धरती की पीड़ा और पर्यावरण के लुटेरों की घोर निर्ममता / जयप्रकाश चौकसे

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धरती की पीड़ा और पर्यावरण के लुटेरों की घोर निर्ममता
प्रकाशन तिथि :07 दिसम्बर 2015


'टाइटैनिक' के लिए विश्व में लोकप्रिय फिल्मकार जेम्स केमरॉन की अगली फिल्म 'अवतार' में अमेरिका का एक दल अन्य उपग्रह पर साम्राज्य स्थापित करने के लिए जाता है और वहां की जनजातियां अपनी धरती की रक्षा करने के लिए तत्पर है। अपनी शीघ्र विजय की कामना के कारण अमेरिकन दल बुलडोजर चलाकर वृक्षों को नष्ट करना चाहता है ताकि जनजातियों को प्रश्रय न मिले। अमेरिकन दल की एक महिला कहती है कि इस उपग्रह पर नष्ट किए गए हर वृक्षों की पीड़ा हमारी अपनी धरती के समस्त वृक्षों को होगी, अत: हमें यह कदम नहीं उठाना चाहिए। शीघ्र विजय की कामना के शोर में उस महिला की तूती की आवाज अनसुनी रह जाती है। विदेश में प्रकृति संरक्षण पर बहुत फिल्में बनी हैं और इसी कॉलम में ऐसी ही एक फिल्म 'एमरॉल्ड फारेस्ट' का विवरण कुछ दिन पूर्व किया गया है।

भारतीय फिल्मों में प्राय: वृक्षों का उपयोग नायक-नायिका को उसके इर्द-गिर्द दौड़ने के लिए ही किया गया है, क्योंकि प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए सेंसर ने उनके पास कोई रास्ता नहीं छोड़ा था गोयाकि पहलाज निहलानी के पहले भी कुछ उनके सौम्य संस्करण हुए हैं, क्योंकि समाज सरंचना में ही दोहरे मानदंड है। सबसे अधिक बच्चे पैदा करने वाले देश के सिनेमा में प्रेम अपने यथार्थ रुप में दिखाने पर हमेशा ही किस्म-किस्म की पाबंदियां रही हैं। महान फिल्मकार आर.बाल्की की 'चीनी कम' की अधेड़ उम्र की नायिका उससे विवाह को आतुर उम्रदराज व्यक्ति को एक दृश्य में दूर लगे दरख्त तक दौड़कर जाने और उसे छूकर आने को कहती हैं। नायक पूछता है कि यह क्यों किया तो वह कहती है कि विवाह कामना करने वाले व्यक्ति के दमखम की जांच कर रही थी। सेंसर मन मसोस कर रह गया होगा।

अनेक वर्ष पूर्व शबाना आज़मी अभिनीत फिल्म में मंगला कन्या के पहले पति की मृत्यु आवश्यंभावी मानकर उसका पहला विवाह वृक्ष से कर दिया जाता है ताकि बाद में वह अपने दूसरे विवाह में लंबे समय तक पति के साथ रह सके। कुछ वर्ष पूर्व ही एक प्रसिद्ध सितारे ने भी अपनी भावी बहु के मंगला होने के कारण उसका पहला विवाह वृक्ष से किया। वह शिखर महिला सितारा आज भी अपने से कमतर सितारा पुत्र अभिनेता के साथ सुखी जीवन जी रही है। क्या इस तरह के अंधविश्वास में कभी ऐसा भी हुआ है कि 'विवाहित वृक्ष' असमय सूख कर गिर गया हो और उसी समय उस दूसरे पति की भी मृत्यु हो गई हो?इस्लाम में इस तरह का विवाह दूसरे निकाह के उद्‌देश्य से नहीं हो सकता क्योंकि पहले पति का तलाक देना जरूरी है। अब वृक्ष तीन बार इधर-उधर झुककर तलाक का संकेत भी तो नहीं दे सकता। बहरहाल प्रकृति संरक्षण के संदर्भ में वृक्ष के दर्द की क्या खूब अभिव्यक्ति निदा फाज़ली के इस शेर में होती है, 'चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात कट-कट भी मरते नहीं पेड़ो में दिन-रात' मैंने इस महान शेर को अपने उसे लेख में भी इस्तेमाल किया था, जिसका शीर्षक था 'मुर्दे जंगल खाते हैं' इस लेख में मूल बात यह थी कि इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरियम नहीं होने के कारण हर शव को जलाने के लिए तीन मन लकड़ी लगती है। सच तो यह है कि हजारों गांवों में बिजली पहुंची नहीं है और जहां पहुची है वहां आती-जाती रहती है। अत: आधा शवदान होने पर बिजली का प्रवाह बंद हो जाए तो अनिष्ट हो सकता है। अमेरिका में विगत शताब्दी में केवल एक बार बिजली प्रवाह रुका था तो उस पर फिल्म बनी थी 'वेहर वेयर यू व्हे लाइट्स वेंट ऑफ।' भारत महान में किस-किस बात के लिए रोइएगा?

बहरहाल, विशेषज्ञों का मानना है कि चेन्नई की बाढ़ का कारण भी प्रकृति का विनाश है। विगत पांच हजार सदियों में मनुष्य ने धरती के खनिज का मात्र दस प्रतिशत दोहन किया था परंतु विगत डेढ़ सदी में चालीस प्रतिशत दोहन किया है। इस विषय पर श्रेष्ठ किताब है 'द प्लेनेट वी प्लंडर्ड।' भास्कर के जयपुर संपादक एलपी पंत की प्राकृतिक आपदाओं पर लिखी खोजपरक किताब शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही है। चेन्नई के फिल्म उद्योग नेता रवि कोटायकरा ने बताया कि बाढ़ में मृतकों की संख्या हजार से ऊपर हो सकती है और कुल हानि 25 हजार करोड़ से कम नहीं है। इस विषय में सरकार और भारत की जनता की उदासीनता भयावह है। बाढ़ े दूसरे ही दिन संवेदना की इस हानि पर इस कॉलम में लेख लिखा जा चुका है। रवि के कहने पर फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया का अध्यक्ष होने के नाते मैंने सिने-उद्योग के नाम अपील जारी की है कि पूरे भारत से हर सिनेमा अपनी एक दिन की आय फेडरेशन को भेजे, जो इस राशि को वहां की सरकार को भेजेगी।