बाबू-दल का जन-दल से संघर्ष / महारुद्र का महातांडव / सहजानन्द सरस्वती

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इस तरह जनांदोलन और बाबू-आंदोलन में परस्पर कभी कुश्ती होती और कभी ठंडक आती रही। फिर भी चुनावों के रूप में इस जनांदोलन ने ही बाबू-आंदोलन को भी ताकत दी। तो भी जन-पार्टी एवं बाबू पार्टी की रस्साकशी बराबर चालू थी। बाबू-दल वैधानिकता का कायल था , जिसके सीधो मानी हैं फूँक-फूँक कर पाँव देना। कहीं ऐसा न हो कि जन-शक्ति प्रबल हो कर बाबू दल और उसके स्वार्थों को सदा के लिए दबा दे , इसीलिए वह ' दल सँभल-सँभल पग धरिए ' को जपा करता था। पार्लिमेंटरी प्रणाली के आंदोलन का यही रहस्य है।

विपरीत इसके जन-पार्टी का नेतृत्व उससे भागता था और सीधी लड़ाई चाहता था ; लेकिन कोई इससे यह न समझ ले कि वह विस्फोटकारी जनशक्ति से आतंकित न था। उसने भी इतिहास पढ़ा और उससे सबक सीखा था। वह भी जानता था कि अनियंत्रित जन-शक्ति भी भूकंप लाती और प्रलय कर देती है। साथ ही निरी वैधानिक पध्दति की निस्सारता को बखूबी जान लेने के कारण वह जनशक्ति को एकबार पूर्णरूपेण उभाड़ना भी चाहता था , जिससे लक्ष्य-सिध्दि हो सके। उसका यह भी इरादा था कि जनशक्ति को उद्बुध्द करने के लिए जनांदोलन निर्वाध चलाकर ही उस शक्ति को नियंत्रण में रखा जा सकता है , जिससे समय पर संहारक विस्फोट रोका जा सके। वह जनता का विश्वासपात्र बनकर ही उसका स्थायी नेतृत्व एवं नियंत्रण करने के सपने देखा करता था और यह बात जनांदोलन को रोक देने से संभव न थी। क्योंकि तब विराट जनसमूह को शक करने की गुंजाइश थी कि ये नेता हमारे नहीं हैं। महात्माजी और श्री राजगोपालाचारी प्रभृति के उस समय के अपरिवर्तनवाद का यही रहस्य है। 1930, 1932 और खासकर 1934 में हिंसा-अहिंसा के नाम पर जनांदोलनों को संकुचित करने तथा रोक देने के यही मानी हैं। प्रारंभ में सभी व्यापक हड़तालों को पूर्णत: प्रोत्साहित कर के और धरना देने के मार्ग को बढ़ावा देने के बावजूद पीछे छात्रों की हड़तालों , मजदूरों के धरने आदि को महात्माजी के द्वारा जली-कटी सुनाने का यही आशय है। यही कारण है कि 1936-38 आते-न-आते बाबू-दल की वैधानिकता की विजय हो गई और पीछे चलकर 1939 तथा 1942 के जनांदोलन उसी के पोषक के रूप में ही चलाएगए-उसी के पुछल्ले बना दिएगए। इस प्रकार दोनों में जो पारस्परिक भयंकर विरोध 1921 के बाद जान पड़ता था , वह मिट गया और दोनों में सामंजस्य हो गया। 1947 के 15 अगस्त वाले स्वराज्य का यही तथ्य है , उसकी यही असलियत है।