बंद कमरा / भाग 18 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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उसके हाथ अपने आप अनिकेत की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसको छूने और गले लगाने के लिए। यद्यपि उसे अनिकेत को सुबह-सुबह घर की दहलीज पर सिर से पाँव तक एक फोटो की तरह खड़े देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। उसको देखते ही कूकी की अलसाई आँखों से नींद उड़ गई और उसके होंठ थरथराने लगे। कूकी ने अनिकेत को हाथ आगे बढ़ाकर अपनी छाती से लगा लिया मानो उसके बिना कूकी का कोई अस्तित्व नहीं था। अनिकेत, तुम्हारे बिना हम नहीं जी सकते।

"अंदर चलो, अन्दर चलो। बाहर खड़ी होकर यह क्या नाटक कर रही हो।" कहते-कहते अनिकेत कूकी को एक तरफ करते हुए घर के अंदर चला गया। उसके हिसाब से मानो बीते अड़तालीस घंटो में कुछ भी नहीं हुआ था मानो बाकी दिनों की तरह वह आज भी ऑफिस से घर लौटा हो। अनिकेत की आवाज सुनते ही बच्चें बिस्तर छोड़कर फटाफट उसके पास आ गए और पूछने लगे, "पापा अभी तक आप कहाँ थे? आप तो जानते ही हो मूसलाधार बारिश और बाढ़ ने मुम्बई में चारों तरफ तबाही मचाई है। लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आए हैं। हम लोग तो बुरी तरह से डर गए थे कि कहीं आप भी बाढ़ की चपेट में नहीं आ गए हो। नहीं तो, आपने अपनी सही सलामती का हमे फोन क्यों नहीं किया ?"

"बच्चो, मैं तो ऑफिस में था। ऐसे कैसे बाढ़ की चपेट में आता? मैने तुम्हारी मम्मी को फोन किया था।"

"फोन पर पूरी बात कहाँ हुई? बीच में ही फोन कट गया था। उसके बाद तो आपने फोन भी नहीं किया।"

छोटे बेटे ने कहा, "जब आप सही सलामत अपने ऑफिस में थे। तब फिर मम्मी फूट-फूटकर क्यों रो रही थीं?"

"तुम्हारी मम्मी बहुत बड़ी नाटकबाज है। क्या मैं किसी झुग्गी झोपड़ी में काम करता हूँ कि थोड़ी सी बाढ़ आने पर मैं उसके साथ बह जाऊँगा?"

अनिकेत का व्यंग्य-बाण कूकी से सहा नहीं गया। वह विरक्त होकर कहने लगी, "कोई भी दैवी-आपदा अमीर- गरीब को नहीं देखती है।"

"ठीक कहती हो, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि छोटे बच्चों के सामने रोना-धोना करके उन्हें नर्वस करो। तुमने आज जिस तरह से मुझे अपनी बाहों में लिया, तभी मैं समझ गया था कि तुमने बच्चों को बहुत नर्वस किया होगा। तुम कभी-कभी मूर्ख गँवार औरतों की तरह व्यवहार क्यों करती हो?"

"एक बात कहूँ, बुरा मत मानना। तुम्हें इतना घमंड किस बात का है? आई.आई.टी. से इंजिनियरिंग करने का मतलब यह तो नहीं है। ऐसे भी तुम्हारे परिवार के सभी लोगों में अहम-भाव कुछ ज्यादा ही है।"

"क्यों, तुम्हारा बाप कमा कर देता है इसलिए वे लोग घमंड का प्रदर्शन करते हैं? तुम्हारे घर वालों के बारे में बताऊँ ....?"

अनिकेत के गुस्से को देखकर बड़ा बेटा कहने लगा, "पापा, प्लीज, चुप रहिए न। सुबह-सुबह किचर-किचर करना अच्छा लगता है?"

कूकी बड़े बेटे का मूड़ भाँपते हुए अनिकेत से पूछने लगी, "चाय बनाती हूँ?"

वह पहले से जानती थी कि अनिकेत बिना कपड़े बदले घर की किसी चीज को हाथ नहीं लगाएगा. सबसे पहले वह अपनी शर्ट पेंट खोलकर वाशिंग मशीन में डालेगा फिर लूंगी पहनकर अपनी अंगूठी व घड़ी साफ करने के बाद सोफे के ऊपर जाकर बैठ जाएगा। अति साफ-सफाई रखने वाली बीमारी से ग्रस्त होने के कारण उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था।

अनिकेत को टॉवेल देकर कूकी रसोई घर के भीतर चली गई। रसोई-घर में जाते ही उसे याद आया कि घर में आटा खत्म हो गया है। तेज बारिश होने की वजह से कॉलोनी में ब्रैड बेचने वाले भी नजर नहीं आ रहे थे।वह दो दिन से चूड़े का उपमा बनाकर बच्चों को खिला रही थी। अनिकेत को चूड़े का उपमा पसंद नहीं है। वह तो यह भी सुनना नहीं चाहेगा कि तेज बारिश की वजह से वह डिपार्टमेंटल स्टोर नहीं जा पाई। यह सुनकर वह गुस्से से तमतमा उठेगा और कहने लगेगा, "मैं दो दिन घर में क्या नहीं रहा,घर की सारी व्यवस्था बिगड़ गई। तुम दो दिन घर नहीं चला पाई।"कूकी ने अंत में काफी सोचने के बाद अनिकेत के लिए सूजी का उपमा बना दिया। अनिकेत स्नान करने के बाद पूजा करने लग गया, तब तक कूकी घर के सामान सामानों की लिस्ट बनाने लगी,कि उसे इस महीने कौन-कौन सा परचूनी सामान खरीदना हैं? अनिकेत प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक पूजा करता है, मगर कूकी कभी नहीं। दोनों का स्वभाव अलग-अलग होने के बाद भी तकदीर ने उन्हें जोड़ दिया था। सबसे बड़ी अचरज की बात यह थी कि दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर प्रेम-विवाह किया था. मगर दुनियादारी में कदम रखने के बाद उसे पता चला कि अनिकेत प्रेक्टिकल आदमी है। कूकी कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है जबकि अनिकेत कुछ ज्यादा ही संवेदनहीन।

अब तक अनिकेत की पूजा समाप्त नहीं हुई थी। कूकी डायनिंग टेबल पर उसका नाश्ता रखकर बालकनी में चली गई। वहाँ से वह बरिश में डूबी हुई मुंबई का नजारा देखने लगी। मुंबई की गगन-चुंबी इमारतें और सड़कें दूर- दूर तक कमर तक पानी में डूबे हुए नजर आ रहे थे। अभी तक रास्तों में पानी का भराव साफ नजर आ रहा था। अगर कूकी भी अनिकेत की बात मानकर ऊपर वाला फ्लैट नहीं लेती तो शायद उनके घर में पानी घुसने की नौबत आ जाती। कूकी को ऊपर वाला घर एक कैदखाने की तरह लग रहा था। उसके हिसाब से नीचे वाले घर का एक अलग आकर्षण होता है।कूकी को नीचे वाले घर का सजा सजाया बगीचा छोड़कर जाने में बड़ा दुख लग रहा था। बच्चें भी उस घर को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे। बड़े बेटे ने उस घर में एक रातरानी का पौधा लगाया था, जो देखते-देखते काफी बड़ा हो गया था। उस पेड़ से उसे बहुत लगाव था, अतः वह उसे छोड़कर किसी दूसरे घर में नहीं जाना चाहता था। वह अक्सर कहता था, नीचे वाले घर में रहने की वजह से उसे स्कूल बस पकड़ने में आसानी रहती है।छोटा बेटा स्कूल बस का हॉर्न सुनते ही बेल्ट और जूते हाथ में पकड़कर भागते हुए बस पकड़ लेता था। अब ऊपर वाले घर में रहने के कारण बस पकड़ने के लिए पहले से ही तैयार होकर बस स्टाप तक पहुँचना पड़ता है .

अनिकेत अपना तर्क देता था, "यह घर सबसे पुराना है। दीवारों में चारों तरफ से रिसाव हो रहा है। घर के सारे दरवाजें ढीले हो चुके हैं। कॉलोनी के सभी लोग नए फ्लैट में जाना चाहते हैं। केवल तुम लोग इस मकान को छोड़ना नहीं चाहते हो। एक बार जाकर नया फ्लैट तो देखो। देखने में कितना सुंदर और आधुनिक डिजाइन का लग रहा है! इसके अलावा, उसमें एक बड़ा कमरा अलग से बना हुआ है, जिसे बच्चों के स्टडी-रुम के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यू शुड बी मॉडर्न। आदिवासियों की तरह बाड़ी, बगीचा, कुँआ, सहजन के पेड़ आदि से अभी तक चिपके हुए हो? इस घर से ऐसा-कैसा मोह है?"

कूकी के लिए अनिकेत की इच्छा के विरुद्ध जाना सम्भव नहीं था। अनिकेत की बात को मानते हुए उन्होंने कुछ ही दिन पहले वह मकान छोड़कर नए फ्लैट में प्रवेश किया था. अब उसे इस बात पर विश्वास हो गया था, भगवान जो भी करता है, अच्छे के लिए ही करता है। नहीं तो, अगर वे मूसलादार बारिश के समय पुराने घर में रहते होते तो शायद उनकी हालत खराब हो गई होती।

अनिकेत कूकी को डायनिंग टेबल के पास बुलाकर अपनी थाली में डाले हुए उपमा को कम करने के लिए कहने लगा।

कूकी पहले से जानती थी कि अनिकेत उपमा पसंद नहीं करता था। इसलिए वह उससे पूछने लगी, "दूध कॉर्न फ्लेक्स दे दूँ? घर में आलू-प्याज, आटा, ब्रैड कुछ भी नहीं है।"

"घर में आते ही नहीं का नाटक शुरु हो गया।"

"इतनी तेज बारिश में न तो मैं सामान खरीदने के लिए जा पाई और न ही बच्चे को भेज पाई।"

अनिकेत नाश्ता करने के बाद तुरंत ऑफिस की तरफ रवाना हो गया। जाते-जाते वह कहने लगा "अगर आज केजुअल लीव ले लेता तो उसके लिए अच्छा रहता। मगर ऑफिस में कुछ ऐसा काम फँस गया है कि केजुअल लीव लेना उचित नहीं होगा। जानती हो, हम लोग पिछले दो दिनों से ऑफिस में बहुत परेशान हुए हैं। किसी को पता नहीं था कि ऑफिस बस बीच किसी रास्ते में फँस गई थी। कैण्टीन का खाना खाकर रहना पड़ा था दोनो दिन। मैं अपना और नामदेव का टेबल पास-पास सटाकर उसके ऊपर सो गया था।"

"यह नामदेव कौन है?"

"अरे, वही महा डरपोक आदमी। इतनी तेज बारिश में भी वह अपने घर चला गया। वह अपने माँ-बाप के साथ बान्द्रा में रहता है। मुझे नहीं लगता कि वह अपने घर पहुँच पाया होगा। इधर उसके घर वाले परेशान हो रहे होंगे। उसके घर से बार-बार ऑफिस में फोन आ रहा था। उसके लिए सबसे बड़ी दिक्कत वाली बात थी उसकी पत्नी का पेट से होना।"

और अनिकेत ज्यादा कुछ नहीं कहकर तेजी के साथ घर से बाहर निकल गया।वह बाहर जाते-जाते कह रहा था "तुमने जो सामान की लिस्ट मुझे दी है, वह सारा सामान शाम को ही खरीद पाऊंगा? नहीं तो फिर खुद मार्केट काम्प्लेक्स जाकर खरीद लेना।"

अनिकेत के जाने के बाद बड़े बेटे ने कहा, "मुझे फिजिक्स की ट्यूशन जाना है। बारिश बंद हो गई है, मैं जा रहा हूँ।"

बड़े बेटे के बाहर जाते ही छोटा बेटा कहने लगा, "मम्मी, मैं जिमी के घर जा रहा हूँ। पता करके आता हूँ स्कूल कब खुलेगा? थोड़ा विडियो गेम भी खेलूँगा। मुझे आने में थोडी देर होगी।"

देखते-देखते एक घंटे के भीतर घर पूरा खाली हो गया। फिर से वही अकेलापन कूकी को काटने लगा। दिन में शफीक की यादें फिर से तरोताजा होने लगी। शफीक से बात किए बिना कितने दिन बीत गए थे ? वह शफीक को भूलने लगी थी। क्या वह शफीक से नाराज थी? उसे शफीक से नफरत हो गई थी? या फिर परिस्थितियों के सामने वह सिर झुकाने के लिए मजबूर थी? वह अभी क्या कर रहा होगा? कहाँ होगा वह? काश! यह मन एक ब्लैकबोर्ड की तरह होता। एक बार मिटा देने से सब कुछ मिट जाता। तब उसके लिए कोई समस्या नहीं रहती।

शफीक, अभी कहाँ हो तुम? क्या जेल में? या अपने घर में? या अपने डिपार्टमेंट में अपने पुराने कारोबार के साथ? ग्रुप सेक्स या अपने प्रोफाइल में?

क्या कभी तुम्हें रुखसाना की याद आती है? पता नहीं, अभी भी शफीक की यादें कूकी के कोमल दिल में भीगी हुई मिट्टी की तरह जिन्दा है। वह यह अच्छी तरह जानती है शफीक कभी भी उसके जीवन में अनिकेत की तरह लौटकर नहीं आ सकता है। इतना जानने के बाद भी क्या वह अपने शफीक को भूल सकती थी?

शफीक, कहाँ हो तुम? देखो, ज्येष्ठ महीने की दोपहर की भाँति जिंदगी कैसे पार होती जा रही है! मेरी जिंदगी ठूंठ की ठूंठ रह गई है। ना चिड़ियों की कोई चहचहाट सुनाई देती है और ना ही किसी को छाया मिलती है। मेरा जीवन सूना-वीराना पड़ा है। मेरे जीवन के पेड़ की शाखाएँ-प्रशाखाएँ उदास हो गई है और अपने हाथ आकाश की तरफ उठा दिए हैं। दिल के अंदर प्रेम का झरना सूखता जा रहा है। उस झरने पर लगातार गरम हवा के झोंके चल रहे हैं तथा पहचान में नहीं आने वाली तरह-तरह की परछाइयाँ बना रही है। शफीक, तुम भी अनिकेत की तरह मेरे जीवन में लौट आओ।

लौट आओ, मेरे जीवन में एक आतंकवादी बनकर नहीं, एक कवि बनकर, एक प्रेमी बनकर। क्या तुम वास्तव में जेल की चारदीवारी के भीतर कैद हो? इसलिए तुम चुप हो? क्या तुम अपनी रुखसाना को भूल गए हो? या फिर तुम्हें क्रूर काल के चक्र ने सब-कुछ भूला दिया है? शफीक, क्या तुम इंटरपोल के घेरे में भिनभिनाती हुई मक्खियों की तरह सवालों का जवाब देते-देते थक गए हो ?क्या तुम्हारा शरीर पुलिस की घोर यातना की वजह से लहुलुहान हो गया है? शफीक, तुम्हें बहुत कष्ट हुआ होगा ? मेरा मन बहुत दुखी है।मेरे साथ अक्सर ऐसा क्यों होता है? क्यों उठता है चाय के प्याले में तूफान? हाथ की पहुँच में स्वर्ग आते-आते अचानक छूट गया और नरक का अंधेरा उसके चारों तरफ घिरने लगा। मन ही मन प्रबल इच्छा हो रही थी कि एक आवरण बनकर तुम्हें ढक लूँ। जानते हो, शफीक, तुम्हारे और मेरे अंदर ज्यादा फर्क नहीं है। तुम भी एक कैदी हो, मैं भी एक कैदी। तुम्हें भी यातनाएँ दी जा रही है और मुझे भी।

नौकरानी घर का काम करके चली गई। कूकी कम्प्यूटर के सामने हाथ पर हाथ रखकर बैठ गई। उसे ऐसा लग रहा था मानो उस कुर्सी पर बैठे हुए एक युग बीत गया हो । की-बोर्ड पर उसकी अंगुलियाँ चले हुए बहुत दिन बीत गए थे। कोई जमाना था यह जगह कितनी प्यारी लगती थी। आज उसी कुर्सी पर बैठने से मन भारी उदास हो जाता है। इंटरनेट लगाने पर एक शरारती दरबान की भाँति हँसते हुए कम्प्यूटर बताने लगा, यू हेव जीरो अनरेड मेसेज। और इनबॉक्स खोलने का क्या मतलब था? कूकी वहीं से वापस लौट आती थी।

कूकी ने फिर भी मन मसोसकर शफीक के आखिरी ई-मेल को खोला और पढ़ने लगी, "रुखसाना, लंदन बम ब्लास्ट के बाद मैं गिरफ्तार हो गया हूँ।" एकदम छोटा-सा ई-मेल जिसकी अंतिम पंक्ति थी, "इंशा अल्लाह, वी विल मीट अगेन।" कूकी के दिल में अभी भी शफीक के लिए आशा की किरण जगी हुई थी। अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था। सोचते-सोचते वह शफीक के द्वारा लिखी हुई कुछ कविताएँ पढ़ने लगी। कितनी प्रेम-रस से भरी कविताएँ थी वे! उसे सब कुछ सपने की तरह लग रहा था। वर्डपैड खोलकर वह अपने दिल की व्यथा को लिखने लगी।

कभी
भयंकर नीरवता में
सुषुप्ति और जागृति के मध्य
मेरी चेतना की एक झलक में
तुम मेरे दिल के किसी झरोखे में दिखाई देते हो,
अचानक मैं उस झरोखे को बंद करती हूँ
सोई हुई यादों को जगाती हूँ
बहला फुसलाकर।
मैं उन सभी यादों को भूल जाना चाहती हूँ
नहीं चाहते हुए भी अतीत की तस्वीरें
मेरे मानस-पटल पर उभर कर सामने आती है।
कुछ अन सुलझे क्षण मुझे चिड़ाने लगते हैं
कभी उन्हीं क्षणों में तुम्हे हँसते हुए देखती थी
एक बार तुम्हें हँसते हुए देख
बालों में चमेली के फूल गूंथे थे
होठों पर लाल रंग लगाया था।
आज इन क्षणों की सुगंध मुझे पसंद नहीं
मैं तो अपने चेहरे को दर्पण में देखना भी भूल गई।

कूकी को अपने आप पर आश्चर्य होने लगा। कभी शफीक कविता लिखा करता था, मगर आज वह भी कविता लिखने लगी है। उसके दिल में अब तक कहाँ छुपा हुआ था कवित्व के छोटे-से झरने का यह उद्गम-स्थल? क्या उसे शफीक के पास यह कविता भेज देनी चाहिए। भले ही वह इस कविता का कोई उत्तर न दे।शफीक पूछताछ के बाद बाहर लौट आएगा? वह मन ही मन क्या सोच रहा होगा? क्या वह उसी बेसब्री के साथ रुखसाना के ई-मेल का इंतजार कर रहा होगा?

कूकी ने फिर एक बार इंटरनेट लगाया। उसने होमपेज खुलने से पहले अपनी आँखें बंद कर ली, क्योंकि अपने इनबॉक्स में जीरो मेसेज देखने की उसकी हिम्मत नहीं थी। उसने अंगुलियों के पोरों के बीच में से झाँककर देखा था, "यू हेव जीरो अनरेड मेसेज।" यह देखते ही वह शफीक के बारे में सोचते-सोचते दुखी हो रही थी। फिर भी जिद्दी अंगुलियाँ की-बोर्ड पर लिखने लगी, "हाऊ आर यू शफीक? योर रुखसाना।" उसने इस ई-मेल को शफीक के ई-मेल आई.डी. पर भेज दिया।उसमे अपनी कविता भेजने का साहस नहीं था ।

कूकी ई-मेल भेजने के बाद डर के मारे काँपने लगी। खुदा-न-खास्ता, अगर इंटरपोल का लम्बा हाथ उसकी गर्दन तक पहुँच गया तो? क्या करेगी वह? कौन है यह शफीक? तुम्हारे उसके साथ क्या सम्बंध है ? कूकी उस समय अपने कुटुम्ब और अपने देश के सामने क्या चेहरा दिखाएगी ?

कूकी अपनी भूल पर काफी समय तक पछताती रही, मगर अब और क्या किया जा सकता है?