बंद कमरा / भाग 17 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

Gadya Kosh से
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अनिकेत कहाँ हो तुम? वह आस-पास तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। तो फिर इतनी जोर-जोर से दरवाजा कौन खटखटा रहा था? ऐसा लग रहा है जमकर बारिश हुई है। अभी भी ठंडी-ठंडी हवा बह रही है। रात के कितने बजे होंगे?कूकी दरवाजे पर चिटकनी लगाकर अपने कमरे के अंदर लौट आई थी। कोई जोर-जोर से 'कूकी' 'कूकी' कहकर चिल्ला रहा था. कौन होगा वह? अनिकेत? उसका चेहरा साफ नहीं लग रहा था।

क्या कूकी कोई सपना देख रही थी?उसकी नींद किसी के जोर-जोर से आवाज देने से खुल गई थी।वह उठते ही दरवाजा खोलने के लिए जल्दी से बाहर निकली। मगर अंधेरा होने की वजह से उसे दरवाजा नहीं मिल रहा था। वह अलमारी के दरवाजे को बाहर का दरवाजा समझकर बार- बार टकरा रही थी। अंतः में उसने दीवार पर हाथ रखा और धीरे-धीरेकर आगे बढ़ती गई तो दरवाजा मिल गया। मगर अलमारी के दरवाजे से टकरा जाने के कारण उसके सिर में चोट आ गई थी और सूजन आने की वजह से सिर में दर्द होने लगा था। उसके बावजूद भी वह अंधेरे में तेजी से भागते हुए दरवाजे के पास पहुँच गई।

शायद अनिकेत आ गया है। वह दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। मगर जब उसने दरवाजा खोलकर देखा तो वहाँ पर कोई नहीं था।उसके पाँव कुछ समय के लिए दहलीज के पास आकर रुक गए। तब कौन हो सकता है दरवाजे पर दस्तक देने वाला? हवा? या वह अभी भी सपना ही देख रही है?

कूकी को रोना आ रहा था। अनिकेत किसी तकलीफ में तो नहीं फँस गया है? क्या वह बड़ी बेचैनी के साथ अपने परिवार को तो नहीं खोज रहा है? ऐसी आपदा के समय कौन उसकी मदद करेगा? सभी की हालत तो एक जैसी है। इस मूसलाधार बारिश में हर परिवार का कोई न कोई आदमी कहीं न कहीं बाहर पानी में फँस गया होगा। कौन उसके साथ इस मौसम में अनिकेत को खोजने के लिए बाहर निकलेगा?अनिकेत ने दोपहर के समय एक बार कूकी को फोन किया था, "कूकी, यहाँ मूसलाधार बारिश हो रही है। बारिश जब कुछ थम जाएगी, तब मैं घर लौटूँगा।" कहते-कहते बीच में ही फोन कट गया था।

अनिकेत की जगह के बारे में भी कूकी पूछ नही पाई। तब से लेकर अब तक अनिकेत की कोई खबर नहीं। टेलीफोन लाइन खराब हो गई थी। मोबाइल में भी टावर का सिगनल नहीं आ रहा था। अनिकेत अब तक घर क्यों नहीं आया?

उसको लग रहा था कि इस जल-प्रलय में सभी डूब जाएँगे। दिन भर लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी। रास्तों पर जल का स्तर बढ़ता ही जा रहा था। अगर इसी तरह पानी का स्तर बढ़ता रहा तो सारी मुंबई नगरी पानी में डूब जाएगी। सारे ठौर-ठिकाने हमेशा-हमेशा के लिए इस मूसलाधार बारिश के साथ बहकर चले जाएँगे। साथ ही उनके अपूरित असंख्य सपने, आशाएँ और आकांक्षाएँ। महाकाल की गोद में समा जाने के लिए कितना कम समय लगता है! शायद कल की सुबह होते-होते अनिकेत और कूकी का नाम इस धरती पर नहीं हो। समुन्दर के गर्भ में अथाह जलराशि के नीचे उनके सुख-दुख, पाने- खोने की सारी बातें अर्थहीन हो जाएगी।कुछ जीवन फिर भी शेष बचेगा।

जिस तरह एक महाप्रलय के बाद सृष्टि में शेष रह जाते हैं थोड़े-से बीज, कुछ विशेष फूलों के अंश, कुछ चिड़ियों का क्षीण गुंजन और कुछ डरे-सहमे जीवन। बचे हुए वे जीवन फिर से बिना किसी राग-द्वेष तथा खून खराबे की दुनिया का निर्माण करते हैं। फिर से एक बार सृजन की प्रक्रिया आरंभ होती है। थोड़े-से बीज खेतों में फसल बनकर लहलहाने लगते हैं। फूलों के अंश बगीचों में बदल जाते हैं। चिडियों के गुंजन आकाश को संगीतमय बना देते हैं. डरे सहमे इंसान फिर से ईर्ष्या-द्वेष की मायानगरी में फँसकर एटम बम बनाने लगते हैं।

कूकी को अंधेरे में इधर-उधर हाथ घुमाने पर एक टॉर्च मिल गई।उसने टॉर्च की मदद से दीवार घड़ी में देखा कि रात के दो बजने जा रहे थे। बाहर अभी भी मूसलाधार बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। कूकी अंधेरे में बैठकर अनिकेत का इंतजार कर रही थी। वह आज से पहले कभी भी इतना प्यारा नहीं लगा था। घर की मुर्गी दाल बराबर। शायद कोई भी अस्तित्व पास में होने की वजह से अपना महत्व खो देता है।अनिकेत पास होकर भी उसके पास नहीं था। दोनों एक साथ बैठकर चाय पीते थे, लड़ाई-झगड़ा करते थे, ज्वाइंट पास-बुक में एक साथ पैसा रखते थे, अपने मन के मुताबिक घर बनवाते थे और बच्चों का जीवन सँवारने में लगे रहते थे। मगर उसके मन में अनिकेत के लिए लेशमात्र भी श्रद्धा के भाव नहीं थे। उसे एक कविता की पंक्ति याद आ गई, "तुम मेरी सुंदरी विधवा, मैं तेरे पति का कंकाल।"

कूकी की आँखें आँसुओं से भर आई। उसे ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत कंधों तक गहरे पानी में फँस गया हो और अगर एक बित्ता पानी का स्तर और बढ़ गया तो खड़े-खड़े उसकी जल समाधि लग जाएगी।कूकी डूबते अनिकेत का पीला पड़ा हुआ चेहरा, पानी के बहाव से फिसलते हुए उसके पैर और जीवन बचाने की प्रार्थना में ऊपर उठे हुए हाथों की कल्पना करके जोर-जोर से रोने लगी। यह अनिकेत के प्रति प्रेम है अथवा स्वार्थगत अपनी असुरक्षा का भाव। अगर यह प्रेम है तो इसका मतलब यह हुआ कि कूकी के दिल के किसी कोने में अनिकेत के प्रति प्रेम आज तक छुपा हुआ था।

हाँ, वह अनिकेत से प्यार करती है। उसके बिना कूकी का अस्तित्व अधूरा है, उसकी दुनिया अधूरी है। अभी तक उसके दोनो बच्चें छोटे हैं, अपने पैरों पर खड़े होने में उन्हें समय लगेगा। उसके जीवन के नाटक का अभी तक पटाक्षेप नहीं हुआ है। लौट आओ, अनिकेत, लौट आओ। तुम तो शफीक नहीं कि मेरा घर छोड़कर चले जाओगे।

क्या नाराज हो गए हो अनिकेत? क्या तुम्हें मेरी गुप्त दुनिया के बारे में पता चल गया है? क्या यही कारण है, एक भयंकर अपराध-बोध मुझे सारी रात डसता जा रहा है ? क्या यह सब मेरे पापों का फल है? क्या तुम्हें खो देना मेरे लिए प्रायश्चित है? क्या तुम भी शफीक की तरह मुझे मंझधार में छोड़कर चले जाना चाहते हो, अनिकेत?

तभी नींद में छोटा बेटा बड़बड़ाने लगा। कूकी दौड़कर उसके पास चली गई। अब तक उसकी आँखें अंधेरे में देखने के लिए अभ्यस्त हो चुकी थी। नींद में छोटे बेटे की बड़बड़ाहट अस्पष्ट थी। कूकी उसकी पीठ पर अपना हाथ घुमाते हुए कहने लगी "बेटे, कोई सपना देख रहे हो? सो जा, मेरे लाड़ले, सो जा।"

दोनों बच्चे अपने पापा को घर नहीं आया देखकर बुरी तरह से डर गए थे।उन्होंने तरह-तरह के सवाल पूछकर कूकी को परेशान कर दिया था, "पापा अभी तक क्यों नहीं लौटे हैं? आपने पापा को कार ले जाने के लिए क्यों नहीं कहा?मम्मी, पापा कहाँ होंगे? कहीं पापा पानी में बह तो नहीं गए होंगे? अगर पापा घर नहीं लौटे तो हम लोग क्या करेंगे?"

बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई को जोर से डाँटा था, "चुप, अंट-शंट क्यों बोल रहा है?"

कूकी ने अपनी बाहें फैलाकर अपने दोनो बेटों को सीने से लगा लिया था। अपने मन के सारे दुखों को छुपाते हुए वह कहने लगी, "तुम लोग व्यर्थ में परेशान हो रहे हो? मैं हूँ न। पापा जरुर लौट आएँगे। जैसे ही बारिश थम जाएगी, वैसे ही हम चाचा और मामा को फोन करेंगे। पापा को कुछ नहीं होगा। मूसलाधार बारिश के कारण पापा कहीं रुक गए होंगे। जैसे ही बारिश खत्म हो जाएगी, वसे ही पापा खुद फोन करेंगे।"

रात को कूकी ने जैसे- तैसे करके खाना बनाया, मगर दोनो बच्चों ने ढंग से खाना भी नहीं खाया। वह खुद भी भूखी रही। कूकी अपने बेटों के साथ पलंग पर लेटे-लेटे अनिकेत का इंतजार कर रही थी।बच्चों को तो इंतजार करते-करते नींद आ गई थी, मगर कूकी की आँखों में नींद कहाँ?

उसेक लिए बहुत ही खराब समय चल रहा था। ना उसके पास शफीक था और ना ही अनिकेत। कल तक वह अपनी काल्पनिक दुनिया में खोई हुई थी। कल तक वह अनिकेत के सहारे अपने दर्दनाक जीवन को घसीट रही थी।आज दोनों में से कोई उसके पास नहीं है। कूकी को ऐसा लग रहा था मानो वह अनिकेत के साथ वाणी विहार लेडीज हॉस्टल के सामने खड़ी होकर घंटो-घंटो तक बातें कर रही थी। और शफीक अभी-अभी आकर उसको पेरिस साथ जाने के लिए कह रहा था।

पेरिस का नाम दिमाग में आते ही उसे शफीक द्वारा भेजी गई पिकासो वाली पेंटिंग याद आने लगी। पेंटिंग का नाम था, "ले कोकू मेनेफिक"। रुखसाना, जानती हो इसका मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है, वह पत्नी जो अपने पति को छोड़कर दूसरे मर्दों के प्रेम में मस्त रहती है। वह पेंटिंग बहुत ही अद्भुत थी। एक औरत पहिये वाली गाड़ी में अपने पैर के ऊपर पैर रखकर सोई हुई है। पैरों के बीच से उसके यौनांग साफ दिखाई दे रहे थे। एक नंगा आदमी उस पहिये वाली गाड़ी को खींच रहा है और कुछ नंगे आदमी उस दृश्य को छिपकर देख रहे हैं। पेंटिंग में बाईं तरफ एक लड़की फ्रॉक पहनकर घोड़े के ऊपर खड़ी है और उसके हाथ में खुला हुआ एक चाबुक है।

कूकी को उस पैंटिंग का भावार्थ मालूम नहीं था। वह शफीक की भाँति कोई पेंटर नहीं थी। फिर भी पता नहीं क्यों, उसे मूसलाधार बारिश की उस अंधेरी रात में पिकासो की वह तस्वीर याद आने लगी। ले कोक मेनेफिक मतलब वह औरत जो गैर मर्दों के प्रेम में मस्त रहती हो।वह एक विचित्र पापबोध से ग्रस्त होती जा रही थी। आज तक उसके मन में कभी भी इस तरह पाप की भावना नहीं आई थी मगर आज पता नहीं क्यों? ओह! अनिकेत,तुम लौट आओ, आओ देखो, मैं कितनी बेचैनी से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।

कूकी की आँखें फैली की फैली रह गई या पता नहीं, कहीं यह हेलुसिनेशन तो नहीं था? वह दूर से अनिकेत को देख रही थी, मंद रोशनी में वह एक जिन्न की तरह लग रहा था। उसके हाथ अपने आप अनिकेत की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसको छूने और गले लगाने के लिए।