टॉम काका की कुटिया - 14 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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समय सदा एक-सा नहीं रहता। आज जिस प्रथा को सब लोग अच्‍छा समझते हैं, कुछ दिनों बाद कितने ही उसका विरोध करने लगते हैं। धीरे-धीरे दासत्‍व-प्रथा की बुराइयाँ कितनों ही को खटकने लगीं। उन्‍होंने इस प्रथा का विरोध करना आरंभ कर दिया। सन् 1865 ईसवी में अमरीका से यह प्रथा दूर हो गई। पर पहले दासत्‍व-प्रथा के विरोधियों को समय-समय पर बड़े-बड़े सामाजिक अत्‍याचार सहने पड़ते थे, और लोगों के ताने और गालियाँ सुननी पड़ती थीं। जो लोग गिरजों में या और कहीं इस घृणित प्रथा का समर्थन करते थे, वे ही सच्‍चे देश-हितैषी समझे जाते थे। अमरीका में नोयर और वेस्‍टर सरीखे सुशिक्षित और ज्ञानी पुरुष भी इस दास-प्रथा के हिमायती थे। सच तो यह है कि स्‍वार्थपरता को तिलांजलि दिए बिना मनुष्‍य सच्‍ची देश-हितैषिता का मर्म नहीं समझ सकता। स्‍वार्थपरता पढ़े-लिखे आदमियों की बुद्धि पर भी पर्दा डाल देती है। सच्‍चे देशहितैषी जीते-जी कभी देश-हितैषी नहीं कहलाते। समाज में प्रचलित पाप और कुसंस्‍कारों से उन्‍हें जन्‍म भर लड़ाई लड़नी पड़ती है, इसी से वे समाज के प्रिय नहीं हो सकते। इधर सैकड़ों यश के लोभी, स्‍वार्थ-परायण मनुष्‍य उनके मार्ग में काँटे बोते रहते हैं। लोगों में प्रचलित पापों और कुसंस्‍कारों का समर्थन करके वे देश-हितैषी की पदवी धारणकर समाज में अनुचित सम्‍मान पाते हैं।

महात्‍मा ईसा मनुष्‍य-जाति के सच्‍चे हितैषी थे, पर उनके हाथ-पैरों में कीलें ठोंककर उन्‍हें सूली दी गई। लूथर सच्‍चा धर्म-सुधारक था, इसी से उसे बड़े-बड़े सामाजिक अत्‍याचार सहने पड़े। ऐसे सच्‍चे देश-हितैषी और समाज-सुधारकों के लिए इस जीवन में दु:ख, कष्‍ट और दरिद्रता ही एकमात्र पुरस्‍कार है। किंतु जो लोग और व्‍यवसायों की भाँति देश हितैषिता को भी एक व्‍यवसाय-सा बना लेते हैं तथा लोकप्रिय आडंबर रचते हैं, वे इस व्‍यवसाय की बदौलत खूब धन कमाते और मौज उड़ाते हैं।

पर-दु:ख कातर, स्‍वार्थहीन, अनासक्‍त, दरिद्र क्‍वेकर-मंडली के जिस उदार सज्‍जन ने भगोड़ी दासी इलाइजा को शरण दी थी, उसे क्‍या कोई देश-हितैषी अथवा परोपकारी समझता था? संसार के लोगों की आँखों पर अज्ञान का पर्दा पड़ा हुआ है, वे भला कैसे क्‍वेकर-दल को परोपकारी समझेंगे? उक्‍त दल के लोग देश-हितैषिता का जामा पहनकर, गले में देश-हितैषिता का ढोल डालकर तथा सिर पर देश-हितैषिता का झंडा फहराते हुए नहीं घूमते। हाँ, दूसरे का दु:ख देखकर उनका हृदय भर आता है, परंतु परमात्‍मा के सिवा उनके हार्दिक भावों को कौन देख सकता है? वे आफत में फँसे हुए नर-नारियों के आँसू अपने हाथ से पोंछ देते थे। दुखियों की आँखों में पानी देखकर उनकी भी आँखें भर आती थीं। वे चुपचाप सच्‍चा काम करते थे। कभी- "परोपकार, परोपकार" का ढोल नहीं पीटते थे। यही कारण है कि दुनिया के लोग उन्‍हें नहीं पहचानते थे और उनकी लानत-मलामत करते थे।

ऐसी ही एक पर-दु:ख-कातर राचेल नाम की बुढ़िया के पास बैठी हुई इलाइजा बातें कर रही है थी। उक्‍त बुढ़िया क्‍वेकर-मंडली के एक धार्मिक ईसार्इ साइमन हालीडे की पत्‍नी थी। वृद्ध राचेल कहती थी - "बेटी इलाइजा, क्‍या तुमने कनाडा ही जाने का निश्‍चय कर लिया है? यहाँ तुम जितने दिन चाहो, निर्भय होकर रह सकती हो।"

इलाइजा - "नहीं, मैं कनाडा ही जाऊँगी। यहाँ ज्‍यादा ठहरने में डर लगता है कि कहीं कोई बच्‍चे को मेरी गोद से छीन न ले। कल रात ही मैंने स्‍वप्‍न देखा कि एक मनुष्‍य आया और मेरे बच्‍चे को गोद से छीन लिया। इससे मैं बहुत भयभीत हो गई हूँ।"

राचेल - "बेटी, तुम यहाँ बेखटके रहो। यहाँ कोई तुम्‍हारे बच्‍चे का बाल तक बाँका नहीं कर सकता। यहाँ हम लोग चार-पाँच परिवारों के बहुत-से आदमी रहते हैं। सताए हुए मनुष्‍य को शरण देना ही हम लोगों के जीवन का एकमात्र उद्देश्‍य है। यहाँ जितने लोग हैं, वे सब अपनी जान देकर भी तुम्‍हारे बच्‍चे की रक्षा करेंगे।"

इतने में वहाँ रूथ नाम की एक युवती आई। वह इलाइजा के पुत्र को गोद में लेकर प्‍यार करने लगी और उसे कई प्रकार के खाने की चीजें दी और बहन की भाँति इलाइजा से बातें करने लगी।

रूथ बोली - "प्‍यारी बहन इलाइजा, तुम्‍हें बच्‍चे समेत सकुशल यहाँ पहुँचे देखकर मुझे बड़ा आनंद हुआ।"

अभी इलाइजा के हृदय का दु:ख दूर नहीं हुआ था। इससे वह बातचीत के द्वारा प्रकट रूप में रूथ के प्रति कुछ कृतज्ञता प्रदर्शित न कर सकी। पर इन क्‍वेकर-दल की स्त्रियों के सद्व्‍यवहार को देखकर उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया।

इलाइजा को चुप देखकर वृद्ध राचेल बोली - "रूथ, अपने लड़के को कहाँ छोड़ी?"

रूथ - "साथ ही लाई हूँ। तुम्‍हारी मेरी ने उसे ले लिया है। वह उसे खिला रही है।"

राचेल - "छोटे बच्‍चों को मेरी बहुत प्‍यार करती है।"

तभी दरवाजा खुला और प्रफुल्‍लमुखी मेरी रूथ के छोटे बच्‍चे को गोद में लिए वहाँ आ पहुँची।

मेरी की गोद से लड़के को अपनी गोद में लेकर वृद्ध राचेल ने कहा - "रूथ, बड़ा सुंदर बच्‍चा है!"

रूथ ने लजाकर कहा - "माँ, इसे ऐसा ही सब कहते हैं।"

वृद्ध राचेल ने पूछा - "रूथ, अविगेल पीटर्स कैसे हैं?"

रूथ - "अब तो वह बहुत अच्‍छे हैं। सवेरे मैं उनका कमरा झाड़-बुहार आई थी, दोपहर को श्रीमती लियाहिल ने वहाँ जाकर उनके पथ्‍य और आहार का प्रबंध कर दिया। संध्‍या-समय मुझे फिर जाना होगा।"

राचेल - "मेरा भी कल जाने का विचार है। मेरी ने उनके छोटे लड़के के लिए एक जोड़ी मोजा बुन रखा है।"

रूथ ने कहा - "माँ, मैंने सुना है कि हमारे हानस्‍टन उड की तबियत बहुत खराब हो गई है। जॉन कल सारी रात वहीं था। कल मैं भी उनके यहाँ अवश्‍य जाऊँगी।"

राचेल - "कल रात को अगर तुम्‍हें वहाँ जागना पड़े तो उनको यहाँ भोजन करने के लिए कह देना।"

रूथ - "अच्‍छा, मैं यहीं भोजन करने को कह दूँगी।"

इसी समय वृद्ध राचेल के स्‍वामी साइमन हालीडे वहाँ आ पहुँचे। साइमन हालीडे लंबे-चौड़े और बड़े ताकतवर जान पड़ते थे। चेहरे से उनके दया और स्‍नेह टपकता था। साइमन ने पूछा - "रूथ, कहो, तुम अच्‍छी हो? जॉन अच्‍छी तरह है?"

रूथ - "जी हाँ, सब सकुशल हैं।"

राचेल ने अपने स्‍वामी को देखते ही पूछा - "क्‍यों, कोई नई खबर मिली?"

साइमन ने उत्तर दिया - "पीटर स्‍टीवन ने कहा है कि वे आज ही तीन भागे हुए दास-दासियों को साथ लेकर यहाँ पहुँचेंगे।"

राचेल ने स्‍वामी के मुख से यह शुभ संवाद सुनकर इलाइजा की ओर देखते हुए प्रसन्‍न मुख से पूछा - "सच्‍ची बात है?"

साइमन ने उस प्रश्‍न का कोई उत्तर न देकर बदले में पूछा - "क्‍या इलाइजा के पति का नाम जार्ज हेरिस है?"

उनका प्रश्‍न सुनकर इलाइजा शंकित होकर बोली - "जी हाँ!"

उसे खटका हुआ कि कहीं विज्ञापन तो नहीं निकला है। राचेल ने इलाइजा का यह भाव ताड़ लिया और अलग ले जाकर अपने स्‍वामी से पूछा - "इस प्रश्‍न से तुम्‍हारा क्‍या मतलब था?"

साइमन ने कहा - "आज ही रात को इसका पति सकुशल यहाँ पहुँच जाएगा। हमारे आदमियों की सहायता से इसका पति, एक और गुलाम और उसकी माता भागने में सफल होकर शरण लेने के लिए यहाँ आ रहे हैं। मुझे जैसे ही खबर मिली, मैंने तुरंत उनके लिए गाड़ी और आदमी भेज दिए हैं कि उन्‍हें निर्विघ्‍न यहाँ ले आएँ।"

राचेल - "क्‍या इलाइजा को यह खबर नहीं सुनाओगे? यह सुनकर तो उसके आनंद की सीमा न रहेगी।"

इलाइजा को खबर सुनाने की सम्‍मति देकर साइमन अपने कमरे में चले गए। राचेल ने तुरंत इलाइजा को बुलाकर कहा - "बेटी, मैं तुम्‍हें एक खबर सुनाती हूँ।"

यह सुनकर इलाइजा बहुत घबराई। सोचने लगी - न जाने क्‍या आफत आ पड़ी है। पर राचेल ने उसे धीरज देकर कहा - "खबर अच्‍छी है, डरो मत। तुम्‍हारा स्‍वामी भागने में सफल हो गया है। आज रात को यहाँ आ जाएगा।"

इलाइजा के दिल पर उस समय क्‍या बीत रही थी, यह वही जानेगा जिसने कभी ऐसी दशा का सामना किया हो। एकाएक यह शुभ संवाद सुनने से उसके हृदय में इतना आनंद हुआ कि वह उसके वेग को सँभाल न सकी। देखते-देखते इलाइजा बेसुध हो गई। रूथ और राचेल उसे होश में लाने के लिए उसके मुँह पर पानी छिड़कने लगीं। बहुत रात बीतने पर उसे होश आया। चेत होने पर जब इलाइजा ने आँखें खोलीं तो देखा कि उसके स्‍वामी की गोद में उसका सिर है। देखते-देखते सवेरा हो गया और सूर्य निकल आया। राचेल सबके भोजन का प्रबंध करने लगी। दोपहर को सबने मिलकर एक साथ भोजन किया। इसके पहले जार्ज ने कभी किसी पुरुष के साथ भोजन नहीं किया था। घर के पालतू कुत्ते-बिल्लियों की तरह उसे खाना पड़ता था। दास-व्‍यवसायी के यहाँ जार्ज मनुष्‍य के आकार का एक पशु विशेष था, किंतु यहाँ पर दु:ख-कातर साइमन हालीडे की दृष्टि में वह वास्‍तविक मनुष्‍य है। हालीडे के अकृत्रिम स्‍नेह और सहृदयता ने आज जार्ज के हृदय में ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर दृढ़ विश्‍वास ला दिया। संसार के अन्‍याय और अविचारों को देखकर जार्ज को ईश्‍वर की करुणा पर विश्‍वास नहीं होता था। उसकी यह धारणा हो गई थी कि इस संसार में ईश्‍वर नहीं है, पर ईश्‍वर भक्‍त हालीडे का सदाचरण देखकर उसकी नास्तिकता दूर हो गई। इतने दिन बाद जार्ज को ईश्‍वर पर भरोसा हुआ।

साइमन हालीडे के बारह वर्ष का एक छोटा लड़का था। उसने पिता से कहा - "बाबा, अगर पुलिस तुम्‍हें पकड़ ले तो वह तुम्‍हारा क्‍या करेगी?"

साइमन ने कहा - "पकड़ लेगी तो सजा देगी। तब क्या तुम और तुम्‍हारी माता मिलकर खेती से अपनी जिंदगी बसर नहीं कर सकोगे? ईश्‍वर सबका रक्षक है, वह तुम लोगों की भी रक्षा करेगा।"

उनकी बातें सुनकर जार्ज ने बड़ी घबराहट से पूछा - "क्‍यों साहब, क्‍या मुझे बचाने में आप लोगों पर कोई आफत आने का डर है?"

साइमन ने कहा - "तुम इससे बेफिक्र रहो। अच्‍छे कामों के लिए मैं सदा अपनी जान देने को तैयार रहता हूँ। बलवान के अत्‍याचार से निर्बल की रक्षा करना ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्‍य है। मेरी विपत्ति के लिए तुम्हें संकोच करने की आवश्‍यकता नहीं। मैंने तुम्‍हारे उपकार के लिए कुछ नहीं किया है। जिस परमात्‍मा की कृपा से हमें दोनों समय रोटियाँ मिलती हैं, केवल उसी का यह प्रिय कार्य है। तुम यहाँ आराम करो। आज ही रात को हमारे दो आदमी तुम्‍हें पास के दूसरे ठिकाने पर पहुँचा आएँगे। मुझे खबर लगी है कि पकड़नेवाले और पुलिस के लोग तुम्‍हारी खोज में यहाँ आ रहे हैं।"

जार्ज ने शंकित होकर कहा - "साहब, तब तो अभी चल देना अच्‍छा होगा।"

साइमन हालिडे ने उसे धीरज देकर कहा - "डरो मत! मंगलमय ईश्‍वर की कृपा से हमारे आदमी तुम्‍हें रात को सुरक्षित स्‍थान में पहुँचा आएँगे। दिन में यहाँ किसी आफत का खटका नहीं है।"