वह ट्रेन सी गुजरती है, मैं पुल सा थरथराता हूं / जयप्रकाश चौकसे

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वह ट्रेन सी गुजरती है, मैं पुल सा थरथराता हूं
प्रकाशन तिथि :16 सितम्बर 2017


कथा फिल्म के प्रारंभिक दशक में ही ट्रेन डकैती पर हॉलीवुड में फिल्म बनाई गई थी। उस मूक फिल्म को लेकर सवाक फिल्म 'मर्डर ऑन द ओरिएंट एक्सप्रेस' तक अनेक फिल्में बनी हैं। बलदेवराज चोपड़ा ने हॉलीवुड की 'बर्निंग इनफर्नो' से प्रेरित होकर 'बर्निग ट्रेन' बनाई थी परंतु इसकी शूटिंग में डिब्बों को क्षति पहुंची तो रेलवे विभाग ने शूटिंग की शर्तें और मुआवजा बढ़ा दिया। कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म 'पाकीज़ा' के एक रेल दृश्य के लिए कमालिस्तान स्टूडियो में ट्रेन की पटरी बिछाई और डिब्बों का निर्माण भी किया। 'चालबाज' और 'आखिरी रास्ता' के निर्माता पूरनचंद राव ने अमिताभ बच्चन अभिनीत एक फिल्म के लिए उदकमंडलम में रेलवे यार्ड का विश्वसनीय सेट ही खड़ा कर दिया था परंतु किसी कारणवश फिल्म नहीं बनी तो उन्हें फिल्म निर्माण से ही घृणा हो गई और उन्होंने उदकमंडलम में ही एकांतवास किया। पूरनचंद राव कल्पनाशील एवं साहसी व्यक्ति थे। दशकों पूर्व उन्होंने चेन्नई में लक्ष्मी डिपार्टमेंटल स्टोर की स्थापना की थी, जिसमें हर माले पर जीवनोपयोगी चीजें एक ही जगह पर मिल जाती थीं।

दूसरे विश्वयुद्ध के समय फ्रांस पर विजय के बाद हिटलर ने वहां के म्यूजियम की अजर-अमर कलाकृतियों को एक ट्रेन में रखकर बर्लिन लाने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हो पाया। इस सत्य घटना से प्रेरित फिल्म का नाम 'द ट्रेन' था। रमेश बहल की राजेश अभिनीत 'द ट्रेन' एक अलग कहानी थी। दिलीप कुमार ने अपनी फिल्म 'गंगा-जमुना' में ट्रेन डकैती का दृश्य इंदौर-महू रेलवे ट्रैक पर शूट किया था। रमेश सिप्पी ने अपनी फिल्म 'शोले' की ट्रेन डकैती के दृश्य को शूट करने के लिए विदेश से तकनीशियन बुलाए थे परंतु 'गंगा जमुना' में भारतीय तकनीशियनों का काम ही बेहतर सिद्ध हुआ। उनके पास कैमरा और अन्य उपकरण पुराने थे परंतु उनकी कल्पनाशीलता ने कमाल के परिणाम दिए। बुरे तकनीशियन ही औजार पर तोहमत लगाते हैं। 'मुगल-ए-आजम' के शीश महल की शूटिंग के लिए आमंत्रित विदेशी तकनीशियन कुछ नहीं कर पाए तो कैमरामैन आरडी माथुर ने उसे शूट किया। बोनी कपूर ने 'रूप की रानी, चोरों का राजा' में एक अभिनव रेल डकैती का दृश्य शूट किया था। नायक हेलिकॉप्टर से ट्रेन पर उतरता है और मालगाड़ी के डिब्बे का दरवाजा खोलकर सारा माल बाहर फेंकता है,जहां उसके साथी माल को ट्रक में भरकर ले जाते हैं। यह रेल डकैती का सर्वश्रेष्ठ दृश्य बन पड़ा है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय बुरहानपुर और भुसावल के बीच भी मालगाड़ियों से ऐसी ही चोरियां होती थीं। यह यथार्थ घटना थी। इसी घटना ने एक व्यक्ति को नगर सेठ बना दिया। मेरे उपन्यास 'दराबा' में इसका विशद वर्णन है।

होमी वाडिया की स्टंट फिल्मों में नायिका नाडिया का घोड़ा रेल की छत पर दौड़ते दिखाया गया। जाने उस दौर में उपकरणों के अभाव के बावजूद इस तरह के दृश्य कैसे शूट किए गए। होमी वाडिया ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित सरकस में नाडिया को देखा था और वे उसे भारत ले आए। उन दिनों यह बवाल नहीं था कि भारत में व्यक्ति किस देश से आकर बसा है। ये राजनीतिक स्टंट आजकल खूब खेले जा रहे हैं। नाडिया के जीवन से प्रेरित फिल्म 'रंगून' विशाल भारद्वाज ने बनाई परंतु उस कथा को एक महंगी तलवार की नीलामी और सुभाषचंद्र बोस की सेना से जोड़कर कथा का सत्यानाश कर दिया।

भारत में ट्रेन के आगमन को एक अजूबे की तरह देखा गया। सत्यजीत रे की महान ' पाथेर पांचाली' में बच्चे मीलों पैदल चलकर ट्रेन को गुजरते हुए देखने जाते थे। एक बच्चा युवा होने पर पैसे की तंगी के कारण रेलवे यार्ड के निकट किराये से मकान लेता है और अब उसी ट्रेन की आवाजें उसे कष्ट देती हैं, जिसे देखने बचपन में वह मीलों पैदल चलता था। महान निर्देशक इस तरह घटनाओं का इस्तेमाल करते हैं। इंदौर के केसी शाह का मकान रेलवे ट्रैक के नजदीक था। कुछ समय बाद जब वे अन्य क्षेत्र में रहने गए तो ट्रेन की आवाज नहीं होने पर उन्हें नींद नहीं आती थी। उन्होंने रेलवे यार्ड जाकर ट्रेन की ध्वनि को टेप रिकॉर्ड किया और सोने के पहले वे उसे ही बजाते थे। मनुष्य आदतों ा गुलाम होता है। ये केसी शाह अत्यंत सुशील एवं भलेमानस थे। अपने इस मित्र को खोने का दु:ख मुझे आज भी सालता है।

आजकल सुर्खियां हैं कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलेगी और अपने सफर के एक पड़ाव में वह समुद्र तल के भीतर भी चलेगी। प्रचारित किया जा रहा है कि जापान ने अत्यंत कम ब्याज लेकर यह कार्य करने का निश्चय किया है। ब्याज कम हो तो कर्ज की अवधि खूब लंबी तय पायी जाती है। केवल ढाई घंटे की बचत के लिए देश को अरबों के कर्ज से लाद दिया गया है। इस तरह के विकास का जितना प्रचार मूल्य है, उतने व्यावहारिक लाभ नहीं हैं। इंग्लैंड एक छोटा-सा देश है,जमीन की कमी है, अंत: वहां धरती की सतह के नीचे ट्रेन चलाई जाती है। भारत विशाल देश है। इसी धन से मौजूदा रेल पटरियों को समय रहते बदलने पर रेल दुर्घटनाएं कम हो सकती हैं परंतु सारा वैचारिक जोर तो शोर मचाने पर है। जापान कोई आध्यात्मिक शांति के लिए यह कार्य नहीं कर रहा है। उसे भारत में अपना माल बेचना है। भारत की रचना विश्व की मंडी की तरह की जा रही है। देश का व्यापारी बेहाल है और विदेशी व्यापारी को आमंत्रण के पीले चावल भेजे जा रहे हैं।