न आटा है न डाटा है यह तो शिक्षा का घाटा है / सुरेश कुमार मिश्रा

Gadya Kosh से
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सुरेश जी हमारे अच्छे मित्र हैं। पहुचे हुए शिक्षाविद् हैं। चूँकि देशभर में लॉकडाउन है तो उनकी परेशानियाँ बढ़ गई हैं। अरे भाई! उन्हें ऑनलाइन शिक्षण सामग्री जो बनानी है। वर्कशीट, रिविजन शीट, एनालिसीस शीट, ऑब्जरवेशन शीट, एसेसमेंट शीट, यह शीट, वह शीट, फलाना शीट और न जाने कितनी शीट हैं, जिनका नाम लेने में ही उनकी जीभ लड़खड़ाने लगती है। ऊपर से सरकार का इतना दबाव कि उन्हें पसीना पोंछने की फुरसत नहीं। करे भी तो क्या करें? एक दिन उन्होंने मुझे अजीबोगरीब किस्सा सुनाया। पता चला कि वे अपनी पत्नी के साथ एक ऐसे डॉक्टर के पास गए जो घर पर ही अपनी क्लिनिक चलाते हैं। डॉक्टर से उन्होंने कहा-सुनीता बात-बात पर गुस्सा हो जाती है। लॉकडाउन से पहले तक सब कुछ ठीक-ठाक था। किंतु आजकल आँखें मींचना, बड़बड़ाना, कूढ़ना, चिढ़ना, झल्लाना कुछ ज़्यादा ही हो गया है। डॉक्टर ने पत्नी की ओर देखा। उसमें तो ऐसे कोई लक्षण दिखायी नहीं दे रहे थे। उन्होंने कहा-आपकी पत्नी तो एकदम ठीक-ठाक है। सुरेश जी को एकदम से गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा-डॉक्टर साहब सुनीता मेरी पत्नी नहीं बेटी का नाम है। मेरी बेटी को पता भी नहीं कि मैं यहाँ आया हूँ। यदि उसे पता चल जाए तो आसमान सिर पर उठा लेगी। डॉक्टर साहब ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए कहा-आपकी बात तो एकदम सही है। जब से ऑनलाइन क्लासेस आरंभ हुए हैं तब से बच्चे इसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं। आप तो इतने बड़े शिक्षाविद् हैं। देश भर में शिक्षा कि स्थिति से भली-भांति परिचित होंगे।

डॉक्टर ने जाने-अनजाने में सुरेश जी की दुखती रग पर हाथ रख दिया। सुरेश जी ने देश भर की स्थिति का श्रीगणेश करते हुए कहा–क्या बताऊँ मैं आपको? उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरा भारत परेशान है। ई-पाठशाला, दीक्षा अप्प और स्वयं से पठन पाठन की सामग्री, स्कूल के व्हाट्सएप समूह से बच्चों / अभिभावक को जोड़कर पढ़ाया जा रहा है। उठने-बैठने, खाने-पीने, पढ़ने-लिखने की समय-सारिणी तय हो चुकी है। अलग-अलग विषय के लिए पाठ को समझाने के लिए वाईस मैसेज का भी प्रयोग किया जा रहा है। बच्चों द्वारा नोट बुक में कार्य करने के बाद वह फ़ोटो उसी व्हाट्सएप ग्रुप में डाले जा रहे हैं और अध्यापक उसकी जाँच कर रहे हैं। त्रुटियाँ सुधार कर पुनः फ़ोटो को अपडेट कर रहे हैं। साथ ही ध्यानाकर्षण, आधारशिला और शिक्षण संग्रह पर अध्यापकों के लिए क्विज का आयोजन किया जा रहा है। इससे अध्यापक अपडेट रहते हैं। दीक्षा अप्प पर टीचर ट्रेनिंग चल रही है। वर्तमान समय में वैश्विक महामारी के कारण विद्यालयो के बच्चों के शिक्षण हेतु पूरे देश में "ऑनलाइन कक्षा शिक्षण कार्यक्रम" चलाया जा रहा है, साथ में मिशन प्रेरणा व मिशन कायाकल्प के कार्यक्रम भी संचालित हैं, जिसके लिए जनपद स्तर / ब्लॉक स्तर पर-पर अलग-अलग कई व्हाट्सएप समूह बनाए गए हैं। हर व्हाट्सएप समूह अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया है। लेकिन देखा जा रहा है कि शिक्षक ऑनलाइन कक्षा शिक्षण के कंटेंट को अन्य महत्त्वपूर्ण समूहों में बेतरतीब तरीकों से शेयर कर रहे हैं जिससे अव्यवस्था जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। साथ ही विभागीय व्हाट्सएप समूहो को जिस उद्देश्य से बनाया गया है उसके संचालन में कठिनाई आ रही है।

ऑनलाइन केवल नाम के लिए है। घर पर भी बच्चों और अध्यापकों आराम नहीं। शोषण करने के लिए हर स्तर पर व्यवस्थाएँ काम कर रही हैं। विद्यालय स्तर पर बने ऑनलाइन शिक्षण समूहों से केवल बच्चों के कुछ चयनित प्रक्रियाएँ जैसे लिखित कार्य / ऑडियो / वीडियो के सामग्री होनी चाहिए। बच्चे जिस भी स्तर के हों उसी स्तर पर उनको टॉर्चर करना चाहिए। साथ ही शिक्षक द्वारा बच्चों को अभ्यास कार्य हेतु दिए गए कार्य / वर्कशीट / आदि की फ़ोटो आदि ब्लॉक या जनपद के ऑनलाइन कक्षा शिक्षण समूहों में पोस्ट न करने की कड़ाई से निर्देश दिए गए हैं। बच्चो के लिखित कार्य की फ़ोटो अधिक होने पर कोलाज बना कर शेयर करने पर स्वीकार करने के नियम बनाए गए हैं। जनपद / ब्लॉक स्तरीय मिशन प्रेरणा व मिशन कायाकल्प के व्हाट्सएप समूह में केवल मिशन प्रेरणा व मिशन कायाकल्प से सम्बंधित सूचनाएँ ही शेयर करने की सुविधा होगी। शिक्षक संकुल हेतु बनाए गए संकुल / ब्लॉक स्तरीय समूहो में केवल मिशन प्रेरणा और शिक्षा शास्त्र व अन्य नवाचारों, ई-कंटेंट, कार्य-दायित्व से जुड़े निर्देश / सूचनाएँ से सम्बंधित पोस्ट ही शेयर करने के लिए कहा गया है। कोई भी शिक्षक किसी भी दशा में बिना पढ़े / समझे / सुने / देखें कोई पोस्ट लिखित / ऑडियो या वीडियो के रूप में शेयर न करने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। प्रत्येक व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन व सह-एडमिन समूह की उद्देश्यों के सापेक्ष ही सदस्यों को पोस्ट शेयर करने, एडमिन ग्रुप में सभी सदस्यों को सक्रिय रखने, समूह में अनुशासन व उसकी प्रासंगिकता को बनाए रखने हेतु समूह सदस्यों को समय-समय पर फटकार लगाने के आदेश दिए गए हैं। यदि इन निर्देशों का कड़ाई से पालन नहीं हुआ तो इसके लिए किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता जिससे बच्चो के ऑनलाइन शिक्षण कार्यक्रम, मिशन प्रेरणा तथा मिशन कायाकल्प में बाधा उत्पन्न हो रही हो या फिर विपरीत प्रभाव पड़े, उन्हें माफ़ नहीं किया जाएगा।

बच्चा हो या शिक्षक, दोनों परेशान हैं। फिर चाहे वह दिल्ली का हो या गली का। मोबाइल से आँखें गड़ाए छात्रों और शिक्षकों की स्थिति अवर्णनीय है। न बताए बनता है न सुनाए। अब आपको क्या बताएँ कैसी-कैसी बीमारियाँ हो रही हैं। भूलकर भी डॉक्टर के पास चले जाएँ तो बिना पूछे कोरोना के नाम पर 14 दिन के कोरंटाइन में ढकेल दिया जा रहा है। कभी-कभी लगता है इऩ ऑनलाइन कक्षाओं, वर्कशीट, रिविजन शीट, व्हाट्स ग्रुपों से अच्छा तो कोरंटाइन ही है। कम से कम वहाँ ऐसोलेशन में शांति तो मिलती है। कई निजी संस्थान ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर बच्चों के अभिभावकों से अंधाधुंध कीमतें वसूल रहे हैं। सरकारी स्कूल के बच्चे इसी भंवर में अटके हैं कि आगे क्या होगा? असल सवाल यह है कि जिन घरों में लॉकडाउन के चलते दो जून की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो गया है, उनके बच्चे आनलाइन कक्षाओं में हिस्सा ले पायेंगे, क्या उन घरों में एंड्रायड फ़ोन हैं और हैं भी तो पहले से ही मुश्किलों में जी रहे ये घर इंटरनेट भरवाने की हालत में हैं? खाने को आटा नहीं है बात हो रही है डाटा की। जो भी हो बच्चे और शिक्षक दो पाटों के बीच में है। दोनों पीसने वाले हैं। देखिए दोनों का आटा कब बनता है।

इतना सुनना था कि डॉक्टर के कान से खून बहने लगा।