बंद कमरा / भाग 9 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

Gadya Kosh से
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"उसे सारी रात नींद नहीं आई। कम्प्यूटर के सामने बैठे-बैठे यूँ ही समय बीत गया। सारी रात मन में अंतर्द्वंद्व चलता रहा। अब सुबह होने जा रही है। मुझे चिड़ियों की चहचहाट सुनाई देने लगी है। कुछ ही देर बाद सूरज उदय होने लगेगा। और अंतर्द्वंद्व क्यों? आखिरकर मैने सोचा कि इसे भेज ही देता हूँ। बाकी जो मेरी किस्मत में होगा, देखा जाएगा।" शफीक ने ई-मेल भेजा।

इतना द्वन्द क्यों? किसलिए? शब्दों के हिज्जें गलत लिखे हुए थे।शफीक ने इससे पहले कभी भी गलत हिज्जें वाले शब्द लिखकर ई-मेल नहीं किया था। उसका ई-मेल पढ़कर ऐसा लग रहा था मानो वह दिमागी तौर पर सठिया गया हो और इसलिए शायद उसकी अंगुलियाँ बेकाबू होकर की-बोर्ड पर जहाँ-तहाँ पड़ गई हो।

शफीक ने पूरे मेल में कूकी को खो देने के डर से संयमित भाषा का इस्तेमाल किया था। क्या कूकी उसके लिए इतनी बेशकीमती है ? अपने जीवन में उसने जिसे कभी देखा तक नहीं था छूना तो दूर की बात थी , उसके प्रति इतना मोह?

इस ई-मेल में शफीक के कुछ फोटोग्राफ अटैच किए हुए थे।कूकी कई दिनों से शफीक को उन फोटो को भेजने के लिए कह रही थी। यद्यपि चैटिंग के शुरुआती दौर में शफीक ने अपने पासपोर्ट साइज का फोटो अपने एक ई-मेल के साथ भेजा था।

लम्बा कद, गदराया हुआ बदन, गोल-मटोल चेहरा, छोटे-छोटे गुलाबी होंठ, लंबी नाक, मोटी-मोटी मूँछें और एकदम गोरे रंग वाला आदमी लग रहा था वह फोटो में । उस समय उसने अपने बारे में लिखा था, "मेरा कद छह फुट,है और देखने में गोरा- चिट्टा हूँ।"

शफीक के फोटो भेजने के तीन-चार महीनों के बाद कूकी ने भी अपना फोटो भेजा था। तब तक शफीक ने उसका एक काल्पनिक चित्र तैयार कर लिया था। उस काल्पनिक चित्र की पेंटिंग बनाकर उसने कूकी को ई-मेल कर दिया था, यह कहते हुए कि मेरी कल्पना में तुम कैसी दिखती हो? और वह भी जानना चाह रहा था, "क्या तुम वास्तव में पेंटिंग वाली मेरी कूकी की तरह दिख रही हो न?"

उस पेंटिंग को देखकर कूकी की समझ में आ गया था, भले ही शफीक सीधे मुह नहीं बोल पा रहा है, मगर कहीं न कही उसके दिल में कूकी को देखने की चाह है। कूकी ने यही सोचकर अपना भी एक फोटो भेज दिया था। वह उसका बीस साल पहले का फोटो था। एकदम छरहरा बदन, नशीली आँखों वाला मनमोहक फोटो था वह।शफीक ने जिसे बाद में एनलार्ज करवाकर अपने स्टूडियो, कार, पर्स और डायरी में लगा दिया था।

शफीक के पुराने फोटो को कूकी कम्प्यूटर के एक सीक्रेट जंक फोल्डर में छुपाकर रखती थी। जब भी उसका मन करता, उसको खोलकर देख लेती थी। एक दिन सारे पुराने ई-मेलों को डिलीट करते समय गलती से वह फोल्डर भी डिलीट हो गया था। बाद में उसने रिसायकिल बिन के सारे ई-मेलों तथा फोल्डरों को भी डिलीट कर दिया था। अब उसके लिए शफीक का फोटो देखना नामुनकिन था। मगर उसके दिल में वही पुराना फोटो घर कर चुका था। कूकी अपने दिल में छुपी सारी भावनाएँ उस फोटो के सामने प्रकट करती थी।उसने एक दिन शफीक से चैटिंग के समय बातों ही बातों में उस फोटो के डिलीट होने वाली सारी घटना का पूरा ब्यौरा उसके सामने रख दिया। और अपनी ख्वाहिश प्रकट की थी कि अगर वह अपना एक फुल साइज फोटो भेज देता तो उसके लिए अच्छा होता।

शफीक ने कुछ दिनों तक कूकी की ख्वाहिश पूरी नहीं की। मगर जब भी शफीक चैटिंग में कूकी की उस नशीली आँखों वाली फोटो की याद दिलाता था तो कूकी उसे उसकी फोटो को भेजने वाली बात याद दिला देती थी, "शफीक, मैने तुमसे एक फोटो माँगा था। अभी तक नहीं भेजा। क्या भेजना भूल गए हो?"

कूकी की बात टालते-टालते आखिरकर वह कब तक उसकी बात टालता। एक दिन उसने मनमसोस कर कूकी के प्रश्न का उत्तर देते हुए लिखा था, "कूकी, मैने विगत पच्चीस साल से अपना कोई फोटो नहीं खिंचवाया है। अब इस अधेड़ उम्र में फोटो खिंचवाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। फिर भी तुम्हें चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। तुम्हारे लिए मैं स्टूडियो में जाकर अपना एक फुल साइज फोटो जरुर खिंचवाऊँगा। और उसे जल्दी ही भेज दूँगा।"

फोटो भेजने का वायदा किए हुए लगभग डेढ़ महीना बीत चुका था, मगर अभी तक उसने अपना वायदा नहीं निभाया था। कूकी के मन में एक तीव्र जिज्ञासा पैदा हो चुकी थी, अगर शफीक का पहले वाला फोटो पच्चीस साल पहले का था तो अब शफीक कैसा दिखता होगा? जहाँ कूकी मोटी हो गई है, चेहरे पर झुर्रियाँ परने लगी है, तब शफीक का चेहरा कितना बदला होगा? कूकी ने मन ही मन शफीक के फिगर की कल्पना कर ली थी। एक लम्बी कद काठी वाला, गोरा- चिट्टा, पचास साल के आस-पास की अधेड़ उम्र का एक आदमी जिसकी होंगी भूरी आँखें, गुलाबी होंठ, मोटी-मोटी मूँछें और सिर पर बचे होंगे थोड़े-बहुत बाल।

कूकी ने एक दिन रूठकर अपने ई-मेल में लिखा था, "शफीक, मुझे अब तुम्हारी किसी फोटो की जरुरत नहीं है। अब तक तो तुम्हारा चेहरा पूरी तरह से बदल गया होगा। अपने पहले वाले फोटो की तुलना में अब तुम ज्यादा बूढ़े दिखाई दे रहे होंगे।मेरी बातों की जब तुम कद्र नहीं करते हो, मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरा विश्वास करो, तुम भले ही एक लूले, लँगडे या अंधे हो, मैं हर कीमत पर तुम्हे अपनाने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मेरे बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जब तुम चुप रह जाते हो तो मेरे लिए सहन करना कठिन हो जाता है।क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है? इतनी दूर आगे बढ़ने के बाद क्या मैं वापिस पीछे लौट जाऊँगी, जिस जगह पर मैं थी? क्या तुम्हें मुझ पर बिल्कुल विश्वास नहीं है?"

कूकी के इस मेल ने शफीक को शायद पूरी तरह से विचलित कर दिया था। इसलिए उसने सारी विपरीत परिस्थितियों का मुकावला करते हुए अपनी चार अलग-अलग तरह की फोटो अपने ई- मेल में भेज दी थी।

कूकी ने तब तक उन फोटो को नहीं देखा था। एक पेड़ के नीचे, पोल के ऊपर पार्क के बेंच पर बैठे हुए शफीक के फोटो को उसने डाऊनलोड करके 'माई पिक्चर' के एक फोल्ड़र में सेव कर लिया था। वह सबसे पहले शफीक के ई-मेल को पड़ना चाहती थी।कूकी को उसका ई-मेल पढ़ने से लग रहा था,कि शफीक बुरी तरह से डरा हुआ था। लेकिन वह क्यों डरा हुआ था?

कूकी के मन में ई-मेल पढ़कर एक संदेह पैदा हो गया था, इसलिए वह सेव किए हुए फोटो को एक-एक कर एडोब फोटोशॉप में बड़ा कर के देखने लगी। उन फोटो को देखते ही उसे ताज्जुब होने लगा। यह शफीक का चेहरा है? शफीक की पहले वाली फोटो के साथ उन फोटो का कोई मेल नहीं था।

क्या यह कोई दूसरा आदमी है? ऐसे आदमी की तो उसने कल्पना नहीं की थी। तो वह आज तक क्या किसी और आदमी को ई-मेल कर रही थी. क्या यही आदमी इतने दिनों से कूकी के साथ अलग-अलग आसनों में रति-क्रिया में लीन था। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यह आदमी शफीक नहीं हो सकता। यह आदमी तो देखने में गोरा-चिट्टा नहीं लग रहा था। इस आदमी के बाल घने ना होकर, छितरे हुए लग रहे थे। बहुत कम बालों में जबरदस्ती कंघी किया हुआ वह आदमी कौन हो सकता है? पिचके हुए गालों वाला आदमी जिसकी मूँछे भी नहीं है? कौन हो सकता है यह? यह आदमी तो किसी भी हालत में शफीक नहीं हो सकता।

उसे मन ही मन किसी षड़यंत्र की बू आ रही थी। वह आदमी कहीं दगाबाज तो नहीं? क्या यही कारण है कि उसे रात भर नींद नहीं आई थी। और उसकी चालबाजी पकड़ में आ जाने के कारण वह बुरी तरह भयभीत हो गया हो? क्या इसी वजह से वह फोटो भेजने के लिए हिचकिचा रहा था? क्या यही कारण हो सकता है कि उसने अपने ई-मेल में लिखा था, "आखिरकर मैं भेज रहा हूँ जो किस्मत में होगा, देखा जाएगा।"? शायद यही वजह होगी कि आज तक वह आदमी अपने फोटो भेजने की बात टालता आ रहा था।

तब शफीक ने जो फोटो पहले भेजा था वह फोटो किसका था? कहीं मुझे प्रभावित करने के लिए उसने किसी दूसरे व्यक्ति का फोटो तो नहीं भेज दिया था। कूकी को ऐसा लग रहा था मानो वह किसी गलत आदमी के हाथों छली गई है। जरुर हो न हो, वह किसी ठग के शिकंजे में फंस गई है।

उसका जोर-जोर से रोने का मन कर रहा था। वह सोच रही थी, इसका मतलब कि वह आदमी अभी तक झूठे प्रेम का नाटक कर रहा था। मगर उस आदमी की व्याकुलता, भावुकता तथा उसके नाम कविताओं पर कविताएँ लिखते जाना क्या महज एक मजाक था? क्या बिना किसी प्रेम के कोई भी आदमी ऐसा कर सकता है? अगर यह बात सही है कि वह आदमी कूकी से प्यार करता है तो उसने बीच में इस छूठ का इस्तेमाल क्यों किया? क्या वह यह नहीं जानता था कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं, एक न एक दिन झूठ का भांडा फूट जाता है? क्या वह इस बात को नहीं समझ पा रहा था कि इस सफेद झूठ की वजह से कूकी का दिल टूट जाएगा?

कूकी ने सुना था कि नेट के द्वारा प्रेम करना असंभव है। केवल फ्लैटरी तथा शारीरिक आकर्षण की बातें की जा सकती है। वह यह भी जानती थी कि नेट द्वारा बने संबंध कभी भी स्थायी नहीं हो सकते क्योंकि नेट में एक दूसरे को आमने-सामने देखने तथा पूरी तरह समझने परखने की सुविधा नहीं होती है। वहाँ केवल कल्पना की दुनिया में गोते लगाने पड़ते हैं। केवल सपनों से भरी हुई दुनिया। नेट के इस प्रेम में ना तो सामने कोई शरीर होता है और ना ही किसी का मन। इतना सब कुछ जानते हुए भी क्या कूकी का पहले से सचेत रहना जरुरी नहीं था?

शफीक भौतिकवादी दुनिया का इंसान था पर कूकी? पता नहीं, वह कैसे सब कुछ भूलकर इस दुनिया में घुस गई?कूकी का ऐसे बुरे समय में कौन साथ देगा? जिसको वह अपने मन के दुखड़े सुना पाती। उसके सबसे नजदीक तो अनिकेत है, लेकिन अनिकेत को ये सब बताना क्या संभव था? घर में प्रलय आ जाएगी। जिस किसी को भी वह यह सब बताएगी, वे उसकी बातों पर ताज्जुब करने लगेंगे। सबके मुँह से एक ही बात निकलेगी, उम्र के इस पड़ाव में प्रेम? एक अनजान आदमी से प्रेम करने की जुर्रत इस उम्र में? यहाँ तो केवल सेक्स-चैटिंग की जा सकती है या फ्लेटरी। मगर प्रेम?

कूकी बार-बार उस आदमी के मेल को पड़ रही थी। उसके फोटोग्राफ को बड़ा करके देखती थी। नहीं उसने ऐसे आदमी की कभी भी कल्पना नहीं की। यह कोई दूसरा आदमी है। उसका शफीक नहीं हो सकता है। वह तो इस आदमी को पहचानती भी नहीं है। कूकी को बहुत दुख लग रहा था। आज से क्या वह उस आदमी के बारे में सोचने लगेगी जिसके बारे में उसने कभी भी नहीं सोचा था।

कूकी ने जवाब में लिखा था, "शफीक तुमने मेरे साथ दगाबाजी की है, । तुमने मुझे किस आदमी का फोटो भेजा है? क्योंकि यह फोटो तुम्हारी पहले वाली फोटो से तनिक भी मेल नहीं खाता है। मैं किसे शफीक मानूँ? इतने दिनों से जो चेहरा मेरे दिलो दिमाग पर छा गया है उसको या अभी भेजे हुए उस फोटो वाले आदमी को? तुमने एक बार भी ख्याल नहीं किया कि मुझे कितना दर्द हो रहा होगा? मै असली शफीक किसे समझूँ? या फिर एक महीने बाद कोई तीसरा आकर कहेगा, मैं शफीक हूँ?

तुमने मेरे साथ ऐसा विश्वासघात क्यों किया? तुम्हें मेरे साथ खेल खेलकर मजा आया होगा? मैने तुमसे कुछ पाने के लिए ऐसा नहीं किया था। अब हमारे लिए इस संबंध को बरकरार रखना नामुमकिन हो जाएगा। मुझे नहीं पता कि मैं आगे से और ई-मेल कर पाऊँगी या नहीं? शायद यह मेरा आखिरी ई-मेल है। मैं पूरी तरह से टूट चुकी हूँ।"

तुरंत कूकी ने इस मेल को बिना कुछ सोचे समझे भेज दिया था।

मेल भेजने के बाद कूकी को याद आया कि एक बार शफीक ने लिखा था, "एंड द ग्रेटेस्ट मिराकल आफ आल इस, हाऊ आइ नीड यू एंड हाऊ यू नीड मी, टू।"

कूकी का मेल मिलते ही शफीक ने उत्तर दिया था, "मुझे पहले से ही पता था, ऐसा ही होगा। इसी बात की मुझे चिंता थी। इस वजह से मैं फोटो भेजना नहीं चाहता था। अगर समय ने मेरा चेहरा बदल दिया तो उसमे मेरा क्या कसूर? रुखसाना, तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊँ कि वे दोनों फोटोग्राफ मेरे ही हैं। वह मेरी बहुत बड़ी गलती थी कि मैने अपना बीस साल पहले वाला फोटो तुम्हें भेज दिया था। मगर उसके पीछे मेरा कोई गलत मकसद नहीं था। कई सालों से मैने अपना कोई फोटो नहीं खिंचवाया था। हर दिन आइने में अपनी तस्वीर देखने के बाद भी मेरी नजर मेरे बदलते हुए चेहरे की तरफ नहीं गई।

अगर तुम मुझे बाध्य नहीं करती तो शायद अभी भी अपना फोटो नहीं खिंचवाता और कभी भी यह समझ नहीं पाता कि समय के थपेड़ों ने मुझे किस कदर तोड़ दिया है।

केवल यही इकलौती वजह थी कि मैं अपना फोटो भेजने से कतरा रहा था। मुझे इस बात का डर सता रहा था कि तुम जवान शफीक और बूढ़े शफीक के बीच फर्क को देखकर कहीं टूट न जाओ।

आज मैं दिल से अल्लाह को कोस रहा था कि उन्होंने मुझे समय के साथ-साथ इतना क्यों बदल दिया? मुझे क्यों नहीं एक सुंदर चेहरे वाला इंसान बनाए रखा? रुखसाना, उन बातों को याद करो, जब मैने तुमसे कहा था कि मैं दिखने में सुंदर आदमी नहीं हूँ? हो सकता है तुमने उस समय इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी होगी। शायद तुमने मेरा बड़प्पन कहकर इस बात को टाल दिया होगा। लेकिन रुखसाना, एक बात बताओ, क्या चेहरा ही सब कुछ होता है?

रुखसाना, अभी भी मैं तुम्हें तहे-दिल से प्यार करता हूँ। तुम्हारे छोड़कर चले जाने की बात सोचकर ही मुझे आँखों के सामने तारें नजर आने लगते हैं। क्या तुम अपना वायदा भूल गई? जब तुमने लिखा था भले ही, तुम लंगड़े हो या अंधे हो, मैं तुम्हें अपनाने के लिए तैयार हूँ। इतनी जल्दी भूल गई तुम अपने वायदे को?

तुम मुझ पर ऐतबार करो, मैं कोई दगाबाज नहीं हूँ। तु ही मेरे लिए सब कुछ हो तुम्हारे सामने मैं बिल्कुल भी झूठ नहीं बोल पाता। तुम मेरी दुनिया हो, तुम ही मेरा ईमान हो।

रुखसाना,
रुखसाना,
पहले मैं माफी माँगता हूँ
पिछले दिनों में हुई
मेरी कुछ भूलों पर
मेरी हीन भावनाओं ने
मुझे नजरबंद कर रखा था।
मुझे मंझधार में छोड़कर मत चली जाना
मैं यहाँ गर्दिश में हूँ
और मेरे चारों तरफ खामोशी ही खामोशी
मुझे ताज्जुब हो रहा है,
तुमने मेरा इतना ख्याल क्यों रखा?
तुमने इस कदर मेरी हिफाजत क्यों की?
सारी जिंदगी खत्म नहीं हुई
अभी भी मुझे ऐसा लगता है
जिंदगी कहीं थम सी गई है
मुझे तुम्हारे आलिंगन की सख्त जरुरत है।
तुम्हारे मासूम चेहरे को छूने की इकलौती ख्वाहिश है।
मुझे अपनी उन सारी भूलों की जानकारी है
जिसन तुम्हारे दिल को गहरी चोट पहुँचाई है
मगर मेरा कोई गलत मकसद नहीं था
और न ही कोई साजिश
मुझे अपने किए पर अफसोस है
मुझे माफ कर दो
बार-बार पाँव पड़कर माफी माँगता हूँ
मुझे अत्यंत खेद है गुजरी बातों पर
मुझे माफ कर दो
मैं तुम्हारे प्यार
तुम्हारी मुस्कान
और तुम्हारे संस्पर्श के बिना
जिन्दा नहीं रह सकता हूँ।

शफीक ने एक बच्चे की भाँति क्षमा माँगते हुए कविता लिखी थी। उस ई-मेल को पढ़ते ही कूकी का क्रोध शांत हो गया। वह धीरे-धीरे फिर से अपनी पूर्वावस्था में लौट रही थी। उसके चारों तरफ से धीरे-धीरे कुहासा हटने लगा था। धीरे-धीरे फिर उसे पहाड़, नदी-नाले, बाग-बगीचे, बाजार और आदमी स्पष्ट नजर आने लगे। उस ई-मेल को पढ़ने के बाद कूकी ने फिर से उन फोटोग्राफ्स को निकाला। एक-एक फोटो को बड़ा करते हुए बड़े ध्यान से देखने लगी। उम्र बीतने के साथ किसी के शरीर में कैसे बदलाव आते हैं।

कूकी बहुत बारीकी के साथ उस फोटो के होठ देखने लगी। होठों की साइज तो दिमाग में बने पुराने फोटो के साथ मेल खा रही थी बस फर्क केवल इतना ही नजर आ रहा था कि ये होठ पुराने फोटो के होठों की तुलना में निष्प्रभ नजर आ रहे थे। कूकी ने उन भूरी-भूरी आँखों की तरफ ध्यान से देखा।

लंबा चेहरा उम्र के थपेड़ों ने गोल कर दिया था। ठोड़ी वैसी की वैसी ही था। मूँछे नहीं होने के कारण चेहरा बिल्कुल अलग दिख रहा था। ललाट तो पुराने जैसा ही दिख रहा था, मगर बाल झड़ जाने तथा बाल बनाने का तरीका बदल जाने से चेहरा एकदम बदलकर एक नई शख्सियत में तब्दील हो गया था।

कूकी ने कम्प्यूटर के एडाब फोटोशॉप साफ्टवेयर की सहायता से उस फोटोग्राफ के ऊपर नकली मूँछे बना दी तथा बालों को पहले की तरह सजा दिया।अब यह फोटो पुराने वाले शफीक के फोटो की तरह दिख रहा था। अब वह निश्चिन्त हो गई थी कि वह आदमी झूठ नहीं बोल रहा था। कूकी को अपनी गलती का अह्सास होने लगा। वह सोचने लगी,कि शफीक, उसके बारे में क्या सोचता होगा? एक शक्की औरत? जरुर उसके मन में यह ख्याल आता होगा कि मैने तो उसको एक देवी की तरह पूजा जबकि वह मुझे दगाबाज समझती है। मैने उसको एक देवी का रुप माना, मगर वह भी उन बावन औरतों से कम नहीं है।

कूकी समझ नहीं पा रही थी कि शफीक को क्या उत्तर लिखा जाए? क्या 'सॉरी' कह देने से काम चल जाएगा? पता नहीं क्यों, कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर अंगुलियाँ थिरक नहीं पा रही थी। जहाँ शफीक बिना कुछ गलती किए क्षमा माँगने के लिए तत्पर रहता है, तब मैं क्यों नहीं? अगर कोई आदमी किसी से माफी माँग लेता है तो क्या वह छोटा हो जाता है? यही सोचते हुए आखिर में कूकी ने लिखा था, "सॉरी, शफीक, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। सही मायने में तुम्हारा चहरा इतना बदल गया है कि देखने वाला कोई भी भ्रम में पड़ जाएगा। अगर तुमने पहले यही फोटो भेजा होता तो शायद कुछ भी दिक्कत नहीं होती। मैने तुम्हे आज तक कभी भी नहीं देखा।मुझे आज के बाद तुम्हारे इस चेहरे को दिमाग में उतारना होगा। आज के बाद तुम्हारे इस चेहरे के सामने प्रणय निवेदन करना होगा। मेरे मन की अवस्था तुम जरुर समझ रहे होगे।"

ई-मेल भेजने के बाद एक पल के लिए कूकी अन्यमनस्क हो गई। यह भी हो सकता है, अगर शफीक उसे एक सुंदर स्त्री सोच रहा होगा और वह उसकी कल्पना के अनुरुप नहीं निकली तो शफीक का दिल धराशायी हो जाएगा। अब तक तो कूकी का चेहरा भी पूरी तरह से बदल गया है। जब भी उससे मुलाकात होगी, वह कहीं यह न सोच ले, "सो मच क्लाईÏम्बग फॉर सच ए नेगलीजीबल हाइट?"