मृत्यु की प्रतीक्षा में एक इंसान / अक्षय मोहंती / दिनेश कुमार माली

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अक्षय मोहंती (जिन्हें खोका भाई से भी जाना जाता है) (1937 - 2002) ओड़िशा के एक जाने-माने गायक, गीतकार, लेखक एवं संगीतज्ञ थे। उनके प्रकाशित गल्प-ग्रंथ अनेस्वता, नग्न मोनालिसा, बिचारा, यात्रा वृतांत बा बा रे अमेरिका, उपन्यास वामपंथी, अफेरा नाड़ी, गायक, जय नूहें जय, गोटिए कुहु –अनेक उहु हैं।


चारों तरफ गुलाब के पौधें। हर दिन फूल खिलते हैं। सभी रंगों के गुलाब। बगीचे के अंदर जाने से मन भर जाता है। ऐसा सुंदर गुलाब का बगीचा मुझे आजतक कहीं भी दिखाई नहीं दिया। यह मेरे बचपन की बात थी। उस समय इस शहर में इतने लोग नहीं रहते थे। सारे रास्ते कच्चे थे। शाम होने पर रास्तों पर बिलाव घूमते थे। रास्तों के दोनों तरफ केवल देवदारु के पेड़ थे। दूर से खूब सुंदर नजारा नजर आता था। हाँ तब हमारे घर से थोड़ी दूर एक ऊंची दीवार का घेरा बना हुआ था। बचपन से ही उस दीवार के उस पार क्या है,देखने की बहुत इच्छा थी।

मगर काफी कोशिश करने के बाद भी दीवार के ऊपर चढ़ नहीं पाता था। इसके अलावा दीवार पर काँच के टुकड़े लगे हुए थे। अगर चढ़ भी गए तो उस पर खड़ा होना मुश्किल था।

जिस दिन हाकी खेलने के लिए मुझे कैनवास के जूते दिए गए, उसी दिन मेरे दिमाग में आया कि ये जूते पहनकर दीवार पर चढ़ना होगा। एक दिन दोपहर के समय बहुत ही कष्ट के साथ पत्थरों का ढेर बनाकर कैनवास जूते पहन उस दीवार पर मैं चढ़ गया। एक दो जगह काँच घुसने की वजह से खून बहने लगा था, मगर दीवार के उस पार मैंने जो दृश्य देखा, मेरा मन खुशी से भर गया। एक बहुत बड़ा बगीचा। लेकिन बगीचे में केवल गुलाब के पौधें। और कुछ भी नहीं। चारों ओर गुलाब के पौधों के बीच एक घर। मगर घर के भीतर कौन है, यह जानना मुश्किल था ।

जब मैंने दोस्तों को यह खबर बताई तो एक ने कहा, शायद यहाँ एक माली का घर है, जो रोज सुबह यहाँ से फूल लेकर चंडी मंदिर में बेचता है। मगर ऐसे गुलाब के फूल हमने कभी चंडी मंदिर में नहीं देखें। शायद और कोई होगा। बहुत तर्क- वितर्क के बाद यह सामने आया कि शायद कोई सुंदर लड़की इस छोटे से घर में रहती है। वह दिन में बाहर नहीं निकलती है, रात होने पर बाहर निकलती है और अपने खाने- पीने का समान खरीदती है और फिर घर में घुस जाती है।

उस समय मैं बच्चा था, इसलिए मैं अपनी उम्र के अनुसार उस लड़की के बारे में सोचने लगा। शायद गुड़िया जैसी लड़की होगी। तुतलाकर बातें करती होगी। गोरे रंग की होगी। लाल फ्रॉक पहनती होगी। अवश्य टोकरी लेकर प्रतिदिन अपने हाथों से फूल तोड़ती होगी। इस प्रकार तरह- तरह के ख्याल मन में आने लगे।

धीरे-धीरे मेरी कल्पना इतनी दूर तक जाने लगी कि कभी- कभी मैं रात को उसके बारे में सपने देखने लगा। लड़की फूल तोड़ रही है, मैं दीवार पर बैठ कर उसे देख रहा हूँ। वह मुझे नहीं देख पा रही है – मुझे उसके गीत सुनाई दे रहे है। मुझे उसकी चोटी में बंधा हुई रिबन भी दिखाई दे रहा है। वह ठीक लाल रंग के कपड़े पहनी है। पाँवों में जूते या चप्पल कुछ भी नहीं। उसके नंगे पाँव देखकर मुझे कष्ट हो रहा है। आह ! अगर अनजाने में कहीं उसे काँटा चुभ गया तो कष्ट से वह कराह उठेगी। तब मैं दीवार से नीचे कूद जाऊंगा। उसके पाँव से काँटा निकालूँगा। मगर उस लड़की के पाँव में कोई कांटा नहीं चुभता है। वह इतनी अभ्यस्त है कि पगडंडी भी बिना देखे चलती है। चलते समय उसका ध्यान केवल फूलों की तरफ है। इतने प्यार से वह फूल क्यों तोड़ रही है? किसके लिए तोड़ रही है? उसके बाद सपने में मैं देखता हूँ कि अभी मुझे उसके पास जाना चाहिए। मगर पीछे से किसी की आवाज? माँ खड़ी है हाथ में डंडा लेकर। मैं डर जाता हूँ। कहीं माँ को उस लड़की के बारे में पता तो नहीं चल गया। नहीं,असंभव। क्योंकि माँ के सिर से एक बेंत और ऊंची दीवार है। जो भी हो दीवार पर चढ़ने के लिए माँ मुझे मारती है, सपने में ज़ोर- ज़ोर से मैं रोने लगता हूँ और मेरी नींद टूट जाती है।

दूसरे दिन खेल के मैदान में सपने की बात मैं अपने दोस्तों को सुनाता हूँ। सभी ने निश्चय किया कि एक दिन साहस करके उन्हें वहाँ घुसना पड़ेगा और उस लड़की को बाहर निकालना होगा। इस निर्णय के बाद हम सब शनिवार को स्कूल की छुट्टी होने के बाद सीधे गुलाब के बगीचे के नजदीक चले गए। हम सब की ऊंचाई लगभग समान थी, इसलिए सभी को पत्थर की सीढ़ी बनाकर चढ़ना पड़ा। और जिनके पास पाँवों में कैनवास के जूते नहीं थे, वे सभी नीचे खड़े होकर आँखों देखा हाल जानने के लिए प्रतीक्षा करने लगे।

काफी समय इंतजार करने के बाद यह देखा गया कि बगीचे के अंदर छोटे छपरीले घर से धुआँ निकलकर आकाश में मिल रहा है। इसका मतलब लड़की रसोई बना रही है। इसका मतलब वह बाहर का खाना नहीं खाती है। जब भी खाना खाती होगी, अवश्य बर्तन धोने के लिए कुएं के पास आती होगी। मगर कुआं कहाँ? पेड़ों की आड़ होने की वजह से कुआं हमे नहीं दिखाई दे रहा था। फिर बहुत समय इंतजार करने के बाद ऐसा लगा मानो किसी ने एक कटोरी पानी बाहर फेंक दिया हो। उस दिन का अभियान वहीं पर खत्म हुआ। धीरे- धीरे मेरे दोस्त लोगों का उत्साह उसका पता करने के लिए बढ़ने लगा। उन लोगों के प्रभाव से मैंने अनुसंधान करना कम कर दिया। मगर जब मैं अकेला रहता था, वह दीवार मुझे बुलाती थी। दीवार पर चढ़ने से गाली सुननी पड़ती थी, अपने लोगों से और दीवार के मालिक से भी। मगर मैंने उस दीवार पर बैठ- बैठकर एक ऐसी जगह खोज ली थी जहां से मुझे कोई नहीं देख सकेगा और उस फूल के बगीचे में तो कहने वाला कोई नहीं था। मैंने उस गुलगुल लड़की के इंतजार में बैठकर आहिस्ता- आहिस्ता फूलों के साथ बातचीत करना शुरू कर दिया। मैंने मन-ही-मन एक फूल से कहा –“ क्या बात है, आज तो बहुत झकास दिख रहा है? ” उसके पास आधे सूखे फूलों को देखकर मेरा मन उदास हो गया। मगर मेरा मन ज्यादा समय दुखी नहीं होता है। क्योंकि मन को खुश रखने के लिए और भी कई फूल खिले है। मन में केवल एक ही चिंता सता रही थी कि इस बगीचे का मालिक कौन है? एक दिन दीवार पर चलते- चलते बगीचे में मैंने पाँवों के छोटे- छोटे निशान देखें। वाह !मैं जो सोच रहा था, वह सही है। वास्तव में एक छोटी लड़की है। इतने छोटे निशान तो किसी बड़े आदमी के नहीं हो सकते, तो फिर यह लड़की मेरे सामने क्यों नहीं आती है?

मैंने बचपन मन के प्रेम को लेकर एक दिन एक पत्र लिखा –ज्यादा नहीं मात्र दो पंक्तियाँ। “ तुम्हें देखने की बहुत इच्छा हो रही है। तुम मेरे सामने कब आओगी? ” चिट्ठी लिखने के बाद जहां उस लड़की के पैरों के निशान थे, उसे वहाँ पर छोड़ कर आ गया।

उसके बाद मानो सांस रुकने लगी हो। घर में मानो सभी दोषी की तरह उसे देख रहे हो। हर समय ऐसा लग रहा था मानो मेरी चिट्ठी का सभी को पता चल गया हो। ऐसा लग रहा था किसी भी समय मुझे पीटा जा सकता है, जिसका कोई ठिकाना नहीं। बचपन की चिंतारहित नींद मानों कहीं गायब हो गई हो। तीन दिन, तीन रात मैं अस्तव्यस्त रहा। पढ़ाई में मन नहीं, खेल में मन नहीं, आँखों में नींद नहीं। चौथे दिन साहस करके फिर से दीवार के ऊपर चढ़ गया। दीवार के ऊपर चलते- चलते उस जगह गया जहां उसके पैरों के निशान देखे थे। दीवार से सटकर वहाँ एक पत्थर का पहिया रखा हुआ था। क्यों? पता नहीं, लेकिन वहाँ तीन सूखे गुलाब के गुलदस्ते और एक ताजा गुलाब का गुलदस्ता रखा हुआ था। इसका मतलब उस लड़की को मेरी चिट्ठी मिली है। इसका मतलब उसने मुझे गुलाब के फूल दिए है। लेकिन मैंने नहीं लिए। छि ! छि !

इस बार मैंने संकल्प लिया कि उसे बुलाऊंगा। मैंने चिल्लाकर कहा – “ तुम्हें मेरी चिट्ठी मिली है? ” मगर कोई जवाब नहीं। बल्कि रास्ते जाते एक बूढ़े आदमी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा – ‘ इतना छोटा लड़का फिर चिट्ठी।‘ बूढ़ा खड़ा हो गया। मैं दीवार पर चलते- चलते लौट गया।

उसके बाद मैं हर दिन गुलाब के फूल लेने जाता और उनसे खेलता। किसी को नहीं देता था। एक दिन फूल जहां पर रखे हुए थे, वहाँ चाक से लिखा हुआ था – “ फूलों से खेलते हो क्या? फूल भगवान को चढ़ाना और कहना मैंने दिए है। “

लिखे हुए अक्षर सुंदर नहीं थे, मानो पढ़ाई नहीं की हो। इसका मतलब कम पढ़ी –लिखी है। कितनी कक्षा तक पढ़ी होगी। शायद पहली कक्षा तक। मैंने तो उससे ज्यादा पढ़ाई की है, तो फिर मैं उसके साथ क्यों बातचीत नहीं कर सकता? मैं स्वयं क्यों नहीं जाऊंगा?

उसके बाद गुलाब के फूलों का गुलदस्ता मैं रोज मंदिर मैं देता और देते समय सोचता कि लड़की ने कहा है, ” भगवान को कहना कि मैंने दिए है।” मगर ऊंची आवाज मैं बोल नहीं पाता था, क्योंकि मंदिर में हमेशा लोगों की भीड़ रहती थी। फिर अगर कहता, ‘भगवान ये फूल ले लो उसने दिए है।” और अगर संयोगवश कोई सुन लेता और पूछ लेता कि वह कौन? मैं क्या उत्तर देता? नहीं, इसका कुछ न कुछ समाधान निकालना होगा। उस दिन मैं संकल्प के साथ गया कि लड़की के साथ आमने- सामने बातचीत करूंगा।

मेरी निर्दिष्ट जगह पर परिचित गुलाब के फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था, मगर मैंने आज उसे उठाने से पहले चारों तरफ देखा, शायद कोई मुझे छुप-छुपकर देख रहा हो – लड़की बहुत चालाक है – वह ऐसी जगह पर है जहां से वह मुझे देख सकती है मगर मैं उसे नहीं देख पा रहा हूँ। मैंने बगीचे की तरफ निगाह घुमाई, वहीं छोटे छोटे पाँवों के निशान। हरेक पेड़ के नीचे एक भी सूखा पत्ता देखने को नहीं मिला। पेड़,फूल और पत्तों पर जरा सी भी धूल नहीं। मानो किसी ने पानी डालकर धोए हो। वास्तव में जो फूलों का इतना ध्यान रखता है, वह कितना अच्छा इंसान होगा ! मैं उस लड़की को देखने के लिए व्यग्र हो गया। इस बार मैंने चिल्लाकर कहा – “ तुम मेरी बात सुन रही हो? ”

चारों तरफ सन्नाटा। दोपहर की तितलियाँ निर्भयतापूर्वक खेल रही थी फूलों के साथ। मैंने फिर चिल्लाकर कहा – “ अगर तुम मुझे सुन रही हो तो जवाब दो”

ऐसा लगा मानो आवाज हवा में घुल गई जैसे टार्च का प्रकाश आकाश में खो जाता है।

“ तुम अगर आज बात नहीं करोगी और अगर मुझे नहीं दिखाई दोगी, तो मैं और कभी यहाँ नहीं आऊँगा।“

मेरे स्वर में नाराजगी और क्रोध था। उस समय घर के भीतर से एक आवाज सुनाई दी। मैंने उत्साहपूर्वक कहा – “तुम अगर मेरी बात सुन रही हो तो अपने आँगन में एक गिलास पानी फेंक दो।”

मेरी आवाज सुनने के कुछ देर बाद किसी ने एक गिलास पानी फेंक दिया।

“ अच्छा तो तुम मेरी बात सुन रही हो। अब सामने आओ। अगर सामने नहीं आई तो मैं कसम खाकर कहता हूँ कि यहाँ पर और कभी नहीं आऊँगा और तुम्हारे फूल कभी भी चंडी मंदिर नहीं चढ़ेंगे।”

तभी घर का दरवाजा खुला। यह क्या – मेरे जीवन के पहले सपने और सत्य की जानकारी। मैं यह क्या देख रहा हूँ? घर के भीतर से रेंगते- रेगते बाहर निकल रहा है एक पंगु। हाथ की सारी अंगुलियाँ एक साथ मिल गई हैं। पैर सब चिकने हो गए है। यह आदमी है या भूत? वह आदमी कहने लगा –

“ मुझे देखकर सब डर जाते है, तुम नहीं डरोगे? ”

मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी।

“ तुम मेरे फूल चंडी मंदिर में चढ़ाते थे। अगर मैं स्वयं ले जाता तो मेरे हाथ से कोई नहीं लेता।“

मैं मानो पत्थर हो गया।

“ हाँ, मुझे क्यों ढूंढ रहे थे? ”

मैं क्या कहूँ, समझ नहीं पा रहा था। वह कोढ़ी आदमी होगा, सोचा न था। मुझे सिर्फ एक बात को लेकर आश्चर्य हो रहा था –मैंने सोचा क्या था और देखा क्या? और शायद बाकी जीवन में इस बात को लेकर हर विषय पर आश्चर्य होता है और होगा भी। मगर उस दिन मैंने साहस के साथ पूछा –

“तुम यहाँ क्या करते हो? ”

उसने हँसते हँसते उत्तर दिया –“मरने का इंतजार।”

मैं उस बात को नहीं समझ पाया। बात का अर्थ भी समझने की किसी से कोशिश की। क्योंकि उस समय तो मेरा जीवन शुरू हुआ है। मरने का प्रसंग तो बहुत दूर की बात। अतः मुझे यह घटना जीवन भर सांत्वना और प्रेरणा देती है। अभी भी कभी- कभी जब मैं आत्म-हत्या की बात सोचता हूँ, तब यह सांत्वना देती है।

“ आत्म-हत्या क्यों? मरने के लिए तो गुलाब के बगीचे में भी इंतजार किया जा सकता है।”