बंद कमरा / भाग 4 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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आइ नो आइ एम नॉट ए परफेक्ट मेच फॉर यू। आइ नो आइ हेव कमिटेड सो मेनी बलंडर्स, बट आइ नीड़ यू टू फॉरगिव मी, माई बेबी गोडेस। आइ कान्ट लिव विदाउट यू एंड योर स्माइल।

उस आदमी के क्रियाकलापों को देखकर बार-बार कूकी दुःखी हो जाती थी। उस आदमी की वजह से वह काफी मानसिक यंत्रणा झेल रही थी। मगर वह चाहती तो हमेशा-हमेशा के लिए उस आदमी से अपने सम्बन्ध तोड़ देती, मगर वह ऐसा नहीं कर पा रही थी। एक अनजाना आकर्षण उसे हर समय उसकी तरफ खींचकर रखता था।

वह उसकी बातों से पूरी तरह सम्मोहित हो चुकी थी। ये सभी तो प्रेम की परिभाषा के अन्तर्गत आते हैं। वह एक अनोखे मायाजाल मे फँस गई थी। कम्प्यूटर के पास बैठे बिना कूकी नहीं रह पाती थी। बिना कुछ लिखे कूकी को अच्छा नहीं लगता था। उसको गंदी-गंदी गालियाँ देने तथा बुरी तरह अपमानित करने के बाद भी, यहाँ तक कि दुनिया का सबसे घटिया आदमी कहने के बाद भी वह उसके पास कुछ न कुछ जरुर लिखती थी।

शफीक ने अपने जीवन मे ऐसा क्या पाप कर दिया था, जिसके बारे में वह अपने हर ई-मेल में इस बात का जिक्र करता था। वह आदमी इतने भयंकर अपराध-बोध से क्यों ग्रस्त है?

क्या उसने किसी का खून कर दिया? क्या उसने किसी की जमीन-जायदाद लूट ली? फिर इतना भयंकर अपराध-बोध क्यों? क्या कभी आतंकवादी बनकर उसने कुछ लोगों की हत्या कर दी? नहीं तो फिर वह इस चीज को क्यों लिखता, "आई हेव डन सो मेनी मिस्टेक्स। आइ नो आइ एम नॉट ए परफेक्ट मेच फॉर यू।"

इस बारे में कूकी ने कभी भी उससे कोई बात नहीं पूछी थी। वह उसकी दुखती रग पर हाथ रखना नहीं चाहती थी। मगर इतने पुराने संबंध के बीच अपने आप खुलती जा रही थी उसके दिल की ग्रंथियाँ।

शफीक ने अपने दिल पर हाथ रखकर लिखा था, "रुखसाना, आज मैं तुम्हें एक लम्बा ई-मेल नहीं लिख पाऊँगा। आज मैं बहुत परेशान हूँ। आई हेव बीन सम्मनड फॉर एन इन्टरोगेशन । वापस लौटने के बाद मैं तुम्हें एक लंबा ई-मेल करुँगा।

अभी तक इतने दीर्घ दिनों के संबंध में यह पहला पत्र था जो संक्षिप्त में लिखा गया था। क्या हो गया है उसे? उसको समन क्यों हुआ है? कूकी चिंतामग्न हो गई थी। लेकिन हकीकत किससे पता करेगी? वह आदमी ना तो उसका कोई पड़ोसी है और ना ही किसी आस-पास के शहर का निवासी है। उसके न तो घर का पता मालूम है और ना ही उसका टेलीफोन नम्बर। अगर उसके पास उसका टेलिफोन नम्बर होता भी तो क्या वह उससे फोन पर बात करती? तबस्सुम के साथ तो उसकी कभी बातचीन नहीं हुई। मगर क्या यह संभव है, पास के किसी पब्लिक टेलीफोन बूथ से वह पाकिस्तान बात कर पाती?

शफीक के लिए वह बुरी तरह परेशान होकर छटपटाने लगी। उसे यह सोचकर बेहद आश्चर्य हो रहा था कि उसको कभी स्पर्श तक नहीं किया ; उस आदमी के पसीने की गंध कई हजार मील दूर होने के बाद भी हरपल वह उसे सूंघ रही है। यह कैसे संभव हो सकता है?

आज की इस भौतिकवादी दुनिया में कोई उसकी बात पर विश्वास करेगा? कूकी को मन ही मन बहुत डर लग रहा था, कहीं उसकी वजह से शफीक किसी परेशानी में तो नहीं पड़ गया? आखिरकर वह उसके शत्रुदेश की रहने वाली है। कहीं वह उसके देश की किसी गुप्तचर संस्था की नजर में तो नहीं आ गया है। कूकी को डर लगने के पीछे एक कारण यह भी था - शफीक का पागलपन। उसने कूकी के फोटो की कई कापी बनवा ली थी। एक फोटो उसने अपने पर्स में रखा था, एक डायरी में तो एक फोटो अपनी कार में लगा दिया था। उसने अपने स्टूडियो की दीवारों पर अलग-अलग साइज के कूकी के खूब सारे फोटो चिपका दिए थे। एक बार उसके किसी दोस्त ने पूछा था, "यह कौन है? तुम्हारी पत्नी या दोस्त?" शफीक ने उत्तर दिया था, "यह मेरे लिए सबकुछ है।"

एक बार कूकी ने इस बारे में लिखा था, "क्या मेरे फोटो को इस तरह खुले आम अपने पास रखने तथा घर की दीवारों पर लटकाने से तुम्हें डर नहीं लगता? तुम्हारे बच्चे तुम्हें कुछ भी नहीं कहते?"

"नहीं, उन्हें सबकुछ पता है कि तुम मेरी जिंदगी हो।"

शफीक ने बिना किसी हिचकिचाहट के यह बात लिखी थी। "मेरे कुछ भी बताने से पहले तबस्सुम ने बच्चों को सारी बातें बता दी है। तुम यहाँ आ जाओ, तुम देखोगी, मेरे घर वाले तुम्हारा किस प्रकार स्वागत करते हैं। तुम चली आओ मेरे पास। मेरे घर में रानी बनकर रहोगी।"

हाय, काश! कूकी भी अपने घर में ऐसी बातें कह पाती। अगर अनिकेत और उसके बच्चों को इस बारे मे जरा सी भनक भी लग गई तो उसकी क्या अवस्था होगी? जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। या तो अनिकेत गुस्से में आकर उसकी हत्या कर देगा या फिर वह खुदजहर खाकर आत्म-हत्या कर लेगा। और बच्चे क्या उसे माँ कहकर बुलाएँगे?

कूकी पाकिस्तान के एक परिवार में बिंदास अपना जीवन जी सकती है। वहाँ वह चर्चा की एक विषय वस्तु बन सकती है। यहाँ तक कि वहाँ उसे उचित सम्मान भी मिल सकता है। मगर कूकी के घर में शफीक का क्या स्टेटस होगा? केवल कम्प्यूटर के एक फोल्डर में गुप्त रुप से छुपकर बैठे रहना या फिर अकेले में कूकी के साथ गपियाते-गपियाते कुछ नटखट शरारतें करना? यह तो ठीक ऐसी ही एक कहानी हुई जैसे कोई अप्सरा अपने जादू के बल पर किसी राज्य के राजकुमार को भेड़ में बदल देती हो।

अगले दिन शफीक का ई-मेल आया। स्वाभाविक ढंग से प्रेम की बात लिखते-लिखते अचानक उसके दिल की बाते निकल आई थी उस ई-मेल में जैसे कि कूकी के सामने वह कुछ भी बातें छिपा नहीं पाता था। उसने लिखा था, "रुखसाना, मैं इस देश को छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना चाहता हू। मैं इस देश के सिस्टम से नफरत करता हूँ। आई हेट देट मिलीटरी जनता। उन्होंने गड़े मुर्दे जिंदा करने की तरह दो साल पुराना मेरा एक केस पुनर्जीवित कर दिया है। जबकि आज की परिस्थितियों में उस केस का कोई महत्व नहीं है।" और आगे शफीक ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया।

कौन-सा केस? वह इतना चिंतित क्यों है? कूकी की मन-ही-मन इच्छा हो रही थी कि वह उड़कर उसके पास चली जाए और उससे कहती, "इतनी चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।" उसे यह बात समझ में आ गई थी कि उसकी वजह से उसे कोई परेशानी नहीं है। मगर शफीक की बेचैनी और विवृत हाव-भाव देखकर उसे बात का अंदाजा लग गया था कि शफीक, हो न हो, किसी बड़ी मुसीबत में फँस गया है।

शफीक बार-बार यह लिखा करता था, "मैं उन सभी चीजों की लेशमात्र भी परवाह नहीं करता हूँ। मैं किसी से भी नहीं डरता हूँ, इन सब बातों से मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है।"

किन चीजों की परवाह नहीं करने की बात कर रहा है वह? अचानक उसे ऐसा क्या हो गया जिसके कारण वह बुरी तरह से विचलित हो गया है? कूकी ने अपने ई-मेल में यह बात उठाई थी, "अगर तुम्हारी पर्सनल बात न हो तो क्या मुझे यह बताना चाहोगे कि क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्यों इतना चिंतित हो तुम?"

शफीक ने अपने ई-मेल में इस बात का जवाब दिया था, जिसे पढ़कर कूकी का मन नफरत से भर उठा। वह उस आदमी को क्या कहेगी, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

शफीक ने लिखा था, "दो साल पहले मुझसे एक बहुत बड़ी गलती हो गई थी। उस समय किसी ने इस बात को महत्व नहीं दिया था। अपने आप सारा मामला दब गया था। लेकिन एक मिलिटरी आफिसर तबस्सुम को ब्लैकमेल करते हुए इस मामले को फिर से एक बार उछालेगा, उसका मुझे अंदाजा नहीं था। एक पुरानी फाइल में से उस केस को निकालकर फिर एक गड़े मुर्दे को उसने जिंदा किया। रुखसाना, वन्स आइ हेव डन ए मिस्टेक। आई फक्ड ए गर्ल, वन आफ माइ स्टूडेन्ट एंड आलसो द मॉडल फॉर वन आफ माइ पेंटिंग्स। उस लड़की की बाद में शादी हो गई और अभी वह अपने परिवार के साथ खुशीपूर्वक रहती है। वह लड़की उस घटना को भूल चुकी थी। आज के समय यह घटना कोई मायने नही रखती है। फिर भी तबस्सुम को ब्लैकमेल करने वाले मिलिटरी आफिसर ने उस लड़की को बहलाया-फुसलाया और मेरे विरुद्ध खड़ा कर दिया।

मॉडल आफ माई पेंटिंग? कौनसी पेंटिंग? ब्लैकमेलिंग क्यों? इन सब बातों को कूकी बिल्कुल समझ नहीं पा रही थी। केवल उसको इतना ही समझ में आया था कि दो साल पहले शफीक के किसी लड़की के साथ अवैध संबंध थे, जो कि उसकी स्टूडेंट थी। शफीक के इस तरह के उन्मुक्त जीवन के बारे में कूकी पहले से ही जानती थी मगर ब्लैकमेलिंग? यह सब क्यों? हर दिन शफीक कूकी को उसके शहर, शहर की गलियों, कोर्ट-कचहरी सभी जगह घुमा-घुमाकर दिखा रहा था, मानो कूकी आधे समय भारत में रहती हो तो आधे समय पाकिस्तान में।

कूकी ने लिखा था, "शफीक, जो भी तुम कहना चाहते हो, साफ-साफ शब्दों में कहो। मैं नहीं समझ पा रही हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो। तुमने अपनी मॉडल लड़की के प्रति कोई अच्छा काम नहीं किया है। क्या यह सच है कि वह लड़की तुम्हें प्यार नहीं करती थी। बिना प्रेम किए किसी से संभोग करना किसी रेप से कम नहीं होता है। शायद वह लड़की संभोग के लिए असहमत थी, इसलिए तो उसने तुम्हारे विरुद्ध शिकायत दर्ज की है। फिर तुम कैसे लिख सकते हो ऐसा कुछ भी नहीं है? उसे एक छोटी सी घटना कहते हो। उस घटना की तुम परवाह नहीं करते हो? तुम ऐसा क्यों करते हो, शफीक?"

विक्षुब्ध होकर शफीक ने लिखा था, "मैं जानता हूँ रुखसाना, एक डॉक्टर के पास बीमार आदमी का शरीर बीमार खेत की तरह होना चाहिए। उसमें उगी हुई हरी-भरी घास, ओस की बूँदें, छोटे-छोटे खिले हुए फूलों की तरफ उसकी नजर नहीं जानी चाहिए। मेरे सामने भी वह शरीर केवल मॉडल बनकर रहना चाहिए था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उसकी मद भरी आँखे, रसीले होठ तथा उभरे स्तन मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे। जैसे कि वह पुकार रही हो, आओ, मुझे छू लो, मुझे पूर्ण कर दो। यस रुखसाना, आइ हेव डन द मिस्टेक। लेकिन रुखसाना, उस दिन उस लड़की की आँखों में किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही थी। उसे तो किसी भी तरह का कोई क्रोध भी नहीं आया था। लेकिन पता नहीं कैसे, अचानक वह लड़की बदल गई! मैं नहीं समझ पाया उसने किसके बहकावे में आकर मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज की है। मैं जानता हूँ मैं तुम्हारा एक गुनहगार हूँ। आइ एम सॉरी रुखसाना। आइ एम योर फॉरएवर कलप्रिट,शफीक।"

कूकी अपने मध्यमवर्गीय जीवन को बहुत पीछे छोड़ आई थी। अपने सारे सुख-दुख, सफलता-असफलता सभी को शफीक के प्रेम में वह अपनी वास्तविक दुनिया को पूरी तरह से भूल चुकी थी। शादी शुदा जिंदगी एक गज़ब किस्म का बंधन है जो दिल से बहने वाले सारे प्रेम के झरनों को सुखा देता है। जिन्दा रहना महज एक समझौते और एक हिसाब-किताब में बदल जाता है। पता नहीं कहाँ छुप गई होगी प्रेम की वह धारा जो जमीन के नीचे लुप्त हो गई। कई दिनों से वह नदी सूखती जा रही थी। उसका जल प्रवाह दूर-दूर तक फैले बालू के नीचे गायब होता जा रहा था। क्या वास्तव में यह दिल उस जल की एक बूँद के लिए प्यासा था? क्या शफीक ही एकमात्र समाधान था उस समस्या का?

कूकी को याद आ रहा था विगत आठ महीनों से वह कभी बीमार नहीं पड़ी थी। आठ महीनों से वह हँसते हुए अपना जीवन-यापन कर रही थी। वह कभी भी नहीं टूटी, तरह-तरह की भद्दी गालियों, झगड़े -झंझटों तथा अपमान के तानों के बीच। पहले की तरह अब उसे अनिकेत का गुस्सा और गालियाँ खराब नहीं लगती थी।

आखिर बार वह बीमार कब पड़ी थी? हाँ, एक साल पहले। उस समय अनिकेत उसे मौत के मुँह से बचाकर लाया था। उसकी बड़ी आँत में घाव हो गए थे। लगातार खून बहने की वजह से उसके शरीर में खून की कमी हो गई थी। उसके शरीर में हीमोग्लोविन की मात्रा खतरे के स्तर तक पहुँच गई थी। घर में बच्चों की देख-रेख करना, कूकी के लिए खून की व्यवस्था करना, रात-रातभर जागना, बार-बार कूकी के बेडपैन को इधर-उधर करते रहना तथा उसकी गंदी बेड शीट को बदलते रहना इत्यादि कई काम अनिकेत को बिना खाए-पीए करने पड़ रहे थे जिसकी वजह से वह थककर चकनाचूर हो जाता था तथा एक अद्र्धपागल की तरह दिखाई देने लगता था।

आठ दिन के बाद कूकी को अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। शुचिता-प्रिय अनिकेत ने कूकी को पानी में गंगाजल तथा सेवलोन की कुछ बूँदे मिलाकर नहलाया था। और उसके कपड़ों को अपने हाथ से धोकर बाहर सुखाया था। घड़ी, जूता, चैन, अँगूठी सभी को अलग-अलग करके गरम पानी में गंगाजल डालकर धोया था। तब जाकर उसने उन सभी चीजों को पवित्र एवं जीवाणु रहित माना था।

फिर भी अनिकेत के मन में कुछ संदेह बाकी रह गया था। उसको मन ही मन लगने लगा था कि एक बार फिर कूकी के सारे जीवाणु उसकी चीजों पर अदृश्य रुप से लौटकर आ गए हो। वे जीवाणु भले दिखाई नहीं पड़ रहे हैं, मगर घर के अंदर चारों तरफ घूम रहे हैं। तब तक कूकी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी। घर का कामकाज करने के लिए उसके शरीर में ताकत नहीं बची थी। लगातार रक्तस्राव होने अथवा किसी दवाई के रिएक्शन हो जाने की वजह से उसके हाथ-पैरों में सूजन आ गई थी। रह-रहकर हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। जहाँ अनिकेत घर और दफ्तर के बीच उलझ कर रह गया था, उसी समय उसके हेडक्वार्टर से प्रमोशन के लिए कोन्फिडेंशियल रिपोर्ट माँगी गई थी।

वह काफी चिंतित दिखाई दे रहा था। उसके साथ वाले सभी लोगों का प्रमोशन हो चुका था। केवल उसका नंबर नहीं आया था। प्रोसपेक्टिव केन्डीडेट की लिस्ट में उसके साथ जिन लोगों का नाम था, वे सब केडर में उससे जूनियर थे। फिर भी अनिकेत चिंतित नजर आ रहा था। वह जोशी को भी जानता था तो दाश के बारे में भी उसे सब कुछ पता था। सभी एक से बढ़कर एक थे, कोई किसी से कम नहीं था। अनिकेत कहता था, "जानती हो, पिछली बार प्रधान का प्रमोशन कैसे हुआ था? उसका ससुर एम.पी. है न। मेहनत की कीमत यहाँ कौन जानता है? सभी स्टेटस को ही बड़ा मानते हैं। इसी बात को सबसे ज्यादा तवज्जों दी जाती है कि किस का कितना होल्ड है, बड़े महकमों में कितनी जान-पहचान है। तुम्हारे पिताजी ने एक बार तुम्हारे बड़े बहनोई के ट्रांसफर आर्डर कैंसिल करवाने के लिए एम.पी. से सिफारिश करवाई थी। मेरे लिए भी उनसे एक बार बात करके तो देखो।"

"पिताजी अब बूढ़े हो गए हैं। एक लंबा अर्सा हो गया उन्हें राजनीति छोड़े हुए उनको कहने से क्या फायदा होगा?" कूकी ने उत्तर दिया था।

यह थी कूकी के साथ मार-पीट होने के एक दिन पूर्व की घटना। अनिकेत गुस्से में तमतमाकर बोला था, "इसका मतलब तुम यह कहना चाहती हो कि मेरे और तुम्हारे बहनोई में जमीन-आसमान का फर्क है। साला, मैं उसकी बेटी के लिए यहाँ मल-मूत्र धो रहा हूँ और मेरे लिए बूढ़े को तनिक भी चिन्ता नहीं।"

अनिकेत गुस्से में अपना आपा खो बैठता था और बोलते समय वह तूँ- ताँ पर उतर आता था। उस समय उसे अच्छे-बुरे का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहता था। जब उसके दिमाग पर गुस्से का भूत सवार हो जाता था तो वह बहुत गंदी-गंदी गालियाँ देने लगता था। वह इतना भी भूल जाता था कि वह एक पढ़ा लिखा और एक बड़े कारपोरेशन में ग्रेड-वन अधिकारी है।

कूकी ने कहा था, "हर छोटी-मोटी बातों में मेरे पिताजी की टाँग खींचने की क्या जरुरत है? उन्होंने तुम्हारे लिए मना तो नहीं किया है। बड़े बुजुर्गों के प्रति ऐसे ओछे शब्दों का प्रयोग तुम्हें शोभा नहीं देता।"

"तुम्हारे बाप को क्या मैं आज से जानता हूँ। हर बार उसकी तरफदारी मत किया कर।" इतना कहते हुए अनिकेत थप्पड ताने कूकी के सामना आ गया।

उसका रौद्ररुप देखकर कूकी पूरी तरह ड़र गई थी। कहने लगी, "अच्छा ठीक है, टेंशन मत पालो। मैं पिताजी से बात करके देखती हूँ। उनसे जितना हो सकेगा वे करेंगे। ज्यादा चिंता मत करो। सब ठीक-ठाक हो जाएगा।"

"कुछ ठीक होने वाला नहीं है।" अनिकेत ने गुर्राते हुए कहा। अनिकेत का यह व्यवहार देखकर कूकी दुखी हो रही थी। वह आसानी से अनिकेत के दुख को समझ सकती थी। उसका दुख धीरे-धीरे कर इन्फीरियोरीटी काम्प्लेक्स में बदल गया था।

अनिकेत सुबह आठ बजे घर से बाहर निकलता था तो लौटता था शाम को आठ बजे। उसके साथ वाले सभी अधिकारियों का प्रमोशन हो चुका था। वे ए.सी. चैम्बर में बैठकर मजे मार रहे थे। और अनिकेत बेचारा अभी तक फील्ड में खट रहा था। कुछ समय बाद उसका तबादला आफिस में हो गया तब तक उसे रात दस बजे फाइलों से ऊपर उठकर झाँकने की फुर्सत नहीं मिल रही थी। उससे भी बढ़कर दुख की बात थी कि उसके फाँकीबाज दोस्त भी प्रमोशन के बारे में बाजी मार ले गए थे।

अनिकेत कुंठाग्रस्त होकर कहने लगता था, "यहाँ एक गरीब उड़िया आदमी की कौन सुनेगा?" उड़िया परिवार में पैदा होना मानो उसके लिए एक अभिशाप बन गया हो।

अनिकेत के प्रति कूकी की सहानुभूति थी। केवल इतना ही नहीं, वह उसकी सारी बातों का समर्थन भी करती थी। वह जानती थी कि गैर उड़िया आफिसरों के बीच उड़िया आफिसर की कुछ भी नहीं चलती है। फिर भी तो कई उड़िया आफिसर दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते जा रहे थे। अनिकेत की सबसे बड़ी समस्या थी उसका बेकाबू गुस्सा, जो कि उसके प्रमोशन में सबसे बड़ी बाधा थी।

कूकी को स्वस्थ हुए लगभग एक महीना हो गया था। कई दिनों से बच्चें बाजार से कुछ सामान खरीदने के लिए हठ कर रहे थे। अनिकेत सपरिवार सबको अपने साथ लेकर गया था। बच्चों ने अपने-अपने सामान खरीदे, डिजनी लैंड में कुछ देर तक खेले कूदे और अंत में पिज्जा कॉर्नर में जाकर पिज्जा भी खाया। बहुत दिनों बाद बाहर घूमकर कूकी को अच्छा लग रहा था। पिज्जा कॉर्नर से बाहर निकल कर बच्चे भेलपुरी खाने के लिए जिद्द करने लगे। औह! ऐसी क्या भूल कर दी कूकी ने? बच्चों के साथ हँसते-खेलते, मस्ती करते बच्चों के साथ सामान खरीदते, भेलपुरी खाते-खाते वह अपनी पानी की बोतल से पानी पीना भूल गई थी और उसने खोमसे वाले से दो घूँट पानी पी लिया। तुरंत ही आग बबूला हो उठा अनिकेत। उसने सबके सामने कूकी को एक तमाचा जड़ दिया। सभी उपस्थित लोग उसकी इस हरकत से अवाक रह गए। वह चिल्लाकर कहने लगा, "साली, तुम्हारे लिए मैं हजारों रूपए खर्चकर रहा हूँ। महीनों-महीनों से तुम्हारा मलमूत्र साफ कर रहा हूँ। किसने कहा तुझे यह पानी पीने के लिए। जब यह पानी पीना ही था तो पानी की बोतल अपने साथ क्यों लाई? साली, बदजात औरत, मिडल क्लास मेंटलिटी।"

कूकी को अनिकेत की 'मिडल क्लास' वाली गाली सबसे ज्यादा चुभी। अवाक दुकानदार तथा ग्रहकों को देखकर कूकी लज्जित हो गई। कान के ऊपर वाले हिस्से में अभी भी थप्पड़ की गूँज सुनाई दे रही थी। ऐसी परिस्थिति के लिए कूकी मानसिक तौर पर बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। वह अपनी आँखों से छलकते हुए आँसुओं को रोक नहीं पा रही थी। वह मुँह घुमाकर रास्ते के दूसरी तरफ देखने लगी। वह मन ही मन अनिकेत के खिलाफ कहने लगी।

"अनिकेत, तुम्हारे दिमाग के अंदर जो कीड़ा कुलबुला रहा है, उसको निकालकर फेंक दो। आइ हेट, आइ हेट द वल्गर इन्सेक्ट विच मेक्स यू मैड। तुम्हें शायद मालूम नहीं, मेरे अंदर की बीमारी के जीवाणुओं से हजार गुणा ज्यादा खतरनाक है तुम्हारे दिमाग का यह कुलबुलाता हुआ कीड़ा। मुझे तुम्हारे ऐशो-आराम की कोई जरुरत नहीं है। और न ही जरुरत है मुझे तुम्हारे प्रेम की। मुझे ऐसे नारकीय जीवन की भी कतई जरुरत नहीं है।"