श्रीदेवी का जीवन ऐसी कविता है, जिसके आखिरी अंतरे तो लिखे ही नहीं गए / जयप्रकाश चौकसे

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श्रीदेवी का जीवन ऐसी कविता है, जिसके आखिरी अंतरे तो लिखे ही नहीं गए
प्रकाशन तिथि :26 फरवरी 2018

कुछ वर्ष पूर्व श्रीदेवी ने अपने श्वसुर श्री सुरेंद्र कपूर का 75वां जन्मदिन चेन्नई के अपने बंगले में मनाया। सुबह हवन किया गया। रात में दावत दी गई। उस दावत में रजनीकांत और कमल हासन मेजबान की तरह व्यवहार कर रहे थे। हर अतिथि से जाकर पूछते थे कि आपके लिए कोई चीज लाई जाए क्या? बल्कि ट्रे में ड्रिंक्स लेकर मेहमानों की खातिरदारी कर रहे थे। दो सुपर सितारों का यह व्यवहार ही स्पष्ट कर रहा था कि उनके हृदय में श्रीदेवी के लिए कितना गहरा स्नेह है। चेन्नई स्थित उस बंगले की छत पर एक कांच की दीवार और कांच की छत वाला कमरा है।

उसमें बैठकर व्यक्ति आकाश में टिमटिमाते सितारों को देख सकता है। वर्षा में बिना भीगे आप फुहारों को अपनी आत्मा में महसूस कर सकते हैं। इस तरह से सितारों की रोशनी श्रीदेवी की आत्मा का ताप बन गई और वर्षा की फुहारों ने उनके मादक जिस्म को धार दे दी। श्रीदेवी की कशिश का रहस्य ये था कि उनके चेहरे पर बला की मासूमियत नजर आती थी। मादकता और मासूमियत का यह अनोखा संगम श्रीदेवी की लोकप्रियता का रहस्य रहा है। कुछ वर्ष पूर्व ही उन्हें एक कार्यक्रम में नृत्य प्रस्तुत करना था, उन्होंने अपनी टीम को घर बुलाया। और 15 दिन तक घंटों रियाज करती रहीं।

उनसे पूछा गया कि फिल्म में आप यह नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं। शूटिंग के समय आपने बहुत रिहर्सल किए होंगे, अत: आपको रियाज की क्या आवश्यकता है? श्रीदेवी का कहना था कि रियाज निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। हर बार लगता है कि कुछ और बेहतर किया जा सकता था। यह ललक और लगन ही श्रीदेवी काे अन्य सितारों से अलग पहचान दिलाती है। मिस्टर इंडिया के प्रदर्शन के बाद श्रीदेवी की माताजी की तबियत खराब हो गई। खबर सुनते ही बोनी कपूर चेन्नई चले गए। डॉक्टरों से परामर्श के बाद इलाज के लिए अमेरिका ले जाने की सलाह दे दी गई। बोनी कपूर ने न केवल सारी व्यवस्था की वरन् खुद श्रीदेवी और उनकी माताजी के साथ अमेरिका गए। वहां शल्य क्रिया में की गई एक त्रुटि के कारण श्रीदेवी की माता का निधन हाे गया। शोक की इस घड़ी में बोनी कपूर श्रीदेवी का संबल बने रहे। उन्होंने अस्पताल पर मुकदमा कायम किया। कोर्ट के बाहर समझौता हुआ, जिसके तहत श्रीदेवी को मोटी रकम अदा की गई। संभवत: उन्हीं दिनों उनका प्रेम हुआ होगा। रिश्ता शुरू हुआ सहानुभूति से और प्रेम में बदल गया। बोनी कपूर ने सलीम-जावेद की लिखी मिस्टर इंडिया बनाने का निश्चय किया। उस समय तक अनिल कपूर की सितारा हैसियत बड़ी नहीं थी। ऐसी हैसियत नहीं थी कि अनिल कपूर के नाम पर उतनी महंगी फिल्म की लागत निकाली जा सके। अत: उन्हें यह आवश्यक लगा कि एक शिखर महिला सितारा साथ में होनी चाहिए ताकि फिल्म का आर्थिक समीकरण सही बन जाए। बाेनी कपूर चेन्नई गए और श्रीदेवी से मुलाकात का निवेदन किया। तब श्रीदेवी की माता ने कहा कि आपको मुलाकात का समय कुछ दिनों बाद ही मिल सकेगा। आप अभी इंतजार कीजिए। तो वे लोग चेन्नई के एक होटल में रुक गए। और दो-तीन दिन तक बेकरारी से इंतजार किया, लेकिन कोई खबर नहीं आई। तो बोनी कपूर आधी रात के बाद श्रीदेवी के बंगले के चक्कर काटते थे। यह संभव है कि उसी समय बंगले के सात फेरे उन्होंने लगाए और पता नहीं कौन सा देव उस समय जागृत था, जिसने तथास्तु बोल दिया। बाद में श्रीदेवी के साथ ही उन्होंने सात फेरे भी लिए। यथार्थ भी कभी कल्पनाओं से परे जाता है। और उसका यही रहस्य जीवन को राेमांचक बनाता है। एक दिन बोनी कपूर के घर पर मैं मुलाकात करने गया और मुझे शाम तक एयरपोर्ट पहुंचना था। इत्तफाक से उस दिन बोनी कपूर की कार खराब थी, तो श्रीदेवी के ड्राइवर के साथ एयरपोर्ट की ओर रवाना किया गया। हर ट्रैफिक सिगनल पर गाड़ी रुकती थी। और बहुत से हिजड़े वहां इकट्ठे हो जाते थे। जिन्हें यह देखकर शॉक लगता था कि श्रीदेवी की कार में श्रीदेवी नहीं हैं। उनकी बातचीत से मुझे मालूम चला कि श्रीदेवी हमेशा इन लाेगों को ढेर सारे पैसे दिया करती थीं। श्रीदेवी के मन में ईश्वरीय कमतरी वाले लोगों के लिए बेहद सहानुभूति थी। अगर हम श्रीदेवी के जीवन को एक फिल्म मान लें तो कहना होगा कि मध्यांतर के बाद की रीलें नदारद हो गई हैं। और अगर हम श्रीदेवी के जीवन को कविता मान लें तो उसके आखिरी अंतरे तो लिखे ही नहीं गए। अपने जीवन में आधी सदी तक उन्होंने कैमरे से दोस्ती निभाई है। चार साल की उम्र से 54 साल तक वे अभिनय करती रहीं। अब कैमरा उनकी जुदाई को कैसे बर्दाश्त करेगा। संभवत: कैमरा गुनगुनाएगा... विरह ने कलेजा यूं छलनी किया जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो।