टॉम काका की कुटिया - 47 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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जार्ज ने मैडम डिथो से इलाइजा के संबंध में जो बातें की थीं, उन्‍हें सुनकर कासी को निश्‍चय हो गया कि हो न हो, इलाइजा ही मेरी बेटी है। उसके निश्‍चय का विशेष कारण था। जार्ज ने अपने पिता द्वारा इलाइजा के खरीदे जाने की जो तारीख बताई थी, ठीक उसी तारीख को उसकी कन्‍या बिकी थी। इस प्रकार दोनों तारीखों के एक मिल जाने से यह अनुमान पक्‍का हो गया कि मृत शेल्‍वी साहब ने जिस कन्‍या को खरीदा था, वह कासी की ही लड़की थी।

अब कासी और मैडम डिथो में बड़ी घनिष्‍ठता हो गई। वे दोनों एक ही साथ कनाडा की ओर चलीं। जब मनुष्‍य के दिन फिरते हैं तब सारी घटनाएँ अनुकूल-ही-अनुकूल होती जाती हैं। एम्‍हर्स्‍टबर्ग में पहुँचने पर इनकी एक पादरी से भेंट हुई। कनाडा पहुँचने पर जार्ज और इलाइजा ने उन्‍हीं के यहाँ एक रात बिताई थी, इससे पादरी साहब उन्‍हें अच्‍छी तरह जानते थे। उन्‍हें इन नवागत महिलाओं का सारा विवरण सुनकर बड़ा अचंभा हुआ और साथ ही बड़ी दया भी आई। वह तुरंज जार्ज की खोज के लिए मांट्रियल नगर जाने को इनके साथ हो लिए।

गुलामी की बेड़ी से मुक्‍त होकर जार्ज पाँच वर्षों से सानंद स्‍त्री-पुत्र सहित मांट्रियल नगर में जीवन बिता रहा है। वह एक मशीन बनानेवाले की दुकान पर काम करता है। उसे जो कुछ मिलता है, उतने से उसके दिन बड़े सुख से कट जाते हैं। यहाँ आने पर इलाइजा को एक कन्‍या और हुई। वह पाँच बरस की हो गई है और उसका पुत्र हेरी ग्‍यारहवें वर्ष में पदार्पण कर चुका है। इस समय वह इसी नगर के एक विद्यालय में पढ़ता है।

इनका निवास-स्‍थान बड़ा साफ-सुथरा है। सामने एक छोटी-सी सुंदर फुलवारी है, जिसे देखकर घर के मालिक की सुरुचि का परिचय मिलता है। घर में तीन-चार कमरे हैं। उन्‍हीं में से एक कमरे में बैठा हुआ जार्ज पढ़ रहा है। बचपन से ही जार्ज को पढ़ने-लिखने की बड़ी लगन थी। बहुत-सी विघ्‍न-बाधाओं के होते हुए भी उसने पढ़ना-लिखना सीख लिया था। जब काम से थोड़ा अवकाश पाता, तत्‍काल पुस्‍तक लेकर पढ़ने बैठ जाता।

संध्‍या निकट है। जार्ज अपने कमरे में बैठा एक पुस्‍तक पढ़ रहा है। इलाइजा बगलवाली कोठरी में बैठी चाय तैयार कर रही है। कुछ देर बाद वह बोली - "सारे दिन तुमने मेहनत की है, अब थोड़ा आराम कर लो। इधर आओ, कुछ बातचीत करेंगे। इतनी मेहनत करोगे तो तंदुरुस्‍ती खराब हो जाएगी।" इस पर इलाइजा की कन्‍या ने पिता की गोद में जाकर पुस्‍तक छीन ली। यह देखकर इलाइजा बोली - "वाह, ठीक किया! छोड़ो किताब को, इधर आओ!" इसी समय हेरी भी स्‍कूल से आ गया। जार्ज ने उसे देखकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए पूछा - "बेटा, तुमने यह हिसाब अपने-आप लगाया है?"

हेरी ने कहा - "जी हाँ, मैंने स्‍वयं लगाया है। किसी की भी मदद नहीं ली।"

जार्ज बोला - "यही ठीक है। बचपन ही से अपने सहारे खड़ा होना चाहिए। खोटी किस्‍मत के कारण तुम्‍हारे बाप को लिखना-पढ़ना सीखने की सुविधा नहीं थी, पर तुम्‍हारे लिए मौका है, इसलिए खूब जी लगाकर पढ़ा-लिखा करो।"

इसी समय जार्ज को दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आई। इलाइजा ने जाकर दरवाजा खोला तो देखा, वही एमहर्स्‍टबर्गवाले पादरी साहब तीन स्त्रियों को साथ लेकर आए हैं। पादरी साहब इनके एक बड़े उपकारी मित्र थे। उन्‍होंने निराश्रित अवस्‍था में इन्‍हें आश्रय दिया था। इससे इलाइजा उन्‍हें देखकर बड़ी प्रसन्‍न हुई और जार्ज को बुलाया।

पादरी साहब और उनके साथ आई स्त्रियों ने घर में प्रवेश किया। इलाइजा ने सबको बड़े आदर-सत्‍कार से बिठाया।

एमहर्स्‍टबर्ग से चलते समय पादरी साहब ने मैडम डिथो और कासी से कह दिया था कि तुम लोग वहाँ पहुँचते ही अपना भेद मत खोल देना। उन्‍होंने मन-ही-मन एक लंबी-चौड़ी भूमिका बाँधकर व्‍याख्‍यान के ढंग पर जार्ज और इलाइजा को इनका परिचय देने का निश्‍चय कर रखा था। मालूम होता है, वही रास्‍ते भर इसी बात को सोचते आ रहे थे कि इस विषय में किस ढंग से शुरूआत करेंगे। इसी से जब सब लोग बैठ गए, तब पादरी साहब जेब से रूमाल निकालकर मुँह पोंछते हुए व्‍याख्‍यान देने की तैयारी करने लगे। पर मैडम डिथो ने भाषण आरंभ होने के पूर्व ही सब खेल बिगाड़ दिया। जार्ज के देखते ही वह उसके गले से लिपट गई और आँसू बहाती हुई बोली - "जार्ज, क्‍या तुम मुझे नहीं पहचानते? मैं तुम्‍हारी बहन एमिली हूँ।"

कासी अब तक चुप बैठी थी। उसकी भाव-भंगिमा से जान पड़ता था कि यदि मैडम डिथो सब खेल न बिगाड़ती, तो वह पूर्व व्‍यवस्‍था के अनुसार मौन धारण किए रहने में बाजी मार जाती। पर इसी समय इलाइजा की कन्‍या वहाँ आ पहुँची। वह रूप-रंग में बिलकुल इलाइजा-जैसी थी। बस, इतनी ही उम्र में इलाइजा कासी की गोद से अलग की गई थी। कासी उसे देखते ही पागल की तरह दौड़ी और छाती में दबोचते हुए बोली - "बेटी, मैं तेरी माँ हूँ। तू मेरी खोई हुई दौलत है!" कासी ने उसी को अपनी संतान समझा!

इनके यों परिचय देने से इलाइजा और जार्ज, दोनों को बड़ा विस्‍मय हुआ। वे चौंक पड़े। उन्‍हें सब स्‍वप्‍न-सा जान पड़ने लगा। अंत में हर्ष-मिश्रित क्रंदन रुकने पर पादरी साहब फिर खड़े हुए और सारा भेद खोलकर सुनाया। उनकी बातें सुनते समय सबकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। वास्‍तव में पादरी साहब की उस दिन की कहानी से उनके श्रोताओं का मन ऐसा पिघला था, जैसा शायद पहले कभी न पिघला होगा।

इसके बाद सब लोग घुटने टेककर बैठे और वह सहृदय पादरी ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते हुए प्रार्थना करने लगे। उपासना की समाप्ति पर सबने उठकर परस्‍पर एक-दूसरे का आलिंगन किया। वे भी मन-ही-मन सोच रहे थे कि ईश्‍वर की महिमा कितनी अनंत है। जार्ज और इलाइजा को स्‍वप्‍न में भी ऐसे अद्भुत मिलन की आशा न थी, पर ईश्‍वर ने आज बिना माँगे ही उन्‍हें यह सुख और शांति देने की कृपा की।

कनाडा के एक पादरी के स्‍मृति-पटल पर भगोड़े दास-दासियों के ऐसे अदभुत मिलन की सहस्रों कहानियाँ अंकित थीं। उसकी पुस्‍तक पढ़कर पता चलता है कि दास-प्रथा पर लिखे हुए उपन्‍यासों की काल्‍पनिक घटनाओं की अपेक्षा मनुष्‍य के प्रकृत जीवन की घटनाएँ अधिक आश्‍चर्यजनक होती हैं। छह बरस की अवस्‍था में संतान माता की गोद से बिछुड़ गई है। फिर तीन वर्ष की अवस्‍था में उसी का अपनी माता के साथ कनाडा की धरती पर मिलन हुआ है। कोई किसी को पहचान नहीं सकता है। कितने ही भगोड़े दासों के जीवन में अद्भुत वीरता और त्‍याग के दृष्‍टांत दीख पड़ते हैं। अपनी माताओं और बहनों को दासता के अत्‍याचार से मुक्‍त करने के लिए वे अपनी जान पर खेल गए थे। एक दास युवक था। पहले वह यहाँ अकेला भागकर आया, किंतु पीछे से वह अपनी बहन को छुड़ाने के लिए जाकर एक-एक करके तीन बार पकड़ा गया। उसने बड़ी-बड़ी मुसीबतें और संकट सहे। एक-एक बार की कोड़ों की मार से छ:-छ: महीने खाट पकड़े रहा, पर तब भी किसी तरह उसने अपना निश्‍चय न छोड़ा। अंत में चौथी बार की चेष्‍टा में वह अपनी बहन को छुड़ा ही लाया।

क्‍या यह युवक सच्‍चा वीर नहीं है? पर अमरीका के पशु-प्रकृति के अंग्रेज उसे चोर समझते थे। न्‍याय की नजर से देखा जाए तो ये अर्थलोभी गोरे ही असली चोर हैं। अत्‍याचार-पीड़ित उस युवक का कार्य वास्‍तव में वीरता का कार्य कहलाने योग्‍य था।

कासी, मैडम डिथो और एमेलिन, तीनों जार्ज और इलाइजा के साथ रहने लगीं। कासी पहले कुछ सनकी-सी जान पड़ती थी। वह जब-तब आत्‍म-विस्‍मृति के कारण इलाइजा की कन्‍या को छाती से लगाने के लिए इतने जोरों से खींचती कि देखकर सबको आश्‍चर्य होता था। पर धीरे-धीरे उसकी दशा सुधरने लगी। इलाइजा अपनी माता की यह दशा देखकर उसे बाइबिल सुनाया करती थी, विशेषत: ईश्‍वर की दया की कथा सुनाती थी। कुछ दिनों बाद कासी का मन धर्म की ओर मुड़ा। उसके हृदय में भक्ति और प्रेम का स्रोत प्रवाहित होने लगा और बहुत थोड़े समय में उसका जीवन अत्‍यंत पवित्र हो गया।

थोड़े समय बाद मैडम डिथो ने जार्ज से कहा - "भाई, अपने पति के मरने से मैं ही उसके अतुल धन की मालकिन हुई हूँ। तुम अब इस धन को अपनी इच्‍छानुसार खर्च कर सकते हो। मैं तुम्‍हारी इच्‍छा के अनुसार इस धन का सदुपयोग करना चाहती हूँ।"

यह सुनकर जार्ज बोला - "एमिली बहन, मेरी खूब पढ़-लिखकर विद्वान होने की बड़ी लालसा है। तुम मेरी शिक्षा का कोई प्रबंध कर दो।"

इतनी बड़ी उम्र में जार्ज की शिक्षा का क्‍या प्रबंध होना चाहिए, सब लोग इस विषय पर विचार करने लगे। अंत में सबकी यही राय हुई कि सब लोग फ्रांस चलकर रहें और जार्ज वहाँ के किसी विश्‍वविद्यालय में भर्ती होकर शिक्षा प्राप्‍त करे।

यह बात पक्‍की हो जाने पर ये सब एमेलिन को साथ लेकर जहाज पर सवार हो फ्रांस को चल पड़े। जहाज का कप्‍तान बड़ा अच्‍छा आदमी था। उसने एमेलिन का सदाचार, रूप-लावण्‍य, विनीत भाव और उसके सदगुणों को देखकर उससे विवाह करने की इच्‍छा प्रकट की, और फ्रांस पहुँचकर उससे विवाह कर लिया। जार्ज ने चार वर्ष तक फ्रांस में रहकर अने शास्‍त्रों का अध्‍ययन किया, पर किसी राजनैतिक घटना के कारण उन लोगों को फ्रांस छोड़कर फिर कनाडा लौट आना पड़ा।

अब जार्ज एक सुशिक्षित युवक है। उसके हाथ का लिखा हुआ एक पत्र हम नीचे उदधृत करते हैं। यह पत्र जार्ज ने कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने के कुछ ही पहले अपने किसी मित्र को लिखा था। शिक्षा के प्रभाव से उसका हृदय कितना उच्‍च हो गया था, इस पत्र को पढ़कर उसका अनुमान किया जा सकता है -

प्रिय मित्र, मुझे तुम्‍हारे पत्र में यह पढ़कर बड़ा खेद हुआ कि तुम मुझे गोरों के दल में मिलने का अनुरोध कर रहे हो। तुम कहते हो कि मेरा रंग साफ है और मेरी स्‍त्री, पुत्र, कुटुंबी कोई भी काले नहीं है, इससे मैं बड़ी आसानी से उनके समाज में मिल सकता हूँ, पर मैं तुम्हें सच कहता हूँ कि इनमें मिलने की मेरी जरा भी इच्‍छा नहीं है। धनवानों और रईसों पर मेरी तनिक भी श्रद्धा नहीं है। मनुष्‍य-समाज का इनसे कभी उपकार नहीं हो सकता कि अधिकांश मनुष्‍य तो पशुओं की भाँति परिश्रम से पिस-पिसकर मरें और कुछ लोग बाबू और रईस बने फिरें तथा चैन की बंसी बजाएँ। ऐसे आदमियों से मनुष्‍य-समाज का बड़ा अपकार हो रहा है। जिन मनुष्‍यों को पशुओं की भाँति परिश्रम करना पड़ता है, वे किसी प्रकार का ज्ञान प्राप्‍त नहीं कर सकते, जिंदगी भर मूर्ख बने रहते हैं। इससे उन्‍हें धर्म-अधर्म का कोई विचार नहीं रहता, वे सदा बुराइयों में फँसे रहते हैं। इन बुराइयों के मूल कारण वे ही लोग हैं, जो उनसे इस प्रकार पशुओं की भाँति काम लेते हैं। उन लोगों के पाप और दुर्नीति के अवश्‍यंभावी कुफल से समग्र मानव-समाज का अकल्‍याण होता है।

समाज में इतने पाप, दु:ख, अत्‍याचार और दरिद्रता के फलने-फूलने का क्‍या कारण है? संसार में सुख-शांति क्‍यों नहीं है? इस विषय पर मैं जितना सोचता हूँ, उतनी ही इन रईसों और धनवानों पर से मेरी श्रद्धा घटती जाती है। बड़े आदमी ही इसके एकमात्र कारण जान पड़ते हैं।

अत्‍याचार से सताए हुए दीन-दुखियों पर, मानव-समाज के अन्‍नदाता पार्थिव-पद-प्रभुत्‍वहीन गरीब किसानों पर, निर्बल और निस्‍सहाय अनाथों पर ही अब मेरी श्रद्धा है।

तुम मुझे रईस-मंडली में मिलाकर शान के साथ जीवन बिताने को कहते हो, पर जरा विचारो तो, यह रईस-मंडली है क्‍या? असहायों, निराश्रयों और कंगालों के कठोर परिश्रम की कमाई को घर-बैठे मुफ्त में भोग-विलास में उड़ाना ही रईसी है या और कुछ? इसी का नाम शायद बड़प्‍पन है। गरीब दिन-रात खून-पसीना एक करके जो कुछ कमाए, उसे मैं छल-कपट से हड़प लूँ और मेरे पास जो कुछ है, उसमें से किसी को कानी कौड़ी तक न दूँ! मैं विद्वान हूँ, पर उन दुर्बलों को उनके कठोर परिश्रम की कमाई के बदले मैं अपनी विद्या का एक कण भी न दूँ! ऐसे ही आचरणों को भिन्‍न-भिन्‍न जाति के लोग रईसाना व्‍यवहार करते हैं। पर तुम्‍हीं कहो, क्‍या ऐसे रईसी जीवन से मुझे सुख मिल सकता है? ऐसा बड़प्‍पन लेकर क्‍या कोई कभी संसार से पाप, ताप, अत्‍याचार और दरिद्रता का मूलोच्‍छेद कर सकता है? कभी नहीं! बल्कि जो कोई इस रईस मंडली में शामिल होगा, उसको समाज में प्रचलित पापों, अत्‍याचारों और निष्‍ठुरताओं का पक्ष लेना पड़ेगा। मैं मानता हूँ कि इस संसार में सब लोग कभी बराबर नहीं हो सकते, सबकी दशा समान नहीं हो सकती, और मैं यह भी मानता हूँ कि सामाजिक वंचनाओं के कारण लोगों की गिरी दशा में कभी सुधार नहीं होगा, वैषम्‍य बना रहेगा। इससे हमारे लिए यह कदापि उचित नहीं है कि किसी दूसरे का हाथ काटकर उसमें और अपने में भेद उत्‍पन्‍न कर लें। कहो, मेरी क्‍या दशा थी? मैं केवल दासी के पेट से पैदा होने के कारण ही, देश में प्रचलित कानून के द्वारा हर व्‍यक्ति को प्राप्‍त स्‍वाभाविक अधिकारों से वंचित रखा गया। भला ऐसे व्‍यवहार द्वारा मनुष्‍य-समाज में परस्‍पर द्वेष उत्‍पन्‍न होने के अतिरिक्‍त और क्‍या हो सकता है? अपने पितृ-कुल की ऊँची जाति से मेरी तनिक भी सहानुभूति नहीं है। उच्‍च जातिवालों ने मुझे कभी किसी घोड़े या कुत्ते से अधिक नहीं समझा। केवल मेरी माता ही थी, जिसकी निगाह में मैं मनुष्‍य की संतान था। बचपन में जब से मेरा उस स्‍नेहमयी जननी से वियोग हुआ, तब से आज तक मेरी उससे भेंट नहीं हुई। वह मुझे प्राणों से भी अधिक प्‍यार करती थी। उसने कैसे-कैसे कष्‍ट और दु:ख भोगे, मैंने लड़कपन में कैसे-कैसे अत्‍याचार सहे और कष्‍ट उठाए, मेरी स्‍त्री ने बच्‍चे को बचाने के लिए किस तरह नदी पार की और किस वीरता से नाना प्रकार के दु:खों और यंत्रणाओं का सामना किया, इस सबको जब मैं याद करता हूँ, तो मेरा मन बेचैन हो जाता है। पर जिन लोगों ने हमें इतना सताया, इतने दु:ख दिए, उनके विरुद्ध मैं अपने हृदय में किसी प्रकार का द्वेष नहीं रखता, बल्कि ईश्‍वर से उनके भी कल्‍याण की प्रार्थना करता हूँ।"

मेरी माता अफ्रीकावासिनी थी। इससे अफ्रीका मेरी मातृभूमि है। उन पराधीन, अत्‍याचार-पीड़ित, अफ्रीकावासियों की उन्‍नति के निमित्त ही मैं अपने जीवन को लगाऊँगा। देश-हित व्रत धारण करके प्राण-पण से बलवानों के अत्‍याचारों से निर्बलों की रक्षा करने का यत्‍न करूँगा।

तुम मुझे धर्मप्रचारक का व्रत लेने के राय देते हो, और मैं भी समझता हूँ कि धार्मिक हुए बिना कभी मनुष्‍य की उन्‍नति नहीं हो सकती, लेकिन क्‍या इन अपढ़ और गँवारों को सहज ही धर्ममार्ग पर लाया जा सकता है? अत्‍याचार-पीड़ित जाति कभी सत्‍यधर्म का मर्म नहीं समझ सकती। उसकी अंतरात्‍मा जड़ होती है।

अत्‍याचार से पीड़ित पराधीन जाति को उन्‍नत करने के लिए सबसे पहले देश में प्रचलित कानून का सुधार करना होग, पराधीनता की बेड़ी से इन्‍हें मुक्‍त करना होगा। तब जाकर इनका कुछ भला हो सकेगा। मैं तन-मन से इस बात की चेष्‍टा करूँगा कि अफ्रीका-वासियों में जातीय जीवन का गर्व आ सके और संसार की सभ्‍य जातियों में इनकी एक स्‍वतंत्र जाति के रूप में गणना हो सके। इन्‍हीं दिनों साइबेरिया क्षेत्र में साधारण तंत्र (जन-शासन) की स्‍थापना हुई है। मैंने वहीं जाने का निश्‍चय किया है।

तुम शायद समझते हो कि इन घोर अत्‍याचारों से सताए जानेवाले अमरीका के गुलामों को मैं भूल गया हूँ। पर कभी ऐसा मत समझना। यदि मैं इन्‍हें एक घड़ी के लिए, एक पल के लिए भी भूलूँ तो ईश्‍वर मुझे भूल जाए। पर यहाँ रहकर मैं इनका कुछ भला नहीं कर सकूँगा। अकेले मेरे किए इनकी पराधीनता की बेड़ी नहीं टूटेगी। हाँ, यदि मैं किसी ऐसी जाति में जाकर मिल जाऊँ, जिसकी बात पर दूसरी जातियों के प्रतिनिधि ध्‍यान दें, तो हम लोग अपनी बात सबको सुना सकते हैं। किसी जाति की भलाई के लिए किसी व्‍यक्ति-विशेष से वाद-विवाद, अभियोग या अनुरोध करने का अधिकार नहीं है। हाँ, वह पूरी जाति अवश्‍य वैसा करने का पूर्ण अधिकार रखती है।

यदि किसी समय सारा यूरोप स्‍वाधीन जातियों का एक महामंडल बन गया, यदि अधीनता, अन्‍याय और सामाजिक वैषम्‍य के उत्‍पीड़न से यूरोप सर्वथा रहित हो गया, और यदि सारे यूरोप ने इंग्‍लैंड और फ्रांस की भाँति हम लोगों को एक स्‍वतंत्र जाति मान ली, तो उस समय हम विभिन्‍न जातियों की महा-प्रतिनिधि सभा में अपना आवेदन उपस्थित करेंगे और बलपूर्वक दासता में लगाए हुए, अत्‍याचार से पीड़ित, दुर्दशाग्रस्‍त स्‍वजातीय भाइयों की ओर से सही-सही विचार करने की प्रार्थना करेंगे। उस समय स्‍वाधीन और सुसभ्‍य अमरीका देश भी अपने मस्‍तक से इस दासता-प्रथा रूपी सर्वजन-घृणित घोर कलंक को धोकर बहा देगा।

तुम कह सकते हो कि आयरिश, जर्मन और स्‍वीडिश जातियों की भाँति हम लोगों को भी अमरीका के साधारण तंत्र में सम्मिलित होने का अधिकार रहे। मैं भी इसे मानता हूँ। हम लोगों को समान भाव से सबके साथ मिलने देना चाहिए। सबसे पहली जरूरत यह है कि जाति और वर्ण के भेद को परे रखकर हम प्रत्‍येक व्‍यक्ति को योग्‍यतानुसार समाज में ऊँचे स्‍थान पर पहुँचने दें। इतना ही नहीं कि इस देश में जन-साधारण को जो अधिकार मिले हुए हैं, उन्‍हीं पर हमारा दावा है, बल्कि हमारी जाति की जो क्षति इन लोगों के अत्‍याचार से हो रही है, उस क्षति की पूर्ति के लिए अमरीका पर हम लोगों का एक विशेष दावा है। ऐसा होने पर भी मैं वह दावा नहीं करना चाहता। मैं अपना एक देश और एक जाति चाहता हूँ। अफ्रीकी जाति की प्रकृति में कुछ विशेषताएँ हैं। अंग्रेजों से अफ्रीकी जाति की प्रकृति बिल्‍कुल भिन्‍न होने पर भी ये विशेष गुण, सभ्‍यता और ज्ञान-विस्‍तार के साथ-साथ अफ्रीकनों को नीति और धर्म की ओर अग्रसर करने में उच्‍च और महान प्रमाणित होंगे।

मैं एक लंबे समय से समाज के अभ्‍युदय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मेरा विश्‍वास है कि हम इस नवीन युग की पूर्व सीमा पर खड़े हुए हैं। मुझे विश्‍वास है कि आजकल जो भिन्‍न-भिन्‍न जातियाँ भयंकर वेदनाओं से कातर हो रही हैं, उन्‍हीं की वेदनाओं से सार्वभौम प्रेम और शांति का जन्‍म होगा।

मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि अफ्रीका धर्म-बल से ही उन्‍नति के शिखर पर पहुँच सकेगा। अफ्रीकी चाहे क्षमतावान तथा शक्ति-संपन्‍न न हों, पर वे सहृदय, उदारचेता और क्षमाशील अवश्‍य हैं। जिन्‍हें अत्‍याचार की धधकती हुई आग में चलना पड़ता है, उनके हृदय यदि स्‍वर्गीय प्रेम और क्षमा के गुणों से पूर्ण न हों तो उनके हृदय की अग्नि को शांत करने के लिए और उपाय ही क्‍या है? अंत में यही प्रेम और क्षमा उन्‍हें विजयी बनाएँगे। अफ्रीका महाद्वीप में प्रेम और क्षमा के मानवीय धर्म का प्रचार करना ही हम लोगों का जीवन-व्रत होगा।

मैं स्‍वयं इस विषय में कमजोरियों का शिकार हूँ। मेरी नस-नस में आधा खून गर्म-अंग्रेज खून है, पर मेरे सामने सदा एक मधुर-भाषिणी धर्म-उपदेशिका विद्यमान रहती है, यह मेरी सुंदर स्‍त्री है। भटकने पर यह मुझे कर्तव्य के मार्ग का ज्ञान कराती है, हम लोगों के जातीय उद्देश्‍य एवं जीवन के लक्ष्‍य को हमेशा निगाह के सामने जीता-जागता रखती है। देश-हित की इच्‍छा से, धर्मशिक्षा की कामना से, मैं अपने प्रियतम स्‍वदेश अफ्रीका को जा रहा हूँ।

तुम कहो कि मैं कल्‍पना के घोड़े पर सवार हूँ। कदाचित तुम कह सकते हो कि मैं जिस काम में हाथ डाल रहा हूँ, उस पर मैंने पूरी तरह विचार नहीं किया है, पर मैंने खूब सोच-विचार कर रखा है, लाभ-हानि का हिसाब लगाकर देख चुका हूँ। मैं काव्‍यों में वर्णित स्‍वर्गधाम की कल्‍पना करके लाइबेरिया नहीं जा रहा हूँ। मैं कर्मक्षेत्र में डटकर परिश्रम करने का संकल्‍प करके वहाँ जा रहा हूँ। आशा है, स्‍वदेश के लिए परिश्रम करने से मैं कभी मुँह नहीं मोडूँगा, हजारों विघ्‍न-बाधाओं के आने पर भी कर्म-क्षेत्र में डटा रहूँगा और जब तक मेरे शरीर में दम है, देश के लिए काम करता जाऊँगा।

मेरे संकल्‍प के संबंध में तुम चाहे जो कुछ सोचो, पर मेरे हृदय पर अविश्‍वास मत करना। याद रखना कि मैं चाहे कुछ भी काम क्‍यों न करूँ, अपनी जाति की मंगल-कामना को ही हृदय में धारण करके उस काम में लगूँगा।

तुम्‍हारा

जार्ज हेरिस

इसके कुछ सप्‍ताह के बाद जार्ज अपने पुत्र तथा घर के दूसरे लोगों के साथ अफ्रीका चला गया।

मिस अफिलिया और टप्‍सी को छोड़कर उपन्‍यास में आए हुए नामों में से अब हमें और किसी के बारे में कुछ नहीं कहना है।

मिस अफिलिया टप्‍सी को अपने साथ वारमांड ले गई। पहले अफिलिया के पिता के घर के लोग टप्‍सी को देखकर बहुत विस्मित हुए और चिढ़े भी, पर मिस अफिलिया किसी तरह अपने कर्तव्य से हटनेवाली नहीं थी। उसके अपूर्व स्‍नेह और प्रयत्‍न से दास-बालिका थोड़े ही दिनों में सबकी स्‍नेह-पात्र बन गई। बड़ी होने पर टप्‍सी अपनी खुशी से ईसाई हो गई। उसकी तीक्ष्‍ण बुद्धि, कर्मठता और धर्म के प्रति उत्‍साह देखकर कुछ मित्रों ने उसे अफ्रीका जाकर धर्म-प्रचार करने की सलाह दी।

पाठक यह सुनकर सुखी होंगे कि मैडम डिथो की खोज से कासी के पुत्र का भी पता लग गया।

यह वीर युवक माता के पलायन के बहुत पूर्व कनाडा भाग आया था। यहाँ आकर दास-प्रथा के विरोधी, अनाथों के बंधु अनेक सहृदय व्‍यक्तियों की सहायता से उसने अच्‍छी शिक्षा पाई थी। जब उसे मालूम हुआ कि उसकी माता और बहन अफ्रीका जा रही हैं, तब वह भी अफ्रीका की ओर चल दिया।

समाप्त।