तीन पीढियों की संघर्ष गाथा / जयप्रकाश चौकसे

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तीन पीढियों की संघर्ष गाथा

प्रकाशन तिथि : 28 अगस्त 2009


अभिषेक बच्‍चन का कहना है कि उनकी प्रारंभिक सत्रह फिल्‍में असफल रहीं, तीस फिल्‍मकारों ने उन्‍हें खारिज किया, उनकी अनेक फिल्‍में अधूरी रहीं और बमुश्किल घिसटकर पूरी हंई। कुछ फिल्‍मों में उन्‍हें निकालकर अन्‍य कलाकार को लिया गया। उनकी संघर्ष गाथा उनके पिता अमिताभ बच्‍चन के संघर्ष से काफी मिलती है। परंतु दोनों संघर्ष गाथाओं का अंत एक जैसा नहीं है। अमिताभ बच्‍चन सलीम-जावेद की लिखी ‘जंजीर’, ‘दीवार’ और ‘शोले’ फिल्‍म के बाद शिखर पर पहुंचे और उनकी सफलता का दौर लंबा चला।

यह सच है कि अभिषेक को भी कुछ फिल्‍मों में सफलता मिली है, परंतु उनकी अंगुलियों पर गिनी जा सकने वाली सफलताओं की आय अ‍मिताभ बच्‍चन की ‘शोले’ या ‘दीवार’ से ज्‍यादा नहीं है। अमिताभ बच्‍चन और अभिषेक की संघर्ष गाथाओं में भी बहुत अंतर है। अमिताभ रिक्‍शा और टैक्‍सी में मीलों भटके हैं, परंतु अभिषेक वातानुकूलित कार में चले हैं और सुपर सितारा माता-पिता के कारण ही जेपी दत्‍ता ने उन्‍हें ‘रिफयूजी’ में लिया था। दर्शक भी फिल्‍म के पहले शो में अमिताभ बच्‍चन के बेटे और राजकपूर की पोती (करीना कपूर को देखने ही पहुंचे थे।

इन संघर्ष कथाओं की चकाचौंध में हम हरिवंशराय बच्‍चन के संघर्ष को अनदेखा कर रहे हैं। अमिताभ बच्‍चन को ख्‍वाजा एहमद अब्‍बास (सात हिंदुस्‍तानी) और सुनील दत्‍त (रेमशा और शेरा) ने हरिवंशराय बच्‍चन और गांधी परिवार से उनकी निकटता के कारण प्रोत्‍साहित किया, परंतु हरिवंशराय बच्‍च्‍न के संघर्ष में कोई भी तकिया उपलब्‍ध नहीं था। उन्‍होनें अपने दम पर अंग्रेजी साहित्‍य में एमए किया, इलाहाबाद में लेक्‍चरर बने और लंदन में शोध किया। नेहरू के आशीर्वाद से विदेश विभाग में उंचा पद (1954 में) मिला और बाद में राज्‍यसभ की सदस्‍यता भी। अगर हम किसी तराजू पर संघर्ष का भार तौलने में सफल हों, तो हरिवंशराय का पलडा उस पलडे से भारी पडेगा, जिस पर हम अमिताभ और अभिषेक दोनों को रख सकते हैं।

यह भी गौरतबल है कि हरिवंशराय बच्‍चन ने गुलाम भारत में संघर्ष किया था और अमिताभ बच्‍चन ने भ्रष्‍ठ, परंतु स्‍वतंत्र भारत में संघर्ष किया था और भारतीय लोकतंत्र के काले अध्‍याय आपातकाल में शिखर छुआ था। अभिषेक बच्‍चन ने आर्थिक उदारवार और बाजार की ताकत के स्‍वर्णकाल में संघर्ष किया था। हरिवंशराय बच्‍चन के जमाने में सुर्खियों में आना कठिन था और अभिषेक के जमाने में सुर्खियों से बचना कठिन है। एक ने गांधी के युग में काम किया, दूसरे ने इंदिरा गांधी के युग में शिखर पाया और तीसरा राखी सावंत के युग में सुर्खियों में है, अपनी फिल्‍मों और अभिनय से ज्‍यादा अपने माता-पिता, चाचा अमरसिंह और पत्‍नी ऐश्‍वर्या राय के कारण।

दरअसल, अभिषेक का दर्द अपने वंश में सबसे अधिक है। सफल लोगों के बीच अपनी साधारण सी क्षमताओं को लेकर जीन आसान नहीं है, वह भी उस भयावह कालखंड में जब सफलता कौ नैतिकता से ऊपर माना जाता है। अभिषेक अपनी स्‍वयं की पहचान के संघर्ष से जूझ रहे हैं। दरअसल, अब सफलता एकल प्रयास नहीं है। इसकी फैक्‍टरियां हैं जो ‘ऑर्डर’ आने पर मनचाहा ‘माल’ गढ देती हैं। हर युग का अपना संघर्ष, अपना सुख-दुख होता है और विद्रोह के तेवर भी अलग होते हैं। दर्द से भिडने के तौर-तरीके बदल जाते हैं।