ट्रायम्फ का आई-नोट / गोपाल चौधरी
मुझे नहीं लगता कि अपने बारे में बताने की जरूरत है! आप तो मुझे यानी ट्रायम्फ को जानते ही होगे। अगर नहीं, तो अब तक तो जान ही गए होंगे। फिर भी नहीं तो जानने की आदत डाल लें। क्योंकि आप मुझसे नफरत कर सकते हैं, पर मुझे इग्नोर नहीं कर सकते। ये बात सारी दुनिया के देश और लोग जानते है। इसलिए सोचा आपको भी मालूम होना चाहिए।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सबसे शक्तिशाली पद, राष्ट्रपति 19 जीत कर तहलका मच गया। चारो ओर। सब मुझे बधाइयाँ देने लगे। सभी-दोस्त हो या परिचित, दुश्मन हो या अपरिचित। उसका यानी कोपाल का इंतजार करते रहा। पर वह नहीं आया। न ही बधाई दी। फिर भी उसका न जाने क्यों इंतजार करता रहा। अगर आ जाता तो उसे पूरे टर्म के लिए अपना सलाहकार बना लेता।
बाद में मैंने कहीं कहा था कि मेरी जीत में क्वित्तर का बहुत बड़ा हाथ है। उससे बड़ा कही अधिक कोपाल का रहा है। यह बात शायद मालूम न हो। पर यह कहने में मुझे हिचकिचाहट नहीं हो रही है: अगर क्वित्तर ने अहम भूमिका निभाई में हमारी जीत मे, तो क्वित्तर पर उसने।
पर उसने बधाई नहीं दी। न क्वित्तर पर ही और न मिल कर ही। कम से कम मिलने तो आ सकता था! कहीं ओबाबा ने उसे पकड़वा तो नहीं दिया। कहीं कुछ हो तो नहीं गया। ओह शीट! मैं क्यों उसके बारे में सोच रहा हूँ। उसके बारे मे?
क्यों न सोचूँ? कितना हेल्प किया! कितना मॉरल और वैचारिक समर्थन किया। हमारे चुनाव मुहिम को एक नई दिशा दी। चाहे वह नोमिनेश्न हो या प्रचार, उसने सब जगह साथ दिया और तो और उसने कई राज्यों में कारतीयों और अन्य एथनिक ग्रुप के मत दिलाये।
मुझे अब भी याद है जब उसने पहला क्वित किया था। मन खुश हो गया था। पूरी दुनिया में एक हँगामा-सा मच गया। फिर जब पोप ने वह कमेंट दिया था! उसका कैसा सटीक और करारा जवाब दिया था उसने। जबकि न तो मैं उसे जानता होता ठीक से और न वह ही। न वह अमेरीकन था और न ग्रीन कार्ड का दावेदार।
फिर राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उसने न जाने कितने मुद्दों पर नीति निर्धारन में मेरी मदद की। बिना एक डॉलर लिए हुए। बिना किसी परिणाम या आकांक्षा के। चीन, पाकिस्तान, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, यहाँ तक की कारतीय मामले में नीति निर्धारण में अहम सुझाव और विचार दिये। रूस और यूरोप के बारे में भी उसने सकारात्मक दृष्टि अपनाने में मदद की।
पर विशेष कर, मैं उसका आभारी हूँ—उसने हमारे मेक अमेरिका प्रचार को एक सकारात्मक और ठोस आधार दिया। जब उसने मेक अमेरिका ग्रेट में अगेन लगाने का सुझाव दिया। कितना अच्छा आइडिया था! मेक अमेरिका ग्रेटा मतलब अमेरिका को ग्रेट बनाना है। जब कि अमेरिका ऑलरेडी ग्रेट रहा है। इस ओबाबा ने इस ग्रेटनेस की मिट्टी पलीद कर रक्खी है। अब अमेरिका को फिर से ग्रेट बनाना है, मेक अमेरिका ग्रेट अगेन! प्रचार हिट हो गया। यहाँ तक की लिबेरल भी इसके प्रभाव से अंदर-अंदर ही डरने लगे है। लोगों के बीच तो यह बहुत प्रभावी रहा।
अगर वह आ जाता तो उसे मैं जो पद चाहता वह उसे दे देता। वह इतना स्मार्ट और बुद्धिमान है कि उसे भविष्य की बाते पता होती हैं। तभी तो मेरे नोमिनेश्न और चुनाव जीतने की घोषणा उसने बहुत पहले कर दी थी। वह आता तो पूछता की दूसरे टर्म के लिए मैं ठीक हूंगा कि मेरी फवोरिट बेटी? पर आया ही नहीं।
एक दिन क्वित्तर पर थोड़ी देर के लिए आया था। मुझे यह बताने की उसने मुझे 6 महीने पहले ही बधाई दे दी थी। अभी तो केवल इस बात को याद दिलाने आया है। फिर जो गायब हुआ तो आया ही नहीं। कहीं वह मेरे एंटि-इमिग्रेशन स्टैंड का तो शिकार नहीं हो गया! उसको खोजने के लिए मैंने सारे हवाई अड्डों और बस और रेल्वे स्टॉप पर सोशल मीडिया का अकाउंट बताना आवश्यक कर दिया था। ताकि उसका पता चल सके।
पर कोपाल नहीं मिला और न आया ही। कौन था वो? पानी पर लिखी लकीर जो मिटती भी जाती और फैलती भी!