"द पियानिस्ट" युद्ध की विभीषिका में संगीत की स्वरलहरी / राकेश मित्तल

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"द पियानिस्ट" युद्ध की विभीषिका में संगीत की स्वरलहरी
प्रकाशन तिथि : 21 अप्रैल 2013


द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका और उसके उतार-चढ़ाव को दर्शाती जितनी फिल्में बनी हैं उनमें स्टीवन स्लीपवर्ग की ‘शिंडलर्स लिस्ट’ और रोमां पोलांस्की की ‘द पियानिस्ट’ सबसे प्रभावशाली मानी जाती हैं। दोनों ही फिल्में पोलैंड में फिल्माई गई हैं और दोनों अपने विशिष्ट अंदाज में मानव इतिहास के इस काले अध्याय को प्रतिबिंबित करती हैं।

पोलांस्की पोलैंड के महान फिल्मकारों में से एक हैं। निर्देशन के अलावा पटकथा लेखन एवं अभिनय में भी सिद्धहस्त होने के कारण उनकी फिल्मों में सिनेमाई गुणवत्ता शिखर पर होती है। 2002 में प्रदर्शित ‘द पियानिस्ट’ ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन निर्देशक के रूप में पहचान दिलाई। इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए उन्हें ऑस्कर, बाफ्टा और सीजर्स जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले।

पोलांस्की स्वयं द्वितीय विश्व युद्ध की यातनाओं के शिकार रहे हैं। जब उनकी उम्र महज 7 वर्ष थी, तब उनके माता-पिता नाजी सैनिकों द्वारा बंदी बना लिए गए थे, जिस कारण उनका बचपन लावारिस बीता। माता को कैद के दौरान गैस चेंबर में मार दिया गया और वे स्वयं जर्मन सैनिकों द्वारा यौन शोषण के शिकार हुए। इस युद्ध को उन्होंने बहुत करीब से देखा और महसूस किया है, जिसके कारण ‘द पियानिस्ट’ अत्यंत प्रभावशाली और यथार्थपरक बन पड़ी है।

यह फिल्म एक यहूदी पोलिश पियानो वादक व्लादिस्लॉ श्पिलमन की सच्ची कथा पर आधारित है। सितंबर 1939 में श्पिलमन (एड्रियन ब्रॉडी) वॉरसॉ स्थित पोलिश रेडियो स्टेशन पर पियानो वादन कर रहा था। तभी अचानक वहां बम विस्फोट हुआ और चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। यह द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत थी। जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया था।

जर्मनी ने मात्र एक महीने में पोलैंड को हराकर उस पर कब्जा कर लिया। वहां रहने वाले यहूदियों की जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गई। नाजी सेना के अत्याचारों के चलते अधिकांश पोलिश नागरिक या तो मारे गए या देश छोड़कर भाग गए। श्पिलमन और उसके परिवार ने पोलैंड में ही रहने का निश्चय किया किंतु वे एक-दूसरे से बिछुड़ गए। श्पिलमन एक से दूसरी जगह छिपता फिर रहा था। अंततः जर्मन अफसर विल्म हेसनफेल्ड (थॉमस क्रेट्शमन) ने उसे एक घर में पकड़ लिया किंतु जब उसे मालूम पड़ा कि श्पिलमन पियानो वादक है, तो उसने उसे पियानो बजाने को कहा। श्पिलमन के पियानो वादन से विल्म बेहद प्रभावित हुआ। उसने उसे एक खंडहर में छिपा दिया और उसे खाना-पानी पहुंचाता रहा।

जनवरी 1945 में सोवियत सेना की मदद से पोलिश सैनिक जर्मन सेना को पोलैंड से खदेड़ देते हैं। उस समय श्पिलमन और कैप्टन विल्म की आखिरी बार मुलाकात होती है। विल्म वादा करता है कि वह पोलिश रेडियो पर श्पिलमन का वादन सुनता रहेगा। विदा होते समय वह अपना सैन्य कोट श्पिलमन को उपहार स्वरूप दे देता है। मगर इस उपहार के कारण श्पिलमन की जान पर बन आती है जब पोलिश सेना उसे जर्मन सैनिक समझ लेती है। फिल्म का अंत श्पिलमन द्वारा एक बड़े कंसर्ट में पियानो बजाते हुए होता है।

फिल्म की कहानी हालांकि एक व्यक्ति पर केंद्रित है किंतु उसके माध्यम से निर्देशक द्वितीय विश्व युद्ध के समूचे कालखंड का हृदयविदारक चित्रण प्रस्तुत करते हैं। एड्रियन ब्रॉडी ने श्पिलमन के चरित्र को पर्दे पर साकार कर दिया है। न्यूनतम संवादों के जरिए सिर्फ आंखों और चेहरे की भंगिमाओं से उन्होंने दर्द की अभिव्यक्ति की है।

फिल्म कई बार दर्शकों को चौंकाती है। अनेक दृश्य एवं घटनाएं दर्शकों की अपेक्षा के विपरीत घुमाव लेते हुए उन्हें स्तब्ध कर देते हैं। इस पटकथा कौशल के कारण रोनाल्ड हारवुड को सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का ऑस्कर प्राप्त हुआ था। रोमां पोलांस्की ने अपने बेहतरीन निर्देशन, कैमरा मूवमेंट, पार्श्व संगीत और कसे हुए संपादन के संयुक्त प्रभाव से इस फिल्म को बिल्कुल असाधारण और अविस्मरणीय बना दिया है