टॉम काका की कुटिया - 24 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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गर्मी के दिन थे। दोपहर की सख्‍त गर्मी के कारण शेल्‍वी साहब अपने कमरे की खिड़कियाँ खोले हुए बैठे चुरुट पी रहे थे। उनकी मेम पास बैठी हुई सिलाई का बारीक काम कर रही थीं। बीच-बीच में मेम के बड़ी उत्‍सुकतापूर्वक शेल्‍वी साहब की ओर देखने से प्रकट हो रहा था, जैसे वह अपने मन की कोई बात कहने के लिए मौका ढूँढ़ रही हों। थोड़ी देर बाद मेम ने कहा - "तुम्‍हें मालूम है, क्‍लोई के पास टॉम की चिट्ठी आई है?"

शेल्‍वी बोला - "हाँ, चिट्ठी आई है? जान पड़ता है, टॉम को वहाँ दो-एक भाई मिल गए हैं।"

मेम ने कहा - "मेरा अनुमान है कि किसी बहुत अच्‍छे परिवारवालों ने उसे खरीदा है। वे टॉम के साथ बड़ी मेहरबानी का बर्ताव करते हैं। और उसे कुछ ज्‍यादा करना-धरना नहीं पड़ता।"

"यह बड़े आनंद की बात है। मैं समझता हूँ, अब टॉम दक्षिण छोड़कर मुश्किल से यहाँ आना चाहेगा।"

"वहाँ रहने की कहते हो! वह तो यहाँ आने के लिए बेचैन हो रहा है। उसने दरियाफ्त किया है कि उसके खरीदने के लिए रुपए जुट गए या नहीं?"

"मुझे तो रुपए जुटने की आशा नहीं जान पड़ती। कर्ज बड़ी बुरी बला है। एक बार हो जाने के बाद फिर उसका चुकाना पहाड़ हो जाता है। एक का लिया दूसरे को दिया, दूसरे से तीसरे को, इसी उलटफेर में पड़ा हुआ हूँ।"

"मैं समझती हूँ, कर्ज चुकाने का एक उपाय हो सकता है - मान लो, हम अपने सब घोड़े बेच डालें और खेत का कुछ हिस्‍सा भी बेच दें।"

शेल्‍वी ने कहा - "ऐमिली यह बड़े शर्म की बात होगी, केंटाकी भर में तुम अच्‍छी समझी जाती हो, लेकिन तुम दुनियादारी की बातें नहीं समझ सकती। स्त्रियाँ कभी दुनियादारी की बातें नहीं समझती हैं।"

मेम बोली - "खैर, मैं समझूँ या न समझूँ, इससे कोई मतलब नहीं। तुम मुझे अपने कर्ज की एक सूची दो तो मैं देखूँ कि कोई रास्‍ता निकल सकता है या नहीं।"

"एमिली, मुझे नाहक तंग मत करो। मैं कहता हूँ कि तुम दुनियादारी की बाबत कुछ नहीं जानती।"

स्‍वामी की बात सुनकर मेम फिर कुछ न बोली। ठंडी साँस लेकर चुप हो गई। पर शेल्‍वी साहब अपनी स्‍त्री की सलाह पर चलते, तो सहज में कर्ज से उनका छुटकारा हो जाता। उनकी स्‍त्री बड़ी होशियार और किफायतशार थी। उन्‍होंने काम-काज का भार स्‍त्री को सौंप दिया होता तो कभी उनकी यह दुर्दशा न होती। पर वह तो सदा यही मानकर चलते थे कि स्त्रियों में काम-काज की बातें समझने की अक्‍ल ही नहीं होती।

मेम मन ही मन सोचने लगी कि मैंने टॉम को फिर खरीदकर अपने यहाँ रखने का वचन दिया है, अब भला मैं कैसे उस प्रतिज्ञा से भ्रष्‍ट होऊँ। कहा है कि सज्‍जन अपने वचन से पीछे नहीं हटते। इन्‍हीं विचारों में गोते खाती हुई फिर बोली - "बेचारी क्‍लोई स्‍वामी के शोक में बहुत दुख पा रही है। उसका दिल बैठा जाता है। उसे देखकर मेरा जी भर आता है। क्‍या इन रुपयों को इकट्ठा करने की कोई सूरत नहीं हो सकती?"

"तुम्‍हारी शोचनीय दशा देखकर मुझे दु:ख होता है, पर हम लोगों का इस तरह वचन देना ही अन्‍याय है। टॉम वहाँ एक-दो बरस में कोई दूसरी स्‍त्री रख लेगा। तुम क्‍लोई से कह दो कि अच्‍छा होगा, वह भी यहाँ किसी से अपना संबंध जोड़ ले।"

"मिस्‍टर शेल्‍वी" मेम बोली - "मैंने अपने यहाँ के नौकरों को सीख दी है कि उनका भी विवाह-बंधन उतना ही पवित्र है, जितना हमारा। मैं क्‍लोई को ऐसी सलाह देने का‍ विचार भी मन में नहीं ला सकती।"

"प्‍यारी, तुमने इन्‍हें ठीक शिक्षा नहीं दी। इनकी दशा को ध्‍यान में न रखकर इन पर नैतिक शिक्षा का बोझ लाद दिया है।"

"मैंने इन्‍हें बाइबिल की नीति सिखलाई है। उसमें मैंने कौन-सी बुराई की?"

"एमिली, मैं तुम्‍हारी धर्म-संबंधी बातों में दखल नहीं देना चाहता। मेरा केवल इतना ही कहना है कि ये लोग उस शिक्षा के बिल्‍कुल ही अनुपयुक्‍त हैं। इनकी दशा उस शिक्षा का भार उठाने योग्‍य नहीं है।"

मेम ने गंभीर होकर कहा - "वास्‍तव में इन लोगों की दशा बहुत खराब है और यही कारण है कि मैं दिल से गुलामी की प्रथा से घृणा करती हूँ, पर यह बात पक्‍की समझो कि मैं इन निराश्रितों को वचन देकर कभी उसे भंग न करूँगी। मैं गाना सिखाने का काम करके रुपए इकट्ठा करूँगी और उससे टॉम को फिर से बुलाने की अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा करूँगी।"

"एमिली, तुम अपने को इतना मत गिराओ। मैं तुम्‍हारे इस कार्य का कभी समर्थन नहीं कर सकता।"

मेम ने दु:ख के साथ कहा - "गिराने की कहते हो, और प्रतिज्ञा-भंग करने से मेरा पतन नहीं होगा? उससे सौगुना पतन होगा।"

"रहने दो अपने स्‍वर्गीय नैतिक भाव!"

शेल्‍वी और उनकी स्‍त्री में ये बातें हो रही थीं कि इसी बीच क्‍लोई ने आकर पुकारा - "मेम साहब, जरा इधर तो आइए।"

मेम ने बाहर जाकर पूछा - "क्‍लोई, क्‍या बात है?"

उसने कहा - "कहिए तो आज एक मुर्गी का शोरबा बना दूँ।"

मेम ने कहा - "जो तुम्‍हारी इच्‍छा हो, बना लो। किसी भी चीज से काम चल जाएगा।"

क्‍लोई को जब मेम साहब से कोई बात कहनी होती थी, तब वह अच्‍छे भोजन की बात उठाकर भूमिका बाँधती थी। आज भी उसने आपनी कोई बात कहने के लिए यह भूमिका बाँधी थी। हँसते हुए बोली - "मेम साहब, आप रुपया इकट्ठा करने के लिए गाने का काम सिखाने की तकलीफ क्‍यों उठाएँगी? इससे साहब की बदनामी होगी। कितने ही लोग अपने दास-दासियों को किराए पर देकर रुपए वसूल करते हैं। इतने दास-दासियों को बैठे-बिठाए मुफ्त में भोजन देने से क्‍या फायदा?"

"अच्‍छा क्‍लोई, किसे किराए पर देना चाहिए?"

"मैं और किसी को किराए पर देने को नहीं कहती। साम कहता था कि लूविल नगर में एक हलवाई है, वह मिठाई बनाने के लिए किसी अच्‍छे आदमी की खोज में है। मैं वहाँ जाऊँ तो वह हर हफ्ते मुझे चार डालर देगा। यहाँ का काम सैली चला लेगी। वह सब तरह का भोजन बनाना सीख गई है।"

"अपने बच्‍चों को छोड़कर वहाँ जाओगी?"

"दोनों लड़के तो बड़े हो गए हैं। अब वे काम-काज कर लेते हैं। रही छोटी बच्‍ची, सो उसे सैली पाल लेगी।"

"लूविल दूर बहुत है।"

"उसी के पास शायद कहीं मेरा बूढ़ा है।"

"नहीं क्‍लोई, टॉम लूविल से बहुत दूर है, दो-तीन सौ कोस परे है। पर तुम लूविल जाना चाहो तो मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है। मिठाईवाले के यहाँ तुम्‍हें जो कुछ तनख्‍वाह मिले वह सब अपने स्‍वामी को फिर खरीदने के लिए जमाकर रखना। उसमें से मैं तुम्‍हें कौड़ी भी खर्च नहीं करने दूँगी।"

क्‍लोई ने कहा - "मेम साहब, मैं आपके गुणों का बखान नहीं कर सकती। मैंने यही सोचा है कि बूढ़े को छुड़ाने के लिए सब रुपया जमा करती जाऊँगी। हफ्ते पीछे चार डालर मिलेंगे। मेम साहब, साल भर में कितने हफ्ते होते हैं?"

"बावन।"

"तो साल भर में चार डालर हफ्ते के हिसाब से कितने डालर होंगे?"

"दो सौ आठ डालर।"

"तो कितने बरस काम करने से बूढ़े के दामों जितने रुपए होंगे?"

"चार-पाँच बरस। पर चार-पाँच बरस तुझे काम नहीं करना पड़ेगा। कुछ डालर मैं भी दे दूँगी।"

क्‍लोई ने कातर भाव से कहा - "पर मेरे हाथ-पाँव रहते आप डालरों के लिए गाना सिखाने का काम क्‍यों करेंगी?"

"अच्‍छा, तुम कब जाना चाहती हो?"

"कल, साम उधर जाने को है। मैं उसी के साथ जाना चाहती हूँ। आप 'पास' लिख दें तो चली जाऊँ।"

मेम ने बड़ी दयालुता से कहा - "मैं अभी लिखे देती हूँ।"

यह कहकर मेम अपने स्‍वामी के पास गई और उनकी अनुमति से 'पास' लिखकर क्‍लोई को दे दिया। क्‍लोई बड़ी खुशी से अपना सामान बाँधने लगी। वहाँ शेल्‍वी साहब का लड़का खड़ा था। उसे देखकर बोली - "जार्ज मैं लूविल जा रही हूँ। वहाँ चार डालर हफ्ते में मिलेंगे। वे सब मैं तुम्‍हारी माता के पास बूढ़े को छुड़ा लाने के लिए अमानत की तरह जमा करती जाऊँगी।"

"कब जाओगी?"

"कल साम के साथ जाऊँगी। मास्‍टर जार्ज, तुम अभी बूढ़े को जो जवाब दो, उसमें ये सब बातें साफ-साफ लिख देना।"

"मैं अभी लिख दूँगा। अपने नए घोड़े की खरीद की बात भी लिख दूँगा।"

"जरूर-जरूर लिख देना। अच्‍छा चलो, मैं तुम्‍हारे खाने के लिए कुछ लाती हूँ। अब न मालूम फिर कितने दिनों बाद तुम्‍हें अपने हाथ का बनाया खाना खिलाना नसीब होगा!"