समंदर, बारिश और एक रात... / जयश्री रॉय

Gadya Kosh से
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जेनी अपना बजता हुआ मोबाइल उठाकर कमरे से बाहर निकल आयी थी. बाहर चारों तरफ धुंध, धुआं और बादल का गहरा सलेटी पर्दा तेज हवा में थरथरा रहा था. पहाड की टलहटी से उफनता हुआ सागर एकदम से जैसे उठकर घर की दहलीज तक आ पहुँचा था. खिडकी, दरवाजे पर पछाड खाती हवा में पानी की ठंडी, नुकिली बूँदों का सैलाब-सा छाया हुआ था. सागर का उन्माद पहाड की पथरीली दीवारों से टकराकर बिफरा पड रहा था. आकाश के ठीक बीचोबीच बादल का एक गहरा साँवला टुकडा फटकर पूरन मासी का आधा चाँद निकल आया था. पूरा उफनता हुआ समंदर जैसे दो हिस्सों में बँट गया था- सामने का आधा हिस्सा हजारों रूपहली मछलियों में बदलकर झिलमिला रहा था, उससे आगे की लहरे स्याह रात के अंधेरे में नामालूम -सी खोयी अलक्ष्य गरज रही थीं.

हवा की धमक और समंदर के तेज गर्जन के बीच उसने मोबाइल को कान से लगाकर सुनने का प्नयत्न किया था. दूसरी तरफ डॉनी था- हमेशा की तरह हैश के नशे में ’हाइ’. लटपटाती आवाज में चिल्ला रहा था- ’हे जेनी बेब ! वाटस् अप? ऐसी नागिन-सी मतवाली रात, बरसते-गरजते बादल और ये स्वीट् सिक्सटीन की वाली उमर... और तुम हो कि अपने दरवे में घुसी हुई हो ! इटस् नॉट डन यार ! कम आउट, आई एम कमिंग टु पिक यू अप...भूल गयी, आज सैटरडे नाइट है- बाघातोर में फुल मून नाइट डांस का दिन...!’ सुनकर जेनी की नसों में उत्तेजना की सुनहरी मछलियाँ तैर गयी थी. गालों पर हरारत के सुर्ख गुलाब चटक आये थे. अंदर हिरणी की तेज कुलांचे थीं, मगर उसने अपनी लरज को किसी तरह रोका था- ’नो डॉनी, सॉरी, नॉट दिस टाइम, यू नो, पिछलीबार पकडे जानेपर कितना हंगामा हुआ था. गै्ननी मॉम को बता देगी, वह बहुत बम मारती है...’

’कम ऑन जेनी, कबतक अपनी ओल्ड गैनी के एप्नन से बँधी रहोगी ! जवानी के दिन हैं यार, लेटस् एनज्वॉय...’

’लेकिन डॉनी...’

’नो लेकिन-वेकिन चिक् ! जस्ट बी रेडी, एंड यस, कुछ मुला (रूपये) भी लाना, आई एम ब्रोक दिस डेज, यू नो...’

इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, डॉनी ने दूसरी तरफ से फोन काट दिया था. थोडी देर असमंजस की स्थिति में खडी रहकर वह अंदर चली आयी थी. गै्ननी सामनेवाले कमरे में अपनी झुर्रियों के गुंजल में बँधी पडी बेखबर सो रही थी. उसके खर्राटों की आवाज से रात की शोरभरी चुप्पी में भँवर-से पड रहे थे. थोडी देर उनकी आहट लेकर धीरे-धीरे चलती हुई कवर्ड से जींस और बैकलेस टॉॅप निकालकर उसने पहन ली थी और फिर गै्ननी के सरहाने रखे चेस्ट डॉवर से कुछ रूपये निकालकर उन्हें बिना गिने अपनी पर्स में जल्दी से रख लिये थे. इन दिनों डॉनी की मांगे कुछ ज्यादा ही बढती जा रही थी. पिछलीबार चरस की सिगरेट खरीदने के लिए उसने उसकी सोने की चेन उतार ली थी. उसे बुरा लगा था. उस चेन में हीरे का कॉस लगा था. डैड ने उसके सोलहवें वर्थ डे पर गिफ्ट किया था. वह चाहकर भी कुछ कह नहीं पायी थी. वैसे तो डॉनी बहुत स्वीट है, मगर नशे की हालत में बहुत आक्नामक हो उठता है. एकबार किसी बात से मना करने पर उसने उसे बहुत पीटा था. उसकी एक आँख सुजकर जामुनी पड गयी थी. कई दिन लगे थे त्वचा की रंगत लौटने में. वह चार दिन तक कॉलेज नहीं जा पायी थी. तब से वह उससे बहुत डरती है. उसकी कोई भी बात मानने से इंकार नहीं कर पाती.

रूपये अपनी पर्स में रखकर वह पंजों के बल चलती हुई बाहर निकल आयी थी और फिर अपने पीछे दरवाजा बंदकर तेजी से सीढियाँ उतरती चली गयी थी. रूपयों की कोई परवाह नहीं है उसे. रूपयों की कोई कमी नहीं है उनके जीवन में. आखिर इसी रूपये के लिए तो मॉम और डैड वर्षों से रेगिस्तान की धूप में जलकर काले हो रहे हैं. इन पैसों के बदले में यदि उसे डॉनी का प्यार और साथ मिलता है तो इन्हें लुटाने में उसे कोई परहेज नहीं !. उसके नीचे उतरते ही डॉनी की दैत्याकार बाईक गर्जन करती हुई सामने आ खडी हुई थी. जेनी उछलकर उसकी पिछली सीट पर बैठ गयी थी. उसके बैठते न बैठते डॉनी ने मोटर साईकिल तेज गति से दौडा दी थी. जेनी इस आक्समिक रफ्तार से एकदम से गिरते-गिरते बची थी और फिर डर और रोमांच से भरकर डॉनी की पीठ से चिपक गयी थी. डॉनी की गर्म देह आजारो की तेज खूशबू से सराबोर थी. पसीने की मर्दानी गंध उसे और भी उत्तेजक बना रही थी.

‘डोंट वरी बेबी, यू आर सेफ वीथ मी, जस्ट होल्ड मी टाइट एंड हेअर वी गो...‘ कहते हुए डॉनी ने एक्सलेटर पर अपने हाथ का दबाव बढा दिया था. कुछ ही क्षणों में उनकी बाइक जैसे हवा से बातें करने लगी थी. जेनी ने अपनी दोनों बाँहे डॉनी के इर्द-गिर्द कसते हुए आँखें बंद कर अपना सर उसके कंधे से टिका दिया था. हल्के जूडे में गुँथे उसके बाल उद्दाम हवा में एक ही झटके से घुलकर बिखर गये थे. उसे प्नतीत हुआ था वे दोनों उडनेवाले घोडे पर सवार होकर बादलों को चीरते हुए आसमान में उडे जा रहे हैं. रोमांच और उत्तेजना से उसका रोम-रोम सिहर उठा था. वह और भी निबिड होकर डॉनी की देह से सट गयी थी. उसे लगा था, बिना पिये उसकी नसों में शराब की मदहोशी दौडने लगी है. अपनी बोझिल होती पलकों को भींचकर उसने अपना दाहिना गाल डॉनी की पीठ पर धीरे-धीरे रगडना शुरू कर दिया था. डॉनी ने अपना हाथ पीछे की तरफ मोडकर उसकी जांघ पर रख दिया था. जेनी की पूरी देह में अनायास ही विद्युत तरंगे फैलती चली गयी थीं. सिहरकर उसने अपना नीचला होंठ काट लिया था.

यह क्षण रोमांच, उत्तेजना और उन्माद का था... जेनी इस क्षण को पूरी शिद्दत से जी लेना चाहती थी. इन्हीं रंगीन लम्हों की बेसुध खूबसूरती में खोकर वह अपने जीवन की सारी कडवाहटें भुला देना चाहती थी. सारे गम और अकेलापन से पीछा छुडाकर इस समय के सुनहरे तिलस्म में डूब-डूब जाना चाहती थी... अपने मस्तिष्क में उभरते मॉम, डैड के चेहरे, गाँव के गिरजे के पादरी का कामातुर चेहरा, वह सभी को एक झटके से अपने से परे करते हुए डॉनी के शरीर से एकदम से मिल-सी गयी थी- ‘आई वांट टु फ्लाई डॉनी, हिट द एक्सीलेटर हार्ड...‘

और फिर वाघातोर की सडकों पर आधी रात के वक्त सरपट दौडते हुए विदेशियों के वाहनों के बीच डॉनी की बाइक हवा से बातें करते हुए कुछ ही क्षणों में आँखो से ओझल हो गयी थी.

साहिल पर सर धुनती लहरों के पास पूरी भीड तेज बजते संगीत की लय में उन्मत्त होकर नाच रही थी. इस समय फुल मून डांस अपने पूरे सबाब पर पहुँच चुकी थी. हवा में दुहरे हुए नारियल के पेड भी जैसे सबके साथ झुम रहे थे. ऊपर आकाश गहरे काले बादलों से ढका हुआ था. पूर्णिमा का चाँद कभी तो इन बादलों के पीछे पूरी तरह से छिप जाता था तो कभी अचानक से निकलकर सबको जगमगाती हुई चाँदनी से सराबोर कर देता था. समंदर में चढते हुए ज्वार भाटा का उन्माद था. गहरी नीली लहरें नागिन की तरह किनारे के पत्थरों से टकराकर फुंफकारती फिर रही थी. हवा में उसी का उन्माद भरा शोर था.

जर्मनी से आया हुआ डिस्को जॉकी हेनरी रेकार्ड पर बिटल्स् की धून बजा रहा था. दो-दो हजार वॉट्स के साउंड सिस्टम जैसे फटे पड रहे थे. शराब और ड्रग्स् के नशे में सराबोर भीड उन्मत्त होकर धुआंधार नाच रही थी. किसी को अपने शरीर या कपडों की सुध नहीं रह गयी थी. विदेशी स्त्रियाँ नग्नप्रायः होकर पुरूषों की बाँहों में झूल रही थीं. कोई-कोई जोडा आसपास की तमाम चहल-पहल से बेखबर एक-दूसरे के आलिंगन में बँधे गहरे चुंबनों की पगाडता में डूबे हुए थे. हवा में वीयर, फेनी, चरस, हैश और स्मैक की कडवी-तीखी गंध फैली हुई थी.

जेनी और डॉनी आठ-दस लडके-लडकियों के समूह में थे. इनमें से तीन विदेशी जोडे थे. डॉनी अपनी बाँहों में दो लडकियों को एकसाथ भींचे झूम रहा था. जेनी एक इटालियन लडकी मोना की कमर से लिपटकर नाच रही थी. रॉकी चिल्लाकर डी. जे. से गाना बदलने की गुजारिश कर रहा था. उसकी फरमाइश पर डी. जे. ने रिकार्ड बदलकर सकीरा का गाना लगा दिया था- माय हिप्स डोंट लाइ...उसकी शोख आवाज हवा में बिखरते ही लडकियाँ अपने-अपने कूल्हे लट्टू की तरह नचाने लगी थी. उनके पुरूष मित्र भी मौज में आकर तरह-तरह से मटकने-झटकने लगे थे. दूर से देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे सब के सब इल्हाम की दशा में हो आये हैं. चढी हुई आँखें, बिखरे बाल, अस्त-व्यस्त कपडे... किसी को किसी बात की परवाह नहीं रह गयी थी. हंसी, ठहाके, सीटियों और तालियों से पूरा माहौल गूँज रहा था.

अचानक एक बलिश्ठ अफ्रिकन युवक के कधों पर सवार होकर स्कारलेट भीड में से पकट हुई थी. उसकी आँखें गुडहल बनी हुई थीं और गोरे गाल सुरा और उत्तेजना से लाल भभूका हो रहे थे. वह एक चौदह वर्ष की ब्नाजिलियन लडकी थी और पिछले तीन महीनों से अपनी प्रेमिका नीकी वार्नों के साथ आंजुना में एक कमरा लेकर रह रही थी. उसके पडोस में उसकी माँ भी अपने तीसरे पति के साथ रह रही थी. कभी-कभी अपना स्वाद बदलने के लिए वह पुरूषों के साथ भी हो लेती थी. आज की रात उसका ’डेट’ यह अफ्रिकन युवक था. उसकी प्रेमिका कुछ दिनों के लिए अपने किसी मित्र के साथ नेपाल गयी हुई थी.

उनके करीब आते ही स्कारलेट कूदकर अपने मित्र के कंधे से उतरी थी और फिर जेनी से लिपट कर उसके होंठ चूम लिए थे. ऐसा करते हुए उसने अपना बायां हाथ जेनी के ब्लाउज में डाल दिया था. जेनी के मुँह से बेखास्ता सिसकारी निकल गयी थी. सभी को पता था कि स्कारलेट जेनी को बहुत पसंद करती है. वह जेनी के बादामी रंग पर जान देती थी. प्रायः कहती थी कि हिंदुस्तानी लडकियों का रंग कितना खूबसूरत होता है, ’’रिच टैन’ ऐसा कि हम धूप में पककर भी वैसा कभी नहीं हो पाते और गोरे रंग में केसर, गुलाब घुला हुआ. हम विदेशियों का रंग तो मुर्दों की तरह होता है- एकदम पेपर व्हाइट. वह अक्सर जेनी के कॉलेज के बाहर उसके लिए स्ट्राबेरी का दोना लिए खडी रहती थी. एकबार उसे लेकर जेनी और डॉनी के बीच काफी झगडा भी हो गया था. इस समय भी डॉनी दो लडकियों के साथ झूमते हुए उसे खा जानेवाली नजर से घूर रहा था.

स्कारलेट इन बातों से बेखबर जेनी से लिपटकर बिंदास थिरक रही थी- ‘हनी ! व्हाट अ सेक्सी नाइट... लेट योर हेअर लूस, वील पेंट द टाउन रेड टु नाइट...‘ इससे पहले कि जेनी कुछ कह पाती, वह अफ्रिकन लडका स्कारलेट को गर्दन से दबोचकर किसी बिल्ली के बच्चे की तरह उठा ले गया था.

‘बिच, शी रूइंड माय मूड...‘ जेनी की पर्स से रूपये निकालकर बडबडाते हुए डॉनी क्लाइब के पास चला गया था. क्लाइब एक नारियल के पेड की ओट में खडा होकर ड्रग्स बेच रहा था. उससे कुछ ही दूरी पर खडा एक पुलिस कांस्टेबल अनजान बनते हुए अपनी जेब में रूपये डाल रहा था. ऐसी रातें और ऐसी पार्टियाँ उनके लिए बहुत मुबारक हुआ करती हैं. डॉनी पाँच सौ रूपये में एक सफेट पाउडर का छोटा-सा पैकेट खरीदकर लौट आया था. मैगी सिगरेट के सिल्वर फॉयल में थोडा-सा पाउडर डालकर उसे नश्वार की तरह अपने नथूनों में ले रही थी.सबकी आँखें या तो चढी हुई थी या झंपी हुईं. डॉनी ने एक सिगरेट तैयार करके जेनी को पकडाया तो जेनी ने झिझकते हुए ले लिया और फिर उसके आगह करने पर एक घबरायी हुई मुस्कराहट के साथ एक कश भी खींच लिया. धुआं उसने अनअभ्यास के कारण शायद सीधे अंदर ले लिया था इसलिए लेते ही खांसते हुए एकदम से दोहरी हो गयी थी. उसकी हालत देखकर सभी खुलकर हंस पडे थे. आर्ची ने बढकर उसकी पीठ पर कई धौल जमाये थे. डॉनी हिकारत भरी नजरों से उसे घूर रहा था. जेनी की आँखेां में सचमुच के आँसू आ गये थे. वह झेंपी-सी उन्हें पोंछ रही थी. पता नहीं क्यों वह हर बार डॉनी की उम्मीदों पर खडी नहीं उतर पाती !

‘यू आर गुड फॉर नथिंग जेनी गर्ल...! ‘ डॉनी मुँह बनाते हुए वहाँ से हट गया था. उसके पीछे-पीछे नैनसी भी लपकती हुई चली गयी थी. जेनी का दिल एकदम से डूबने-डूबने को हो आया था. ’ओह गॉड ! क्या हो अगर डॉनी उससे बेजार हो गया...!‘ डॉनी स्मार्ट है, हैंडसम है, पॉपुलर है... लडकियाँ उसके पीछे रातदिन मधुमक्खियों की तरह पडी रहती हैं. अगर उसने उसे छोड दिया तो? नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता... उसने घबराकर अपने सीने पर क्नॉस बनाया था. उनके ग्रुप में उसकी जो भी पूछ थी वह सिर्फ इसलिए कि वह डॉनी की गर्लफैंड थी. वर्ना पहले तो उससे सभी कतराते थे. न उसे ठीक से बोलना-चालना आता था न ढंग से कपडे पहनना. बातें करते हुए अधिक उत्तेजित होने पर वह हकलाने भी लगती थी. सब कॉलेज में उसे बहनजी कहकर चिढाते थे. वह घर और बाहर- हर जगह एकदम अकेली थी.

उसके डैड पिछले दस वर्षों से गल्फ के एक बडे होटल में कूक का काम करते थे. वह अपने माता-पिता की अकेली संतान थी. डैड के पीछे मॉम का जीवन उश्रृंखल हो उठा था. अकेलेपन ने ही शायद उसे नशा और आवारगी की तरफ धकेल दिया था. वे रातदिन ’फेनी’ के नशे में डूबी रहती थीं. गाँव के चर्च के पादरी से भी उनकी निकटता बहुत बढ गयी थी. वह कभी घर में शांति जल छिडकने के बहाने तो कभी कोई विशेष प्रार्थना करवाने उनके यहाँ आते-जाते रहते थे. मॉम के कन्फेशन भी अब काफी लम्बे होने लगे थे.सफेद लिबास में हडियल चेहरे और चुंधी हुई आँखोंवाले पादरी को देखते ही उसके तन-बदन में आग लग जाती थी. ग्रेनी पादरी के धार्मिक पद के रौब और सामाजिक स्थिति के कारण इस विषय में कुछ कर नहीं पाती थीं. जेनी के डैड को भी शायद इस बात की भनक लग चुकी थी . तभी वे घर आना लगभग छोड ही चुके थे.

मॉ की आवारगी, डैड की उदासीनता और दिन व दिन सठिया रही ग्रेनी के बीच अपनी नई उम्र की उठान और देह पर होते हार्मोन के तांडव से जेनी बिल्कुल निसंग और भ्रमित होकर रह गयी थी. उसकी देह और मन उसके अपने आप के लिए एक पहेली बनकर रह गये थे. जीवन के ऐसे कठिन पडाव में उसे किसी के साथ और मार्गदर्शन की सख्त जरूरत थी. शायद इसीलिए उसने अपने अंदर के अकेलेपन और चुप्पी को बाहर के शोरगुल से भरना चाहा था और इसी कोशिश में अंत तक स्वयं ही उसका एक बेशक्ल और नामालूम-सा हिस्सा बनकर रह गयी थी.

कॉलेज में सहपाठियों के दल में शामिल होने के लिए वह उनकी हर सही-गलत बातों का साथ देने लगी थी. अपनों और गैरों की निरंतर उपेक्षा ने उसे हीन भावना से गसित कर दिया था. वह स्वयं को हर मामले में अयोग्य और परितयक्त मानने लगी थी. अकेलेपन ने उसे खामोश कर दिया था और वह हर समय गहरे अवसाद से घिरी रहने लगी थी. दो वर्ष पहले मॉम भी दुबई में किसी शेख के यहाँ केयर टेकर की नौकरी लेकर चली गयी थी. इसके बाद तो मॉम और डैड के बीच संबंध जैसे एकदम ही समाप्त हो गया था. खाडी के देशों में किसी स्त्री का इस तरह से काम करने का क्या अर्थ होता है ये सभी समझ सकते हैं. अपनी मर्यादा और सम्मान बचाकर काम करना वहाँ लगभग अंसभव ही होता है.

दो ही वर्ष में मॉम का शरीर दुबई के झलमलाते सोने से लद गया था और उन्होंने पणजी मे एक तीन रूम का फ्लैट भी बुक करा लिया था. खाडी के देशों में नौकरी के लिए गये अन्य गोवा के लोगों से सभी वहाँ के विषय में तरह-तरह की कहानियाँ सुनते रहते हैं. आजीविका के लिए गये भारतीयों को वहाँ बहुत ही अपमान और असुरक्षा का जीवन जीना पडता है. वहाँ के अधिकतर देशों में उन्हें अपने अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता खोकर जीना पडता है. एकबार कई वर्षों के बाद कतार से लौटकर क्निसमस मनाते हुए गे्नसी आंटी ने प्नसन्न होकर कहा था कि अपने देश की तरह हमें और कहाँं आजादी मिलती है. वहाँ तो राह चलते लोग झपटकर गले का क्नॉस तोड डालते हैं और हम कुछ कर नहीं पाते. यही अपुन के साथ इस देश में कभी होने को सकता था ! मगर वहाँ चाबुक के आगे किसकी जुबान चलती है. न जाने कब किस बातपर हाथ-पैर तराश डाले... वहाँ तो बस किसी तरह चुप रहकर टाइम निकालने का और पैसा कमाकर इंडिया लौटने का . फिर यहाँ आराम ही आराम...

जेनी अपने मॉम-डैड के व्यवहार और जीवन शैली को लेकर सभी के बीच लज्जा और ग्लानि में डूबी रहती है. सोलह साल की खतरनाक उम्र, गहरा अकेलापन और हाथ में ढेर सारे रूपये... एक निरंकुश जीवन के सारे उपादान ! जेनी के साथ भी वही हुआ जो ऐसी स्थिति में उसकी जैसी लडकियों के साथ अक्सर हुआ करता है- वह गलत शोहबतों और आदतों से घिर गयी. इसका सीधा असर उसकी पढाई-लिखाई पर पडा, वह इसमें पिछडती चली गयी. अब वह पायःअपने क्लासेज बंक करके या तो आवारा दोस्तों के साथ कॉलेज के कैंटिन में बैठी रहती या फिर होटलों, सिनेमा हॉलों, या समुद्र तटों पर भटकती फिरती. शामें भी उसकी अधिकतर डिस्कोथेक या समुंदर के किनारे बनी किसी सैक में बीतती थीं.

कई बार पकडी जाने पर उसे अच्छी खासी डाँट भी पडी थी. पर बूढी ग्रेनी के लिए अब उसपर चौबीसों घंटे पहरा देना संभव नहीं रह गया था. डैड हर बार नौकरी से छुट्टी लेकर दुबई से आ नहीं सकते थे और मॉम के पास उसके लिए इतनी फुर्सत नहीं थी कि उसी को लेकर बैठ जाय. कुछ ही दिनों पहले वह शेख साहब के साथ स्वीटजरलैंड घूम आयी थी और अब थाईलैंड जाने की तैयारी में थी.

इसी बीच किसी कार्निवाल पार्टी में जेनी डॉनी से मिली थी और उसदिन से उसकी दुनिया ही बदल गयी थी. पहली ही मुलाकात में उसे सबके सामने जबरन् चूमकर डॉनी ने उसे अपनी गर्ल फेंड की उपाधि से विभूषित कर दिया था. इसके बाद जेनी की सबके बीच शाख बन गयी थी. इनसब के लिए जेनी डॉनी का दिल से आभारी थी. वह उसके इशारों पर उठती-बैठती रहती थी. कुछ भी करती थी. डॉनी को नाराज करके वह अपने पुराने घुटन और अकेलेपन से भरे जीवन में कतई लौटना नहीं चाहती थी.

लगातार नाचते हुए अब वे सब बहुत थक गये थे. डी. जे ने एक छोटा-सा ब्रेक दिया था. स्टेज के पीछे पसीने से लथपथ वह अपने चेहरे पर बोतल को हिलाते हुए सोडा की छींटे मार रहा था. उसे घेरकर तीन-चार लोग खडे थे. जेनी और डॉनी के साथ बाकी सभी खाने-पीने के स्टालों के इर्द-गिर्द जमा हो गये थे. हवा में तंदूरी चिकन, हैम बर्गर, ऑमलेट की गंध उड रही थी. वीयर के बोतल लडके दॉतों से खोल रहे थे. जेनी तथा डॉनी ने एक-एक अंडा पाव तथा वीयर का ठंडा कैन लिया. रॉनी सॉसेज के साथ पाव कुतर रहा था. डिम्पी बीफ कटलेट के खत्म हो जाने से निराश हो रही थी.

कश्मीरी दूकानों पर शैलानियों की भीड लगी थी.एक विदेशी लडकी अपनी जाँघ पर गुर्राती हुई बिल्ली का गोदना गोदवा रही थी. वह दर्द के मारे सिसकारी भर रही थी और उसका पुरूष मित्र उसे सहलाते हुए हिम्मत बँधा रहा था. फेरीवाले चाँदी, ताँवे और गिलट की चीजें बेचते हुए विदेशियों से डिक्शनरी खोलकर उनकी भाषा में बातें करने की कोशिश कर रहे थे. एक अमेरिकन अपनी रामनामी बिछाकर उसपर बैठा हुआ था. उसकी महिला मित्र अपने खुले उरोजों पर ऊँ का स्टीकर चिपकाये हुक्का पी रही थी. किसी की टी शर्ट पर शिव की तस्वीर थी तो किसी के घाघरे में हनुमानजी परचम की तरह लहरा रहे थे. कई लोग एक तरफ समूह में फेस पेंट करवा रहे थे.

राहुल को यह सब देखकर गुस्सा आ रहा था. वीयर की चढती तरंग में हिचकी लेते हुए उसने कहा था- देखो, ये हमारी देवी-देवताओं का कैसा तमाशा बनाते हैं. आखिर ये जब दूसरों के देशों में जाते हैं तब उन्हें उनकी संस्कृति का सम्मान करना चाहिए !

’चल यार ! जब हम में ही आत्म सम्मान नहीं है तो दूसरे क्यों हमारे धर्म, संस्कृति का आदर करने लगे !’ आर्ची हैश का सुट्टा लगाते हुए व्यंग्य से हंसा था. ’कोई इस तरह उनके मजहब का मजाक उडाकर देखे, सब उठकर खडे हो जायेंगे !’

’ठीक कहते हो, हमारा धर्म, भाषा तो गरीब की लुगाई की तरह सबकी भौजी बनी हुई है, जो चाहता है, उसका मजाक बना देता है.’ राहुल ने उदास होकर वीयर पीते हुए कहा था ’कम ऑन फोक्स ! इन सवालों से हमारे पोलीटीशियनस को ही जुझने दो, क्यों न हम नहाये? ’ हैरी ने कपडे उतारते हुए कहा था और फिर दौडते हुए उफनते हुए समंदर में कूद पडा था. उसके पीछे लिया और शैली भी पानी में कूद गयी थी. जेनी डॉनी के बगल में बैठी वीयर के घूँट भरते हुए उन्हें पानी में उधम मचाते हुए देखती रही थी. चारों तरफ प्लास्टिक की बोतलें, खाली कैन, फलों के छिलके और कागज ही कागज बिखरे पडे थे. तट पर दूकानों की लंबी कतारें और तेज रोशनी थीं. हर तरफ शोर और गहमागहमी थी.

डॉनी ने जेनी की जांध पर अपना हाथ रखा था- ’सी बेबी ! थोडे ही समय में सबकुछ कितना बदल गया है न ! अब लगता ही नहीं, ये हमारा पहलेवाला गोवा है ! न वह खूबसूरती बची है, न वह शांति ! बाहर के पैसे, बाहर की संस्कृति ने हमारा अपना कुछ रहने ही नहीं दिया...’

’हाँ, मेरी ग्रेनी भी यही कहती है. कितनी भीड, कितनी बिल्डिंगे और होटलें... लगता है, यहाँ की एक इंच जमीन भी अब नहीं बचेगी ! इस विकास की अंधी दौड में जमीन तो जमीन, अब आकाश भी खो जायेगा ! उडने के सपने क्या, अब शायद दो कदम चलने की उम्मीद भी हमें छोड देनी पडेगी...उसदिन कोई बडी होटल कम्पनी हमारा घर और जमीन खरीदने आयी थी, मुँह मांगा दाम देने को तैयार थी, मगर गै्ननी नहीं मानीं. कह रही थी, सबकुछ तो बाहरवालों के हाथों में चला गया है, अब इस चाँद, समंदर और हवा के अकेले सुख को बाज़ार की चीज़ नहीँ बनायेंगे... समंदर की मछलियाँ शीशे के मकान मेँ जी नहीँ पायेंगी. तडप-तडपकर मर जायेंगी. हमारी रगों में समंदर का नमक है, उसकी रवानगी है, हमें खुला आकाश और खुली धरती चाहिए... फेनी के मतवालों को लफडे से क्या काम...!

’शी इज ऐन इमोशनल फूल...’ न जाने कब उनके बगल में रॉनी और मैल्कम आ कर बैठ गये थे. रॉनी ने अपनी सिगरेट से एक लंबी कश खींचने के बाद उसकी राख झारी थी- ’अरे समय के साथ चलना चाहिए. ये जंगल और समंदर की नमकीन हवा से हमारा पेट भरेगा? अब जब शैलानियों की वजह से इनकी डिमांड बढी है तो वी सुड मेक बैस्ट युज ऑफ इट !’

’छोडो इन बातों को, अब ये सोचो कि अभी रात के चार बजे हैं और कल सुबह छह बजे की प्नार्थना के लिए हमें चर्च जाना है...’ जो ने नीम अंधेरे में अपनी घडी की तरफ घूरते हुए कहा था. नींद के कारण उसकी आँखें बोझिल हो रही थीं.

’और कन्फेशन भी करना है...’ रॉनी ने जेनी की तरफ इशारा करते हुए आमीर को आँख मारी थी.

’सन डे किश्चियनस्... आमीर व्यंग्य से मुस्कराया था. ’तुम लोगों के मजे हैं यार. पूरे हफ्ते ऐश करो और सन डे को कन्फेशन करके पाप से बरी हो जाओ !’

’तुम क्यों कुढ रहे हो, तुम लोगों के तो और भी ज्यादा मजे हैं, मासूमों की जान लेकर जन्नत पाने के हकदार हो जाते हो...!’ हैश के नशे में जो का लहजा भी तल्ख हो उठा था.

’प्लीज लीव दिस टॉपिक...’ जेनी ने बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया था. मगर आमीर तबतक तैश में आकर वीयर की बोतल तोडकर अपने हाथ में ले चुका था. गुस्से से उसके चौडे नथुने फडक रहे थे. उसका जिगरी दोस्त गोपाल भी अपनी जेब से नकल डस्टर निकालकर झटपट अपने बायें हाथ में पहन चुका था. जो खडे होकर बॉक्सिंग की मुद्रा में अपनी दोनों मुट्ठियाँ भींचकर धीरे-धीरे उछलने लगा था- ’यू वांट टु फाइट वीथ मी मैन...? दैन कम ऑन, आई वील ब्रेक योर ब्लडी नोज आई स्वेर...’

आसपास भीड इकट्ठी होने लगी थी. लोग तमाशा देखना चाहते थे. कोई-कोई चिल्लाकर उनकी हौसला अफजाई कर रहे थे- कम ऑन जो ब्यॉय, हिट द बास्टर्ड हार्ड... आमीर के दोस्त भी चिल्लाकर उसे कोंकणी मेँ उकसा रहे थे- आमीर ! छोडू नका तीला, फोडूंग उडाय...( आमीर उसे छोडना नहीं आज, तोडकर रख दो) जेनी रोते हुए डॉनी का जैकेट पकडकर उसे पीछे से खींच रही थी. पिछली लडाई में एक ईजरायली लडके ने उसके नितंब पर ब्लेड चला दी थी जिसकी वजह से वह दो महीने तक टॉयलेट के लिए बैठते हुए हाय-हाय करता रहा था. दो-चार और मित्र भी बीच-बचाव का पयत्न कर रहे थे. तभी जोर से पुलिस की सीटी बजी थी. भीड इकट्ठी होती देखकर वहाँ पुलिस की पेट्रोलिंग कार आ खडी हुई थी. पुलिस के आते ही मजलिस तितर-बितर होने लगी थी. जेनी डॉनी को खींचकर एक तरफ ले गयी थी. दूर स्टेज पर फिर से संगीत बजना शुरू हो गया था.

पुलिस के हटते ही डॉनी ने जेनी के गाल पर जोरदार चाँटा मारा था. जेनी इस आक्समिक हमले से संभल नहीं पायी थी और नीचे गिर पडी थी. उसके गिरते ही भीड को चीरकर न जाने कहाँ से स्कारलेट आ गयी थी और जेनी को अपनी बॉहों में भरकर फफक-फफककर रो पडी थी. और फिर अचानक खा जानेवाली नजरों से डॉनी को गूरते हुए उठ खडी हुई थी- यू मेल सभनिस्टीक पीग... हाउ डेयर यू?

’यू किप अवे फ्नॉम दिस, यू बीच...!’ डॉनी अपनी आस्तीन समेटते हुए गुर्राया था.

’माइंड योर लाग्वेज डॉनी ब्याय !’ स्कारलेट का अफ्निकन मित्र अपनी बॉहों की विशाल मछलियाँ नचाते हुए उसके सामने ललकारते हुए आ खडा हुआ था. उसका लंबा-चौडा शरीर देखकर यकायक डॉनी का जोश ठंडा पड गया था. सकपकाते हुए उसने अपनी नजरें दूसरी तरफ फेर ली थी. मगर अपनी बेइज्जती का बदला उसने सुबकती हुई जेनी से लिया था, उसे बालों से पकडकर उसने झटके से खडी कर दिया था- ’नाउ स्टॉप क्नाइंग एंड किस मी एंड टेल इन फ्नांट ऑफ एवरी वन दैट यू लव मी !’ ये शब्द उसने इसरार के लहजे में नहीं, एक तरह से धमकी देते हुए कहा था.

’नाउ दिस इज टू मच !’ स्कारलेट ने आपत्ति दर्ज करवाई थी. उसकी बातों को अनसुनी करते हुए डॉनी ने जेनी के बाल बेरहमी से झटकते हुए अपनी मांग दोहरायी थी. जेनी ने सुबकते हुए धीरे से अपने पंजों पर उचकते हुए उसके होंठ चूम लिए थे. चारों तरफ से सीटी और तालियाँ बज उठी थीं. सभी फिर से मस्त होकर नाचने लगे थे. डॉनी ने मुस्कराते हुए जेनी के बाल छोड दिये थे- दैटस् लाइक माय गर्ल ! स्कारलेट गुस्से से पैर पटकते हुए भीड में खो गयी थी. उसका अफ्रिकन मित्र उसके पीछे हो लिया था- वुमन लाइक ब्रुटस्...

अचानक तेज हवा के साथ बूँदाबाँदी शुरू हो गयी थी. न जाने कब पूरा आकाश काले, घने बादलों से ढँक गया था. चाँद का कहीं नामोनिशान तक नहीं था. हवा के झकोरों पर दुहरे होते नारियल के पेड अंधेरे में दैत्य की तरह दिख रहे थे. समंदर की लहरे भी हर क्षण ऊँची होती जा रही थीं.हवा साँप की तरह फुँफकारती फिर रही थी. मगर इन बातों से बेखबर कुछ लोग अब भी सुधबुध खोये से नाचे जा रहे थे. उनके कपडे भीगकर पानी का ही हिस्सा बन चुके थे. प्रेमी युगल अपने ही में डूबे हुए थे.

डॉनी जेनी को अपने जैकेट की ओट में लेते हुए दायीं तरफ नारियल के घने झुरमुटों में जा छिपा था. वहां एक नारियल के तने से जेनी को टिकाकर उसने उसे अपनी बाँहों में भर लिया था.चारों तरफ बरसती बूँदों की रिमझिम संगीत के बीच डाँनी के सीने से लगी जेनी उसके दिल की धडकने सुन रही थी. उसका अपना दिल भी अनियंत्रित होकर धडक रहा था. डॉनी की सिंकती हुई अंगुलियों की इच्छाभरी छुअन से उसकी त्वचा तरल हुई जा रही थी. रोम-रोम आसपास उडते जुगनुओं की तरह जलने-बुझने लगा था. नशे से बोझिल पलकों में गहरा धुआं-सा भर आया था अनायास...

कुछ ही दिनों पहले तिराकल के समुद्रतट पर स्थित एक होटल की पिछली सीढियों पर जो सीधी समंदर के सीने में जाकर उतरतीं है, उन्होंने पूरी रात एक-दूसरे की बाँहों में बितायी थी. चारों तरफ लहराता हुआ काला समंदर और पत्थरों पर पछाड खाकर धुंध, धुआं के बादल बनती उसकी पागल लहरों का निरंतर शोर...दोनों तेज छींटों की नन्ही फुहारों से एकदम भीग गये थे. सनसनाती हवा नंगी त्वचा पर चाबुक की तरह बरस रही थी. रह-रहकर आसमान में बिजली चमक उठती और उसके साथ ही चारों तरफ रोशनी के सफेद झमाके फैल जाते...

यह होटल वास्तव में एक पुर्तगाली किला था जहाँ कभी भारतीय सेना और पुर्तगालियों के बीच घमासान युद्ध हुआ था. उस युद्ध में दोनों तरफ बहुत सी जानें गयी थीं. कहते हैं आज भी रात गये इस किले की बूढी दिवारे तोपों की गरज से थरथरा उठती हैं. जख्मी सैनिकों की धीमी कराहें सुनाई पडती है. न जाने कौन अपने लंबे बाल बिखराये इसकी अटारियों और संकरी गलियारों में सारी रात रोती हुई भटकती फिरती है. बीच रात में इसकी सूनी बुर्जियों में मौमबत्ती की सुनहरी लौ चमक उठती है क्षणभर के लिए और फिर औचक बुझ जाती है. गहरे नीले अंधकार में सफेद आँचल-सा लहराकर अदृश्य हो जाता है. समंदर की उदास लहरों में किसी की आवाज बेचैन रूह की तरह सिसकती फिरती है बार-बार- पुत माझा घरा परत यो (मेरे बेटे, घर लौट आओ)… समंदर के किनारे पर बिखरती झाग किसी बूढिया के सन-से सफेद बालों की तरह रात के अंधकार में चमकती हैं, पूरब की हवा अनमन दोहराती फिरती है शून्य में बिखरे शब्दों को उच्छ्वास की तरह, निरतंर, लगातार...

इसी बूढे दैत्य -से किले के हवा और लहरों के गर्जन से थरथराते हुए साये में उस रात दोनों ने एक-दूसरे से टूटकर प्यार किया था. सुबह होने से पहले उन्होंने पागल समंदर की हबस को अपने पूरे वजूद और रगो-रेश से जी लिया था.

आज की रात भी कुछ वैसी ही थी- उन्माद और तिलस्म से भरी शिराओं में चाहना की आदिम गंध-ज्वार जगाती हुई, अपनी जद में होशो-हवास की पूरी दुनिया समेटकर तहस-नहस करती हुई... सारी हदों को तोडकर समंदर के अन्तहीन विस्तार को पाने के लिए, क्षितिज की सीमा को लांघने और छूने के लिए बेचैन, आमादा... डॉनी ने जैसे ही उसके बैकलेस टॉप की गाँठें अलगाई थीं, जेनी बेकाबू होकर उसके सीने से लग गयी थी. इच्छा की अनबुझ तरंगों से उसका पूरा शरीर थरथरा उठा था. एक तटबंध नही की तरह वह दौडकर सागर की मचलती बाँहों में हमेशा-हमेशा के लिए खो जाना चाहती थी. समंदर भी उसे अपने में समाने के लिए अधीर हो रहा था.

जब भोर से पहले उनके भीतर का उन्माद थमा, समंदर भी शांत हो चुका था. डांस की समाप्ति के बाद समुद्र तट भी पूरी तरह से वीरान हो चुका था. वहाँ मेले के उठ जाने के बाद का-सा दृश्य था-चारों ओर बिखरे हुए प्सास्टिक, बोतलों के अंबार. कागज, छिलके और टूटे हुए झोंपडे. गहरे बैंजनी बादल देर तक बरसने के बाद पूरब में फिके हो आये थे. वहाँ रोशनी की हल्की-सी रसमसाहट थी. नारियल के लंबे, चीरे हुए पत्तों से पानी की बूँदें अभी भी अनवरत झर रही थीं. समंदर को छूकर बहती हुई पानी से बोझिल हवा मत्स्यगंधा बनी हुई थी.

जेनी और डॉनी पेड के झुरमुटों से दो भीगे हुए कबूतरों की तरह बाहर आये तो अमेय, मौला और रॉय ने उन्हें घेर लिया. वे खासे उत्तेजित दिख रहे थे. मौला की एक आँख बेतरह सुजकर जामुनी पड गयी थी. उनकी हालत को देखकर लग रहा था, वे कहीं से मार-पीट करके आ रहे हैं. अमेय ने बतलाया था, औजरा बीच पर उनका पिछली रात इजराइली युवकों से लडाई हो गयी थी. उन्होंने राघव और ऐसली को बुरी तरह पीटा था. ऐसली के सर पर एक साथ दो वीयर की बोतले फोडी थी. उसके सरपर दस टाँके पडे हैं. इस वक्त वह बामबोलिम मेडिकल कॉलेज में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा है. मौला ने बताया कि वे इजरायली नवयुवक उन्हें हॉकी स्टीक से पीटते हुए चिल्ला रहे थे- यू ब्लडी इंडियनस् ! डोंट डेयर टु कम हेयर, दिस बीच बिलांगस टु अस्... उनकी मजाल देखो, हमारे देश में ही हमारे साथ दादागिरी कर रहे हैं ! कब से लोकल लोगों को वहाँ घुसने नहीं देते, कहते हैं यू ब्राउन मंकिस, कम हेयर टु सी आवर नेकेड वुमन !

’अच्छा ! ये तो हद है !’ उनकी बातें सुनते ही डॉनी उत्तेजित हो उठा था- ’लेटस् टीच देम अ लेशन टु डे !’ हालांकि अमेय और उसके ग्रुप के बीच पिछले ही वर्ष इसी रेन डांस में बहुत बडा झगडा हो चुका था, मगर इस समय वह सबकुछ भुलकर उनके साथ जाने के लिए तैयार हो चुका था. जेनी नहीं चाहती थी कि वह फिर से किसी मुसीबत में फंस जाये, मगर डॉनी हमेशा की तरह उसकी कोई भी बात सुनने के लिए तैयार नही था. उसने मौला से जेनी को उसके घर पहुँचाने की बात कहकर अपना नकल डस्टर पहनते हुए दूसरे लडकों के साथ वहाँ से आनन-फानन में चल पडा था. दूसरे लडके भी साइकल चेन, हॉकी स्टिक आदि से लैश थे. जेनी का मन आशंकाओं से डूब रहा था.

मौला उसे लेकर पास ही की एक झोंपडी में गया था और उसे एक स्टोर रूम में बैठाकर ’अभी आता हूँ’ कहकर कहीं चला गया था. जेनी चारों तरफ देखती हुई चुपचाप बैठी रही थी. कोठरी में चारों तरफ होटल में इस्तेमाल में आनेवाले डीप फिज, कोल्ड डि्रंक के केटस्, राशन के बोरे, कनस्तर और वीयर के कार्टुनस् रखे थे. पूरा कमरा सामानों से ठसाठस भरा हुआ था. कोने में एक बेंचनुमा बिस्तर पडा था. बाहर बरामदे में तीन हिप्पी अपनी लंबी जटाएँ फैलाये फर्श पर गहरे नशे में बेखबर सोये पडे थे. एक दूसरा एक अलग कोने में बैठा अपनी जपाफूल जैसी आँखें झपकाते हुए बीच-बीच में ’बम शिवा’ कहते हुए चिलम के कश खींच रहा था.

मौला ने थोडी देर बाद आकर उसे एक कोल्ड डि्रंक की बोतल थमायी तो वह इंकार नहीं कर पायी. उसे बहुत जोरों की प्यास लग रही थी. नींद से पलकें भी बोझिल हो रही थीं. उसे रह-रहकर ख्याल आ रहा था कि आज सुबह जब उसकी ग्रेनी उसे संडे मास (रविवार की प्रार्थना) के लिए उठाने आयेगी तो उसे अपने कमरे में न पाकर हंगामा खडा कर देगी. सोच-सोचकर वह परेशान हो रही थी. किसी तरह कोल्ड डि्रंक पीकर उसने मौला से उसे जल्दी घर पहुँचाने का आगह किया था. सुबह के साढे पाँच बज चुके थे. अपनी घडी देखने के लिए उसने दूबारा अपना हाथ उठाना चाहा था, मगर गहरे आश्चर्य. के साथ अनुभव किया था कि वह अपना हाथ हिला नहीं पा रही है. यह क्या ! जैसे यकायक उसका पूरा शरीर शून्य हो उठा था. वह अपनी ही देह को महसूस नहीं कर पा रही थी. वह मानो वर्फ की सिल्ली की तरह जम गयी थी एकदम से. आतंक का एक गहरा नीला बवंडर अचानक से उठकर उसे आपाद-मस्तक घेर लिया था. ओ क्राइस्ट ! यह उसके साथ क्या अनहोनी हो रही थी. क्या उसे लकवा मार गया था? वह अपने हाथ-पाँव हिला क्यों नहीं पा रही है ! उसे पतीत हो रहा था जैसे सिर्फ उसका दिमाग जागा हुआ है, मगर पूरा शरीर गहरी नींद में सो गया है. वह सोच-समझ सकती है, मगर अपनी उंगली तक हिला नहीं सकती... देह पर चीटियों की लाल कतारें रेंगती हुई अब गले में थक्के बाँधने लगी थी, आँखों के आगे गहरा धुआं-सा भर गया था.

और फिर उसी तरह बुत बने उसने गहरे आश्चर्य और आतंक के साथ देखा था, कमरे में चार लडके एकसाथ घुस आये थे ! उनमें मौला भी था जो भद्दे ढंग से मुस्करा रहा था- डोंट बी अफ्रेड बेबी, नो वन इज गोइंग टु हर्ट यू ! जेनी जोर से चीखना चाहती थी, मगर उसकी आवाज उसके गले में ही घुटकर रह गयी थी. उसने भय और आतंक की गहरी, काली घाटी में डूबते हुए देखा था, चारों लडके उसे गिद्ध की तरह घेरकर खडे हैं और मैल्कम एक-एककर उसके जिस्म से कपडे उताड रहा है. सबकी गंदी फब्तियाँ, हंसी, छिपकली जैसी देह पर रेंगती घिनौनी छुअन... वह सबकुछ अनुभव कर पा रही है, मगर पत्थर की बुत की तरह अपनी जगह से एक इंच भी हिल नहीं पा रही है. एक गूँगे की तरह वह अपने अंदर पूरे समंदर का हाहाकार छिपाये बेबस पडी थी और वे चारों उसके चारों तरफ अशरीरी छायाओं की तरह नाच रहे थे. उसने देखा था, वे बारी-बारी से उसके जिस्म को नोच रहे हैं, खसोट रहे हैं और वह एक शव की तरह उनके बीच लावारिश पडी हुई है.

मैल्कम ने उसकी जांधों के बीच हाथ डालकर उसके पाँवों को चौडा दिये थे और फिर वे एक-एककर उसपर हाबी हो गये थे. दर्द की एक गहरी, काली नदी में डूबते हुए उसने जैसे सुना था, बगल के कमरे में कोई धीरे-धीरे कराह रहा है. उसे न जाने क्यों वह आवाज पहचानी-सी लगी थी.मगर इससे पहले की वह कुछ समझ पाती, वह अचेत हो चुकी थी. उस समय चौथा युवक उसे पूरी पाश्विकता के साथ रौंद रहा था.

दिन चढे जब उसे होश आया था, उसने स्वयं को समंदर के एक निर्जन कोने पर पूरी तरह से विवस्त्र अवस्था में पडी हुई पाया था. कुछ ही दूरी पर झाडियों में उसके कपडे भी बिखरे पडे थे. चारों तरफ जलपक्षियों और समंदर की उदास लहरों का शोर था. गहरे नीले आकाश में कहीं-कहीं बादलों के सफेद टुकडे आवारा फिर रहे थे.

उसका पूरा शरीर दर्द से टूटा जा रहा था. छातियों, जांघों और पेट में जगह-जगह लाल, नीले धब्बे पडे हुए थे. किसी तरह कराहते हुए उसने अपने कपडे पहने थे तथा लंगराते हुए चल पडी थी. कुछ दूर आकर उसने देखा था, एक जगह लोगों की भीड लगी हुई थी. पास ही एम्बुलेंस के साथ पुलिस की जीप भी खडी थी. करीब जाकर उसने सुना था, लोग आपस में कह रहे थे कि कल रात किसी ने एक विदेशी लडकी की बडी निर्ममता से हत्या कर दी थी. धडकते हुए दिल के साथ उसने भीड के बीच में से झाँककर देखा था और फिर एक क्षण के लिए बुत बनकर रह गयी थी. आती-जाती लहरों के बीच स्कारलेट की क्षत-विक्षत लाश पडी हुई थी. उसकी पथराई हुई नीली आँखों में आश्चर्य और यातना की एक पूरी दुनिया स्तब्ध पडी थी. जेनी को अनायास कल भोर रात को उस झोंपडी के दूसरे कमरे से आती हुई कराहटों की याद हो आयी थी. उसकी पलकों पर आग-सी जल उठी थी. उसने अपनी आँखों को भींचकर आँसुओं को बहने से रोका था.

कल रात का फुल मून नाइट डांस समाप्त हो चुका था- उसके जीवन की सारी खुशी और थिरकन को चुराकर हमेशा-हमेशा के लिए. आज रविवार का दिन है-गिर्जाघर में प्रार्थना का दिन ! मगर क्या वह गिर्जाघर जा पायेगी? शायद नहीं ! कन्फेशन के लिए भी नहीं ! तट पर बैठकर वह आती-जाती हुई लहरों को निष्पलक देखने लगी थी. उसके अंदर भी एक समंदर पछाडे खा रहा था, किनारे पर टूटकर अपना सर धुन रहा था. चारों तरफ एक हाहाकार मचा था, जैसे आज उसके साथ सारी दुनिया ही लुट गयी हो. स्कारलेट का जख्मों से भरा शव लहरों में डूबता-उतराता थोडी ही दूरी पर पडा हुआ था और वह एक जिंदा लाश बनी अपनी घायल देह को किसी तरह समेटे यहाँ बैठी हुई थी. किसी को पता नहीं था, कल रात यहाँ एक नहीं, दो-दो कत्ल हुए थे ! या फिर शायद तीन... कौन जाने ! सोचते हुए जेनी की आँखों के आगे डॉनी का चेहरा घूम गया था. दूर कहीं चर्च में रह-रहक बजते हुए घंटे की आवाज सुबह की शांत बहती हवा में स्पष्ट सुनाई पड रही थी. जेनी ने अनायास अपने सीने पर क्रॉस का निशान बनाया था और उठ खडी हुई थी. उसे न जाने अचानक ऐसा क्यों लगा था कि जैसे अभी-अभी किसी ने उसे पुकारा है ! हाँ, एक दरवाजा है जो उसके लिए खुला है, जो कभी किसी के लिए बंद नहीं होता, उसे वहीं जाना है, उसी आखिरी उम्मीद के पास...