दिल नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है जीना ही अंतिम विकल्प है / जयप्रकाश चौकसे

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दिल नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है जीना ही अंतिम विकल्प है
प्रकाशन तिथि : 20 जून 2019


अर्नेस्ट हेमिंग्वे के उपन्यासों पर फिल्में बनी हैं। उन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला। उनका सबसे अधिक प्रसिद्ध उपन्यास 'द ओल्ड मैन एंड द सी' है। तूफान आने की चेतावनी आने के बाद भी एक उम्रदराज मछुआरा अपनी नाव पर सवार होकर मछली पकड़ने जाता है। यही उसका कर्म और धर्म है। एक बड़ी मछली उसके जाल में फंसती है। वह उसे अपनी नाव में बांधकर किनारे की ओर नाव खेता है। वह जानता है कि छोटी मछलियां उसके जाल में फंसी बड़ी मछली का मांस खा जाएंगी और जब वह किनारे लगेगा तब शायद थोड़ा ही मांस बच पाएगा। उसे लाभ लोभ के परे अपने काम करते रहना है। उनके उपन्यास 'फॉर होम द बेल्स टोल' को भी बहुत महान रचना माना गया है। एक बार वे छोटे हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे। उनका हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ। उनकी मृत्यु की खबर प्रकाशित एवं प्रसारित हो गई। शोक सभाएं आयोजित हुईं। कुछ दिन बाद ज्ञात हुआ कि वह हवाई जहाज से गिरकर वृक्ष की डालियों में अटक गए थे। उन्हें जख्मी हालत में अस्पताल में दाखिल किया गया। कुछ माह के इलाज से वे चंगे हो गए। इसी तरह युद्ध में उन्हें गोली लगी और वह मृत मान लिए गए, परंतु खंदक से निकाले गए तथा अस्पताल में चंगे होकर बाहर आ गए। इस तरह दो बार भी मौत से आंख मिलाकर बच निकले। उन्होंने स्पेन के गृह युद्ध में उदार दल की ओर से युद्ध लड़ा जबकि वे स्पेन के नागरिक नहीं थे और उस युद्ध के परिणाम से उनके जीवन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था। युद्ध समाप्त होने पर उनसे पूछा गया कि इस बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन ठुमके क्यों?

उनका जवाब था कि स्पेनिश भाषा में सबसे अधिक एवं मौलिक अपशब्द हैं। वे युद्ध में इसलिए शरीक हुए कि स्पेन और उसकी समृद्ध भाषा बची रहे। हमारे देश में प्रचलित सारे अपशब्द नारी को अपमानित करते हैं। पुरुष केंद्रित अपशब्द नहीं है। एक बार वे एक छोटे से द्वीप में अपनी छुट्टियां व्यतीत करने गए। सागर किनारे क्षतिग्रस्त जहाज लाया गया। हेमिंग्वे ने उस पर जितनी भी शराब थी सब खरीद ली। उन्होंने शराब के उस जखीरे की अधिकांश बोतलें द्वीप के गरीब लोगों को मुफ्त में दे दीं। कुछ समय पश्चात उस द्वीप पर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हुआ। द्वीप के लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त होने के लिए खूनी संघर्ष कर रहे थे। गोरे रंग वाले मारे जा रहे थे। उन्होंने हेमिंग्वे को नहीं मारा क्योंकि उसने उन्हें न केवल शराब वितरित की थी वरन् वे उन्हें आर्थिक सहायता भी देते रहे थे। प्रेम भारद्वाज द्वारा संपादित 'भवन्ति' में उल्लेख किया गया है कि 'वीडा' नामक फिल्म में संवाद है। 'मेरे पास जीने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं था। इस व्यवस्था में जीना अंतिम विकल्प है।' ज्ञातव्य है कि मौत से बार-बार आंखें चार करने वाले अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने आत्महत्या की थी और लिखा था कि 'अब उंगलियों में कंपन के कारण वे लिख नहीं पाते, यकृत के शिथिल हो जाने के कारण शराबनोसी नहीं कर पाते। इन्हीं कारणों से मैं आत्महत्या कर रहा हूं। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त ने भी आत्महत्या की। अपनी फिल्म 'प्यासा' में वह कह चुके थेकि 'यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या'।

आत्महत्या यह स्वाभाविक मृत्यु कोई समाधान नहीं है। तमाम अन्याय व अमानता आधारित व्यवस्था में जीवित रहना भी व्यवस्था का विरोध ही है। याद कीजिए बिस्मिल को कि 'देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' कुमार अंबुज के संकलन 'अमीरी रेखा' में 'विकल्पहीनता' की पंक्तियां हैं। जीवन के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उम्मीद का कोई विकल्प नहीं, मृत्यु भी नहीं'। हमें विश्वास करना चाहिए कि ऐसी कोई रात नहीं जिसका सवेरा ना हो। पुरातन पवित्र आख्यान कहते हैं कि पृथ्वी शेषनाग पर टिकी है। सच तो यह है कि उम्मीद की धुरी पर ही पृथ्वी और जीवन चल रहा है। शैलेंद्र की पंक्तियां हैं कि हो सके तो ले किसी का दर्द उधार, जीना इसी का नाम है, मरकर भी याद आएंगे किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे' आशा कई तरह से अभिव्यक्त हुई हैं...'दिल नाउम्मीद नहीं, नाकाम ही तो है, लंबी है गम की शाम, शाम ही तो है।