मेरी आत्मकथा / अध्याय 3 / चार्ली चैप्लिन / सूरज प्रकाश

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पिता जी मिस्टर जैक्सन को जानते थे। वे एक ट्रुप के संचालक थे। पिता जी ने मां को इस बात के लिए मना लिया कि मेरे लिए स्टेज पर कैरियर बनाना एक अच्छी शुरुआत रहेगी और साथ ही साथ मैं मां की आर्थिक रूप से मदद भी कर पाऊंगा। मेरे लिए खाने और रहने की सुविधा रहेगी और मां को हर हफ्ते आधा क्राउन मिला करेगा। शुरू-शुरू में तो वह अनिश्चय में डोलती रही, लेकिन मिस्टर जैक्सन और उनके परिवार से मिलने के बाद मां ने हामी भर दी।

मिस्टर जैक्सन की उम्र पचास-पचपन के आस-पास थी। वे लंकाशायर में अध्यापक रहे थे और उनके परिवार में चार बच्चे थे। तीन लड़के और एक लड़की। ये चारों बच्चे अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली के सदस्य थे। मिस्टर जैक्सन परम रोमन कैथोलिक थे और अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने के बारे में उन्होंने अपने बच्चों से सलाह ली थी। उनकी दूसरी पत्नी उम्र में उनसे भी थोड़ी बड़ी थी। वे हमें पूरी नेकनीयती से बता दिया करते कि उन दोनों की शादी कैसे हुई थी। उन्होंने एक अखबार में अपने लिए एक बीवी के लिए एक विज्ञापन दिया था और उसके जवाब में तीन सौ से भी ज्यादा ख़त मिले थे।

भगवान से राह सुझाने के लिए दुआ करने के बाद उन्होंने केवल एक ही लिफाफा खोला था और वह खत था मिसेज जैक्सन की ओर से। वे भी एक स्कूल में पढ़ाती थीं और शायद ये मिस्टर जैक्सन की दुआओं का ही असर था कि वे भी कैथोलिक थीं।

मिसेज जैक्सन को बहुत अधिक खूबसूरती का वरदान नहीं मिला था और न ही उन्हें किसी भी निगाह से कमनीय ही कहा जा सकता था। जहां तक मुझे याद है, उनका बड़ा सा, खोपड़ी जैसा पीला चेहरा था और उस पर ढेर सारी झुर्रियां थीं। शायद इन झुर्रियों की वज़ह यह रही हो कि उन्हें काफी बड़ी उम्र में मिस्टर जैक्सन को एक बेटे की सौगात देनी पड़ी थी। इसके बावजूद वे निष्ठावान और समर्पित पत्नी थीं और हालांकि उन्हें अभी भी अपने बेटे को छाती का दूध पिलाना पड़ता था, वे ट्रुप की व्यवस्था में हाड़-तोड़ मेहनत करके मदद किया करती थीं।

जब उन्होंने रोमांस की अपनी दास्तान सुनायी तो यह दास्तान मिस्टर जैक्सन की बतायी कहानी से थोड़ी अलग थी। उनमें आपस में पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था लेकिन उन दोनों में से किसी ने भी दूसरे को शादी के दिन तक नहीं देखा था और बैठक के कमरे में उन दोनों के बीच जो पहली मुलाकात हुई थी और परिवार के बाकी लोग दूसरे कमरे में इंतज़ार कर रहे थे, मिस्टर जैक्सन ने कहा था, "बस, आप वही हैं जिनकी मुझे चाह थी।" और मैडम ने भी वही बात स्वीकार की। हम बच्चों को ये किस्सा सुनाते समय वे विनम्र हो कर कहतीं,"लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे हाथों-हाथ आठ बच्चों की मां बन जाना पड़ेगा।"

उनके तीन बच्चों की उम्र बारह से अट्ठारह बरस के बीच थी और लड़की की उम्र नौ बरस थी। उस लड़की के बाल लड़कों की तरह कटे हुए थे ताकि उसे भी मंडली के बाकी लड़कों में खपा लिया जा सके।

हर रविवार को मेरे अलावा सब लोग गिरजाघर जाया करते थे। मैं ही उन सब में अकेला प्रोटैस्टैंट था, इसलिए अक्सर उनके साथ ही चला जाता। मां की धार्मिक भावनाओं के प्रति सम्मान न होता तो मैं कब का कैथोलिक बन चुका होता क्योंकि मैं इस धर्म का रहस्यवाद पसंद करता था और घर की बनी हुई छोटी-छोटी ऑल्टर तथा लास्टर की मेरी वर्जिन की मूर्तियां, जिन पर फूल और मोमबत्तियां सजी रहतीं, मुझे अच्छी लगतीं। इन्हें बच्चे अपने बेडरूम के कोने में सजा कर रखते और जब भी उसके आगे से गुज़रते, घुटने टेक कर श्रद्धा अर्पित करते।

छ: सप्ताह तक अभ्यास करने के बाद मैं अब इस स्थिति में था कि बाकी मंडली के साथ नाच सकूं। लेकिन चूंकि मैं अब आठ बरस की भी उम्र पार कर चुका था, मैं अपनी आश्वस्ति खो चुका था और पहली बार दर्शकों के सामने आने पर मुझे मंच का भय लगा। मैं मुश्किल से अपनी टांगें हिला पा रहा था। हफ्तों लग गये तब कहीं जा कर मैं मंडली के बाकी बच्चों की तरह एकल नृत्य करने की हालत में आ सका।

मैं इस बात को ले कर बहुत अधिक खुश नहीं था कि मुझे भी मंडली के बाकी आठ बच्चों की तरह क्लॉग डांसर ही बना रहना पड़े। बाकी बच्चों की तरह मैं भी एकल अभिनय करने की महत्त्वाकांक्षा रखता था। सिर्फ इसलिए नहीं कि इस तरह के काम के ज्यादा पैसे मिलते थे बल्कि इसलिए भी कि मैं शिद्दत से महसूस करता था कि नाचने के बजाये इस तरह के अभिनय से कहीं ज्यादा संतुष्टि मिलती है। मैं बाल हास्य कलाकार बनना चाह सकता था लेकिन उसके लिए स्टेज पर अकेले खड़े रहने का माद्दा चाहिये था। इसके अलावा मेरी पहली भीतरी प्रेरणा यही थी कि मैं एकल नृत्य के अलावा जो कुछ भी करूंगा, हास्यास्पद होगा। मेरा आदर्श दोहरा अभिनय था। दो बच्चे कॉमेडी ट्रैम्प की तरह कपड़े पहने हों। मैंने यह बात अपने एक साथी बच्चे को बतायी और हम दोनों ने पार्टनर बनना तय किया। ये हमारा कब का पाला सपना पूरा होने जा रहा था। हम अपने आपको ब्रिस्टॉल और चैप्लिन - करोड़पति ट्रैम्प कहते और ट्रैम्प गलमुच्छे लगाते, और हीरे की बड़ी बड़ी अंगूठियां पहनते। हमने उस हर पहलू पर विचार कर लिया था जो मज़ाकिया होता और जिससे कमाई हो सकती लेकिन अफ़सोस, ये सपना कभी भी साकार नहीं हो सका।

दर्शक अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली पसंद करते थे क्योंकि जैसा कि मिस्टर जैक्सन कहते थे - हम थियेटर के बच्चों जैसे बिलकुल भी नहीं लगते थे। उनका यह दावा था कि हमने कभी भी अपने चेहरों पर ग्रीज़ पेंट नहीं पोता, और हमारे गुलाबी गाल वैसे ही गुलाबी थे। यदि कोई बच्चा स्टेज पर जाने से पहले जरा-सा भी पीला दिखायी देता तो वे हमें बताते कि अपने गालों को मसल दें। लेकिन लंदन में एक ही रात में दो या तीन संगीत सदनों में काम करने के बाद अक्सर हम भूल जाते और स्टेज पर खड़े हुए थके-मांदे और मनहूस लगने लगते। तभी हमारी निगाह विंग्स में खड़े मिस्टर जैक्सन पर पड़ती और वे ज़ोर-ज़ोर से खींसें निपोरते हुए अपने चेहरे की तरफ इशारा कर रहे होते। इसका बिजली का-सा असर होता और हम अचानक हँसी के मारे दोहरे हो जाते।

प्रदेशों के टूर करते समय हम हर शहर में एक-एक हफ्ते के लिए स्कूल जाया करते। लेकिन इससे मेरी पढ़ाई में कोई खास इज़ाफा नहीं हुआ।

क्रिसमस के दिनों में हमें लंदन हिप्पोड्रोम में सिंडरेला पैंटोमाइम में बिल्ली और कुत्ते का मूक अभिनय करने का न्यौता मिला। उन दिनों ये नया थियेटर हुआ करता था और इसमें वैराइटी शो और सर्कस का मिला-जुला रूप हुआ करता था। इसे बहुत खूबसूरती से सजाया जाता और काफी हंगामा रहा करता था। रिंग का फर्श नीचे चला जाता था और वहां पानी भर जाता था और काफी बड़े पैमाने पर बैले होता। एक के बाद एक बला की खूबसूरत लड़कियां चमकीली सज-धज में आतीं और पानी के नीचे एकदम गायब हो जातीं। जब लड़कियों की आखिरी पंक्ति भी डूब जाती तो मैर्सलाइन, महान फ्रांसीसी जोकर, शाम की बेतुकी, चिकनी पोशाक में सजे धजे, एक कैम्प स्टूल पर बैठे हाथ में मछली मारने की रॉड लिये अवतरित होते और बड़ा-सा गहनों का बक्सा खोलते, अपने कांटे में हीरे का एक नेकलेस फंसाते और उसे पानी में डाल देते। थोड़ी देर के बाद वे छोटे आभूषण निकालते और कुछ बेसलेट फेंकते, और इस तरह पूरा का पूरा बक्सा खाली कर डालते। अचानक वे एक झटका खाते और तरह-तरह की मजाकिया हरकतें करते हुए रॉड के साथ संघर्ष करते हुए प्रतीत होते और आखिर कांटे को खींच कर बाहर निकालते और हम देखते कि पानी में से एक छोटा-सा प्रशिक्षित कुत्ता बाहर आ रहा है। कुत्ता वही सब कुछ करता जो मार्सलीन करते। अगर वे बैठते तो कुत्ता भी बैठ जाता और अगर वे खड़े होते तो कुत्ता भी खड़ा हो जाता। मार्सलीन साहब की कॉमेडी हंसी-ठिठोली से भरी और आकर्षक थी और लंदन के लोग उनके पागलपन की हद तक दीवाने थे।

रसोई के एक दृश्य में मुझे उनके साथ करने के लिए एक छोटा-सा मजाकिया दृश्य दिया गया। मैं बिल्ली बना हुआ था और मार्सलीन एक कुत्ते की तरफ से पीछे आते हुए मेरे ऊपर गिर जाने वाले थे जबकि मैं दूध पी रहा होता। वे हमेशा शिकायत किया करते कि मैं अपनी कमर को इतना नहीं झुकाता कि उनके गिरने के बीच आड़े आऊं। मैंने बिल्ली का एक मुखौटा पहना हुआ था और मुखौटा ऐसा कि जिस पर हैरानी के भाव थे। बच्चों के लिए पहले मैटिनी शो में मैं कुत्ते के शरीर के पिछले हिस्से की तरफ चला गया और उसे सूंघने लगा। जब दर्शक हंसने लगे तो मैं वापिस मुड़ा और उनकी तरफ हैरानी से देखने लगा और मैंने एक डोरी खींची जिससे बिल्ली की घूरती हुई आंख मुंद जाती थी। मैं जब कई बार सूंघने और आंख मारने का अभिनय कर चुका तो स्टेज मैनेजर लपका हुआ बैक स्टेज में आया और विंग्स में से पागलों की तरह हाथ हिलाने लगा। लेकिन मैं अपने काम में लगा रहा। कुत्ते को सूंघने के बाद मैंने रंगमंच सूंघा और फिर अपनी टांग उठा दी। दर्शक हँस हँस कर दोहरे हो गये। शायद इसलिए क्योंकि ये हरकत बिल्ली जैसी नहीं थी। आखिरकार मैनेजर से मेरी आंखें मिल ही गयीं और मैं इतना कूदा-फांदा कि लोग हँसते हँसते लोट पोट हो गये। वे मुझ पर झल्लाये,"इस तरह की हरकत फिर कभी मत करना।" यह कहते हुए उनकी सांस फूल रही थी,"तुम जरूर इस थियेटर के मालिक लॉर्ड चैम्बरलिन को ये थियेटर बंद करने पर मजबूर करोगे।"

सिंडरेला को आशातीत सफलता मिली। और हालांकि मार्सलीन साहब को कहानी तत्व या प्लॉट के साथ कुछ लेना-देना नहीं था, फिर भी वे सबसे बड़ा आकर्षण थे। कई बरसों के बाद मार्सलीन न्यूयॉर्क के हिप्पोड्रोम में चले गये और उन्हें वहां भी हाथों-हाथ लिया गया। लेकिन जब हिप्पोड्रोम की जगह सर्कस ने ले ली तो मार्सलीन साहब को जल्दी ही भुला दिया गया।


1918 या उसके आस पास की बात है, रिंगलिंग ब्रदर्स का थ्री रिंग सर्कस लॉस एंजेल्स में आया तो मार्सलीन उनके साथ थे। मैं ये मान कर चल रहा था कि उनका ज़िक्र पोस्टरों में होगा लेकिन मुझे यह देख कर गहरा धक्का लगा कि उनकी भूमिका बहुत से उन दूसरे जोकरों की ही तरह थी जो पूरे रिंग में यहां से वहां तक दौड़ते नज़र आते हैं। एक महान कलाकार तीन रिंग वाले सर्कस की अश्लील तड़क-भड़क में खो गया था।

बाद में मैं उनके ड्रेसिंग रूम में गया और अपना परिचय दिया और उन्हें याद दिलाया कि मैंने उनके साथ लंदन के हिप्पोड्रोम में बिल्ली की भूमिका अदा की थी। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया उदासीन थी। यहां तक कि अपने जोकर वाले मेक-अप में भी उनका चेहरा सूजा हुआ लग रहा था और वे उदास और सुस्त लग रहे थे।

एक बरस बाद न्यू यार्क में उन्होंने खुदकुशी कर ली। अखबारों में एक कोने में छोटी-सी खबर छपी थी कि उसी घर में रहने वाले एक पड़ोसी ने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी और मार्सलीन को फर्श पर पड़े हुए देखा था। उनके एक हाथ में पिस्तौल थी और ग्रामोफोन रिकार्ड अभी भी घूम रहा था। रिकार्ड पर जो गीत बज रहा था, वह था, "मूनलाइट एंड रोजेज़।"


कई मशहूर अंग्रेज़ी कॉमेडियनों ने खुदकुशी की है। टी ई डनविले, जो बहुत ही आला दरजे के हंसोड़ व्यक्ति थे, ने सैलून बार के भीतर जाते समय किसी को पीठ पीछे यह कहते सुन लिया था,"अब इस शख्स के दिन लद गये।" उसी दिन उन्होंने टेम्स नदी के किनारे अपने आप को गोली मार दी थी।

मार्क शेरिडन, जो इंगलैंड के सर्वाधिक सफल कामेडियन थे, ने ग्लासगो में एक सार्वजनिक पार्क में अपने आपको गोली मार दी थी क्योंकि वे ग्लासगो के दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे थे।

फ्रैंक कॉयन, जिनके साथ हमने उसी शो में काम किया था, जांबाज़, हट्टे-कट्टे कामेडियन थे और जो अपने एक हल्के-फुल्के गाने के लिए बहुत प्रसिद्ध थे:


आप मुझे घोड़े की पीठ पर दोबारा सवार नहीं पायेंगे

ऐसा नहीं है वह घोड़ा चढ़ सकूं जिस पर मैं

जिस घोड़े पर मैं चढ़ सकता हूं वो तो

है वो जिस पर मोहतरमा सुखाती है कपड़े


स्टेज के बाहर वे हमेशा खुश रहते और मुस्कुराते रहते। लेकिन एक दोपहर, अपनी पत्नी के साथ घोड़ी वाली गाड़ी पर सैर की योजना बनाने के बाद वे कुछ भूल गये और अपनी पत्नी से कहा कि वह इंतज़ार करे और वे खुद सीढ़ियां चढ़ कर भीतर गये। बीस मिनट के बाद जब वह ऊपर यह देखने के लिए गयी कि उन्हें आने में देर क्यों हो रही है तो उसने उन्हें बाथरूम के फर्श पर खून से लथपथ पड़े हुए पाया। उनके हाथ में उस्तरा था और उन्होंने अपना गला काट कर अपने आपको लगभग खत्म ही कर डाला था।

अपने बचपन में मैंने जिन कई कलाकारों के साथ काम किया था और जिन्होंने मुझे प्रभावित किया था, वे स्टेज पर हमेशा सफल नहीं थे बल्कि स्टेज से बाहर उनका विलक्षण व्यक्तित्व हुआ करता था। जार्मो नाम के एक कॉमेडी ट्रैम्प बाजीगर हुआ करते थे जो कड़े अनुशासन में काम करते थे और थियेटर के खुलते ही हर सुबह घंटों तक अपनी बाजीगरी का अभ्यास किया करते थे। हम उन्हें स्टेज के पीछे देख सकते थे कि वे बिलियर्ड खेलने की छड़ी को अपनी ठुड्डी पर संतुलित कर रहे हैं और एक बिलियर्ड गेंद उछाल कर उसे इस छड़ी के ऊपर टिका रहे हैं। इसके बाद वे दूसरी गेंद उछालते और पहली गेंद के ऊपर टिका देते। अक्सर वे दूसरी गेंद टिकाने में चूक जाते। मिस्टर जैक्सन ने बताया कि वे चार बरस तक लगातार इस ट्रिक का अभ्यास करते रहे थे और सप्ताह के अंत में इसे पहली बार दर्शकों के सामने दिखाना चाह रहे थे। उस रात हम सब विंग्स में खड़े उन्हें देखते रहे। उन्होंने बिलकुल ठीक प्रदर्शन किया और पहली ही बार ठीक किया। गेंद को ऊपर उछालना और बिलियर्ड की छड़ी पर ऊपर टिका देना और फिर दूसरी गेंद उछालना और उसे पहली गेंद के ऊपर टिका देना लेकिन दर्शकों ने मामूली सी तालियां ही बजायीं।

मिस्टर जैक्सन ने उस रात का किस्सा बताया था, उन्होंने जार्मो से कहा था,"तुम इस ट्रिक को बहुत ही आसान बना डालते हो। इस वज़ह से तुम इसे बेच नहीं पाते। तुम इसे कई बार मिस करो, तब जा कर गेंद को ऊपर टिकाओ, तब बात बनेगी।" जार्मो हंसे थे,"मैं इतना कुशल नहीं हूं कि इसे मिस कर सकूं।" जार्मो मानस विज्ञान में भी दिलचस्पी रखते थे और हमारे चरित्र पढ़ा करते। उन्होंने मुझे बताया था कि मैं जो कुछ भी ज्ञान हासिल करूंगा, उसे बनाये रखूंगा और उसका बेहतर इस्तेमाल करूंगा।

इनके अलावा, ग्रिफिथ बंधु हुआ करते थे। मज़ाकिया और प्रभाव छोड़ने वाले। उन्होंने मेरा मनोविज्ञान ही उलट-पुलट डाला था। वे दोनों कॉमेडी ट्रैपीज़ जोकर थे और दोनों ट्रैपीज़ पर झूला करते। वे मोटे पैड लगे जूतों से एक दूसरे के मुंह पर जोर से लात जमाते।

"आह," लात खाने वाला चिल्लाता।

"ज़रा एक बार फिर मार कर तो दिखा।"

"ले और ले। एक और लात"

और फिर लात खाने वाला हैरानी से देखता रह जाता और आंखें नचाता और कहता,"अरे देखो, उसने फिर से लात मार दी है।"

मुझे इस तरह की पागलपन से भरी हिंसा से तकलीफ होती। लेकिन स्टेज से बाहर वे दोनों भाई बहुत प्यारे, शांत और गम्भीर होते।

मेरा ख्याल है, किंवदंती बन चुके ग्रिमाल्डी के बाद डान लेनो महान अंग्रेज़ कॉमेडियन रहे। हालांकि मैंने कभी भी लेनो को उनके चरम उत्कर्ष पर नहीं देखा, वे मेरे लिए कॉमेडियन के बजाये चरित्र अभिनेता अधिक थे। लंदन के निचले वर्गों के सनक से भरे जीवन के उनके खाके, स्कैच अत्यंत मानवीय और दिल को छू लेने वाले होते, मां ने मुझे बताया था।

प्रसिद्ध मैरी लॉयड की प्रसिद्धि छिछोरी औरत के रूप में थी। इसके बावजूद जब हमने उनके साथ स्ट्रैंड में ओल्ड टिवोली में अभिनय किया तो वे ज्यादा गम्भीर और सतर्क अभिनेत्री लगीं। मैं उन्हें आंखें चौड़ी किये देखता रहता। एक चिंतातुर, छोटी-मोटी महिला जो दृश्यों के बीच आगे-पीछे कदम ताल करती रहती थीं।

वे तब तक गुस्से में और डरी रहतीं जब तक उनके लिए मंच पर जाने का समय न आ जाता। उसके बाद वे एकदम खुशमिजाज दिखतीं और उनके चेहरे पर राहत के भाव आ जाते।

और फिर, ब्रांसबाय विलियम्स, जो डिकेंस के पात्रों का अभिनय करते थे, वे उरिया हीप, बिल साइक्स और द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के बूढ़े आदमी की नकल से मुझे आनन्दित किया करते थे। इस खूबसूरत, अभिजात्य पुरुष का ग्लासगो की उजड्ड जनता के सामने अभिनय करना और अपने आप को इन शानदार चरित्रों में ढाल कर करतब दिखाना, थियेटर के नये ही अर्थ खोलता था।

उन्होंने साहित्य के प्रति भी मेरे मन में अनुराग जगाया था। मैं जानना चाहता था कि आखिर वह अबूझ रहस्य क्या है जो किताबों में छुपा रहता है, डिकेंस के ये ज़मीनी रंग के चरित्र जो इस तरह की आश्चर्यजनक क्रुक्शांकियाई दुनिया में विचरते हैं। हालांकि मैं मुश्किल से पढ़ पाता था, मैंने आखिरकार ऑलिवर ट्विस्ट की प्रति खरीदी।

मैं चार्ल्स डिकेंस के चरित्रों के साथ इतना ज्यादा रोमांचित था कि मैं उनकी नकल करने वाले ब्रांसबाय विलियम्स की नकल करता। इस बात से इनकार कैसे किया जा सकता है कि इस तरह की उभरती हुई प्रतिभा पर किसी की निगाह न जाती। इसे छुपा कर कैसे रखा जा सकता था। तो हुआ ये कि एक दिन मिस्टर जैक्सन ने मुझे अपने दोस्तों का द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के बूढ़े का चरित्र निभा कर उसकी नकल करते देख लिया। मुझे तब और तभी जीनियस मान लिया गया और मिस्टर जैक्सन ने तय कर लिया कि वे पूरी दुनिया से इस प्रतिभा का परिचय करवा के रहेंगे।

अचानक मौका आया मिडल्सबोरो में थियेटर में। हमारे क्लॉग नृत्य के बाद मिस्टर जैक्सन स्टेज पर कुछ इस तरह का भाव लिये हुए आये मानो वे एक नये मसीहा का परिचय कराने के लिए चले आ रहे हों। उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने एक बाल प्रतिभा खोज निकाली है और द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के उस बूढ़े की ब्रांसबाय विलियम्स की नकल करके दिखायेगा जो अपने नन्हें नेल की मृत्यु को पहचान नहीं पाता।

दर्शक इसके लिए बहुत ज्यादा तैयार नहीं थे, क्योंकि वे पहले ही पूरी शाम का एक बोर मनोरंजन झेल चुके थे। अलबत्ता, मैं अपनी डांस वाली सामान्य पोशाक पहने हुए ही मंच पर आया। मैंने सफेद लीनन का फ्रॉक, लेस वाले कॉलर, चमकीले निक्कर, बॉकर पैंट, और नाचने के समय के लाल जूते पहले पहने हुए थे। और मैं अभिनय कर रहा था ऐसे बूढ़े का जो नब्बे बरस का हो। कहीं से हमें एक ऐसी पुरानी विग मिल गयी थी - शायद मिस्टर जैक्सन कहीं से लाये होंगे, जो वैसे तो बड़ी थी लेकिन जो मुझे पूरी नहीं आ रही थी हालांकि मेरा सिर बड़ा था लेकिन विग उससे भी बड़ी थी। ये एक गंजे आदमी वाली विग थी और उसके चारों तरफ सफेद लटें झूल रही थीं इसलिए मैं जब स्टेज पर एक बूढ़े आदमी की तरह झुका हुआ पहुंचा तो इसका असर घिसटते गुबरैले की तरह था और दर्शकों ने इस तथ्य को दबी हंसी के साथ स्वीकार किया।

इसके बाद तो उन्हें चुप कराना ही मुश्किल हो गया। मैं दबी हुई फुसफुसाहट में बोल रहा था," हश़ ... हश़.... शोर मत करो, नहीं तो मेरा नेल जग जायेगा।"

"जोर से बोलो, जोर से बोलो" दर्शक चिल्लाये।

लेकिन मैं बहुत ही अनौपचारिक तरीके से उसी तरह से फुसफुसाहट के स्वर में ही बोलता रहा। मैं इतने अंतरंग तरीके से बोल रहा था कि दर्शक पैर पटकने लगे। चार्ल्स डिकेंस के चरित्रों को जीने के रूप में ये मेरे कैरियर का अंत था।


हालांकि हम किफायत से रहते थे लेकिन हम अष्टम लंकाशायर बाल गोपालों का जीवन ठीक-ठाक चल रहा था। कभी कभी हम लोगों में छोटी-मोटी असहमति भी हो जाती। मुझे याद है, हम दो युवा एक्रोबैट्स के साथ एक ही प्रस्तुति में काम कर रहे थे। प्रशिक्षु लड़के मेरी ही उम्र के रहे होंगे। उन्होंने हमें विश्वास पूर्वक बताया कि उनकी मांओं को तो सात शिलिंग और छ: पेंस हफ्ते के मिलते हैं और हर सोमवार की सुबह उन्हें नाश्ते की बैकन और अंडे की प्लेट के नीचे एक शिलिंग की पाकेट मनी भी रखी मिलती है। और हमें तो, हमारे ही एक साथी ने शिकायत की,"हमें तो सिर्फ दो ही पेंस मिलते हैं और ब्रेड जैम का नाश्ता मिलता है।"

जब मिस्टर जैक्सन के पुत्र जॉन ने ये सुना कि हम शिकायत कर रहे हैं तो वह रुआंसा हो गया और एकदम रो पड़ा। हमें बताने लगा कि हमें कई बार लंदन के उन उपगनरों में ऐसे भी सप्ताह गुज़ारने पड़ते हैं जब उसके पिता को पूरी मंडली के लिए मात्र सात पौंड ही मिल पाते हैं और वे किसी तरह गाड़ी खींचने में बहुत ही मुश्किल का सामना कर रहे हैं।

इन दोनों युवा एक्रोबैट्स की इस शानदार जीवन शैली का ही असर था कि हमने भी एक्रोबैट बनने की हसरतें पाल लीं। इसलिए कई बार सुबह के वक्त, जैसे ही थियेटर खुलता, हम में से एक या दो जन एक रस्सी के साथ कलाबाजियां खाने का अभ्यास करते। हम रस्सी को अपनी कमर से बांध लेते, जो एक पूली से जुड़ी होती, और हम में से एक लड़का रस्सी को थामे रहता। मैंने इस तरीके से अच्छी कलाबाजियां खाना सीख लिया था कि तभी मैं गिरा और अपने अंगूठे में मोच खा बैठा। इसी के साथ ही मेरे एक्रोबैट के कैरियर का अंत हुआ।

नृत्य के अलावा हमेशा हम लोगों की कोशिश होती कि अपने आइटम में नया कुछ जोड़ें। मैं एक कॉमेडी बाजीगर बनना चाहता था। और इसके लिए मैंने इतने पैसे बचा लिये थे कि मैंने उनसे रबर की चार गेंदें और टिन की चार प्लेटें खरीदीं। मैं अपने बिस्तर के पास खड़ा घंटों इनके साथ अभ्यास किया करता।

मिस्टर जैक्सन अनिवार्य रूप से एक बेहतरीन आदमी थे। मेरे ट्रुप छोड़ने से तीन महीने पहले उन्होंने मेरे पिता की सहायतार्थ एक आयोजन किया था और उसमें हम लोग शामिल हुए थे। मेरे पिता उन दिनों बहुत बीमार चल रहे थे। कई वैराइटी कलाकारों ने बिना कोई शुल्क लिये अपनी सेवाएं दीं। मिस्टर जैक्सन की अष्टम बाल गोपाल मंडली ने भी अपनी सेवाएं दीं। उस सहायतार्थ आयोजन में मेरे पिता स्टेज पर मौज़ूद थे और वे बहुत मुश्किल से सांस ले पा रहे थे। बहुत तकलीफ़ से वे अपना भाषण दे पाये थे। मैं स्टेज पर एक तरफ खड़ा उन्हें देख रहा था। उस वक्त मैं नहीं जानता था कि वे तिल-तिल मौत की तरफ बढ़ रहे थे।


जब हम लंदन में होते तो मैं हर सप्ताह मां से मिलने के लिए जाता। उसे लगता कि मैं पीला पड़ गया हूं और कमज़ोर हो गया हूं और कि नाचने से मेरे फेफड़ों पर असर हो रहा है। इस बात ने उसे इतना चिंतित कर दिया कि उसने इस बारे में मिस्टर जैक्सन को लिखा। मिस्टर जैक्सन इतने नाराज़ हुए कि आखिरकार उन्होंने मुझे घर का ही रास्ता दिखा दिया कि मैं चिंतातुर मां का लाडला इतनी बड़ी परेशानी के लायक नहीं हूं।

अलबत्ता, कुछ ही हफ्तों के बाद मुझे दमा हो गया। दमे के दौरे इतने तेज होते कि मां को पूरा यकीन हो गया कि मुझे टीबी हो गयी है और वह मुझे तुरंत ब्राम्पटन अस्पताल ले गयी। वहां मेरी अच्छी तरह से पूरी जांच की गयी। मेरे फेफड़ों में कोई भी खराबी नहीं थी, बस, मुझे अस्थमा हो गया था। महीनों तक मैं उसकी तकलीफ से गुज़रता रहा और मुझे सांस लेने में भी तकलीफ होती थी। कई बार तो खिड़की से बाहर कूद जाने की मेरी इच्छा होती। सिर पर कंबल डाले जड़ी-बूटियों की भाप लेने से भी मेरे सिर दर्द में कोई कमी न आती। लेकिन जैसा कि डॉक्टर ने कहा था, अंतत: मैं ठीक हो जाऊंगा, मैं ठीक हो ही गया।


इस दौरान की मेरी स्मृतियां स्पष्ट और धूमिल होती रहती हैं। सबसे उल्लेखनीय छवि तो हमारी दयनीय हालात का निचाट कछार है। मुझे याद नहीं पड़ता कि उन दिनों सिडनी कहां था। चूंकि वह मुझसे चार बरस बड़ा था, वह कभी-कभार ही मेरे चेतन में आता। ऐसा हो सकता है कि मां की तंग हालत के कारण वह नाना के पास रह रहा हो। हम अपना डोरा-डंडा उठाये एक गरीबखाने से दूसरे गरीबखाने की ओर कूच करते रहते। और अंतत: 3 पाउनाल टैरेस की दुछत्ती पर आ बसे थे।

मुझे अपनी गरीबी के सामाजिक कलंक का अच्छी तरह से भान था। गरीब से गरीब बच्चे भी रविवार की शाम को घर के बने डिनर का लुत्फ ले ही लिया करते थे। घर पर कोई भुनी हुई चीज़ का मतलब सम्मानजनक स्थिति हुआ करता था जो एक गरीब को दूसरे गरीब से अलग करती थी। वे लोग, जो रविवार की शाम घर पर डिनर के लिए नहीं बैठ पाते थे, उन्हें भिखमंगे वर्ग का माना जाता था और हम उसी वर्ग में आते थे। मां मुझे नजदीकी कॉफी शॉप से छ: पेनी का डिनर (मीट और दो सब्जियां) लेने के लिए भेजती। और सबसे ज्यादा शर्म की बात ये होती कि ये रविवार की शाम होती। मैं उसके आगे हाथ जोड़ता कि वह घर पर ही कोई चीज़ क्यों नहीं बना लेती और वह बेकार में ही यह समझाने की कोशिश करती कि घर पर ये ही चीजें बनाने में दुगुनी लागत आयेगी।

अलबत्ता, एक सौभाग्यशाली शुक्रवार को, जब उसने घुड़दौड़ में पांच शिलिंग जीते थे, मुझे खुश करने की नीयत से मां ने तय किया कि वह रविवार के दिन डिनर घर पर ही बनायेगी। दूसरी स्वादिष्ट चीजों के अलावा वह भूनने वाला मांस भी लायी जिसके बारे में वह तय नहीं कर पा रही थी कि ये गाय का मांस है या गुर्दे की चर्बी का लोंदा है। ये लगभग पांच पौंड का था और उस पर चिप्पी लगी हुई थी,"भूनने के लिए।"

हमारे पास क्योंकि ओवन नहीं था, इसलिए मां ने उसे भूनने के लिए मकान-मालकिन का ओवन इस्तेमाल किया और बार-बार उसकी रसोई के भीतर आने-जाने की जहमत से बचने के लिए अंदाज से उस मांस के लोंदे को भूनने के लिए ओवन का टाइम सेट कर दिया और उसके बाद ही वह रसोईघर में गयी। और हमारी बदकिस्मती से हुआ ये कि हमारा ये मांस का पिंड क्रिकेट की गेंद के आकार का ही रह गया था। इसके बावजूद, मां के इस दृढ़ निश्चय के बावजूद कि हमारा खाना बाहर के छ: पेंस के खाने से कम तकलीफदेह और ज्यादा स्वादिष्ट होता है, मैंने उस भोजन का भरपूर आनंद लिया और यह महसूस किया कि हम भी किसी से कम नहीं।


हमारे जीवन में अचानक एक परिवर्तन आया। मां अपनी एक पुरानी सहेली से मिली जो बहुत समृद्ध पहुंचेली चीज़ बन गयी थी, खूबसूरत हो गयी थी और चलती-पुरजी टाइप की महिला बन गयी थी। उसने एक अमीर बूढ़े कर्नल की मिस्ट्रैस बनने के लिए स्टेज को अलविदा कह दी थी।

वह स्टॉकवेल के फैशनपरस्त जिले में रहा करती थी और मां से फिर से मिलने के अपने उत्साह में उसने हमें आमंत्रित किया कि गर्मियों में हम उसके यहां आ कर रहें। चूंकि सिडनी गांवों की तरफ मस्ती मारने के लिए गया हुआ था इसलिए मां को मनाने में ज़रा भी तकलीफ नहीं हुई और उसने अपनी सुई और कसीदेकारी के हुनर से अपने-आपको काफी ढंग का बना लिया था और मैंने अपना संडे सूट पहन लिया। यह अष्टम बाल मंडली का अवशेष था और इस मौके के हिसाब से ठीक-ठाक लग रहा था।

और इस तरह रातों-रात हम लैंसडाउन स्क्वायर में कोने वाले एक बहुत ही शांत मकान में पहुंचा दिये गये। ये घर नौकरों-चाकरों से भरा हुआ था। वहां गुलाबी और नीले बैडरूम थे, छींट के परदे थे और सफेद भालू के बालों के नमदे थे। मुझे कितनी अच्छी तरह से याद हैं डाइनिंग रूम के साइड बोर्ड को सजाने वाले बड़े नीले हॉटहाउस ग्रेप्स की और मुझे यह बात कितनी लज्जा से भर देती जब मैं देखता कि वे रहस्यमय तरीके से गायब होते चले जा रहे हैं और हर दिन बीतने के साथ उनके ढांचे भर नज़र आने लगे थे।

घर के भीतर काम करने के लिए चार औरतें थीं। रसोईदारिन और तीन नौकरानियां। मां और मेरे अलावा वहां पर एक और मेहमान थे। बहुत तनावग्रस्त, एक सुदर्शन युवक जिनकी कुतरी हुई लाल मूंछें थीं। वे बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे और बहुत सज्जन थे। वे उस घर में स्थायी सामान की तरह थे लेकिन सफेद मूंछों वाले कर्नल महाशय के नज़र आने तक ही। उनके आते ही वह खूबसूरत नौजवान गायब हो जाता।

कर्नल महोदय का आना कभी-कभार ही होता। हफ्ते में दो-एक बार। जब वे वहां होते तो पूरे घर में एक रहस्य का आवरण तना रहता और उनकी मौजूदगी हर जगह महसूस की जाती। और मां मुझे बताती कि उनके सामने न पड़ा करूं और उन्हें नज़र न आऊं। एक दिन मैं ठीक उसी वक्त हॉल में जा पहुंचा जब वे सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे।

वे लम्बे, भव्य, राजसी ठाठ-बाठ वाले व्यक्ति थे और उन्होंने फ्रॉक कोट और टॉप हैट पहने हुए थे। उनका चेहरा गुलाबी था। लम्बी सफेद कलमें चेहरे पर दोनों तरफ काफी नीचे तक थीं और सिर गंजा था। वे मेरी तरफ देख कर शिष्टता से मुस्कुराये और अपने रास्ते चले गये।

मैं समझ नहीं पाया कि उनके आने के पीछे ये सब क्या हंगामा था और उनके आते ही क्यों अफरा-तफरी मच जाती थी लेकिन वे कभी भी बहुत अधिक अरसे तक नहीं रहे और कुतरी मूंछों वाला नौजवान जल्दी ही लौट आता और सब कुछ पहले की तरह सामान्य ढंग से चलने लगता।

मैं कुतरी हुई मूंछों वाले नौजवान का मुरीद हो गया। हम दोनों क्लाफाम कॉमन तक लम्बी सैर पर जाते और हमारे साथ मालकिन के दो खूबसूरत ग्रेहाउंड कुत्ते होते। उन दिनों क्लाफाम कॉमन का माहौल बेहद खूबसूरत हुआ करता था। यहां तक कि कैमिस्ट की दुकान भी, जहां हम अक्सर खरीदारी किया करते थे, फूलों के अर्क की गंध, इत्रों और साबुनों और पाउडरों के साथ भव्य लगा करती थी। मेरे अस्थमा के इलाज के लिए उन्होंने मां को बताया था कि रोज़ सवेरे वह मुझे ठंडे पानी से नहलाया करे और शायद इससे फायदा भी हुआ। ये स्नान बहुत ही स्वास्थ्यकर थे और मैं उन्हें पसंद करता हुआ बड़ा हुआ।


यह एक उल्लेखनीय बात है कि हम किस सफाई से अपने आपको सामाजिक मान मर्यादाओं के अनुसार ढाल लेते हैं। आदमी उपलब्ध सृष्टि की भौतिक सुविधाओं के साथ कितनी अच्छी तरह से एकाकार और आदी हो जाता है। एक सप्ताह के भीतर ही मेरे लिए सब कुछ सहज स्वीकार्य हो चला था। बेहतर होने का बोध - सुबह सवेरे की औपचारिकताएं, कुत्तों को एक्सरसाइज कराना, उनके नये चमड़े के पट्टे लिये जाना, फिर खूबसूरत घर में वापिस लौटना, जहां चारों तरफ नौकर-चाकर हों, शानदार तरीके से चांदी के बरतनों में परोसे जाने वाले लंच की प्रतीक्षा करना।

हमारे घर का पिछवाड़ा एक दूसरे घर के पिछवाड़े से सटा हुआ था और उस घर में भी उतने ही नौकर थे जितने हमारे घर पर थे। उस घर में तीन लोग रहा करते थे, एक युवा दम्पत्ति और उनका एक लड़का जो लगभग मेरी ही उम्र का था। उसके पास एक बालघर था जिसमें बहुत खूबसूरत खिलौने भरे हुए थे। मुझे अक्सर उसके साथ खेलने के लिए बुलवा लिया जाता और रात के खाने के लिए रोक लिया जाता। हम दोनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे। उसके पिता सिटी बैंक में किसी बहुत अच्छे पद पर काम करते थे और उसकी मां युवा और बेहद खूबसूरत थी।

एक दिन मैंने अपनी तरफ वाली नौकरानी को लड़के की नौकरानी से गुपचुप बात करते हुए सुन लिया कि उन्हें लड़के के लिए एक गवर्नेस की ज़रूरत है।

"और इसे भी उसी की ज़रूरत है।" हमारी वाली नौकरानी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा। मैं इस बात से बेहद रोमांचित हो गया कि मेरी भी अमीर लड़कों की तरह देखभाल की जायेगी लेकिन मैं इस बात को कभी भी समझ नहीं पाया कि क्यों उसने मेरा दर्जा इतना ऊपर उठा दिया था। हां, तब की बात अलग है कि वह जिन लोगों के लिए काम करती थी या जिनके पड़ोस में वे लोग रहते थे उनका कद ऊपर उठा कर वह खुद ही अपना दर्जा ऊपर उठाना चाहती हो। आखिर, मैं जब भी पड़ोस के उस छोकरे के साथ खाना खाता था, मुझे कमोबेश यही लगता कि मैं बिन बुलाया मेहमान ही तो हूं।

जिस दिन हम उस खूबसूरत घर से अपने 3 पाउनाल के घर लौटने के लिए वापिस चले, वह उदासी भरा दिन था, फिर भी एक तरह की राहत भी थी कि हम अपनी आज़ादी में वापिस लौट रहे हैं। मेहमानों के तौर पर वहां रहते हुए आखिर हमें कुछ तनाव तो होता ही था। और जैसा कि मां कहा करती थी, हम केक की तरह थे। अगर उसे बहुत देर तक रखा जाये तो वह बासी और अखाद्य हो जाता है। और इस तरह से उस संक्षिप्त और शानो-शौकत से भरे वक्त के रेशमी तार हमसे छिन गये और हम एक बार फिर अपने जाने-पहचाने फटेहाल तौर-तरीकों में लौट आये।