तीस मार खां : बॉक्स ऑफिस की अजीब दास्तां / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीस मार खां : बॉक्स ऑफिस की अजीब दास्तां

प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2011

भारतीय दर्शक तो सिनेमाघर में परदे पर पेश असंगत बातों पर भी यकीन करने का मन बनाकर आता है, लेकिन फिल्मकार उसे याद दिलाता है कि वह जिंदगी नहीं मखौल देखने आया है। फरहा खान की फिल्म 'तीस मार खां' ने सर्वत्र कड़ी आलोचना के बावजूद प्रथम सप्ताह में लगभग पच्चीस करोड़ की नेट आय प्राप्त की, जो आश्चर्यजनक है। अक्षय कुमार की 'एक्शन रीप्ले' और प्रियदर्शन निर्देशित 'खट्टा मीठा' ने बहुत ही कम व्यवसाय किया था। यह संभव है कि फरहा की फिल्म सिनेमाघरों से पैंतीस करोड़ अर्जित करे और बीस करोड़ सैटेलाइट तथा संगीत इत्यादि गैर-सिनेमाई�प्रदर्शन अधिकारों को बेचने से। इस तरह एक फूहड़ फिल्म अपनी लागत वसूल कर लेती है। इससे फिल्म व्यवसाय की गहराई आंकना भूल होगी। छुट्टियों के मौसम में दर्शक के पास विकल्प नहीं था और फरहा के धुआंधार प्रचार ने भी असर दिखाया है। दरअसल फिल्म की परिकल्पना एक फार्स की तरह की गई थी, जिसमें तर्क के लिए कोई स्थान नहीं होता। यह मखौल की विधि है, मसलन भारतीय कलाकारों के ऑस्कर प्रेम पर लंबा स्पूफ है और अक्षय खन्ना ने ऑस्कर मोहित सितारे की भूमिका अत्यंत विश्वसनीय ढंग से निभाई है।

फिल्म उद्योग से संबंधित मखौल में गैरफिल्मी दर्शक की रुचि नहीं होती। मसलन जोया अख्तर की फिल्म 'लक बाय चांस' में भी मुंबई के बांद्रा और वर्सोवा में रहने वाले फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों को ही आनंद आया था। फरहा के पति शिरीष कुंदर 'तीस मार खां' के लेखक हैं और उनकी पहली फिल्म 'जानेमन' के आरंभिक दृश्य में दरवाजा तोड़कर साजिंदे कमरे में घुस आते हैं और पूछे जाने पर कहते हैं कि गीत की सिचुएशन में वे बाजा नहीं बजाएंगे तो कौन बजाएगा। भारतीय दर्शक अपने अविश्वास की भावना को निरस्त करके सिनेमाघर में परदे पर प्रस्तुत घटनाक्रम पर यकीन करने के भाव से आता है और इस तरह के दृश्य उसके यकीन को तोड़ते हैं। वह तो असंगत बातों पर भी यकीन करने का मन बनाकर आया है और फिल्मकार उसे याद दिलाता है कि वह जिंदगी नहीं मखौल देखने आया है। शिरीष के पास सिनेमा की समझ तो है, परंतु उन पर पश्चिम का प्रभाव कुछ ऐसा है कि वह औसत भारतीय दर्शक के सपने देखने के माद्दे को नहीं समझते।

इस फिल्म में जब भी कैटरीना अपने दृश्य की बात करती हैं, तब उन्हें मेकअप पोतने की याद आती है। गोयाकि नायिका का काम केवल सुंदर दिखना है। यह अच्छा व्यंग्य है, परंतु इसका अनगिनत बार दोहराव उबाता है। इन तमाम दोषों के बाद भी दर्शक आ रहे हैं क्योंकि फरहा खान निर्देशकीय लहर बनाना जानती हैं। किसी भी फिल्म में अगर दर्शक आ रहे हैं तो तय है कि उन्हें कहीं कुछ अच्छा लग रहा है। अब इस अच्छे लगने के कारण फरहा और शिरीष स्वयं को दोषमुक्त नहीं कर सकते। वे गौर फरमाएं कि उनकी ब्रांड कीमत यह है कि आक्रामक रिपोर्ट के बाद भी यह सिनेमाघरों से 35-40 करोड़ कमा सकती है, तो पूरी तरह मनोरंजक होने पर 100 करोड़ अर्जित करती।

फिल्म उद्योग में सफलता के दस बाप सामने आ जाते हैं और असफलता अवैध संतान की तरह होती है। प्राय: सच्चे हादसों के गलत नतीजे निकाले जाते हैं, जैसे राजीव कपूर की 'प्रेमगं्रथ' की असफलता का दोष चौथी रील में प्रस्तुत बलात्कार के दृश्य को दिया गया, जबकि राज कपूर की सफल 'प्रेमरोग' में भी यही हुआ था। दरअसल 'प्रेमग्रंथ' में ऋषि कपूर और माधुरी के बीच प्रेम रसायन गैरमौजूद था। फिल्म का सारा दारोमदार समग्र प्रभाव पर आधारित होता है और 'तीस मार खां' का समग्र प्रभाव मखौल उड़ाने का है,�जो हास्य नहीं होता। कार्टून और कैरीकेचर में अंतर होता है। बच्चों का अपहरण करने वाले दृश्य के बाद कहानी 'मि. नटवरलाल' की तर्ज�पर आगे बढ़ सकती थी, परंतु सफलता के गुटका संस्करण बनाने की प्रवृत्ति घातक सिद्ध हुई।

अक्षय कुमार ने खूब धन कमाने की खातिर एक व्यवसाय तंत्र रचा है, जिसमें गुणवत्ता को खारिज कर दिया गया है। कम शूटिंग के दिनों में फैक्ट्री के नियमों से माल बनाना है। फिल्म निर्माण सृजन का कार्य है और भारत जैसे देश में विविध रुचियों को समझने का काम ै। अक्षय कुमार ने अपनी तमाम मुद्राएं इतनी बार दोहराई�हैं कि बिना गोविंदा की प्रतिभा के वे गोविंदा हुए जा रहे हैं। डेविड धवन ने मनमोहन देसाई की प्रेरणा से मनोरंजन की एक शाखा विकसित की थी और वह अब लंबे समय तक मृत ही रहेगी।