स्वप्नदर्शी लड़का, प्रधानमंत्री और जगदीश मोहंती / जगदीश मोहंती / दिनेश कुमार माली

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"हुजूर, माई-बाप, मुझ पर कैसी विपदा आ पड़ी है। कल रात जवान लड़के को पाखाना हुआ। मैं गरीब भीख माँग कर खाने वाला आदमी। डॉक्टर का खर्चा कहाँ से लाता? सोच रहा था, सुबह होते ही सरकारी अस्पताल ले जाऊँगा। डॉक्टर बाबू के पाँव पडूँगा। क्या कहूँ हुजूर, भगवान बड़ा ही निष्ठुर है। मुझसे मेरा कालिया छीन लिया। सुबह होते-होते बेटे की नाड़ी बंद हो गई। मेरा इकलौता बेटा बिशिकेशन जैसा था, हुजूर। भीख माँग-माँगकर बड़ा किया था। बिन माँ के बच्चे को कितने कष्ट से बड़ा किया था। भगवान को यह भी सहन नहीं हुआ, हुजूर। अभी मेरी जेब में इतने पैसे नहीं है उसे श्मशान-घाट ले जा सकूँ, उसकी अंत्येष्टि-क्रिया करा सकूँ। हुजूर, भाई-बाप। कुछ पैसा देते तो लकड़ी खरीदता, श्मशान का खर्चा देता और बच्चे का अंतिम संस्कार करवा देता।"

दस-बारह साल के लड़के की लाश के ऊपर एक गंदी धोती ओढाया हुआ है। उसका बाप रोते-रोते जमीन पर लोट रहा है। चेहरे पर है उसकी रुखी दाढ़ी। आँखों से आँसुओं की धारा बह रही हैं। रोते-रोते मुँह से लार भी गिर रही है। पहना हुआ है सात जगह से सिला हुआ एक मैला कोट, फटी-पुरानी धोती जिसे अभी साफ नहीं किया हो - धूल-वूल लगने से मटमैला रंग हो गया है। बड़ी-बड़ी आँखों में गिड, आँखों के नीचे कालापन। नाक से थोड़ा सेंडा निकलकर मूँछों पर चिपक गया है। वह आदमी घूम-घूमकर दया की भीख माँग रहा है।

"हुजूर, माई-बाप, दया कीजिए इस गरीब-असहाय भिखारी के ऊपर। मेरा बेटा मर गया है, हुजूर। मेरा सर्वनाश हो गया है।"

देखने वाले कुछ लोग वहाँ से खिसक गए, और कुछ लोगों ने पाँच पैसे-दस पैसे फेंक दिए। कुछ लोग पीछे से कौतूहलवश झाँककर देख रहे थे, क्या हो रहा है? सोच रहे थे कोई जादू वाला बाजीगर होगा या फिर जमीन में अपना सिर गाड़ने वाला होगा। अभी ऐसा मंत्र फूँकेगा, लड़के का गला काटकर खून से लथपथ छूरी दिखाएगा! सामने वाले लोग यह देखकर कि कोई मैजिक-वैजिक नहीं हो रहा है, वहाँ से खिसकने लगे थे। पीछे के लोग धक्का मारकर आगे बढ़ रहे थे. लड़के के ऊपर पैसे गिर रहे थे, पाँच पैसे, दस पैसे, पच्चीस पैसे। बूढ़ा रोते-रोते गिड़गिड़ा रहा था "हुजूर, माई-बाप मेरा तो सर्वनाश हो गया। मैं पूरी तरह से लुट गया, हुजूर। मुझ पर दया कीजिए।"

बंधुगण! एक जीप भागते हुए चली गई। जीप के अंदर ठसाठस भरे हुए थे छः-सात आदमी। जीप के सामने लगा हुआ था विरोधी दल का झंडा। और पीछे लगा हुआ था एक लाउडस्पीकर।

बंधुगण! तूफान पीड़ित उड़ीसावासियों के प्रति शासक दल की घोर अपेक्षा के खिलाफ विरोध करने के लिए सामने आइए। प्रधानमंत्री के उड़ीसा आगमन के खिलाफ विरोधीदल की तरफ से आयोजित विक्षोभ प्रदर्शन में एकजुट होकर सहयोग दीजिए तथा दिखा दीजिए कि उड़िया लोग कमजोर नहीं हैं, भीख-मँगे नहीं हैं। उड़िया आदमी विरोध करना जानते है, अन्यायी, अत्याचारी शासक दल को मुँह तोड़ जवाब देना जानता है। आप संकल्प लीजिए आज प्रधानमंत्री परेड़-ग्राउण्ड में एक भी शब्द नहीं बोल सके। उसके लिए बंधुगण! आइए मेरे साथ जोर से नारा लगाइए "शासक दल, मुर्दाबाद, मुर्दाबाद! प्रधानमंत्री, लौट जाओ, लौट जाओ!"

कोई घुड़सवार तेजी से घोड़ा रपटते हुए जा रहा है। घोड़ा? रपट नहीं रहा है, उड़ रहा है। चारो तरफ धूएँ जैसे कुँहासे के भीतर घुड़सवार उड़ते हुए जा रहा है, ये कैसा घोड़ा है? पक्षीराज? एकदम झकझक सफेद घोड़ा। उसके ऊपर किस तरह वह राजा का मुकुट पहनकर बैठा है। ओ पक्षीराज, ओ पक्षीराज, तुम कहाँ जा रहे हो?

चलते रास्ते के किनारे लाश बनकर वह सोया हुआ है। गंदी धोती से ढ़का हुआ केवल पैंट पहने हुए उसका खुला बदन। नींद से उसकी बोझिल आँखें। कैसे आ रही है उसको इतनी गहरी नींद? नींद टूटती है, तो भूख लगती है, भूख मिटती है, तो फिर नींद आने लगती है। बूड़ा अभी पैसे माँग रहा है। चतुर बूढ़ा रोने का अच्छा अभिनय कर रहा था। फिर से वह नींद के आगोश में जाने की चेष्टा करने लगा। भूख मिटाने का यह समय नहीं है। यह तो सपना देखने का समय है। बुढ़े ने पहले से ही आगाह कर दिया है कि धंधे के समय बिल्कुल भी हलचल नहीं होनी चाहिए। यहाँ तक कि अगर चींटी या बिच्छू भी डंक मार दे, तब भी किसी तरह की हलचल नजर नहीं आनी चाहिए। खाँसी आने से भी मत खाँसना। छींक आने से भी मत छींकना। बूढ़े ने इसके लिए दो साल तक पक्की ट्रेनिंग दी है। पहले-पहले कुछ दिक्कत हो रही थी। आजकल शरीर में बिलकुल हलचल नहीं होती है। साँस लेते या छोड़ते समय भी छाती ऊपर-नीचे नहीं होती है। देखने वाले जरुर सोचेंगे कि सचमुच में एक लाश पड़ी हुई है।

दीवारों के ऊपर, बाड़ों के ऊपर प्रधानमंत्री के चित्र वाले पोस्टर - चलिए, परेड ग्राउंड। प्रधानमंत्री भाषण देंगे। रास्ते-रास्ते, नुक्कड़-नुक्कड़ पर लाल कपड़े पर सफेद अक्षरों में लिखा हुआ है - 'स्वागतम् प्रधानमंत्री'। दीवारों पर बाड़ों पर काले अक्षरों में लिखे हुए हैं स्लोगन - "प्रधानमंत्री लौट जाओ"। खूब सारी जीपें इधर से उधर भाग रही हैं। कहीं शासक दल के झंडें दिख रहे हैं। कहीं-कहीं पर विरोधी दल के झंडें। कहीं अधिकारीगण व्यग्र होकर भाग रहे हैं। चारों तरफ माइक बज रहे हैं। चारों तरफ प्रचार-पत्र नजर आ रहे हैं।

"बंधुगण! बंधुगण! प्रधानमंत्री की सभा को सफल बनाइए। प्रधानमंत्री को काले झंडें दिखाइए। प्रधानमंत्री के हाथ मजबूत कीजिए। प्रधानमंत्री मुर्दाबाद, जिंदाबाद।"

भुवनेश्वर के आस-पास के इलाकों के लोग पैदल आ रहे हैं। बालकाटी, बाली अंता, बाली पाटना, रेतंग जैसे गाँवों के लोग पैदल चलकर भुवनेश्वर आए हैं। देहात के लोग पहने हुए हैं धोती और कुर्ता, सिर पर अजीब ढंग के बाल। चेहरे पर भोलेपन और धूर्तता के मिश्रित भाव। प्रधानमंत्री को नजदीकी से देखने की इच्छा। प्रधानमंत्री मतलब हमारे देश का राजा नहीं तो और क्या है? शायद गाँव का सबसे बड़ा चलता पुर्जा होगा। राजधानी के रुप-रंग देखकर बुद्धू बन गया। किधर जाएँगे? बंधुगण! प्रधानमंत्री का बायकाट कीजिए। बंधुगण! प्रधानमंत्री का स्वागत कीजिए। किधर जाएँ? बुद्धू बनकर इधर-उधर देखते जा रहे थे दौड़ती हुई जीपों को।

लाश को रखकर विलाप करते हुए बूढ़े के चारों तरफ धीरे-धीरे भीड़ घटते-घटते पूरी तरह से खत्म हो गई। बूढ़े ने जमीन पर फेंके हुए पैसों को उठाकर धोती के ऊपर रखा। सड़ाक से नाक साफ किया। शर्ट के हाथ से मुँह पोंछा। पाँच पैसे के सिक्के, दस पैसे के सिक्कें और चवलियाँ। किसी-किसी बेचारे ने एक रुपए का सिक्का भी फेंका है। उसको धन्यवाद देना होगा. इस कलयुग में भी दानवीर कर्ण! बूढ़ा गिनने लगा, सब मिलाकर सात रुपया पचपन पैसा। उसमें एक चवन्नी खोटी भी है। जो नहीं चलेगी। इसे रहने देते हैं, यहाँ नहीं चलेगी तो कहीं और चला देंगे। कोई मौका मिलने से किसी न किसी दिन नहीं चलेगी यह चवन्नी क्या?

बेटे, केवल सात रुपए पचपन पैसे। इतने कम पसों से क्या होगा? दो पेट के लिए दो दिन के दो समय का जुगाड़, तीन रुपए के हिसाब से भी जोड़ते हैं तो चाहिए कम से कम बारह रुपए। उसके बाद चाय-नाश्ता का खर्च अलग से। आठ आना तो गाँजा, बीड़ी और सिगरेट खरीदने में लग जाएगा। आने-जाने का खर्च? बेटे, यह दुनिया बहुत महँगी हो गई है। लोगों के मन की दया, ममता और भी महँगी। तू अभी मत उठना। और दो तीन घंटे तक ऐसे ही लेटे रहो। मैं जानता हूँ, बेटे, धूप से जमीन तपने लगी है। तेरा शरीर पसीने से तरबतर हो गया होगा। फिर भी मेरे बच्चे, पापी पेट के लिए और थोड़ी देर के लिए ऐसे ही पड़े रहो। आज अच्छा-खासा पैसा मिलेगा। प्रधानमंत्री आ रहे हैं। लोगों की अच्छी -खासी भीड़ इकट्ठा होगी। यदि सौ रुपए के लगभग मिल गए तो बेटे कम से कम तुम्हारे लिए एक गमछा अवश्य खरीद लूँगा।

"तीन ट्रकों में मात्र डेढ़ सौ आदमी। इतने में क्या होगा? जानते हो तुम्हारे विधान सभा क्षेत्र से कमसे कम आठ सौ आदमी होने चाहिए।"

"लोग राजी नहीं हो रहें हैं। खेती-बाड़ी का समय है। इस दौरान चक्रवात आने से कई घर टूट गए हैं। हमारी तरफ तो काम करने के लिए मजदूर तक नसीब नहीं हो रहे हैं। तब सभा में आने की किसको फुर्सत है? पार्टी की तरफ से प्रति व्यक्ति पाँच रुपया दिया जा रहा था, फिर लोग आने के लिए राजी नहीं हो रहे थे. वो तो मैं हूँ जो उन्हें एक आदमी के लिए आठ रुपए देकर लाया हूँ। तीन रुपए मैने अपने हाथ से लगाए हैं। आप समझ जाइए साढ़े चार सौ रुपए घर के लगे हैं। मैं तो ठहरा एक साधारण विधायक इतने पैसे कहाँ से लाता? मुख्यमंत्री ने निवेदन किया था, कम से कम राज्यमंत्री का एक पद दे देते। मगर मुझे कौन पूछेगा?

"तुम एक विधायक होकर ऐसी बात करते हो। जानते नहीं हो, पैसा कैसे आता है?"

"आजकल विधायकों की कहाँ पूछ है? तहसीलदार, बी.डी.ओ सभी ने बड़े-बड़े मंत्रियों के साथ अपना याराना सम्बंध स्थापित कर लिया है। सचिव लोगों से उनकी अव्वल नंबर की जान-पह्चान है। तब वे विधायकों को क्यों पूछेंगे? किसी मारवाड़ी के सामने हाथ फैलाकर माँगने से वह कितने पैसे देगा उससे तीन गुणा वसूल करके छोड़ेगा।"

"कहो, तब क्या किया जाए? तीस हजार लोगों को इकट्ठा करने की बात हुई है। अभी तक जुगाड़ हुआ है केवल चार हजार आदमियों का। देखने वाले भी आएँगे तो ज्यादा से ज्यादा तीन-चार हजार आदमी। तब भी बीस-पचीस हजार आदमी शेष रह जाते हैं। कम से कम इतनी भीड़ होने पर ही तो यह कहा जा सकता है कि एक लाख से ज्यादा आदमी जुटे थे इस प्रोग्राम में। परेड़ ग्राउंड में पाँच-छ हजार लोग कम पड़ जाएँगे। अगर अच्छी खासी भीड़ नहीं हुई तो मुख्यमंत्री क्या सोचेंगे? प्रधानमंत्री जी के सामने उनकी क्या इज्जत रह जाएगी?"सवेरे के स्वच्छ आकाश में एक घोड़ा उड़ते हुए जा रहा है। कौन से देश? हरी-हरी घास के ऊपर ओस के बूँद अभी भी झिलमिला रही हैं। घोड़ा उड़ते हुए जा रहा है। कौन से देश में? कौन से गाँव में? इतनी सुबह -सुबह किसान अपना हल लेकर खेत की तरफ जा रहा है। कोई आदमी अपने दोस्तों के साथ हँसते-हँसते तालाब की तरफ जा रहा है। एक ओह, इतनी सुंदर राजकन्या! इतनी सुंदर कन्या होती भी है क्या? अगर थोड़ी सी भी धूप लग गई तो सारा सौन्दर्य दुःख और कष्ट में पिघल जाएगा। आहा, यह सुंदर कन्या ऐसे ही हमेशा हँसती रहे। घोड़ा सरपट दौड़ाकर वह चला गया। वह अपने शरीर पर राजकुमार की पोशाक धारण किए हुए था। घोड़े की हिनहिनाहट से गर्वान्मत्र राजकुमार का शरीर नाचने-झूमने लगा।

थकावट के मारे उसकी आँखें बोझिल हो रही थी। केवल अभी तक हुआ था बारह रुपए अस्सीपैसे। सीने के भीतर अजीब-सा लग रहा था। एक कप चारा मिलने से कुछ होता। जेब के अंदर दो-तीन बीड़ी तो जरुर होगी। लेकिन अभी रहने देते हैं। लोग क्या सोचेंगे? बेटा तो मर गया है और इधर बूढ़ा चाय-बीड़ी पी रहा है। धन्धा चौपट हो जाएगा। ऐसे भी इन सब धंधों में खतरा कुछ ज्यादा ही होता है। अगर लड़का थोड़ा भी हिल गया तो बात वहीं खत्म। इसके अलावा, अगर किसी ने ज्यादा पूछताछ की, तो उससे छिपकर जल्दी ही खिसकना पड़ेगा। हमेशा सतर्क रहना पड़ता है - कोई संदेही आँखें घूर तो नहीं रही है। इसके आगे भी, एक शहर में एक दिन से ज्यादा रुकना ठीक नहीं है। परसो थे टाटा में, उत्कल एक्सप्रेस से आज ही भुवनेश्वर उतरा हैं। आज रात को ही किसी दूसरी जगह चले जाएँगे। कहाँ जाएँगे यह तो उसको भी मालूम नहीं है। स्टेशन जाकर जो भी ट्रेन मिलेगी, उसी में चढ़ जाएँगे। ट्रेन छूटने के बाद ही राहत की साँस ले पाएँगे।

हेलीकाप्टर से प्रधानमंत्री उतरे। पीछे-पीछे मुख्यमंत्री। प्रधानमंत्री के ललाट पर पसीना। कोई एक मुख्य सचिव छाता लेकर उनके पास पहुँच गया। मुख्य सचिव के कानों में मुख्यमंत्री ने धीरे से कहा, रुमाल। यद्यपि

मुख्य सचिव के कानों में बोला गया था मगर यह बात दो-तीन अन्य आदमियों ने भी सुन ली। एक साथ चार-पाँच रुमाल लिए हाथ प्रधानमंत्री की ओर बढ़े। प्रधानमंत्री किसके हाथ से रुमाल लेंगे? किसको धन्यवाद देंगे? मगर थैंक्स कहकर प्रधानमंत्री ने अपनी पॉकेट से अपना रुमाल निकाल लिया।

तूफान प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री लौट आए हैं। अभी वह जाएँगे राजभवन की ओर। वहाँ संवाददाता सम्मेलन होने वाला है। कैमरामेन दौड़ रहे हैं। फ्लैश पड़ने लगा है। हवाई-अड्डे पर पुलिस के घेरे में कुछ अधिकारीगण, स्थानीय नागरिक और संवाददाता। फोन बजने लगा. हेलो, हेलो। प्रधानमंत्री ने तूफान प्रबावित इलाकों का दौरा करके लौट आए हैं। अच्छा, अभी वे जाएँगे राजभवन। टेलेक्स चल पड़ा। खड्-खड् रिपोर्ट करने लगा। प्राइम मिनिस्टर अराइव्स एट एअरपोर्ट ऑफ्टर विजिटिंग साइक्लोन एफेक्टेड एरियाज। नेक्सट पोग्र्राम, प्रेस कान्फ्रेंस एट राजभवन।

हेलो, हेलो, मैं अमुक अखबार का संपादक बोल रहा हूँ। हेलो, फलाना बाबू हैं? हमारी पत्रिका के रिपोर्टर, हेलो, आप राजभवन पहुँच गए हैं? सुनिए, प्रधानमंत्रीजी को आप तीसरे नंबर का प्रश्न जरुर पूछिएगा। इस बात पर ध्यान दीजिएगा, प्रधानमंत्रीजी का उत्तर सीधा-साधा होना चाहिए।

अगर जरुरत पड़ी तो घुमा-घुमाकर भी पूछ सकते हो। हेलो, पूरी बातचीत की रिकार्डिंग कर लीजिएगा। प्रधानमंत्री के मुँह से यह बात कबूल करवा के ही छोडिएगा। आप इतने सीनियर आदमी हो। बहुत सारी प्रेस कान्फ्रेंस का भी अनुभव है आपको। याद है ना, रिलीफ कमीशनर के कान्फ्रेंस की सारी बातें।

"देखिए हुजूर, मुझ पर कैसी आफत आ पड़ी है।" नाक से नेटा बह रहा है। फों करके उसनेनाक साफ कर दिया। उसके मुँह से कुछ भी बात नहीं निकल रही है। जमीन पर बिछी हुई धोती की तरफ उसने एक नजर घुमाई। चवन्नियां और दस पैसों के सिक्के। एक बार इच्छा हो रही थी सब पैसे गिन ले। लेकिन अपने आप को संभाल लिया। इस धंधे में खूब सावधानी बरतनी पड़ती है। किसी को पता भी नहीं लगना चाहिए कि उसकी निगाहें पैसों पर टिकी हुई है। तुम्हारा बेटा मर गया है, इसलिए तुम रो रहे हो। पैसा-फोड़ी क्या चीज है?"

एक बार फिर उसने चिल्लाने की कोशिश की "मेरा इकलौता बेटा था हुजूर।" बोलते-बोलते वह अनुभव कर रहा था कि उसका गला खुल नहीं रहा था। ज्यादा थकान की वजह से उसकी आवाज मानो भर गई हो। आँखों से और पानी निकालना संभव नहीं हो पा रहा था।

कितने पैसे हुए होंगे? ज्यादा से ज्यादा चार-पाँच रुपए और बढ़े होंगे। अभी तक पन्द्रह और पाँच यानि बीस रुपए। इतने में क्या होगा? आज के दिन प्रधानमंत्री आ रहे हैं।खूब भीड़ इकट्ठी हो रही है। खूब आमदनी होनी चाहिए। लोगों के झुंड के झुंड जा रहे हैं, मगर मरे हुए लड़के के लिए केवल बीस रुपए।

उसके मन में एक बात याद आ गई, मानो उसे कुछ शब्द मिल गए हो। उठकर खड़ा होकर वह कहने लगा, "हुजूर, मानवता मर गई है क्या? एक इंसान के लिए दूसरे इंसान का कोई कर्तव्य नहीं है। एक बारह साल के बच्चे के शव दाह के लिए भी पैसों का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है, हुजूर। यहाँ इतनी भीड़ होने से क्या फायदा, हुजूर?

राजकन्या के हजार-हजार सपनों से भरी हुई मुलायम पलकों की निगाहों की तरह ओस से भीगी सुबह की कोमल-किरणों में घोड़ा अचानक चौंककर खड़ा हो गया। कुछ लोग सामने में घोड़े पर भागते हुए इधर आ रहे थे। राजकुमार की पोशाक धारण किया हुआ दस-बारह साल का लड़का अचानक चौंक पड़ा। कौन हैं वे लोग? क्या दस्युगण? या शत्रु राज्य की सेना? कमर में कसी हुई तलवार को अपनी मुट्ठी से जोर से पकड़ लिया।

"महाराज, महाराज! हमारी मदद कीजिए, महाराज।" आगंतुक आश्वारोहियों में से जो मुखिया था, शायद सेनापति होगा। हाथ उठाकर कहने लगा, "महाराज, हमारी राजकुमारी को राक्षस उठाकर ले गए हैं।"

"राजकुमारी? तुम्हारी राजकुमारी? कौन है वह? मैं तो उसे नहीं पहचानता हूँ।"

"आप जानते हैं, महाराज। आप सरपट घोड़ा भगाते हुए आ रहे थे। हमारी राजधानी के पास कुछ लड़कियों हँसती हुई नदी की तरफ जा रही थी। उन लड़कियों में जो सर्वोत्तम और सबसे ज्यादा सुंदर थी, वही तो हमारी राजकुमारी थी। महाराज, राजकुमारी समेत उन सभी लड़कियों को वह राक्षस उठाकर ले गया है अपनी गुफा में। उन्हें बचाइए, महाराज।"

पचहत्तर लोगों का चावल पकाने से तीन बजे तक खत्म नहीं हो पाएगा। कुछ बच ही जाएगा। बचे हुए चावल को शाम के लिए पके भात में मिलाना पड़ता था। लेकिन आज तीन सौ लोगों के लिए चावल पकाया जा चुका है और साढ़े बारह बजे आकर रसोइया पूछ रहा है कि चावल सब खत्म हो गए है ; और पकाना है अथवा नहीं? आहा, प्रधानमंत्री हमारे लिए लक्ष्मीपुत्र है। मगर हर महीने दो बार कम से कम उड़ीसा का दौरा करते, परेड़ ग्राउंड में सभा का आयोजन करवाते तो मजा ही आ जाता। प्रधानमंत्रीजी की ऐसी ही दया रहेगी तो सरकारी बस-स्टैंड के बाहर बाँस की पट्टियों से घेरकर तथा रास्ते में लकड़ी के टेबल-कुर्सी डालकर बनाए गए इस आदर्श हिंदू होटल को एक भव्य भवन में क्यों नहीं परिवर्तित कर देगा पूर्ण साहू। उसके नगदी-डिब्बे के पास में लटकाया हुआ था प्रधानमंत्री का कैलेण्डर साइज फोटो। फोटो के सामने अगरबत्ती लगाई हुई थी। तभी तो शायद आज उसे साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिल रही थी। आहा, हमारे प्रधानमंत्री जैसे दिग्गज नेता और कहीं मिलेंगे?

बंधुगण! प्रधानमंत्री के उड़ीसा आगमन पर शासक दल के छलावे से भरे और पक्षपातपूर्ण रवैये के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन कीजिए। पूछिए, शासक दल के मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री को, भयंकर आँधी-तूफान के पाँच दिन बाद भी पीड़ित गाँवों तक राहत क्यों नहीं पहुँची? तभी माइक बंद हो गया। आदर्श हिंदू होटल के सामने अचानक एक जीप खड़ी हो गई। सात-आठ आदमी जीप से कूद पड़े "चावल बने हैं या चिकन?"

पूर्ण साहू हड़बड़ाते हुए उठकर खड़ा हो गया। अपने काले दाँतो को निपोरकर हंसने लगा। "आइए, आइए, सब कुछ है साहब? गरमा-गरम।"

कोई कहने लगा, "ओह! अंदर काफी भीड़ है।"

"अभी जगह खाली हो जाएगी, साहब। अरे, लोचन, साहब लोगों को इधर खाली जगह पर बिठाओ।"

"प्रधानमंत्री का यह फोटो क्यों लगवाए हो?"

"ऐसे ही साहब, कुछ भी नहीं। आप कहते हैं तो अभी खोल देता हूँ। बिल्कुल अच्छा आदमी नहीं है, साहब। अपने उड़ीसा के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। सब कुछ तो अपने राज्य को दे रहा है। अरे, लोचन, सात प्लेट चावल और सात फुल प्लेट चिकन इधर ले आ।"

प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री बैठे हुए थे। पहना हुआ था उन्होंने सफेद कुर्ता और सफेद चूड़ीदार पायजामा। सिर के ऊपर थी गाँधी टोपी। दो या तीन ऊँगलियों में धारण किए हुए थे रत्न जडित सोने की अंगूठियाँ। हाथ पर एक कीमती घड़ी, पाँव में कीमती चप्पलें और होठों पर मंद-मंद मुस्कराहट। उनको घेरकर खड़े हुए थे बहुत सारे संवाददाता। कुछ कैमरामेन इधर-उधर दौड़ रहे थे। फ्लैश के ऊपर फ्लैश पड़ रही थी। मुख्यमंत्री आज्ञाकारी, दास की भाँति उनके पास बैठे हुए थे। प्रधानमंत्री मुड़कर उनसे कुछ बोल रहे थे। मुख्यमंत्री का सीना फूले नहीं समा रहा था। असंतुष्ट दल के लोगों, आकर देखो, नहीं देख रहे हो मैं प्रधानमंत्री का सबसे नजदीकी आदमी हूँ। देख नहीं रहे हो, कितने अटूट विश्वास के साथ मुझसे बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का ऐसा व्यवहार सबके लिए, कदापि नहीं, ऐसा व्यवहार सिर्फ मेरे लिए है।

"मान्यवर, प्रधानमंत्री जी! क्या आप इस बात को स्वीकार करते हैं कि रिलीफ बाँटने में आपके अधिकारियों ने खूब अनियमितताएँ बरती है, बड़े-बड़े घोटाले किए हैं तथा उड़ीसा का शासक दल उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थ है?

प्रधानमंत्री गंभीर, मगर होठों पर मुस्कराहट तथावत।

"मैं इस बात को नहीं मानता हूँ। उड़ीसा सरकार अपने सच्चे मन से आँधी-तूफान के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रही है। यह बात अलग है, कुछ अधिकारीगण हमेशा भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। लेकिन मुझे इस बात पर पूर्ण यकीन है कि उड़ीसा सरकार उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में पीछे नहीं हटेगी।"

"आँधी-तूफान आने से पहले अगर लोगों को उनके गाँव से हटा दिया गया होता तो शायद इतने लोग हताहत नहीं होते। सरकार यह बात पहले से जानती थी कि उड़िसा के इन इलाकों में तेज आँधी-तूफान आ सकते हैं, तब बचाव के उपायों की व्यवस्ता क्यों नहीं की गई?"

"कोई भी प्राकृतिक आपदा कितनी भी भयंकर हो, गाँव के सारे लोगों को उनकी जमीन-जायदाद छोड़कर हटाना क्या इतना सहज है? धन दौलत, जमीन-जायदाद तथा उनसे जुड़ी हुई उनकीस्मृतियाँ,उनके सेंटीमेंट, उनके इमोशन।"

"शासक दल की असंतुष्ट गोष्ठी के बारे में आपकी क्या राय है?"

शार्टहैंड की विकृत रेखाएँ, टेपरिकार्डर में रिकार्ड होती जा रही थी प्रधानमंत्री की सारी बातें। टी.वी कैमरे से एक फोटोग्राफर अलग-अलग कोण से प्रधानमंत्री के फोटो ले रहा था। राजभवन के पोस्ट ऑफिस में भयंकर भीड़। टेलीफोन, टेलीग्राम सभी एकदम व्यस्त। अभी पत्रकार लोग समाचार बना रहे हैं, फिर उन्हें भेजने में व्यस्त हो जाएँगे। प्रधानमंत्री यहाँ से रवाना होंगे शासक दल के मुख्य कार्यालय की तरफ। वहाँ सांसदों, विधायकों तथा कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे। शासक दल की बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इधर-उधर दौड़ रही हैं।

कहीं किसी घनघोर जंगल में, चारों तरफ घुप अंधेरा जिधर भी देखो, दिन की भरी दुपहरी में भी रात के काले अंधेरे का भ्रम हो रहा है। वहाँ पर वे लोग सेनापति के साथ खड़े हो गए हैं। इस दुर्बल सेनापति से क्या होगा?

ए.डी.एम पलटा सिंह का व्यक्तित्व .................... वह इस चीज को अच्छी तरह जानता है कि उसके व्यक्तित्व में कहीं न कहीं कोई दोष जरुर है, जिसकी वजह से कोई भी पास नहीं फटकता। वह जानता है, कि कोई दूसरा होता तो एस.पी इस तरह चिल्लाकर बात नहीं करता, वरन डर से धीरे-धीरे सँभल कर बातचीत करता। लेकिन पता नहीं क्यों, कई भी उसकी खातिरदारी नहीं करता। विवश होकर पलटा सिंह ने आदेश-पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर लिए। कुछ विरोध भी नहीं कर पाया। हस्ताक्षर करते समय उसके हाथ काँप रहे थे। उसे लग रहा था, उसके पाँव भी काँप रहे हैं। लेकिन किस वजह से?

दस-बारह के बच्चे की लाश पर रोता हुआ उसका बूढ़ा बाप। इमेज फोटो स्टूडियों के डार्क रुम टेक्निशियन-कम-फोटोग्राफर-कम-प्रोपराइटर, श्री पुण्यश्लोक दास ने फोटो उठाया, फिर रीलघुमाकर देखने लगे। केवल और आठ फोटो लिए जा सकते थे बची हुई रील में। प्रधानमंत्री की मीटींग में थोड़ी और देर लगेगी। पुण्यश्लोक हिसाब लगाने लगा, अभी प्रधानमंत्री एम.एल.ए. मीटिंग में व्यस्त है। उसके बाद लंच करने जाएँगे। भाषण देते हुए प्रधानमंत्री का एक फोटो खींचकर तुरंत ही उसको मास्टर कैंटीन चौक तक दौड़-दौड़कर जाना पड़ेगा। वहाँ अपने डार्करुम में फोटो एक्सपोज करने के बाद वह दौड़ेगा पहले कटक, उसके बाद भुवनेश्वर। जो भी कोई अखबारों के संपादकों के पास पहले पहुँचेगा, उसीका फोटो ग्रहण किया जाएगा। लेकिन बहुत ही मुश्किल काम है, अखबार वालों के कार्यालय कटक और भुवनेश्वर शहर में बहुत दूर-दूर है, एक ही साथ सबको स्पर्श करना नामुमकिन है। भुवनेश्वर से बादामबाड़ी, वहाँ से चाँदनी चौक, फिर आगे जेल रोड़, बक्सी बाजार। इतना घूम-घमकर 'समाज' कार्यालय पहुँचने पर पता चलेगा कि कोई और फोटोग्राफर फोटो देकर जा चुका है। अगर 'समाज' ऑफिस के लिए बक्शी बाजार की तरफ से जाते हैं, तो बिहारी बाग पहुँचते-पहुँचते पता चलेगा कि 'प्रजातंत्र' कार्यालय में किसी दूसरे फोटोग्राफर ने फोटो दे दिया है। ऊपर से न्यूज एडीचटों का भाव। कहने लगेंगे, मेरा स्टॉफ भी फोटोग्राफर का काम करता है। उसने भी फोटो खींचा है, लेकिन अपने अनुभव से पुण्यश्लोक यह बात अच्छी तरह जानता है कि कौन से अखबार वाले ज्यादा डरपोक हैं।

वह बहुत डरा हुआ था। वह राजकुमार की पोशाक पहना हुआ था। उसने सेनापति को डाँटा, "अगर इतना डरोगे तो फिर युद्ध कैसे कर पाओगे?" सीधे वह गुफा के अंदर चला गया। बाकी लोग बाहर खड़े रहे। अंदर था घनघोर अंधेरा। यही अंधेरे में कहीं छुपा होगा वह राक्षस। हो सकता है अभी निकल कर सामने आ जाएगा। वह डरते हुए पाँव बढ़ा रहा था। आगे बढ़ते ही जा रहा था। बढ़ते-बढ़ते सामने एक दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजे के भीतर से हल्की-हल्की रोशनी आ रही थी। दरवाजे की फाँक से उसने झाँककर देखा, राजकुमारी समेत वे सारी लड़कियाँ सिर नीचे झुकाकर बैठी हुई थी। उसने दरवाजे को धक्का दिया। खट की आवाज के साथ दरवाजा खुला। राजकुमारी मुँह ऊपर करके देखने लगी। जैसे ही उसने देखा, उसके चेहरे पर प्यार भरी मुस्कराहट छा गई।

ए.डी.एम जीप से नीचे उतरे। लोगों की बेशुमार भीड़ देखते ही, वह ए.डी.एम. की जगह ए.एन. पलटा सिंह हो गया। वह हीन भावना से ग्रस्त था. भुवनेश्वर में कई आई.ए.एस अधिकारियों को देखकर उसकी हीन-ग्रंथि जागृत हो उठती है। उसको अक्सर ऐसा लगता है कि उसके व्यक्तित्व में ऐसी कोई न कोई कमी अवश्य है जिस वजह से वह एक परफेक्ट ऑफिसर नहीं बन पा रहा है। उसे इस बात का अनुभव है कि उसके नीचे काम करने वाले कर्मचारीगण उसकी अवहेलना करते हैं। ऊपर के अधिकारी उसको उचित सम्मान नहीं देते हैं क्योंकि वह एक प्रमोटेड आई.ए.एस ऑफिसर है। ऐसी ही कुछ हीन-भावना हमेशा उसके मस्तिष्क में छाई रहती है।

तभी एस.पी. ने आकर कुछ कागज उसके सामने रख दिए।

"इन सब कागजों पर हस्ताक्षर कर दीजिए। आवश्यकता पड़ने पर काम आएँगे।"

"ये सब क्या कागज हैं? आँखें तरेरते हुए एस.एन. पलटा सिंह ने पूछा।

"लाठी चार्ज, गैस फायरिंग, ब्लैंक फायरिंग और फायरिंग आर्डर।"

पलटा सिंह के भीतर ए.डी.एम. वाला व्यक्तित्व जाग उठा। वह सिर उठाकर कहने लगा, "सही समय आने दो, जब भीड़ ज्यादा हो जाएगी, तथा स्थिति कंट्रोल के बाहर हो जाएगी या फिर जनता ऐसी कुछ बदमाशी करेगी। उन्हीं अवस्थाओं मं तो इन कागजों पर दस्तखत किए जाएँगे।"

"आपको इन चीजों का कितना अनुभव है? पहले कभी ऐसी मीटींग अटेण्ड किए हैं?" एस.पी. ने जोर से चिल्लाकर कहा।

"ठीक समय पर ऐसे कार्यक्रम में आदेश पर दस्तखत करवाना क्या संभव है? लोगों में धक्का-मुक्की, लड़ाई-ढगडे, दंगा-फसाद औ मारपीट हो रही होगी। उसी समय पर इन आदेशों पर दस्तखत करवाकर लाठीचार्ज किया जाए तो क्या पुलिस संभाल सकेगी?"

सभी फोटोग्राफरों को अलग-अलग तरीके के फोटे चाहिए। सरकार के साथ जिनका नहीं बनता है, उनको लाठीचार्ज, अश्रोगोले छोड़ने का या विरोध प्रदर्शन के फोटो चाहिए। और जिनकी सरकार से अच्छी पटती है उन अखबार वालों को मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री की जुगल जोड़ी का फोटो लेने में अधिक रुचि रहेगी। कटक के प्रेस वाले भाव जरुर दिखाते हैं, मगर अच्छा पैसा भी देते हैं। जबकि भुवनेश्वर के प्रेस वाले तो पूरी

तरह मक्खीचूस है। इस वजह से इस बार पुण्यश्लोक ने ठान लिया है कि भुवनेश्वर की प्रेस वालों को पहले फोटो नहीं देगा।

परेड़ ग्राउन्ड पहुँचने पर पुण्यश्लोक ने देखा कि सामने से उत्कल फोटो स्टूडियो का राना आ रहा है हँसते हुए मैने उससे कहा, "कितने स्नैप ले लिए हो?"

पुण्यश्लोक ने अपनी जेब के अंदर हाथ घुसाकर अपना पास चेक कर लिया। पास जेब में पाकर वह खुश हो गया। फिर उसके दिमाग में इधर-उधर की बातें आने लगी, कहीं ऐसा तो नहीं है राना मुझसे झूठ बोल रहा होगा। अंदर ही अंदर अपना काम कर लिया होगा। सोच रहा होगा कहीं पहले मं फोटो ना सबमिट कर दूँ इसलिए उसने चाल चली होगी। पुण्यश्लोक ने मुँह बिगाड़कर सहानुभूति दिखाने का अभिनय किया। उसके बाद माफी माँगकर वह चला गया। बहुत काम बाकी था उसका। उसके कैमरे में आठ स्वैप लेने अभी भी बाकी थे. फ्लैश लाइट के बल्ब बेग में से बाहर निकालकर वह गिनने लगा। अगर फ्लैश लाइट ने धोखा नहीं दिया तो वह कटक के प्रेस कार्यलयों को जरुर कवर कर लेगा।

मंगलू स्वाँई, राज्य मंत्रिमंडल से निष्कासित मंत्री, राज्य सरकार के पार्टी कार्यालय में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हो रही विधायकों की सभा में बाहर चला आया। देखिए, असंतुष्ट गोष्ठी के नाम पर कूदने वाले सभी युबा विधायक कितनी शांति से चुपचाप बैठे हुए हैं। इधर स्वाँई अकेला पड़ गया। मुख्यमंत्री इस तरह कह रहे थे, मानो उनके सरकार में केवल स्वाँई ही उनका अकेले विरोधी है। गुस्से में लाल-पीला होकर प्रधानमंत्री उसकी तरफ तिरछी निगाहों से देखने लगे। स्वाँई के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला। असंतुष्ट गोष्ठी के विधायकगण जो स्वाँई को उकसा रहे थे, अभी एकदम चुपचाप हैं। कहाँ चला गयाउनका मुख्यमंत्री के विरोध में सोलह बिंदुओं वाला अभियोग पत्र। किसीके मुँह से यह आवाज नहीं निकली कि मुख्यमंत्री सचिवालय में बैटकर केवल अधिकारिक निर्णय लेते हैं। किसी ने यह बी नहीं कहा कि खदान मालिकों का रायल्टी माफ करने के लिए मुख्यमंत्री नेचार करोड़ रुपए की घूस ली है। किसी ने एक बार भी यह आवाज नहीं उठाई कि फुलवाड़ी जिले में डोनामाइट खदान कीलीज अवैध तरीके से आवंटित करने के लिए एक कंपनी से भीतर ही भीतर साँठ-गाँठ की है। विरोधी दल के विधायकों की बात मुख्यमंत्री बिल्कुल नहीं सुनते हैं। ब तक कोई उनके साले की खुशामद नहीं करता है, तब तक उनका कोई काम नहीं होता है। ये सब बातें धरी की धरी रह गई।

स्वाँई क्रोध के मारे काँप रहा था। प्रधानमंत्री की घूरती हुई वे गुस्से भरी आँखें उसको बैचेन कर रही थी। अपमान से वह तिलमिला रहा था। भीतर ही बीतर वह इस चीज को भी जानता है कि प्रधानमंत्री के सामने भले मुँह नहं खोले, मगर उसके हाथ में अभी भी उसका समर्थन करने वाले चार-पाँच विधायक हैं। पिछले चुनाव में अपना आदमी समझकर उसने बीस आदमियों को टिकट दिलवाया था। देखते-देखते वे सभी उसकी मुट्ठी से निकल गए। लेकिन आज भी पाच-छ ऐसे विधायक हैं, जो उसके रिजाइन करने पर वे भी साथ में रिजाइन कर देंगे। उसने मन ही मन इस बात को ठान लिया कि एक न एक दिन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को किसी न किसी लपेटे में जरुरु लेगा। भले ही, उसके लिए उसे इस्तीफा क्यों न देना पड़े। हालाँकि उससे पहले उसको असंतुष्ट गोष्ठी के विधायकों को मंत्रीपद का लोभ दिखाकर एकजुट करना पड़ेगा। अगर चालीस-पचास विधायक मेरी तरफ हो जाते हैं तो विरोधी दल के साथ मिलकर एक गठबंधन वाली सरकार बनाई जा सकती है। इस विषय पर विरोधी दल के नेता के साथ गोपनीय समझौता करना उचित रहेगा। स्वाँई ने उस बात का निश्चय कर लिया, कैसे भी करके वह मंत्रिमंडल को भंग कर देगा। प्रधानमंत्री की उन तमतमाई आँखों का वह र्इंट का जवाब पत्थर से देगा। प्रधानंत्री को बी यह बात समझ में आ जाएगी कि मंगलू स्वाँई कितना ताकतवर है।

वह राजकुमारी कितनी खूबसूरत है! एकदम गोरा बदन। वह लड़का देखता ही रह गया। ओस से भीगे हुए शुभ प्रभात वेला में खूबसूरत कुहासे की भाँति उसकी मासूम निगाहें और मंद-मंद थिरकती मुस्कराहट। अगर

उसके जैसी एक मिल जाए तो जीवन में उसके कोई चाह बाकी नहीं रहेगी. उसने राजकुमारी को हथेली से पकड़ लिया। उसकी मुलायम-मुलायम हथेलियों से उसका सारा शरीर सिहर उठा। कितनी सुंदर अनुभूति थी वह!

राजकुमारी कहने लगी, "लौट जाओ राजकुमार, आप लौट जाइए। राक्षस आने ही वाला है। वह आपको मारकर खा जाएगा।"

"लौट जाऊँगा?" लड़के ने सीना तानकर कहा! लौटकर जाने के लिए मैं नहीं आया हँ राजकुमारी, आपको यहाँ से छुड़वाने के लिए आया हूँ।"

"ऐसा मतकरो, राजकुमार। आप यहाँ से चले जाइए। मेरे जैसी एक साधारण राजकुमारी के लिए आप अपना जीवन खतरे में मत डालिए।"

"आपको यहां से किसी भी हालात में लिए बिना नहीं जा सकता हूँ राजकुमारी। जिस दिन मैने आपको नदी की तरफ किलकारी मारते हुए जाते देखा, उसी दिन मैं आपका दिवाना हो गया हूँ।"

"राजकुमार।" राजकुमारी ने भागकर उस लड़के को अपनी बाँहों में जकड़ लिया। राजकुमारी के आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

"मुझे आप ही की प्रतीक्षा थी राजकुमार। आपकी जान के लिए मैने दिन-रात भगवान शिव की आराधना की है। राजकुमार, आज से मैं आपकी दासी, चिर-सहचरी हूँ।"

विरोधी दल के ऑफिस में टेबल के चारों तरफ आठ-दस आदमी बैठे हुए थे। चपरासी और दरवान का काम करने वाले लड़के ने एक बार सभी को चाय पिला दी। उन आदमियों में से कॉलेज में अध्ययनरत एक युवा कॉलेज यूनियन का सभापति था, उसे जोरदार भूख लग रही थी। मगर कहने में वह हिचकिचा रहा था। पता नहीं, आज लंच नसीब होगा या नहीं। कोई भी लंच के बारे में बात नहीं छेड़ रहा था। विरोधी दल के नेता ने खद्दर का कुरता -पायजामा पहन रखे थे। पाँव में बाटा की चप्पलें, गले में सोने की मोटी चेन तथा हाथ में पहनी हुई थी एक महँगी घड़ी। चेहरे से सौम्य व्यक्तित्व झलक रहा था। हाथ में महँगी सिगरेट पकड़ी हुई है। उसके सामने सभी आदमी भीगी बिल्ली की तरह लग रहे थे, मगर विरोधी दल के नेता के चेहरे पर कोई शिकन नहीं नजर आ रही थी। वह खुश नजर आ रहा था। वह कहने लगा "प्रधानमंत्री, जैसे ही अपने स्थान से उठेंगे वैसे ही हमारा एक्शन शुरु हो जाना चाहिए। प्रदीप, कितने आदमियों का प्रबंध हुआ है?"

प्रदीप, जो कि छात्र नेता था, खड़ा होकर कहने लगा, "हमारी यूनियन के समर्थक और बाकी सबी युवक मिलाकर डेढ़ सौ के तकरीबन होंगे, सर।"

"वेरी गुड, उन लोगों को कहना कि वे सभी जोर-जोर से नारे लगाएँगे। पुलिस आने से भी उन्हें डरने की कोई जरुरत नहीं है, बल्कि पुलिस से डटकर मुकावला करना होगा। और उनकी सारी लाठियाँ छन लेनी होगी। और अरिंदम, तुम, तुम्हारे साथ जितने आदमी हैं उन सभी की जेब में सडे अंडे और संतरे रखे हैं ना? उनको अच्छी तरह समझा देना कि सभा के शुरुआत में सडे हुए फल फेकेंगे। केवल प्रधानमंत्री के ऊपर ही सड़े हुए अंडे फेकेंगे। अंडे जैसी महँगी चीज किसी दूसरे के ऊपर न फेंके। पहले से उन्हें समझा देना।"

जैसे ही सब हँसने लगे, वैसे ही सेंस ऑफ ह्रूमर के लिए विख्यात विरोधी दल के नेता ने अचानक सबके सामने एक चौंकने वाली खबर दी "आप सभी के लिए एक खुशी की खबर है। प्रधानमंत्री की मीटिंग से स्वाँई ने बॉयकट कर दिया है। वह पार्टी छोड़ने को तैयार हो सकता है। अगर मंगलू स्वाँई अपने साथ बीस विधायक लेकर आता है तो हमारे लिए दस-पंद्रह और विधायक कूटनीति और रुपयों के बल पर खींचना मुश्किल नहीं है। बस, उसके बाद मंत्रिमंडल मैं हमारा वर्चस्व होगा।"

विरोधी दल के नेता की उपर्युक्त बातों ने सभी के मन में आशा की एक किरण जगा दी। वह आगे और कहने लगे, "लेकिन बंधुगण! हम सभी को इस कार्य के लिए आन से ही लगना पडेगा। प्रधानमंत्री की आज

की सभा से ही शुरु होती है हमारी योजना। आज से ही अखबारों में चर्चा का विषय छेड़ देने से जनता का भरपूर समर्थन हमारे पक्ष में होगा।"

लड़के के चारों तरफ फेंके हुए पैसों को बुढ़े ने उठा लिया। गिनने पर आठ रुपे पचहत्तर पैसे हुए। मन ही मन उसने हिसाब कर लिया कुल मिलाकर अठहत्तर रुपए साठ पैसे होते है और नहीं चलने लायक अठन्नी-चबन्नी मिलाकर दो रुपए अतिरिक्त। सुबह से ही पेट खाली है। पेट में चूहे कूदने लगे हैं। बच्चे ने अभी तक संभाल लिया है। इधर मिट्टी तपने लगी है, कहीं ऐसा न हो कि गर्मी की वजह से बच्चा बेहोश हो जाय अथवा किसी ने उसका हाथ-पाँव खींच लिया तो किए कराए पर पानी फिर जाएगा। लोग पीट-पीटकर मार देंगे, लेकिन अभी तक तो केवल अठहत्तर रुपए ही हुए हैं।भीड़ बेशुमार बढ़ रही है। कुछ और आमदनी होने की संभावना है। ज्यादा नहीं तो कम से कम सौ रुपए तक तो हो ही सकते हैं।

"कुछ और देर के लिए धीरज धर, बेटे।"

सबकी निगाहों से अपने आपको बचाकर लड़के के पास झककर धीरे से कहने लगा, "और आधे घंटे बाद तुझे ले जाऊँग। मुझे मालूम है कि धरती तपने लगी है। मेरे लाड़ले, सुबह से कुछ भी नहीं खाए हो। तुझे भयंकर भूख लग रही होगी। आज मैं तुझे एक अच्छे होटल में चिकन खिलाऊँगा। केवल और आधे घंटे की बात है बेटे।"

बूढ़ा ड़र रहा है। इतनी भयंकर भीड़। इतनी भयंकर भीड़ का बूढ़े ने कभी सामना नहीं किया था. जहाँ पकड़े गए, वहाँ मारे गए। यहां से निकलते ही, थोडा-बहुत नाश्ता कर लेने के बाद खिसकना पड़ेगा। बूढ़े ने मन ही मन सोच लिया है, यहाँ से खिसकते ही कटक जाना उचित रहेगा। खाना-पीना भी कटक में ही खाया जाएगा। उसके बाद जितना जल्दी हो सकेगा, बस या ट्रेन पकड़कर वह बरहमपुर, राऊरकेला, खड़गपुर और फिर कलकत्ता के लिए प्रस्थान कर देगा। उसे हिन्दी, बंगला, उड़िया, तेलगू सभी भाषाओं की अच्छी जानकारी है। अगर उसे तामिल और मलयालम भाषा आ जाती तो एक बार मद्रास भी घूम लेता। लखनऊ, काशी, इलाहाबाद की तरफ उसने कबी रुख नहीं किया है। बूढ़े ने सुन रखा था कि काशी की तरफ इन सब में अच्छी आमदनी हो जाती है। बूढ़े ने चादर की तरफ देखा। लगभग और दो रुपए जमा हो गए थे। जैसे ही सौ रुपए हो जाएगा वह वहाँ से चला जाएगा। पुलिसवालों ने भी इधर दो-तीन चक्कर काटे हैं। और ज्यादा लोभ नहीं। यह अंतिम बार है। उसने फिर चिल्लाना शुरु किया "हुजूर, माई-बाप! कैसी विपदा आ पड़ी है मुझ पर......."

एक ग्रामीण दूसरे ग्रामीण को बता रहा था........ "उस आदमी को देख रहे हो, जिसके सिर पर गाँधी टोपी है, वह आदमी ही हमारा प्रधानमंत्री है। समझे, वही भारत देश का राजा है।"

दूसरे ग्रामीण ने हाथ जोड़कर उनको प्रणाम किया। "गजपति महाराज की तरह भगवान है। मानते हो ना? इतने बड़े देश पर जिसका शासन चल रहा है दुर्योधन और युधिष्ठिर की भाँति।"

तभी लोगों के बीच धक्का-मुक्की शुरु हो गई। प्रधनमंत्री मंचासीन हो गए। मुख्यमंत्री उठक स्वागत-भाषण देने जा रहे हैं। मुख्यसचिव झुककर के प्रधानमंत्री के कान में कुछ फुसफुसा रहा था। उसकी बात सनक प्रधानमंत्री ने विरक्त भाव से नाक-मौं सिकोड़ लिया। ठीक उसी समय पुण्यश्लोक ने फोटो खींच लिया। तब दिन में एक बजकर पैतीस मिनट हो रहे थे। उसने मन ही मन इस बात का आकलन कर लिया फोटो डेबलेप करने के बाद वह तीन बजे तक कटक पहुँच सकता है।

छात्र नेता प्रदीप अपने साथियों को उत्तेजित होकर कहने लगा, "देखते क्या हो? फेंको, फेंको, सड़े हुए फल फेंको।" तभी मुख्यमंत्री खड़ा हो गया। उसी समय एक लड़के ने एक सड़ा हुआ आलू उनकी तरफ फेंका, मगर वह आलू मंच के नजदीक नहीं पहुँच पाया। भीड़ में ही कहीं गिर गया। उसके बाद एक और लड़के ने सड़े फल फेंकने का प्रयास किया, परन्तु कोई भी फल मंच के ऊपर नहीं गिर रहा था। यह देखकर प्रदीप चिल्लाते हुए कहने लगा, "प्रधानमंत्री, मुर्दाबाद!" बाकी लड़के पीछे-पीछे नारे लगाते हुए चिल्लाने लगे, "मुर्दाबाद, मुर्दाबाद।"

"शासक दल, मुर्दाबाद।"

"मुर्दाबाद, मुर्दाबाद।"

"प्रधानमंत्री लौट जाओ।"

"लौट जाओ, लौट जाओ।"

इर्द-गिर्द की भीड़ पीछे मुड़कर देखने लगी, क्या हो रहा है? तभी प्रदीप ने अपने झोले में से पुआल का बना हुआ एक पुतला निकाला। बड़ी मुश्किल से उस पुतले को बचा कर लाया था सबकी निगाहों से। देखते-देखते उसने पुतले को आग लगा दी। अचानक धुँए और आग को देखकर भीड़ डर से तितर-बितर होने लगी। कुछ लोग प्रधानमंत्री के भाषण की उपेक्षा पुतलाजलाने के कार्यक्रम को बड़े चाव से देखने लगे। वे जलते हुए पुतले के चारों तरफ खड़े हो गए। प्रदीप ने जोर से नारा लगाया, "प्रधानमंत्री, मुर्दाबाद!"

अभी केवल उसके समर्थक ही नहीं वरन अन्य लोग भी उत्तेजित होकर चिल्लाने लगे, "मुर्दाबाद, मुर्दाबाद!"

"प्रधानमंत्री लौट जाओ।"

"लौट जाओ। लौट जाओ।"

पुण्यश्लोक ने भीड़ में से उठते हुए धुँए को देखा। कुछ लोग हाथ उठा-उठाकर नारे लगा रहे थे। पुण्यश्लोक को मानो इसी क्षण के फोटो लेने का इंतजार था।

सरकार विरोधी अखबार वाले इस फोटो को अवश्य खरीदेंगे। पुण्यश्लोक मंच के ऊपर से नीचे कूद कर भागने लगा। भीड़ को चीरते हुए, लोहे की पाइप-रेलिंग को कूदते फांदते हुए, औरतों की भीड़ के भीतर से हड़बड़ाकर भागे जा रहा था। तभी राज्य की अर्द्ध सैनिक पुलिस ने उसको उठाकर नीचे पटक दिया। पुण्यश्लोक को पुलिस द्वारा पीटे जाने वाले इस दृश्य का स्नैप अनजाने में उत्कल फोटो स्टूड़ियो के राना ने उठा लिया। पुलिसवालों की मार से पत्रकार तथा फोटोग्राफर घायल नामक शीर्षक वाले फोटो विरोधी दल के अखबार अवश्य खरीद लेंगे। राना मन ही मन प्रफुल्लित हो गया, उसको एक अच्छा स्नैप मिल गया।

पुतला जलाने वाले लड़को पर पुलिस वाले टूट पड़े। भीड़ तितर-बितर कर इधर-उधर भागना शुरु हुई। तभी प्रदीप को लगा कि किसी ने उसकी पीठ पर जोर से लाठी मार दी हो। वह घड़ाम से पेट के बल पर गिर गया। भीड़ ने पाँव तले उसको रौंदना शुरु किया। उसका सारा शरीर असहाय पीड़ा से दर्द करने लगा। प्रदीप कुछ समझ नहीं पा रहा था, तभी पीछे से किसी ने अपने जूतों से जोरदार लात मारकर उसको लुढ़का दिया। बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोलने का प्रयास कर रहा था, मगर आँखें नहीं खोल पा रहा था। तभी किसी ने उसके पेट पर लाठी से वार कर दिया। उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए ज्यों ही हाथ ऊपर किया, वैसे ही लाठी का दूसरा वार हुआ। उस वार से उसके हाथ की हड्डी टूट गई। टूटी हुई डाल की तरह उसका हाथ झूलने लगा। सारे शरीर में दर्द के मारे वह कराहने लगा।

राजकुमारी कहने लगी, "राक्षस आने का वक्त हो गया है। राजकुमार, आप चले जाइए यहाँ से।"

वह लड़का आत्म-सम्मान के साथ कहने लगा, "किसी भी परिस्थिति में आपको लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा, राजकुमारी। देखिए तो सही, मैं किस तरह राक्षस के छक्के छुड़ाता हूँ। आपका कोई भी बाल बाँका नहीं होने दूँगा।"

"राक्षस बहुत ताकतवर है।"

"तो मेरी भी बुद्धि कम नहीं है।"

"इधर देखिए, राजकुमार, राक्षस आ रहा है। किस तरह धड़धड़ की आवाज हो रही है। कितनी भयंकर आवाजें। जब भी राक्षस आता है, तो आँधी तूफान चलने लगते हैं। पेड़-पौधे हिलने लगते हैं। जमीन थर्राने लगती है, 'हो, हो' करते हुए वह आता है। चले जाइए, राजकुमार, चले जाइए।"

परेड़ ग्राउंड में लोगों में भगदड़ मच गई है। क्या हो रहा है? लाठीचार्ज। धोती के ऊपर और जमीन पर बिखरे हुए पैसों को हड़बड़ाकर उठाते हुए बुड्ढा कहने लगा, "उठ जा, बेटे, उठ जा। लाठीचार्ज हो रहा है उधर। चलो, हम लोग भी भगाते हैं यहाँ से।"

राजकुमारी की पीठ थपथपाते हुए लड़के ने कहना शुरु किया, "देखती रहो, कुछ भी नहीं होगा। मैं राक्षस के साथ युद्ध करुँगा।"

परेड़ ग्राउंड की ओर से लोग एक दूसरे को धक्का-मुक्की करते हुए भागे जा रहे थे. बुड्ढा कहने लगा, "उठ बेटे, काफी कमाई हो चुकी है। जान बच गई तो और कमाएँगे। भीड़ हमारी तरफ ही बढ़ते हुए आ रही है। उठ मेरे, लाड़ले, जल्दी उठ।"

अपनी गर्जना से आकाश और पाताल को एक करते हुए क्रोध से फुफकारते हुए उसी की तरफ लपक रहा था वह राक्षस। डर के मारे राजकुमारी काँप रही थी। लड़के मन में लेशमात्र भी भय नहीं था। तलवार तानकर वह राक्षस के सामने खड़ा हो गया।

भीड़ बूढ़े के सामने से गुजरने लगी। डरकर लड़के को हिलाते हुए कहने लगा, "उठ, उठ, मेरे बेटे, मेरे लाड़ले। ये कैसी सर्वनाश करने वाली नींद है? उठ, बेटे। भागेंगे। जान बची तो लाखों पाए। उठ मेरे बेटे, मेरे लाड़ले। उठ, उठ,जल्दी उठ।"

राक्षस ने गुफा का द्वार खोल दिया और गरजते हुए कहने लगा, "मेरी गुफा में किसने घुसने का दुस्साहस किया। रुक, आज मैं तुझे कच्चा चबा जाऊँगा।"

राजकुमारी ने ड़रकर अपनी आँखे भींच ली, "राजकुमार, राजकुमार।"

लड़के ने हँसते हुए कहा, "रुक जा राक्षस, तेरा आखिरी समय आ गया है। आज तू जिंदा नहीं बचेगा मेरे हाथों।"

भीड़ को अपनी तरफ बढ़ता आते देख बूढ़ा अपने बेटे को गोद में उठाकर भागने लगा।

"क्या हो गया है तुझे आज, मेरे बेटे? जाग क्यों नहीं रहा है? क्या मुझ पर गुस्सा हो गए हो? जाग जा, मेरे बेटे। देख, बाहर किस तरह भगदड़ मची हुई है। तू भी दौड़, मेरे साथ, मेरे बेटे। ओह, मेरे प्यारे बेटे।"

अकस्मात् बूढ़े के हाथ से छूटकर वह लड़का नीचे गिर गया। बूढ़े को पीछे धकेलते हुए भीड़ आगे बढ़ी जा रही थी। 'मेरे बेटे, मेरे बच्चे, मेरे लाड़ले' रोते-रोते कहते-कहते वह भीड़ के बहाव में दूर फेंका गया। नीचे गिरा हुआ था उसका लड़का। किसी के पाँव से टकराया तो वह आदमी उसको फाँदकर आगे निकल गया। उसके बाद तो फिर कहना ही क्या, लातों के ऊपर लातें। कुछ खाली पाँव, तो कुछ जूते पहने हुए, तो कुछ चप्पल पहने हुए, तो कुछ धूल से भरे पाँव। देखते-देखते ऐसे असंख्य पाँव उस लड़के को रौंदते हुए आगे बढ़ते गए।

वह राक्षस उठाकर ले गया उस लड़के को। पता नहीं, उसको मरोड़ दिया क्या, उस राक्षस ने। लड़के का सारा शरीर यंत्रणा से बिलबिला उठा। बहुत ही अस्पष्ट स्वर में वह पुकार रहा था, "राजकुमारी!"

राजकुमारी ने भी बिलखते हुए राजकुमार को आवाज लगाई होगी मगर राक्षस की हुंकार के आगे कुछ सुनाई नहीं पड़ी। पीड़ा सहते-सहते हुए भी वह लड़का राजकुमारी के कंठ से दर्द भरी चीत्कार सुनना चाह रहा था। 'राजकुमार,राजकुमार' की करुणा पुकार वह अपने कानों से सुनना चाह रहा था, मगर सुन नहीं पा रहा था।

थाने से मुक्त होने के बाद अस्पताल जाकर लौटते समय परेड़ ग्राउंड और यूनिट थ्री के बीच रास्ते में उस दृश्य को देखकर पुण्यश्लोक चौंक उठा। उस समय तक प्रधानमंत्री जा चुके थे। परेड़ ग्राउंड में पूरी निर्जनता छाई हुई थी। भुवनेश्वर संध्या की चपेट में आ चुका था। पुलिस के डंडे खाने से उसके फ्लैश के बल्ब टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गए थे, केवल एक ही फ्लैश बल्ब अक्षत बचा हुआ था। इस बात को लेकर पुण्यश्लोक का मन भारी हो रहा था, मगर जैसे ही उसने उस दृश्य को देखा तो वह अपना दुःख भूल गया। पुण्यश्लोक ने तुरंत अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया और सोचने लगा कि अगर इस दृश्य का फोटो लिया जाए तो उसका एक अलग महत्व रहेगा।

प्रधानमंत्री के बारे में रिपोर्ट देते समय यह फोटो नहीं भी चलेगा तो कोई बात नहीं, मगर आँधी-तूफान, अकाल आदि किसी भी परिस्थिति में यह फोटो काम आ जाएगा। अंतिम बचे हुए एक फ्लैश बल्ब की सहायता से पुण्यश्लोक ने इस दृश्य को अपने कैमरे में अंकित कर लिया और खुश होने लगा।

पुण्यश्लोक द्वारा लिए गए फोटो का दृश्य इस प्रकार था। शिरीष पेड़ के सहारे बैठकर अपनी उदास आँखों से ढ़लती हुई शाम को देख रहा है एक बूढ़ा। बहुत समय से बहते हुए आँसू उसकी गाल के ऊपर सूखकर जम चुके थे। पास में पड़ी हुई थी खून से लथपथ एक लड़के की लाश। बूढ़ा और चिल्ला-चिल्लाकर कोई पैसा नहीं माँग रहा था।