की चौथी स्टेज में पहुंच गए हैं। भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद कुछ अंग्रेजों ने भारत में ही रहना पसंद किया। एक दौर में ब्रिटेन की हुकूमत अनेक देशों पर कायम थी और भारत के बाद एक-एक करके सभी देश ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त हो गए परंतु उन सभी देशों में मुट्‌ठीभर अंग्रेजों ने आजन्म रहना चुना। एक विज्ञापन की टैग लाइन है कि 'जिस शहर में अपना घर हो, वह शहर अच्छा लगने लगता है।' इस बात को देशप्रेम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। सीधी-सी बात यह है कि जिन लोगों के साथ आपने अनेक वर्ष बिताए,आप अपने जीवन की संध्या भी वहीं बिताना चाहते हैं गोयाकि आपके नश्वर शरीर पर पहली किरण भले ही पश्चिम में पड़ी हो परंतु आप चाहते हैं कि उम्र के सूर्यास्त की आखिरी किरण वहां पड़े जहां आप रहे हैं। जीवन यात्रा में हम सब ही मुसाफिर है, हम खानबदोश भी हैं, जिसे कोई सराय बहुत पसंद आई थी। अत: वह अपने अंतिम दिन उसी सराय में काटना चाहता है। हम सब घरों के खूंटे से बंधे व्यक्ति हैं। फिल्म 'हरजाई' के लिए निदा फाज़ली के लिखे गीत की एक पंक्ति है 'यहां हर शै मुसाफिर है, सफर में ज़िंदगानी है।'

यह तथ्य है कि जब पारसी लोग भारत आए तो राजा ने उन्हें दूध से भरा एक बर्तन भेजा, जिसका तात्पर्य यह था कि यहां अब कोई स्थान नहीं है, पारसी व्यक्ति ने उस दूध में चीनी मिलाकर वापस भेजा, जिसका अर्थ था कि वे भारतीय समाज के दूध में चीनी की तरह घुल जाएंगे। भारत में विज्ञान एवं आधुनिकता की राह को सुगम किया पारसी समुदाय ने। भारत में सबसे पहले टाटा ने इस्पात का उत्पादन शुरू किया और इस्पात की पटरियों पर ही विकास का इंजन चलता रहा है। टॉम अल्टर का तो जन्म ही मसूरी में 22 जून 1950 को हुआ और उनकी पहली उल्लेखनीय फिल्म सत्यजीत रे की 'शतरंज के खिलाड़ी' थी। अपने गौर वर्ण एवं अंग्रेज होने की सीमाओं के बावजूद उन्होंने विविध भूमिकाएं अभिनीत कीं जैसे 'राम तेरी गंगा मैली' में वे एक पहाड़ी व्यक्ति की भूमिका में देखे गए।

दरअसल, अगर टॉम अल्टर को शेक्सपीयर के नाटक जबानी याद रहे, तो उन्हें गालिब का कलाम भी याद था गोयाकि उसके व्यक्तित्व के सेतु पर पूर्व और पश्चिम मिलते हुए मार्क ट्वैन को झूठा सिद्ध करते थे कि 'ईस्ट इज ईस्ट एंड वेस्ट इज वेस्ट एंड ट्वैन शेल नेवर मीट।' अंग्रेज जिम कॉर्बेट ने भारत के जंगलों में बहुत काम किया है और शिकार संबंधित किताबें लिखीं। 'जिम कॉर्बेट पार्क' उन्हीं के आदर में बनाया गया है।

इंग्लैंड में केन्डल परिवार दुनियाभर के स्कूलों में शेक्सपीयर के नाटक करने के लिए समर्पित था और एक तरह का टूरिंग रंगमंच रचने में सफल हुए थे। छात्र अमिताभ बच्चन को स्कूल के मंच पर प्रस्तुत एक नाटक में श्रेष्ठ अभिनय के लिए ज्यॉफ्रे केन्डल पुरस्कार से नवाजा गया था। ज्यॉफ्रे केंडल पृथ्वीराज कपूर के मित्र थे अौर उन्होंने उनसे निवेदन किया था कि उनकी नाट्य मंडली के भारत भ्रमण पर वे एक भारतीय को उनके साथ सहायता के लिए भेजें। इस तरह शशि कपूर ने केन्डल परिवार के साथ यात्रा की तथा उनके कुछ नाटकों में अभिनय भी किया। इसी यात्रा में उन्हें जेनीफर केन्डल से प्रेम हुआ। शशि कपूर और जेनीफर केन्डल ने मुंबई के जुहू क्षेत्र में पृथ्वी थिएटर्स की स्थापना की। इस मंच से नाट्य संसार को बहुत लाभ हुआ। आज भी वहां बिके हुए टिकट का नाममात्र प्रतिशत किराये के रूप में लिया जाता है। जेनीफर अभिनीत '36 चौरंगी लेन' को अपर्णा सेन ने निर्देशित किया। यह फिल्म विश्व की महान फिल्मों की सूची में शामिल की जाती है।

जब जेनीफर केन्डल कपूर को कैंसर हुआ तो उन्होंने यह लिखित आदेश दिया कि वे जन्म से ब्रिटिश है परंतु उन्होंने एक हिंदू से विवाह किया, अत: उनका दाह संस्कार वैदिक रीति से संपन्न किया जाए। ज्ञातव्य है कि रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास का नायक भारत और हिंदू संस्कृति का भक्त था, जबकि उसका जन्म एक ब्रिटिश कुल में हुआ था। इससे मिलती-जुलती थीम पर चतुरसेन शास्त्री द्वारा लिखी 'धर्मपुत्र' फिल्म बनी थी और ख्वाजा अहमद अब्बास ने भी इसी थम पर 'इन्कलाब नामक उपन्यास लिखा था।

अदब के संसार में कोई भौगोलिक सरहदें नहीं होतीं। सिनेमा भी इसी नियम पर चलता है। यह भी गौरतलब है कि जर्मनी में जन्मी रुथ प्रवर झाबवाला ताउम्र दिल्ली में रहीं और उन्होंने श्याम बेनेगल निर्देशित अनेक फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे थे। सृजन संसार के सारे लोग एक अदृश्य डोर से बंधे हैं। ऑस्ट्रेलिया में जन्मी नाडिया भारतीय सिनेमा की स्टंट क्वीन कहलाईं। इस डोर पर भावना का मांजा सूता हुआ है और इसे काटने का प्रयास संकीर्णवादी हमेशा करते रहे हैं। मांजा इतना तेज है कि इसे काटने वाले हाथ लहूलुहान हो जाते हैं।