"द इम्पॉसिबल" मौत के आगोश में छटपटाती जिंदगी / राकेश मित्तल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


"द इम्पॉसिबल" मौत के आगोश में छटपटाती जिंदगी
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2013


हिंद महासागर में 26 दिसंबर 2004 को आई सुनामी की लहरों समूचे दक्षिण पूर्वी एशिया के तटवर्ती क्षेत्रों में तांडव मचा दिया था। इसे आज भी विश्व की सबसे भयानक प्राकृतिक आपदाओं में से एक माना जाता है। क्रिसमस के ठीक अगले दिन होने के कारण उस समय सभी एशियाई समुद्री रिसॉटर््स देशी-विदेशी नागरिकों से भरे हुए थे, जहां लोग छुट्टियों और त्योहार का आनंद ले रहे थे। इस त्रासदी में हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हो गए। जिन लोगों ने इस प्रकोप को वास्तव में झेला है, वे ही इसका दर्द जान सकते हैं। 2012 में आई स्पेनिश फिल्मकार युआन एन्टोनिओ बयोना की फिल्म ‘द इम्पॉसिबल’ इस त्रासदी को एक परिवार के वास्तविक अनुभव के माध्यम से देखने की कोशिश है।

यह फिल्म स्पेन की मारिया बेलोन और उसके परिवार की सच्ची कहानी है। उनके संघर्ष को देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 2004 की क्रिसमस पर मारिया (नाओमी वॉट्स) अपने पति हेनरी (इवान मैक्ग्रेगर) और तीन पुत्रों, तेरह वर्षीय लुकस (टॉम हॉलैंड), सात वर्षीय थॉमस (सेमुअल जोसलीन) व पांच वर्षीय सायमन (ओकले पेन्डरगास्ट) के साथ थाइलैंड के ‘खाओ लेक रिसोर्ट’ पर छुट्टियां मनाने जाती हैण् पूरा परिवार बढ़िया होटल और अत्यंत खूबसूरत वातावरण में छुट्टियों का आनंद ले रहा है। मारिया स्विमिंग पूल के किनारे बैठकर उपन्यास पढ़ रही है और उसके पति व तीनों बच्चे पूल में अठखेलियां कर रहे हैं। तभी अचानक लहरों का प्रचंड तूफान आता है, जो सब कुछ तहस-नहस कर देता है। इसके आगे की फिल्म लहरों के साथ उनके संघर्ष और एक-दूसरे से बिछुड़ने-मिलने की लोमहर्षक दास्तान है।

फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता है इसका मानवीय पहलू। निर्देशक युआन बयोना ने इस त्रासदी के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को बेहद खूबसूरती से उभारा है। यही बात इस फिल्म को असाधारण बनाती है, अन्यथा यह एक एडवेंचर फिल्म होकर रह जाती। यह सब कुछ वास्तव में हुआ था और उन लोेगों ने इसका किस तरह सामना किया होगा, यह सोचकर सिहरन हो उठती है। फिल्म देखते हुए दर्शक अपने आप को उस परिवार के संघर्ष का हिस्सा समझने लगते हैं। इस फिल्म को देखकर लगता है कि मानव प्रकृति के हाथ का खिलौना है। हम चाहे कितने भी शक्तिशाली हो जाएं, आधुनिक संसाधनों और तकनीकी से लैस हो जाएं लेकिन प्रकृति या ईश्वर के आगे एकदम बौने हैं।

फिल्म के सभी कलाकारों ने जबर्दस्त अनिभय किया है। यहां तक कि तीनों बच्चों को भी देखकर लगता नहीं कि वे अभिनय कर रहे हैं ऐसा महसूस होता है, जैसे सब कुछ वास्तव में उनके साथ घटित हो रहा है। विशेष रूप से लुकस की भूमिका में टॉम हॉलैंड ने बेहद संतुलित एवं प्रभावी अभिनय किया है। मारिया बुरी तरह घायल हो जाती है, ऐसे समय पूरे धीरज और साहस के साथ वह अपनी मां को सहारा देता है और साथ ही परिवार के बाकी सदस्यों को ढूंढने की भी पूरी कोशिश करता है। विपत्ति इंसान को कितना जल्द परिपक्व बना देती है, यह इस 13 वर्षीय बालक को देखकर समझ में आता है।

मारिया की भूमिका में नाओमी वॉट्स ने कमाल कर दिया है। मारिया वेलोन के संघर्ष और दर्द को उन्होंने पर्दे पर साकार कर दिया हैं इस अविस्मरणीय अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। इसके अलावा उन्होंने गोल्डन ग्लोब एवं स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड पुरस्कार भी हासिल किया।

फिल्म के विजुअल इफेक्ट्स कमाल के हैं। फिल्म की शूटिंग थाइलैंड और स्पेन में हुई है। सुनामी के दृश्यों को स्पेन में एक बहुत बड़े वॉटर टैंक में खाओ लेक रिसोर्ट के मॉडल का निर्माण कर शूट किया गया था। नाओमी वॉट्स और टॉम हॉलैंड को पांच हफ्तों तक लगातार उस वॉटर टैंक पर रहना पड़ा था, क्योंकि युआन पानी के सभी दृश्यों का एक साथ फिल्मांकन करना चाहते थे, ताकि कलाकारों की मनःस्थिति उसी माहौल विशेष की आदी बनी रहे। फिल्म के निर्माण के दौरान मूल प्रेरणास्रोत डॉ मारिया बेलोन सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। उन्होंने पटकथा लेखक सर्जियो सांचेज के साथ बैठकर इस बात की पूरी ताकीद की कि जो वास्तव में घटा है, वही फिल्म में दिखाया जाए। फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की समान रूप से सराहना मिली और बॉक्स ऑफिस पर भी इसने कामयाबी के झंडे गाड़े।