इलाज / विष्णु नागर
एक मां अपने छह साल के बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास गई।
उसने डॉक्टर से कहा–-
"वैसे तो मेरा बच्चा स्वस्थ–प्रसन्न है। खूब दूध पीता है, डट कर खाना खाता है, छक कर मिठाई खाता है, मुट्ठी भर–भर कर नमकीन खाता है, जी भर खेलता है, मेहनत से पढ़ता है, रंग ला दो तो ढेरों पेटिंग बनाकर रख देता है, सुरीला गाना गाता है, ख़ूब ख़ुश रहता है। लेकिन एक समस्या है। यह कोका कोला–पेप्सी नहीं पीता, नेस्ले की चाकलेट नहीं खाता, होस्टेस की पोटेटो चिप्स नहीं खाता, लिओ के खिलौने नहीं खेलता, मैंगी के नूडल्स नहीं खाता, डॉल्ट्स की आइसक्रीम नहीं खाता। पता नहीं इसे क्या बीमारी है? मैं बहुत परेशान हूँ डॉक्टर साहब।"
डॉक्टर साहब भी चक्कर में। ऐसा केस पहले कभी नहीं आया था। उन्होंने बच्चे का सीना, पेट, पीठ, दाँत, मुँह, आँख, नाखून सब देख लिए। टट्टी-पेशाब का रंग भी पूछ लिया। दिन में कितनी बार जाता है, यह भी जान लिया। एक्सरे ले लिया। सब ठीक था। लेकिन आसामी बड़ा था। डॉक्टर मरीज को यों ही हाथ से जाने देना नहीं चाहता था। वह सोचता रहा, सोचता रहा। अचानक उसने पूछा–-
"यह टी.वी. और वीडियो देखता है?"
माँ ने कहा–- "डॉक्टर साहब, मैं हड़बड़ी में यह बताना ही भूल गई कि यह टी.वी. और वीडियो नहीं देखता। इस बात से तो मैं सबसे ज़्यादा परेशान हूँ।"
डॉक्टर ने जवाब दिया-- "चिंता मत कीजिए। मैं इसे टी.वी. और वीडियो देखने का सात दिन का कोर्स देता हूँ। आपको तीसरे दिन से बच्चे की हालत में सुधार नज़र आएगा।"