साँप को ज़हरीले दाँत मिलने की कहानी, उसी की ज़ुबानी / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / प्रगति टिपणीस

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शान्त, शान्त, शान्त । ज़रा मेरे क़रीब आओ । मेरी आँखों में देखो ।

मैं हमेशा से एक दिलकश जीव रहा हूँ, नाज़ुक, एहसासमन्द और शुक्रगुज़ार । मैं अक़्लमंद और नेक भी हूँ । मेरे इकहरे बदन का हर जोड़ इतना लचीला है कि तुम मेरा धीमा नाच देखकर ख़ुश हो जाओगे । तुम्हें मैं कभी छल्लों से निकलने के करतब दिखाऊँगा तो कभी अपनी केंचुली की चमक; कभी मैं ख़ुद में समाकर एकदम सिमट जाऊँगा तो कभी अपना आकार कई गुना बढ़ा लूँगा । मैं भीड़ में अकेला ! मैं भीड़ में तनहा !

शान्त । शान्त । मेरी आँखों में देखो ।

क्या मेरा टकटकी लगाकर देखना और मेरा यों डोलते और बराबर नाचते रहना तुम्हें पसन्द नहीं है ? आह ! मेरा सर इतना वज़नी है इसीलिए मैं डाँवाडोल होता रहता हूँ । आह ! सर भारी है, इसलिए मैं सीध में देखने के बावजूद डोलता रहता हूँ। मेरे क़रीब आओ । मुझे थोड़ी गर्मी दो, अपनी उँगलियों से मेरे तेजवान माथे को सहलाओ । मेरे माथे को सहलाते हुए तुम्हें एक चिकने-से प्याले की अनुभूति होगी । यह प्याला ज्ञान और रात की रानी जैसे फूलों की ख़ुशबू से भरा है । अपने जोड़ों को हिलाते हुए और हवा को चीरते हुए मैं आगे बढ़ता हूँ । मैं चुप रहता हूँ तो डोलता हूँ, देखता हूँ तो डोलता हूँ – यह कैसा अजीब वज़न है, जिसे मैं अपनी गर्दन पे ढोता हूँ ।

मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

मैं हमेशा से एक दिलकश जीव रहा हूँ और मैंने जिससे भी मुहब्बत की है, सच्चे दिल से की है। मेरे क़रीब आओ । मुझसे लिपट जाओ । तुम्हें मेरे सफ़ेद, नुकीले, सुन्दर दाँत दिख रहे हैं न ? पहले-पहल चुम्बन करते समय मैं हलके से काट लिया करता था । हलके लाल रंग की पहली बूँदों के छलकने और गुदगुदी होने पर आने वाली हँसी की खिलखिलाहट के निकलने तक मैं प्यार से, दुलार से अपने आशिक़ों को काटता रहता था । इसमें सचमुच बहुत मज़ा आता था । नहीं तो तुम ही बताओ कि वे लोग मेरे पास लौट-लौटकर क्यों आते, जिन्हें मैं एक बार चूम चुका होता था । अफ़सोस कि अब मैं हर किसी को सिर्फ़ एक बार ही चूम सकता हूँ, सिर्फ़ एक बार। हर किसी को सिर्फ़ एक ही चुम्बन… मेरे प्यार से धड़कते दिल और मेरी संवेदनशील आत्मा के लिए यह कितना कम है ! लेकिन यह ग़म सिर्फ़ मेरा है। एक चुम्बन के बाद मुझे फिर नए प्यार की खोज में जुटना पड़ता है। लेकिन मेरे आशिक़ को किसी दूसरे इश्क़ की खोज कभी नहीं करनी पड़ती; मेरा एकमात्र स्नेहिल चुम्बन उसे ऐसे शाश्वत बंधन में बाँध देता है है जिसे वह कभी तोड़ नहीं पाता है। मैं पूरे भरोसे के साथ तुमसे बतिया रहा हूँ और अपनी कहानी ख़त्म करते ही... मैं तुम्हें चूमूँगा।

मैं तुमसे प्यार करता हूँ।

मेरी आँखों में देखो। क्या मेरी नज़र सचमुच शानदार और शालीन नहीं है? वह एकटक और सीधी भी है। मेरी टकटकी जब दिलों को छूती है तो लगता है मानो किसी ने दिल पर ठण्डा हथियार रख दिया हो? मैं देखते समय डोलता हूँ। मैं अपनी नज़रों से सबको बाँध लेता हूँ। तुम्हारे डर और प्रेम से निढाल तुम्हारी विनम्र लालसा को मैं अपनी हरी आँखों में समो रहा हूँ। मेरे क़रीब आओ। अब तो मैं राजा हूँ और मेरी ख़ूबसूरती को न देखने की हिम्मत तुम नहीं कर सकते हो। लेकिन एक समय था बहुत ही अजीब-सा। .. ओह, कितना अजीब था वह समय ! उसे याद करने भर से मैं सिहर उठता हूँ। कोई मुझसे प्यार नहीं करता था, कोई मुझे मान नहीं देता था। सब मेरे साथ बड़ी निर्ममता और क्रूरता से पेश आते थे। मुझे कीचड़ में रौंदकर वे मुझ पर हँसते थे — ओह, कितना अजीब था वह दौर ! मैं भीड़ में अकेला था ! मैं भीड़ में तनहा !

मैंने कहा न तुमसे कि मेरे क़रीब आओ ।

तब सब मुझसे प्यार क्यों नहीं करते थे? मैं तो तब भी एक आकर्षक प्राणी था, नेक, विनम्र, और अद्भुत नृत्य करनेवाला। लेकिन मुझे प्रताड़ित किया गया। मुझे आग में जलाया गया। भारी और भौंडे जानवर अपने भारी पैरों के तलवों से मुझे रौंदते थे। ख़ूनी जबड़ों में क़ैद तीखे दाँत मेरे नाज़ुक बदन को रेज़ा-रेज़ा करते थे। निःसहाय और शोक में डूबा मैं रेत कुतरता था, ज़मीन की धूल निगलता था और हताश होकर मर जाता था। मैं हर दिन मरता था। ओह, कितना भयानक था वह समय ! यह नादान जंगल सब कुछ भूल गया है, उसे वह समय याद नहीं है। लेकिन तुम तो मुझ पर तरस खाओ। मेरे क़रीब आओ। मुझ जैसे ज़िल्लतमन्द पर तरस खाओ। मुझ जैसे ख़ूबसूरत और उदास और पुर-मुहब्बत और रक़्स-पसंद पर तरस खाओ ।

मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ ।

मैं अपना बचाव कैसे करता? मेरे पास तो तब केवल ये सफ़ेद, नुकीले और सुन्दर दाँत ही थे जो सिर्फ़ चुम्बन के काम आते थे। मैं अपना बचाव कैसे कर सकता था? — लेकिन अब मेरे सर का जो भयानक बोझ है उससे और मेरी नज़रों की टकटकी से कोई बच नहीं पाता है। तब मेरा सर हलका हुआ करता था और नज़रें नरम। तब मेरे पास ज़हर नहीं था। आह ! मेरे सर के लिए यह बोझ है, और मेरा सर मेरे लिए ! आह ! मैं अपनी टकटकी से थक गया हूँ ! मेरे माथे पर जो दो पत्थर हैं, वही मेरी आँखे भी हैं। माना कि ये पत्थर चमकदार और बेशक़ीमती हैं। लेकिन शर्मीली आँखों की जगह इन्हें ढोना बहुत मुश्किल होता है, ये पत्थर मेरे दिमाग़ पर दबाव डालते हैं… मेरे सर के लिए वे बड़ा बोझ हैं ! मैं देखता हूँ और डोलता हूँ, मैं आँखों के हरे कोहरे के पार तुम्हें देख रहा हूँ — तुम बहुत दूर हो। आओ, क़रीब आ जाओ।

तुम देख रहे हो न कि उदास होने के बावजूद मैं खूबसूरत हूँ, मेरी नज़रें मुहब्बत से सराबोर हैं, उनमें गहराई है । मेरी आँखों की पुतलियों को देखो। मैं इन्हें सिकोड़ूँगा फिर फैलाऊँगा और इनमें एक ख़ास चमक भरूँगा। उनमें रात के तारों की चमक के साथ-साथ हीरे, पन्नों, पुखराजों, माणिकों की झिलमिलाहट भी होगी। मेरी आँखों में झाँको। मैं बादशाह हूँ। मेरा फण मेरा ताज है पर उसमें जो चमकता है, जलता है, और उससे जो गिरता है, जो मेरा दिमाग़, मेरी इच्छाशक्ति और ज़िन्दगी सब लूटता है — वह ज़हर है। यह मेरे ज़हर की एक बूँद है।

मुझे नहीं पता कि यह क्यों और कैसे हुआ? ज़िंदा चीज़ों से तो मुझे कभी कोई बैर नहीं रहा।

मेरी ज़िन्दगी बहुत मुश्किलों में कट रही थी। मैं घुट-घुट के मर रहा था। जब भी मुमकिन होता, मैं तेज़ी से रेंगकर छिप जाता था। लेकिन किसी ने कभी भी मुझे रोते हुए नहीं देखा, मुझे रोना नहीं आता। तेज़ी से रेंगते रहने की वजह से मेरा मंद-गति नृत्य अधिक गतिमान और सुंदर हो गया। बीहड़ जंगल में चुपचाप और अकेले दिल में उदासी दबाए मैं नाचता रहता था। मेरा तेज़ी से नाचना सबको बिलकुल नहीं भाता था। अगर उनका बस चलता तो वे नाचते समय ही मुझे मार डालते। लेकिन अचानक मेरा सर भारी होने लगा — यह मेरे लिए भी अजीब था ! अभी भी मेरा सर पहले की तरह ही छोटा और प्यारा है, अक़्लमंद और सयाना है। बस, वह एकदम से बहुत भारी हो गया। उसके भार से मेरी गर्दन टूटने लगी और ज़मीन की ओर झुकने लगी। जब ऐसा हुआ, तब मुझे बेहद दर्द हुआ था। अब मैं इस भार का थोड़ा आदी हो गया हूँ, लेकिन पहले यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक था। मुझे लगता था कि मैं किसी बीमारी की चपेट में आ गया हूँ।

…. मेरे क़रीब आओ। मेरी आँखों में देखो । ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश ।

और अचानक मेरी नज़र घातक हो गई, और मेरी टकटकी मारक हो गई, … अपनी यह हालत देखकर मैं भी डर गया ! मैं कुछ देखने के बाद अगर उससे नज़रें हटाना चाहता तो वे हटती ही नहीं थीं । वे वहीं पर रुककर गहरे और गहरे धँसती जाती थीं, मानो मैं पत्थर में बदलता जा रहा था । मेरी आँखों में ताको । अब मैं पत्थर हो गया हूँ और जो कुछ भी मैं देखता हूँ वह भी पत्थर में बदल जाता है । मेरी आँखों में झाँको ।

मैं तुमसे इश्क़ करता हूँ ।

मेरी भोली कहानी पर हँसो मत, नहीं तो मैं नाराज़ हो जाऊँगा । हर घण्टे मैं अपना जज़्बाती मन किसी के सामने खोलता हूँ, लेकिन मेरी सभी कोशिशें नाक़ामयाब रहती हैं । आख़िरकार मैं अकेला ही बचता हूँ । मेरा चुम्बन जो अब पहला और आख़िरी होता है, उसमें एक गहरा दुख छुपा होता है, क्योंकि उसके बाद कोई मेरा आशिक़ नहीं रह जाता । मुझे एक नई मुहब्बत की तलाश करनी पड़ती है । यह सब मैं बेकार ही तुम्हें बता रहा हूँ : अगर सर भारी हो और बदन में ज़हर का बोलबाला हो तो मन की गिरह को पूरी तरह से खोल पाना मुमकिन नहीं होता । लेकिन इतनी नाउम्मीदी के बावजूद देखो, मैं कितना ख़ूबसूरत हूँ । मेरे क़रीब आओ ।

मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।

एक बार मैं जंगल में एक दलदल में नहा रहा था । मुझे साफ़ रहना बहुत पसन्द है और यह इस बात की निशानी है कि मेरा ताल्लुक़ बड़े ख़ानदान से है । मैं अक्सर नहाता हूँ । पानी में तैरते और नाचते समय एक बार मैंने उस पानी में अपना अक्स देख लिया और मुझे उससे भी प्यार हो गया, मुझे प्यार करने की आदत जो है । मुझे ख़ूबसूरती और अक़लमन्दी बेहद पसन्द हैं । तभी अचानक मैंने अपने माथे में बसे आभूषणों के बीच एक नया और अनोखा चिह्न देखा ... मैं सोचने लगा कि मेरे सर का भारीपन, मेरी नज़रों की टकटकी और मेरे मुँह में पैदा हुआ मीठा-सा स्वाद कहीं इसी निशान की बदौलत तो नहीं ?

देखो, मेरे माथे को ग़ौर से देखो, यहीं पर वह गहरे रंग का निशान है ! मेरे क़रीब आओ । क्या वाक़ई में यह बात अलबेली नहीं है ? लेकिन क्योंकि तब मैं कुछ जानता-समझता नहीं था, इसलिए वह निशान मुझे अच्छा लगा था । मैंने सोचा था, चलो माथे को एक और ज़ेवर मिला । यही वह हौफ़नाक दिन था, मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़ौफ़नाक दिन, जबसे मेरा पहला चुम्बन आख़िरी चुम्बन होने लगा । मेरा चुम्बन घातक होता चला गया। मैं भीड़ में अकेला ! मैं भीड़ में तनहा !

आह !

तुम्हें जवाहरात पसन्द हैं, न ? लेकिन ज़रा सोचो, मेरे दिलबर ! मेरे ज़हर की एक बूँद उनसे कितनी अधिक क़ीमती है । वह बहुत छोटी होती है – क्या तुमने कभी देखा है उसे ? ज़ाहिर है कि नहीं देखा है । लेकिन अब तुम जल्दी ही उसे जान जाओगे, जानेजानाँ ! ज़रा इस बारे में भी सोचो कि ज़हर की इस बूँद को जन्म देने के लिए मुझे कितने दुख उठाने पड़े, भारी ज़िल्लतें सहनी पड़ीं, नाक़ाबिले बर्दाश्त ग़ुस्से को दबाना पड़ा और ख़ुद को क़तरा-क़तरा कुचलना पड़ा । मैं शाह हूँ ! मैं बादशाह हूँ ! राजा हूँ अपने मन का ! मैं अपने ज़हर की इस एक बूँद में समस्त जीव-जगत की मृत्यु लिए घूमता हूँ । मेरा राज्य भी उतना ही असीम है, जितना असीम दुख होता है, मौत होती है । मैं शहंशाह हूँ ! मेरी नज़र अडिग है । मेरा नाच डरावना है । मैं ख़ूबसूरत हूँ ! भारी भीड़ में अकेला ! भारी भीड़ में तनहा !

आह !

गिरो मत । मेरी बात अभी ख़त्म नहीं हुई है । मेरे क़रीब आओ । मेरी आँखों में झाँको ।

उसी दिन मैंने इस बीहड़ जंगल का रुख़ किया था और अपने इस हरे साम्राज्य में पहुँचा था । सब नया था, सब डरावना था । चूँकि मैं एक नेक राजा था, इसलिए अपनी मेहरबान नज़रों से हर तरफ़ देखकर झुक रहा था । मैं कभी दाएँ झुकता तो कभी बाएँ । और सब... मुझे देखकर दूर भाग रहे थे । मैं सोचता कि सब दूर क्यों भाग रहे हैं ? वह वाक़या सचमुच मेरी समझ से परे था । तुम उसके बारे में क्या सोचते हो ? मेरी आँखों में देखो । तुम्हें उनमें कोई झिलमिलाहट या कोई चमक दिखाई दे रही है ? यह मेरे ताज से निकलती किरणें हैं जो तुम्हारी आँखों को चौंधिया रही हैं । तुम पत्थर हो रहे हो, तुम मर रहे हो । अब मैं तुम्हारे सामने आख़िरी बार नाचूँगा — ज़रा सम्भल के रहो । अब मैं छल्ले से निकलूँगा, फिर अपनी केंचुली की चमक दिखाऊँगा; ख़ुद को ख़ुद में लपेटूँगा और सर्द आलिंगनों से अपने बदन को कई गुना बढ़ाऊँगा । देखो, करतब दिखाकर मैं लौट आया ! हमारे संगम का मेरा यह पहला और आख़िरी चुम्बन लो । इसमें ज़ुल्मात से परेशान पूरी दुनिया की घातक लालसा है ! मैं भीड़ में अकेला ! मैं भीड़ में तनहा !

ज़रा मेरी ओर झुको । मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।

लो मैं तुम्हें चूमता हूँ । तुम उसे महसूस करो, उसमें डूबो और मरो ।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : प्रगति टिपणीस

भाषा एवं पाठ सम्पादन : अनिल जनविजय

मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है — रस्सकाज़ ज़िम्येइ आ तोम, काक ऊ नियो पइवीलिस यिदावितीये ज़ूबि (Леонид Андреев — Рассказ змеи о том, как у неё появились ядовитые зубы)