"द रॉन्ग मैन" निर्मम व्यवस्था का शिकार आम आदमी / राकेश मित्तल

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"द रॉन्ग मैन" निर्मम व्यवस्था का शिकार आम आदमी
प्रकाशन तिथि : 18 मई 2013


महान ब्रिटिश फिल्म निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक का नाम विश्व सिनेमा में सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का पर्याय माना जाता है। उनका एक स्थायी दर्शक वर्ग है। हिचकॉक ने रहस्य और रोमांच की विशिष्टता के साथ मनोवैज्ञानिक गुत्थियों को अपनी फिल्मों का विषय बनाया। भय अैर संदेह जैसी भावनाओं को कैमरे के माध्यम से जीवंत करने की विधा में वे पारंगत थे। वर्ष 1956 में प्रदर्शित उनकी फिल्म ‘द रॉन्ग मैन’ हालांकि उतनी चर्चित नहीं हुई किंतु यह उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है।

यह फिल्म एक सच्ची कहानी है। न्यूयार्क के क्रिस्टोफर इमानुएल (मैनी) बेलेस्व्रेरो के जीवन में यह हादसा घटित हुआ था, जिस पर अमेरिका की ‘लाइफ’ मैग्जीन में 29 जून 1953 को बड़ी कवर स्टोरी छपी थी। बाद में मैक्सवेल एंडरसन ने इस पर ‘द ट्रयू स्टोरी ऑफ क्रिस्टोफर इमानुएल बेलेस्वेरो’ नामक किताब लिखी, जोकि इस फिल्म का आधार है। फिल्म इस बात को दर्शाती है कि एक गलत इल्जाम किसी भोले-भाले निर्दोष व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर सकता है।

मैनी बेलेस्व्रेरो (हैनरी फोंडा) न्यूयॉर्क के एक क्लब में जैज़ सिंगर हैं, जो अपनी पत्नी रोज़ (वेरा माइल्स) के साथ शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा है। मैनी की तनख्वाह इतनी कम है कि परिवार का गुजारा बेहद मुश्किल से चल पाता हैं उसकी पत्नी का दांतों का ऑपरेशन होने वाला है, जिसके लिए उसे धन की आवश्यकता है। वह अपनी बीमा पॉलिसी गिरवीं रखकर उस पर कर्ज लेने का निश्चय करता है। बीमा ऑफिस में प्रवेश करने पर लोग उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। दरअसल पिछले कुछ महीनों में दो बार एक हथियारबंद डकैत ने बीमा ऑफिस को लूटने के लिए बंधक बना लिया था और पुलिस के आने से पहले वह भाग निकला था। मैनी का हुलिया उस बदमाश से कुछ-कुछ मिलता-जुलता है। उसे बीमा ऑफिस में घुसते देख कुछ कर्मचारी चुपचाप पुलिस को फोन कर देते हैं और पुलिस आकर उसे गिरफ्तार कर लेती है। फिर शुरू होता है पुलिस की पूछताछ और यंत्रणाओं का दौर।

धीरे-धीरे उसे मालूम पड़ता है कि उस बदमाश ने न केवल इस बीमा ऑफिस में, बल्कि कई और जगहों पर वारदातें की हैं। अपने आप को निर्दोष सिद्ध करने के चक्कर में वह और उलझता जाता है। वह पूरी ईमानदारी और निष्ठा से पुलिस को सहयोग करता है किंतु वही सहयोग उसके खिलाफ सबूत बनकर खड़ा हो जाता है। पुलिस उससे लिखित स्टेटमेंट मांगती है। घबराहट में वह एक शब्द की स्पेलिंग गलत लिख देता है। बदकिस्मती से उस वास्तविक डकैत ने भी अपने धमकी भरे पत्र में उस शब्द की स्पेलिंग उसी तरह गलत लिखी थी। पुलिस का शक यकीन में बदल जाता है। उसकी सख्ती बढ़ती जाती है।

पति की दुर्दशा और गंभीर मानसिक तनाव के चलते रोज़ गहरे अवसाद में चली जाती है और उसे अस्पताल में दाखिल करना पड़ता है। मैनी का वकील फ्रैंक (एंथोनी क्वेल) उसका बचाव करने की भरपूर कोशिश करता है किंतु उसका सामना ऐसी न्याय व्यवस्था से है जो आम आदमी के लिए नहीं बनी है। अंत में वास्तविक बदमाश एक दुकान को लूटने की कोशिश करते हुए पकड़ा जाता है किंतु तब तक मैनी का जीवन बर्बाद हो चुका होता है।

विख्यात हॉलीवुड अभिनेता हैनरी फोंडा ने मेनी के किरदार को जीवंत बना दिया है। एक निर्दोष व्यक्ति की बेबसी, लाचारी, संघर्ष और दर्द के भावों को उन्होंने बेहद स्वाभाविकता के साथ अभिव्यक्त किया है। उनकी आंखों के याचक भाव को देखकर दर्शक करूणा से भर उठते हैं। इस फिल्म के माध्यम से हिचकॉक एक पत्थर-दिल न्याय व्यवस्था, निर्लिप्त और निर्मम नौकरशाही व पुलिस तथा असंवेदनशील सरकारी तंत्र का विद्रूप चेहरा प्रस्तुत करते हैं। यह जानकार और पीड़ा होती है कि एक तथाकथित सभ्य समाज के विकसित देश में यह सब वास्तव में घटित हुआ था।