"द ब्यूटीफुल वॉशिंग मशीन" स्त्री के मशीन हो जाने की दुविधा / राकेश मित्तल

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"द ब्यूटीफुल वॉशिंग मशीन" स्त्री के मशीन हो जाने की दुविधा
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2013


मलेशिया के प्रयोगवादी फिल्मकार जेम्स ली की वर्ष 2004 में प्रदर्शित फिल्म ‘द ब्यूटीफुल वॉशिंग मशीन’ एकदम अलग तरह की अनूठी फंतासी फिल्म है, जिसमें न्यूनतम संवादों के माध्यम से अधिकतम बात कहने की कोशिश की गई है। यह एक ब्लैक कॉमेडी है जिसमे ंवॉशिंग मशीन को एक रूपक की तरह इस्तेमाल किया गया है।

क्वालालम्पुर शहर के मध्य ऐक छोटे-से अपार्टमेंट में तेओ (लो वोक लाई) अकेला रहता है। उसकी प्रेमिका उसे छोड़कर चली गई है। वह अपने साथ घर का अधिकांश सामान भी ले गई है, जिसमें वॉशिंग मशीन भी शामिल है। तेओ डिपार्टमेंटल स्टोर से एक पुरानी उपयोग की हुई वाशिंग मशीन खरीद लाता है किंतु उसे चला नहीं पाता। वह बड़ी अजीब तरह की मशीन है। वह अपनी मर्जी से चलती है, अपनी मर्जी से बंद हो जाती है। अपने तरीके से कपड़े धोती है। तेओ परेशान हो जाता है। वह डिपार्टमेंटल स्टोर से शिकायत करता है मगर वॉरंटी खत्म हो जाने के कारण वहां से कोई मदद नहीं मिल पाती। निर्माता कंपनी में फोन करने पर पता चलता है कि उस मॉडल का निर्माण कब का बंद हो चुका है और उसके स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं है। वह बाजार से एक मैकेनिक बुला लाता है। मैकेनिक के सामने मशीन एकदम बढ़िया चलती है पर जैसे ही वह वापस जाता है, मशीन फिर अपनी मर्जी से चलने लगती है। हारकर तेओ उसे अपने हाल पर छोड़ देता है। रोज-रोज की उठा-पटक के कारण मशीन से उसका एक रोचक रिश्ता-सा बन जाता है। वह उससे लगभग एक इंसान की तरह व्यवहार करने लगता है। यहां तक कि कभी उसे आराम करवाने अपने बेडरूम में बिस्तर के पास भी रख देता है।

एक रात अचानक मशीन की खटपट से उसकी नींद खुल जाती है और वह देखता है कि मशीन के पास एक खूबसूरत अजनबी लड़की बैठी सूप पी रही है। वह उससे बातचीत करने की कोशिश करता है पर लड़की (एमी लिन) कोई जवाब नहीं देती। वह उसे घर का सारा काम करने का आदेश देता है। लड़की चुपचाप उसकी हर आज्ञा का पालन करती है। वह घर की साफ-सफाई, कपड़े-बर्तन, खाना पकाना आदि सब काम बिना किसी विरोध के करती रहती है। इससे उत्साहित होकर तेओ की हिम्मत बढ़ती है और वह उससे जिस्म फरोशी करवाकर पैसे बनाने की कोशिश करता है। लड़की किसी तरह बचकर भाग निकलती है और एक राहगीर वांग (पैट्रिक तेओ) की कार में शरण लेती है। वांग एक अमीर विधुर है। उसकी पत्नी का कुछ समय पहले निधन हो चुका है और वह एक बड़े मकान में अकेला रहता है, जहां उसका बेरोजगार बेटा आदी (वर्ग ली) और बेटी युन (चिन लीकिंग) अपने प्रेमी याप (याप कोक चोंग) के साथ अक्सर आते रहते हैं। वांग के पास भी एक पुरानी वॉशिंग मशीन है जो कभी चलती है, कभी बंद हो जाती है। वांग लड़की को अपने घर में लाता है, जहां वह घर का सारा काम करने लगती है, जैसे तेओ के यहां करती थी। उसकी उपस्थिति पर घर के विभिन्न सदस्यों की अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है। वांग का बेटा उस पर डोरे डालता रहता है, बेटी को उसकी उपस्थिति नहीं भाती और बेटी का प्रेमी उसका यौन शोषण करना चाहता है। धीरे-धीरे रिश्ते जटिल होने लगते हैं, संवेदनाएं दरकने लगती हैं और परिवार की संघटना टूटने के कगार पर आ जाती है। मशीन उन घावों को नहीं धो पाती, जो दिल पर लगे हैं।

फिल्म हमें कई स्तरों पर उद्वेलित करती है। यह स्त्री की विवशता, महत्वाकांक्षा और इच्छा-अनिच्छा को रेखांकित करते हुए उसके अस्तित्व की पड़ताल करती है। फिल्म के केंद्र में एक ऐसी महिला की कल्पना की गई है, जो बिना कुछ कहे, बिना किसी विरोध के हर आज्ञा का पालन करती है, मशीन की तरह हर काम करने को तत्पर है। उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है। वह कमोबेश एक आम स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है। उसके आसपास जो लोग भी आए, वे स्वयं अपनी समस्याओं से जूझ रहे थे, बिखरे-टूटे हुए थे किंतु उसके संपर्क में आते ही उस पर अपना अधिकार जमाने को तत्पर रहते थे।

फिल्म में बहुत कम संवाद हैं। वॉशिंग मशीन वाली लड़की पूरी फिल्म में एक शब्द भी नहीं बोलती। अन्य पात्र भी शब्दों के बजाए अभिनय और भाव-भंगिमाओं का ज्यादा उपयोग करते है। पूरी फिल्म में कैमरा मूवमेंट्स और विजुअल्स का बेहतरीन उपयोग किया गया है।

इस फिल्म को बैंकॉक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह 2005 में सर्वेश्रेष्ठ फिल्म का ‘स्वर्ण किन्नरी’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।