http://gadyakosh.org/gk/api.php?hidebots=1&days=7&limit=50&action=feedrecentchanges&feedformat=atomGadya Kosh - हाल में हुए बदलाव [hi]2024-03-28T22:35:26Zइस विकि पर हाल में हुए बदलाव इस फ़ीड में देखे जा सकते हैं।MediaWiki 1.24.1http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%A8_%E0%A4%A4%E0%A4%95_/_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_3_/_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B7_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5&diff=44198&oldid=0कर्म से तपोवन तक / भाग 3 / संतोष श्रीवास्तव2024-03-27T18:29:41Z<p>'{{GKGlobal}} {{GKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवाद= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव<br />
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|संग्रह=कर्म से तपोवन तक / संतोष श्रीवास्तव<br />
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सघन वन में संध्या दोपहर ढलते ही प्रतीत होने लगती है ।माधवी ने अपने आश्रम के भीतरी प्रकोष्ठ से गगरी उठाई और वृक्षों की हरीतिमा में छुपी ऊँची नीची ढलानों पर बहती नदी की ओर चल दी ।नदी का बहाव हमेशा तेज ही रहता है। किंतु निर्मल जलधारा मनमोह लेने में सिद्धहस्त है । खिंची चली आती है माधवी और फिर थोड़ा समय नदी के किनारे बैठने को वह विवश हो जाती है। आज भी गगरी जलधारा की ओर लगाई ही थी कि लगा गालव खड़ा है उसके पीछे। जिसका प्रतिबिंब वह नदी के जल पर स्पष्ट देख रही है। देख रही है कि किस तरह उसने गालव और उसके मित्र गरुड़ के साथ इसी प्रयाग वन में प्रथम रात्रि गुज़ारी थी। प्रथम रात्रि ...उसके जीवन के कठोर कंटकाकीर्ण पथ की साक्षी जिसकी ओर उसके क़दम बढ़ चुके थे ।<br />
<br />
वह पौष मास की बेहद ठंडी रात्रि थी ।खुले वन में ओस टपकाते आसमान के नीचे तीनों बैठे थे ।गरुड़ सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी कर लाया था और उन्हें जलाकर अलाव के आसपास तीनों विश्राम कर रहे थे। अचानक उत्तर दिशा की ओर से टूटते तारे को देखकर गालव ने कहा-"देखो मित्र गरुड़, उस टूटते तारे को ।धरती की ओर तेजी से आता तारा अभी भी प्रकाशित है। मेरी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। गुरु विश्वामित्र की दक्षिणा मैँ अवश्य दे पाऊँगा ।"<br />
<br />
"और तुम गुरु दक्षिणा न दे सकने के क्षोभ में आत्महत्या करने चले थे। तपस्वी मुनि तुम और काम कायरों जैसा !संसार से पलायन भी भीरु पुरुषों का काम है गालव।"<br />
<br />
"तुम नहीं समझ सकते गरुड़। अश्वों की चिंता ने मेरा सुख चैन छीन लिया था ।जीवन निरर्थक लगने लगा था ।ऐसे जीवन का नष्ट हो जाना ही अच्छा था ।"<br />
<br />
किंतु तुम्हारा हठ ही तो तुम्हारी दुश्चिंता का कारण था। गुरु विश्वामित्र के बार-बार गुरु दक्षिणा लेने को मना करने पर भी तुम दुराग्रह करते रहे।"<br />
<br />
"वह दुराग्रह नहीं था मित्र गरूड़, शास्त्र कहता है दक्षिणा युक्त कर्म ही सफल होता है। दक्षिणा देने वाला पुरुष ही सिद्धि को प्राप्त होता है। माधवी चुपचाप दोनों का वार्तालाप सुन रही थी ।वह जानती थी गालव अश्व प्राप्त करने के लिए धन की <br />
<br />
याचना लेकर ही पिताश्री के पास आया था ।किंतु वानप्रस्थ धारण किए वनवासी पिताश्री कहाँ से देते धन? उन्होंने माधवी को ही अपनी संपत्ति मानते हुए गालव को दान में दे दिया।<br />
<br />
आह, पुत्री नहीं संपत्ति! वह दानवीर राजा ययाति की संपत्ति माधवी, पिताश्री के शब्द कानों में गर्म लावे-सा टपक रहे थे-<br />
<br />
"मुनिवर, गुरु दक्षिणा दुर्लभ है। चंद्रमा के समान उज्ज्वल वर्ण और श्याम कर्ण के 800 अश्व एक ही राज्य में मिलना असंभव है। मेरे राज्य में तो इस तरह का एक भी अश्व नहीं है ।अतः मैं अपनी कन्या माधवी आप को दान में देता हूँ। यह आपकी गुरु दक्षिणा के निमित्त अश्वों को जुटाने का साधन बनेगी। यह अक्षत यौवना का वरदान प्राप्त है और एक चक्रवर्ती पुत्र को जन्म भी देगी ।"<br />
<br />
माधवी पिताश्री के शब्दों से आहत थी। उसका सर्वांग मानो उन शब्दों की आंधी में पत्ते-सा कांप रहा था। क्या वह इन्हीं राजा ययाति की पुत्री है जिन्होंने माता देवयानी के अतिरिक्त किसी और स्त्री से शारीरिक सम्बंध नहीं बनाने का नाना शुक्राचार्य को दिया वचन शर्मिष्ठा के कारण तोड़ दिया था ?उनके राज महल में दासी बनकर आई दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के सौंदर्य और प्रणय निवेदन के आगे पिताश्री कमजोर पड़ गए थे। शर्मिष्ठा के मोहपाश में उन्हें यह भी याद न रहा कि वह नाना शुक्राचार्य से वचनबद्ध थे। वह वचन की अवहेलना ही तो थी जिससे क्रुद्ध होकर नाना शुक्राचार्य ने उन्हें आजीवन वृद्धावस्था का शाप दिया था ।वृद्धावस्था के शाप से घबरा उठे थे राजा ययाति। अभी तो वे स्वयं को युवा ही समझते थे। युवावस्था में ही वृद्धावस्था! वे गुरु शुक्राचार्य के चरणों में गिर पड़े-<br />
<br />
"क्षमा,क्षमा करें गुरुदेव। वचन तोड़कर मैंने जो अपराध किया उसका निवारण बताएँ।"<br />
<br />
"दिया हुआ शाप कभी वापस नहीं लिया जाता। उसका निवारण हो सकता है।"<br />
<br />
"गुरुदेव उपाय बताएँ। मैं अक्षरशः उसका पालन करूंगा ।"<br />
<br />
नाना शुक्राचार्य ने कहा -"यदि तुम्हारा कोई पुत्र तुम्हें अपनी जवानी दे तो तुम जब तक चाहो युवा रह सकते हो ।"<br />
<br />
यह सुनकर पिताश्री राजा ययाति अत्यंत प्रसन्न हुए। लेकिन यह बात भी अपने पुत्रों से कहें कैसे? कई दिनों तक इसी सोच विचार में वे खोये रहे। फिर सोचा अगर कहेंगे नहीं तो समस्या का निदान कैसे होगा ?क्या वे दीर्घकाल तक प्रौढ़ावस्था को ही जीते रहें? समस्त सांसारिक भोग विलास का त्याग करके?<br />
<br />
उनकी इस सोच में पुत्रों के प्रति तो तनिक भी स्नेह भाव न था। उन्होंने यह तो सोचा ही नहीं कि अगर वह किसी पुत्र की जवानी लेते हैं तो वह पुत्र युवावस्था में ही वृद्ध हो जाएगा और जीवन के तमाम सुखों से वंचित हो जाएगा। <br />
<br />
उन्होंने राज्यसभा में अपने सभी पुत्रों को बुलाकर सारा वृत्तांत कह सुनाया । किंतु उनका कोई भी पुत्र उन्हें अपनी युवावस्था देने को तैयार नहीं था ।स्वाभाविक भी थी पुत्रों की अस्वीकृति। <br />
<br />
अस्वीकृति के बावजूद अपने कक्ष में बुलाकर प्रत्येक पुत्र से आग्रह किया<br />
<br />
ज्येष्ठ पुत्र यदु ने तो सोच विचार करने का समय ही नहीं लिया ।तुरंत बोला-"पिताश्री! असमय में आई वृद्धावस्था को लेकर मैं कैसे जीवित रहूँगा, यह संभव नहीं है। अतः मुझे क्षमा करें।" <br />
<br />
ययाति ने अपने शेष पुत्रों को भी अपने कक्ष में बुला कर यही मांग की। लेकिन सभी ने अस्वीकार कर दिया। केवल सबसे छोटे पुत्र पुरु ने पिता की मांग को स्वीकार कर लिया।"<br />
<br />
पुनः युवा हो जाने पर पिताश्री राजा ययाति ने यदु से कहा, "ज्येष्ठ पुत्र होकर भी तुमने अपने पिता के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण नहीं किया। अतः मैं तुम्हें राज्याधिकार से वंचित करके अपना राज्य पुरु को देता हूँ। मैं तुम्हें शाप भी देता हूँ कि तुम्हारा वंश सदैव राजवंशियों के द्वारा बहिष्कृत रहेगा।"<br />
<br />
पिताश्री राजा ययाति ने कई वर्षों तक युवावस्था का सुख भोगा। एक दिन उन्हें अपनी भूल और पुत्र पुरु के प्रति किए गए अन्याय का एहसास हुआ। वे आत्मग्लानि से भर उठे और उन्होंने पुत्र पुरु को उसकी युवावस्था सौंप राजपाट भी सौंप दिया और अपनी पारिवारिक एवम राजकीय जिम्मेदारियों से मुक्त हो प्रभु की उपासना के लिए वानप्रस्थ धारण कर वन की ओर प्रस्थान किया।<br />
<br />
कैसी विडंबना है पिताश्री पूरे आर्यावर्त में एक दानवीर राजा के रूप में प्रतिष्ठित हुए किंतु अपनी ही संतान के प्रति न्याय नहीं कर पाए न भ्राता पुरू के प्रति न माधवी के प्रति। देखा जाए तो अपने ज्येष्ठ पुत्र यदु के प्रति भी तो उन्होंने न्याय नहीं किया।<br />
<br />
और माधवी के प्रति तो अन्याय की चरम सीमा ही पार कर दी। गालव के द्वारा मांगे गए 800 विलक्षण अश्वों को न दे सकने की असमर्थता में उन्होंने उसे ही गालव को सौंप दिया जैसे वह कोई वस्तु हो जिसके आकर्षण में बंधकर गालव उसे स्वीकार कर लेगा। एक ऐसी स्वर्ण मुद्राओं से भरी मखमली थैली जिसके द्वारा गालव चक्रवर्ती पुत्रों की आकांक्षा वाले बाज़ार से अपनी आकांक्षा पूरी कर सकता है। माधवी का मन खिन्नता से भर उठा। <br />
<br />
हवा के चलने से वनस्थली पर गिरे सूखे पत्ते खड़के ।गरुड़ गालव से कह रहा था-"<br />
<br />
"तुम्हारी जैसी धारणा गालव, सुबह मैं विष्णु लोक प्रस्थान करुंगा ।तुम राजकुमारी माधवी को लेकर अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास आरंभ करना ।"<br />
<br />
वन में रात्रि विचरण करने वाले पशु भिन्न भिन्न प्रकार की आवाजें निकाल रहे थे ।इसके अलावा वन में निस्तब्धता थी ।धीरे-धीरे अंधकार गहराता गया। माधवी और गालव की पलकें भी नींद से बोझिल हो मुंदने लगीं लेकिन गरुड़ जागता रहा ।वह हिंसक पशुओं से माधवी और गालव की रक्षा एक रक्षक की भांति करता रहा।<br />
<br />
प्रातः काल गरुड़ ने गालव से बिदा ली-"तुम अपने लक्ष्य में सफल होगे। यही प्रार्थना है भगवान विष्णु से ।जब तुम्हें 800 अश्व प्राप्त हो जाएँ तुम मुझे स्मरण करना मित्र। मैं तुम्हारा हर्ष देखने आ भी सकता हूँ ।चलता हूँ मित्र।"<br />
<br />
गालव ने गरुड़ को गले से लगा लिया ।माधवी ने हाथ जोड़ते हुए कहा -"आदरणीय ,भविष्य किसने देखा है। रात भर तनिक भी विश्राम न कर आपने हमारी रक्षा करते हुए हिंसक पशुओं से बचाया। यह मैं कभी नहीं भूलूंगी। सदैव आभारी रहूँगी आपकी ।"<br />
<br />
दोनों से विदा ले गरुड़ ने उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान किया। गालव ने भी माधवी के संग अयोध्या की ओर जाने वाली राह पकड़ी।<br />
<br />
बहुत नाम सुना था अयोध्या नरेश हर्यश्व का।उनके पास अवश्य अश्व होंगे ।सोचते हुए गालव ने माधवी की ओर देखा। वह सिर झुकाए गालव से हाथ भर की दूरी बनाए उसके संग चल रही थी ।अपूर्व सुंदरी माधवी इस समय राजकन्या कम वनकन्या अधिक लग रही थी। नहीं वनकन्या भी नहीं इंद्र की सभा की कोई अप्सरा लग रही थी जिसे इंद्र ने उसी के कार्य की पूर्ति के साधन के रूप में धरती पर भेजा था।<br />
<br />
पल भर को गालव के मन में विचार आया था क्यों न माधवी के संग वह स्वयं विवाह कर अपना संसार बसा ले ,चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न करे। कल्पना मात्र से ही उसे रोमांच हो आया ।माधवी को वह अपने हृदय के आसन पर तरह-तरह की भाव भंगिमा में प्रतिष्ठित करने लगा। किंतु अगले ही पल उसने इस विचार को परे ढ़केल दिया ।इस समय उसके जीवन का उद्देश्य केवल गुरु दक्षिणा के लिए अश्व प्राप्त करना है।</div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%A8_%E0%A4%A4%E0%A4%95_/_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B7_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5&diff=44195&oldid=0कर्म से तपोवन तक / संतोष श्रीवास्तव2024-03-26T18:14:31Z<p>'{{GKGlobal}} {{GKPustak |चित्र= |नाम=कर्म से तपोवन तक |रचनाकार=संतो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|नाम=कर्म से तपोवन तक<br />
|रचनाकार=[[संतोष श्रीवास्तव]]<br />
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====इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ====<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 1 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 2 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 3 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 4 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 5 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 6 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 7 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 8 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 9 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 10 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 11 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 12 / संतोष श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्म से तपोवन तक / भाग 13 / संतोष श्रीवास्तव]]</div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B7_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5&diff=44194&oldid=43891संतोष श्रीवास्तव2024-03-26T18:11:26Z<p></p>
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<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>====संस्मरण====</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>====संस्मरण====</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>* '''[[पथिक तुम फिर आना / संतोष श्रीवास्तव]]'''</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>* '''[[पथिक तुम फिर आना / संतोष श्रीवास्तव]]'''</div></td></tr>
</table>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A8_/_%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B2_%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%80&diff=44193&oldid=36694विज्ञापन / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी2024-03-24T20:17:41Z<p></p>
<table class='diff diff-contentalign-left'>
<col class='diff-marker' />
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">20:17, 24 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 7:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 7:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>(अनुवाद :[[सुकेश साहनी]])</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>(अनुवाद :[[सुकेश साहनी]])</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>एक आदमी के बाग में अनार के बहुत से पेड़ थे। फल उतरते ही वह उन्हें <del class="diffchange diffchange-inline">चांदी </del>के थालों में सजाकर घर के बाहर रख देता था और पास ही रखे साइन बोर्ड पर उसने लिखा था, "एक सेब मुफ्त में लें। आपका स्वागत है।"</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>एक आदमी के बाग में अनार के बहुत से पेड़ थे। फल उतरते ही वह उन्हें <ins class="diffchange diffchange-inline">चाँदी </ins>के थालों में सजाकर घर के बाहर रख देता था और पास ही रखे साइन बोर्ड पर उसने लिखा था, "एक सेब मुफ्त में लें। आपका स्वागत है।"</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>लोग गुज़रते रहते थे, पर कोई भी फलों की ओर आकर्षित नहीं होता था।</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>लोग गुज़रते रहते थे, पर कोई भी फलों की ओर आकर्षित नहीं होता था।</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>वह इस विषय में गंभीरता से सोचने लगा। अगली फसल के उतरने पर उसने एक भी अनार <del class="diffchange diffchange-inline">चांदी </del>के थालों में घर के बाहर नहीं रखा बल्कि एक बड़ा बोर्ड बाहर लगा दिया, जिस पर लिखा था<del class="diffchange diffchange-inline">, </del>"देश के सबसे अच्छे अनार। इसलिए हमें कीमत <del class="diffchange diffchange-inline">अद्दिक </del>रखनी पड़ रही है।"</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>वह इस विषय में गंभीरता से सोचने लगा। अगली फसल के उतरने पर उसने एक भी अनार <ins class="diffchange diffchange-inline">चाँदी </ins>के थालों में घर के बाहर नहीं रखा<ins class="diffchange diffchange-inline">; </ins>बल्कि एक बड़ा बोर्ड बाहर लगा दिया, जिस पर लिखा था<ins class="diffchange diffchange-inline">-</ins>"देश के सबसे अच्छे अनार। इसलिए हमें कीमत <ins class="diffchange diffchange-inline">अधिक </ins>रखनी पड़ रही है।"</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>साइन बोर्ड पढ़ने के बाद पास-पड़ोस के सभी स्त्री <del class="diffchange diffchange-inline">पुरूष </del>अनार खरीदने के लिए टूट पड़े।</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>साइन बोर्ड पढ़ने के बाद पास-पड़ोस के सभी स्त्री <ins class="diffchange diffchange-inline">पुरुष </ins>अनार खरीदने के लिए टूट पड़े।</div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins class="diffchange diffchange-inline">-0-</ins></div></td></tr>
</table>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44192&oldid=44189मेरी बगिया / निर्देश निधि2024-03-21T19:13:50Z<p></p>
<a href="http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44192&oldid=44189">बदलाव दिखाएँ</a>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44191&oldid=44190शेष विहार / निर्देश निधि2024-03-21T19:07:41Z<p></p>
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देर रात गए उसकी अपनी भाभी ने भी फ़ोन पर यही बात तो की थी</div>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44189&oldid=0मेरी बगिया / निर्देश निधि2024-03-21T18:57:18Z<p>'{{GKGlobal}} {{GKRachna |रचनाकार=निर्देश निधि |अनुवाद= |संग्रह= }} {{GKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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'''देर रात गए उसकी अपनी भाभी ने भी फ़ोन पर यही बात तो की थी'''</div>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44188&oldid=44184निर्देश निधि2024-03-21T18:56:04Z<p><span dir="auto"><span class="autocomment">कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ</span></span></p>
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">18:56, 21 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 23:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 23:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[तुम सुन रही हो न इला? / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[तुम सुन रही हो न इला? / निर्देश निधि]]</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लहर- लहर मन / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लहर- लहर मन / निर्देश निधि]]</div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;">*[[मेरी बगिया  / निर्देश निधि]]</ins></div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;">*[[शेष विहार  / निर्देश निधि]]</ins></div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;"></ins></div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>===संस्मरण===</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>===संस्मरण===</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[टहनी सचमुच माँ को बुला लाई थी ! / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[टहनी सचमुच माँ को बुला लाई थी ! / निर्देश निधि]]</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[पहला– पहला फाग ससुराल का  / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[पहला– पहला फाग ससुराल का  / निर्देश निधि]]</div></td></tr>
</table>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%A0%E0%A5%80_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B0-_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A6-_4_/_%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE&diff=44187&oldid=0एक अनूठी धरोहर- मेरी पसंद- 4 / उपमा शर्मा2024-03-21T17:54:15Z<p>'{{GKRachna |रचनाकार=उपमा शर्मा |संग्रह= }} <a href="/gk/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80:%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE" title="श्रेणी:आलोचना">Category:आलोचना</a> '''इस य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=उपमा शर्मा<br />
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[[Category:आलोचना]]<br />
'''इस युग को लघुकथा का स्वर्णिम युग कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांक आ चुके हैं। कथादेश की लघुकथा प्रतियोगिता 2006 से अनवरत चल रही है। लघुकथा के उत्थान और विकास के लिए लघुकथा डॉट कॉम निरन्तर समर्पित है।'''<br />
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'मेरी पसंद' इसका निरन्तर आने वाला कॉलम है, जिसके अन्तर्गत पाठक अपनी पसंद की दो लघुकथाओं पर अपने स्पष्ट विचार रखते हैं। इसी क्रम में अब तक 'मेरी पसन्द' पर केन्द्रित तीन पुस्तकें आ चुकी हैं। यह कॉलम कितना सराहा गया, यह इसी से स्पष्ट है कि इसी क्रम में अब तक मेरी पसंद-4 और 5 प्रकाशित हो चुकी हैं। 'मेरी पसंद-4' मेरे सामने है। यह बेहद प्रासंगिक पुस्तक है। इसकी प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ गई है कि इसमें रचनाकार, पाठक एवं समीक्षक तीनों की दृष्टि से गुजरते हुए रचना के आर-पार चले जाते हैं। मेरी पसंद के अन्तर्गत जितनी सहजता से कोई रचनाकार या समीक्षक अपनी बात रख सकते हैं, उतनी ही सहजता से पाठक के लिए अपनी बात रखने के लिए यह उपलब्ध है। इसे पढ़ते हुए रचना के साथ एक अतरंगता का रिश्ता जुड़ने लगता है और सोच की नई-नई परतें खुलने लगती हैं। आज जब हम रचनाधर्मिता की अहमियत को लेकर बहुत सारे सवालों से दरपेश हैं, हमारे वरिष्ठ लेखकों ने एकजुट होकर अपने समय की मुश्किलों को झेला और एक दस्तावेज की विरासत तैयार की। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए हमारे वरिष्ठ इस रचनाधर्मिता को आगे ले जा रहे हैं और वर्तमान पीढ़ी के लिए एक सुखद परिवेश की नींव तैयार कर रहे हैं। मेरी पसंद की लघुकथाओं में रचनाकार की रचना पर बात करने का एक अनूठा कॉलम है जिसमें आम पाठकों से लेकर गहन समीक्षक लघुकथा पर अपनी बात स्पष्ट और बेबाक राय रखते हैं। मेरी पसंद के अन्तर्गत नए लेखकों की बहुत-सी ऐसी रचनाओं से रू-ब-रू हुए जो कथ्य के साथ शिल्प की दृष्टि से भी बहुत मारक और परिपक्व हैं।<br />
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लघुकथा विधा परंपरा और आधुनिकता के आवरण से विभूषित नए तथ्यों की सम्पोषक है जो साहित्य की नई मंजिलों को छूने में समर्थ है। इस समय के लघुकथाकार अपने मूलाधार से जुड़कर आम दुनिया में प्रविष्ट होते गए, जिससे रूढ़ियाँ, व्यवधान और सीमाएँ स्वत: ध्वस्त होते गए। अलग-अलग विषय, वैविध्य और विमर्श ने साहित्य और साहित्यकार के लिए सर्जन के नए आयाम का अन्वेषण किया।<br />
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इस समय में अनेक संपादित / संकलित और एकल लघुकथा-संग्रह ख़ूब प्रकाशित हुए हैं। इन दिनों लघुकथा लेखन पर लघुकथाकार ख़ूब कलम चला रहे हैं। बहुतायत में लिखने का यह परिणाम होता ही है कि कच्चा-पक्का दोनों तरह का लेखन होता है लेकिन समय की आँधी में थोथा-थोथा उड़ जाता है। इतिहास में सदैव गम्भीर लेखन ही दर्ज होता है।<br />
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कहानियाँ और उपन्यास लिखने के बाद भी लेखक को लघुकथाएँ लिखने की आवश्यकता महसूस हो रही है, तो इसका निष्कर्ष यही निकलता है कि बहुत कुछ ऐसा है जो लघुकथा के माध्यम से अधिक सघनता के साथ अभिव्यक्त किया जा सकता है। लघुकथा साहित्य के अलाव की एक ऐसी प्रस्फुटित चिंगारी है, जिसकी तपिश देर तक प्रभाव छोड़ती है। अलाव से सुकून मिलता है, लेकिन चिंगारी एक तड़प उत्पन्न करती है। अच्छी लघुकथाओं में यह तड़प बार-बार महसूस की जा सकती है।<br />
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साहित्य समुद्र में तरह-तरह की चीजें बिखरी पड़ी हैं। एक अच्छा लघुकथाकार / पाठक / समीक्षक एक कुशल गोताखोर के समान इस समुद्र से मोती ढूँढ ही लेता है। मेरी पसंद कॉलम में भी चुनी हुई रचनाओं का संकलन एक जगह है जिसे पढ़ पाठक को विशेष अनुभूति होती है। इन लघुकथाओं में विविधता, गहरे मानवीय सरोकार तथा आसपास के परिवेश के यथार्थ चित्र परिलक्षित होते हैं। इन लघुकथाओं पर आम पाठकों के विचार भी हैं तो उत्कृष्ट समीक्षक दृष्टि भी इन लघुकथाओं पर गुज़री है। कोई-कोई लघुकथा कई-कई व्यक्तियों द्वारा पसंद की गई है जिससे हमें यहाँ एक ही लघुकथा पर विभिन्न दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। लघुकथा यथार्थ की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। यहाँ लघुता और कलात्मकता का कौशल स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। साहित्य की कोई भी विधा प्रत्यक्षतः सामाजिक परिवर्तन नहीं कर सकती, परन्तु इस परिवर्तन की साहित्यिक मनोभूमि तैयार करती है। लघुकथा लेखक कल्पना की उड़ान न भर यथार्थ की खुरदरी जमीन पर लिखता है। पाठक के समीप जब सच उजागर होता है तो उसका कल्पना से मोहभंग हो जाता है। यही परिवर्तन की एक बारीक शुरुआत है। हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। भले ही बेटियों को यहाँ लक्ष्मी, देवी कहकर पुकारा जाता हो, लेकिन जो महत्त्व बेटे का है, वह बेटी का नहीं। पुत्र प्राप्ति पर ढोल बजते हैं, मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। पुत्री प्राप्ति पर अजीब—सी मायूसी का माहौल हो जाता है। गाँव-देहात में आज भी यह कहावत सुनने को मिलती है-बेटे होने की धमक चार गाँव तक गूँजती है, पैर सवाया उठता है और बेटी होने पर पृथ्वी भी तीन कदम भार से दब जाती है। रामेश्वर काम्बोज की लघुकथा 'नवजन्मा' इस मिथक को तोड़ नए आयाम गढ़ती है। जब बेटी होने पर दादी रोती है; लेकिन पिता ढोल बजवाता है, परिवर्तन की सुखद बयार पाठकों को बड़ी सुखद लगती है। आज हमारा समाज टूटते-बिखरते सम्बन्धों, लगातार गिरते हुए जीवन-मूल्य, राजनीतिक पतन, भ्रष्टाचार, भय, भूख से ग्रसित है। श्याम बिहारी श्यामल की लघुकथा 'हराम का खाना' सामन्तवाद पर तीखा प्रहार है। गरीब को बेनाप जूते, बढ़ती उम्र, कृशकाय शरीर कुछ नहीं व्यापता; लेकिन रोजी छिनने पर कैसे वह लड़खड़ाता है, श्याम सुंदर अग्रवाल की 'संतू' इसका सशक्त उदाहरण है।<br />
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शानदार शीर्षक से सजी सुकेश साहनी की लघुकथा 'अथ विकास कथा' भ्रष्टाचार को न सिर्फ उजागर करती है; बल्कि इसकी चुभन देर तक पाठकों के मस्तिष्क पर अंकित रहती है। हमारा समाज किस ओर जा रहा है। नैतिकता, मानवीय मूल्यों का ह्रास, शोषण चहुँओर यही व्याप्त है। जलसे, आंदोलन किसी गरीब के जीवन को कितनी बुरी तरह प्रभावित करते हैं अनवर शमीम की लघुकथा 'और हाथी रो रहा था' में उजागर होता है। आर्थिक विपन्नता से उपजी विवशता, अक्षमता की दास्तान पर इस लघुकथा में पाठकों के आँसू गिरने लगते हैं, जब बेटे को हाथी की सवारी कराने में अक्षम पिता खुद हाथी बन बेटे को बहलाने की कोशिश करता है लेकिन इस कोशिश में वह स्वयं इतना बिखर जाता है कि पूरी झोंपड़ी उसके आँसुओं से गीली हो जाती है।<br />
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आज मानवीय संवेदना और मूल्यों का इतना ह्रास हो चुका है कि पहले जिन बुजुर्गों के हाथ आशीर्वाद लगते थे, अब उनसे डर लगने लगा है। सुभाष नीरव की लघुकथा 'बाय अंकल' में बस स्टॉप पर छूटी बच्ची को सँभालते-दुलारते, सांत्वना देते दादाजी बच्ची की माँ को खतरा लगते हैं। एक बुजुर्ग की उपेक्षा से पाठकीय संवेदना कराह उठती है। लघुकथा सुखद मोड़ लेती है, जब बच्ची स्नेहसिक्त हो बाय अंकल कहती है।<br />
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सचेत लघुकथाकार के बिम्ब, रूपक, प्रतीक, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, आंचलिकता ऐसे औजार होते हैं जिनसे वह अपनी रचना को तराशकर एक नई चमक देता है। बिम्ब एवं प्रतीक संक्षिप्त अभिव्यक्ति का माध्यम हैं। प्राचीनकाल से ही थोड़े में अधिक कहने की प्रवृत्ति के लिए मानव संकेतों का उपयोग करता आया है। लघुकथाकार अपने शब्द बहुत सोच-समझकर खर्च करता है। सुगठित कथ्य के साथ सटीक प्रतीक और बिम्ब जैसे औजारों का इस्तेमाल रचना को और मारक बनाता है। बिम्ब का कार्य पाठक की हृदयस्थ संवेदनाओं को उद्बुद्ध करना है। साहित्य में बिम्ब का उद्देश्य भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति करना ही है। सुकेश साहनी की लघुकथा 'मेढ़कों के बीच' , महेश वर्मा की 'निशानी' , पारस दासोत की 'धूल' , प्रिंयका गुप्ता की 'भेड़िए' , अभिमन्यु अनत की 'अपना रंग' ऐसी ही लघुकथाएँ हैं। सुकेश साहनी की लघुकथाओं के बिम्ब और शीर्षक बड़े सटीक होते हैं। शीर्षक लघुकथा का मुख्य अवयव है। कई बार शीर्षक में ही पूरी लघुकथा का सार निहित होता है। लघुकथा 'मेढ़कों के बीच' में लघुकथाकार ने मेढक को बिम्ब बना भावी पीढ़ी को निरर्थक कार्यों से दूर रहने का सटीक संदेश दिया है। यह लघुकथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। महेश शर्मा ने पुराने समय के गोदना जो आज टैटू के नाम से प्रचलित है, का रूपक ले आज की पीढ़ी की बदलती संवेदनाओं को बखूबी दिखाया है। आज की पीढ़ी बेहद प्रैक्टिकल है। वह रिलेशनशिप को भी प्रैक्टिकली ही हैंडिल करती है। लघुकथा की पात्र पिंकी कुछ दिन पहले बनवाए टैटू को हटा देती है। उसे इस ब्रेकअप का कोई दर्द भी नहीं होता। दूसरी तरफ उसकी नौकरानी कम्मो आंटी आज तक उस प्यार के निशान को यादों में सहेजकर रख उस दर्द से गुजर रही है।<br />
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मेरी पसंद के अन्तर्गत विभिन्न विषयक लघुकथाएँ न केवल संवेदना के धरातल पर मन को छूती हैं, बल्कि वैचारिक दृष्टि से भी पाठक को सम्पन्न बनाती हैं। इन अधिकतर लघुकथाएँ में विचार, संवेदना, शिल्प और भाषा का कलात्मक संयोजन है। पसंद व्यक्ति की बहुत निजी अभिव्यक्ति है। किसी की पसंद का आधार कथ्य है, किसी का शिल्प। कुछ अनुभवजनित रचनाएँ इसलिए बहुत पसंद आती हैं कि उनके कथ्य पाठकों के निजी अनुभव से इतने मिलते-जुलते होते हैं कि वह नितांत अपने से लगते हैं; इसलिए इस संकलन की सारी लघुकथाएँ शिल्प की कसौटी पर खरी उतरें यह बिल्कुल आवश्यक नहीं। यहाँ आलोचक, समीक्षक और आम पाठक तीनों को ही अपने विचार रखने की समान स्वतंत्रता है। मेरी पसंद-4 पुस्तक रचनाकार और पाठकों को जोड़ने के अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल हुई है।<br />
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'''लघुकथा डॉट कॉम: मेरी पसन्द-4 (लघुकथा-विमर्श) , ISBN-978-81-19299-87-4, प्रथम संस्करण: 2024, मूल्य: 550 रुपये (सज़िल्द) , पृष्ठ: 200, सम्पादक: सुकेश साहनी, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , प्रकाशक: अयन प्रकाशन, जे-19 / 139, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059'''</div>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE&diff=44186&oldid=43890उपमा शर्मा2024-03-21T17:49:40Z<p><span dir="auto"><span class="autocomment">आलोचना</span></span></p>
<table class='diff diff-contentalign-left'>
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">17:49, 21 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 35:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 35:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[भावना की अभिव्यक्ति के सहज स्वर: ‘रंग भरे दिन -रैन’ / उपमा शर्मा]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[भावना की अभिव्यक्ति के सहज स्वर: ‘रंग भरे दिन -रैन’ / उपमा शर्मा]]</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लोक संवेदना में रचे बसे मधुर-कर्णप्रिय लोकगीत  / उपमा शर्मा]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लोक संवेदना में रचे बसे मधुर-कर्णप्रिय लोकगीत  / उपमा शर्मा]]</div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;">*[[एक अनूठी धरोहर- मेरी पसंद- 4  / उपमा शर्मा]]</ins></div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;"></ins></div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>====लेख====</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>====लेख====</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[मेरी पसन्द की लघुकथाएँ  / उपमा शर्मा]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[मेरी पसन्द की लघुकथाएँ  / उपमा शर्मा]]</div></td></tr>
</table>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E2%80%93_%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%97_%E0%A4%B8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A4%BE_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44185&oldid=0पहला– पहला फाग ससुराल का / निर्देश निधि2024-03-21T17:44:10Z<p>'{{GKGlobal}} {{GKRachna |रचनाकार=निर्देश निधि |अनुवाद= |संग्रह= }} {{GKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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बचपन में मेरा होली का उत्साह बहुत ज़ोरों पर रहता था। पिचकारी में अपना मनपसंद रंग भरा और सबसे पहले पिता के सफेद बुर्राक कुर्ते-पाजामे पर डाल दिया। यहीं से आरंभ होती थी मेरी होली। मेरे पिता हमेशा सफ़ेद कुर्ता पाजामा ही पहनते, जैसे दूसरों के द्वारा डाले गए रंगों का मान रख रहे हों। हरेक का डाला रंग अलग ही दिखाई दे, वरना काले-पीले कपड़ों में तो क्या ही दिखाई दे किसी का रंग। पिता के ऊपर मेरा रंग सबसे पहले डलकर सबसे ज़्यादा मान ले लेता। माता-पिता, बड़े बहन-भाइयों के लाड़-प्यार में होली के रंग खूब चमकीले और लुभावने लगते। जिनसे खेलते-खेलते मन कभी भरता ही ना था। गुनगुने होते फागुन मास की पूर्णिमा की रात वाला वह दिन, सामान्य दिनों की अपेक्षा कुछ तीव्रता से भागता हुआ लगता था। बहन–भाइयों और आस–पड़ोस के बच्चों के साथ खेल–खेल में कब दोपहर होकर दिन ढलने लगता, पता ही ना चलता। माँ सब बच्चों और बड़ों के लिए नायन ताई जी से पानी गरम करवा देतीं और एक–एक कर सबको नल की चबूतरी पर बेसन और सरसों के तेल से टेसू से बना रंग और गुलाल अपने हाथ–पैरों, गर्दन और चेहरे से छुड़ा लेने के लिए बोलतीं। हम बच्चे बस अभी थोड़ी देर में, कहते और बाहर भाग जाते। पकड़कर लाए जाते और बैठा दिये जाते नल की चबूतरी पर। बस बहुत खेल लिये हो अब और नहीं, बाकी अगले बरस खेलना। जैसे अगला बरस न हुआ, अगला घंटा हो गया। माँ जब अपनी पर आ जातीं, तो मजाल थी किसी की, जो उनकी, बात टाल सकता। आखिर तो हमें नहाना ही पड़ता जब मैं कक्षा ग्यारह में आई, तो पिता नहीं रहे और नहीं रहा वह सफेद बुर्राक कुर्ता-पाजामा भी, जिस पर रंग डालकर मैं अपनी होली का आरंभ करती और खुद से पहले उस पर किसी और को भी रंग न डालने देती। माँ भी नहीं रहीं। मन उदास हो गया। सभी होलियाँ रंगहीन हो गईं और जीवन जैसे वीरान और अर्थहीन हो गया। किशोरावस्था में प्रेम की पींगें बढ़ाने की उम्र माता-पिता की स्मृतियों की उदास धुनों को गाते हुए बीती। उदासी में ही सही पर एक–एक कर त्यौहार और बरस बीतने लगे।<br />
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ब्याह होकर ससुराल आई, तो घर ननद–देवरों से भरा था। डॉक्टर साहब यानी मेरे पति भी होली खेलने के खूब शौकीन। अपनी पसंद की लड़की से ब्याह कर उनकी खुशी भी सातवें आसमान पर थी। एक ब्राह्मण लड़के के द्वारा जाट खेमे से बाकायदा ज़िद करके ब्याह कर लाई गई थी मैं। यह एक हिम्मत का काम था ब्राह्मण लड़के के परिवार का। मुझे पाने के लिए बेचारे ने खूब अनशन किए थे। ऐसी अन्तर्मन तक छाई, रग–रग में प्रेम रस बनकर घुली पत्नी के साथ पहली होली खेलने का उत्साह उनके निश्चल, युवा ताँबई चेहरे पर खूब छलक रहा था। वैसे भी उनका मन इतना निश्छल था कि अपनी किसी भावना को छिपा पाना उनके लिए नामुमकिन था। जब छिपाने का प्रयास करते, तो भीतर की उथल–पुथल और भी मुखर होकर फूट पड़ती। अगर खुश होते, तो बच्चों—सी निर्मल मुस्कान उनके पौरुष भरे चेहरे पर तैर जाती। जब नाराज़ होते, तो उसी मासूम चेहरे से क्रोध फूटता हुआ दिखता। खैर उन्होंने अपने छोटे भाई से मिलकर रंग-सहित भंग भी तैयार कर होली खेलने की सारी योजना बना ली। रंग-अबीर तो आए ही, साथ ही भाँग की बर्फी और ठंडाई भी तैयार करा ली गई। मुझे भाँग खिलाना संभवतः शेड्यूल में न भी रहा हो। घर के लड़कों ने भंग की ठंडाई और बर्फी का आनंद उठाया। डॉक्टर साहब ने कभी कोई नशा नहीं किया था; अतः वह भाँग उन्हें जल्दी ही चढ़ी और चढ़ी भी खूब। सबके साथ मिलकर उन्होंने भी खूब गाने गाए, खूब लाउड म्यूज़िक चलाया गया और खूब डांस भी किया। मुख्य रूप से अभिताभ बच्चन और रेखा पर फिल्माया गया सिलसिला फिल्म का गीत, 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली' फिर–फिर बजाया गया। डांस करते–करते यों तो सब थक चुके थे; पर रुकने को कोई तैयार नहीं था। मेरी सासू माँ ने कहा-अब सब चुप बैठ जाओ मौसी आ रही हैं। मौसी यानी सासू माँ की बड़ी बहन, वे हमारे साथ ही रहती थीं। उनके रौब–दाब और क्रोध से सभी खौफ खाते थे। मौसी का नाम सुनते ही सबके सब चुपचाप यूँ ही बैठ गए। बैठे तो डॉक्टर साहब भी, पर भाँग के नशे में सीधे बैठने का जो उपक्रम वे कर रहे थे, उसे देखकर हँसते–हँसते बिना भाँग खाने वालों का भी बुरा हाल हो रहा था। वे सीधा बैठने के प्रयास में दोनों हाथ बाँधकर बैठ रहे थे। पर उन्हें शायद यह लग रहा था कि उनके दोनों कंधे एक सीध में नहीं आ रहे। वे अपने दोनों कंधे एक सीध में करने के चक्कर में एक कंधा ऊँचा और एक नीचा करके बैठ रहे थे। हम सब हँसी के मारे दौहरे हुए जा रहे थे। वे बार–बार हम सबको दिखा रहे थे-देखो मैं कितना सीधा बैठा हूँ। तुम भी सीधे बैठो। मम्मी कह रही हैं कि मौसी आने वाली हैं। मैं तो सीधा बैठा हूँ भैया, मुझे देखेंगी, तो समझ जाएँगी कि बस मैंने ही भाँग नहीं खाई है, बाकी सबने खा ली आज तो। तुम सभी पकड़े जाओगे और मौसी तुम सबकी डाँट लगाएँगी। वे बोलते–बोलते चुप ही नहीं हो रहे थे। मौसी आ गईं। उनका बोलना तब भी जारी रहा। फिर बोले-सुनो–सुनो मैं सबको एक बात बताता हूँ, जो सिर्फ मुझे और निर्देश को पता है, हम दोनों को और सिर्फ हम दोनों को पता है। मैं तो खौफ ही खा गई, पता नहीं क्या बताने लग जाएँ, होश तो है नहीं। पति-पत्नी की हज़ार बातें हैं, ना जाने क्या बता डालें और मैं शर्मिंदा होती फिरूँ। वे बार–बार दौहरा रहे थे, बस मेरी और निर्देश की बात है; इसीलिए हम दोनों को ही पता है। सुनो बताता हूँ। हम पति–पत्नी के बीच की बात वे यों सरेआम बताने ही जा रहे थे कि उनके मुँह पर हाथ रखकर ही रोकना पड़ा। मौसी ने कहा, चुप बैठा रह, हमें नहीं सुननी तेरी और निर्देश की बात। मौसी के डाँटते ही वे चुप हो गए और एक कंधा ऊपर और एक नीचे ढलकाकर अपने अनुसार सीधे बैठने का उपक्रम करने लगे।<br />
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मेरे देवर और उसके दोस्तों ने मिलकर एक और मिशन तैयार किया। भाभी को यानी मुझे भी भाँग खिलाई जाए। बर्फी के भीतर रखकर भाँग का खूब बड़ा—सा गोला मुझे और मेरी छोटी ननद को भी खिला दिया गया। थोड़ी देर में उसे भी चढ़ गई, उसने कहना शुरू किया कि मैं मर रही हूँ। चढ़ मुझे भी गई, यह तब पता चला, जब वह कहती कि मैं मर रही हूँ और मुझे खूब ज़ोरों की हँसी आती। इस तरह उसे मरने की और मुझे हँसने की चढ़ गई। डॉक्टर साहब को सीधे बैठने की। मेरे देवर को डाँट पड़ने का डर बैठ गया; इसलिए उसे चुपचाप बैठने की चढ़ी। या कह लें कि सबसे कम उसी को चढ़ी। मेरी ननद मरे जा रही थी और मैं हँसे जा रही थी। मैं थककर चूर हो गई थी। हँस–हँसकर पेट पूरी तरह दुख गया था। पर हँसी थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। मेरी स्थिति सामान्य होती, तो भी और बात थी; पर मुझे तीन माह की प्रैगनैन्सी थी। मेरी सासू माँ खुद एक डॉक्टर थीं; अतः वे खतरे से वाकिफ थीं और चिंता के मारे उनकी जान सूख रही थी; पर कुछ नहीं किया जा सकता था। किसी को डाँटना-पीटना भी क्या कोई इलाज था तब, जबकि कोई होशो–हवास में था ही नहीं। वे बस मुझे ही कहे जा रही थीं-बेटा हँसी रोकने की कोशिश करो। कहीं नुकसान न हो जाए। मैं उनके कहने के बाद हर बार यही सोचती कि अब नहीं हँसूँगी; परंतु मैं खुद को रोक ही न पा रही थी। तब जाना कि भाँग का नशा किस कदर बेबस कर सकता है इंसान को।<br />
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इस तरह बेबस होने के लिए करते हैं लोग नशा? यह जानकर आश्चर्य हुआ। इसी बीच डॉक्टर साहब के जीजा जी, श्री जंगबहादुर जी, जो बुलंदशहर में ही रहते हैं, होली खेलने के लिए आ गए। वे हमेशा से ही होली खेलने आते रहे थे। जीजा जी के आने की खबर सुनकर डॉक्टर साहब और भी 'सीधे' होकर बैठ रहे थे। मेरी ननद और भी गंभीरता से मरे जा रही थी, देवर गुमसुम बैठ गया था, बोला सब चुप हो जाओ जीजा जी आ गए और मैं? मैंने जीजा जी को देखा, तो वे मुझे अपनी आँखों के सामने हवा में तैरते हुए दिखाई दिये, वह भी मात्र चार या पाँच इंच के। उनका कद वैसे तो छोटा ही है; पर उस दिन मेरी नज़र ने तो कमाल ही कर दिया। जैसे ही वे मुझे छोटे-से दिखते, मैं और भी ज़ोरों से हँस पड़ती और अपनी तर्जनी और अँगूठे से बताती-जीजा जी इत्ते से हैं। उस बार तो बेचारे गुजिया और दही बड़े खाकर होली खेले बगैर ही चले गए। मौसी, सासू माँ सहित सब पर बेहद नाराज़ हुईं। बच्चों को इतनी छूट दे रखी है कि भला-बुरा भी ना दिखाई देता तुझे और सासू माँ बिना कोई गलती किए चुपचाप डाँट खाती रहीं। उन्हें किसी ने थोड़े ही बताया था कि हम सब भाँग खाने जा रहे हैं। शायद मेरे देवर को भी भाँग का यह बेसुध कर देने वाला स्वरूप पता नहीं होगा। वरना दस बार सोचता।<br />
<br />
मैं प्रभावशालिनी भन्नाटेदार भाँग के नशे में नौ घंटे लगातार हँसती रही। उसके बाद कई दिनों तक सोती रही। जो भी हुआ यह गनीमत रही कि मेरा शिशु सुरक्षित रहा। भाँग से सबने घर में तौबा कर ली। ससुराल का वह पहला फाग मज़ाक–मज़ाक में जी का जंजाल बन गया था। तब तो डर लग रहा था; पर अब जब भी उसके बारे में सोचती हूँ फिर से हँसी आती है। पिता के बाद जो होली खेलना छूटा था, वह ससुराल के इस पहले फाग से खेलना फिर शुरू हुआ। <br />
-0-</div>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF&diff=44184&oldid=43367निर्देश निधि2024-03-21T17:38:38Z<p><span dir="auto"><span class="autocomment">संस्मरण</span></span></p>
<table class='diff diff-contentalign-left'>
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">17:38, 21 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 24:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 24:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लहर- लहर मन / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[लहर- लहर मन / निर्देश निधि]]</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>===संस्मरण===</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>===संस्मरण===</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>* [[टहनी सचमुच माँ को बुला लाई थी ! / निर्देश निधि]]</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[टहनी सचमुच माँ को बुला लाई थी ! <ins class="diffchange diffchange-inline">/ निर्देश निधि]]</ins></div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins class="diffchange diffchange-inline">*[[पहला– पहला फाग ससुराल का  </ins>/ निर्देश निधि]]</div></td></tr>
</table>Bhawdeephttp://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%AF_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%A4_%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95_%E0%A4%86%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8_/_%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE&diff=44183&oldid=44182उदय प्रकाश की किस्सागोई का अद्भुत रूपक आख्यान / स्मृति शुक्ला2024-03-21T03:41:39Z<p></p>
<table class='diff diff-contentalign-left'>
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">03:41, 21 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 34:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 34:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>''''छप्पन, तोले का करधन'''' कहानी में उदयप्रकाश के बचपन के कुछ निजी अनुभव, पीड़ाओं के दंश मृत्यु की आहटें और मृत्यु के बाद का सन्नाटा, भयावहता और विपन्नता के चरम पर पहुँचे एक परिवार के धीरे-धीरे विनष्ट होने की त्रासदी सभी कुछ मिलकर एक ऐसा वितान रचते हैं जिसकी ज़द में एक अकेला परिवार नहीं है अपितु बृहत्तर समाज आ जाता है। अनेक सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों को अपने में समेटे यह कहानी अपने शिल्प की विशिष्टता के कारण हिन्दी की श्रेष्ठ कहानियों में शुमार है।</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>''''छप्पन, तोले का करधन'''' कहानी में उदयप्रकाश के बचपन के कुछ निजी अनुभव, पीड़ाओं के दंश मृत्यु की आहटें और मृत्यु के बाद का सन्नाटा, भयावहता और विपन्नता के चरम पर पहुँचे एक परिवार के धीरे-धीरे विनष्ट होने की त्रासदी सभी कुछ मिलकर एक ऐसा वितान रचते हैं जिसकी ज़द में एक अकेला परिवार नहीं है अपितु बृहत्तर समाज आ जाता है। अनेक सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों को अपने में समेटे यह कहानी अपने शिल्प की विशिष्टता के कारण हिन्दी की श्रेष्ठ कहानियों में शुमार है।</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>उदय प्रकाश की प्रायः सभी कहानियों में यथार्थ को माया और लीला की तरह ही प्रस्तुत किया गया है। समाज का सच फैन्टेसी में ढलकर अभिव्यक्त होता है। राजेन्द्र यादव ने उदय प्रकाश की कहानियों पर मार्केज का प्रभाव माना है लेकिन उदय प्रकाश ने अपने लेखन पर किसी कहानीकार के प्रभाव के आरोप को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इस बात का खंडन करते हुए उन्होंने लिखा है-दुर्भाग्य से ऐसा खूब हो रहा है। 'टेपचू' लूशुन की 'आह क्यू' की नकल प्रचारित की गई। 'तिरिछ' माक्र्वेस की 'क्रॉनिकल <del class="diffchange diffchange-inline">आॅफ </del>अ डेथ फॉर टोल्ड' की। 'और अंत में प्रार्थना' दूरदर्शन पर दिखाई दो फिल्मों का काढ़ा। ऐसे लोग, स्पष्ट है ईमानदार नहीं हैं। यह तत्त्व वही है, जो निराला की कविताओं को टैगोर की रचनाओं की नकल कहते हैं। 'छप्पन, तोले करधन' जब 'पहल' में प्रकाशित होकर चर्चित हुई, तो एक तत्व ने बाकायदा लिखित तौर पर यह प्रचारित किया कि यह बिहार के किसी कहानीकार की कहानी का उल्था है। "(और अंत में प्रार्थना-उदय प्रकाश का आत्मकथ्य, पृ.21) 'छप्पन, तोले का करधन' कहानी का हिन्दी में अनुवाद सारा राय ने किया और आज से बीस वर्ष पूर्व इस कहानी का अनुवाद सुप्रसिद्ध जर्मन <del class="diffchange diffchange-inline">विद्वान </del>लोठार लुत्शे ने किया है। उदय प्रकाश ने अपनी कहानियों के शिल्प पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने अपने लेखन के साथ हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास 'बाणभट्ट की आत्मकथा का जिक्र करते हुए लिखा है-" इतिहास में आख्यान या यथार्थ में कल्पना के संश्लेष की यह पद्धति किसी <del class="diffchange diffchange-inline">माक्र्वेस</del>-बार्खेस की नहीं हजारी प्रसाद द्विवेदी की और मेरी है। "अपनी कहानियों के शिल्प विषय में उदय प्रकाश कहते हैं-" मैंने एक नहीं कई तरह की कहानियाँ लिखी हैं। कई-कई रूपों, शिल्प-शैलियों, संरचनाओं और आकारों की कहानियाँ। कुछ कहानियाँ बहुत लम्बी हैं। लगभग उपन्यास की सरहदों को छूती हुई।" निश्चय ही उदय प्रकाश कहानी' छप्पन, तोले का करधन'एक ऐसी कहानी है, जो एक' मेटाफर' रचती है। पाठकों को कहानी के नये आस्वाद से परिचित कराती है। किस्सागोई की परंपरा को पुनर्जीवित करती यह कहानी इतिहास और हमारे समय की तमाम क्रूरताओं और अमानवीयताओं को मार्मिक ढंग से प्रकट करने वाली एक सशक्त कहानी है।</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>उदय प्रकाश की प्रायः सभी कहानियों में यथार्थ को माया और लीला की तरह ही प्रस्तुत किया गया है। समाज का सच फैन्टेसी में ढलकर अभिव्यक्त होता है। राजेन्द्र यादव ने उदय प्रकाश की कहानियों पर मार्केज का प्रभाव माना है लेकिन उदय प्रकाश ने अपने लेखन पर किसी कहानीकार के प्रभाव के आरोप को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इस बात का खंडन करते हुए उन्होंने लिखा है-दुर्भाग्य से ऐसा खूब हो रहा है। 'टेपचू' लूशुन की 'आह क्यू' की नकल प्रचारित की गई। 'तिरिछ' माक्र्वेस की 'क्रॉनिकल <ins class="diffchange diffchange-inline">ऑफ </ins>अ डेथ फॉर टोल्ड' की। 'और अंत में प्रार्थना' दूरदर्शन पर दिखाई दो फिल्मों का काढ़ा। ऐसे लोग, स्पष्ट है ईमानदार नहीं हैं। यह तत्त्व वही है, जो निराला की कविताओं को टैगोर की रचनाओं की नकल कहते हैं। 'छप्पन, तोले करधन' जब 'पहल' में प्रकाशित होकर चर्चित हुई, तो एक तत्व ने बाकायदा लिखित तौर पर यह प्रचारित किया कि यह बिहार के किसी कहानीकार की कहानी का उल्था है। "(और अंत में प्रार्थना-उदय प्रकाश का आत्मकथ्य, पृ.21) 'छप्पन, तोले का करधन' कहानी का हिन्दी में अनुवाद सारा राय ने किया और आज से बीस वर्ष पूर्व इस कहानी का अनुवाद सुप्रसिद्ध जर्मन <ins class="diffchange diffchange-inline">विद्वान् </ins>लोठार लुत्शे ने किया है। उदय प्रकाश ने अपनी कहानियों के शिल्प पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने अपने लेखन के साथ हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास 'बाणभट्ट की आत्मकथा का जिक्र करते हुए लिखा है- "इतिहास में आख्यान या यथार्थ में कल्पना के संश्लेष की यह पद्धति किसी <ins class="diffchange diffchange-inline">मार्क्वेस</ins>-बार्खेस की नहीं<ins class="diffchange diffchange-inline">, </ins>हजारी प्रसाद द्विवेदी की और मेरी है।" अपनी कहानियों के शिल्प विषय में उदय प्रकाश कहते हैं-" मैंने एक नहीं कई तरह की कहानियाँ लिखी हैं। कई-कई रूपों, शिल्प-शैलियों, संरचनाओं और आकारों की कहानियाँ। कुछ कहानियाँ बहुत लम्बी हैं। लगभग उपन्यास की सरहदों को छूती हुई।" निश्चय ही उदय प्रकाश कहानी <ins class="diffchange diffchange-inline">''</ins>'छप्पन, तोले का करधन'<ins class="diffchange diffchange-inline">''  </ins>एक ऐसी कहानी है, जो एक <ins class="diffchange diffchange-inline">''</ins>'मेटाफर<ins class="diffchange diffchange-inline">''</ins>' रचती है। पाठकों को कहानी के नये आस्वाद से परिचित कराती है। किस्सागोई की परंपरा को पुनर्जीवित करती यह कहानी इतिहास और हमारे समय की तमाम क्रूरताओं और अमानवीयताओं को मार्मिक ढंग से प्रकट करने वाली एक सशक्त कहानी है।</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
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<tr style='vertical-align: top;'>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan='2' style="background-color: white; color:black; text-align: center;">03:32, 21 मार्च 2024 का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 40:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति 40:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[अथर्वा मैं वही वन हूँ / स्मृति शुक्ला ]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[अथर्वा मैं वही वन हूँ / स्मृति शुक्ला ]]</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[क़ितराह : दर्द के अँधेरों को भेदकर निकले प्रेम के आलोक का आख्यान / स्मृति शुक्ला ]]</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*[[क़ितराह : दर्द के अँधेरों को भेदकर निकले प्रेम के आलोक का आख्यान / स्मृति शुक्ला ]]</div></td></tr>
<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins style="font-weight: bold; text-decoration: none;">*[[उदय प्रकाश की किस्सागोई का अद्भुत रूपक आख्यान / स्मृति शुक्ला ]]</ins></div></td></tr>
</table>Bhawdeep