रणबीर कपूर का दिल नहीं, दौलत है मुश्किल में / जयप्रकाश चौकसे

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रणबीर कपूर का दिल नहीं, दौलत है मुश्किल में
प्रकाशन तिथि :21 जुलाई 2017


अनुराग बसु, रणबीर कपूर और वाल्ट डिज़्नी ने अापसी सहयोग से 'जग्गा जासूस' की रचना की, जिसके पूरे होने में चार वर्ष का समय लगा और फिल्म पहले चार दिन में ही टिकट खिड़की पर दम तोड़ रही है। ऋषि कपूर के सुपुत्र रणबीर कपूर को अभिनय क्षेत्र में आए दस वर्ष हो चुके हैं परंतु उनकी सफल फिल्में 'वेकअप सिड,' 'ये जवानी है दीवानी' और करण जौहर की 'ये दिल है मुश्किल' रही है। न्यूयॉर्क के एक संस्थान में फिल्म निर्देशन का प्रशिक्षण प्राप्त करके रणबीर कपूर संजय लीला भंसाली के सहायक निर्देशक हो गए और उसी समय अनिल कपूर की सुपुत्री सोनम कपूर भी सहायक बनीं। उस दौर में भंसाली अमिताभ बच्चन अभिनीत 'ब्लैक' फिल्म का निर्माण कर रहे थे। बाद में संजय लीला भंसाली ने रणबीर कपूर और सोनम कपूर अभिनीत 'सांवरिया' फिल्म बनाई, जिसकी प्रेरणा उन्होंने रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की 'व्हाइट नाइट्स' से ग्रहण की थी। ज्ञातव्य है कि इसी रचना से प्रेरणा लेकर मनमोहन देसाई ने राज कपूर और नूतन अभिनीत 'छलिया' बनाई थी। 'छलिया' में जो भूमिका रहमान ने की थी, वही भूमिका भंसाली की 'सांवरिया' में सलमान खान ने अभिनीत की थी।

गौरतलब है कि रमेश सहगल की राज कपूर व माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'फिर सुबह होगी' भी दोस्तोवस्की की महान 'क्राइम एंड पनिशमेंट' से प्रेरित फिल्म थी। इसी फिल्म में साहिर लुधियानवी ने पहली बार राज कपूर अभिनीत फिल्म में गीत लिखे थे, जिसके बाद 'दिल ही तो है' में भी साहिर साहब ने गीत लिखे। यह बात समझना कठिन है कि 'क्राइम एंड पनिशमेंट' में ब्याज पर पैसे देने वाली एक महिला है, जबकि रमेश सहगल ने 'फिर सुवह होगी' में उस पात्र को पुरुष पात्र कर दिया था। भारत में ब्याजखोर महाजन हमेशा पुरुष पात्र ही हुए हैं।

आजकल भारत में बैंक का कर्ज नहीं चुका पाने पर किसान आत्महत्या कर रहे हैं। जाने क्यों इस तथ्य को छिपाया जा रहा है कि किसान को कर्ज दिलाने वाले बिचौलिए बहुत-सा धन ले लेते हैं परंतु कर्ज की अदाएगी अकेले किसान को ही करनी पड़ती है। इसी तरह के विषय पर फिल्म बनी थी 'वेलडन अब्बाजान' जिसमें खेत में कुंए के लिए बैंक से ऋण लेने वाले व्यक्ति को इतने लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है कि उसका खेत ही बिक जाता है। बोमन ईरानी ने केंद्रीय भूमिका निभाई थी। यह बात इसलिए छिपाई जा रही है, क्योंकि बिचौलिए सत्तारूढ़ दल के अपने अादमी हैं। भारत की गणतंत्र व्यवस्था में बिचौलियों ने छिद्र कर दिए हैं। व्यवस्था की चदरिया में इतने पैबंद लगे हैं कि वह बदरंग हो चुकी है। पैबंद तो उपलब्ध कपड़े पर लगाया जाता है, जिस कारण चदरिया का मूल रंग बताना ही कठिन हो जाता है। कबीर की बुनी धर्मनिरपेक्ष चदरिया अब खोजने पर भी नहीं मिलती। बेचारे आनंद मोहन माथुर कबीर की स्मृति में कार्यक्रम करते रहते हैं।

उड़ती हुई-सी खबर है कि क डिज़्नी 'जग्गा जासूस' की कुछ रीलों के बनने के बाद फिल्म को अधूरा ही रखना चाहते थे। इसके पूर्व वे स्वयं की पूंजी से बनाई गई फिल्म को भी रद्‌द कर चुके थे। उस समय रणबीर कपूर ने वाल्ट डिज़्नी को आश्वासन दिया और उत्तरदायित्व भी लिया था परंतु अभी तक यह जानकारी नहीं मिली है कि क्या इस बात की कोई लिखा-पढ़ी भी हुई थी। अगर दस्तावेज बना है तो फिल्म के घाटे को रणबीर कपूर को चुकाना होगा।

अपने अभिनय के मुआवजे को फिल्म में लगाकर ही वे इसके सह-निर्माता बने थे। अगर ऐसा होता है तो उन्हें वह कहावत याद आ जाएगी कि 'नमाज अदा करने गए, रोजा गले पड़ गया।' इस कहावत पर मेरा अपना कोई यकीन नहीं है, क्योंकि रोजा रखना इबादत का ही अंग है। रोजा एक अनुशासन है, बरोजा व्यक्ति के ज़हन में भोजन का खयाल भी नहीं आना चाहिए। अपनी कल्पना शक्ति को अनुशासित रखना आसान काम नहीं होता। जैन धर्म के उपवास एवं रोजे में थोड़ी समानता है। जैन धर्म का उपवास पूरे चौबीस घंटे का होता है। यह भी कहावत है कि वैष्णव के उपवास में धन जले और जैन के उपवास में मन जले। कहावतों का निर्माण कैसे होता है, यह बताना कठिन है परंतु ये अवाम की बातचीत के ही अंश होते हैं। भारत में हर पचास किलोमीटर पर बोली बदल जाती है। विविधता ही भारतीय संस्कृति का आधार है। आजकल विविधता को ही एक राष्ट्र, एक भाषा, एक टैक्स इत्यादि के खेल में उलझा दिया गया है। निदा फाज़ली कहते हैं, 'मैं रोया परदेश में, भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की, बिन चिट्‌ठी, बिन तार।'