पाठ्य पुस्तक से इतर भी हो सकता है भाषा शिक्षण / मनोहर चमोली 'मनु'

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भाषा शिक्षण पर आसानी से विमर्श हो सके, सो नीचे एक छोटा सा अंश दिया गया है। यह अंश नंदन बाल पत्रिका के जून 2011 में प्रकाशित कहानी ‘अंगूर खट्टे हैं’ से लिया गया। इस अंश को ही लेने में कोई विशेष कारण नहीं है। बस भारतीय परिवेश में रची-बसी शुरुआती कहानी की प्रारंभिक पंक्तियां हैं। ‘लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थी, तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया। लाली उसके पास गई। जिराफ ने लाली को देखा। “अंगूर खट्टे हैं।”-कहकर वह मुसकराकर चला गया। “हुंह, मेरा मजाक उड़ा रहा था!” -लाली गुस्से में बड़बड़ाई।’ उपरोक्त मात्र बयालीस शब्दों से हम भाषा के विस्तार में जा सकते हैं। यही नहीं व्याकरण की दृष्टि से भी कक्षा-कक्ष में इसी अंश से कई वादन चल सकते हैं। साथ ही इसी अंश से गणित, विज्ञान, पर्यावरण, सामाजिक विज्ञान, कला के साथ-साथ गृह विज्ञान विषयक छोटी-बड़ी बातें-चर्चा-गृह कार्य, बातचीत और लेखन भी किया जा सकता है।

इसी अंश से क्यो? हम किसी भी किताब से-किसी भी अखबार से कोई अंश यूं ही चुन लें, तो हम पाते हैं कि छोटे से अंश में-पांच-सात पंक्तियों में भाषा शिक्षण के कई रहस्य छिपे हुए हैं। यह कोई नया विमर्श भी नहीं है। बस इसे व्यावहारिकता में लाने की आवश्यकता है। उपरोक्त अंश को हम किसी कक्षा विशेष से बांधकर भी नहीं देखना चाहते। कक्षावार बातचीत-चर्चा और शिक्षण को व्यापक या सूक्ष्म किया जा सकता है। बहरहाल हम बुनियादी और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के भाषा शिक्षण को केन्द्र में रखकर चर्चा को विस्तार देने की कोशिश करेंगे।

हम सभी जानते हैं कि अध्यापक कक्षा-कक्ष की और शिक्षण व्यवस्था की धूरी है। वह चाहे तो सभी विषयों का शिक्षण भाषा की कक्षा में कर सकता है। दूसरे शब्दों में यहां हम भाषा (हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत) को केन्द्र में रखते हुए अन्य विषयों के साथ भाषा का संबंध को जोड़ते हुए विस्तार में जाने का प्रयास करेंगे।

हम जानते ही हैं कि जब कोई भी औसत बच्चा पहले दिन स्कूल में आता है तो वह कोरा नहीं होता। उसके पास लगभग पांच हजार शब्दों की स्मृति अपने नजरिए से उनके अर्थों के साथ होती है। वह मोटे तौर पर उनके रूप,गुण स्वभाव से भी परिचित होता है। मसलन वो गरम तवे को जानता है। एक बार छूने से मिले उसके स्वभाव से परिचित है। वह चाय, दूध और दवाई की गंध को स्वादानुसार पहचानता है। भले ही आप उसका रंग एक कर दें या एक जैसे पात्र में दे दें। वह कटोरी, गिलास, चम्मच और थाली को उनके आकार के हिसाब से पहचानता भी है और जानता भी है कि किस पात्र को किस काम में लाया जाता है। मसलन अगर आप चाय के लिए बरतन मांगेगे तो वह गिलास या कप ही लाएगा, थाली नहीं। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि बच्चे के लिए भाषा शिक्षण कक्षा का हिस्सा बाद में बनता है, पहले वह घर में ही दुधबोलीे से अपनी भाषा का नजरिया बनाने लगता है।

अब शिक्षक पर है कि वो कोर्स की किताबी दुनिया से बाहर हट कर भी भाषा शिक्षण के तकनीकी पक्ष को छोड़ते हुए बच्चे की भाषाई योग्यता में विकास कैसे करे। मसलन हम कहानी के उसी छोटे से अंश के पहले वाक्य से शुरू करते हैं। ‘लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थी, तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया।’ हम चर्चा कर सकते हैं। विस्तार के लिए सवाल बना सकते हैं। मसलन, जानवरों के क्या-क्या नाम रखे जा सकते हैं। बच्चे जो भी नाम बताएंगे,सबको सही माना जाना चाहिए। वे संज्ञा भी बता रहे हैं। लोमड़ी मांसाहारी जीव है। मांसाहारी जीव और कौन-कौन से हो सकते हैं। यह चर्चा थोड़ी सी जटिल हो सकती है। सभी बच्चे मांसाहारी-शाकाहारी जंतुओं की पहचान नहीं कर पाते। इसे विस्तार में ले जाया सकता है। बच्चे जीव विज्ञान के साथ-साथ यहां पर्यावरण पर भी अपनी समझ बढ़ाते हैं। इसी वाक्य में नाम,वस्तु,स्थान आदि से संज्ञा के दर्जनों उदाहरण देकर विस्तार किया जा सकता है। जंगल शब्द पर तो असीमित चर्चा और गतिविधियां कराई जा सकती है। जंगल पर चर्चा करते हुए हम बच्चों में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण की समझ को पुख्ता बना सकते हैं। जिराफ की चर्चा कर बच्चों को कल्पना की दुनिया की सैर कराई जा सकती है। विज्ञान और पर्यावरण से जोड़ते हुए हम जीवों की शारीरिक बनावट पर भी असीमित चर्चा करा सकते हैं। इसी एक वाक्य के इर्द-गिर्द हम बच्चो को लोमड़ी, लाली से लाल और अन्य रंगों की पहचान के चित्रों का संकलन,जंगल,जिराफ,अंगूर के साथ-साथ अन्य फलों के चित्रों का संकलन और उन्हें बनाने की दिशा में बच्चों को ले जा कसते हैं। सिर्फ एक ही वाक्य के शब्दों से कई वादनों तक भाषा शिक्षण कराया जा सकता है।

मेरा मानना है कि भाषा शिक्षण को व्याकरण ग्रहण-प्रयोग और उसकी परिभाषा के बंधन से तोड़ने की जरूरत है। उच्च प्राथमिक कक्षाओं तक तो उसे व्याकरण के तकनीकी पक्ष से मुक्त ही रखना चाहिए। उच्च कक्षाओं में वो भाषा के बंधनों को आसानी से खोल लेगा। पहले बच्चों को उसके प्रयोग की खुल कर आजादी देने की जरूरत है। वह बाद में जान ही लंेगे कि वे बहुधा बातचीत में-लेखन में व्याकरण का प्रयोग ही करते आए हैं। इसी पहले वाक्य से हम बच्चों को नए वाक्य लिखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जैसे जंगल, अंगूर, दिखाई के सहारे बच्चों को कहा जा सकता है कि वे दो-दो वाक्य बनाएं। सामूहिक रूप से भी श्यामपट्ट पर इसे विस्तार दिया जा सकता है। यही नहीं अर्थों वाले शब्द भी छांटकर लिखवाएं जा सकते हैं। जैसे, मुसकराकर, मजाक। भाषाई विस्तार के लिए बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है कि वे जंगल, जिराफ, अंगूर पर चार-छह पंक्तियां लिखिए। (““) अंश में विराम चिह्न भी आएं हैं, इसकी सहायता से विराम चिह्नों की जानकारी और अभ्यास कराया जा सकता है। स्वाद और भाव पर भी व्यापक चर्चा कराई जा सकती है।

इस छोटे से अंश में रचनात्मकता के भी खूब अवसर हैं। अंगूर को फलों के साथ जोड़ते हुए अन्य बच्चों के आस-पास पाये जाने वाले फलों की सूची बनवाई जा सकती है। उन्होंने जिन वृक्षों को देखा है, वे उनके नाम लिख सकते हैं। वे जिन जानवरों को रोजमर्रा के जीवन में देखते हैं। उनके बारे में भी लिखवाया जा सकता है। रचनात्मकता की तो कोई सीमा ही नहीं है। लाली लोमड़ी और जिराफ को आधार बनाकर संवाद शैली में बच्चों से बहुत कुछ लिखवाया जा सकता है। अभिनय करवाया जा सकता है। कक्षा को कुछ समूह में बांटकर इसी अंश को आधार मानकर नई कहानी लिखवाई जा सकती है। समूह कक्षा के स्तर से छोटे-बड़े हो सकते हैं।

हमने यहां बातचीत को जो विस्तार दिया है, वह सिर्फ साभार लिए गए कुल बयालीस शब्द के अंश भर से हो पाया है। संभावनाएं असीमित होती हैं, बस जरा सी रचनात्मकता भर से हम कुछ भी बेहतर करने की दिशा में पहला कदम तो बढ़ा ही सकते हैं।

भाषा शिक्षण के लिए केवल व्याकरण की पुस्तक ही हो हमारे पास या पाठ्य पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास के सहारे ही भाषा शिक्षण हो, यह जरूरी नहीं। कक्षा-कक्ष में टंगे पोस्टर, चित्रादि, सूक्तियों के सहारे ही नहीं, मेज,कुर्सी, श्यामपट्ट, चॉक, बस्ता, कॉपी, किताबें, छात्र-छात्राएं (जो कुछ भी कक्षा-कक्ष के भीतर है) आदि से हम भाषा की समझ बना सकते हैं। मैं तो यहां तक समझता हूं कि यदि कक्षा में चालीस छात्र-छात्राएं हैं, तो संभवतः उनके नाम भिन्न होंगे। माता-पिता के नाम। उनके घर-गांव-मुहल्ले आदि। इन सभी का संकलन-लेखन कराते हुए हम भाषायी दक्षताएं भी हासिल कर सकते हैं। यही नहीं बच्चे समूह में प्रोजेक्ट कार्य भी कर सकेंगे। एक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे एक-दूसरे के परिवार के बारे में भी जान सकेंगे। यह संभावना असीमित है कि शिक्षक क्या-क्या करा सकता है।